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Avilom अविलोम हिंदी साहित्य साधकों का एक खुल?
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अविलोम कासम्बन्ध विशेषांक***************एक अनियमित अंतराल के बाद कुछ समस्याओं से पार पाकर आपकी प्रिय पत्रिका अविलोम पुनः...
11/01/2024

अविलोम का
सम्बन्ध विशेषांक
***************
एक अनियमित अंतराल के बाद कुछ समस्याओं से पार पाकर आपकी प्रिय पत्रिका अविलोम पुनः आपके मध्य है। गतांक यानी दोहा विशेषांक के बाद कुछ दिक्कतों के चलते आप तक समय से अंक नहीं पहुंच सका। अनेक शुभचिंतकों ने चर्चा कर हर-संभव सहयोग के लिए प्रस्ताव रखा, उनका कोटिशः धन्यवाद।
व्यवधान के लिए पत्रिका परिवार क्षमाप्रार्थी है। लेकिन संबंधों की बुनियाद ऐसे ही नहीं हिलाई जा सकती, लिहाज़ा संबंधों पर आधारित इस बार का *'संबंध विशेषांक - बुनियादें खत्म नहीं होती'* आप सभी के हाथों में बस पहुंचने ही वाला है। इस अंक में आवरण कथा के अंतर्गत आपको अभिनव 'अभिन्न' के मुख्य लेख के साथ, डॉ. दीप्ति भारद्वाज और डॉ. निरुपमा शर्मा के आलेख और लाल देवेंद्र कुमार की कविताएं पढ़ने को मिलेंगी।
पूनम सिन्हा, यामिनी नयन गुप्ता, रेखा श्रीवास्तव, मनीष कुमार, श्याम बिहारी मेहतो, गिरिजा जिन्ना की कहानियों और अकील नोमानी, राहुल शर्मा, आशीष मोहन की ग़ज़लों और कविताओं को भी शामिल किया गया है। निर्मल गुप्ता का व्यंग्य और गीतिका छंद से परिचय कराता डॉ. राहुल अवस्थी का आलेख भी अंक का हिस्सा है। इसके अलावा आंचलिक लोक कथा, मील के पत्थर, बालमन, पुस्तक समीक्षा वाले नियमित भाग में भी आपके लिए बहुत कुछ है। आशा है आपको यह अंक पसंद आएगा।
यदि आपके पते में बदलाव हुआ हो, तो तुरंत अपडेट करने का कष्ट करें 🙏

धन्यवाद।

28/06/2022
06/09/2019

देखो तुम दूर हुए हमसे, देखो हम दूर हुए तुमसे।
पर तुमसे प्रियवर मिलने का अरमान अभी तक जिन्दा है।
वह प्रीत अभी तक ज़िंदा है सम्मान अभी तक ज़िंदा है।

कुछ सपनों के बलिदानों में,
तुम जीत गयीं मैं हार गया।
कुछ सपनो के सम्मानो में,
मैं तुमसे बाज़ी मार गया।
निरपात ठूँठ सा खड़ा रहा,
काँटा सा दिल में गड़ा रहा।
तेरे वादों को ओढ़े मैं,
मरकर भी जिन्दा पड़ा रहा।
वह सारे सपने टूट गए, आंसू भी हमसे रूठ गए,
पर सपनों को सच करने का अभियान अभी तक ज़िंदा है।

सारे सम्बन्ध तुम्हारे थे,
सारे प्रतिबन्ध तुम्हारे थे।
जिनको अब तक ढोता आया,
वो सब अनुबंध तुम्हारे थे।
तुम संबंधो को छोड़ चलीं
मैं प्रतिबंधों को तोड़ चला।
मन में तूफ़ान उठाते जो,
अन्तर्द्वंदों को तोड़ चला।
मैंने जो प्रेम लुटाया, वह तुमको तनिक न भाया था,
पर इस दिल को बहलाने का एहसान अभी तक ज़िंदा है।

मुझको पाकर इतराती थीं।
कुछ कह दूँ तो शर्माती थीं।
हर पग पर चुप्पी साधे तुम,
मेरे मन को अज़मातीं थीं।
तुमको एक सच्चा मीत मिला,
मुझको एक झूठी प्रीत मिली।
तुम पाकर सब कुछ, खो बैठीं,
ये हार मिली या जीत मिली।
जग से तो आँख मिलाओगी, भीतर भीतर पछताओगी,
इस मन को दी पीड़ाओं का भुगतान अभी तक ज़िंदा है।

# # अभिनव 'अभिन्न'
#गीत

सभी इष्ट मित्रों को जन्माष्टमी की शुभकामनाएं। योगेश्वर कृष्ण के रूप का वर्णन करती कवि डॉ. अवस्थी की कविता - कान्हा! हम त...
23/08/2019

सभी इष्ट मित्रों को जन्माष्टमी की शुभकामनाएं। योगेश्वर कृष्ण के रूप का वर्णन करती कवि डॉ. अवस्थी की कविता -

कान्हा! हम तो मात्र तुम्हारी मनहर छवि के दास बचे हैं

अन्तस की ऋजुता क्या समझे कृष्ण! त्रिभंगी वक्र बड़ा है
नक्र अड़ा हो हठ पर तो लकुटी वाले का चक्र बड़ा है
मुश्किल यह है - करनी में कुछ आध-अधूरे रास बचे है

भूल चले हैं पल श्रीमद्भगवद्गीता की आख्या वाले
मोर-मुकुट वाले का कौशल कालसर्प की व्याख्या वाले
मुश्किल यह है ज्ञान-ग्रन्थ में कर्म नहीं, संन्यास बचे हैं

मानव का मन हरने में यूँ तो वंशी का स्वर सक्षम है
दानवता के कोलाहल में पाञ्चजन्य का घोष अलम है
मुश्किल यह है बाँसुरिया के स्वर के भी आभास बचे है

इक महान् रणनीतिकार को बस रणछोड़ू बना दिया है
दुष्टदलनकर्ता को केवल मटकी-फोड़ू बना दिया है
मुश्किल यह है ले-देकर कुछ क़िस्से अपने पास बचे है

की फेसबुक वाल से साभार

#जन्माष्टमी #कविता #हिंदी

18/08/2019

दो चाभियां
दोनों एक दूसरे के साथ बंधन में बंध चुके थे। शादी को एक महीना बीत गया था। रिश्तेदार सब अपने घरों को लौट चुके थे। ज़िन्दगी दोबारा अपने पुराने रंग में लौट रही थी। वही रोज़ कि भागदौड़, ज़िन्दगी से लड़ने कि जद्दोजहद। अपनी-अपनी नौकरी पर दोनों ने जाना शुरू कर दिया है। अपना घर द्वार छोड़कर रोटी की चाह फिर वहीं खींच लाई है जहां मिले थे। न जाने कितने युवाओं के सपनो के आशियाँ हैं ये बड़े शहर। भीड़ भरी लोकल बसें, बाहर तक खचाखच भरी लोकल ट्रेन। बिस्तर कि सलवटें निकालकर जैसे चादर कि तह बनाकर रख दी हो। कुछ ऐसी ही हो गयी है अब उनकी ज़िन्दगी, पहले कि तरह। सुहास और तान्या सुबह को सरपट दौड़ते हैं। एक दुसरे को भागते दौड़ते कुछ एहसास दे जाते हैं। ज्यादा जल्दी होती है तो लंच के साथ उन एहसासों को भी एयर टाइट टिफ़िन बॉक्स में रख लेते हैं। दोपहर की कड़क धूप में एक दुसरे के प्यार के सहारे दिन काटते हैं। तान्या जल्दी जाती है और जल्दी घर आ जाती है। सुहास देर से घर से निकलता है और देर से पहुंचता है। जाते समय घर के दरवाज़े पर सुहास ताला लगाता है। आते समय तान्या उस ताले को खोलती है। दो प्रेम पंछी जिनके दिलों पर एक जैसे एहसासों, ख्यालातों और जज़्बातों ने ताला जड़ा है, ज़िन्दगी की भागदौड़ ने दोनों को उस मोड़ पर लाकर खड़ा किया है कि उनके घर का ताला भी अब एक चाभी से नहीं खुलता। शादी को एक साल बीत चुका है। ये सिलसिला जारी है। घर का ताला लटके-लटके सोचता है कि आखिर किस दिन एक ही चाभी से सुबह शाम उसका आलिंगन होगा। कब ऐसा दिन आएगा जब ज़िन्दगी इतनी आसान हो जाये कि दो चाभियाँ एक हो जाएं, जैसे एक साल पहले ये दो दिल एक हो गये थे।

*** अभिनव 'अभिन्न'

#लघुकथा #हिंदी

16/08/2019

और फिर एक सावन
गुजर गया आज
फिर शुरू हो गया
भादो
जाने क्यों मुझे ये भादो
अच्छा नहीं लगता
याद दिलाता है
बहुत कुछ
बीच-बीच में बारिश हो जाती है
यादें टपकती हैं
दिल के आंगन में
कोई समझ नहीं सकता
जिसका आंगन वो ही समझे
सावन में जितना जिया,
भादों में उतना छोड़ दिया।
जब बरसते हैं याद के बादल
कसम से
परेशान करते हैं,
कितना, क्या बताऊं
सारी यादों के पानी को
समेट देता हूँ
और सुखा देता हूँ
आंगन दिल का।
नई यादों के बरसने के लिए
करता हूँ तैयार
दिल के आंगन को।

अब सावन जैसे दिन नहीं
जो, दिन भर होगी बारिश
ऐसी, जैसे
तुम बरस रही हो
प्यार बनकर।
कर रही हो गाल गीले।
अब जा चुका है वो महीना,
आ गया भादो की जिसमें
छूटता है सब कुछ,
सब कुछ जो दिल में बसा हो।
जो करीब हो दिल के,
वो कहां रहता है पास।
इस भादो में जाना लाज़मी था।
तूफान उठा कर चले जाते हैं
रिश्ते, इस भादो में।

इंतज़ार था आठ बरसों का
लेकिन, कहां मिले हम
सोचा था, मिलकर बाते होंगी
मैं बोलूंगा, तुम सुनोगी।
कहोगी तुम भी अपनी बातें।
इंतज़ार तो तुम्हे भी था
हमारे मिलन का।
लेकिन किसने सोचा था
भादो की ये रात
इतनी क्रूर और निष्ठुर होगी।
जो कर देगी कमजोर
मुझे भी, तुम्हे भी।

लेकिन हम मिलेंगे फिर
तुम ये याद रखना।
याद रखना,
हमने जो देखे हैं, सपने
साथ मिलकर
उन सभी को साथ मिलकर
जोड़ लेंगे फिर।
फिर बना लेंगे हम अपना
इक घरौंदा।
ये जो दूरी आ रही है बीच में
ये खत्म तो इस तरह से न होगी।
एक लंबा फासला तय करना है
जो अधूरा काम है
वो पूर्ण करके, हम मिलेंगे।

हम मिलेंगे फिर विजय की देहरी पर
वो विजय जिसकी प्रतीक्षा
है तुम्हे भी, है मुझे भी।
हम मिलेंगे इस तरह से
इस तरह से, जिस तरह फिर
दूर तुमसे कोई फिर कर न सकेगा
एक बस मृत्यु ही होगी
जो तुम्हे मुझसे अलग करेगी।

अब चलो, चलता हूँ
आ गया समय वो,
थी तुम्हे जिस क्षण की
प्रतीक्षा।
प्रतीक्षा थी, हमारे दूर होने की।
आज़ाद हो रहा हूँ, मैं,
लेकिन, बंधने जा रहा हूँ
नए रिश्तों में, इस तरह जैसे
कभी तुमसे बंधा था।
याद रखना मुझे तुम
याद रखना,
एक टुकड़ा दिल का
है अभी मिलन की आस में।
अब चलता हूँ मैं गांव नन्द के,
छोड़ रहा हूँ हाथ तेरा, साथ तेरा
लेकिन मैं हमेशा तुम्हारा ही रहूंगा।
हमेशा मुझमें जियोगी तुम,
याद रखना, परछाई हूँ मैं तेरी
परछाई जैसा श्याम,
तेरा श्याम
फिर तुझसे मिलेगा
और सारा बचपन उड़ेल देगा
जो जियूँगा नंदगांव में,
उड़ेल दूंगा, तेरी गोद में लाकर
ताकि भूल सके तू, बिछोह के
बरस जो जियेगी मेरे बिन, देवकी।

(अगर माँ मेहबूब हो सकती है, तो कृष्ण-देवकी का बिछोह ऐसा हो सकता है।)

अभिनव 'अभिन्न'

आज गीतों के राजकुमार गोपाल सिंह ' नेपाली ' की जयंती है। उन्हें आत्मिक श्रद्धांजलि देते हुए इनका एक गीत। 🌹🌹🌹🙏🏻तुम जलाकर द...
11/08/2019

आज गीतों के राजकुमार गोपाल सिंह ' नेपाली ' की जयंती है।
उन्हें आत्मिक श्रद्धांजलि देते हुए इनका एक गीत।
🌹🌹🌹🙏🏻

तुम जलाकर दिये, मुँह छुपाते रहे, जगमगाती रही कल्पना
रात जाती रही, भोर आती रही, मुसकुराती रही कामना

चाँद घूँघट घटा का उठाता रहा
द्वार घर का पवन खटखटाता रहा
पास आते हुए तुम कहीं छुप गए
गीत हमको पपीहा रटाता रहा

तुम कहीं रह गये, हम कहीं रह गए, गुनगुनाती रही वेदना
रात जाती रही, भोर आती रही, मुसकुराती रही कामना

तुम न आए, हमें ही बुलाना पड़ा
मंदिरों में सुबह-शाम जाना पड़ा
लाख बातें कहीं मूर्तियाँ चुप रहीं
बस तुम्हारे लिए सर झुकाता रहा

प्यार लेकिन वहाँ एकतरफ़ा रहा, लौट आती रही प्रार्थना
रात जाती रही, भोर आती रही, मुसकुराती रही कामना

शाम को तुम सितारे सजाते चले
रात को मुँह सुबह का दिखाते चले
पर दिया प्यार का, काँपता रह गया
तुम बुझाते चले, हम जलाते चले

दुख यही है हमें तुम रहे सामने, पर न होता रहा सामना
रात जाती रही, भोर आती रही, मुसकुराती रही कामना

#हिंदी #गीत #कविता

11/08/2019

*वेदनाओ! फिर जगो तुम* ||गीत||

वेदनाओ! फिर जगो तुम।

खो गये हैं गीत मेरे,
मौन हैं हृद-सर्जना स्वर।
सो गयीं अभिव्यंजनाएँ,
हो गया थिर भावना-सर।

कामनाओ!फिर जगो तुम।
वेदनाओ!फिर जगो तुम।

फूँक दो उर में विकल से,
पीर के ,अवसाद के स्वर।
छेड़ दो फिर तार मन के,
हो निनादित भाव-निर्झर।

कल्पनाओ! फिर जगो तुम।
वेदनाओ! फिर जगो तुम।

चेतना तनु सबल कर दो,
हो मुखर संवेदना फिर।
भाव-किसलय प्रस्फुटित हों,
पल्लवित हो सर्जना फिर।

व्यंजनाओं! फिर जगो तुम।
वेदनाओ! फिर जगो तुम ।

डॉ ब्रजेश कुमार मिश्र

#हिंदी #कविता #गीत

07/08/2019

|| कविता || स्वर्ग के सुषमा-अटल संवाद

भैया,,मैं, सुषमा पहचाना?? जिसको बेटी कहते थे
याद आया,,जिस के भाषण पर गर्वित होते रहते थे

वही,,वही,,जिसको संसद में मंत्री का सम्मान दिया
राजनीति के गुरुवर बन कर देशधर्म का ज्ञान दिया

हां,, हां भैया,,वही ,,वही,,जो हर दिन मिथक तोड़ती थी
हां,, जो स्वयं नाम के आगे शब्द 'स्वराज' जोड़ती थी

हां ,,हां बेटी याद आ गया तू संसद की सुषमा थी
मैं अक्सर सोचा करता तू बेटी थी या फिर माँ थी

ऐसा कह कर 'अटल बिहारी' मुस्काये फिर घबराए
इतनी जल्दी भारत छोड़ा? ऐसा कह कर झल्लाये

सुषमा बोल उठी,,भैया ! जो खबर आज सीने में थी
उसके बाद नहीं अब कोई रुचि मेरी जीने में थी

उसी खबर के इंतजार में आप तड़पते रहे सदा
कब ऐसा दिन आएगा,,बस यही सोचते रहे सदा

मुझे लगा ,,मैं सबसे पहले खबर आपको दूँ आकर
अपने अटल बिहारी दादा को खुश खबरी दूँ जाकर

सुनो आज कश्मीर हिन्द का पक्का अंग बन गया है
जिसके लिए आप जूझे थे,वो सत्संग बन गया है

जिसके लिए 'मुखर्जी जी' हंस कर बलिदान हो गए थे
धरती के उस स्वर्ग की खातिर जो कुर्बान हो गए थे

आज आपके दो बेटों ने वो कर्तव्य निभाया है
स्वप्न आपका था जिसको अमली जामा पहनाया है

इतना था उत्साह हृदय में जिसका झुकना मुश्किल था
बिना आपको बात बताए मेरा रुकना मुश्किल था

मुझको,,लगता है सुषमा जी फर्ज निभाने चली गयीं
अपने 'गुरुवर' को जल्दी खुश खबर सुनाने चली गयीं

सुषमा जी को श्रद्धांजलि। 🙏🙏🙏 विद्या भारती के मेरठ प्रान्त संगठन मंत्री श्री तपन कुमार जी के फेसबुक वॉल से साभार।

#कविता #हिंदी #सुषमा_स्वराज

06/08/2019

।। हम एक हैं ।।
आवाज दो हम एक हैं
थक गए थे
70 साल से आवाज देते-देते।
आज तीन सौ सत्तर
क्या हटी
गूंजे जा रही है
कश्मीर घाटी
हम एक हैं !
सारे देश में
भर रही है अनुगूंज
हम एक हैं! हम एक हैं!!
गर्व से लहरा कर
तिरंगा दे रहा है आवाज
हम एक हैं! हम एक हैं !!
हां ! हम सब एक हैं!!!
रेनू सिंह चंद्रा
#हिन्दी कविता

05/08/2019

।। सन्नाटे ।।

केसर की क्यारी में कितने सन्नाटे थे
घाटी की किस्मत में घाटे ही घाटे थे

फूलों की बस्ती में मन थे मासूम बहुत
राजा की फितरत पर केवल खर्राटे थे

दहशत थी, पत्थर थे, आंसू थे, आहें थीं
गुरबत के हिस्से में नून , तेल , आटे थे

बदला भूगोल तो फिर एक आस जगी
बीते दिन,उफ़ कितनी मुश्किल से काटे थे
- अपर्णा खरे
#कश्मीर #गजल #हिन्दी

05/08/2019

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3 - रचना के अंत में अपना नाम अवश्य लिखें। यदि रचना मौलिक नहीं है तो संबंधित रचनाकार के नाम का उल्लेख अवश्य करें।
4 - रचना के अंत में # का प्रयोग अवश्य करें। #हिंदी का प्रयोग सभी पोस्ट के अंत में करें। इसके अलावा जिस विधा को लिखा गया है उसको # में हिंदी तथा अंग्रेजी दोनों भाषाओँ में लिखें। जैसे -
#शायरी #ग़ज़ल #हिन्दीकहानी आदि।
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04/08/2019

किसकी कहें, हालात से अपने कौन यहाँ बेज़ार नहीं
ग़म से परेशाँ सब मिलते हैं, पर कोई गमख़्वार नहीं

या तो मंजिल दूर हो गयी, या फिर रस्ते मुश्किल हैं
क्यूं मेरे कदमों में अब वो पहली सी रफ़्तार नहीं

मह्ज हाकिमों की दुनिया ही उनकी ख़ातिर ख़बरें हैं
मज़लूमों के हक में लिखने वाले अब अख़बार नहीं

शह्रों की तहज़ीब पे जब भी तंज करूँ तो लगता है
गाँवों में भी अब पहले सा अपनापन और प्यार नहीं

बेच चुका हूँ, नज़्में गजलें महफिल महफिल गा गाकर
खुद मेरे हिस्से में अब तो मेरे ही अशआर नहीं

कहने को मैं रंग रूप में उसके जैसा लगता हूँ
पर मेरे लहजे में उस जैसा तर्ज़े -इज्हार नहीं

मेरे मुँह पर मेरे जैसी उसके मुँह पर उस जैसी
रंग बदलती इस दुनियां में सब कुछ है किरदार नहीं
*** पवन कुमार

बेज़ार = अप्रसन्न, गमख़्वार = गम खाने वाला, तर्जे-इजहार = व्यक्त करने का ढंग

#ग़ज़ल #शायरी

04/08/2019

।। गज़ल ।।
मेरे परवाज से ऊंची हैं उड़ानें तेरी
तंज कसती हैं यही, खामोश निगाहें तेरी

कल रोशन थे मोहब्बत के ख्वाबगाहों से
खंडहर आज भी सुनते हैं वो आहें तेरी

उसकी मुसकान से अंदाज नहीं लगता
इसके पीछे हैं छिपी कितनी कराहें तेरी

जब भी मानी है तेरी बात तो बस हारी हूँ
बाज आई कि अजब हैं ये सलाहें तेरी

ये कोई अच्छा शगुन सा लगता है उमा
अब मेरी राहों से मिलने को हैं राहें तेरी

- उमा (अपर्णा खरे)
#ग़ज़ल #शायरी
Aparna Khare

01/08/2019

फितरत

बर्फ से सफ़ेद होते पहाड़
चांदी के कटोरे
जिनको लगते हों
उनको लगें
मुझे तो
विधवा स्त्री से लगते हैं।

गुलमर्ग या पत्नीटाप में
एक-दूसरे पर
बर्फ के गोले मारते
जोड़े नहीं जानते
बर्फ की फितरत।

काश जान पाते
कि
इसके नीचे
हर साल दफ़न होते हैं
कुंवारे सपने
सधवा उम्मीदें
उत्तप्त उन्माद
पराजित अवसाद
यह लील जाती है
जाने कितने
रिश्ते .....
और अंत में
जब पिघलती है
तो पता ही नहीं चलता
कि
ग्लेशियरों के रूप में
जो बह रहा है
वह इसका
अवसाद है
या
उन्माद !
- रवीन्द्र

27/07/2019

नमस्ते

'तुम पागल हो।'
'शायद।'
' शायद नहीं, यकीनन।'
' तो।'
' तो, भुगतो।'
' भुगत लूँगा।'
' प्यार किया ?'
' रब जाने।'
' खता खाई।'
' न्ना।'
' छोड़ गयी ?'
' छोड़ आया।'
' कहाँ ?'
' मुकाम पर।'
' मुकाम बोले तो ?'
' पिया का घर।'
' पिया ?'
' पति।'
' पति ?'
' पिया।'
' पिया पति है ?'
' है।'
' पति पिया है ?'
' है।'
' तुम क्या हो ?'
' पता नहीं ?'
' --- या हिम्मत नहीं ?'
' हिम्मत ?'
' हाँ हिम्मत।'
' किस बात की ?'
' आइना देखने की ।'
' आईने में क्या है ?'
' सच।'
' सच क्या है ?'
' कुछ नहीं ?'
' कुछ नहीं ?'
' हाँ, तुम उसके कुछ भी नहीं।'
' मैंने कब कहा ?'
' सोचा तो !'
' सोचा तो यह भी कि मैं ऐश के साथ सोया हूँ।'
' गुड !'
' व्हाट गुड ?'
' सोचते बढिया हो।'
' आदमी भी बढिया हूँ।'
' फ़िर ?'
' क्या फ़िर ?'
' फ़िर दिक्कत क्या है ?'
' तुम्हें नहीं पता ?'
' है न।'
' फ़िर ?'
' क्या फ़िर ?'
' तेरा सिर।'
' ---- अच्छा एक बात बताओ।'
' क्या ?'
' तुम उससे मिले.... ।'
' हाँ.... ।'
' टोको मत सुनते जाओ।'
' ओके।'
' ... तुमने उसे देखा---देखते ही पसंद आ गयी---फिट करने में जुट गये---- '
' कौन सी भाषा बोल रही हो .... ?'
' बात पर ध्यान दो, भाषा पर नहीं।'
' ठीक है सुनाओ।'
' --- फिट कर भी लिया। लेकिन इस चक्कर में एक गडबड हो गयी ?'
' क्या ?'
' तुम उस से सचमुच मोहब्बत करने लगे!'
' ऐसा ?'
' हाँ, ऐसा।'
' फ़िर ?'
' फ़िर तुम उलझ गये। तुम्हारे हाथ कारून का खजाना लग गया। ऐसी कच्ची मिटटी, जिसे जैसे चाहो गढ़ सको। तुम बौरा गये।'
' फ़िर ?'
' एक पहलू में मोहब्बत थी, दूसरे में स्नेह। इन दोनों भावों के बीच का जो रिश्ता होता है वह तुम दोनों के बीच पनप चुका था। स्नेह सृजन का इतिहास रचना चाहता था...... मोहब्बत प्यार के हिंडोले झूलने को बेताब थी। इस दुविधा में तुम कन्फ्यूज हो गये। तुम ठहरे यूज एंड थ्रो के आदी। बहते पानी की तरह कभी इस घाट तो कभी उस घाट। है न ?'

' शायद....'

' उसके साथ भी सब नया-नया सा हो रहा था। अब तक जो भी मिले प्रेम के ही पुजारी मिले। ये पहला ऐसा शख्स था जो बातों में दिलचस्पी लेता था। जो उसके किस्सों से ऊबता नहीं था, बल्कि उन्हें बडे कौतुक से सुनता था। जो बडी दिलचस्पी से उसके प्रेमियों का विश्लेषण करता । जो उसकी अल्हड हरकतों पर ठहाके लगाता था। दूसरों से बिल्कुल अलग सा कोई लगे तो उससे एक अजाना सा अपनापा हो ही जाता है। तुम्हारे केस में भी यही हुआ।'

' तो ?'

' फ़िर तुम भी उसे अपने किस्से सुनाने लगे। अचानक उसे लगा कि तुम उसकी बातों में तो दिलचस्पी लेते हो उसमें नहीं। कोई भी औरत , खास तौर से जवान होती लडकी यह बर्दाश्त नहीं कर सकती कि उसकी सोहबत में रहने वाला मर्द उसमें दिलचस्पी न ले। यह तो तौहीन हो गयी। इधर तुम बडी खूबी से सुबी के किस्से सुनाने लगे। उसे बताते कि सुबी कैसे तुम्हारी साज -संवार करती है। उसके लिए यह सब थ्रिल था। सुबी को चैलेन्ज की तरह ले लिया। यही तो तुम चाहते थे। शिकार अपनी मर्जी से जाल में फंस गया।'

'----- ऐसा तो नहीं था।'

' ऐसा ही था। तुम उसे बताते कि सुबी ऐसा करती है----वह उस काम को ठीक वैसे ही बल्कि उससे भी बेहतर ढंग से करती। तुम उसके प्रेमियों की परवाह करते तो वह निहाल हो जाती। सोचती कैसा अद्भुत आदमी है जो उसके दोस्तों से चिढ़ने के बजाय उनकी फ़िक्र करता है।'

' मैं इरादतन ऐसा करता था ?'

' बिलकुल ! लेकिन तुम उसके ज़ज्बे से हार गये। तुम्हें मोहब्बत हो गयी। फ़िर भी इज़हार नहीं किया। उसे भी मोहब्बत हो गयी। उसने भी इज़हार नहीं किया। एक दिन तुम्हें ना जाने क्या सूझी, उसके लिए अंगिया खरीदने निकल पडे। पूरा बाज़ार छान मारा। मन की अंगिया न मिली। तीन दिन तक यही करते रहे। आख़िर वासंती रंग की स्ट्रिप्लेस, सतरंगी स्पोर्ट्स ब्रा और दो श्वेत चोलियाँ लेकर उससे मिलने पहुँच गये। याद तो है न ? '

' ये भी कोई भूलने वाली बात है ?'

' तुम देर तक बैठे। रोज की तरह उससे दिन भर के किस्से सुने। ढेरों बातें कीं दुनिया भर कीं। जब चलने की बारी आई तो हाथ का पैकेट उसे थमाया। उसकी सवालिया निगाहों के जवाब में तुमने केवल इतना कहा कि रूम में जाकर ख़ुद ही देख लेना। फ़िर रात में तुम्हारे पास उसका फोन आया। तुम्हे लगा कि वो नाराजगी ज़ाहिर करेगी। लेकिन उसने तो जिक्र तक नहीं किया। तुमसे रहा नहीं गया। पूछ ही बैठे- ' कैसी लगीं?' जवाब मिला -' अति सुंदर' उसने फोन रख दिया। तुम रात भर हवा में उड़ते रहे। आने वाले दिनों में लेन-देन का सिलसिला बढ़ता ही गया। इसी के साथ बढ़ती गयीं तुम दोनों की नजदीकियां। एम् आई राइट ?'

' याह, राइट।'

' साल गुजरते गये। तुम दोनों एक-दूसरे के आदी हो गये। अचानक तुम भारी मुसीबत में फंस गये। नौकरी गयी। जमीन गयी। पैसों की भारी तंगी। ऐसे कठिन समय किसी देवी की तरह उसने तुम्हें सहारा दिया। सोच कर देखो वो न होती तो क्या होता। '

' वाकई। '

' अपने सारे उसूलों को ताक पर रख दिया उसने। केवल एक ही धुन कि किसी भी तरह तुम्हें उदास या परेशान न होने दे। उसके सारे अपने उससे खफा हो गये। तब तुम्हारी खुशी की खातिर किसी की भी तो परवाह नहीं की। अपना हर फ़ैसला तुम पर छोड़ दिया। बारह साल में तो घूरे के भी दिन फ़िर जाते हैं, सो तुम्हारे भी फिरे। तुम कामयाब होते गये और वह दिन-ब-दिन अकेली। एक ही सपना था वह भी पूरा नहीं हुआ। मुकम्मल काबिलियत के बावजूद। जबकि तुम कोशिश करते तो शायद उसे उसके वाजिब मुकाम तक पहुंचा सकते थे। यह बात उसे हमेशा सालती रही। '

' सही बात है।'

' अचानक----हाँ---बिलकुल अचानक----हातिमताई बनने का एक मौका तुम्हारे हाथ लग गया। तुमने बिना भला-बुरा सोचे ----बिना कोई जाँच-पड़ताल किए , केवल दुनिया की निगाहों में हीरो बनने के लिए उसे दांव पर लगा दिया। तुम बाज़ी तो जीत गये लेकिन उसे हार गये। उसने तुम्हारी इस गलीज़ हरकत को भी सर-माथे लिया। तन-मन से अपने नये मालिकों को खुश करने में जुट गयी। तुम महीनों जीत के नशे में चूर रहे। नशा उतरा तो तिलमिला उठे। पगला गये। हारी हुई शय पर हक जताने की कोशिश की तो मुंह की खाई। छि, कितने गंदे हो तुम !'

' क्या मैं उसे प्यार नहीं करता ?'

' नो।'

' उसका भला नहीं चाहता।'

' नहीं।'

' ये झूठ है।'

' यही सच है।'

' प्लीज्ज्ज़, मुझे समझने की कोशिश करो। मैं उसका बुरा थोड़े ही चाहता हूँ। मैं क्या उसका दुश्मन हूँ ?'

' हाँ।'

' क्या हाँ ?'

' तुम उसके दुश्मन हो।'

' कैसे ?'

' कैसे !'

' हाँ कैसे ?'

' बात को यूँ समझो----एक लडकी है।'

' ठीक।'

' उसकी शादी हो गयी।'

' हो गयी।'

' अब उसका एक पति भी है।'

' वो भी हुआ।'

' दोनों मिलकर पति-पत्नी हुए। '

' हो गये, तो ?'

' पति-पत्नी हैं तो संतान भी होगी।'

' तो ?'

' लडकी माँ बनेगी?'

' क्यों नहीं बनेगी ?'

' तो अब नया त्रिकोण हुआ- पति, पत्नी और मानस।'

' मानस कौन ?'

' आने वाला मेहमान।'

' नाम भी तय हो गया ?'

' हाँ।'

' तो ?'

' मियां-बीवी और आने वाला शिशु। तीनों एक-दूसरे को समझने, सहेजने और महसूसने में सक्षम। इस मुकम्मल फ्रेम में तुम कहीं फिट ही नहीं होते।'

' ऐसा ?'

' बिलकुल, लेकिन तुम हो कि सब कुछ समझकर भी कुछ नहीं समझना चाहते। उसका जीना मुहाल कर रखा है। अभी भी अपनी मर्जी थोपना चाहते हो। हारी हुई सल्तनत पर हुकूमत नहीं चलती दोस्त ! अरे भाई , उसे चैन से जीने क्यों नहीं देते ? वह अपनी दुनिया में खुश है, उसे खुश रहने क्यों नहीं देते ? सोचो जरा, अगर तुम अपरिहार्य होते तो इतने दिन तुम्हारे बिना रह सकती थी ?--- नहीं ना--- ? फ़िर ? ------इस सच को स्वीकार कर लो माय डिअर -----चैप्टर हैज बीन क्लोज्ड।'

'समझ गया?'

' क्या समझ गये ?'

' चैप्टर हैज बीन क्लोज्ड।'

' अब ?'

' अब क्या, नमस्ते ! ----चलता हूँ !'

' आते रहना।'

' ज़रूर।'

------------ ' सुनो---, ये इलायची का पैकेट तो लेते जाओ।'

' अब इसकी ज़रू़रत नहीं ---- जिसने दी थीं वही नहीं रही तो इनका क्या करूंगा ? किसी सुपात्र को दे देना------'

- रवींन्द्र

27/07/2019
26/07/2019

मोहब्बत !
कब सही , कब गलत
कौन जाने ?
पहली मोहब्बत ने कहा -
मुझे जियो
महसूस करो
उत्सव मनाओ
पर
मुझे जिन्दगी मत बनाओ
मैं टिकूंगी नहीं
तुम बे - मौत मर जाओगे ।
वह चली गयी मैं जिन्दा रहा।

दूसरी मोहब्बत ने कहा -
मैं जादूगरनी हूँ
अबरा का डबरा करूंगी
तुम्हे हवा में
आसमान में
जमीन पर नचाऊँगी
दिन में तारे दिखाऊंगी
और ---
और उस दुनिया की सैर कराउंगी
जिसे तुमने देखा नहीं
जाना नहीं
जिया नहीं
तुम्हें मुझ से सब मिलेगा
बस
प्रेम मत माँगना
यह हम जैसी लड़कियों के
नसीब में होता ही नहीं।
वह भी नहीं रुकी ।
मैं तब भी जिन्दा रहा।

साल बीतते रहे
मोहब्बतें आती रहीं
मोहब्बतें जाती रहीं
मोहब्बतें भी बीतती रहीं।
इन मोहब्बतों ने मुझे
रुलाया
हंसाया
उदास किया
बेताब किया
गुस्ताख भी किया
कभी खजुराहो रचा
कभी पंचवटी ।
हमने
कभी देह के भूगोल बांचे
तो
कभी एटलस में खोजते रहे
खोयी हुई देहों के
अदृश्य टापू ।
समय गुजरता रहा
और ---
जिन्दगी भी।
एक दिन........
खिड़की पर कबूतर नहीं बोले
पडोसी का कुत्ता नहीं भौंका
पत्नी ने बाई को चोर नहीं कहा
बहन ने अख़बार लाकर नहीं दिया
किसी ने उठने को नहीं कहा
तो
मेरा भी मन नहीं हुआ
कि
बिस्तर से उठूँ... और
मोहब्बत करूँ।
- रवीन्द्र

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