श्रीजी दर्शन

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♦सफला एकादशी को आज नित्यलीलास्थ गोस्वामी तिलकायत श्री गोविंदजी का उत्सव♦🔹️आज पौष कृष्ण एकादशी गुरुवार, 26 दिसंबर 2024 है...
26/12/2024

♦सफला एकादशी को आज नित्यलीलास्थ गोस्वामी तिलकायत श्री गोविंदजी का उत्सव♦

🔹️आज पौष कृष्ण एकादशी गुरुवार, 26 दिसंबर 2024 है। आज की एकादशी को सफला एकादशी भी कहा जाता है।
🔹️श्रीनाथजी में आज नित्यलीलास्थ गोस्वामी तिलकायत श्री गोविंदजी का उत्सव है।
🔹️उत्सव होने के कारण श्रीजी मंदिर के सभी मुख्य द्वारों की देहरी (देहलीज) को पूजन कर हल्दी से लीपी जाती हैं एवं आशापाल की सूत की डोरी की वंदनमाल बाँधी जाती हैं.
🔹️आज दो समय की आरती थाली में करी जाती हैं.
🔹️गद्दल, रजाई सफ़ेद खीनखाब के आते हैं.
🔹️निजमंदिर के सभी साज (गादी, तकिया आदि) पर आज पुनः सफेदी चढ़ जाती है.
🔹️श्री गोविंदजी महाराज के यशस्वरुप आज श्वेत खीनखाब के वस्त्र एवं अनुराग के भाव से लाल ठाड़े वस्त्र धराये जाते हैं.
🔹️श्रीजी को गोपीवल्लभ (ग्वाल) भोग में विशेष रूप से केशरयुक्त जलेबी के टूक व दूधघर में सिद्ध की गयी केसर युक्त बासोंदी की हांडी अरोगायी जाती है.
🔹️राजभोग में अनसखड़ी में दाख (किशमिश) का रायता अरोगाया जाता है.
🔹️सखड़ी में खरमंडा अरोगाये जाते हैं.

♦️आज के राजभोग दर्शन♦️

🔹️साज –
▪️श्रीजी में आज श्वेत साटन के वस्त्र के ऊपर फूल-पत्तियों के लाल, हरे, पीले रंग के कलाबत्तू के काम वाली पिछवाई धरायी जाती है जो कि फिरोजी रंग के वस्त्र के ऊपर पुष्प-लता के भरतकाम से सुसज्जित होती है.
▪️गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है.

🔹️वस्त्र –🔹️

▪️आज श्रीजी को रुपहली ज़री का बड़े बूटा का किनखाब का सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं धराये जाते हैं.
▪️पटका लाल रंग का धराया जाता हैं.
▪️मोजाजी हरे केरीभात के धराये जाते हैं.
▪️ठाड़े वस्त्र लाल रंग के धराये जाते हैं.

🔹️श्रृंगार –🔹️

▪️श्रीजी को आज वनमाला का (चरणारविन्द तक) भारी श्रृंगार धराया जाता है.
▪️पन्ना के सर्व आभरण धराये जाते हैं.
▪️ठाडी लड़ मोती धरायी जाती है.
▪️श्रीमस्तक पर पन्ना की जड़ाऊ कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं.
▪️श्रीकर्ण में मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं.
▪️बायीं ओर उत्सव की मीना की चोटी धरायी जाती है.
▪️श्रीकंठ में माणक का दुलड़ा हार (जो आपश्री ने श्रीजी को भेंट किया था).
▪️कली, कस्तूरी आदि सभी माला धरायी जाती है.
▪️गुलाबी एवं श्वेत पुष्पों की दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं.
▪️श्रीहस्त में जड़ाव स्वर्ण के वेणुजी एवं दो वेत्रजी (पन्ना व सोने के) धराये जाते हैं.
▪️पट उत्सव का व गोटी श्याम मीना की आती है.
▪️आरसी शृंगार में पिले खंड की एवं राजभोग में सोने की दिखाई जाती है।

♦️आज की राग सेवा- आज के कीर्तन♦️

▪️मंगला : बल बल चरित्र श्री गोकुलराय
▪️राजभोग : जे श्री वल्लभ राजकुमार
▪️आरती : तेरी लाल लागो मोहे बालय
▪️शयन : मांगे री मोपे चंद खिलौना।

♦जय श्री कृष्ण। राधे राधे♦

🕉🌹सफला एकादशी - पौष कृष्ण एकादशी🌹🕉♦️नित्यलीलास्थ गोस्वामी तिलकायत श्री गोविंदजी का उत्सव♦️🔹उत्सव नायक विशेष🔹सफला एकादशी ...
25/12/2024

🕉🌹सफला एकादशी - पौष कृष्ण एकादशी🌹🕉

♦️नित्यलीलास्थ गोस्वामी तिलकायत श्री गोविंदजी का उत्सव♦️

🔹उत्सव नायक विशेष🔹

सफला एकादशी को नित्यलीलास्थ गोस्वामी तिलकायत श्री गोविन्दजी महाराज का उत्सव होता है. श्री गोविंद जी प्रथम का जन्म विक्रम संवत 1769 में गोस्वामी श्री विट्ठलेशजी के द्वितीय पुत्र के रूप में हुआ.

आपके बड़े भ्राता श्री गोवर्धनेशजी के यहाँ कोई पुत्र ना होने के कारण उनके पश्चात आप तिलकायत पद पर आसीन हुए. वर्तमान की भांति तब भी एक पीढ़ी में दो तिलकायत हुए.

पुष्टिमार्ग में आप बाल-भाव भावित तिलकायत हुए हैं. एक बार बाल्यकाल में आप श्रीजी के शैया मंदिर में रह गये तब श्रीजी ने आपको अपने हाथों से महाप्रसाद खिलाया था.
यह प्रकरण कुछ इस प्रकार था कि
श्री गोविंदजी अति कृपालु थे। वे हमेशा श्रीनाथजी के साथ 'बाला क्रीड़ा' भाव में रहते।

एक बार, श्री गोविंदजी के साथ एक बहुत ही अजीब घटना घटी। जब आपश्री छोटे थे, तब राजभोग धरने के समय आप अंदर ही बन्द हो गये थे, क्योंकि शय्या मंदिर के शांत वातावरण में आपश्री को निद्रा आ गयी थी।

ऊपर बैठक में बड़े भ्राता श्री गोवर्धनेशजी अति चिंतन थे । आपश्री ने खवास, डंडावाले, सिपाही इत्यादि को श्री गोविंदजी की खोज के लिए भेजा, लेकिन सभी व्यर्थ। श्री गोविंदजी कहीं नहीं मिले।

जब श्री गोवर्धनेशजी निराश हो चुके थे तब श्रीनाथजी उनके सामने प्रकट हुए और उनसे कहा कि वे चिंता न करें क्योंकि श्री गोविंदजी मेरे शय्या मंदिर में हैं। और वहाँ शय्या मंदिर में श्री..जी ने स्वयं के राजभोग में से बालक गोविंदजी को पापड़ का महाप्रसाद दिया। माला बोलते ही श्री गोवर्धनेशजी शय्या मंदिर में पधारे, श्री गोविंदजी को हृदय से लगाया।

श्री गोविंदजी का हृदय आनंद से भर गया। उन्होंने श्रीनाथजी को साष्टांग प्रणाम किया और मंदिर से बाहर पधारे।

आपने प्रभु सुखार्थ कई मनोरथ किये. आपके पुत्र श्री गिरधारीजी ने श्रीजी को घसियार से नाथद्वारा पधराकर नवीन नाथद्वारा का निर्माण किया.

♦जय श्री कृष्ण। राधे राधे।♦️

★☆★ मूलपुरुष (श्रीमहाप्रभुजी और श्रीगुसाइंजी के उत्सव के परचारगी श्रृंगार में मंगला समय गाया जाता है) वो इस प्रकार है -★...
25/12/2024

★☆★ मूलपुरुष (श्रीमहाप्रभुजी और श्रीगुसाइंजी के उत्सव के परचारगी श्रृंगार में मंगला समय गाया जाता है) वो इस प्रकार है -★☆★

मूल पुरुष नारायण यज्ञ। श्रुति अवतार भये सर्वज्ञ॥
शाखा तैत्तरीय गोत्र भारद्वाज। तैलंग कुल उदित द्विजराज॥
द्विजराज तें हरि आय प्रगटे सोम यज्ञ कियो जबें।
कुंड तें हरि कहि जु बानी जन्म कुल तुम्हरे अबें॥
चकित तत्छन भये सब जन ऐसी अब लों न भई कबें।
सुनत ही मन हरख कीनो धन्य धन्य कह्यो सबें॥१॥
तिनके पुत्र भये गंगाधर। तिनके गनपति सुत वल्लभवर॥
श्री लक्षमन भट अनुभव टेव। सुद्ध सत्व ज्यों श्री वसुदेव॥
सत्व गुन विद्या पयोनिधि विसद कीरति प्रगटई।
गाम कांकरवार में तही जाति सब हरखित भई॥
परव पर सह कुटुम्ब लेके चले प्राग को साथ लै।
स्नानदान दिवाय द्विज कों चले कासी पांत लै॥२॥
कछुक दिन रहिकें चले सब दच्छन। आनंदित तनु सगुन सुलच्छन॥
चम्पारन्य माहि जब आये। एलम्मगारू गर्भ स्त्रवित जताये॥
स्त्राव जानि चले तहां ते नगर चोडा में बसे।
जगत में आनंद फैल्यो दसो दिसा मनों हँसे॥
चैन है सुनि चले कासी फेर वहि बन आवहिं।
अग्नि चहुँधा मधि बालक देख सन्मुख धावहीं॥३॥
मारग दियो जानि जिय माता। लिये उछंग मोहि दियो है विधाता॥
तात सुनत दौरि कंठ लगाये। तिहिं छिन मंगल होत बधाये॥
मंगल बधायो होत तिहुंपुर देव दुंदुभी बाजहीं।
जोतसी कों लग्न पूछत प्रथम समयो साध ही॥
धन्य संवत पंद्रहा पेंतीस माधव मास है।
कॄष्णा एकादशी श्री वल्लभ प्रगटा वदन विलास है॥४॥
श्री वल्लभ को ले आये कासी। सुंदर रूप नयन सुख रासी॥
सात बरस उपवीत धराये। तब तें विद्या पढन पठाये॥
पढें चारों वेद अरु खट शास्त्र महिना चार में।
तात को अचरज भयो यह कौन रूप विचार में॥
नींद आई कह्यो प्रभु संदेह क्यों तुम करत हो।
प्रथम बानी भई है सो प्रगट जानो अब भयो॥५॥
जाग परि कह्यो पत्नी आगे। ये हैं पूरन ब्रह्म अनुरागे॥
श्री मुख बचन कहे श्री वल्लभ। माया मत खंडन भये सुलभ॥
सुलभ तें दच्छिन पधारे ग्यारह बरस को बपु धरे।
देख मामा हरख के आदर कियो आवो घरें॥
विद्यानगर कृष्णदेव राजा बहुत मतही जहाँ मिले।
जीत के कनकाभिषेक सों पढे आवत यहाँ पहले॥६॥
रामानुज अरु माध्वाचारज। विष्णुस्वामि निमादित्य हरि भज॥
संकर में अनुसरत और मत। युक्ति बल तें आज सबल अति॥
सबल सुन आपहिं पधारे द्वार पें पहुँचे जबे।
भृत्य दौरि प्रताप बरन्यो राय आवो इहां सबे॥
राय आय प्रनाम कीनो सभा में जु पधारिये।
सुनहुं बिनती कृपासागर दुष्ट मतहि विडारिये॥७॥
गजगति चाल चले श्री वल्लभ। इनकी कृपा भये सब सुलभ॥
रवि के उदय किरन ज्यों बाढी। तैसी सभा पांत उठ ठाडी॥
ठाडे सब स्तुति करें जब, कियो मायामत खंडन।
सब्द जै जै होत सब मुख, भक्ति पथ भुव मंडन॥
स्तुति करें द्विज हाथ जोरें राय मस्तक नाव ही।
परम मंगल होत है कनकाभिषेक करावही॥८॥
पाछे जलसों न्हाय बिराजे। बिनती करी राये मन साजे।
द्रव्य सबे अंगीकृत करिये। प्रभु बोले यह नाहिंन ग्रहिये॥
ग्रहिए नाहिन स्नान जलवत बाँट सबकों दीजिये।
बांट दीनो करी बिनती मोहि सरन जू लीजिये॥
कृपा करिके सरन लीनो थार भरी मोहोरे धर्यो।
सप्त लेके कह्यो दैवी द्रव्य अंगीकृत कर्यो॥९॥
तहाँ ते पंढरपुर जु सिधारे। श्री विट्ठलनाथ मिलन को जु पधारे॥
भीमरथी के पार मिले जब। दोऊ तन में आनंद बढ्यो तब॥
बढ्यो आनंद करी विनती आप कों यह श्रम भयो।
कही श्री विट्ठलनाथ जी ने मित्रता पथ प्रगटियो॥
फेरि श्री गोकुल पधारे निरख यमुना हरख हीं।
संग दमालिक हते तिन पै कृपा रस बरखहिं॥१०॥
एक समै चिन्ता चित्त आई। दैवी किहिं बिधि जानी जाई॥
आसुरी सों सब मिलित सदाई। भिन्न होय सो कौन उपाई॥
भिन्न को जब चित्त धरे तब प्रभु पधारे तिहिं समे।
मधुर रूप अनंग मोहित कहत सुध कीने हमें॥
करो अब तें ब्रह्म को सबंध दैवी सृष्टि सों।
पांच दोष न रहे ताके निवेदन करो वृष्टि सों॥११॥
वचन सुनी हरखे श्री वल्लभ। यह आज्ञा ते परम अति सुलभ॥
कंठ पवित्रा ले पहराये। मिश्री भोग धरी मन भाये॥
भयो भायो चित्त कौ तब पुष्टिपंथ को अनुसरे।
सरन जे आवे निरंतर काल भय तें ना डरे॥
प्रगट सब लीला दिखावत नंदनंदन जे करी।
अवनि पर पद पद्म राखी परिक्रमा मिष उर धरी॥१२॥
फेर पंढरपुर जब आये। श्री विट्ठलनाथ कही मन भाये।
करि विवाह बहु रूप दिखावो। मेरो नाम सुवन कों जु धरावो॥
धरो चित्त में बात यह कासी विवाह जु होयगो।
मैं कह्यो द्विज आय बिनती करे चरन समोयगो॥
आय वहाँ ते विवाह कीनो अधिक मंगल तब भयो।
नाम धर्यो श्री महालक्ष्मी देखि जोरी दुख गयो॥१३॥
परिक्रमा तीजी चित आए। निकसी चले श्री वल्लभ राई॥
झारखंड में प्रभु ने जताई। अबके मोहि मिलो मन भाई॥
मिलैंगे हरिदास पें जहाँ तीन दमन कहावहीं।
इंद्र नाग जु देव दमन सो मेरो नाम जतावहीं॥
फेरि के जब ब्रज पधारी पाँच सेवक संग हैं।
सदु है आन्योर में जहाँ द्वार पे ठाडे रहैं॥१४॥
सदु कहे स्वामी कछु खैहैं। मेघन कही सेवक को ले हैं॥
इतने प्रभु गिरि ऊपर बोले। लाइ नरो दूध रहे अनबोले॥
बोली नरो यह पाहुने आये तिनहीं को बैठारिये।
प्रभु कहत मोहि बेर लागत भली चित्त बिचारिये॥
लै गई पय प्याय आई देख श्री वल्लभ कह्यो।
बच्यो होय कछु हमें दीजे बोल पहिलोहि गह्यो॥१५॥
देखि नरो बोली हौं वारी ॥ नाम दीजिये गर्व प्रहारी॥
नाम दीनो पूछी वे कहाँ हैं। कहि पर्वत पर जाओ तहाँ हैं॥
तहाँ देखे प्रानपति तब हुलसि दोऊ तन फूल हीं।
उहि समै सुख कहि न आवे पंगु गति मति भूलहीं॥
हँसि कह्यो सह कुटुम्ब आवो निकट रहि सेवा करो।
मानि वचन प्रमान कीनो सासरे दिस पग धर्यो॥१६॥
कछु दिन रहि संग लै आये। बसे अडेल में निज हरखाये॥
संवत पंद्रहसैं सरसठ आयो। आसौ वदी द्वादसी सुभ गायो॥
गायो श्री गोपी नाथ जी जब जन्म लीनो आय के।
जानि बलको रूप हरखित देत दान बधाय के॥
फेरि के चरणाट आये कछुक दिन रहे जानि के।
धन्य संवत पंद्रहा बहोतरा सुभ मानि के॥१७॥
पोष कृष्ण नौमी सुभ आई। घर घर मंगल होत बधाई॥
श्री विट्ठलनाथ जनम भयो सुनि के। कहत फिरत आनंद गुन गनि के।
आनंद बढ्यो चहुँ दिसा छबि देखि श्री वल्लभ हँसे।
बेउ कछु मुसिकाय चित में दोऊ हँसनि मेरे मन बसे॥
तिलक मृगमद छिप्यो हरखित कहाँ लो गुन गाइये।
कृपा तें उछलित निज रस छिपत नाहीं छिपाइये॥१८॥
श्री गोकुल में वास सुहायो। श्री रुक्मिनी पद्मवती पति पायो॥
श्री गिरिवरधरन छबीलो। श्री नवनीत प्रिया अबरीलो॥
प्रिय श्री मथुरेश श्री विट्ठलेश श्री द्वारकेश जू।
श्री गोवर्धनधर श्री गोकुल चन्द्रमा श्री मधुरेश जू॥
श्री मदनमोहन अष्ट इहि विधि रमन श्री विट्ठलनाथ के।
तात को चित्त जानि सेवा विस्तरी सब साथ के॥१९॥
पंद्रह सें सत्तानुं कार्तिक। विमल द्वादशी मंगल नित ढिंद॥
प्रथम पुत्र प्रगटे श्री गिरिधर। षटगुण धर्मी धर्म धुरंधर॥
धुरंधर ऐश्वर्य श्री गोविन्द पंचदस नन्यानवे।
उर्ज सामल अष्टमी सुभ गुरु सुदिन प्रगटे जबे॥
ऋतु वियत सिंगार आस्विन असित तेरह भ्राजहीं।
श्री बालकृष्ण जी महा पराक्रमी, बसु ख सोले राजहीं॥२०॥
कवि सह सुदि सातें गोकुल पति। यस स्वरूप माला स्थापित रति॥
सोलह सैं ग्यारह कार्तिक सित। अर्क बुध रघुनाथ श्री सहित॥
हेतु निज अभिधान प्रगटे तात आज्ञा मानि के।
तिथि कला बुध मधु छठ बिमल ज्ञान बखानि के॥
श्री यदुनाथ प्रगट रह्यो विरहें श्री घनश्याम स्वरूप के।
सह कृष्ण तेरस रविजरिक्ष सत कला श्री विट्ठल भूप के॥२१॥
भामिनी रानी कमला बखानी। पारवती जानकी महारानी॥
कृष्णावती मिल सातों कहाये। यह अलौकिक रूप महाये॥
महाअलौकिक अग्निकुल सब, अलौकिक अष्टछाप हैं।
अलौकिक सब भक्त जन जे सरन लीने आप हैं॥
यथा मति कछु बरनि आई जानियो यह दास है।
‘श्री द्वारकेश’ निरोध माँगे यही फल की आस है॥२२॥

★☆★जय श्रीकृष्ण, राधे राधे। आपका दिन शुभ हो।★☆★

★☆★श्री गुसांईजी के उत्सव का परचारगी श्रृंगार★☆★◆जय श्रीकृष्ण, राधे राधे ◆◆श्री वृन्दावन विहारी लाल की जय ◆◆श्री गिरिराज...
25/12/2024

★☆★श्री गुसांईजी के उत्सव का परचारगी श्रृंगार★☆★
◆जय श्रीकृष्ण, राधे राधे ◆
◆श्री वृन्दावन विहारी लाल की जय ◆
◆श्री गिरिराज धरण की जय◆
◆श्री वल्लभाधीश की जय◆
◆श्री यमुने महारानी की जय◆
◆गुसाईं जी परम दयाल की जय◆

आज पौष कृष्ण दशमी, बुधवार, 25 दिसम्बर, 2024 है। आज श्री गुसांईजी के उत्सव का परचारगी श्रृंगार धराया जाता है।
◆ आज सभी साज, वस्त्र एवं श्रृंगार पिछली कल की भांति ही होते हैं। इसे परचारगी श्रृंगार कहते हैं।
◆ श्रीनाथजी में लगभग सभी बड़े उत्सवों के एक दिन बाद उस उत्सव का परचारगी श्रृंगार होता है।
◆ परचारगी श्रृंगार के श्रृंगारी श्रीजी के परचारक महाराज (चिरंजीवी श्री विशाल बावा) होते हैं। यदि वो उपस्थित हों तो वही श्रृंगारी होते हैं।
◆ आज राजभोग में सखड़ी में विशेष रूप से सूरण प्रकार अरोगाये जाते हैं।
◆ आज दो समय की आरती थाली में की जाती हैं।

★☆★श्रीनाथजी का आज का श्रृंगार-★☆★

◆ आज की साज सेवा के तहत श्रीनाथजी में आज लाल रंग की मखमल की, सुनहरी ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है। यही पिछवाई जन्माष्टमी के दिन भी आती है। आज भी सभी साज जडाऊ आते हैं, गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट नहीं आती है एवं प्रभु के स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है।
◆ पान घर की सेवा में बंटाजी में ताम्बुल बीड़ा पधराये जाते है और प्रभु के स्वरूप के सम्मुख में धरती पर अंगीठी व त्रस्टी जी धरे जाते हैं।
◆ आज की वस्त्र सेवा प्रभु श्री वल्लभाधीश जी को सुन्दर केसरी साटन के वस्त्र, बिना किनारी का अडतू का सूथन, चाकदार वागा, चोली एवं मोजाजी धराये जाते हैं।
◆ आज पटका केसरी किनारी के फूल का लाल एवं सफेद रंग के धराया जाता हैं।
◆ आज ठाड़े वस्त्र मेघश्याम रंग के धराए जाते हैं।
◆ आभरण श्रृंगार सेवा प्रभु गोवर्धन नाथ जी को आज वनमाला का अर्थात चरणारविन्द तक का दो जोड़ी का भारी श्रृंगार धराया जाता है।
◆ आज सर्व आभरण मिलवा अर्थात हीरा, मोती, माणक, पन्ना तथा जड़ाव स्वर्ण के धराए जाते हैं।
◆ श्री ठाकुर जी के श्रीमस्तक पर आज जड़ाव हीरा एवं पन्ना जड़ित स्वर्ण की केसरी कुल्हे के ऊपर सिरपैंच, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं।
◆ प्रभु श्रीजी के श्रीकर्ण में आज मकराकृति कुंडल धराए जाते हैं।
◆ आज बायीं ओर हीरा की चोटी (शिखा) धरायी जाती है।
◆ आज पीठिका के ऊपर प्राचीन जड़ाव स्वर्ण का चौखटा धराया जाता है।
◆ श्रीजी प्रभु के श्री कंठ में आज त्रवल, टोडर दोनों धराये जाते हैं। कस्तूरी, कली आदि सब माला धरायी जाती हैं तथा श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती है।
◆ ठाकुर जी के श्रीहस्त में आज हीरा के वेणुजी एवं दो वेत्रजी धराए जाते हैं।
◆ खेल के साज में आज पट उत्सव का और गोटी जडाऊ आती है।
◆ आज श्रृंगार में आरसी चार झाड़ की एवं राजभोग में सोने की डांडी की आती है।
◆ श्रीनाथजी की सेवा का अन्य सभी क्रम नित्यानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है। नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग अरोगाया जाता है।

★☆★आज की राग सेवा - आज के कीर्तन★☆★
◆ मंगला – मूल पुरुष।
◆ राजभोग –
नंद बधाई दीजे ग्वालन l
तुम्हारे श्याम मनोहर आये गोकुल के प्रति पालन ll 1 ll
युवतिन बहु विधि भूषन दीजे विप्रन को गौदान l
गोकुल मंगल महा महोच्छव कमल नैन घनश्याम ll 2 ll
नाचत देव विमल गंधर्व मुनि गावत गीत रसाल l
‘परमानंद’ प्रभु तुम चिरजीयो नंदगोपके लाल ll 3 ll
◆ आरती- श्री लक्ष्मण वर ब्रह्मधाम ।
◆ शयन – यह धन धर्म ही ते पायो।

★☆★ मूलपुरुष (श्रीमहाप्रभुजी और श्रीगुसाइंजी के उत्सव के प्रति श्रुंगार में मंगला समय गाया जाता है) वो इस प्रकार है -★☆★
मूल पुरुष नारायण यज्ञ। श्रुति अवतार भये सर्वज्ञ॥
शाखा तैत्तरीय गोत्र भारद्वाज। तैलंग कुल उदित द्विजराज॥
द्विजराज तें हरि आय प्रगटे सोम यज्ञ कियो जबें।
कुंड तें हरि कहि जु बानी जन्म कुल तुम्हरे अबें॥
चकित तत्छन भये सब जन ऐसी अब लों न भई कबें।
सुनत ही मन हरख कीनो धन्य धन्य कह्यो सबें॥१॥
तिनके पुत्र भये गंगाधर। तिनके गनपति सुत वल्लभवर॥
श्री लक्षमन भट अनुभव टेव। सुद्ध सत्व ज्यों श्री वसुदेव॥
सत्व गुन विद्या पयोनिधि विसद कीरति प्रगटई।
गाम कांकरवार में तही जाति सब हरखित भई॥
परव पर सह कुटुम्ब लेके चले प्राग को साथ लै।
स्नानदान दिवाय द्विज कों चले कासी पांत लै॥२॥
कछुक दिन रहिकें चले सब दच्छन। आनंदित तनु सगुन सुलच्छन॥
चम्पारन्य माहि जब आये। एलम्मगारू गर्भ स्त्रवित जताये॥
स्त्राव जानि चले तहां ते नगर चोडा में बसे।
जगत में आनंद फैल्यो दसो दिसा मनों हँसे॥
चैन है सुनि चले कासी फेर वहि बन आवहिं।
अग्नि चहुँधा मधि बालक देख सन्मुख धावहीं॥३॥
मारग दियो जानि जिय माता। लिये उछंग मोहि दियो है विधाता॥
तात सुनत दौरि कंठ लगाये। तिहिं छिन मंगल होत बधाये॥
मंगल बधायो होत तिहुंपुर देव दुंदुभी बाजहीं।
जोतसी कों लग्न पूछत प्रथम समयो साध ही॥
धन्य संवत पंद्रहा पेंतीस माधव मास है।
कॄष्णा एकादशी श्री वल्लभ प्रगटा वदन विलास है॥४॥
श्री वल्लभ को ले आये कासी। सुंदर रूप नयन सुख रासी॥
सात बरस उपवीत धराये। तब तें विद्या पढन पठाये॥
पढें चारों वेद अरु खट शास्त्र महिना चार में।
तात को अचरज भयो यह कौन रूप विचार में॥
नींद आई कह्यो प्रभु संदेह क्यों तुम करत हो।
प्रथम बानी भई है सो प्रगट जानो अब भयो॥५॥
जाग परि कह्यो पत्नी आगे। ये हैं पूरन ब्रह्म अनुरागे॥
श्री मुख बचन कहे श्री वल्लभ। माया मत खंडन भये सुलभ॥
सुलभ तें दच्छिन पधारे ग्यारह बरस को बपु धरे।
देख मामा हरख के आदर कियो आवो घरें॥
विद्यानगर कृष्णदेव राजा बहुत मतही जहाँ मिले।
जीत के कनकाभिषेक सों पढे आवत यहाँ पहले॥६॥
रामानुज अरु माध्वाचारज। विष्णुस्वामि निमादित्य हरि भज॥
संकर में अनुसरत और मत। युक्ति बल तें आज सबल अति॥
सबल सुन आपहिं पधारे द्वार पें पहुँचे जबे।
भृत्य दौरि प्रताप बरन्यो राय आवो इहां सबे॥
राय आय प्रनाम कीनो सभा में जु पधारिये।
सुनहुं बिनती कृपासागर दुष्ट मतहि विडारिये॥७॥
गजगति चाल चले श्री वल्लभ। इनकी कृपा भये सब सुलभ॥
रवि के उदय किरन ज्यों बाढी। तैसी सभा पांत उठ ठाडी॥
ठाडे सब स्तुति करें जब, कियो मायामत खंडन।
सब्द जै जै होत सब मुख, भक्ति पथ भुव मंडन॥
स्तुति करें द्विज हाथ जोरें राय मस्तक नाव ही।
परम मंगल होत है कनकाभिषेक करावही॥८॥
पाछे जलसों न्हाय बिराजे। बिनती करी राये मन साजे।
द्रव्य सबे अंगीकृत करिये। प्रभु बोले यह नाहिंन ग्रहिये॥
ग्रहिए नाहिन स्नान जलवत बाँट सबकों दीजिये।
बांट दीनो करी बिनती मोहि सरन जू लीजिये॥
कृपा करिके सरन लीनो थार भरी मोहोरे धर्यो।
सप्त लेके कह्यो दैवी द्रव्य अंगीकृत कर्यो॥९॥
तहाँ ते पंढरपुर जु सिधारे। श्री विट्ठलनाथ मिलन को जु पधारे॥
भीमरथी के पार मिले जब। दोऊ तन में आनंद बढ्यो तब॥
बढ्यो आनंद करी विनती आप कों यह श्रम भयो।
कही श्री विट्ठलनाथ जी ने मित्रता पथ प्रगटियो॥
फेरि श्री गोकुल पधारे निरख यमुना हरख हीं।
संग दमालिक हते तिन पै कृपा रस बरखहिं॥१०॥
एक समै चिन्ता चित्त आई। दैवी किहिं बिधि जानी जाई॥
आसुरी सों सब मिलित सदाई। भिन्न होय सो कौन उपाई॥
भिन्न को जब चित्त धरे तब प्रभु पधारे तिहिं समे।
मधुर रूप अनंग मोहित कहत सुध कीने हमें॥
करो अब तें ब्रह्म को सबंध दैवी सृष्टि सों।
पांच दोष न रहे ताके निवेदन करो वृष्टि सों॥११॥
वचन सुनी हरखे श्री वल्लभ। यह आज्ञा ते परम अति सुलभ॥
कंठ पवित्रा ले पहराये। मिश्री भोग धरी मन भाये॥
भयो भायो चित्त कौ तब पुष्टिपंथ को अनुसरे।
सरन जे आवे निरंतर काल भय तें ना डरे॥
प्रगट सब लीला दिखावत नंदनंदन जे करी।
अवनि पर पद पद्म राखी परिक्रमा मिष उर धरी॥१२॥
फेर पंढरपुर जब आये। श्री विट्ठलनाथ कही मन भाये।
करि विवाह बहु रूप दिखावो। मेरो नाम सुवन कों जु धरावो॥
धरो चित्त में बात यह कासी विवाह जु होयगो।
मैं कह्यो द्विज आय बिनती करे चरन समोयगो॥
आय वहाँ ते विवाह कीनो अधिक मंगल तब भयो।
नाम धर्यो श्री महालक्ष्मी देखि जोरी दुख गयो॥१३॥
परिक्रमा तीजी चित आए। निकसी चले श्री वल्लभ राई॥
झारखंड में प्रभु ने जताई। अबके मोहि मिलो मन भाई॥
मिलैंगे हरिदास पें जहाँ तीन दमन कहावहीं।
इंद्र नाग जु देव दमन सो मेरो नाम जतावहीं॥
फेरि के जब ब्रज पधारी पाँच सेवक संग हैं।
सदु है आन्योर में जहाँ द्वार पे ठाडे रहैं॥१४॥
सदु कहे स्वामी कछु खैहैं। मेघन कही सेवक को ले हैं॥
इतने प्रभु गिरि ऊपर बोले। लाइ नरो दूध रहे अनबोले॥
बोली नरो यह पाहुने आये तिनहीं को बैठारिये।
प्रभु कहत मोहि बेर लागत भली चित्त बिचारिये॥
लै गई पय प्याय आई देख श्री वल्लभ कह्यो।
बच्यो होय कछु हमें दीजे बोल पहिलोहि गह्यो॥१५॥
देखि नरो बोली हौं वारी ॥ नाम दीजिये गर्व प्रहारी॥
नाम दीनो पूछी वे कहाँ हैं। कहि पर्वत पर जाओ तहाँ हैं॥
तहाँ देखे प्रानपति तब हुलसि दोऊ तन फूल हीं।
उहि समै सुख कहि न आवे पंगु गति मति भूलहीं॥
हँसि कह्यो सह कुटुम्ब आवो निकट रहि सेवा करो।
मानि वचन प्रमान कीनो सासरे दिस पग धर्यो॥१६॥
कछु दिन रहि संग लै आये। बसे अडेल में निज हरखाये॥
संवत पंद्रहसैं सरसठ आयो। आसौ वदी द्वादसी सुभ गायो॥
गायो श्री गोपी नाथ जी जब जन्म लीनो आय के।
जानि बलको रूप हरखित देत दान बधाय के॥
फेरि के चरणाट आये कछुक दिन रहे जानि के।
धन्य संवत पंद्रहा बहोतरा सुभ मानि के॥१७॥
पोष कृष्ण नौमी सुभ आई। घर घर मंगल होत बधाई॥
श्री विट्ठलनाथ जनम भयो सुनि के। कहत फिरत आनंद गुन गनि के।
आनंद बढ्यो चहुँ दिसा छबि देखि श्री वल्लभ हँसे।
बेउ कछु मुसिकाय चित में दोऊ हँसनि मेरे मन बसे॥
तिलक मृगमद छिप्यो हरखित कहाँ लो गुन गाइये।
कृपा तें उछलित निज रस छिपत नाहीं छिपाइये॥१८॥
श्री गोकुल में वास सुहायो। श्री रुक्मिनी पद्मवती पति पायो॥
श्री गिरिवरधरन छबीलो। श्री नवनीत प्रिया अबरीलो॥
प्रिय श्री मथुरेश श्री विट्ठलेश श्री द्वारकेश जू।
श्री गोवर्धनधर श्री गोकुल चन्द्रमा श्री मधुरेश जू॥
श्री मदनमोहन अष्ट इहि विधि रमन श्री विट्ठलनाथ के।
तात को चित्त जानि सेवा विस्तरी सब साथ के॥१९॥
पंद्रह सें सत्तानुं कार्तिक। विमल द्वादशी मंगल नित ढिंद॥
प्रथम पुत्र प्रगटे श्री गिरिधर। षटगुण धर्मी धर्म धुरंधर॥
धुरंधर ऐश्वर्य श्री गोविन्द पंचदस नन्यानवे।
उर्ज सामल अष्टमी सुभ गुरु सुदिन प्रगटे जबे॥
ऋतु वियत सिंगार आस्विन असित तेरह भ्राजहीं।
श्री बालकृष्ण जी महा पराक्रमी, बसु ख सोले राजहीं॥२०॥
कवि सह सुदि सातें गोकुल पति। यस स्वरूप माला स्थापित रति॥
सोलह सैं ग्यारह कार्तिक सित। अर्क बुध रघुनाथ श्री सहित॥
हेतु निज अभिधान प्रगटे तात आज्ञा मानि के।
तिथि कला बुध मधु छठ बिमल ज्ञान बखानि के॥
श्री यदुनाथ प्रगट रह्यो विरहें श्री घनश्याम स्वरूप के।
सह कृष्ण तेरस रविजरिक्ष सत कला श्री विट्ठल भूप के॥२१॥
भामिनी रानी कमला बखानी। पारवती जानकी महारानी॥
कृष्णावती मिल सातों कहाये। यह अलौकिक रूप महाये॥
महाअलौकिक अग्निकुल सब, अलौकिक अष्टछाप हैं।
अलौकिक सब भक्त जन जे सरन लीने आप हैं॥
यथा मति कछु बरनि आई जानियो यह दास है।
‘श्री द्वारकेश’ निरोध माँगे यही फल की आस है॥२२॥

★☆★जय श्रीकृष्ण, राधे राधे। आपका दिन शुभ हो।★☆★

24/12/2024
सभी वैष्णवजन को प्रभुचरण श्री गुसाईंजी श्री विट्ठलनाथ जी के उत्सव जलेबी उत्सव की खूब खूब मंगल बधाई. जय श्री कृष्ण.
24/12/2024

सभी वैष्णवजन को प्रभुचरण श्री गुसाईंजी श्री विट्ठलनाथ जी के उत्सव जलेबी उत्सव की खूब खूब मंगल बधाई. जय श्री कृष्ण.

सभी वैष्णवजन को श्री गुसाईं जी श्री विट्ठलनाथ जी के उत्सव, जलेबी उत्सव की खूब खूब मंगल बधाई. जय श्री कृष्ण.
24/12/2024

सभी वैष्णवजन को श्री गुसाईं जी श्री विट्ठलनाथ जी के उत्सव, जलेबी उत्सव की खूब खूब मंगल बधाई. जय श्री कृष्ण.

सभी वैष्णवजन को श्री गुसाईं जी श्री विट्ठल नाथ जी के उत्सव की खूब खूब मंगल बधाई. जय श्री कृष्ण.
24/12/2024

सभी वैष्णवजन को श्री गुसाईं जी श्री विट्ठल नाथ जी के उत्सव की खूब खूब मंगल बधाई. जय श्री कृष्ण.

23/12/2024
🚩श्रीनाथजी में आज पौष कृष्ण अष्टमी को श्री गुसांईजी के उत्सव के आगम का श्रृंगार 🚩◆जय श्रीकृष्ण, राधे राधे.◆श्री वृन्दावन...
23/12/2024

🚩श्रीनाथजी में आज पौष कृष्ण अष्टमी को श्री गुसांईजी के उत्सव के आगम का श्रृंगार 🚩

◆जय श्रीकृष्ण, राधे राधे.
◆श्री वृन्दावन विहारी लाल की जय.
◆श्री गिरिराज धरण की जय.
◆श्री वल्लभाधीश की जय.
◆श्री यमुने महारानी की जय.
◆गुसाईं जी परम दयाल की जय.

♦️आज पौष कृष्ण अष्टमी, सोमवार, 23 दिसम्बर 2024 है । श्रीनाथजी में आज श्री गुसांईजी के उत्सव के आगम का श्रृंगार है।

🌹आज विशेष🌹

◆ कल प्रभुचरण श्री गुसांईजी का प्राकट्योत्सव है, अतः आज उत्सव के एक दिन पूर्व धराया जाने वाला आगम का श्रृंगार धराया जाता है ।
◆ जैसा हम जानते हैं कि लगभग सभी बड़े उत्सवों के एक दिन पूर्व लाल वस्त्र एवं पाग-चन्द्रिका का हल्का श्रृंगार धराया जाता है।
◆ यह श्रृंगार अनुराग के भाव से धराया जाता है और इसे उत्सव के आगम का श्रृंगार कहा जाता है।
◆ इस श्रृंगार को धराये जाने में उत्सव के आगमन के आभास का भाव है।
◆ आज दिनभर उत्सव की बधाई एवं ढाढ़ी के कीर्तन गाये जाते हैं।
◆ आज से प्रतिदिन श्रीजी को शयन उपरांत अनोसर भोग में एवं कल अर्थात नवमी से राजभोग उपरांत अनोसर भोग में शाकघर में सिद्ध सौभाग्य सूंठ अरोगाई जानी आरंभ हो जाएगी।
◆ केशर, कस्तूरी, सौंठ, अम्बर, बरास, जाविन्त्री, जायफल, स्वर्ण वर्क, विविध सूखे मेवों, घी व मावे सहित 29 मसालों से निर्मित सौभाग्य-सूंठ के बारे में कहा जाता है कि इसे खाने वाला व्यक्ति अत्यन्त सौभाग्यशाली होता है।
◆ आयुर्वेद में भी शीत एवं वात जन्य रोगों में इसके औषधीय गुणों का वर्णन किया गया है अतः विभिन्न शीत एवं वात जन्य रोगों, दमा, जोड़ों के दर्द में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
◆ नाथद्वारा के श्रीजी मंदिर में निर्मित इस सामग्री को प्रभु अरोगे पश्चात देश-विदेश के वैष्णव ले जाते, मंगवाते हैं।

♦️आज का श्रृंगार ♦️

◆ आज की साज सेवा में श्रीनाथजी में आज लाल रंग की मखमल की, रुपहली ज़री की तुईलैस के हांशिया वाली पिछवाई धरायी जाती है।
◆ आज गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है।
◆ आज की वस्त्र सेवा में श्री ठाकुर जी को आज लाल रंग की साटन का बिना किनारी का अड़तू का सूथन, चोली, घेरदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं।
◆ आज उर्ध्व भुजा की ओर सुनहरी किनारी से सुसज्जित कटि-पटका धराया जाता है।
◆ ठाड़े वस्त्र आज पीले रंग के धराये जाते हैं।
◆ आज प्रभु श्री वल्लभाधीश श्रीजी को छोटा अर्थात कमर तक का चार माला का हल्का शृंगार धराया जाता है।
◆ आज सर्व आभरण पन्ना एवं सोने के धराये जाते हैं, जिनमें श्रीहस्त के आभरण बाजूबंद, पौंची, हस्त सांखला, मुद्रिका, श्रीकर्ण के कर्णफूल, श्री कंठ के आभूषण कंठहार, माला आदि, श्रीचरणों के आभरण पैंजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ आदि सर्व आभरण पन्ना एवं सोने के होते हैं।
◆ श्रीजी प्रभु के श्रीमस्तक पर आज लाल रंग की गोल पाग के ऊपर सिरपैंच, लूम, मोरपंख की सादी चन्द्रिका एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं।
◆ श्री ठाकुर जी के श्रीकर्ण में आज कर्णफूल धराये जाते हैं।
◆ ठाडी लड़ आज मोती की धराई जाती है।
◆ प्रभु को आज श्वेत एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं।
◆ आज प्रभु श्री वल्लभाधीश के श्रीहस्त में हरे मीना के वेणुजी एवं एक वेत्रजी धराये जाते हैं।
◆ खेल के साज में आज लाल व गोटी सोना की आती है। आरसी शृंगार में आज सोना की एवं राजभोग में बटदार दिखाई जाती हैं।
◆ श्रीनाथजी की सेवा का अन्य सभी क्रम नित्य नियमानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है एवं नित्य नियमानुसार मंगलभोग, ग्वालभोग, राजभोग, शयनभोग में विविध सामग्रियों का भोग अरोगाया जाता है।
◆ संध्या-आरती दर्शन उपरांत प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं। श्रीमस्तक पर कुल्हे बड़े कर लाल कुल्हे धराये जाते हैं।

♦️आज की राग सेवा - आज के कीर्तन♦️

🔹️मंगला – सोहेला नन्द महर घर ।
🔹️राजभोग – चिर जियो लाल रानी तेरो ।
🔹️आरती – श्रीमद वल्लभ रूप सुरंगे ।
🔹️शयन – लाल के गुण गाउँ।
🔹️मान – हों तोसों कहा कहूँ आली री ।
🔹️पोढ़वे – लाल लाड़ली संग ले पोढ़ीए ।

♦️जय श्री कृष्ण। राधे राधे आपका दिन शुभ हो।♦️
श्रीनाथजी के दर्शन की आगामी जानकारी के लिए आप हमारे चैनल को फॉलो कर सकते हैं.
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🚩व्रज – पौष कृष्ण अष्टमी🚩🔹सोमवार ️, 23 दिसम्बर 2024🔹️🌹श्री गुसांईजी के उत्सव के आगम का श्रृंगार🌹♦️मंगला दर्शन :♦️▪️समय- ...
22/12/2024

🚩व्रज – पौष कृष्ण अष्टमी🚩
🔹सोमवार ️, 23 दिसम्बर 2024🔹️

🌹श्री गुसांईजी के उत्सव के आगम का श्रृंगार🌹

♦️मंगला दर्शन :♦️

▪️समय- प्रात: 5.45 बजे.

▪️वस्त्र- गद्दल बाह्य लाल व आंतरिक पीला साटन का.

▪️कीर्तन - सोहेला नंद महर घर.

♦️जय श्री कृष्ण. आपका दिन शुभ हो.♦️

जय श्री कृष्ण. समस्त पुष्टि सृष्टि को आज के उत्सव की खूब खूब मंगल बधाई. 🌹⚘️🌹
22/12/2024

जय श्री कृष्ण. समस्त पुष्टि सृष्टि को आज के उत्सव की खूब खूब मंगल बधाई. 🌹⚘️🌹

🐦🕊🐦‍⬛श्रीनाथजी में आज ‘पंछी वाले कल्याणराय जी' का उत्सव🐦‍⬛🕊🐦◆जय श्रीकृष्ण, राधे राधे ◆◆श्री वृन्दावन विहारी लाल की जय ◆◆...
22/12/2024

🐦🕊🐦‍⬛श्रीनाथजी में आज ‘पंछी वाले कल्याणराय जी' का उत्सव🐦‍⬛🕊🐦

◆जय श्रीकृष्ण, राधे राधे ◆
◆श्री वृन्दावन विहारी लाल की जय ◆
◆श्री गिरिराज धरण की जय ◆
◆श्री वल्लभाधीश की जय ◆
◆श्री यमुने महारानी की जय ◆
◆गुसाईं जी परम दयाल की जय ◆

आज पौष कृष्ण सप्तमी, रविवार, 22 दिसम्बर 2024 है । श्रीनाथजी में आज श्री गुसांईजी के द्वितीय पुत्र गोविन्दरायजी के प्रथम पुत्र कल्याणरायजी का जन्मोत्सव है।

★☆★आज के उत्सव नायक का परिचय-★☆★

◆ आप श्री गुसांईजी के सबसे ज्येष्ठ पौत्र थे एवं उनके जीवित रहते ही आपका जन्म विक्रम संवत 1635 में गोकुल में हुआ था।
◆ श्री गोविन्दरायजी आज के दिन श्रीजी का श्रृंगार कर रहे थे तब आपका जन्म हुआ। स्वयं श्रीजी ने बधाई मांगते हुए कहा – “गोविन्द घर भये कल्याण… बधाई दे।” इसी कारण आपके पुत्र का नाम कल्याणरायजी पड़ा।
◆ पिंडरू पड़ा इस लिए आपको सेवा तुरंत छोड़नी पड़ी। श्रीजी ने पुनः आज्ञा की – “मोंको पहले बधाई दे। श्रृंगार कर के चल्यो जाएगो।” तब आपने तुरंत हाथ में से अंगूठी निकल कर प्रभु को भेंट की।
◆ श्री कल्याणरायजी को पक्षियों से विशेष प्रेम था अतः आज श्रीजी में पिछवाई एवं वस्त्र आदि पक्षियों के भरतकाम वाले धराये जाते हैं एवं वैष्णव जगत में आपको ‘पंछी वाले कल्याणराय जी’ के नाम से भी जाना जाता है।
◆ आपकी बाल्यावस्था का एक प्रसंग है कि एक बार श्री महाप्रभुजी के भाई केशवपुरी जी गोकुल पधारे एवं श्री गुसांईजी को कहा – “आपके बालकों (पुत्रों अथवा पौत्रों) में से एक बालक मेरी गादी के उत्तराधिकार हेतु दत्तक रूप में देवें।”
◆ तब श्री गुसांईजी कुछ ना बोले परन्तु आपके सभी सात पुत्र एक दूसरे की ओर देखने लगे और अंत में सभी की दृष्टि श्री कल्याणरायजी की ओर गयी तब आपको आभास हुआ कि मैं इन सबसे छोटा हूँ तो संभवतया दादाजी श्री गुसांईजी मुझे केशवपुरीजी को दे देंगे अतः चिंतातुर आपने अपना भाव ढाढ़ी के एक पद द्वारा प्रदर्शित किया –
‘’हो व्रज मागनो जू व्रज तज अनत न जाऊ।
बड़े भूपति भूतल मंहियां दाता सुर सुजान ।कर न पसारो शीश न नाउ या व्रज के अभिमान ।।1।।
सुरपति नरपति नाग लोकपति मेरे रंक समान ।
भांति भांति मेरी आशा पूजी ये व्रज जन जिजमान ।।2।।
मैं व्रत करी करी देव मनाये अपनी घरनी संयुत्त ।
दियो विधाता सब सुख दाता गोकुल पति के पूत ।।3।
हों अपनो मनभायो लैइहों किन बोरावत बात।
औरन के धन धन ज्यो बरखत् मो देखत् हँस जात ।।4 ।।
अष्ट सिद्धि नव निधि मेरे तुव प्रताप ब्रजईश ।
कहत 'कल्याण' मुकुंद तात करकमल धरो मम शीश ।।5।। ‘’

अर्थात वे व्रज छोड़ के कहीं अन्यत्र नहीं जाना चाहते।

◆ श्री गुसांईजी ने आपको अभय प्रदान किया और इस प्रकार उनके कोई बालक केशवपुरीजी के साथ नहीं गये। उस दिन गाया गया ढाढ़ी का पद आज श्रीजी में भोग-आरती के समय गाया जाता है। श्री गुसांईजी ने आपको अभय प्रदान किया और इस प्रकार उनके कोई बालक केशवपुरीजी के साथ नहीं गये।
कोई बालक केशवपुरीजी के साथ नहीं जाने से उन्होंने ग़ुस्से में आकर तीन श्राप दिये।
(१) तुम्हारे ऊपर हमेशा क़र्ज़ रहेगा
(२) परदेश में ज़्यादा रहना होगा
(३) बेटी को घर में रहना होगा
ये श्राप तीसरे लालजी श्रीबालकृष्णजी ने स्वीकार किये और इनका समाधान इस प्रकार निकाला की हमेशा देना रहेगा तो चित्त प्रभु की सेवा में रहेगा विविध प्रदेशों में घुमना रहेगा तो देवी जीवों का उद्धार होवेगा बेटीजी घर में रहेगी तो सेवा में मदद रहेगी।
◆ आप उच्चकोटि के साहित्यकार एवं कवि थे एवं आपने नयी कल्पनाशीतलता से युक्त अनेक उत्कृष्ट पदों की रचना की जो कि नित्य नियम व विभिन्न उत्सवों में आज भी गाये जाते हैं। आपके पुत्र श्री हरिराय महाप्रभु हुए।
◆ आपके यहाँ द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी विराजित थे जिनकी सेवा, श्रृंगार, कीर्तन, भोग, साज आदि में आपने बहुत वृद्धि की। श्री गोवर्धनधरण प्रभु को भी आपने विविध मनोरथों के द्वारा खूब रिझाया।
◆ आज द्वितीय गृहाधीश्वर प्रभु श्री विट्ठलनाथजी के घर (मंदिर) से श्रीजी व श्री नवनीतप्रियाजी के भोग हेतु घेरा (जलेबी) की सामग्री सिद्ध हो कर आती है।
◆ आज से पौष कृष्ण द्वादशी तक प्रतिदिन श्रीजी को मोरपंख की चन्द्रिका का श्रृंगार धराया जाता है। इसका विशिष्ट कारण यह है कि मयूर भी निष्काम वियोगी भक्त का स्वरुप है।
◆ श्री गुसांईजी को छः माह तक श्रीजी के विप्र-योग का अनुभव हुआ था अतः आपके उत्सव को बीच में रख कर छः दिवस तक प्रतिदिन मोरपंख की चन्द्रिका श्रीजी को धरायी जाती है।

♦️राजभोग दर्शन♦️

◆ आज की साज सेवा में श्रीनाथजी में आज लाल (रानी) रंग की, तोते, चिड़िया, मयूर आदि विभिन्न पक्षियों के भरतकाम से सुसज्जित पिछवाई धरायी जाती है जो रुपहली ज़री की तुईलैस की किनारी के हांशिया से सज्जित होती है।
◆ आज गादी, तकिया एवं चरणचौकी पर सफेद बिछावट की जाती है एवं स्वरुप के सम्मुख लाल रंग की तेह बिछाई जाती है।
◆ आज की वस्त्र सेवा में श्री ठाकुर जी को आज लाल (रानी) साटन का रुपहली ज़री के पक्षियों के भरतकाम एवं तुईलैस की किनारी से सुसज्जित सूथन, चोली, चाकदार वागा एवं मोजाजी धराये जाते हैं।
◆ पटका आज मलमल का धराया जाता हैं।
◆ ठाड़े वस्त्र आज मेघश्याम रंग के खीनखाब के धराये जाते हैं।
◆ आज प्रभु श्री वल्लभाधीश श्रीजी को वनमाला का अर्थात चरणारविन्द तक का उत्सववत भारी श्रृंगार धराया जाता है।
◆ आज सर्व आभरण हीरे के धराये जाते हैं, जिनमें श्रीहस्त के आभरण बाजूबंद, पौंची, हस्त सांखला, मुद्रिका, श्रीकर्ण के कुंडल, श्री कंठ के आभूषण कंठहार, माला आदि, श्रीचरणों के आभरण पैंजनिया, नुपुर व बिच्छियाँ आदि सर्व आभरण हीरे के होते हैं।
◆ श्रीजी प्रभु के श्रीमस्तक पर आज सोने की पक्षी वाली मीनाकारी वाली कुल्हे के ऊपर पान, पांच मोरपंख की चन्द्रिका की जोड़ एवं बायीं ओर शीशफूल धराये जाते हैं।
◆ श्री ठाकुर जी के श्रीकर्ण में आज मकराकृति कुंडल धराये जाते हैं।
◆ बायीं ओर मोती की चोटी (शिखा) धरायी जाती है
◆ प्रभु को आज श्वेत, गुलाबी एवं पीले पुष्पों की रंग-बिरंगी थागवाली दो सुन्दर मालाजी धरायी जाती हैं।
◆ आज प्रभु श्री वल्लभाधीश के श्रीहस्त में मीना के वेणुजी एवं पक्षी वाले वेत्रजी धराये जाते हैं।
◆ खेल के साज में आज लाल व गोटी पक्षी की आती है। आरसी शृंगार में पीले खंड की एवं राजभोग में सोना की डांडी की दिखाई जाती हैं।
◆ श्रीनाथजी की सेवा का अन्य सभी क्रम नित्य नियमानुसार रहता है जैसे कि मंगला, राजभोग, आरती एवं शयन दर्शन में आरती उतारी जाती है एवं नित्य नियमानुसार मंगल भोग, ग्वाल भोग, राजभोग, शयन भोग में विविध सामग्रियों का भोग अरोगाया जाता है।
◆ संध्या-आरती दर्शन पश्चात प्रभु के श्रीकंठ के श्रृंगार बड़े कर हल्के आभरण धराये जाते हैं। श्रीमस्तक पर कुल्हे बड़ीं कर लाल कुल्हे धराये जाते हैं।

★🔸️🔹️आज के कीर्तन 🔹️🔸️★

◆ मंगला - मंगल रूप निधन साँवरो
◆ राजभोग - जे श्री वल्लभ राज कुँवर
◆ आरती - श्री वल्लभ मंगल रूप निधान
◆ शयन - आज धन्य भाग हमारे प्रगटे श्रीविठ्ठलनाथ

♦️🌸♦️जय श्री कृष्ण। राधे राधे आपका दिन शुभ हो।♦️🌸♦️

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