मौ आसिफ रांघड धौलड़ी

मौ आसिफ रांघड धौलड़ी भाईचारा जिन्दाबाद

मेरे प्यारे बड़े भाई कुंवर नादिर सहाबआपकों योमै पैदाइश की दिली मुबारकबाद💐💐💐अल्लाह पाक आपकी उम्र मे बरकत दे आपको खूब तरक्क...
03/01/2024

मेरे प्यारे बड़े भाई कुंवर नादिर सहाब
आपकों योमै पैदाइश की दिली मुबारकबाद💐💐💐
अल्लाह पाक आपकी उम्र मे बरकत दे आपको खूब तरक्की दे 🎂🎂
Kunwar Nadir Shah

 #यौम_ए_पैदाइश  #स्वतन्त्रता_सेनानीकैप्टेन अब्बास अलीमहान स्वतंत्रता सेनानी, तत्कालीन अध्यक्ष जनता पार्टी, तत्कालीन विधा...
03/01/2024

#यौम_ए_पैदाइश
#स्वतन्त्रता_सेनानी
कैप्टेन अब्बास अली

महान स्वतंत्रता सेनानी, तत्कालीन अध्यक्ष जनता पार्टी, तत्कालीन विधायक, कैप्टेन आज़ाद हिंद फौज व आज़ाद भारत की पहली अंजुमन ए राजपूतानान ए हिन्द के कायम करदा "कैप्टेन अब्बास अली (सोलंकी)" आज ही के दिन 3 जनवरी 1920 को खुर्जा के गाँव कलंदरगढ़ी में पैदा हुए थे।

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा

अंडमान की सेलुलर जेल पर तिरंगा फहराने वाले आज़ाद हिंद फौज के कैप्टन अब्बास अली, जिन्हें अंग्रेजी फ़ौज से बग़ावत करने और नेता जी सुभाष चंद्र बोस के आह्वाहन पर स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने पर सज़ा ए मौत सुना दी गयी।
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आज हम बात कर रहे हैं आज़ाद हिंद फौज के कैप्टन, महान स्वतंत्रता सेनानी, समाजवादी आंदोलन के पुरोधा कैप्टेन अब्बास अली की जो आज़ादी के बाद भी 50 बार जेल गए।

आजाद हिंद फौज के कैप्टन रहे अब्बास अली का जन्म 3 जनवरी 1920 को बुलंदशहर जिले के कलंदरगढ़ी गाँव में एक मुस्लिम राजपूत परिवार में हुआ था।

बचपन से ही वे भगत सिंह की क्रांतिकारी विचारधारा से प्रभावित थे और जब वे हाई स्कूल में पढ़ते थे, उसी समय अपने दोस्तों के साथ भगत सिंह द्वारा बनाई गई नौजवान भारत सभा से भी जुड़े थे।

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पढ़ाई के दौरान उनकी मुलाकात कुवंर अशरफ मुहम्मद से हुई और वे ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन से भी जुड़े।

1939 में वे ब्रिटिश सेना से जुड़े और द्वितीय विश्वयुद्ध (1939-45) के दौरान यूनाइटेड इंडिया समेत दक्षिण पूर्व एशिया में कई जगहों पर तैनात किए गए।

मार्च 1931 में जब सरदार भगत सिंह को अंग्रेजों ने लाहौर में फांसी दे दी तो पूरे देश में उसकी राजनीतिक धमक महसूस की गयी थी। बालक अब्बास अली उन दिनों खुर्जा में पढ़ते थे। खुर्जा में भी सरदार भगत सिंह की फांसी पर लोगों ने अपने गम-ओ-गुस्से का इज़हार किया था और जुलूस निकाला था। 9 साल के अब्बास अली उस जुलूस में शामिल हो गए। और मन में मुल्क को आज़ाद कराने का सपना पाल लिया। बाद में वे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ने गए जहां उनकी मुलाक़ात कम्युनिस्ट नेताओं से हुयी। उस दौर के मशहूर कम्युनिस्ट नेता कुंवर मोहम्मद अशरफ से मुलाकात हुयी। वहीं पर साम्राज्यवाद के विरोध की ट्रेनिंग ली और कुंवर साहेब की प्रेरणा से 1939 में फौज में भर्ती हो गए।

1945 में जब सुभाष चंद्र बोस ने विद्रोह के लिए बुलाया तो उन्होंने ब्रिटिश सेना छोड़ दी और भारतीय राष्ट्रीय सेना आई॰एन॰ए॰ या "आज़ाद हिंद फौज" में शामिल हो गए लेकिन बाद में उन्हें गिरफ्ताकर लिया गया, अदालत-मार्शल और मौत की सजा सुनाई गई। जब भारत ने 1947 में आजादी हासिल की तो उन्हें भारत सरकार द्वारा रिहा कर दिया गया था। वह पूरे जीवन में 50 से अधिक बार जेल गए थे और जब इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगाया था तब वे 19 महीनों तक जेल में रहे थे।

अब्बास अली जीवन भर इंसानी बुलंदी और सामाजिक बराबरी की लडाई लड़ते रहे। उनका अपना परिवार राजपूतों की उस परम्परा से ताल्लुक रखता था जिसकी जड़ें अयोध्या के राजा रामचंद्र तक जाती थीं। उनका पालन पोषण सामन्ती माहौल में हुआ था। उनके अपने गाँव कलंदर गढ़ी में भी बहुत अधिक ज़मींदारी थी लेकिन उन्होंने समाजवाद की लड़ाई का मन बनाया और आखीर तक उसी मुहिम में शामिल रहे। लेकिन उनकी राजनीतिक ज़िंदगी में सामन्ती संस्कारों के लिए कोई जगह नहीं थी।

कप्तान साहेब में राजनीतिक टैलेंट के पहचान की लाजवाब क्षमता थी। एक ही उदाहरण काफी होगा। 1967 में कप्तान साहेब अपनी पार्टी की उत्तर प्रदेश इकाई के सेक्रेटरी थे। उन दिनों सेक्रेटरी के पास ही पार्टी के महत्वपूर्ण फैसले लेने की शक्ति होती थी। आजकल की तरह राजनीतिक पार्टियों में सैकड़ों की तादाद में सेक्रेटरी नहीं होते थे। टिकट देने का काम भी सेक्रेटरी को ही करना होता था। 1967 में इटावा में मुलायम सिंह यादव नाम के एक मामूली कार्यकर्ता को उन्होंने बरगद निशान वाली संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी ( संसोपा ) का टिकट दे दिया और अपने साथी राजनेताओं को बताया कि इस लड़के में वह चिंगारी है जो समाजवाद को आगे ले जायेगी। सभी जानते हैं कि कांग्रेस और बीजेपी के सभी हमलों में मुलायम सिंह यादव लड़ते रहे। कहीं हारे तो दूसरी जगह जीते लेकिन समाजवादी झंडे को हमेशा ऊंचा रखा।

कैप्टन अब्बास अली की संघर्ष गाथा

-सुभाष बाबू की आजाद हिंद फौज में कैप्टन के पद पर रहे। 1944 में रंगून से अराफान कूच किया और अराफान की लड़ाई में हिस्सा लिया।

- अराफान में ही 6 महीने ब्रिटिश आर्मी को बंधक बनाए रखा लेकिन जापान के पास हवाई आक्रमण नहीं था। इसका फौज को नुकसान उठाना पड़ा।

- अंडमान की सेल्युलर जेल में तिरंगा झंडा फहराने वालों में से एक और स्वतंत्रता की घोषणा की।

- 1945 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बाद गिरफ्तार किए गए। मुकदमे में फांसी की सजा सुनाई गई। मुलतान के किले में बंद शहादत का इंतजार कर रहे थे कि नेहरू-माउंटबेटन समझौता हुआ और फांसी टल गई।

11 अक्टूबर 2014 को कप्तान साहब इस दुनिया को अलविदा कह गए।

02/01/2024

माशाअल्लाह बहुत ही शानदार मुस्लिम राजपूत समाज का पेज़ हैं
मुस्लिम राजपूत समाज कों एक सूत्र मैं पिरोने का काम करता हैं मुस्लिम राजपूत समाज पड़ने वाले बच्चों के भविष्य कों लेकर बहुत चिंतत रहेता हैं

28/12/2023

ेरा_शुक्रिया_तुने_सिखा_दिया❤️

I have reached 700 followers! Thank you for your continued support. I could not have done it without each of you. 🙏🤗🎉
31/03/2023

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