LAMHE the moments

LAMHE the moments writer, urdu and hindi poetry, digital creator

नमक की रोज़ मालिश कर रहे हैंहमारे ज़ख़्म वर्ज़िश कर रहे हैंसुनो लोगों को ये शक हो गया हैकि हम जीने की साज़िश कर रहे हैंह...
29/01/2025

नमक की रोज़ मालिश कर रहे हैं
हमारे ज़ख़्म वर्ज़िश कर रहे हैं

सुनो लोगों को ये शक हो गया है
कि हम जीने की साज़िश कर रहे हैं

हमारी प्यास को रानी बना लें
कई दरिया ये कोशिश कर रहे हैं

मिरे सहरा से जो बादल उठे थे
किसी दरिया पे बारिश कर रहे हैं

ये सब पानी की ख़ाली बोतलें हैं
जिन्हें हम नज़्र-ए-आतिश कर रहे हैं

अभी चमके नहीं 'ग़ालिब' के जूते
अभी नक़्क़ाद पॉलिश कर रहे हैं

तिरी तस्वीर, पंखा, मेज़, मुफ़लर
मिरे कमरे में गर्दिश कर रहे हैं
"फ़हमी बदायूंनी"

28/01/2025

तेरे आने की जब ख़बर महकेतेरे ख़ुशबू से सारा घर महकेशाम महके तेरे तसव्वुर सेशाम के बाद फिर सहर महकेरात भर सोचता रहा तुझको...
28/01/2025

तेरे आने की जब ख़बर महके
तेरे ख़ुशबू से सारा घर महके

शाम महके तेरे तसव्वुर से
शाम के बाद फिर सहर महके

रात भर सोचता रहा तुझको
ज़हन-ओ-दिल मेरे रात भर महके

याद आए तो दिल मुनव्वर हो
दीद हो जाए तो नज़र महके

वो घड़ी दो घड़ी जहाँ बैठे
वो ज़मीं महके वो शजर महके
"जगजीत सिंह"

हमेशा देर कर देता हूँ मैंज़रूरी बात कहनी होकोई वादा निभाना होउसे आवाज़ देनी होउसे वापस बुलाना होहमेशा देर कर देता हूँ मै...
27/01/2025

हमेशा देर कर देता हूँ मैं
ज़रूरी बात कहनी हो
कोई वादा निभाना हो
उसे आवाज़ देनी हो
उसे वापस बुलाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं

मदद करनी हो उसकी
यार का धाढ़स बंधाना हो
बहुत देरीना रास्तों पर
किसी से मिलने जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं

बदलते मौसमों की सैर में
दिल को लगाना हो
किसी को याद रखना हो
किसी को भूल जाना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं

किसी को मौत से पहले
किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ
उस को जा के ये बताना हो
हमेशा देर कर देता हूँ मैं

- मुनीर अहमद (मुनीर नियाज़ी)

27/01/2025

सभी देशवासियों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।
26/01/2025

सभी देशवासियों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

25/01/2025

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो कोई हाथ भी न मिलाएगा ...
24/01/2025

यूँही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो

कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो

अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा
तुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो

मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करो

कभी हुस्न-ए-पर्दा-नशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास में
जो मैं बन सँवर के कहीं चलूँ मिरे साथ तुम भी चला करो

नहीं बे-हिजाब वो चाँद सा कि नज़र का कोई असर न हो
उसे इतनी गर्मी-ए-शौक़ से बड़ी देर तक न तका करो

ये ख़िज़ाँ की ज़र्द सी शाल में जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है उसे आँसुओं से हरा करो।

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