16/11/2022
आज दरभंगा महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह जी की पुण्यतिथि है। मेरे लिए लक्ष्मीश्वर सिंह मिथिला के वो सबल सपूत थे जिनकी यदि सिर्फ 40 वर्ष की उम्र में असमय मौत नहीं हुई होती तो मिथिला आज आवश्यक रूप से एक अलग राज्य होता। यदि महाराज का 1898 में देहावसान ना हुआ होता तो 1912 में बंगाल विभाजन के वक्त ही मिथिला एक अलग राज्य बना दिया गया होता।
तत्कालीन भारत के सर्व प्रभावशाली व्यक्तित्वों में शुमार लक्ष्मीश्वर सिंह का अपना एक अलग रुतबा था। लक्ष्मीश्वर सिंह जी भारत के पहले चुने हुए जनप्रतिनिधि थे, वायसराय के लेजिस्लेटिव काउंसिल के मेंबर थे। आज हम भारतवंशी ऋषि सुनक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बने हैं तो हम सब खुश हैं। वो लक्ष्मीश्वर सिंह ही थे जिन्होंने ब्रिटेन के संसद में भारतवंशियों के अधिकार की बात सबसे पहले उठाया था। लक्ष्मेश्वर सिंह ही वो व्यक्ति थे जिन्होंने उस वक्त मीडिया और अंग्रेजी सरकार के विरोध में उठने वाली आवाजों को दबाने हेतु विस्तार किए जा रहे इंडियन पैनल एक्ट के 124-A और 153-A का पब्लिकली विरोध किया था और लड़ा था। दरभंगा महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह कांग्रेस के संस्थापक सदस्य थे। 1888 में कांग्रेस सत्र इलाहाबाद में होना था, अंग्रेजी सरकार ने निषेधा लगा दिया की किसी सार्वजनिक जगह पर कार्यक्रम नहीं हो सकता है। देशभर से कार्यकर्ता आने वाले थे, अब सार्वजनिक मैदान नहीं मिलेगा तो लोग कहां जुटेंगे, सब चिंतित थे। दरभंगा महाराज ने रातों रात इलाहाबाद का सबसे बड़ा महल खरीद लिया, अगले दिन उसी परिसर में कांग्रेस का भव्य कार्यक्रम हुआ, कार्यक्रम के बाद महाराज ने वो महल कांग्रेस को ही दान कर दिया।
महात्मा गांधी जब दक्षिण अफ्रीका में भारतीय मूल के लोगों के साथ हो रहे भेदभाव नीति का विरोध कर रहे थे तो उनके मुहिम को जन मानस का समर्थन तो मिल रहा था, लेकिन मीडिया में उनकी बात प्रकाशित नहीं हो पा रही थी। गांधी की परेशानी यह थी कि जिस सरकार का वो विरोध कर रहे थे, वो इंग्लैंड में थी और वहां तक अपनी बात पहुंचाने का एक मात्र माध्यम उस वक्त मीडिया ही था।
महात्मा गांधी ने भारत के कई ताकतवर लोगों को पत्र लिखकर मदद की अपील की, इसके बावजूद गांधी के आंदोलन की खबरें इंग्लैंड के अखबारों में जगह नहीं पा सकी। ऐसे में गांधी को दरभंगा के महाराजा और शाही परिषद के पहले निर्वाचित भारतीय सदस्य लक्ष्मीश्वर सिंह से संपर्क करने को कहा गया। दोनों के बीच संपर्क के सूत्रधार बने एक अंग्रेज शिक्षक जो लक्ष्मीश्वर सिंह के शिक्षक भी थे और बाद में उस स्कूल के प्रधानाध्यापक भी बने जिसमें गांधी ने पढ़ाई की। गांधी ने नटाल (दक्षिण अफ्रीका) से लक्ष्मीश्वर सिंह को एक पत्र लिखा और पत्र में गांधी ने विस्तार से अपनी मजबूरी का जिक्र किया है
गांधी का पत्र मिलते ही लक्ष्मीश्वर सिंह ने उसपर कार्रवाई शुरू कर दी। उन्होंने गांधी को आश्वस्त किया कि वो उनकी हर तरह से मदद करेंगे। महाराजा ने पत्र के आलोक में लंदन टाइम्स के संपादक को एक पत्र लिखा, उस पत्र में गांधी की आवाज को अखबार में जगह देने की अपील की गयी। महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह के इस प्रयास के बाद न केवल गांधी का आंदोलन अखबारों की सुर्खियां बनी, बल्कि गांधी के साथ हमेशा एक पत्रकार चलने लगा. मीडिया प्रबंधन की चिंता फिर गांधी के सामने कभी उत्पन्न नहीं हुई।
लक्ष्मीश्वर सिंह ने दक्षिण अफ्रीका में शुरू हुए आंदोलन को आर्थिक मदद करने के लिए साउथ अफ्रीका इंडियन एसोसिएशन की स्थापना की थी। इस संस्था के माध्यम से वहां के लोगों और आंदोलन को कई प्रकार की मदद दी जाने लगी। दुभार्ग्य रहा कि महज दो साल बाद ही 1898 में महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह का निधन हो गया और बिहार का गांधी से रिश्ता का एक मजबूत स्तंभ गिर गया। इसके बावजूद गांधी और दरभंगा राज परिवार के बीच सतत संपर्क बना रहा। लक्ष्मीश्वर सिंह के भतीजे महाराजा कामेश्वर सिंह के संबंध में गांधी ने 1946 में एक साक्षात्कार के दौरान कहा था कि वो मेरे पुत्र समान हैं। इस रिश्ते की नींव महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह ने ही रखी थी।
महाराज का ख्वाब था की दरभंगा इंस्टीट्यूशनलाइज्ड और इंदुस्ट्रीयलाइज्ड हो। इन्होंने और इनके उत्तरार्द्धीयों ने इसके लिए प्रयास भी किया। और यही वजह थी की हाल के दशकों तक मिथिला पूरे देश मे अपने ओद्यौगिकरण, विश्वविद्यालयों, अस्पताल, एयरपोर्ट, रेलवे, कृषि विश्वविद्यालय समेत आधुनिक कृषि के लिए विख्यात था। यह इनके विजनरी सोच का ही परिणाम था।
इनके रहते तिरहुत देश की राजनीतिक और आर्थिक समावेश में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता था। देश मे बिजली, रेलवे, एयरपोर्ट, इंडस्ट्री, एग्रीकल्चरल रिसर्च, हॉस्पिटल्स, यूनिवर्सिटीज आदि आधुनिकता को अगर किसी जगह ने सबसे पहले अपनाया तो वो मिथिला था। BHU, PMCH, कोलकाता हॉस्पिटल, अलीगढ़ यूनिवर्सिटी समेत देश के सभी बड़े सांस्थानिक स्थापनाओं में दरभंगा का योगदान रहा। दरभंगा महाराज की भूमिका तात्कालिक समय में क्या रही इसे ऐसे समझिए की जब अंग्रेजी काल में भोजपुर, मगध आदि से गिरमिटिया मजदूर बनाकर जहाजों से अफ्रीका, फ़िजी, गुयाना, मॉरिसस आदि जगह ले जाए जा रहे थे उस वक्त मिथिला का एक भी मैथिल गिरमिटिया बनाकर नहीं ले जाया जा सका। हमारे यहां रोजगार के लिए अपना चीनी, जुट, पेपर, खाद मिल आदि था।
आज से 148 साल पहले 1874 में दरभंगा के महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने तिरहुत रेलवे की शुरूआत की थी। उस वक्त उत्तर बिहार में भीषण अकाल पड़ा था। तब राहत कार्य के लिए समस्तीपुर के बाजितपुर से दरभंगा तक के लिए पहली ट्रेन मालगाड़ी चली थी। महाराज ने उस अकाल में लोगों की मदद में उस समय 3 लाख रुपया खर्च किया था। महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह ने ही उत्तर बिहार में रेल लाइन बिछाने के लिए अपनी कंपनी बनाई और अंग्रेजों के साथ एक समझौता किया। इसके लिए अपनी जमीन तक उन्होंने तत्कालीन रेलवे कंपनी को मुफ्त में दे दी और एक हज़ार मज़दूरों ने रिकॉर्ड समय में मोकामा से लेकर दरभंगा तक की रेल लाइन बिछाई। उत्तर बिहार और नेपाल सीमा तक रेलवे का जाल बिछाने में महाराज का बड़ा योगदान है. उनकी कंपनी तिरहुत रेलवे ने 1875 से लेकर 1912 तक बिहार में कई रेल लाइनों की शुरुआत की इनमें प्रमुख दरभंगा सीतामढ़ी, सकरी जयनगर, समस्तीपुर खगड़िया, समस्तीपुर दलसिंहसराय, समस्तीपुर मुजफ्फरपुर, मुजफ्फरपुर मोतिहारी, मोतिहारी बेतिया, हाजीपुर बछवाड़ा, नरकटियागंज बगहा लाइनें प्रमुख हैं इसके अलावे भी विभिन्न जगहों से अनेक ट्रेने चलाई गई।
~ Aditya Mohan
पुण्यतिथि पर नमन, श्रद्धांजलि 🙏