18/09/2023
"आई हैवन्ट डाइड येट!!
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लन्दन, पार्लियामेंट स्क्वेयर पर टहलते हुए अचानक गांधी दिखे। आश्चर्य हुआ। ब्रिटिश क्राउन का सबसे बड़ा ज्वेल- हिंदुस्तान!! जिसने अंग्रेजों से छीना,
उस शख्स की तांबे की सजीव मूर्ति, अंग्रेजो ने अपनी संसद के सामने.. ऐसी आइकॉनिक लोकेशन पर लगाई है?" मूर्ति की जानकारी न थी,
कहीं पढ़ा न था। खोजा, तो पता चला, अभी 2015 में ही लगी। PM डेविड कैमरॉन ने, गांधी के अफ्रीका से भारत लौटने के शताब्दी वर्ष पर, अनावरण किया।
क्या ही विडंबना है, कि जब गांधी को नकारने का बवंडर भारत में उठा, दुनिया में उनकी स्वीकृति बढ़ती जा रही है। ये गांधी भारत का आइकन नही है।
ये तो उनका निजी दैवत्व है। ईसा की आराधना, फिलिस्तीन की पूजा नही होती। फिलिस्तीन ईसा का, तो भारत गांधी का, रंगमंच भर ही चुका है।
रामचन्द्र गुहा ने 2013 में गांधी की जीवनी लिखी। प्रचार के लिए अमेरिका गये। कमरा साफ करने आये होटल कर्मचारी ने किताब पर तस्वीर देखी, पूछा- यह युवा गांधी हैं न??
वकील की पोशाक वाले गांधी को पहचाने जाने से विस्मित गुहा ने हामी भरी। कर्मचारी बोला- मेरे देश मे गांधी का बड़ा सम्मान है।
तो पूछने की बारी गुहा की थी- तुम्हारा देश?? -"डोमिनिकन रिपब्लिक"
गांधी ने डोमिनिक रिपब्लिक का नाम न सुना हो। लेकिन आज, डोमिनिकन रिपब्लिक को, गांधी का पता है।
क्योकि गांधी का संदेश सत्य, सहिष्णुता, सत्याग्रह और मनुष्यता है। इनमे बुध्द, और ईसा की सततता है। ये सन्देश, किसी पॉलिटिशियन की यादगार स्पीच नही। जीवन है, जीवन शैली है।
उस दुनिया ने दो महायुद्ध देखे। पाया, कि जब भाषा,धर्म,रंग,रेस की उच्चता का झगड़ा, मानवता को विनाश के मुहाने तक ले जाये। तो थके मन को गांधी, मनुष्यता की तरफ लौटा लाते हैं।
अगर अमेरिका और तमाम यूरोप, गांधी को मानवता कीरिसेंट मेमरी का मसीहा समझता है, तो भारत भूमि की इसमें हिस्सेदारी नहीं।
गांधी की महानता, उनसे अभय में है। महान वही, जिसकी विशालताआतंकित न करे। जिसकी आप, आलोचना कर सकें।
तौल सकें। गांधी की अहिंसा को स्त्रैण बताया गया। निर्णयों पर सवाल हुए, यौन व्यवहार पर टिप्पणियां हुईं। गांधी पर तो हर किस्म का विमर्श खुला है।
पर चीन में माओ, पाकिस्तान में जिन्ना, वियतनाम में होची की आलोचना का विमर्श खुला नही। लिंकन और फ्रैंकलिन पर सवाल कर नही सकते। गांधी, नकारने के लिए उपलब्ध हैं।
उन्हें मानिये, मत मानिये। पर आप देखते है कि गांधी से दूर जाता हर मार्ग भयावह है। वह नफरत, विनाश की तरफ जाता है। वह दरिया नही है, जिसका किनारा बताना मुश्किल हो।
अगर अमेरिका और तमाम यूरोप, गांधी को मानवता की रिसेंट मेमरी का मसीहा समझता है, तो भारत भूमि की इसमें हिस्सेदारी नहीं।
गांधी का संदेश आपकी ताकत है। गांधी, भीरुओ की ताकत है। आम, डरपोक, शांति चाहने वाला व्यक्ति, विरोध से डरता है, क्रांति से डरता है, हथियार उठाकर बढ़ने से डरता है।
जो कानून, पुलिस, जेल, सरकार, और मौत से डरता है। गांधी उसे वहीं से उठाते हैं।
अहिंसक रहकर, निडरता से दिल की कहने का आग्रह करते हैं। निडरता, सत्य खुलने से, कर्तव्य जागने से आती है। औरों का दर्द महसूस करने, उसे दूर करने की जिम्मेदारी से आती है।
गांधी आपकी करुणा को जगाते हैं। चरखा कातने को कहते है, कपड़ो की होली जलवाते हैं, नमक बनवाते हैं। मामूली कामों को प्रतिरोध का प्रतीक, और क्रांति का हथियार बना, हाथ मे थमा देते हैं।
आप जो बंदूक उठाने, हत्या करने से डरते हैं, बम नही चलाना चाहते, तकली चलाते हैं। आपके जैसे लाखों लोग चलाते हैं। अब चरखा सबका रंग है, मजहब है, भाषा है। यह एकीकृत प्रतिरोध है।
ये काम तो कोई गुनाह नही। इसके लिए आप जेल जाएं, तो भीतर अपराध बोध नहीं, गर्व होगा। और जब जेल जाना गर्व की बात बन जाये, तो उस कौम को भला कब तक दबाया जा सकता है। यही बूँद-बूँद प्रतिरोध का सागर, उस बसाम्राज्य को बहा ले गया है, जिसका सूरज अस्त नहीं होता था।
उसी पार्लियामेंट स्क्वेयर में चर्चिल की भी मूर्ति है। जिसने जमकर युद्ध लड़ा, साम्राज्य बचाया। वह चर्चिल, जिसने बंगाल का सारा चावल ब्रिटेन मंगाकर, 4 लाख लोगों को भूखा मार दिया।
जब इन मौतों की सूचना आई, तो फाइल नोटिंग पर पूछा - "वाय हैवन्ट गांधी डाइड येट?"
लेकिन गांधी मरा नहीं। वह फैल गया, दुनिया के हर कोने में। आज ब्रिटेन सिकुड़ चुका है, और जितने देशों में गांधी की मूर्तियां लग चुकी, उस साम्राज्य में सूरज अस्त नहीं होता।
आज भारत से उन्हें हटाने की कोशिशें हैं। लेकिन गांधी ज़रा भी नहीं हिलता। वह अपने कातिलों से निगाहें मिला रहा है, ठठा रहा है, हिंदुस्तान में।
मैं देखता हूँ, वह लन्दन की संसद को भी देखकर मुस्कुरा रहा है। अगर आप सहसा सुन सकें, तो धीमी, गंभीर सी आवाज आती है...
"नो, आई हेवन्ट डाइड येट!"