Dr Ravindra Pratap Rana

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21/04/2024

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*कैराना में सपा मजबूत, इकरा हसन दे रहीं कड़ी टक्कर:* सहारनपुर में पोलराइजेशन हुआ तो भाजपा को फायदा; मुजफ्फरनगर में भाजपा-...
11/04/2024

*कैराना में सपा मजबूत, इकरा हसन दे रहीं कड़ी टक्कर:* सहारनपुर में पोलराइजेशन हुआ तो भाजपा को फायदा; मुजफ्फरनगर में भाजपा-सपा में फाइट

सहारनपुर में पोलराइजेशन हुआ तो भाजपा को...

आज आईआईएमटी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ मीडिया फ़िल्म एंड टेलीविज़न स्टडीज़ में वरिष्ठ पत्रकार श्री रवि शर्मा जी छात्र-छा...
04/04/2024

आज आईआईएमटी विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ़ मीडिया फ़िल्म एंड टेलीविज़न स्टडीज़ में वरिष्ठ पत्रकार श्री रवि शर्मा जी छात्र-छान्राओं से रूबरू हुए. उन्होंने पत्रकारिता में करियर की संभावनाओं पर बात की. मीडिया मार्केट की डिमांड के हिसाब से ख़ुद को बदलने, ढालने और प्रशिक्षित होने के बारे में बताया. स्मार्ट वर्क और हार्ड वर्क के बारे में बताया. पर्सनालिटी डेवलपमेंट के टिप्स दिए. ड्रेसिंग सेंस की अहमियत बताई और ख़ुद को 95 फ़ीसदी मीडियाकर्मियों से अलग और बेहतर बनाने का फार्मूला दिया.

आज मेरठ में होने वाली पीएम मोदी की रैली का नाम भारत रत्न चौधरी चरण सिंह गौरव समारोह रखा गया है. मोदी के साथ मंच पर चौधरी...
31/03/2024

आज मेरठ में होने वाली पीएम मोदी की रैली का नाम भारत रत्न चौधरी चरण सिंह गौरव समारोह रखा गया है. मोदी के साथ मंच पर चौधरी जयंत भी होंगे.

15/03/2024

पूर्व राज्यमंत्री डॉ. कुलदीप उज्ज्वल जी के भाई वेददीप उज्जवल जी का अचानक ह्र्दयगति रुकने से देहान्त हो गया, मात्र 42 वर्ष की आयु थी, अडानी विलमार लिमिटेड में चीफ़ इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे। HBTI कानपुर से बीटैक वेददीप जी बेहद संस्कारी, आध्यात्मिक और सुशील स्वभाव के धनी थे।
आज प्रातः 9 बजे उनके पैतृक गाँव मवीकलां में अंतिम संस्कार होगा।

09/03/2024

घर न परिवार, बैंक खाते में सिर्फ तीन हजार, ऐसे हैं बाग़पत से जयंत चौधरी के प्रत्याशी डॉ. राजकुमार सांगवान. Full video you tube चैनल पर देखें. लिंक कमेंट बॉक्स में.

07/03/2024

*पूर्व डीजीपी राजकुमार विश्वकर्मा बने प्रदेश के नये मुख्य सूचना आयुक्त*

*- यूपी सूचना आयोग में 10 आयुक्तों को भी किया गया नियुक्त*

*लखनऊ, 7 मार्च।* मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में गठित चयन समिति की सिफारिश पर राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने गुरुवार को उत्तर प्रदेश सूचना आयोग के लिए मुख्य सूचना आयुक्त और 10 सूचना आयुक्तों की नियुक्ति की है। इसमें राज्य के पूर्व डीजीपी राजकुमार विश्वकर्मा को उत्तर प्रदेश का नया सूचना आयुक्त नियुक्त किया गया है। पूर्व आईपीएस राजकुमार विश्वकर्मा यूपी पुलिस भर्ती एवं प्रोन्नति बोर्ड के अध्यक्ष के साथ ही विभिन्न जनपदों में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के रूप में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। इनके अलावा सुधीर कुमार सिंह (सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी), गिरजेश कुमार चौधरी (सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी), डॉ दिलीप कुमार अग्निहोत्री (एसोसिएट प्रोफेसर), राजेंद्र सिंह (वरिष्ठ पत्रकार), पद्म नारायण द्विवेदी (वरिष्ठ पत्रकार), स्वतंत्र प्रकाश (वरिष्ठ अधिवक्ता), मोहम्मद नदीम (वरिष्ठ पत्रकार), शकुंतला गौतम (सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी), राकेश कुमार (पूर्व न्यायिक अधिकारी) और विरेन्द्र प्रताप सिंह (वरिष्ठ पत्रकार) को प्रदेश का सूचना आयुक्त नियुक्त किया गया है।

29/02/2024
26/02/2024

रीढ़ की हड्डी अगर तान कर रखी जाए तो झुकने में असहाय दर्द देना शुरू कर देती है. रीढ़ की हड्डी सख़्त हुई तो ख़ुद के और लचकदार हुई तो सिस्टम के फ़ायदे में रहती है. रीढ़ बुरी चीज़ है, कामयाब होने की शर्तें इसे झुकाती हैं. मगर जब तक ये बची रहती है, धनुष की प्रत्यंचा की तरह तनी रहती है. लचकदार होते हो आप हर कहीं फिट हैं. … अस्थायी होने की शर्त ही है लचकदार होना. इसलिए सब कुछ अस्थायी किया जा रहा है. .. डॉ. लक्ष्मण यादव की पुस्तक प्रोफेसर की डायरी से.

बीस रुपये में ख़स्ता कचौड़ी!!
25/02/2024

बीस रुपये में ख़स्ता कचौड़ी!!

इस मिट्टी की बात ही अलग है…
23/02/2024

इस मिट्टी की बात ही अलग है…

तस्वीरें सुखद स्मृतियों को ताज़ा कर देती हैं. ये तस्वीर 11 अप्रैल 2019 की है. हिंदुस्तान समाचार पत्र मेरठ में ये मेरा अं...
18/02/2024

तस्वीरें सुखद स्मृतियों को ताज़ा कर देती हैं. ये तस्वीर 11 अप्रैल 2019 की है. हिंदुस्तान समाचार पत्र मेरठ में ये मेरा अंतिम कार्यदिवस था. मेरठ में 11 अप्रैल को ही लोकसभा चुनाव के लिए मतदान हुआ था. दिन भर मतदान की रिपोर्टिंग की और रात में क़रीब 11 बजे कंप्यूटर ऑफ कर दिया. रिपोर्टिंग टीम के साथियों के साथ ये तस्वीर ली और इस तरह 11 साल बाद हर रोज़ गढ़ रोड श्रीराम प्लाजा में हिंदुस्तान कार्यालय की सीढ़ियां चढ़ने-उतरने का सिलसिला थम गया. मित्रों संग सहभोज के बाद कुछ तस्वीरें लीं और अमर उजाला ग़ाज़ियाबाद के सफ़र पर निकल पड़ा.

चौधरी अजित सिंह …आंखों पर चश्मा, दिसंबर की सर्दी में भी कोई गरम जैकेट या शॉल नहीं । गंभीर और कड़वी बात को भी  ठहाकों में...
11/02/2024

चौधरी अजित सिंह …आंखों पर चश्मा, दिसंबर की सर्दी में भी कोई गरम जैकेट या शॉल नहीं । गंभीर और कड़वी बात को भी ठहाकों में उड़ा देना। वेस्ट यूपी के किसान छोटे चौधरी यानि अजित सिंह की इस जिंदादिली के दीवाने थे। अमेरिका में कंप्यूटर इंजीनियर का प्रोफेशन छोड़ चौधरी साहब करीब 45 साल तक किसानों के हक के लिए गांवों की गलियों से संसद तक लड़ते रहे। किसानों की ताकत के बूते वह सियासत के सिरमौर रहे ।

हिंदी और अंग्रेजी पर जबरदस्त पकड़ रखने वाले चौधरी अजित सिंह लुटियन जोन में भी खासे मशहूर थे। देश के विभिन्न राज्यों के बड़े नेताओं को वह बागपत और मेरठ की रैलियों में अपने मंचों पर बुलाकर जनता की दीवानगी का नजारा दिखा देते थे। कर्नाटक में देवगौड़ा, बिहार में लालू , शरद यादव और नीतीश, उड़ीसा में बीजू पटनायक, पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी, तेलंगाना में चंद्रशेखर राव, जम्मू कश्मीर में फारुख अब्दुल्ला से उनके रिश्ते बेहद मधुर थे। दिल्ली की हुकूमत को वे ताकत का एहसास कराते रहते थे। ट्रैक्टर लेकर दिल्ली में घुसते किसानों को लगता कि यहां उनका ही राज है।

साल 2009 के लोकसभा चुनाव में चौधरी साहब से बतौर पत्रकार मेरा पहला परिचय हुआ। मेरठ कॉलेज की प्रोफेसर्स कॉलोनी में पूर्व विधायक रविंद्र पुंडीर के आवास पर हुई प्रेस वार्ता में मैंने चौधरी साहब पर तीखे सवालों की बौछार कर दी। चौधरी साहब ने कई सवालों को अपने ही अंदाज में ठहाकों में उड़ा दिया पर पर मैंने मोर्चा संभाले रखा। वार्ता खत्म होने के बाद चौधरी साहब सर्किट हाउस चले गए। तत्कालीन जिलाध्यक्ष ने मुझे फोन करके बताया कि चौधरी साहब आपसे सर्किट हाउस में अलग से मिलना चाहते हैं। मैं पांच मिनट में ही सर्किट हाउस पहुंच गया तो चौधरी साहब एनेक्सी से बाहर आए और मेरे कंधे पर हाथ रखकर बोले सवाल बहुत तीखे करते हो। मैं सिर्फ मुस्कुरा दिया। दो तीन मिनट की गपशप के बाद चौधरी साहब चले गए।

मैं मेरठ में हिंदुस्तान के लिए रालोद बीट कवर करता था। इसलिए चौधरी साहब से करीबी हो गई। प्रतिदिन सुबह सात बजे वह जनता के फोन अटैंड करने के लिए बैठ जाते। अक्सर सुबह आठ बजे मेरी उनसे बात होती। "हां भाई रविंदर क्या हाल है", से बात शुरू होती और फिर बात सियासी समीकरणों, सत्ता के दांवपेच पर चर्चा होती । चौधरी साहब कभी कोई सुरक्षाकर्मी लेकर नहीं चले। वो वीआईपी कल्चर के सख्त खिलाफ थे। सुबह जिन लोगों को फोन पर उपलब्ध नहीं हो पाए शाम को आठ बजे उन सबके फोन मिलवाकर बात करते।

चौधरी साहब सियासत में धनबल और बाहुबल के सख्त खिलाफ थे। आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों को वह नापसंद करते थे। जेल में बंद एक कुख्यात ने 2009 के लोकसभा चुनाव के दौरान चौधरी साहब के लिए जीत की अपील करते हुए एक प्रमुख समाचार पत्र में फुल पेज का विज्ञापन प्रकाशित करा दिया। हिन्दुस्तान अखबार ने इस पर खबर प्रकाशित करते हुए सवाल उठाया कि चौधरी साहब जीत के लिए बदमाशों का सहारा ले रहे हैं। शाम को आईबीएन7 ने आधे घंटे का एक स्पेशल एपिसोड भी बना डाला। माहौल गरम हो गया। चौधरी साहब के समर्थकों और कार्यकर्ताओं में अखबार के प्रति नाराजगी बढ़ गई। अखबार की प्रतियां फूंकने और अखबार का बहिष्कार करने की धमकियां आने लगीं।

ये सूचना चौधरी साहब तक पहुंच गईं। तभी एक शाम 12 तुगलक रोड स्थित चौधरी साहब की कोठी से फोन की घंटी बजी। उधर से आवाज आई, "चौधरी साहब बात करेंगे।" चौधरी साहब लाइन पर आते ही बोले, हां भाई (रविंद्र नहीं )रविंदर क्या हाल है। मैंने कहा ठीक नहीं है। आपके कार्यकर्ता और समर्थक अखबार के लोगों को धमकियां दे रहे हैं। क्या अब अखबार खबर भी नहीं छाप सकते। क्या एक कुख्यात ने आपका विज्ञापन छपवाया है। चौधरी साहब विनम्रता से मेरी बात सुनते रहे। बोले कौन हैं ये नासमझ। मैं इनसे बात करता हूं, तुम चिंता न करो। मीडिया को अपना काम करना ही चाहिए। पर ये भी जान लेना चाहिए था कि विज्ञापन हमने नहीं छपवाया। तुम ही बताओ क्या मैं बदमाशों को पसंद करता हूं। अखबार को मुझसे भी तो इस बारे में बात कर लेनी चाहिए थी।

बात खत्म हुई और चौधरी साहब ने पार्टी नेताओं व कार्यकर्ताओं की जमकर क्लास लगाई। कहीं कोई अखबार नहीं फूंका गया। कहीं कोई विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ। आज के वक्त में जब पत्रकारों की हत्याएं हो रही हैं, उन्हें जेल डाला जा रहा है तब मीडिया की स्वतंत्रता के प्रति चौधरी साहब की ऐसी सोच समाज के लिए आदर्श है। आज के नेताओं के लिए सीख है।

भारतीय राजनीति में बड़ा कद होने के बावजूद चौधरी साहब कभी मीडिया के टीआरपी के खेल में नहीं फंसे। कभी उनकी जुबान नहीं फिसली, कभी बोल नहीं बिगड़े। पश्चिमी यूपी में उनका बेस वोटर आक्रामक तेवर वाला है। वह चाहता था कि चौधरी साहब भी आक्रामक हों पर वह अपने भाषणों में हमेशा ही शालीन बने रहे। रैलियों में जनता सिर्फ उन्हें ही सुनने आती। जैसे ही चौधरी साहब बोलना शुरू करते तो लोग खड़े हो जाते। कई बार वह लंबा भाषण देते तो कई बार "आप लोग मुझे चुनाव लड़ाना जानते ही हो" ये कहकर कम शब्दों में ही बात खत्म कर चौंका देते। बड़ौत में तो कार्यकर्ता उन्हें कंधे पर बिठाकर मंच तक ले जाते। गांवों में जाते तो घोड़ी और ढोल नगाड़े तैयार रहते। बड़ी रैलियों के मंचों पर अक्सर किसान उनके लिए गन्ना लेकर आते। रैली के दौरान ही चौधरी साहब गन्ना चूसकर किसानों का मान रखते। उनका भरोसा पब्लिसिटी स्टंट के बजाय जमीनी काम में था। यही खूबी उन्हें सफल राजनेता और शानदार शख्सियत बनाती थी। उनकी सियासत जुदा थी। बदलती राजनीति को वो वक्त से पहले ही भांप लेते थे। पर उसूलों से समझौता नहीं करते थे।

चौधरी साहब ने जब सियासत में कदम रखा तो उस वक्त मेरठ में भीषण दंगे हुए थे। उन्होंने भाईचारा कायम करने के लिए मेरठ से लखनऊ तक पैदल यात्रा की। मुजफ्फरनगर दंगे में भाईचारा टूटा तो वे आहत हो गए। बस एक ही बात ठान ली कितनी भी कीमत चुकानी पड़े भाईचारा कायम करके रहेंगे। इसलिए 2019 में चुनाव लड़ने मुजफ्फरनगर पहुंच गए। चुनाव के दौरान जब भी उनसे बात हुई बस एक ही बात कहते थे, हार जीत के मायने नहीं। भाईचारा जोड़ना है। उन्होंने साफ कर दिया था कि ये उनका आखिरी चुनाव होगा। इसके बाद वह चुनाव नहीं लड़ेंगे। हार के बाद जब वह मुजफ्फरनगर पहुंचे तो बोले, "जब कोई समस्या ही नहीं तो राजनीति क्या करेंगे। मैं राजनीति नहीं करने आया हूं। एक तो आपको धन्यवाद देने आया हूं, चुनाव में आप लोगों ने मेहनत की। फिर बैठकर गपशप लड़ाएंगे, भई जान पहचान तो रहेगी ही, राजनीति हो न हो। मुझे आप लोगो के बीच आकर अच्छा लगता है, और कोई कारण नहीं है। कोई जरूरत नहीं है मुझे अब।" मुजफ्फरनगर का दंगा उनके दिल में नासूर की तरह था। वो जब भी बात करते भाईचारा जोड़ने का ही जिक्र करते।

मुजफ्फरनगर के बाद चौधरी साहब मेरठ सर्किट हाउस में आए। बोले आज का दिन सिर्फ पत्रकारों के लिए। हम प्रिंट मीडिया के पत्रकार डेढ़ घंटे उनसे गपशप करते रहे। चौधरी साहब सियासत में धनबल के दखल को लेकर चिंतित थे। वो तेलंगाना में केसीआर के लिए चुनाव प्रचार करके लौटे थे। बोले हर बार आप लोग सवाल करते हैं आज मैं करूंगा। ठहाके गूंज उठे। चौधरी साहब बोले, अंदाजा लगाकर बताओ तेलंगाना में एक विधानसभा सीट पर औसत चुनाव खर्च क्या रहा होगा। हममें से किसी ने दो, पांच सात और दस करोड़ का आंकड़ा बताया। चौधरी साहब ने कहा औसत खर्च 100 करोड़ के पार है। चौधरी साहब यहीं नहीं रुके। बोले जिस तरह से सियासत में धनबल, बाहुबल और तकनीक का इस्तेमाल हो रहा है वो जनता के लिए, लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। बात 2012 के विधानसभा चुनाव की है। बरनावा से विधायक रहे कटार सिंह के बेटे जयवीर सिंह उन दिनों दैनिक जागरण बागपत में ब्यूरो चीफ थे। वो छपरौली से चुनाव लड़ना चाहते थे। मैं 12 तुगलक रोड पर चौधरी साहब से मिलने गया। जयवीर सिंह का नाम सुझाया तो चौधरी साहब ने चाय मंगा ली। बोले नाम तो सही है। मैं विचार करता हूं। जयवीर अस्वस्थ हो गए और उन्होंने खुद ही लड़ने के लिए इनकार कर दिया। चौधरी साहब ने एक मामूली कार्यकर्ता को घर से बुलाकर छपरौली का टिकट पकड़ा दिया।

साल 2012 में जयंत चौधरी मथुरा के मांट से चुनाव लड़ रहे थे। हिन्दुस्तान अखबार के लिए जयंत चौधरी के एक साक्षात्कार की जरूरत थी। संपादक ने रात में 11 बजे मुझसे इसके लिए कहा और अगले दिन 12 बजे तक इंटरव्यू फाइल करने की डेडलाइन दी। तब जयंत चौधरी से न मेरी कोई मुलाकात थी और न बातचीत। रात में फोन पर चौधरी साहब से भी बात न हो सकी। मैं सुबह पांच बजे मेरठ से निकला और सात बजे 12 तुगलक रोड पहुंच गया। वहां टिकटार्थियों और उनके समर्थकों की हजारों की भीड़ कोठी के अंदर जमा थी। मैंने चौधरी साहब के निजी सचिव को परिचय देते हुए मुलाकात कराने को कहा। निजी सचिव ने पूर्व में समय लेकर न आने के चलते मुलाकात कराने से इनकार कर दिया। तभी मैंने तल्ख तेवर में कहा कि आप चौधरी साहब को बता दीजिए कि मेरठ से मैं आया हूं। वो मिलने से इनकार कर देंगे तो मैं वापस जाउंगा और फिर कभी आउंगा भी नहीं। निजी सचिव ने चौधरी साहब को इंटरकॉम पर सूचना दी तो वो तुरंत ही आवास से बाहर परिसर में ही बने कार्यालय में आ गए। भीड़ जिंदाबाद के नारे लगाने लगी। लोग मिलने की कोशिश करने लगे। चौधरी साहब ने सबको रोक दिया और ऑफिस में कुर्सी पर बैठते हुए कहा आज अचानक कैसे।

मैंने बताया कि जयंत चौधरी का इंटरव्यू चाहिए। संपर्क नहीं हो पा रहा था इसलिए आना ही पड़ा। जयंत तब तक बागपत निकल चुके थे। चौधरी साहब ने फोन पर उनसे बातचीत कराई। साक्षात्कार हुआ और मैं मेरठ के लिए दौड़ पड़ा। तय समय पर मैंने अखबार में इंटरव्यू प्रकाशित करा दिया। आम आदमी के लिए चौधरी साहब से मिलना, अपनी बात कहना जितना सहज था शायद उतना उनके कद के किसी अन्य नेता से मिलना रहा हो। बागपत के लोग तो उनकी दिल्ली कोठी पर बेरोकटोक आते जाते रहते थे। जब भी मन किया आठ दस लोग एकत्र हुए, गुड़ और गन्ना लेकर12 तुगलक रोड पर पहुंच गए। चौधरी साहब से गपशप की और लौट गए।

चौधरी साहब हमेशा आम आदमी, गांव, गरीब के दुख दर्द के विषय में चिंतित रहते थे। मेरे साथ जब भी बात होती वे किसानों की बढ़ती समस्याओं और उनके समाधान पर चर्चा करते। किसानों के हक में केंद्र सरकार पर दबाव बनाने की कला उन्हें बखूबी आती थी। यूपीए की केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों का गन्ने का राज्य समर्थित मूल्य बढ़ाने का अधिकार छीनकर उचित लाभकारी मूल्य की नीति घोषित की तो उन्होंने इसके खिलाफ किसानों को लामबंद किया। उन्होंने मेरठ में किसानों की विशाल महापंचायत की। इसमें पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों से लाखों किसानों का हुजूम मेरठ पहुंच गया। सरकार पर दबाव बनाने के लिए चौधरी साहब ने दिल्ली कूच का ऐलान कर दिया। लाखों किसान गन्ना लेकर दिल्ली में घुस गए। केंद्र सरकार दबाव में आ गई और यूपी सरकार का गन्ने का राज्य समर्थित मूल्य घोषित करने का अधिकार बहाल हो गया। इसी वजह से यूपी सरकार केंद्र सरकार द्वारा घोषित गन्ने के उचित लाभकारी मूल्य पर बढ़ोतरी करके राज्य समर्थित मूल्य घोषित करती है।

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में 13 महीने तक चले किसान आंदोलन में चौधरी साहब ने ही जान फूंकी थी। 26 जनवरी को लाल किले पर हुई घटना के बाद किसान संगठन नैतिक दबाव में थे। पुलिस प्रशासन ने गाजीपुर बार्डर से राकेश टिकैत को जेल भेजने की पूरी तैयारी कर ली थी। मैं उस वक्त गाजीपुर बार्डर पर ही था। किसान नेताओं में भयंकर निराशा थी। किसान टूट चुके थे। फोर्स ने किसानों को चारों तरफ से घेर लिया था। कुछ अराजक तत्व भी किसानों पर हमले की नीयत से वहां जमा हो गए थे। तभी चौधरी अजित सिंह ने राकेश टिकैत को फोन करके कहा, खुद को अकेला मत समझना, धरने पर डटे रहना। किसानों के लिए जीवन मरण का प्रश्न है, सबको एक होना है, साथ रहना है। चौधरी साहब के इस संदेश ने राकेश टिकैत को हौसला दिया। जैसे ही ये सूचना गांवों तक पहुंची तो बागपत, शामली, मुजफ्फरनगर, मेरठ समेत वेस्ट यूपी के आसपास के जिलों से लाखों किसानों ने गाजीपुर बॉर्डर के लिए कूच कर दिया। सरकार सहम गई और आंदोलन में फिर से जान आ गई।

चौधरी साहब सामाजिक न्याय की लड़ाई के पक्षधर थे। इसके लिए अपने राजनीतिक करियर को भी दांव पर लगाने से पीछे नहीं हटे। यूपी समेत कई राज्यों में जाट ओबीसी में हैं जबकि केंद्र सरकार की नौकरियों में उन्हें सामान्य श्रेणी में माना जाता है। चौधरी साहब ने यूपी सरकार में नागरिक उडउयन मंत्री रहते जाटों को केंद्र में आरक्षण दिलाया। हालांकि 2014 में बीजेपी की लीडरशिप वाले एनडीए की सरकार बन गई और जाटों का ये आरक्षण सुप्रीम कोर्ट में खारिज हो गया। हिन्दुस्तान अखबार के लिए मैंने उनका साक्षात्कार किया तो वह जाट आरक्षण के समर्थन में खुलकर बोले। 2014 के लोकसभा चुनाव में जाने से पहले भाजपा ने उन्हें एनडीए में लाने की पुरजोर कोशिश की पर चौधरी साहब ने सामाजिक न्याय की लड़ाई को तरजीह दी और यूपीए में ही बने रहे।

व्यक्तिगत स्तर पर लोगों की मदद से भी वह कभी पीछे नहीं हटते थे। पत्रकार साथी अरविंद शुक्ला के भाई आनंद को अध्ययन के लिए दक्षिण अफ्रीका जाना था। अरविंद ने मुझसे कहा कि अगर चौधरी साहब चाहें तो आनंद निशुल्क हवाई यात्रा कर अध्ययन के लिए जा सकता है। मैंने चौधरी साहब से फोन पर बात की तो उन्हें पल भर में यह व्यवस्था करा दी। एक बार लंदन एयरपोर्ट पर अखबार के प्रबंधन की शीर्ष शख्सियत को किसी वजह से रोक लिया गया। अखबार के ग्रुप एडिटर की तरफ से मेरठ संपादक के पास सूचना आई तो मैंने चौधरी साहब से फोन पर संपर्क किया। चौधरी साहब ने पलभर में समस्या का समाधान करा दिया। इस बड़े समाचार पत्र के प्रधान संपादक ने चौधरी साहब का धन्यवाद अदा करने के लिए समय लेने को कहा। मैंने चौधरी साहब से समय मांगा तो वह बोले देखो भाई रविंदर मैं तो तुम्हें जानता हूं, प्रधान संपादक को नहीं। तुम मुझे धन्यवाद कहोगे नहीं और प्रधान संपादक के धन्यवाद की कोई जरूरत नहीं। इतना कहकर वह ठहाका मार हंस पड़े। मैंने निवेदन किया कि आप प्रधान संपादक से मुलाकात कर लेंगे तो अच्छा रहेगा। चौधरी साहब ने प्रधान संपादक को सम्मान के साथ मिलने का समय दिया।

बात 2010 की है, चौधरी साहब मेरठ के चैंबर ऑफ कामर्स में प्रेस वार्ता कर रहे थे। मैं लेट हो गया। चौधरी साहब ने कहा हिन्दुस्तान वालों को भी आने दो तब तक गपशप करते हैं। मैं करीब करीब बीस मिनट लेट पहुंचा तो वार्ता शुरू हुई। मेरठ में चचा के नाम से मशहूर अमर उजाला से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार गर्ग ने एक सवाल रिपीट कर दिया । चौधरी साहब नाराज हो गए और उठकर चल दिए। बोले जब मैं इस सवाल का जवाब दे रहा था तब आप कहां थे। पत्रकारों को खुश करने के लिए वो न कुछ कहते थे और न करते थे। खुद को कैमरे के फोकस में लाने के लिए या अखबारों और टीवी कह हेडलाइन में लाने के लिए उन्होंने कभी न खोखले वादे किए और न ही झूठे सपने दिखाए। वो हमेशा जमीनी हकीकत की बात करते थे। चुनाव के वक्त किससे गठबंधन होगा, कहां से किसको टिकट मिले इस पर पत्रकार कयास लगाते हुए पत्रकार सवाल करते तो चौधरी साहब ठहाका लगाते हुए कहते अब तुमने टिकट दे ही दिया है तो मैं क्या कर सकता हूं।

तमाम झंझावतों के बावजूद चौधरी साहब की फिटनेस कमाल की थी। वह सुबह पांच बजे उठ जाते थे। कार उठाते और खुद ही ड्राइव करते हुए लोदी गार्डन पहुंच जाते। मार्निंग वॉक के बाद नींबू पानी या शहद मिला पानी पीते। सात बजते ही फोन पर बात करने के लिए बैठ जाते। रात में 11 बजे तक सो जाते। उन्हें गुस्सा बहुत आता था पर क्षणिक। पल भर में उनका दिल नरम हो जाता। कभी किसी से दुश्मनी नहीं पाली। वे किसी से डरते नहीं थे। कभी निजी सुरक्षाकर्मी नहीं रखे। कभी बाउंसर लेकर नहीं चले। रैलिंयों में मंचों पर चढ़ने को बेताब युवाओं को कई बार वह चपत भी लगा देते पर कोई बुरा नहीं मानता था। तत्काल व्यवस्था बन जाती थी। मेरठ आते तो अक्सर समोसा खाते। गांवों में जाते तो उड़द की दाल और चपाती और गुड़ खाते।

किसानों के हक के लिए सियासत करने वाले नेताओं एवं कार्यकर्ताओं को चौधरी साहब की कार्यशैली और उनके आचार व्यवहार से सीखने की जरूरत है। आम आदमी से संवाद स्थापित करने की इस कला को विकसित करने की आवश्यकता है। चौधरी साहब कभी लग्जरी कारों का काफिला लेकर गांवों में नहीं निकले। किसान ट्रैक्टर में सवार होकर काफिले में जुड़ते चले जाते। युवाओं की टोलियां कार लेकर आ जातीं और कारवां बन जाता। चौधरी साहब अक्सर कहते राजनीति में हार जीत लगी रहती है। जनता में उनकी दीवानगी पर चुनावी हार जीत का कोई असर भी नहीं पड़ा। गणेश परिक्रमा करने वालों के बजाय वह गांवों से आने वाले सीधे सादे किसानों से मिलकर खुश होते। उन्हें भरपूर सम्मान देते और उनकी बात गंभीरता से सुनते।

चौधरी साहब के न होने का दुख किसानों को सालता है। उनके विचार और उनकी संघर्ष यात्रा नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा पुंज हैं। आज जब गांवों से शहरों की ओर पलायन हो रहा है। बेरोजगारी और गरीबी बढ़ रही है। किसानों की जमीनें कौडियों के भाव बिक रही हैं। नदियां मर रहीं हैं। तालाबों का वजूद खत्म हो रहा है। गांव गांव कैंसर के मरीज बढ़ रहे हैं। खेती उत्पादन में ठहराव की शिकार है। फसलों की लागत बढ़ रही है। किसानों के बेटे बेटियों का उच्च शिक्षा से मोहभंग हो रहा है। नौजवान नशे की जकड़ में हैं, तब चौधरी चरण सिंह और चौधरी अजित सिंह के विचार और प्रासंगिक हो गए हैं। जरूरत है कि गांव, गरीब, किसान मजदूर को उसके हक की लड़ाई के लिए लामबंद किया जाए। ये जिम्मेदारी उन सभी की है जो भाईचारे में विश्वास रखते हैं। जो लोकतंत्र में आस्था रखते हैं। जो इस समाज का ताना बनाए रखना चाहते हैं। जो बेरोजगारी और गरीबी का खात्मा चाहते हैं। जो गांव, गरीब, पिछड़ों, दलितों, वंचितों और अल्पसंख्यकों के लिए समानता की लड़ाई लड़ना चाहते हैं। सामाजिक न्याय की जंग को अंजाम तक पहुंचाना चाहते हैं, उन सबको चौधरी साहब की विचार यात्रा को आत्मसात कर आगे बढ़ना होगा। शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने कहा था क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है। इसलिए बदलावा लाना है तो विचारों की बुनियाद पर मजबूत सांगठनिक ढांचा खड़़ा कर उसे भाईचारे के सीमेंट से ताकत देनी होगी।
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10/02/2024
10/02/2024

रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को सँभालो यारों …

10/02/2024

धन-लोभ ने मानव भावों को पूर्ण रूप से अपने अधीन कर लिया है। कुलीनता और शराफ़त, गुण और कमाल की कसौटी पैसा, और केवल पैसा है। जिसके पास पैसा है, वह देवता स्वरूप है, उसका अन्त:करण कितना ही काला क्यों न हो। साहित्य, संगीत और कला-सभी धन की देहली पर माथा टेकने वालों में है। -मुंशी प्रेमचंद

राह में सैकड़ों ठोकर आ जाएं कोई फ़िक्र नहींबस फोन में सेल्फी अच्छी आनी चाहिए !!😀
16/01/2024

राह में सैकड़ों ठोकर आ जाएं कोई फ़िक्र नहीं
बस फोन में सेल्फी अच्छी आनी चाहिए !!😀

28/12/2023

आज कवि सुमित्रानंदन पंत की पुण्य तिथि है. देखें कौसानी का वो घर जहां पंत जी का जन्म हुआ. लिंक कमेंट बॉक्स में…

मेरठ में एक शाम बागपत के वरिष्ठ पत्रकार बड़े भाई अनवर बेग के साथ. लंबे अरसे बाद हुई ये मुलाक़ात यादगार रही. अनवर भाई से ...
25/12/2023

मेरठ में एक शाम बागपत के वरिष्ठ पत्रकार बड़े भाई अनवर बेग के साथ. लंबे अरसे बाद हुई ये मुलाक़ात यादगार रही. अनवर भाई से पहली मुलाक़ात क़रीब सत्रह वर्ष पहले हुई थी. आज भी अनवर भाई पहले की तरह युवा और ज़िंदादिल हैं.

दुनिया को अलविदा कहते वक्त उनके पास न अपना कोई घर था, न खेती की जमीन और न कार। बीमारी से लड़ने में 22 हजार के बैंक बैलेंस...
22/12/2023

दुनिया को अलविदा कहते वक्त उनके पास न अपना कोई घर था, न खेती की जमीन और न कार। बीमारी से लड़ने में 22 हजार के बैंक बैलेंस में से केवल 4500 की रकम बची थी। उनके पास न कभी खेती थी और न अंतिम वक्त में अपना निजी मकान। लेकिन जीवन भर वह गांव, गरीब, किसान और खेत के लिए लड़े। हालात कभी उनका हौसला तोड़ न सके और वह ईमानदारी, शिष्टाचार, नैतिकता और भारतीय संस्कारों की मिसाल बन गए। बेहतरी की जंग के जज्बे ने उन्हें किसानों का मसीहा बना दिया। इसी पूंजी के बदौलत वह किसानों के दिलों में आज भी जिंदा हैं।
जी हां ऐसे ही थे देश के पांचवे प्रधानमंत्री, उपप्रधानमंत्री और दो बार यूपी के मुख्यमंत्री रहे चौधरी चरण सिंह। तत्कालीन मेरठ जिले के (अब हापुड़ में) छोटे से गांव नूरपुर की मंडैया की झोपड़ी में जन्मे चौधरी चरण सिंह ने किसानों को स्वाभिमान के साथ जीने और सियासत पर निगाह रखने का सलीका सिखाया। बचपन में ही आर्थिक संकट से जूझता उनका परिवार नूरपुर की मंडैया से जानी के पास भूपगढ़ी गांव में चला गया। लेकिन दो जून की रोटी की लड़ाई यहां से भी उनके परिवार को खरखौदा के निकट स्थित भदौला गांव ले गई। किसी तरह चरण सिंह ने पढ़ाई पूरी की और मेरठ आगरा यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री हासिल कर ली। देश के प्रधानमंत्री बने तो आज के दौर की तरह अपने लिए कुछ करने के बजाए वह दिन रात किसानों के लिए ही जुटे रहे। चुनाव आते तो गांव-गांव गली-गली निकल पड़ते। रात में किसानों के घरों में ही रुकते और उन्हीं से चुनाव के लिए एक वोट और एक नोट मांगते। ऐसे जो चंदा इकट्ठा होता उसी से पार्टी चलती। चौधरी चरण सिंह के करीबी रहे चौधरी नरेन्द्र सिंह एडवोकेट बताते हैं कि सर्दियां आती थीं तो वह पूछते अब तो कोल्हू चल पड़े हैं। पार्टी दफ्तर में जो कर्मचारी काम कर रहे हैं उन्हें कई महीनों से तनख्वाह नहीं मिली। सर्दी है सो इन्हें भी लिहाफ-रजाई तो चाहिए ही। तब वह बागपत जिले के बड़ौत में एक पब्लिक मीटिंग रखते और उसमें जो चंदा मिलता उससे कर्मचारियों की तनख्वाह और दूसरे बिल चुकाते थे। वह किराए की गाड़ी लेकर आते थे और गांवों में चौपालों पर बैठकर लंबे-लंबे भाषण देते थे। उनका कोई भाषण तीन घंटे से कम का नहीं होता था। वह किसानों और कार्यकर्ताओं से कहा करते थे कि अगर प्रेस उनकी तारीफ करने लगे तो समझ लेना कि चरण सिंह में कहीं कोई गडबड हो गई है। चरण सिंह के जन्म स्थान नूरपुर मंडैया गांव के पीतम सिंह ने मुझे बताया था कि चौधरी साहब की खूबी थी कि जो कह दिया वही कर दिया। उनकी याददाश्त और लोगों की पहचान कमाल की थी। एक बार बुलंदशहर में एक जनसभा में आए तो भीड़ में सामने बैठे फकीर अल्ला मेहर का नाम माइक से बुलाकर अपने पास बुला दिया। बोले ऐसे क्यों देख रहे हो हम दोनों चौथी क्लास में साथ-साथ पढ़े हैं। वह सुबह गाय का दूध पीते थे। सन अस्सी में हुए माया त्यागी कांड ने उन्हें झकझोर दिया था। उन्होंने माया को न्याय दिलाने के लिए प्रदेश भर में आंदोलन चलाया और इसमें एक लाख से ज्यादा लोग जेल गए। चौधरी साहब इस घटना से बेहद आहत थे। वह हमेशा एक ही बात कहते और समझाते थे कि असली भारत गांव में बसता है और देश की खुशहाली का रास्ता खेत-खलिहान से होकर ही गुजरता है।
चौधरी चरण सिंह- प्रोफाइल
जन्म 1902 तत्कालीन मेरठ (अब गाजियाबाद में) जिले के नूरपुर मंडैया गांव में
मृत्यु 29 मई 1987 दिल्ली में
सियासत का सफर-
देश के पांचवे प्रधानमंत्री- 28 जुलाई 1979 से 14 जनवरी 1980 तक
उप प्रधानमंत्री- 24 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979 तक
केंद्रीय वित्त मंत्री- 24 मार्च 1977 से 28 जुलाई 1979 तक
केंद्रीय गृह मंत्री- 24 मार्च 1977 से 1 जुलाई 1978 तक
उप्र के मुख्यमंत्री- 18 फरवरी 1970 से एक अक्तूबर 1970 तक और 3 अप्रैल 1967 से 25 फरवरी 1968 तक
उप्र सरकार में राजस्व मंत्री 1952
राजनीतिक पार्टी- स्वतंत्रता सेनानी, 1967 तक कांग्रेस में रहे और उसके बाद जनता पार्टी सेक्यूलर 1979 में बनाई
-1937 में बागपत की छपरौली सीट से लेजिस्लेटिव एसेंबली सदस्य चुने गए।
-महात्मा गांधी से प्रभावित होकर आगरा यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री लेकर सत्याग्रह आंदोलन में कूदे
-1930 में नमक कानून तोड़ने पर छह माह जेल में रहे
- में सत्याग्रह आंदोलन में जेल गए
-अंग्रेजी राज में 1942 में फिर जेल गए
-भारतीय आर्थिक नीति और कोऑपरेटिव खेती पर किताबें लिखीं
भूमि सुधारों ने बनाया किसानों का मसीहा
31 मार्च 1938 के हिन्दुतान टाइम्स में छपा था चौधरी चरण सिंह का बिल
चौधरी चरण सिंह ने अंग्रेजी राज के खिलाफ चल रहे स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ही सियासी सफर शुरू किया था। 34 वर्ष की उम्र में फरवरी 1937 में वह यूनाइटेड प्राविंसेज की लेजिस्लेटिव एसेंबली की छपरौली सीट से चुने गए। 1938 में उन्होंने एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट बिल असेंबली में पेश किया। यह बिल 31 मार्च 1938 के हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हुआ था। पंजाब ने सबसे पहले किसान हित के इस बिल को 1940 में लागू किया और बाद में यह देश के अधिकांश राज्यों में लागू किया गया। 1952 में वह प्रदेश सरकार में राजस्व मंत्री बने। उन्होंने तब जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार एक्ट लागू किया। जमींदारी उन्मूलन में बाधा पैदा करने पर उन्होंने एक साथ पूरे प्रदेश में पटवारियों के बस्ते छिनवा लिए थे।
इस कदम के बाद वह किसानों के चैंपियन बन गए और उनके भूमि सुधारों को दुनिया भर में सराहा गया। आर्थिक नीतियों और खासतौर पर कोऑपरेटिव खेती पर उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के मॉडल का खुला विरोध किया। उनका कहना था कि भारत में किसानों को जमीन पर मालिकाना हक देना जरूरी है। उनके प्रयासों से यह हुआ भी। 1967 में इसी के चलते उन्हें कांग्रेस छोड़नी पड़ी। लेकिन उन्होंने जनता पार्टी का गठन कर कांग्रेस के खिलाफ एक मजबूत विपक्ष खड़ा कर दिया। इमरजेंसी के बाद जनता पार्टी सत्ता में आई। उन्होंने दुनिया में भारतीय अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए श्रम कानूनों में बदलाव की ठोस पहल की। केंद्रीय गृह मंत्री रहते हुए उन्होंने इजरायल के साथ कूटनीतिक संबंध बेहतर बनाए और पाकिस्तान की परमाणविक शक्ति बनने की धमकियों पर उन्होंने 15 अगस्त 1979 को ऐतिहासिक भाषण दिया। वह देश के एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री रहे हैं जिन्होंने एक दिन के लिए भी संसद फेस नहीं की। चौधरी साहब राजनीतिक अर्थशास्त्र के प्रकांड विद्धान थे और उन्प्होंने इंडियन इकॉनॉमिक पॉलिसी- द गांधियन ब्लूप्रिंट नामक पुस्तक लिखी। इसके साथ ही उन्होंने कोऑपरेटिव फार्मिंग- एक्स रेड और इकॉनॉमिक नाइटमेयर ऑफ इंडिया इट्स क्योर एंड कॉज नामक पुस्तकें लिखीं। उनकी पुस्तकें अमेरिकी विश्वविद्यालयों में भी पढ़ाई गईं।
जातिवाद के घोर विरोधी
चौधरी साहब जातिवाद को समाज के लिए जहर मानते थे। वह छुआछूत नहीं मानते थे। उनका रसोइया दलित था जिसने उनके यहां 20 साल तक खाना बनाया। वह समाज में महिलाओं की बराबरी के भी पैरोकार थे। अपनी बेटे-बेटियों को उन्होंने अर्न्तजातीय विवाह करने से नहीं रोका। वह परिवारवाद के सख्त खिलाफ थे। उनकी पूरी सोच गांव,गरीब और कृषि के ईद-गिर्द रहती थी। व्यापारियों से भी वह कहा करते थे तुम्हारा चूल्हा भी तभी जलेगा जब किसान की जेब में पैसा आएगा। चौधरी साहब के यहां किसानों की सीधे एंट्री थी। पूरे अधिकार के साथ वे उनसे जाकर मिलते थे। किसानों में उनके बारे में प्रचलित है कि वह कभी किसी काम के लिए आए किसान को आश्वासन नहीं देते थे। जब तक किसान घर वापस पहुंचता था तो पता चलता था कि जिस समस्या के हल के लिए वह दिल्ली गया था वह तो हल हो गई। वह जातियों के नही किसान बिरादरी के मसीहा थे। वेस्ट यूपी से शुरू हुआ उनकी सियासी ताकत का कारवां हरियाणा, बिहार, मध्यप्रदेश,राजस्थान,उड़ीसा तक फैला। चौधरी साहब राजनीति की पाठशाला थे। आजादी के बाद भी उन्होंने वेस्ट यूपी के अगुआ तत्वों की परख कर कर राजनीति में प्रवेश कराया। आज राजनीति के कई बड़े दिग्गजों ने उन्हीं से राजनीति की एबीसीडी सीखी थी।
जैसा चौधरी चरण सिंह के कहने पर पीसीएस की नौकरी छोड़ने वाले जयपाल सिंह नौरोजपुर ने बताया
सरलता, स्वाभिमान और शिष्टाचार की पाठशाला
आठ दस साल का था तभी चौधरी साहब के संपर्क में आया था। वह गांव-गांव में जाते थे। हर गांव में दस बीस लोगों को वह नाम से जानते थे। पब्लिक मीटिंगों में राजनीतिक अर्थशास्त्र और शिष्टाचार की वह बड़े सीधे सरल शब्दों में व्याख्या करते थे। मेरठ के घमंडी नामक नाई के काम के वह कायल थे और हमेशा मशीन से बाल कटाते थे। एक बार घमंडी ने चौधरी साहब से कहा कि उसे लड़की की शादी करनी है और पैसे हैं नहीं। इस पर चौधरी साहब बोले घमंडी पैसे मेरे पास भी नहीं हैं पर तू शादी कर देखा जाएगा। घमंडी ने किसी तरह बेटी की शादी की तो चौधरी साहब उसके दरवाजे पर कुर्सी डालकर बैठ गए। देखते ही देखते आसपास के क्षेत्र के लोग शादी में पहुंचने लगे और कन्यादान में ही शादी के खर्च इंतजाम हो गया। मैँ पांच बार एमएलए रहा तब वह कहा करते थे कि तुम जनप्रतिनिधि हो कभी कोई ऐसा काम मत करना जिससे तुम्हारे परिवार या रिश्तेदारी के किसी व्यक्ति को आर्थिक लाभ हो। जनप्रतिनिधि की गरिमा को बनाए रखना बड़ा जरूरी है।
जैसा कि छपरौली से पांच बार विधायक रहे नरेन्द्र सिंह एडवोकेट ने बताया

“हाउस हसबैंड ऑन ड्यूटी” के लेखक और पत्रकार डॉ. विपिन धनकड ने संस्मरण लेखन की बारीकियाँ बताईं. रोचक शैली में हुए इस संवाद...
19/12/2023

“हाउस हसबैंड ऑन ड्यूटी” के लेखक और पत्रकार डॉ. विपिन धनकड ने संस्मरण लेखन की बारीकियाँ बताईं. रोचक शैली में हुए इस संवाद से छात्र-छात्राओं के साथ हम सब भी लाभान्वित हुए.

अगर आप शोध करना चाहते हैं तो अपने विषय में आवेदन कर सकते हैं. पत्रकारिता और जनसंचार में भी अवसर उपलब्ध है.
18/12/2023

अगर आप शोध करना चाहते हैं तो अपने विषय में आवेदन कर सकते हैं. पत्रकारिता और जनसंचार में भी अवसर उपलब्ध है.

“हाउस हसबैंड ऑन ड्यूटी” पुस्तक के लोकार्पण समारोह की झलकियां. Pic credit …एडवोकेट रामकुमार शर्मा जी.
01/12/2023

“हाउस हसबैंड ऑन ड्यूटी” पुस्तक के लोकार्पण समारोह की झलकियां. Pic credit …एडवोकेट रामकुमार शर्मा जी.

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