01/10/2023
हम गरीब लोग हैं।बल्कि खानदानी गरीब हैं।डबल बल्कि यह भी अंडर स्टेटमेंट है।हम खानदानी खांटी गरीब लोग हैं जिसमें अमीरी या यहां तक कि मिडिल क्लासी होने का कोई दाग धब्बा नहीं है। महा मिलावट के युग में ,जहां धनिए में घोड़े की लीद,घी में चर्बी , दूध में उर्वरक यहां तक कि उर्वरक तक नकली और मिलावटी मिल रहा हो हमारे पुरखों की सदियों की इस थाती में कोई मिलावट नहीं है।शुद्ध गरीबी का आलम यह है कि अगर इस क्षेत्र में कोई हाल मार्क या आईएसओ 9000 टाइप का कोई प्रमाणन होता तो एजेंसियां हमें देखते ही गले में हमारे गले में चीखते हुए प्रमाण पर्वडाल देती कि देखो लोगों देखो शुद्ध गरीब इसे कहते हैं।हमारे परिवार की कहानियों में पहले हम अमीर थे या जागीरदार थे फिर अंग्रेजों ने हमें लूट लिया या जमीदारी चली गई टाइप के वाक्य नहीं आते।हमारी गरीबी के किसी का दोष नहीं यह हमारी आध्यात्मिक उपलब्धि है।हम हर मौसम हर युग हर ऋतु में गरीब लोग रहे हैं।हम हर एंगल ,चाल ,चलन और चरित्र से गरीब दिखते हैं।हमारी एक पारिवारिक परंपरा और संस्कृति है।हमारे पास अगर कुछ है तो गरीबी है।यही हमारा पीठ का पर्दा है ।हमने गरीबी को सांस्कृतिक विरासत की तरह पीढ़ी दर पीढ़ी संभाल के रखा है और वीरता पुरस्कार की तरह अपने सीने पर पहन रखा है और गर्व से मुनादी करते हुए घूम रहे हैं कि "क्या करें साहब!! हम तो गरीब लोग हैं।" जैसे ही इस बात को हम कहीं बोलते हैं या सीधे हमें अपनी सैकड़ों पीढ़ियों की अविछिन्न परंपरा में जोड़ देती है।
ऐसा भी नहीं है कि हमारे खानदान में ऐसे अभागे महत्वाकांक्षी और पुरषार्थी लोग नहीं थे जो अमीर और मिडिल क्लास जीवन के आकांक्षी थे,उन्होंने गरीबी से बाहर निकलने के लिए हाथ पांव मारे,लेकिन मेरे खानदान के बहुसंख्यक गरीबवादियों ने उन्हें लुहलुहाया,उनका मजाक बनाया ,उनकी असफलता की भविष्यवाणियां की और उनके बर्बाद होने की चेतावनी दी। मेरे खानदान के एक भाई साहब हैं जो परिवार में किए गए हर पुरुषार्थ की असफलता कालक्रमानुसार डायरेक्टरी रखते हैं अब जैसे ही पारिवारिक परंपरा से अलग कोई रंगरूट कुछ करना चाहता है उसे खानदानी असफलताओं और बरबादियों की ऐसी सचित्र कहानी सुनाते हैं कि आगे बढ़ने का हजातमंद आदमी सोचता है ,हाय ये मैं किस आत्मघाती रास्ते पर चल पड़ा था। आप उक्त भाई भाई साहब को धंधा रोजगार सुझाओ वे असफल लोगों की सूची प्रस्तुत कर देंगे। वे सफल लोगों की तरफ देखते ही नहीं,असफल लोगों की तरफ ही देखते हैं क्योंकि उनके लिए बल्कि बृहत्तर पारिवारिक आग्रहों में पुरषार्थ रोग है जिससे आदमी समृद्ध हो सकने की आशंका छुपी हुई है। हम गरीबी को लेकर पुरानी शर्ट को पहनने जैसे सहज हैं जो हमारे शरीर के बेढबपेन के हिसाब से ढल गई हो।
देश की आजादी के साथ ही अमीर होने या कम से कम मिडिलची होने के खुलते तमाम अवेन्यू के बीच भी हम अपने रास्ते से भटके नहीं और एकाध पीढ़ी के कतिपय बिचलनों को छोड़ दिया जाय तो हमने अपनी स्थिति को एंटैक्ट रखी है।हमारे परिवार की गरीबी ऐसे ही नहीं है बल्कि उसका दार्शनिक आधार है जिसमें सबसे प्रमुख सिद्धांत पैसा पाप है और खुद का कमाया पैसा तो कत्तई जहर है।पैसे से तमाम दुर्गुण आते हैं ,रिश्ते नाते सब नष्ट भ्रष्ट हो जाते हैं समृद्धि में नैतिक मूल्यों का ह्रास होता है,समृद्धि में डर समाया हुआ है आदमी कभी भी विपन्न हो सकता है।जबकि गरीबी में सिर्फ गरीबी की एक ही चिंता शामिल है समृद्धि में सौ चिंताएं शामिल हैं।लिहाजा हम गरीबी की थिगली पर सिर टिकाए और प्रमाद की चादर ताने निश्चिंत होकर सो रहे हैं।सरकार रोज रेपो रेट बढ़ाए , टैक्स बढ़ाए हमारी बला से।
हम बिगड़े जमीदार सुबह उठते थका थका महसूस करते हैं, कृष्काय बच्चों को बढ़ता देख कर चौकते हैं कि बताइए ,इस गरीबी में भी बढ़े जा रहे हैं, आलस्य के बरामदे में अरमतलबी की कुर्सी खींच कर बैठ गए हैं ,हाथ की रेखाएं देख रहे हैं ,जांघ पर तबला बजा रहे हैं , मैल की बत्ती बना रहे हैं,गिर रहे घर को देख रहे हैं,दरवाजे पर विश्व के आठवें आश्चर्य की तरह बिना भोजन पानी के जिंदा और बुलंद आवाज में रंभाते पशुओं को देख रहे हैं,अकारण सिर पर हाथ फेर रहे हैं ,भजन गा रहे हैं,काम बूट,धंधे रोजगार पर जा रहे किसी आदमी को चीखकर रोकते हैं ,उसे आगाह करते हैं कि कहां मरने जा रहे हो,और ताकीद करते हैं कि तुम्हें सुख नहीं बदा है। मरो खींझ खींझ कर !! वे इस बात को इस आत्मविश्वास से कहते हैं जैसे खुद क्षीर सागर में लेटे हों।
हम दिन भर खाली रहते हुए खुद को व्यस्त रखते हैं।कहीं भी जाने को तैयार रहते हैं परमार्थ के लिए तो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक जा सकते हैं बशर्ते बाइक और गुटके का इंतजाम हो जाय।हम बेदाग लोग हैं हमारे जीवन में की सारी समस्याएं दूसरे खासतौर से वे अभागे लाए हैं जो हमारे जीवन को सहारा देने की कोशिश कर रहे हैं। हम लोग काम वहीं करते हैं जिसमें कोई फायदा न हो।फायदे के लिए हम काम नहीं करते।स्वाभिमानी लोग हैं जिस पर निर्भर हों उसकी भी परवाह नहीं करते।दूसरे क्या करें इस बारे में हमारे पास मैनुअल है ,हम क्या करें इस बारे में हमारा खानदान मौन रहता है।
खानदान में कई लोग गरीबी से घबरा कर कहीं और पलायन कर गए और जहां गए वहां भी गरीबी को मेंटेन किए हुए गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं और पीछे रह गए दार्शनिक लोग उनका मजाक बना रहे हैं।
कुलमिलाकर हम ऐसे परमार्थी लोग हैं जिनके चूतड कुत्ते नोच रहे हैं और जो दूसरों को शगुन बताने से बाज नहीं आ रहे हैं ....
#रीठेल