19/04/2024
समय की अनवरत, कभी ना रूकने वाली गति होती है। उसकी तो अपनी गति है और रहेगी इसके साथ ही ये भी सही है कि जीवन तो समय का साथी है। ये तो शनैः शनैः आगे और आगे और आगे बढ़ता ही जाता है। जब जीवन आगे बढ़ता है तो दिन प्रतिदिन के क्रिया कलाप हमारे मन मस्तिष्क मे अंकित होते चले जाते है। उनमें से कुछ को हम भूल जाते हैं और कुछ की यादें हमारे मन मस्तिष्क में गहरे तक अंकित हो जाती है। मस्तिष्क का काम तो यही है वह तो कोशिश करता है कि जो बहुत आवश्यक है उसे ही सँभालकर रखें और जो ग़ैर ज़रूरी है उसे मिटा दे। परंतु फिर भी कुछ कार्य कुछ क्रिया कलाप मस्तिष्क में रह ही जाते है अंकित हो जाते है, छप जाते है जिन्हें हम यादें कहते है। हमारे जीवन में यादों का भी अपना बड़ा भारी महत्व होता है। यादें हमें पीछे मुड़कर सोचने को मजबूर कर ही देती है। जब हम पीछे की तरफ़ मुड़कर देखते है तो यादें हमें झकझोर देती है। यादें हमें जीवन के विभिन्न अवसर के विभिन्न रंगों को दिखाकर आत्म चिंतन करने को मजबूर कर देती है। वे हमें अहसास दिलाती है कि हम कहीं खोए खोए जी रहे है। हम बेख़बर है यादें हमें बाखबर करती है। जब यादों की तरफ़ ध्यान जाता है तो अहसास होता है कि, ये क्या,ये जीवन तो बहुत तेज़ी से अंत की तरफ़ भागा जा रहा है। हम जब यादों की तरफ़ झांकते हैं तो दिल धक से कर जाता है। कुछ समय के लिये तो जैसे आँखों के सामने अंधेरा सा ही छा जाता है। कई बार तो पिछली यादें जब मन मस्तिष्क में घूमती है तो ऐसा लगता है कि दिल बाहर निकलने को आता है। आँखों के सामने अंधेरा सा छाने लगता है आंसू आ जाते है और मुँह से एकाएक निकलता है कि हाय कहाँ गये मेरे अपने जो एक समय मेरे साथ थे कि हाल फ़िलहाल तक भी मेरे सब,मेरे साथ थे। फिर ये क्या हुआ कि कितने अपने धीरे-धीरे एक-एक करके साथ छोड़ते चले गये। परन्तु एक वो भी समय था कि मैं सभी अपनों के साथ रहता,उठता, बैठता,खाता-पीता था। मैं जिनके साथ जीवन गुज़ार कर बड़ा हुआ वे सब अब कहाँ है। मेरे बचपन में तो ये सभी के सभी हमारे परिवार का हिस्सा हुआ करते थे। कुछ चले गये कुछ इधर उधर सिफ्ट हो गये। कुछ अब नहीं है कुछ चले गये,कुछ चले जायेंगे। मेरे गाँव की गलियाँ छूटी और बाग बगीचे छूटे, खेत खलिहान छूटे,पड़ोसी छूटे,गाय,भैंस,बैल,छूटे गाँव की एक दूसरे के दुख सुख जानने की प्रवृति छूटी, एक दूसरे के साथ जीवन को जीने का अंदाज़ा छूटा। सुबह सवेरे उठने का क्रम छुटा और ये छूटने का क्रम लगातार चलता गया और पता नहीं क्या क्या छूटा। यह बात भी उतनी ही सही है कि इसके साथ ही ये भी हुआ कि कुछ नये जन परिवार मे जुड़ भी गये। कुछ जुड़ गये कुछ जुड़ जायेंगे। ये छूटने और जुड़ने का ये सिलसिला क्या इस तरह ही चलता रहेगा। कुछ लोग परिवार में जुड़ गये परंतु जो चले गये उन्हें कैसे भूलूँ। छूटते छूटते सब कुछ छूटा किस क्या याद करूँ। गर्मियों में छत पर सोना छूटा। छत पर लेटकर फुलझड़ियों की तरह दिखाई देने वाले चाँद तारे छूटे। दादी बाबा की कहानी छूटी। दादी माँ की प्यार से बनाई वो चुल्हे की स्वादिष्ट रोटी छूटी। कच्चा घर छूटा,कोवा छूटा,कोयल छूटी,गौरैया छूटी और हम सब धीरे-धीरे-धीरे-धीरे हम सब छूटते चले गये और लगातार छूटते जा रहे है।ये क्रम चलता जायेगा चलता जायेगा। अपना बचपन याद आता है। अपने बचपन की चीजें अपने बचपन के क्रिया कलाप वो भागदौड़ वो सोना जागना वो सारा परिवार वे सब बुजुर्ग जो एक-एक करके साथ छोड़ते चले गये। उनके साथ बिताए वे अनमोल क्षण वे किस्से कहानी वो बैठकों पर बड़े बुजुर्गों के बीच चलती मंत्रणा और वार्तालाप छूटे,भाई बहनों की लफ़्फ़ाज़ी और मौज-मस्ती छूटी, आपस के वार्तालाप छूटे। इस मौज-मस्ती के साथ जीवन जीने के लिये मिलनेवाली अनेक सीख याद आती है। बैठकों में गर्मियों में देर रात तक लोगों के झुंड के झुंड उनमें बच्चे,बड़े,छोटे सब अपने-अपने किस्से कहानी सुनाते बातचीत करते लंबे-लंबे वार्तालाप बहुत याद आते है। गर्मियों के दिन की छुट्टियों में गाँव के नज़दीक के आम के बाग वहाँ की उछल कूद सब याद आता है। वर्षा के समय वो मिट्टी की भीनी भीनी ख़ुशबू फलों से लदे पेड छोटे-छोटे आम अमरूद जामुन देखकर जो ख़ुशी मिलती थी। वो सब याद आता है। गर्मियाँ की छुट्टियों में सुबह सवेरे उठकर आम इकट्ठा करना याद आता है। गर्मियों की छुट्टियों में अपनों के यहाँ जाना या अपने भाई बंधुओं का गर्मियों की छुट्टियों में आना याद आता है। जब भाई बंधु वापस जाते थे या हम वापस आते थे तो बिछोह की यादें बहुत कष्ट पहुँचातीं थी। हाय वो भी क्या दिन थे। दिल बैठ-बैठ ज़ाया करता था। दिल से हूक सी उठती थी। दिल सिंधड-सिंधड ज़ाया करता था। फिर दस पाँच दिन बाद वापस अपनी दुनिया में मस्त हो ज़ाया करते थे। क्या ज़माना था दो-दो,चार-चार किलोमीटर तक पैदल पढ़ने या घूमने चले ज़ाया करते थे। गर्मियों की छुट्टियों के बाद सड़क के किनारे-किनारे ,जामुन-चुगते-खाते, स्कूल चले जाया करते थे आ ज़ाया करते थे। जब वह समय धीरे-धीरे निकलता चला गया तो फिर कुछ काम की तलाश शुरू हुई। कोई काम मिले कोई नौकरी मिले, मिले तो कैसे मिले इस उहापोह में कुछ साल निकल गये। इस अति जनसंख्या घनत्व वाले देश में नौकरी मिले तो कैसे मिले। नौकरी मिली काम मिला तो घर छूटा,अपने छूटे,पड़ोस छूटा, मोहल्ला छुटा,गाँव छूटा और गवांड छूटा, रिश्तेदार छूटे।नौकरी मिली शादी हुई बच्चे हुए परिवार बढ़ा परंतु फिर धीरे-धीरे अपनों का साथ हमेशा के लिये छूटना शुरू हुआ और फिर छूटता ही चला गया। अनेक अपने छूटे,दादी,बाबा,पिता,चाचा, चाची,नाना,मामा,बुवा,फूफा,भाई पता नहीं कितने अपने साथ छोडते चले गये। अपने छूट गये लोगों की यादें बहुत रूलाया करती थी। उधर दूसरी तरफ़ पता ही नहीं चला कि कब बच्चे बड़े हो गये उनका बचपन पीछे छूटता चला गया और हम बुढ़ापे में प्रवेश कर गये। बच्चे बड़े हुवे तो अहसास हुआ की बच्चों का बचपन भी छूटे हुए लंबा समय हो गया। जब ये सब बाते,ये यादें आई तो फिर बड़ा अफ़सोस हुआ कि कब समय निकल गया पता ही नहीं चला। अब हर समय बच्चों का बचपन याद आने लगा। कब बच्चे इस दुनिया में आये थे कब घुटनों से चलते थे। कब लड़खड़ाते हुवे चलते थे। कब चलते,प्रयास करते,गिरते,पड़ते, मम्मी पापा की बाँहों के घेरे में घबराहट से आँखे बंद करके अपने आपको निश्चिंत होकर डाल देते थे। मम्मी पापा को देखते ही कब दौड़कर चिपट ज़ाया करते थे। रात हो या दिन जब भी डर लगता तो पूरी ताक़त लगाकर मम्मी पापा को अपनीं नन्ही नन्ही बाँहों से किचकिचाकर पकड़ लिया करते थे। उस समय तो मम्मी पापा ही उनकी पूरी दुनिया हुवा करते थे। उनका वो भी क्या बचपन था कि हम मम्मी-पापा ही उनका जीवन हुवा करता था। उनकी दुनिया हुआ करता था। उस समय हमारी गोद ही उनके लिये सब कुछ था। कब बच्चों ने तुतलाते हुवे बोलना शुरू किया था। बच्चों के बचपन का साथ अपने पूर्वजों का साथ सब कुछ एक पिक्चर की रील की माफ़िक़ नज़र के सामने घूम घूम जाती है। ये जीवन ही नहीं भाग रहा ये तो ऐसा लगता है कि संपूर्ण ब्रह्मांड का जीवन चक्र ही अंत की तरफ़ दौड़ लगा रहा है।ये ब्रह्मांड का अंतहीन सफ़र क्या ऐसे ही चलता रहेगा या कभी इसमें भी ठहराओ आयेगा कोई बदलाव आयेगा और क्या एक दिन ऐसा भी आयेगा कि ये ठहर ही जायेगा,ये रूक ही जायेगा। क्या इस सफ़र में यात्री ऐसे ही चढ़ते उतरते रहेंगे और अगर ऐसे ही चढ़ते उतरते रहेंगे तो फिर कब तक चढ़ते उतरते रहेंगे। इसकी कोई तो सीमा होगी। ये समय है या कोई रबर जो बढ़ती रहेगी और बढ़ती ही रहेगी। परंतु इसी के साथ दुनिया के सभी पदार्थों की भी तो अपनी ज़िंदगी होती होगी। यदि सभी जीवों का वनस्पतियों का पदार्थों का अपना जीवन है तो इस ब्रह्मांड का भी तो कोई जीवन होगा। अगर इस ब्रह्मांड पर उपस्थित सभी जीव जंतुओं और अन्य पदार्थों का निश्चित जीवन है या अधिकतम की कोई सीमा है। फिर तो वहीं फ़ार्मुला इस ब्रह्मांड पर भी लागू होगा। इस ब्रह्मांड का भी कोई समय होगा। कोई भी मनुष्य जब इस धरती पर जन्म लेता है तो वह दिन प्रतिदिन अत्यंत तीव्रता से इस ब्रह्मांड की गतिविधियों को सीखने का प्रयास करता है। उस प्रयास में वह कुछ सफल भी रहता है और कुछ असफलता भी हाथ लगती है। जीवन के एक बड़े और क़ीमती हिस्से को गुज़ारने के बाद उसे पता चलता है कि जिस ज्ञान को प्राप्त करने के लिये उसने अपना पूरा जीवन व्यतीत कर दिया। उसका न तो उसकी व्यवहारिक ज़िंदगी से कुछ मतलब था और न ही वह ज्ञान ज़िंदगी के उद्देश्य में सहायक था। बड़ी सावधानी से जीवन को विश्लेषण करने पर अहसास होता है कि हमने तो सारी उम्र कपास ओटने में ही निकाल दी। हम सारी रात बिस्तर ही बिछाते रह गये। सारी रात तो बिस्तर बिछाने में ही निकल गईं तो अब सोएँगे कब। ज़िंदगी निकली जा रही है और हमें उसका अहसास ही नही। यह जीवन आख़िर है ही क्या यह भी बहुत थोड़े से लोग ही महसूस कर पाते है। बहुत कम दूरदृष्टा लोग ही ऐसे होते हैं जो यहाँ तक सोच विचार कर पाते है। अधिकतर लोग तो नून तेल लकड़ी का हिस्सा बनकर शीघ्र ही समाप्त हो जाते है। कुछ ज़मीन जायदाद के पेपर इकट्ठा करते-करते अपना सफ़र पूरा कर जाते है। अधिकतम मनुष्य तो सोचने और विचारने की स्थिति तक ही नहीं पहुँच पाते। मनुष्य को जब यह अहसास होता है कि उसने अपने दिनों का चैन और रातों की नींद जिसके लिये ख़राब कर ली वह तो उसके लिये किसी महत्व का ही नहीं है और जब तक उसे अपनी ज़िंदगी की ग़लत दिशा का अहसास होता है। तब तक जीवन तो लगभग बह चुका होता है। उसके बाद मनुष्य अपना बचा कुचा जीवन लेकर आगे बढ़ने का प्रयास तो करता ही है। इस स्थिति में वह कितनी दूर तक यात्रा कर सकता है कितनी नहीं ये कहना असंभव हो जाता है। कितना कामयाब हो सकता है कितना नहीं ये कहना बहुत मुश्किल है।
मेरे पिताजी की कुछ यादें आज़ फादर्स डे पर मेरे मन व मेरी आँखों एवं मेरे स्वप्न में पिताजी की छवि जो उस समय थी और आज भी कर्मवीर,निडर,बहादुर,कर्मठ,धैर्यवान,स्वपनदृष्टा,दृढ़ निश्चयी,कठोर परिश्रमी, दूरदृष्टा,समाज सहयोगी,सर्वप्रिय,उन्नतिशील,ज्ञानवान एवंसाफ सफ़ाई पंसद,स्वस्थ एवं अनुशासन प्रिय को आज फादर्स डे पर एक बार फिर भावभीनी श्रद्धांजली