05/05/2024
सबके राम
आज भारत ही नहीं अपितु वैश्विक परिदृश्य में भी राम विषय प्रासंगिक हो गया है । आधुनिक मीडिया की भाषा में कहें तो राम वायरल हो गए हैं। राम केवल हिंदू संस्कृति की अस्मिता ही नहीं वरन् चारों युगों में, समस्त हृदय में आत्मसात होने वाले प्रबुद्ध नायक हैं। " एक राम दशरथ का बेटा । एक राम घट घट में लेटा।।"
भक्ति की शाखा में सगुण भक्ति हो या निर्गुण भक्ति ,राम समस्त संतों तथा कवियों की भाषा और बानी में विराजमान हैं। दशरथनंदन को जब स्वयंप्रभा से परिपूर्ण यह नाम दिया गया तो यह नाम वैयक्तिक ना होकर जातिगत हो गया। ऐसे ही तुलसी बाबा ने कलियुग में राम के नाम को आधार नहीं माना बल्कि अपने सम्यक दृष्टि से उन्होंने राम का वह चरित्र उकेरा जो व्यक्ति केंद्रित न होकर समष्टि केंद्रित है । राम सबके हैं । जन्म से पूर्व राम की प्रतीक्षा देवगण कर रहे हैं । पुत्र प्राप्ति के लिए दैदीप्य रघुकुलवंश के शिरोमणि राजा दशरथ पटरानियों समेत रामजन्म के लिए व्याकुल हैं। 'भए प्रकट कृपाला दीन दयाला कौशल्या हितकारी ।' यह कौशल्या हितकारी ही सबको भवसागर पार करानेवाले धीर गंभीर नायक हैं। बाल्यावस्था में भाईयों संग बालक्रीड़ा से तो सबको आमोद प्रदान करते ही हैं लेकिन संस्कार और मर्यादा की गंभीरता गुरुकुल में जाने तक स्वत:स्फूर्त हो जाती है , यही राम को सबका राम बनाती है। मुगल काल में जब हिंदू धर्म संक्रमण की विभीषिका से जूझ रहा था तत्कालीन समय में ही भक्तिकाल के स्वर्णिम युग का भी सूत्रपात हो रहा था और तुलसी बाबा के रामचरितमानस के नायक राम घर-घर में स्थापित होते जा रहे थे। राम हमारे नायक ही नहीं बनकर उभरे राम ने भारतीय जनमानस के हृदय में संस्कारों का बीजवपन किया । शिष्य का गुरू से, भाई का भाई से, पुत्र का पिता से, पुत्र का माता से, राजकुमार का प्रजा से, मित्र का मित्र से , पति का पत्नी से , मालिक का सेवक से क्या मधुर संबंध होना चाहिए ? राम इन समस्त संबंधों को मुस्कुराकर सहजता से निभानेवाले व्यक्ति हैं और इनकी यही विशेषता इन्हें पुरुषोत्तम ही नहीं मर्यादा पुरुषोत्तम बनाती है। भाई के निष्कंटक राज्य के लिए स्वयं का वनवास स्वीकार कर लेना और पिता के वचनों की रक्षा के लिए माता की कठोर आज्ञा को सहर्ष शिरोधार्य करना वह भी चेहरे पर मुस्कुराहट के साथ ऐसी स्थिति में देवताओं का भी धैर्य जवाब दे सकता है लेकिन राम अपने व्रत पर अटल हैं। राम का यह गुण ही उन्हें सबका राम बना देता है। राम किसे नहीं चाहिए माता सीता और लक्ष्मण ने सविनय निवेदन से राम का संग पा लिया, भरत और अयोध्या का संपूर्ण जनमानस वही संग पाने के लिए राम को मनाने के लिए निकल पड़ा। राम को कोई क्रोध नहीं है, हंसते मुस्कुराते कैसे अपने व्रत पर अडिग रहा जा सकता है कोई राम से सीखे और यह सीख ही कठिन परिस्थिति में उचित निर्णय की कला सिखाती है। राम द्वारा संवाहित आदर्श गुण ही भरत को राम के बाद एक प्रबुद्ध नायक बनाती है । राम भले ही जंगल में विचरण करते रहे लेकिन राम की खड़ाऊं अयोध्या का सिंहासन सुशोभित कर रही है और तपोधारी भरत राम के यश की मर्यादा निभा रहे हैं । जहां शासन और सत्ता के लिए आज लोग छलछद्म और वैमनस्य से किसी तरह सिंहासन पाना चाहते हैं वहीं राम सोने की लंका को जीतकर नीतिपरायण विभीषण को इसका स्वामित्व दे देते हैं जो इस बात का परिचायक है कि राम की सोच विस्तारवादी नहीं मानवतावादी है । रघुनंदन ने अपने 14 वर्ष के वनवास में ऋषियों के ज्ञान का श्रवणपान किया है। वन में राम की जरूरत सबको है ऋषियों को अपने यज्ञकुंड की रक्षा करवानी है, दैत्यदल को मोक्ष पाना है, भीलनी भक्तिन शबरी को राम की प्रतीक्षा है, सरकटा दैत्य कबंध को अपने इच्छा अनुसार राम के हाथों ही अंतिम संस्कार करवाना है। सुग्रीव को अपना खोया हुआ राज्य और पत्नी चाहिए जो राम की सहायता के बिना संभव ही नहीं है। दूरदर्शिता से देखा जाए तो राम जंगल में भी एक राजा की ही भांति कार्य कर रहे हैं, एक ऐसा राजा जिनका सिंहासन स्वर्णजटित ना हो करके चट्टान की शिला है राम के संकल्प की तरह । राम का मुकुट भले ही स्वर्ण का ना हो लेकिन जटाजूटधारी राम जंगल में ही वानर और भालुओं के माध्यम से दलितों, वंचितों और शोषितों की सेना इकट्ठी करके दशानन रावण का दर्प चूर-चूर कर देते हैं। राम के बृहद स्वरूप और चरित्र को शब्दों में नहीं बांधा जा सकता । भारत देश भावनाओं का देश है। यहां की जनता को क्रोध बल या पूंजी से नहीं जीता जा सकता अगर भारत की जनता के हृदय में स्थान बनाना है तो भावनाओं का पुल बनाना ही होगा राम का चरित्र हमें यही सीख देता है। उत्तर भारत के अधिकांश घरों में जहां कुछ बुजुर्ग भले ही अशिक्षित रहे हों लेकिन रामचरितमानस की चौपाइयां उनके कंठ में मां सरस्वती की तरह विराजमान हैं और घर-घर में संस्कारों की सीख देते हुए उदाहरण के तौर पर रामचरितमानस की चौपाइयां आज भी वार्तालाप में बहुत प्रचलित हैं। जिस घर में बच्चों के मानसपटल पर बचपन से ही रामचरितमानस के संस्कारों की शिक्षा संवाहित की जा रही है उनका भविष्य स्वर्णिम है उन्हें नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाने के लिए किसी विश्वविद्यालय में नहीं जाना होगा वरन संपूर्ण संस्थान ही वह घर है और घर के बुजुर्ग ही उसके प्रोफेसर। राम हमारे देवता हैं, राम ही हमारे राजा और राम ही हमारे गुरु हैं। सगुण रूप से उन्हीं की जन्मस्थली में उन्हीं की मूर्ति स्थापना को लेकर उनकी जो उपेक्षा हुई थी आज हम सबके राम अयोध्या में विराजमान हो रहे हैं। पूरे विश्व में उत्सव का माहौल है और ऐसा लग रहा है कि जैसे फिर से राम किसी वनवास से लौटे हों,ऐसा लग रहा है 22 जनवरी को अयोध्या मैं राम का राज्याभिषेक हुआ ,ऐसा लग रहा है जैसे हम कलियुग से सीधे त्रेता का दर्शन कर रहे हैं हिंदू जनमानस के लिए इससे बड़ी दिवाली कुछ भी नहीं हो सकती । हम सबके राम का स्वागत है अयोध्या में।
अभिनव पाण्डेय
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