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मंडीः धर्मपुर में चलती HRTC बस के टायर खुले, बाल-बाल बची सवारियां
18/04/2024

मंडीः धर्मपुर में चलती HRTC बस के टायर खुले, बाल-बाल बची सवारियां

Shout out to my newest followers! Excited to have you onboard!Vishal Rangra, संदीप ठाकुर, Shashi Sharma, Toni Thakur, Sk...
16/04/2024

Shout out to my newest followers! Excited to have you onboard!

Vishal Rangra, संदीप ठाकुर, Shashi Sharma, Toni Thakur, Sk Sharma, Anil Kumar, Abu Sayed Ali

जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कानूनी लड़ाइयां कितनी असरदार हैंदुनियाभर में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक लड़ाई अदालतों में भी ल...
16/04/2024

जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कानूनी लड़ाइयां कितनी असरदार हैं

दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ एक लड़ाई अदालतों में भी लड़ी जा रही है. हालांकि सवाल यह है कि नीतियों को बदलने में कितने कारगर साबित हो रहे हैं पर्यावरण संबंधित ये कानूनी फैसले?

2022 में स्विट्जरलैंड में लू चलने के कारण 85 साल की मैरी ईव वोलकोफ को 11 हफ्तों तक अपने घर में कैद रहना पड़ा था. इसे उन्होंने ‘क्लाइमेट लॉकडाउन' कहा था. मैरी ‘सीनियर वीमन फॉर क्लाइमेट प्रोटेक्शन' की उन 2,000 सदस्यों में से एक हैं जिन्होंने उत्सर्जन रोकने के लिए उचित कदम नहीं उठाने पर स्विस सरकार के खिलाफ यूरोपीय मानवाधिकार अदालत में मुकदमा दायर किया था.

एक लंबी लड़ाई के बाद अदालत ने इन महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाया है. अदालत का कहना है कि स्विस सरकार उत्सर्जन कम करने के लक्ष्य को पूरा करने असफल रही, जिससे मानवाधिकारों का हनन हुआ है. संगठन की वकील कोर्देलिया बार ने कहा, "कोर्ट का फैसला इस बात की पुष्टि करता है कि जलवायु सुरक्षा एक मानवाधिकार है. यह हमारे लिए एक बड़ी जीत है.” यह पहला मौका है जब यूरोपीय मानवाधिकार अदालत ने जलवायु परिवर्तन और उत्सर्जन को लेकर इतना बड़ा फैसला सुनाया है.

इस केस के साथ साथ दो और अहम केस अदालत के सामने आए थे. छह पुर्तगाली युवाओं ने यूरोप की 32 सरकारों के खिलाफ जलवायु परिवतर्न को रोकने के लिए अधिक महत्वाकांक्षी कदम उठाने का मुकदमा दायर किया था. फ्रांस के एक पूर्व मेयर डेमिय करेम ने भी फ्रांस की सरकार पर जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कदम उठाने के लिए दबाव बनाने की अपील की थी. हालांकि, इन दोंनो ही मामलों को अलग अलग कारणों से कोर्ट ने खारिज कर दिया.

बड़ी कंपनियां भी जलवायु बचाने में नहीं कर रहीं पर्याप्त मदद

बढ़ रही है पर्यावरण से जुड़े मुकदमों की संख्या
पर्यावरण से जुड़े मुकदमे सरकारों और बड़ी कंपनियों को जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार ठहराने का अहम जरिया बन चुके हैं. इसके साथ ही उन पर दबाव डाला जा रहा है कि वे इसके लिए गंभीरता से सोचें और कदम उठाएं.

संयुक्त राष्ट्र और साबिन सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज, कोलंबिया यूनिवर्सिटी की ग्लोबल क्लाइमेट लिटिगेशन रिपोर्ट 2023 के अनुसार 2017 से जलवायु परिवर्तन के खिलाफ दायर होने वाले मुकदमों की संख्या दोगुनी हुई है. रिपोर्ट बताती है कि 2017 में जहां ऐसे मामलों की संख्या केवल 884 थी वह 2022 में बढ़कर 2,180 हो गई. इनमें से अधिकतर केस अमेरिका में दायर किए गए थे

जलवायु परिवर्तन से संबंधित चर्चित केस
पेरू के एक किसान सॉल लूसिआनो ने जीवाश्म ईंधन की सबसे बड़ी जर्मन कंपनी आरडब्ल्यूई के खिलाफ अकेले ही लड़ाई लड़ी. सॉल हुआराज के जिस इलाके में रहते हैं वहां के ग्लेशियर पिघल रहे हैं. इससे वहां की झील का जलस्तर बढ़ने लगा. सॉल को डर था कि इससे उनके इलाके में भीषण बाढ़ आ सकती है. इसलिए उन्होंने मांग की कि कंपनी भविष्य में आने वाली इस आपदा से सुरक्षा का खर्च उठाए.

यह कंपनी यूरोप में सबसे अधिक उत्सर्जन करने वाली कंपनियों में से एक है. उनके इस मुकदमे के कारण जर्मनी से दो जज खुद यह देखने गए थे कि आखिर उत्सर्जन से कितना नुकसान हो रहा है.

गर्मी के पहले ही पानी के भयानक संकट से जूझ रहा है बेंगलुरु
बीते कुछ सालों में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे के पर काम कर रहे संगठन, कार्यकर्ता यहां तक कि आम लोगों ने भी अदालतों का रुख किया है.

पर्यावरण के लिए काम करने वाली डच गैर-सरकारी संगठन उरहेंदा के साथ 900 नागरिकों ने नींदरलैंड सरकार पर मुकदमा किया था. नींदरलैंड की सुप्रीम कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए सरकार को साल 2020 तक 25 फीसदी ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन को कम करने के लिए कदम उठाने का आदेश दिया था. इस फैसले को पर्यावरण संबंधित मुकदमों के लिए एक मिसाल की तरह देखा जाता है.

अदालत के फैसलों के साथ सरकारों की जवाबदेही जरूरी
मायाल्मित लेपचा सिक्किम इंडिजिनस लेपचा ट्राइबल असोसिएशन की अध्यक्ष और अफेक्टेड सिटिजन ऑफ तीस्ता की जनरल सेक्रटरी हैं. सिक्किम में जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर वह लगातार काम करती रही हैं. डीडब्ल्यू से बातचीत में उन्होंने कहा कि ऐसे अंतरराष्ट्रीय फैसले महत्व रखते हैं. यह सभी देशों और उनके सरकारों की जिम्मेदारी है कि राजनीति को परे रखकर वे इन फैसलों को लागू करें. उन्हें ऐसे फैसलों को एक चेतावनी की तरह लेना चाहिए.

हाल ही में भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से मुक्त होने के अधिकार को मान्यता दी है. कोर्ट ने कहा कि यह अधिकार भारतीय संविधान में मौजूद जीवन जीने और समानता के मौलिक अधिकार से जुड़ा हुआ है.

मेरिका के मोनटाना में युवाओं के समूह ने यह मुकदमा दायर किया था कि जीवाश्म ईंधन को बढ़ावा देकर उनके एक साफ और स्वस्थ्य वातावरण के संवैधानिक अधिकार का राज्य हनन कर रहा है. पिछले साल अगस्त में स्थानीय अदालत ने इन युवाओं के पक्ष में फैसला सुनाया था. कोर्ट के इस फैसले को अमेरिका में जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुकदमों के लिए एक नींव के तौर पर देखा गया.

पर्यावरण के मुद्दे पर काम करनेवाली अंतरराष्ट्रीय संस्था ग्रीनपीस के कैंपेन मैनेजर अविनाश चंचल ने डीडब्ल्यू को बताया कि स्विस महिलाओं की इस जीत को वैश्विक स्तर पर चल रही पर्यावरण की कानूनी लड़ाई के लिए एक ऐतिहासिक पल की तरह देखा जा सकता है. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से सबसे कमजोर वर्ग को बचाने की जिम्मेदारी सरकारी की ही है. अगर वे ऐसे करने में नाकामयाब रहते हैं तो उनकी जवाबदेही तय करनी भी जरूरी है.

जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में महिलाओं की भूमिका
जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जारी लड़ाई में महिलाओं की भूमिका अहम है. इसका सबसे ताजा उदाहरण स्विस महिलाओं की जीत है. चाहे युवा महिलाएं हो या बुजुर्ग, दुनियाभर के अलग-अलग हिस्सों में औरतें पर्यावरण संबंधित मुकदमे दायर कर रही हैं.

ऐसा इसलिए भी है क्योंकि जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक असर महिलाओं पर होता है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक 2050 तक जलवायु परिवर्तन 15.8 करोड़ और महिलाओं या लड़कियों को गरीबी की ओर ढकेल देगा. जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापित होने वाले लोगों में भी 80 फीसदी महिलाएं ही होती हैं. जलवायु परिवर्तन का सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव भी महिलाओं और लड़कियों के ही स्वास्थ्य पर देखने को मिलता है.

खेती की प्राचीन तकनीक से जलवायु परिवर्तन का सामना

इस कानूनी लड़ाई में महिलाओं की भूमिका पर लेपचा कहती हैं, "मैं खुद एक महिला हूं तो समझ सकती हूं कि क्यों महिलाएं इस लड़ाई में आगे हैं. एक मां के तौर पर जब हम बच्चों को, आने वाली पीढ़ियों को देखते हैं तो हमें नजर आता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण वे खतरे में हैं. हमारे पास कितना कम वक्त है. इसलिए हम महिलाएं अपने कंफर्ट जोन से निकल कर जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर काम कर रही हैं. यह हमारे लिए एक भावनात्मक मुद्दा है.”

भीषण है जलवायु संकट लेकिन बच्चों को कैसे समझाएं

2019 में पाकिस्तान की ही मारिया खान और कुछ महिलाओं के समूह ने मिलकर जलवायु परिवर्तन से महिलाओं पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को लेकर सरकार के खिलाफ केस दर्ज किया था. उन्होंने कहा था कि जलवायु परिवर्तन को लेकर सरकार की नाकाम कोशिशें समानता और लिंग के आधार पर भेदभाव ना करने के महिलाओं के अधिकार का हनन कर रही हैं.

युवा पर्यावरण कार्यकर्ता रिद्धिमा पांडे सिर्फ नौ साल की थीं जब उन्होंने 2017 में जलवायु परिवर्तन के खिलाफ पर्याप्त कदम नहीं उठाने के लिए भारत सरकार पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में केस किया था.

‘वॉरियर मॉम' उन मांओं का संगठन है जो भारत में बच्चों और आगे की पीढ़ियों के लिए साफ हवा सुनिश्चित करने का अभियान चला रही हैं. संगठन की सह-संस्थापक भवरीन कंधारी ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि "वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन से जुड़े नियम कानून अलग हैं. यहां भारत में कानून अलग तरीके से काम करता है. यूरोपीय मानवाधिकार अदालत और भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल ही में जलवायु परिवर्तन को लेकर जो कहा वह उम्मीद जरूर जगाता है. लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि ये कोर्ट के आदेश हैं. ये ऐक्शन में तब्दील होते हैं कि नहीं यह हमेशा एक चुनौती होगी.

16/04/2024
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15/04/2024

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14/04/2024

टोनी ठाकुर के साथ बेरोजगारी और नशे के ऊपर कुछ विचार और आज का युवा कैसे इनसे बच सकता है

दुनिया भर में जंगलों को बचाने की जगह उनका सफाया हो रहा हैपृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है. इसके लिए जंगलों को बचाना जर...
13/04/2024

दुनिया भर में जंगलों को बचाने की जगह उनका सफाया हो रहा है

पृथ्वी का तापमान लगातार बढ़ रहा है. इसके लिए जंगलों को बचाना जरूरी है. एक नई रिसर्च के अनुसार, पृथ्वी पर निरंतर पेड़ों की कटाई के चलते वनों का दायरा सिकुड़ रहा है. आखिर जंगल हमारे लिए क्या करते हैं?एक समय पृथ्वी की आधी से अधिक जमीन पर घना जंगल हुआ करता था. इंसान लगभग 10,000 वर्षों से इन जंगलों को काट रहे हैं, लेकिन बीती एक शताब्दी से जंगलों की कटाई में नाटकीय रूप से तेजी आई है. 1900 से अब तक संयुक्त राष्ट्र अमेरिका की सारी जमीन के आकार के बराबर के जंगल गायब हो गए हैं. यह मात्रा उतनी ही है जितनी कि पिछले 9000 साल में काटे गए जंगल. ऑनलाइन साइंस प्लेटफार्म और वर्ल्ड इन डाटा के मुताबिक जंगलों का यह नुकसान निरंतर बढ़ता जा रहा है. वर्ल्ड रिसोर्स इंस्टीट्यूट (डब्ल्यूआरआई) की तरफ से जारी न्यू ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच स्टडी के अनुसार, 2023 में पृथ्वी पर हर सप्ताह सिंगापुर के क्षेत्र के बराबर के जंगल गायब होते गए. इसका मतलब है कि साल भर में कुल 37 लाख हेक्टेयर जमीन से जंगल गायब हो गए. हालांकि जंगलों के कटने की यह दर 2022 की तुलना में थोड़ी सी कम रही है. रबर की खेती के लिए अंधाधुंध काटे जा रहे हैं जंगल अकसर खेती की जमीन हासिल करने के लिए जंगलों को काटा जाता है. बीते कुछ दशकों में यह ज्यादातर बीफ, सोया और पाम आयल या टिंबर के लिए किया जाता है. जलवायु परिवर्तन के कारण भड़कती आग में भी जंगल तबाह हो रहे हैं. बीते वर्ष कनाडा में लगी आग ने सभी रिकॉर्ड तोड़ते हुए जंगलों को भारी नुकसान पहुंचाया था.

अगर जंगल इसी तरह से सिकुड़ते रहे तो यह ग्रह इंसानों के रहने लायक नहीं बचेगा. ज्यादातर देशों ने 2030 तक जंगलों को कटाई पर रोक लगाने की शपथ ली है, लेकिन कोई भी देश उस स्तर के प्रयासों के आसपास नहीं दिख रहा है जो इसे हासिल करने के लिए चाहिए. डब्ल्यूआरआई में ग्लोबल फॉरेस्ट वाच निदेशक मिकाइला वाइस ने एक बयान में कहा, "दुनिया ने दो कदम आगे बढ़ाये, लेकिन बीते वर्ष के जंगलों के नुकसान की ओर देखा जाए तो वह दो कदम पीछे भी गई है" मैरीलैंड विश्वविद्यालय की ओर से किए गए एक सर्वे के अनुसार, कोलंबिया और ब्राजील जैसे देशों को उष्णकटिबंधीय जंगलों की कटाई की दर घटाने में सफलता मिली है, लेकिन बोलीविया, लाओस, निकारागुआ जैसे देशों में बढ़ी दर ने फायदे की स्थिति को बराबर कर दिया. क्यों जरूरी हैं जंगल? स्वस्थ जंगल ऑक्सीजन बना कर कार्बन डाईऑक्साइड अवशोषित करते हैं. इससे धरती पर पलने वाले जीवों को सांस लेने के लिए पर्याप्त हवा मिलती है. जंगल पीने के पानी को भी प्राकृतिक रूप से फिल्टर करके भूजल के रूप में इकट्ठा करते हैं. पेड़ों की जड़ें बारिश के पानी के जमीन के अंदर जाने से पहले ही जरूरी पोषक तत्वों और प्रदूषकों को अवशोषित कर लेती हैं ताकि पीने लायक साफ पानी भूजल के रूप में बचा रहे. यही जड़ें भूस्खलन के समय मिट्टी को भी मजबूती से बांधे रखती हैं और भारी बारिश के बावजूद पानी सोख लेती हैं. मैंग्रोव जंगलों की बात की जाए तो वे ढाल बनकर चक्रवाती तूफान से तटीय इलाकों को बचाने का काम करते हैं. जंगल इस बात में भी अपनी अहम भूमिका निभाते हैं कि हमें खाने के लिए पर्याप्त खाना मिल जाए. वे फल देते हैं जिसे इंसान खाते हैं या फिर खेती के लिए परागण और जल आपूर्ति को सुनिश्चित करते हैं. लगभग 30 करोड़ लोग जंगलों में रहते हैं और करीब 1.6 अरब लोगों की आजीविका का सहारा भी जंगल हैं. जंगल उन्हें लकड़ी, ईंधन, भोजन और रहने की जगह या आसरा देते हैं.

इंसानों के साथ-साथ धरती पर जैव विविधता में वनों का 80% से भी अधिक योगदान होता है. करीब 80% उभयचर और 75% पक्षी इन पर आश्रित हैं. उष्णकटिबंधीय वर्षावन ज्यादा जीवों का बोझ उठाने में ज्यादा सक्षम होते हैं. पृथ्वी पर मौजूद आधे से ज्यादा कशेरुकी जीव जंगलों से ही पलते हैं. अंतरराष्ट्रीय वन संरक्षण के लिए विख्यात गैर सरकारी संगठन डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के मुताबिक, उष्णकटिबंधीय वर्षा वन जब काटे जाते हैं तो वह हर दिन लगभग 100 प्रजातियों के विलुप्त होने का जोखिम मंडराने लगता है. इंसानों के अस्तित्व के लिए जैव विविधता बुनियादी जरूरत है. जलवायु परिवर्तन और जंगल कैसे जुड़े हैं? वनों की कटाई को रोका जाना मुमकिन है. 2023 में ब्राजील में 36% तक प्राथमिक वनों की कटाई कम हुई, वहीं पिछले वर्ष की तुलना में कोलंबिया में वनों को नुकसान 49% तक कम हुआ. हालांकि यह सब राजनीतिक कारणों की वजह से हो सका. वनों के मोर्चे पर कोलंबिया में बनी लाभ की इस स्थिति के पीछे देश में शांति प्रक्रिया की अहम भूमिका रही. इसमें अलग अलग हथियारबंद गुटों के बीच बातचीत हुई और उनमें वन संरक्षण को प्राथमिकता दी गई. ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डा सिल्वा ने तो वनों के संरक्षण को अपना एक नीतिगत लक्ष्य बनाया है. इसके लिए उन्होंने आवश्यक कानूनी सख्ती करने के साथ ही उन नीतियों को रद्द कर दिया जो वनों को क्षति पहुंचाने वाली थीं. साथ ही मूलनिवासियों के इलाकों को मान्यता भी दी है.

उनकी ये नीतियां उनके पूर्ववर्ती जैर बोलसोनारो के एकदम उलट हैं, जिनकी नीतियों में आर्थिक विकास के लिए वनों को खत्म किया जा रहा था. डब्ल्यूआरआई में वैश्विक वन निदेशक रॉड टेलर का कहना है, "राजनीतिक इच्छाशक्ति के दम पर देश वनों की कटाई की दर को घटा सकते हैं, लेकिन हम जानते हैं कि सियासी हवा बदलने के साथ इस मोर्चे पर प्रगति की धारा पलट भी सकती है.” इस प्रकार के संभावित रुझान की काट के लिए टेलर का सुझाव है, "वैश्विक अर्थव्यवस्था को खेत, खदान या फिर नई सड़कें बनाने के लिए वनों की कटाई से हासिल होने वाले तात्कालिक फायदों की तुलना में जंगलों की कीमत बढ़ाने की जरूरत है.” जर्मनी और ब्रिटेन के कारण सबसे ज्यादा उजड़े जंगल वनों को कैसे संरक्षित किया जा सकता है? वनों के संरक्षण के कुछ तौर-तरीकों में वैसी वैश्विक पहल भी शामिल हैं, जो वनों का इस आधार पर आकलन करती हैं कि वे कितनी कार्बन संरक्षित कर सकते हैं. वन क्षेत्रों के संरक्षण में लगे स्थानीय निवासियों और जमीन मालिकों को उनके इन प्रयासों के लिए प्रत्यक्ष भुगतान जैसे नए प्रकार के प्रयास भी किए जा रहे हैं. सप्लाई चेन पर ध्यान दे कर भी जंगलों की कटाई से निपटा जा सकता है. मिसाल के तौर पर, यूरोपीय संघ के डिफोरेस्टेशन रेग्यूलेशन का उदाहरण सामने है. इसमें कंपनियों पर यह दबाव है कि वे मवेशी, कोकोआ, कॉफी, पाम आयल, रबर, सोया और लकड़ी के आयात के मामले में ध्यान रखें कि कहीं वे ऐसे किसी स्थान से तो नहीं आ रहे, जहां उनके लिए जंगल को हाल में ही काटा गया हो. वनों में निवास करने वाले मूल निवासियों के समुदायों को प्रोत्साहन के माध्यम से भी वनों की कटाई को रोकने में मदद मिल सकती है. विश्व बैंक के अनुसार, बचे हुए करीब 36 प्रतिशत वन मूल-निवासियों की भूमि पर हैं और वे जैव-विविधता के संरक्षण में उपयोगी हैं. जिस जगह वन की कटाई की गई, वहां दोबारा जंगल लगाना पेरिस समझौते के लक्ष्य को हासिल करने के लिए उठाए कदमों का हिस्सा है. कई देश तो वहां भी जंगल लगाने की राह पर चल रहे हैं जहां पहले वन नहीं था. वन विशेषज्ञ टेलर का कहना है, "सभी उष्णकटिबंधीय देशों में वनों की कटाई में स्थाई कमी लाने के लिए साहसिक वैश्विक तंत्र और अनूठी स्थानीय पहल दोनों आवश्यक है
Editor - Munish Thakur
The Indian Fame

05/04/2024

15,15 करोड़ में बिका एक एक विधायक _

CM Sukhu

05/04/2024

बड़े दुःख की बात है की हिमाचल की मीडिया भी बिक चुकी है

05/04/2024
यशु ठाकुर जी को जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं 💐🙏माता रानी की कृपा सदैव आप सभी पर बनी रहे जय माता दी
04/04/2024

यशु ठाकुर जी को जन्मदिन की बहुत-बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं 💐🙏माता रानी की कृपा सदैव आप सभी पर बनी रहे जय माता दी

03/04/2024

वाह क्या जबरदस्त मूली है ना ही फूले
और बीमारियों से भी रहे सौ कोस दूर
मिनाक्षी रेडिस
Ultimate results

आगामी लोकसभा चुनावों के कारण प्रदेश में आचार संहिता लागू होने के पश्चात 30.03.2024 तक 02 सप्ताह के भीतर कार्यवाही करते ह...
31/03/2024

आगामी लोकसभा चुनावों के कारण प्रदेश में आचार संहिता लागू होने के पश्चात 30.03.2024 तक 02 सप्ताह के भीतर कार्यवाही करते हुए पुलिस विभाग द्वारा तालिका में दिखाए गए मादक पदार्थों को जब्त किया गया।

हिमाचल प्रदेश पुलिस प्रदेश में स्वतन्त्र व निष्पक्ष चुनाव करवाने हेतु प्रतिबद्ध है।

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Shout out to my newest followers! Excited to have you onboard! Sourav Rajput, Renu Thakur, Dibya Thakur
28/03/2024

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धोखाधड़ी से रहे सावधान
25/03/2024

धोखाधड़ी से रहे सावधान

कुल्लू , लगघाटी से संबंध रखने वाले सुनील  ठाकुर को जन्मदिन की बधाई एवं शुभकामनाएं
25/03/2024

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हमीरपुर , के प्रवीण भाई को जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं
25/03/2024

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मंडी,  Dadour चौक -ट्रेफिक नियमों को ताक पर रखकर क़िया ज़ा रहा तार तारसंवादाता - खबरीलाल
23/03/2024

मंडी, Dadour चौक -
ट्रेफिक नियमों को ताक पर रखकर क़िया ज़ा रहा तार तार
संवादाता - खबरीलाल

कांगड़ा, चार-पांच महीने से कांगड़ा जिले के एक व्यक्ति ने इस कार्य के लिए स्थानीय निवासी के मकान का लेंटर किराये पर ले रख...
20/03/2024

कांगड़ा,
चार-पांच महीने से कांगड़ा जिले के एक व्यक्ति ने इस कार्य के लिए स्थानीय निवासी के मकान का लेंटर किराये पर ले रखा था। इस कार्य में कुछ और लोग भी शामिल हैं।
बिना परमिट ड्रोन के जरिये नेरचौक से हमीरपुर के लिए दवाइयां सप्लाई करने पर सदर थाना हमीरपुर में मामला दर्ज किया गया है। चार-पांच महीने से कांगड़ा जिले के एक व्यक्ति ने इस कार्य के लिए स्थानीय निवासी के मकान का लेंटर किराये पर ले रखा था। इस कार्य में कुछ और लोग भी शामिल हैं। पुलिस को मंगलवार को सूचना मिली कि गाहलियां गांव में एक निजी स्कूल के पास ड्रोन गिरा हुआ है। एसएचओ हमीरपुर हरीश गुलेरिया के नेतृत्व में पुलिस की एक टीम मौके पर पहुंची। स्थानीय लोगों ने पुलिस को बताया कि गिरे हुए ड्रोन को अभिषेक नाम का व्यक्ति अपने साथ गांव घनाला स्थित अपने निवास स्थान पर लेकर चला गया है।
पुलिस गांव घनाला पहुंची, जहां स्थानीय वार्ड सदस्य व स्थानीय निवासियों की मौजूदगी में कांगड़ा जिले के शाहपुर के गांव बुशहरा निवासी अभिषेक की तलाशी ली तो वहां एक ड्रोन पाया गया। पुलिस ने अभिषेक से संबंधित ड्रोन के दस्तावेज मांगे, लेकिन वह कोई भी परमिट और अनुमति पत्र प्रस्तुत नहीं कर सका। इस पर उसके विरुद्ध थाना सदर हमीरपुर में मामला दर्ज किया गया। पुलिस अधीक्षक पदम सिंह ने कहा कि मामले की छानबीन जारी है।

12/03/2024

शिवरात्रि पर्व पर छोटी काशी मंडी में
जो प्रोग्राम किया जाता है उसमें हिन्दी फिल्म के गानों को छोड़ कर अगर भक्ति से भरे गाने और भगवान का नाम लिया जाए तो अच्छा होगा

कहां जा रही है हमारी संस्कृति

किसान भाइयों के लिए भारी छूटआपके नेरचौक में उपलब्धContact number - 98829 48535
11/03/2024

किसान भाइयों के लिए भारी छूट
आपके नेरचौक में उपलब्ध
Contact number - 98829 48535

08/03/2024

ग्राम पंचायत सोहारी मैं शिवरात्रि के पर्व पर भजन कीर्तन

24/02/2024

आज मिल ही गया
चंद्रकांता का दीवाना

15/02/2024

SAMRAT - CABBAGE 🥬
ठोस और वजनदार

Thanks for being a top engager and making it on to my weekly engagement list! 🎉 Bioseed HP, Jagan Shakya
06/02/2024

Thanks for being a top engager and making it on to my weekly engagement list! 🎉 Bioseed HP, Jagan Shakya

05/02/2024

हिमाचल का हाल

सड़के बंद
जम गईं पानी की पाइपें, बिजली गुल

31/01/2024

हिमाचल में बर्फबारी शुरू हुई

शिमला: हिमाचल प्रदेश में मौसम ने कड़े तेवर दिखाए हैं. दो माह से चल रहा सूखा खत्म हुआ है. बारिश और बर्फबारी के साथ-साथ लैंडस्लाइड (Landslide) होने से जनजीवन पर असर पड़ा है. सूबे में चार नेशनल हाईवे सहित 130 सड़कें बंद हो गई हैं. अटल टनल रोहतांग (Atal Tunnel) के पास एक फीट ताजा बर्फबारी (Manali Snowfall) होने से मनाली के नेहरू कुंड से आगे ट्रैफिक बंद किया गया है. मनाली के गुलाबा, पलचान सोलांगवैली, अटल टनल के आसपास बर्फ गिरी है. मनाली शहर में बीती रात को हल्की बर्फबारी हुई थी. अब बुधवार सुबह यहां भारी बर्फबारी शुरू हुई है.

हिमाचल प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन ने सुबह दस बजे ताजा बुलेटिन जारी किया है, जिसमें यह जानकारी दी है. किन्नौर जिले में नाथपा के पास एक पहाड़ी से पत्थरों की बौछार होने से शिमला-रामपुर-किन्नौर नेशनल हाईवे-5 बंद हो गया है. राष्ट्रीय उच्च मार्ग के अवरुद्ध होने से प्रशासन ने डेम साइट से बने वैकल्पिक मार्ग से यातायात को डाइवर्ट किया है. सड़क बहाली की कोशिशें जारी हैं.

सबसे अधिक लाहौल घाटी पर असर

आपदा प्रबंधन ने बताया कि सूबे में सबसे अधिक सड़कें लाहौल स्पीति में बंद हुई है. यहां पर बीती रात से बर्फबारी हो रही है. लाहौल सबडिवीजन में 71 और उदयपुर डिवीजन में 48 रोड बंद हैं. इसी तरह यहां पर दारचा लेह मनाली हाईवे, सरचू हाईवे, काजा ग्रांफ्फू लोसर हाईवे भी बंद हैं. टांडी-खाड़ू रोड बंद हुआ है. लाहौल में बर्फबारी के चलते जनजीवन अस्तव्यस्त हो गया है. हालांकि, बागवान और किसान खुश हैं.

शिमला में कहां कहां गिरी बर्फ

शिमला में शिलारू, मतियाना, नारकंडा, कोटखाई, रोहड़ू सहित अन्य इलाकों में हिमपात हुआ है. शिमला के रोहडू और डोडरा क्वार में एक-एक सड़क बंद है. इसी तरह रोहड़ू सुंगरी मार्ग की बहाली की जा रही है. चांसल डोडरा क्वार रोड बंद है. कुल्लू में औट लूहरी-रामपुर नेशनल हाईवे जलोड़ी जोत के पास बर्फबारी के चलते बंद हुआ है. वहीं, रोहतांग पास जाने वाली सड़क भी बंद हैं. यहां पर कुल दो हाईवे बंद हैं. किन्नौर में नाथपा के पास लैंडस्लाइड के चलते एनएच पांच बंद हुआ है.चंबा में डलहौजी सहित पांगी भरमौर में बर्फ गिरी है. ऐसे में यहां पर तीन मार्ग बंद हुए हैं. बैराजगढ़-किलाड़ मार्ग साच पास से बंद है. जो गर्मियों में खुलेगा. इसी तरह चंबा जोत मार्ग बंद हो गया है.

अटल टनल के पास हिमपात
बीते चौबीस घंटे में अटल टनल के पास जमकर बर्फबारी हुई है. यहां पर अब तक एक फीट के आसपास बर्फ गिर चुकी है. कुल्लू पुलिस ने यह जानकारी दी है. यहां पर गाड़ियों की आवाजाही बंद हो गई है. इसी तरह बिजली सेवा पर भी असर पड़ा है और चंबा सहित प्रदेश भर में 388 बिजली ट्रांसफार्मर बंद हो गए हैं.

मौसम विभाग के शिमला केंद्र ने भी ताजा बुलेटिन जारी किया है. इसमें बताया है कि 31 जनवरी और एक फरवरी के लिए हिमाचल प्रदेश में ऑलेंज अलर्ट रहेगा और जमकर बर्फ और बारिश होगी. मौसम विभाग ने बताया कि चंबा के सलूणी में 25 एमएम बारिश, मनाली में 12 एमएम, पंडोह में 5 एमएम, सराहन में 7 और रामपुर में 9, डलहौजी में 7, भुंतर में 8, सेऊबाग में 8 एमएम बारिश रिकॉर्ड की गई है. इसी तरह लाहौल के कुकुमसेरी में 14 सेंटीमीटर स्नोफॉल, खदराला में 14, भरमौर में 8, सांगला वैली में 5, कोकसर में 2, समदो 4, और शिमला के शिलारू में भी 5 सेंटीमीटर बर्फ गिरी है.

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