छोटी काशी

छोटी काशी शिवभूमि मंडी के लिए समर्पित

मार्च 1890 मंडी के राजा विजय सेन जी का खुला दरबार दमदमा महल सेरी चाननि मंडी
11/04/2024

मार्च 1890 मंडी के राजा विजय सेन जी का खुला दरबार दमदमा महल सेरी चाननि मंडी

राजा जोगेंद्र सेन ब्रिटिश भारतीय सेना की 5/17 डोगरा रेजिमेंट के मेजर रूप मे वर्ष 1939 मे द्वितीय विश्व युद्ध के अवसर पर ...
11/04/2024

राजा जोगेंद्र सेन ब्रिटिश भारतीय सेना की 5/17 डोगरा रेजिमेंट के मेजर रूप मे वर्ष 1939 मे द्वितीय विश्व युद्ध के अवसर पर खींचा गया चित्र ( स्थान अखंड भवानी महल मंडी) ( फोटो ग्राफर राजा दीन दयाल फोटोग्राफी कम्पनी द्वारा) चित्र आज कल स्थिति बाबा कोट नरसिंह सिद्ध मंदिर स्थित दमदमा महल

मंडी राज्य कालीन समय 1890 के समय मे विजय पैलेस मंडी की ओर से समखेतर मुहल्ला और पुल केसरी विक्टोरिया ब्रिज का दृश्य
11/04/2024

मंडी राज्य कालीन समय 1890 के समय मे विजय पैलेस मंडी की ओर से समखेतर मुहल्ला और पुल केसरी विक्टोरिया ब्रिज का दृश्य

11/04/2024

मंडी के पूर्व राज परिवार के ग्रीष्मकालीन निवास स्थान पुराने विजय पैलेस मंडी की राज्य कालीन छवि 1890
ज्ञात रहे इस ही पुराने काठ कुणी शैली के निर्माण के स्थान पर 1921 मे वर्तमान विजय पैलेस के भवन का निर्माण पुरोधा ब्रिटिश वास्तुकार एडवर्ड साइक्स के निर्देशन मे वर्तमान, ब्रिटिश व भारतीय काठकुनि शैली के समिश्रन से वर्तमान विजय पैलेस का निर्माण हुआ

मंडी संसदीय सीट को प्राप्त है देश की प्रथम संसद की प्रथम लोक सभा सीट के तौर पर मंडी  प्रथम नामांकन और नामांकन प्रकिया पू...
11/04/2024

मंडी संसदीय सीट को प्राप्त है देश की प्रथम संसद की प्रथम लोक सभा सीट के तौर पर मंडी प्रथम नामांकन और नामांकन प्रकिया पूर्ण होने और चुनाव मे प्रथम मतदान और प्रथम मतदाता का गौरव
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भारत मे लोक तांत्रिक प्रक्रिया प्रथम आम चुनाव की प्रथम तस्वीर, भारत का प्रथम आम चुनाव जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 को दिनांक 17 जुलाई 1951 को राष्ट्र पति द्वारा अधिसूचित होने पर उस के तहत चुनाव की अधिसूचना प्रक्रिया सितंबर 1951 मे शुरू हुई और 68 चरणो मे चुनाव संपन्न हुए, इस चुनाव के सबसे पहले प्रथम चरण मे हिमाचल प्रदेश केंद्र शासित प्रदेश की तीन सीटो पर चुनाव अधीसूचित हुए सितंबर 1951 मे अधिसूचना उपरांत नामांकन प्रक्रिया सर्व प्रथम मंडी संसदीय सीट पर शुरू हुई जिसमे पहले नामांकन के समय भारत के प्रथम प्रधानमंत्री
स्वयं अवध (उत्तर प्रदेश) की राजकुमारी अमृत कौर के साथ आये और जिलाधीश कार्यालय मंडी मे नामांकन प्रक्रिया पूरी हुई राज महल मंडी मे बतौर अतिथि रह कर अक्टुबर के पहले सप्ताह मे नामांकन प्रक्रिया पूरी हुई और
और 25 ऑक्टोबर 1951 को प्रथम मतदान भारत के लोक तंत्र का मंडी संसदीय क्षेत्र मे हुआ किन्नौर मे इन ऐतिहासिक चित्र जो मंडी के भूतपूर्व राज परिवार की संपति हैं, इसमे राज कुमारी अमृत कौर पंडित नेहरू की बायीं ओर दाहिनी ओर पंडित गौरी प्रसाद राज महल मंडी की ओर से पैदल ही जिला नामांकन अधिकारी जिलाधीश मंडी के कार्यालय की ओर जाते हुए और नामांकन उपरांत सर्व प्रथम
,मंडी के सेरी मंच पर आम चुनाव 1951 की पहली विशाल जन सभा को संबोधन के उपरांत मंडी की महिला मतदाताओ से मुखातिब हो कर निवेदन करते हुए देखे जा सकते हैं उनका अभिवादन करते हुए महिला मतदाता वर्ग

मंडी नरेश लेफ्टिनेंट कर्नल राजा जोगेंद्र सेन बहादुर दिनांक 15 अप्रिल 1948 को मंडी राज्य के भारतीय संघ मे विलय के उपरांत ...
11/04/2024

मंडी नरेश लेफ्टिनेंट कर्नल राजा जोगेंद्र सेन बहादुर दिनांक 15 अप्रिल 1948 को मंडी राज्य के भारतीय संघ मे विलय के उपरांत अन्य राज्यों के राज प्रमुखों के साथ नरेंद्र मंडल भवन (पुराने संसद भवन) के
द्वारा पर बाहर आते हुए सामूहिक चित्र
साभार : राजमहल मंडी

राजा भवानी सेन और रानी ललिता कुमारी सिंह (रानी खैरीगढ़ी) का वर्ष 1907 का उनके विवाह उपरांत का 117 वर्ष पुराना चित्र जो र...
11/04/2024

राजा भवानी सेन और रानी ललिता कुमारी सिंह (रानी खैरीगढ़ी) का वर्ष 1907 का उनके विवाह उपरांत का 117 वर्ष पुराना चित्र जो राजा दीन दयाल फोटो ग्राफर ( ब्रिटिश राज और तत्कालीन मंडी राज्य के भी फोटो ग्राफर द्वारा अप्रिल 11/4/1907 का फोटो ग्राफ
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(इस ऐतिहासिक फोटोग्राफ की वर्तमान स्थिति बाबा कोट मंदिर दमदामा राज महल मंडी)


राजा भवानी सेन मंडी 17 वे शासक मंडी राज्य का जन्म 17 अप्रिल 1883 को राजा विजय सेन की 9 वी रानी प्रधानों ख्वासीन से हुआ, प्रारंभिक शिक्षा विजय हाई स्कूल मंडी और 1895 से आगे उनकी शिक्षा 1902 तक एचिनसन कॉलेज लाहौर मे हुई वर्ष 1903 मे राजा विजय सेन के उत्तराधिकारी घोषित होने पर मंडी के शासक राजा, प्रथम विवाह सिरमौर राज्य के कुंवर बलबीर सिंह सिंह की पुत्री राजकुमारी देई से 1903 मे, द्वितीय विवाह सुकेत के मियां सुरत सिंह की पुत्री साहिबिनी देई से 1905 मे और
तीसरा विवाह वर्ष 1907 मे खैरीगढ़ संघई राज्य ( अवध संयुक्त प्रदेश (United Province) के राजा पृथ्वीध्वज शाह की पुत्री राजकुमारी ललिता कुमारी सिंह से हुआ।
राज कुमारी ललिता कुमारी सिंह ( मंडी की रानी खैरीगढी ) का, जन्म 1889, हुआ था
प्रारंभिक शिक्षा खैरीगढ़ और देहरादून व लखनऊ मे हुई, 18 वर्ष की आयु मे मई 1907 में मंडी राज्य के राजा भवानी सेन से उनकी तीसरी पत्नी के रूप में विवाह हुआ,
8 फरवरी 1912 को राजा भवानी सेन आकस्मिक देहावसान जो 15 दिसंबर 1911 को नई दिल्ली में राज्याभिषेक दरबार से लौटने पर संक्षिप्त बीमारी से देहावसान हुआ तो मंडी राज्य सिंहासन की दो महीने तक संरक्षक रानी ।

रानी ललिता कुमारी सिंह द्वारा अंग्रेजो द्वारा मंडी राज्य हड़पने के मंसूबो पर पानी फेरते हुए उन्होंने 8 अप्रैल 1912 को, उन्होंने 8 वर्षीय जोगेंद्र सेन (मंडी के मियां किशन सिंह के पुत्र) को दत्तक पुत्र के रूप में गोद लिया और मंडी राज्य के शासक 1913-1947, वे 1915 से मंडी मे ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए रचित मंडी कांस्पिरेसी की मुख्य वीरांगना और मुख्य प्रेरक सूत्र धार एक गदर स्वतंत्रता सेनानी,1915 से 1920 तक 1920 मे मंडी से निर्वासित 1921 से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिलाओं के मताधिकार के लिए अंतरराष्ट्रीय आंदोलन में शामिल और 1921 से अखिल भारतीय महिला कांग्रेस AIWC की संस्थापक सदस्य और अखिल भारतीय महिला कांग्रेस AIWC दूसरी अध्यक्ष वर्ष 1928 मे । 4 मई 1940 को देहावसान।
( रानी ललिता कुमारी सिंह (रानी खैरीगढ़ी की 84 वी पुण्य तिथि पर 4 मई 2024 को विस्तृत लेख दस्तावेजो प्रमाणिक तथ्यो सहित प्रकाशित होगा उनके बारे मे कुछ वामपंथी लेखको द्वारा फैलाये गये कोरे कपोल कल्पित झूठ और भ्रांतिमय उपन्यसिक झूठो की सफाई के लिए)

किला कमलाहगढ़ मंडी राज्य के परगना संधोल (इलाका कल्लर )का इतिहास=======================मंडी का 183 वर्ष पुराना एतिहासिक प...
11/04/2024

किला कमलाहगढ़ मंडी राज्य के परगना संधोल (इलाका कल्लर )का इतिहास
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मंडी का 183 वर्ष पुराना एतिहासिक प्रसंग मंडी राज्य के ऐतिहासिक व अभेद्य दुर्ग किला कमलाहगढ़ किले का धोखे से कबजाया जाना और कब्ज़ा छुड़वाने वापस लेने का इतिहास
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मंडी (अब हिमाचल प्रदेश में) में कमलाहगढ़ किला, वैदिक कालीन कांगड़ा के प्रसिद्ध किले के बाद हिमालय की पहाड़ियों में सबसे मजबूत अभेद्य दुर्ग दुर्गम गढ़ किला था।

इसका निर्माण 1605 से 1630 के बीच मंडी राज्य के चंद्रवंशी सेन राजपूत शासकों हरि सेन द्वारा शुरू करवाया गया और राजा सूरज सेन द्वारा पूरा किया गया था ।

कमलाह गढ़ किला वास्तव में छह अलग-अलग किलों का एक मजबूत नेटवर्क है, जो एक-दूसरे के साथ-साथ बने हैं ये हैं कमलाह, चौकी, चबारा, पदमपुर, शमशेरपुर, और नरसिंगपुर, ये इन सभी पर्वत श्रृंखला स्थानो पर खड़ा है और एक अभेद्य किलेबंदी गढ़ के रूप में जाना जाता रहा है जो सिकंदरधार पर स्थित है l

यह किला अपने आधार नींव के स्तर के से 4,772 फीट की बेहद खतरनाक ऊंचाई पर बनाया गया दुर्गम किला था और यह मंडी से लगभग 80 किमी दूर स्थित है।

कमलाह किला, प्राकृतिक संरचना मे अपने जटिल प्रवेश द्वार के साथ, सदियों से हमेशा अभेद्य दुर्ग गढ़ रहा है। लेकिन 1840 में, इसे पन्जाब के राजा रंजीत सिंह की मृत्यु के उपरांत सिख गुरु गोविंद सिंह के मंडी को न लूटने के आदेश के बावजूद
उसके उत्तराधिकारी राजा शेर सिंह और उस के उत्तराधिकारी कंवर नौ निहाल सिंह रणजीत सिंह के पोते के पागलपन के आदेश पर भाड़े के सैनिक इतालवी फ्रेंच जनरल वेंचुरा द्वारा धोखे से मंडी से कर लगान वसूलने के नाम पर लूट पाट के नाम पर जून 1841 में सिख सेना और इतालवी भाड़े के टट्टूओ द्वारा वेंचरा के नरेतत्व मे कब्जा कर लिया गया था, जो जनरल वेंचुरा राजा रणजीत सिंह की सेना में उसकी फौज ए खास का इतालवी फ्रेंच जनरल था , उस ने मंडी से लगान पूरा वसूलने के बहाने और संधि के बहाने राजा ईश्वरी सेन को नागचला के समीप बुला कर कैद कर लिया और गोबिंदगढ अमृतसर मे कैद कर दिया और पूरे मंडी राज्य और कामलाहगढ़ पर भी धोखे से हमला कर 14 अक्टूबर 1841 को कब्जा कर लिया था और कर लूटने के लिए मशहूर मंगल सिंह रांगढ़िया के हवाले कर दिया।

पर प्रथम अंगल सिख युद्ध जो सब्राओं मे हुआ सीखों की हार 9 फारवरी 1846 के बाद 9 मार्च 1846 को अंग्रेज सिख संधि के बाद भी मंगल सिंह किला कमलाह गढ़ नही छोड़ा लेकिन सितंबर 1841 के अन्त मे छ महीने तक अडे रहने पर अंग्रेज जनरल जॉन लारेंस द्वारा आदेश और पंजाब हिल स्टेटस के सुपरिंटेंडेंट जॉन एर्सकिन द्वारा मामले मे अंग्रेजी दखल देने के बाद में इसे 12 /14 अक्टूबर 1846 को मंडी के राज्य की सेना और सैन्य बल को आगे बढ़ कर किला कमलाह को अपने अधिकार मे ले लिया और उन्होने ने युद्ध कर लूट पाट करने वाले सिखो के किलेदार मंगल सिंह रामगढ़िया को गुरुदास पुर की ओर भगा कर किला कमलाहगढ़ वापस प्राप्त कर लिया था जो मंडी के सैनिको और मंडी के राजा बलबीर सेन की सेनाओं ने उन्हे किले से बाहर निकाल कर भगा दिया और मंडी राज्य का किला कमलाहगढ़ पर पुन अधिकार हो गया था।

02/04/2024
27/03/2024

छिंज सुंदरनगर।मंडी

26/03/2024

Live

हिमाचल न्यूज़ को कांगड़ा, चंबा, मंडी और कुल्लू में पत्रकारों की आवश्यकता है। इच्छुक उम्मीदवार अपना Resume मेल करें।himacha...
20/03/2024

हिमाचल न्यूज़ को कांगड़ा, चंबा, मंडी और कुल्लू में पत्रकारों की आवश्यकता है। इच्छुक उम्मीदवार अपना Resume मेल करें।
[email protected]
Whatsaap : 9882323000

08/03/2024

हाथों की लकीरों से ज्यादा महादेव
के फैसले पर यकीन है,
वो जब जो करेंगे बहुत अच्छा करेंगे।
महाशिवरात्रि की शुभकामनाएं।
हर-हर महादेव

29/02/2024

देवलोक

27/02/2024

ये लागी नाटी
कुल्लुवी नाटी
शहनाई वादक: CS Bharti

26/02/2024

सीताराम की नाटी
लोकगायक ठाकुर दास की कुल्लुवी नाटी
शहनाई वादक: सीएस भारती

कामरु नाग झील।
26/02/2024

कामरु नाग झील।

24/02/2024

नाटी

22/02/2024

नाटी

09/01/2024

कुल्लू की सैंज घाटी की धाउगी में सड़क के साथ लगता 13 बीघा का सेब का बगीचा बिकाऊ है। इच्छुक 98169 70037
पर सम्पर्क करे।

08/01/2024

सैंज घाटी की धाउगी पंचायत में चार बीघा उपजाऊ जमीन बिकाऊ है।

इच्छुक 98169 70037
पर सम्पर्क करे।

जोगिंदरनगर ट्रॉली ट्रैक की खूबसूरत तस्वीर, शानन से बरोट तक चलती थी यह ट्रॉली.लोहे के रस्सों की सहायता से पटरियों पर चलने...
14/11/2023

जोगिंदरनगर ट्रॉली ट्रैक की खूबसूरत तस्वीर, शानन से बरोट तक चलती थी यह ट्रॉली.

लोहे के रस्सों की सहायता से पटरियों पर चलने वाला ट्राली सिस्टम संभवत दुनिया का एकमात्र सिस्टम है. इसे कर्नल बैटी और उनकी टीम ने 1926 के आसपास बनाया था. दरअसल यह प्रणाली यहाँ पर 1920-1933 के बीच बने पानी से चलने वाले पॉवर हाउस की मशीनरी और अन्य सामान को नीचे से ऊपर पहाड़ी तक ढोने के लिए बनाई गयी थी.

मंडी का प्राचीन इतिहास और बौद्ध संदर्भछोटी-छोटी पहाडियों में अवस्थित मंडी रियासत का इतिहास करीब 1100 ए डी के बाद की सेन ...
06/10/2023

मंडी का प्राचीन इतिहास और बौद्ध संदर्भ

छोटी-छोटी पहाडियों में अवस्थित मंडी रियासत का इतिहास करीब 1100 ए डी के बाद की सेन वंशावली के कारण लगभग ज्ञात है। लेकिन यहां के प्राचीन इतिहास के बारे में अभी भी ज्यादा जानकारी प्रकाश में नहीं आई है। हालांकि कुल्लूत, त्रिगर्त (कांगडा) और चंबा के इतिहास के बारे में इससे पहले की जानकारियां उपलब्ध हैं। लेकिन यह कैसे हो सकता है कि व्यास नदी घाटी की कोई सभ्यता नहीं रही हो। जबकि सभ्यताएं नदियों के किनारे ही बसी हों। ऐसे में मंडी को प्राचीन इतिहास से गायब मान लेना सही नहीं हो सकता। मंडी में सेन वंश के आने से पहले यहां पर स्थानीय प्रमुखों (राणाओं) का जिक्र मिलता है जिन पर अधिपत्य जमा कर उनकी जमीनों पर मंडी रियासत की बुनियाद रखी गई। मंडी के इतिहास के प्राचीन समय को जानने के लिए बौध जानकारियां कारगर हो सकती हैं। बौध ग्रंथों में मंडी का जिक्र जोहार या सोहार नाम से आता है। बौध जानकारियों के मुताबिक जोहार नाम का राज्य मंडी और रिवालसर क्षेत्र में था। जहां पर गुरू पदम संभव ने तपस्या की थी। इसी दौरान स्थानीय लडकी मंदरवा उनकी शिष्या बनी। उसके परिजनों को गुरू पदम संभव के साथ उसका सानिध्य पसंद नहीं था और उन्होने दोनों को कष्ट पहुंचाने की कोशीश की। लेकिन उनका बाल बांका न बिगड सका और बाद में उन्होने दोनों के संबंध का स्वीकार कर लिया। इतिहासिक स्त्रोत बताते हैं कि तिब्बत में संकट आने पर गुरू पदम संभव को वहां बुलाया गया और उन्होने उस संकट को दूर किया था और बौध धर्म की शिक्षाओं का प्रचार प्रसार किया था। यह भी पता चलता है कि तिब्बत में संकट के दौरान वहां के धर्मग्रंथों व साहित्य को सुरक्षित रखने के लिए जोहार भेज दिया गया। बौध धर्म के अनुयायियों को विश्वास है कि यह धार्मिक शिक्षाएं जोहार (रिवालसर) में कहीं छिपाई या रखी गई हैं। जिसके चलते बौध धर्म के अनुयायी कडी मशक्कत के बावजूद रिवालसर आना जरूरी समझते हैं। वहीं पर मंदरवा से जुडी हुई एक याद और कहानी मंडी के खुआराणी मंदिर से भी जुडी है। बताते हैं कि यहीं पर मंदरवा और गुरू पदम संभव को कुंएं में फैंक दिया गया था। लेकिन वह सुरक्षित रहे। इसलिए इस जगह को खुआराणी कहा जाता है। इस स्थल पर बौद्ध श्रद्धालु दर्शन करने के लिए जरूर आते हैं। इसके अलावा विक्टोरिया पुल के नजदीक पुरानी मंडी में व्यास नदी किनारे की एक गुफा में भी बौद्ध अनुयायी दर्शनार्थ जाते हैं। मंडी शहर के टारना मुहल्ला में नागार्जुन गुफा भी स्थित है। नागार्जुन बौध धर्म के प्रसिद्ध गुरू रहे हैं। हालांकि वह दक्षिणी भारत से संबंध रखते थे। लेकिन इतिहास इस बारे में सपष्ट है कि महायान को मानने वाले और इसके विद्वान तथा दार्शनिक उतरी भारत, पंजाब और पेशावर तक फैले थे। जिनमें नागसेन, असंग आदि अनेकों विद्वानों के नाम इतिहास में परिचित हैं। ऐसे में मंडी में नागार्जुन गुफा का होना यहां पर महायान धर्म की उपस्थिति का सूचक हो सकता है। इसके अलावा टारना नाम बहुत हद तक तारानाथ के नजदीक सा जान पडता है। टारना की पहाडी में माता श्यामाकाली का मंदिर है जिसे श्याम सेन के समय में बनाया गया था। टारना की पहाड़ी पर स्थित होने के कारण इसे टारना माता भी कहते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि मंदिर में तारा माता है इसलिए इसे टारना कहा जाता है। लेकिन काली को ही बौध तारा मानते हैं। हालांकि हिंदू धर्म में भी तारा की पूजा काली के रूप में ही होती है। कहने का अभिप्राय यह है कि हो सकता है कि टारना पहाडी का नाम तारा के नाम पर न पड कर तारानाथ के नाम पर पडा हो। दरअसल तिब्बत के राजा तारानाथ बौध धर्म के अनुयायी थे। मनमोहन आईसीएस के लिखे मंडी के इतिहास में राजा सिद्धसेन के समय की एक घटना का जिक्र आता है। सिद्ध सेन का समयकाल श्याम सेन से पहले का है। घटना के मुताबिक एक तिब्बती उडता हुआ आता था और राजमहल के साथ की पहाडी पर विश्राम के लिए रूकता था। एक दिन जब वह विश्राम कर रहा था तो उसकी आंख लग गई। इसी बीच राजा सिद्ध सेन ने उस गुटके (किताब) को अपने कब्जे में ले लिया जिसकी मदद से वह उडता था। आंख खुलने पर उसने राजा से गुटके की मांग की और कहा कि वह हरिद्वार से गंगाजल लेकर तिब्बत जाता है और अगर वह तिब्बत नहीं पहुंचा तो उसे भारी परेशानी उठानी पड सकती है। राजा बहुत दयालु था उसने तिब्बती को गुटका लौटा दिया। जब वह तिब्बत पहुंचा तो राजा तारानाथ ने उससे देरी का कारण पूछा। जिस पर उसने सारा किसा सुनाया। राजा यह सुनकर दंग रह गया कि इतने करिशमाई गुटके को प्राप्त करने के बाद भी इसे लौटा दिया। वह राजा की दयालुता से प्रसन्न हो गया और उसने अगले ही दिन यह गुटका राजा सिद्धसेन को लौटाने को कहा। कहा जाता है कि इस करिश्माई गुटके को प्राप्त कर लेने के बाद राजा सिद्धसेन को बहुत ताकत मिल गई थी। अगर वह चाहता तो अपने राज्य का विस्तार करने की महत्वाकांक्षा को पूरा कर सकता था। लेकिन वह बहुत अध्यात्मिक राजा था। उन्होने राज्य विस्तार की बजाय अपनी अध्यात्मिक प्यास को बुझाने के लिए मंडी में बहुत सारे मंदिर बनवाए। जिनमें, पंचवक्तर, सिद्ध काली, सिद्ध भद्रा, सिद्ध गणपित और सिद्ध शंभु आदि अनेकों प्राचीन धरोहरें शामिल हैं। बताया जाता है कि राजा के अंतिम समय के दौरान जब उन्हे लगा कि इस गुटके का कोई दुरूपयोग कर सकता है तो उन्होने इसे व्यास नदी की तेज धारा में बहा दिया। जिसके बाद इस गुटके का कोई पता नहीं लग पाया। दरअसल, शोध की कमी के चलते मंडी के प्राचीन इतिहास की कडियां नहीं जोडी जा सकी हैं। सेन वंश के इतिहास से पहले के समय को जानने के लिए बौद्ध ग्रंध व संदर्भ बहुत प्रकाश डाल सकते हैं। लेकिन अधिकतम बौद्ध संदर्भ तिब्बती भाषा में होने के कारण इनसे सुत्रों को जोडने में अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है। हालांकि प्रसिद्ध इतिहासकार, लेखक व अध्येता राहुल सांस्कृत्यायन ने इस दिशा में भागीरथी प्रयास किए थे। लेकिन इन प्रयासों को निष्कर्षों तक पहुंचाने का कार्य इतिहासकार शायद अभी तक नहीं कर पाए हैं और यही कारण मालूम पडता है कि हम अभी भी मंडी के प्राचीन इतिहास की गहन गुफाओं तक प्रकाश नहीं पहुंचा पाए हैं।

19वीं सदी में ऐसा दिखता था मंडी, शांत और भीड़भाड़ से दूर का शहर
08/08/2023

19वीं सदी में ऐसा दिखता था मंडी, शांत और भीड़भाड़ से दूर का शहर

रिवालसर झील 1910 और 2023
31/07/2023

रिवालसर झील
1910 और 2023

संस्कृति को संजोता एक कलाकार
20/05/2023

संस्कृति को संजोता एक कलाकार

कहते हैं कि अगर मन में कुछ कर गुजरने की इच्छा हो तो छोटी जगह में रहकर भी बड़ा मुकाम हासिल किया जा सकता है। यह सिर्फ एक...

Himachal Weather: हिमाचल में मौसम का मिजाज़, जानिए कैसा रहेगा आज
19/05/2023

Himachal Weather: हिमाचल में मौसम का मिजाज़, जानिए कैसा रहेगा आज

हिमाचल में मौसम आज से दो दिन खराब रहेगा। मौसम विज्ञान केंद्र शिमला ने शिमला, सोलन, सिरमौर, मंडी, कुल्लू, चंबा, किन्नौ....

Himachal Cabinet Meeting: हिमाचल प्रदेश मंत्रिमण्डल ने लिए आज ये बड़े फैसलेhttps://www.himachalnews.co/go/5794
17/05/2023

Himachal Cabinet Meeting: हिमाचल प्रदेश मंत्रिमण्डल ने लिए आज ये बड़े फैसले
https://www.himachalnews.co/go/5794

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की अध्यक्षता में प्रदेश सचिवालय में हुई हिमाचल प्रदेश कैबिनेट की बैठक में प्रा....

जिस आवाज को कभी नकारा था, वही आवाज़ बनी ‘हिमाचल का गौरव’
17/05/2023

जिस आवाज को कभी नकारा था, वही आवाज़ बनी ‘हिमाचल का गौरव’

आम जनमानस की वेदना तथा हृदय की पुकार है करनैल राणा की आवाज़

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