23/09/2024
प्रसाद में मिलावट।लेबनान के पेजर और जातिवाद
#विवाद
मंगलवार को हनुमान मंदिर में बूंदी चढ़ती है।
ये बूंदी प्राइवेट दुकानों से खरीदी जाती है।
बूंदीनिर्माण में बेसन,चीनी,तेल या घी का इस्तेमाल होता है।
क्या कभी किसी ने ये जानने की कोशिश की कि हनुमान जी को जो बूंदी प्रसाद की तरह चढ़ाई जा रही है।वो मिलावट रहित है।मिलावट सहित है। जहां ये बूंदी बनती है।वहां पर वो जगह औऱ उसे बनाने वाले कितने शुद्ध हैं। शिव जी को चढ़ने वाला दूध कितना मिलावट रहित है? काली,दुर्गा,ब्रह्मा-विष्णु आदि इत्यादि देवताओं को जो प्रसाद पानी चढ़ाया जाता है वो कितना मिलावट रहित है? चलिए छोड़िए प्रसाद की जो गंगाजल सबसे शुद्ध है। जिसमें शालिग्राम को डूबाते हैं।भगवान को नहलाते हैं।आचमन करते हैं वो कितना गैर मिलावटी है?
गंगा या फिर देश की किसी भी नदी में लाश नहलाई जाती हैं।बहाई जाती हैं।शहरों का मलमूत्र इकट्ठा होता है। उसके पानी में मछली का तेल,मुर्गे का मांस,सुअर की आंत का परीक्षण करवाया गया? उसमें तो आदमी का मांस मिल जाएगा।शिव की भष्म आरती मे जो भष्म है वह क्या है?
सनातन धर्म की अघोर परंपरा में मांस,मैथुन,मुद्रा,मंत्र,मदिरा नाम के पंच मकार हैं।नवरात्रि के अंतिम दिन पशुबलि का विधान है।जहां मांस ही प्रसाद है।हम जिस शऱीर को ईश्वर की देन मानते हैं वो भी मांस से निर्मित है।कई सनातन परंपराएं मानती हैं कि शरीर ईश्वर का मंदिर है।वो इसमें वास करते हैं।
ऐसे सनातन विश्वास वाले सनातनी लड्डू के घी की शुद्धता पर लड़ रहे हैं।कह रहे हैं कि मांस से प्रसाद की शुद्धता भंग हो गयी।मांस असुद्ध होता है ये विचार ही मिलावटी जान पड़ता है।क्योंकि मांस असुद्ध है इसका विधान एक जाति,आदत या वर्णविशेष के लिए होता है।शकाहारी,ब्राह्मण इस सूची में आते हैं। हांलाकि वेगन परंपरा वाले शाकाहार की लिस्ट में शामिल कई चीजों को गलत मानते हैं। वोतो गाय का दूध भी नहीं पीते।
दरअसल मंदिर के प्रसाद में मांस का विवाद।शुद्धता वादी आग्रह है।जो बहुत भेदकारी है। मंदिर का प्रसाद केवल गाय के घी से ही क्यों बनेगा? भैंस,बकरी,ऊंट आदि इत्यादि के दूध का घी क्यों नहीं? गाय शुद्ध है या फिर उसके दूध में ही सुद्धता होती है ऐसा कौन सी लैब साबित कर सकती है? वैदिक काल में जीवन गाय के इर्द-गिर्द घूमता था।गाय पालतू थी।इंसानों के झुंड में रहती थीं।ऋषि मुनि के आश्रम में रहती थीं।गाय दुहने की वजह से बेटी को दुहिता कहते थे। गाय की तलाश में यात्रा और युद्ध को गवेष्टि कहते थे।गाय ही जीवन था।और तो और गाय वस्तुओं की कीमत का मापदंड थीं। जब मुद्रा नहीं थी तो गाय के बदले चीजों की अदला-बदली होती थी।जिसे अर्थशास्त्र में विनिमय या बार्टर सिस्टम कहते हैं।फिर गाय कर्मकांड का जरिया बनी।मुंशी प्रेमचंद्र का उपन्यास गोदान इसे समझने की बड़ी पुस्तक है।
समाज के अब्रह्मण वर्ग मानते हैं कि गाय ब्राह्मणवादी व्यवस्था में शोषण का जरिया भी बनी।
लेकिन ये बात भी सच है कि ग्रामीण भारत की कृषि अर्थव्यवस्था में गाय और उनका वंश अभिन्न हिस्सा रहे हैं।गाय एक भावुक रिश्ता भी है।लेकिन ये भी सच है कि आज वो बात नहीं है।जानवरों के डॉक्टर बताते हैं कि गौवंश के पेट प्लास्टिक का गोडाउन हो चुके हैं। जिसके लिए कभी घर की पहली रोटी बनती थी आज वो गौवंश कूड़े के ढेर में अपना भोजन तलाश रहा है। शहरों और गांव में सबसे ज्यादा आवारा अगर कोई पशु समुदाय है तो वो गौवंश है। सबसे ज्यादा तस्करी गौवंश की होती है।और गौतस्करी रोकने के चक्कर में सबसे ज्यादा हिंसा भी होती है। देश के प्रधानमंत्री को कहना पड़ता है कि गौसेवक और गौरक्षक में फर्क करें।
तो मिलावट तो गौवंश के पूरे सिस्टम में हो गयी है।मंदिर के प्रसाद में मिलावट का दावा है।लेकिन उसी लैब का ये भी कहना है कि घी में मिलावट की गयी या हो गयी ये हम नहीं बता रहे हैं। क्योंकि गाय के खाने और दवाई में ऐसी कई चीजें होती हैं जो जांच में मछली का तेल,मुर्गे का मांस और सुअर की आंत बनकर सामने आ जाती हैं।
वैसे तो घी भी एनिमल फैट है। और जिन्हें मिलावट के नाम पर नीच बता कर धिक्कारा जा रहा है वो भी एनिमल फैट ही हैं। लेकिन शुद्धता के वर्णवादी विचार के पीड़ित हैं। तो समस्या प्रसाद में मिलावट की नहीं है। समस्या व्यवस्था पर काबिज श्रेष्ठ सवर्णवाद की है।
जैसे लेबनान में पेजर,वॉकीटॉकी,फोन को हथियार में तब्दील कर दिया गया। वैसे ही भारत में भगवान के प्रसाद को विरोधियों के खिलाफ हथियार में बदल दिया गया है। फर्क इतना है कि वहां फटने के लिए पेजर की भौतिक मौजूदगी जरूरी है। लेकिन भारत में कोई कहीं भी फटा पड़ रहा है।
वर्ना मिलावट का तो हाल ये है कि धऱती और आसमान के बीच,सूरज के उगने से डूबने तक, जो भी प्रोडक्शन हो रहा है।वस्तू या सेवा है। उसमें कहीं न कहीं कुछ न कुछ मिलावटी है।