08/04/2022
जब कूरान पर पाबंदी लगी:-----
1973 में रूस में कम्युनिज़्म का तूती बोलती थी बल्कि दुनिया तो यह कह रही थी कि बस अब पूरा एशिया सुर्ख(लाल) हो जाएगा, उन दिनों एक शख्स (मुसन्निफ़) मास्को ट्रेनिंग के लिए गए थे, वह कहते हैं कि जुमा के दिन मैंने दोस्तों से कहा कि चलो जुमा अदा करने की तैयारी करते हैं, तो उन्होंने कहा कि यहां मस्जिदों को गोदाम बना दिया गया है सिर्फ दो ही मस्जिद इस शहर में बचें है जो कभी बन्द कभी खुले होते है। मैंने कहा: आप मुझे मसाजिद का पता बता दें, मैं वहीं चला जाऊंगा। पता लेकर जब मस्जिद पहुंचा तो मस्जिद बन्द थी, मस्जिद के पड़ोस में ही एक बन्दे के पास चाभी थी, मैंने उसे खोलने को कहा तो उसने कहा दरवाज़ा तो मैं खोल दुंगा लेकिन अगर आपको कोई नुक़सान पहुंचा तो मैं ज़िम्मेदार नहीं होऊंगा। मैंने कहा देखिए जनाब मैं अपने मुल्क में भी मुसलमान था और रूस के मास्को में भी मुसलमान हुं, वहां भी नमाज़ पढ़ता था और रूस के मास्को में भी नमाज़ अदा करूंगा चाहे कुछ भी हो जाए।
उसने मस्जिद का दरवाजा खोला और मैंने जल्दी से सफ़ाई की और बुलन्द आवाज से अज़ान दीं।----- अज़ान की आवाज़ सुनकर बुढ़े, बच्चे, मर्द औरत, जवान सब मस्जिद के दरवाजे पर जमा हो कर के कि ये कौन है जिसने मौत को आवाज़ दी।--- लेकिन मस्जिद के अंदर कोई नहीं आया, मैंने ज़ोहर की नमाज़ अदा की और मस्जिद से बाहर जाने लगा तो लोग मुझे ऐसे देख रहे थे जैसे कि मैंने नमाज़ अदा कर के नहीं बल्कि दुनिया का कोई अजूबा काम कर के निकला हुं।
एक बच्चा मेरे पास आया और कहा कि आप मेरे यहां चाय पीने आईए, उसके लहज़े में खूलूस ऐसा था कि मैं इनकार नहीं कर सका, मैं उसके साथ उसके घर गया, चाय पी और उस बच्चे से पूछा आपको कूरान पढ़ना आता है!??
बचचे ने कहा: जी बिल्कुल! कूरान पढ़ना सबको आता है, मैंने जेब से कूरान का छोटा सा पेज निकाला और कहा ये पढ़ कर सुनाओ मुझे-----!
बच्चे ने कूरान को देखा और मुझे देखा, फिर कूरान को देखा और मां बाप को देखा फ़िर मुझे देखा! मैंने सोचा इसे कूरान पढ़ना लेकिन उसने कहा कि उसको कूरान पढ़ना आता है। मैंने कहा बेटा ये देखो कूरान की इस आयत पर उंगली
يَا أَيُّهَا الَّذِينَ آَمَنُوا قُوا أَنْفُسَكُمْ وَأَهْلِيكُمْ
रखी तो वो फ़र फ़र कूरान पढ़ने लगा बिना देखे ही।---- मुझे बड़ा हैरत हुआ कि ये तो कूरान को देखे बिना ही पढ़ने लगा, मैंने उसके वालीदैन से पूछा ये माजरा क्या है!??
उन्होंने कहा दरअसल हमारे पास कूरान मौजूद नहीं है, किसी के घर से कूरान का एक टुकड़ा भी मिल जाए तो उसके तमाम खानदान को फांसी की सज़ा दे दी जाती है।
तो फिर इस बचचे को कुरान किसने सिखाया!? मैंने हैरान हो कर पूछा! " हमारे पास कूरान के कई हाफिज़ हैं, कोई दरज़ी है कोई दूकानदार, तो कोई किसान! हम उनके पास अपने बच्चों को भेज देते हैं मेहनत मजदूरी के बहाने!---- वह उनको अल्हम्दुलिल्लाह से लेकर वन्नास तक ज़बानी कूरान पढ़ाते हैं, एक वक्त ऐसा आता है कि वो हाफ़िज़ ए कूरान बन जाते हैं, किसी के पास कूरान का एक पेज भी नहीं इसलिए हमारी नई नस्ल को "नाज़रा" नहीं आता बल्कि इस वक्त हमारे गलियों में आपको जितने बच्चे दिखाई दे रहे हैं सबके सब हाफ़िज़ ए कूरान है। यही वजह है जब मेरे बच्चे को "नाज़रा" नहीं आया लेकिन जब आपने आयत सुनाई तो वह फ़र फ़र बोलने लगा, अगर आप उसे ना रोकते तो ये सारा कूरान ही पढ़ कर सुना देता।
मुसन्निफ़ कहते हैं कि जिस मुआशरे में कूरान को रखने पर पाबंदी लगा दी गई थी उस मास्को में हर बच्चे बूढ़े मर्द औरत के सीनों में कूरान हिफ्ज़ हो कर रह गया था, मैंने कहा लोगो! " तुमने कूरान पर पाबंदी लगा दी लेकिन सीनों में कूरान महफूज़ है उस पर पाबंदी ना लगा सकोगे। तब मुझे अल्लाह का इरशाद याद आया
إِنَّا نَحنُ نَزَّلْنَا الذِّكرَ وَإِنَّا لَهُ لَحَافِظُونَ ::
बेशक ये ज़िक़्र (कूरान) हमने नाज़िल फ़रमाया और बेशक हम ही उसकी हिफाज़त करने वाले है।
तो याद रखिए मेरे दोस्त!----- उम्मत पर जो हालात आ रहें हैं कभी कूरान पर आवाज़ उठ रही, तो कभी अल्लाह के दीन की मेहनत पर! उससे घबराना नहीं है ----- आप अभी देखिए तबलीग़ पर लेकिन "दाई" हर वक्त दाई है हर हालात में दावत देगा। ये अल्लाह का काम है और अल्लाह जैसे चाहे काम ले लेगा।