Shadab raza

Shadab raza News

18/08/2022
Moot ka dar to hai hi na
19/04/2022

Moot ka dar to hai hi na

18/03/2022
17/03/2022

This all movies have to show coz its bigger than

15/03/2022

कश्मीर फाइल्स के नाम पर बनी फिल्म आजकल चर्चाओं में है।

मेरे आज तक यह समझ नहीं आया कि कोई बिना संघर्ष के कैसे अपनी विरासत छोड़कर भाग सकता है!

किसानों की जमीनों पर आंच आई तो 13 महीने तक सब कुछ त्यागकर दिल्ली के बॉर्डर पर पड़े रहे।

कश्मीर घाटी में आज भी जाट-गुर्जर खेती कर रहे है।पीड़ित होने का रोना-धोना आजतक दिल्ली जंतर/मंतर आकर नहीं किया है।

1967 के बाद से देश के बारह राज्यों में आदिवासियों को चुन-चुनकर मारा जा रहा है और कारण इतना ही बताया जाता है कि विकास के रास्ते में रोड़ा बनने वाले नक्सली लोगों को निपटाया जा रहा है!

आदिवासियों का नरसंहार कभी चर्चा का विषय नहीं बनता है।उनके विस्थापन का दर्द,पुनर्वास की योजनाओं पर कोई विमर्श नहीं होता।

सुविधा के लिए बता दूँ कि 1989 तक कश्मीरी पंडित बहुत खुश थे और हर क्षेत्र में महाजन बने हुए थे।

अचानक दिल्ली में बीजेपी समर्थित सरकार आती है और राज्य सरकार को बर्खास्त करके जगमोहन को राज्यपाल बना दिया जाता है।

कश्मीरी पंडितों पर जुल्म हुए और दिल्ली की तरफ प्रस्थान किया गया!

उसके बाद बीजेपी ने कश्मीरी पंडितों का मुद्दा मुसलमानों को विलेन साबित करने के लिए राष्ट्रीय मुद्दा बना लिया!

कांग्रेस सरकार ने जमकर इस मुद्दे को निपटाने के लिए सालाना खरबों के पैकेज दिए और जितने भी कश्मीरी पंडित पलायन करके आये उनको एलीट क्लास में स्थापित कर दिया।

साल में एक बार जंतर-मंतर पर आते,बीजेपी के सहयोग से ब्लैकमेल करते और हफ्ता वसूली लेकर निकल लेते थे।

8 साल से केंद्र में बीजेपी की प्रचंड बहुमत की सरकार है व कश्मीर से धारा 370 हटा चुके है लेकिन कश्मीरी पंडित वापिस कश्मीर में स्थापित नहीं हो पा रहे है!

धरने-प्रदर्शन से निकलकर हफ्तावसूली की गैंग फिल्में बनाकर पूरे देश को इमोशनल ब्लैकमेल करके वसूली का नया तरीका ईजाद कर चुकी है!

आदिवासी रोज अपनी विरासत को बचाने के लिए चूहों की तरह मारे जा रहे है लेकिन कभी संज्ञान नहीं लिया जाता।आज किसान कौमों को विभिन्न तरीकों से मारा जा रहा है लेकिन कोई चर्चा नहीं होती।

1995 के बाद से आज तक तकरीबन 15 लाख किसान व्यवस्था की दरिंदगी से तंग आकर आत्महत्या कर चुके है लेकिन पिछले 25 सालों में एक भी बार जंतर-मंतर पर कोई धरना नहीं हुआ,राष्ट्रीय मीडिया में विमर्श का विषय नहीं बना और केंद्र सरकार की तरफ से चवन्नी भी राहत पैकेज के रूप में नहीं मिली।

भागलपुर,पूर्णिया,गोदरा के दंगों से भी पलायन हुआ व देश के सैंकड़ों नागरिक मारे गए।मुजफरनगर नगर फाइल्स या हरियाणा जाट आरक्षण पर हरियाणा फाइल्स भी बननी चाहिए!

हर नागरिक की मौत का संज्ञान लिया जाना चाहिए।एक नागरिक की जान अडानी-अंबानी की संपदा से 100 गुणा कीमती है।हफ्ता-वसूली की यह मंडी अब खत्म होनी चाहिए।भावुक अत्याचारों का धंधा कब तक चलाया जाएगा?

किसान कौम के बच्चे बंदूक लेकर इनके घरों की सुरक्षा के लिए खड़े हो तब ये लोग बंगलों में जाएंगे!क्यों देश इनका नहीं है क्या?ये नागरिक के बजाय राष्ट्रीय दामाद क्यों बनना चाहते है?

भारत सरकार संसाधन दे रही है आर्मी तैनात है तो डर किससे है?जिससे खतरा है उनके खिलाफ लड़ो!जाट-गुज्जर कश्मीर घाटी में आज भी रह-रहे है उन्होंने कभी असुरक्षा को लेकर रोना-धोना नहीं किया है।

Note:- तथाकथित राष्ट्रवादियों से निवेदन है कि एक बार हरियाणा जाट आरक्षण आंदोलन पर बनी फिल्म चीरहरण को देख लीजिए या आदिवासियों पर बनी फिल्म चक्रव्यूह देख लीजिए हिन्दू होने का भूत उतर जाएगा..!

साभार:~ प्रेमसिंह सियाग

14/03/2022

इस पेंटिंग में ब्रिटिश सेना को मैसूर के रॉकेटों का सामना करते हुए दिखाया गया है। टीपू सुल्तान को रॉकेट आर्टिलरी इनोवेशन का जनक कहा जाता है।

भारतीय एयरोस्पेस वैज्ञानिक रोडम नरसिम्हा के अनुसार, टीपू सुल्तान के रॉकेट अंग्रेजों ने जो देखा या जाना था, उससे कहीं ज्यादा तरक्कीयाफ्ता थे, मुख्यतः प्रणोदक को पकड़ने के लिए लोहे की नलियों के उपयोग के कारण; इसने दहन कक्ष में उच्च फटने वाले दबावों को सक्षम किया और इसलिए मिसाइल के लिए उच्च जोर और लंबी दूरी तय की।

रॉकेट, या 'आग के तीर' किसी न किसी रूप में, लंबे समय से जाने जाते हैं: चीनियों को 1232 CE. में उनका उपयोग करने के रूप में दर्ज किया गया है। तोप के आविष्कार और सुधार के साथ अनुपयोगी होने के बाद, 18वीं सदी के उत्तरार्ध में हैदर और टीपू के मैसूर में रॉकेट फिर से उभरे।

18वीं सदी के मैसूर में हैदर अली और टीपू सुल्तान के दौर-ए-हुकूमत के दौरान रॉकेट का एक अहम् फौजी हथियार के तौर पर दोबारा उभरना एक दिलचस्प कारनामा था।

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09/03/2022

रज़िया सुल्तान, नूरजहां, जहांआरा, चांद बीबी से लेकर बेग़म हज़रत महल तक वो मुस्लिम शहज़ादियां जिन्होंने अपने दम पर इतिहास लिखा, ख़ुद की अलग पहचान बनाई। और असरारुल हक़ के इस नज़म को 800 साल पहले हक़ीक़त में कर के दिखाया जो आज भी ज़्यादातर महिलाओं के लिए मुमकिन नही है।


तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था

08/02/2022

शिक्षा के मंदिर के अंदर नफ़रत की तैयारी है
मोदी जी के नये इंडिया की जनता आभारी है।
इक बेटी ने इंक़लाब का हाथ उठाकर बता दिया,
एक शेरनी जाने कितने लंगूरों पर भारी है।
~इमरान प्रतापगढ़ी

06/02/2022
27/07/2020

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