HINDI Stories-हिन्दी कहानियाँ

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27/04/2024

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25/04/2024

क्षीर सागर में भगवान विष्णु शेष शैया पर विश्राम कर रहे हैं और लक्ष्मीजी उनके पैर दबा रही हैं । विष्णुजी के एक पैर का अंगूठा शैया के बाहर आ गया और लहरें उससे खिलवाड़ करने लगीं ।
✍क्षीरसागर के एक कछुवे ने इस दृश्य को देखा और मन में यह विचार कर कि मैं यदि भगवान विष्णु के अंगूठे को अपनी जिव्ह्या से स्पर्श कर लूँ तो मेरा मोक्ष हो जायेगा,यह सोच कर उनकी ओर बढ़ा ।
✍उसे भगवान विष्णु की ओर आते हुये शेषनाग ने देख लिया और कछुवे को भगाने के लिये जोर से फुँफकारा । फुँफकार सुन कर कछुवा भाग कर छुप गया ।
✍कुछ समय पश्चात् जब शेषजी का ध्यान हट गया तो उसने पुनः प्रयास किया । इस बार लक्ष्मीदेवी की दृष्टि उस पर पड़ गई और उन्होंने उसे भगा दिया ।
✍इस प्रकार उस कछुवे ने अनेकों प्रयास किये पर शेष नाग और लक्ष्मी माता के कारण उसे सफलता नहीं मिली । यहाँ तक कि सृष्टि की रचना हो गई और सत्युग बीत जाने के बाद त्रेता युग आ गया ।
✍इस मध्य उस कछुवे ने अनेक बार अनेक योनियों में जन्म लिया और प्रत्येक जन्म में भगवान की प्राप्ति का प्रयत्न करता रहा । अपने तपोबल से उसने दिव्य दृष्टि को प्राप्त कर लिया था ।
✍कछुवे को पता था कि त्रेता युग में वही क्षीरसागर में शयन करने वाले विष्णु राम का और वही शेषनाग लक्ष्मण का व वही लक्ष्मीदेवी सीता के रूप में अवतरित होंगे तथा वनवास के समय उन्हें गंगा पार उतरने की आवश्यकता पड़ेगी । इसीलिये वह भी केवट बन कर वहाँ आ गया था ।
✍✍एक युग से भी अधिक काल तक तपस्या करने के कारण उसने प्रभु के सारे मर्म जान लिये थे, इसीलिये उसने रामजी से कहा था कि मैं आपका मर्म जानता हूँ ।
✍संत श्री तुलसीदासजी भी इस तथ्य को जानते थे, इसलिये अपनी चौपाई में केवट के मुख से कहलवाया है कि
“कहहि तुम्हार मरमु मैं जाना”।
✍केवल इतना ही नहीं, इस बार केवट इस अवसर को किसी भी प्रकार हाथ से जाने नहीं देना चाहता था । उसे याद था कि शेषनाग क्रोध कर के फुँफकारते थे और मैं डर जाता था ।
✍अबकी बार वे लक्ष्मण के रूप में मुझ पर अपना बाण भी चला सकते हैं, पर इस बार उसने अपने भय को त्याग दिया था, लक्ष्मण के तीर से मर जाना उसे स्वीकार था पर इस अवसर को खो देना नहीं ।
✍✍इसीलिये विद्वान संत श्री तुलसीदासजी ने लिखा है -
✍( हे नाथ ! मैं चरणकमल धोकर आप लोगों को नाव पर चढ़ा लूँगा; मैं आपसे उतराई भी नहीं चाहता । हे राम ! मुझे आपकी दुहाई और दशरथजी की सौगंध है, मैं आपसे बिल्कुल सच कह रहा हूँ । भले ही लक्ष्मणजी मुझे तीर मार दें, पर जब तक मैं आपके पैरों को पखार नहीं लूँगा, तब तक हे तुलसीदास के नाथ ! हे कृपालु ! मैं पार नहीं उतारूँगा । )
✍तुलसीदासजी आगे और लिखते हैं -
✍केवट के प्रेम से लपेटे हुये अटपटे वचन को सुन कर करुणा के धाम श्री रामचन्द्रजी जानकी और लक्ष्मण की ओर देख कर हँसे । जैसे वे उनसे पूछ रहे हैं- कहो, अब क्या करूँ, उस समय तो केवल अँगूठे को स्पर्श करना चाहता था और तुम लोग इसे भगा देते थे पर अब तो यह दोनों पैर माँग रहा है !
✍केवट बहुत चतुर था । उसने अपने साथ ही साथ अपने परिवार और पितरों को भी मोक्ष प्रदान करवा दिया । तुलसीदासजी लिखते हैं -.

✍चरणों को धोकर पूरे परिवार सहित उस चरणामृत का पान करके उसी जल से पितरों का तर्पण करके अपने पितरों को भवसागर से पार कर फिर आनन्दपूर्वक प्रभु श्री रामचन्द्र को गंगा के पार ले गया ।
उस समय का प्रसंग है ... जब केवट भगवान् के चरण धो रहे है ।
✍बड़ा प्यारा दृश्य है, भगवान् का एक पैर धोकर उसे निकलकर कठौती से बाहर रख देते है, और जब दूसरा धोने लगते है,
✍तो पहला वाला पैर गीला होने से जमीन पर रखने से धूल भरा हो जाता है,
✍केवट दूसरा पैर बाहर रखते है, फिर पहले वाले को धोते है, एक-एक पैर को सात-सात बार धोते है ।
✍फिर ये सब देखकर कहते है,
प्रभु, एक पैर कठौती में रखिये दूसरा मेरे हाथ पर रखिये, ताकि मैला ना हो ।
✍जब भगवान् ऐसा ही करते है । तो जरा सोचिये ... क्या स्थिति होगी , यदि एक पैर कठौती में है और दूसरा केवट के हाथों में,
✍भगवान् दोनों पैरों से खड़े नहीं हो पाते बोले - केवट मैं गिर जाऊँगा ?
✍केवट बोला - चिंता क्यों करते हो भगवन् !.
दोनों हाथों को मेरे सिर पर रख कर खड़े हो जाईये, फिर नहीं गिरेंगे ,
✍जैसे कोई छोटा बच्चा है जब उसकी माँ उसे स्नान कराती है तो बच्चा माँ के सिर पर हाथ रखकर खड़ा हो जाता है, भगवान् भी आज वैसे ही खड़े है ।
✍भगवान् केवट से बोले - भईया केवट ! मेरे अंदर का अभिमान आज टूट गया...
✍केवट बोला - प्रभु ! क्या कह रहे है ?.
भगवान् बोले - सच कह रहा हूँ केवट, अभी तक मेरे अंदर अभिमान था, कि .... मैं भक्तों को गिरने से बचाता हूँ पर..
✍आज पता चला कि, भक्त भी भगवान् को गिरने से बचाता है ।. जय श्री राम जी की।।🙏🙏🙏: 🙏🙏

Aman Kumar, Ashok Kumar, Gopalkrishna Kantrao Narlawar, Sunil Kumar, Vikram Gupta
21/04/2024

Aman Kumar, Ashok Kumar, Gopalkrishna Kantrao Narlawar, Sunil Kumar, Vikram Gupta

18/04/2024

अनिरूद्ध अभी ऑफिस जाने की तैयारी कर ही रहा था, तभी एक अंजान नंबर से उसके मोबाइल पर कॉल आया.

अनिरूद्ध के फोन उठाते ही उधर से उस व्यक्ति ने कहा, "नमस्ते अवस्थीजी मैं रायपुर से एस्टेट एजेंट बजाज बोल रहा हूं. आपका पांच मिनट समय चाहिए."

एस्टेट एजेंट सुनते ही अनिरूद्ध थोड़ा अपनी गतिविधियों पर विराम लगाते हुए बोला, "हां कहिए मिस्टर बजाज कैसे याद किया."

"अवस्थीजी मैंने सुना है कि आप अपना रायपुरवाला मकान बेचना चाहते हैं."

"हां, उसे निकालना तो चाहते हैं. क्या आपके पास ऐसा कोई बंदा है, जो उस मकान का सही दाम दे सके." अनिरूद्ध ने शायद मकान की क़ीमत जानने की मंशा से कहा.

"अरे अवस्थीजी ख़रीददार तो लाइन में खड़े हैं, मौक़े की जगह है, मकान तो हाथोंहाथ बिक जाएगा

और आपको मुंहमांगी अच्छी-खासी मोटी रकम भी मिल जाएगी. बस आप हामी तो भरिए." बजाज की आवाज में एक खनक थी मानो उसके और अनिरूद्ध के बीच जैसे मकान का सौदा पक्का हो गया हो.

"मिस्टर बजाज मुझे वह मकान तो बेचना ही हैं. अब यहां भोपाल में बैठकर तो उस मकान की देखभाल संभव नहीं है और ना ही उसे किराए से देकर मैं अपना सिरदर्द बढ़ाना चाहता हूं. मेरी तरफ़ से सौदा पक्का ही समझिए बस रेट सही मिलना चाहिए."

यह सब कहते हुए अनिरूद्ध का कंठ भर आया. उसके लफ़्ज़ों से उसके भावों का कोई मेल नहीं था. वह कह कुछ रहा था और उसके चेहरे के भाव कुछ और ही बयां कर रहे थे.

इस बात से एस्टेट एजेंट बजाज पूर्ण रूप से अनभिज्ञ था, साथ ही साथ वहां खड़ी अनिरूद्ध की पत्नी नुपुर भी अपने पति के मनोभाव से बेख़बर थी.

नुपुर को यह पता भी नहीं था कि उस मकान से जुड़े अपने बचपन की क‌ई सुनहरी और ख़ुशनुमा यादों का बक्सा अनिरूद्ध ने अपने दिल में सहेजकर रखा है.

नुपुर का पूरा ध्यान तो केवल मकान और उसके बेचने की बातों पर ही केन्द्रित था.

"अच्छा तो फिर ठीक है. मिल-बैठकर लेन-देन की सारी बातें और ज़रूरी काग़ज़ी कार्यवाही पूरी कर लेते हैं." बजाज ने बगैर विलंब किए फौरन कहा.

"हां, मैं आता हूं दो दिन बाद रायपुर, आप डील फाइनल ही समझिए." ऐसा कहकर अनिरूद्ध ने फोन रख दिया और अपने ऑफिस के लिए निकल गया.

सारे रास्ते अनिरूद्ध को बस रायपुर के मकान में गुज़ारें अपने बचपन की कुछ छोटे-छोटे दृश्यों की झलकियां स्मरण होने लगी थी. ऑफिस पहुंचकर भी उसका पूरा ध्यान रायपुर के मकान पर ही रहा. अनिरूद्ध को एक-एक कर सब याद आने लगा, उसके कानों में अपनी महरुम नानी की आवाज़ सुनाई पड़ने लगी, जो उसे प्यार से अनु… अनु… पुकारा करती थी. अनिरूद्ध स्वयं को उस घर के आंगन में खिलखिलाता-दौड़ता हुआ देख रहा था और अपनी नानी को अपने पीछे उसे पकड़ने को भागती हुई. मां को विशाखा मामी के संग सब्ज़ियां साफ़ करती और हंसती हुई. यह सारे दृश्य चलचित्र की भांति अनिरूद्ध की आंखों के समक्ष दृष्टांत हो रहे थे

अनिरूद्ध अब भी नहीं भूला जब वह बचपन में अपनी मां मुक्ता के संग अपने ननिहाल रायपुर जाया करता था. आसपास की औरतें उसकी बलाइयां लेती नहीं थकती

कहने को विशाखा मामी, जो पड़ोस में रहती थी, मां की मुंहबोली भाभी और उसकी मामी थी, लेकिन उनका निश्छल प्रेम, लाड़-प्यार और दुलार किसी अपनों से कम नहीं था.

यहां आकर अनिरूद्ध को एक और बात समझ नहीं आती थी कि वह अवस्थीजी के बेटे से मुक्ता का बेटा कैसे बन जाता है.

धीरे-धीरे जब वह और थोड़ा बड़ा हुआ, तो उसे समझ आने लगा कि ननिहाल ही एक मात्र ऐसा स्थान है, जहां किसी भी बच्चे को उसकी मां के नाम से जाना जाता है, वरना दुनिया के किसी भी कोने में हर बच्चा अपने पिता के नाम से ही पहचाना जाता है.

आज भी अनिरूद्ध अपनी नानी की लोरिया, स्नेह व स्पर्श आंखें बंद करके महसूस कर सकता था. अनिरूद्ध की मां अपने माता-पिता की इकलौती संतान थी, जिसकी वजह से उसकी नानी ने अपने जीते जी अपनी सारी संपत्ति, वैसे तो नानी के पास ज़्यादा कुछ था नहीं, लेकिन जो कुछ भी था उन्होंने सब अपने घर के साथ अनिरूद्ध के नाम कर दिया था.

जब तक नानी जीवित रही अनिरूद्ध अपनी मां के संग रायपुर जाया करता था, किन्तु नानी के आंखें मूंदते ही मां का रायपुर जाना बंद हो गया

और अनिरूद्ध का भी. समय बीतता गया और फिर एक दिन मां और पापा ने भी जीवन का डोर छोड़ दिया. इन्हीं सब ख़्यालों में खोया अनिरूद्ध का पूरा दिन निकल गया.

दूसरे दिन भी अनिरूद्ध अपने विचारों के भंवर जाल में कुछ इसी तरह से ही फंसा रहा और यूं ही दो दिन बीत गए. दो दिनों के पश्चात जब अनिरूद्ध एस्टेट एजेंट मिस्टर बजाज से मिलकर अपनी नानी के घर का सौदा करने रायपुर पहुंचा

और जैसे ही वह रेलवे स्टेशन से बाहर निकला, लोगों की भीड़ ने उसका ध्यान बरबस ही अपनी ओर खींच लिया.

आख़िर मामला क्या है यह जानने के लिए अनिरूद्ध उत्सुकतावश भीड़ की ओर बढ़ गया.

भीड़ के क़रीब पहुंच कर उसने देखा एक अर्धमूर्छित महिला मैले-कुचैले चिथड़े में लिपटी स्वल्पाहार की दुकान के सामने से हटने का नाम नहीं ले रही है.

दुकानदार और वहां पर मौजूद लोग उसे वहां से खदेड़ने का प्रयास कर रहे हैं.

उस महिला को देख कर ऐसा लग रहा था कि शायद वह कोई भिखारिन है और भूखी भी है, जो संभवतः क‌ई दिनों से कुछ खाई भी नहीं जो

शायद, इसलिए वह उस दुकान के सामने से हट भी नहीं रही थी. अनिरूद्ध ने जब उस महिला को गौर से देखा, तो वह सन्न रह गया. उसकी आंखें झिलमिला गई. उसे पहचानना मुश्किल था,

लेकिन अनिरूद्ध के स्मृति पटल में इस महिला की अमिट छवि आज भी सजीव थी, यह महिला कोई और नहीं विशाखा मामी थी.

उनकी इस दुर्दशा पर अनिरूद्ध हैरान था. उसने मिस्टर बजाज से मिलना स्थगित कर दिया.

अनिरूद्ध ने फिर विशाखा मामी को वहीं सामने की दुकान से खाने का कुछ सामान लेकर खिलाया और सीधे उन्हें लेकर स्थानीय हॉस्पिटल पहुंचा, क्योंकि विशाखा मामी की हालत काफ़ी ख़राब थी और वह अनिरूद्ध को पहचान भी नहीं रही थी।

विशाखा मामी को हॉस्पिटल में भर्ती कराने के उपरांत जब अनिरूद्ध ने उनके इस दुर्दशा का कारण मालूम किया, तो पता चला कि उनके दोनों बेटों ने उनका घर बेच दिया है और रुपयों को आपस में बांट, उन्हें यहां अकेला छोड़कर भाग गए हैं

तब से विशाखाजी बेसहारा यहां-वहां भटक रही हैं.
मुंहबोली ही सही पर विशाखाजी अनिरूद्ध की मामी थी, जिन्होंने उसे अपनों से बढ़कर स्नेह दिया था. अनिरूद्ध उन्हें इस तरह बेसहारा अकेला छोड़ कर नहीं जा सकता था,

इसलिए उसने मिस्टर बजाज से मिलकर यह निर्णय लिया कि वह अपने नानी का घर नहीं बेचेगा, बल्कि उसे एक न‌ए घर का स्वरूप देगा और उस घर का नाम होगा

'रैनबसेरा'

जिसमें विशाखाजी की तरह बेबस, बेसहारा और अपनों से ठुकराए लोग उसमें आसरा पा सकेंगे.

पंद्रह दिनों बाद जब अनिरूद्ध हॉस्पिटल पहुंचा और उसने विशाखाजी को रैनबसेरा के बारे में बताया, तो वह बहुत प्रसन्न हुईं, लेकिन जब अनिरूद्ध ने उन्हें अपने संग भोपाल चलने का आग्रह किया,

तो उन्होंने यह कहकर इंकार कर दिया, "अनु बेटा, मुझे यही रैनबसेरा में ही रहने दे. मैं यही रहना चाहती हूं. यहां रह कर मैं अपने जैसे लोगों का दर्द बांटना चाहती हूं."
विशाखाजी का मान रखते हुए अनिरूद्ध उनकी बात मान गया और अपनी नानी का मकान जो अब बेबस, बेसहारा लोगों का रैनबसेरा था की बागडोर अपनी मामी विशाखाजी को देकर प्रसन्नचित्त मन से भोपाल लौट आया.
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17/04/2024

*क्या यार...ये पापा को भी चैन नहीं है...घड़ी-घड़ी फोन खटका देते है...!!***

*आज आँफिस मे मीटिंग मे चार बार फोन आया...ये भी नहीं समझते, अगर कोई फोन नहीं उठा रहा तो कोई कारण होगा...दिन भर दसियो काम होते हैं करने को.... टाई खोलते हुए मोहन ने पत्नी सुधा से झुंझलाहट से बोला...!!**

*सुधा- हाँ...तभी जब तुमने उन्हें वापसी फोन नहीं किया तो उन्होंने मुझे घर पर फोन किया था ...तुम्हारे लिए फिक्रमंद है ...हाल चाल पूछ रहे थे...बेटे हो उनके चिंता होना स्वाभाविक है...!!**

*ये देखो फिर आ गया फोन...लो एक बार बात कर लो चाय का कप पकड़ाते हुए सुधा ने कहा...!!**

*बजने दो यार...तुमसे बात तो हो गई ना उनकी...!!**

*इनको तो लत लगी है फोन की घंटी बजाने की.....खुद तो फ्री है फुर्सत में.... मोबाइल पर सोशल साइट देखते हुए मोहन ने कहा...!!**

*सुनो उठा लो फोन...पिता हैं तुम्हारे फिक्र हो रही होगी... या मन कर रहा होगा तुमसे बात करने को...वैसे भी मम्मी के जाने के बाद अकेलापन लगता होगा उन्हें...!!**

*चैन लेने दो यार अब तुम मुझे... कर लूँगा फोन कभी... उन्हें तो फुर्सत ही फुर्सत है ...!!**

*कभी क्यों.... अभी क्यों नहीं...ना जाने कब वो इन साँसो से फुर्सत पा जाए और ...!!**

*पापा नाम का नंबर.... मोबाइल पर बजना बंद हो जाए मेरे पाप की तरह... ..बोलते हुए सुधा ने भर्राई आवाज से मोहन को फोन पकड़ा दिया...!!**

*क्या मतलब...!!**

*मतलब ....तुम्हारी तरह मे भी ऐसे ही पापा के फोन को इग्नोर....कर दिया करती थी, काम में होती थी तो, और एक समय आज जब वह नहीं है तो उनकी याद उनकी वो फिक्र ....सब याद आता है ...!!**

*काश.....वो नाम फिर से मेरे मोबाइल पर.....कहते हुए गला भर्रा गया....सुधा का और आंसू बह निकले...!!**

*है...हैलो ...पापा .....जी .....जी वो माफ कीजिएगा देख नहीं पाया ....पापा आप ठीक तो है़ ...!!

*जी ....मैं ठीक हूँ, सुधा भी ....पापा आप यहाँ आ जाइए ना .....मैं आ ...आ रहा हूँ, आपको लेने ...!!**

*नहीं ....मुझे फुर्सत ही फुर्सत है .....मैं आपको खोना नहीं चाहता ....मैं आ रहा हूँ पापा ....मैं .....कहते हुए मोहन भी फफक कर रो पडा़ ...!!**

16/04/2024

.😇

बुजुर्ग नहीं ~ भाग्यशाली लोग

वे भाग्यशाली लोग हैं जो
60 पार कर गये.

एक जापानी पुस्तक के अनुसार
जापान में, डॉ वाडा
60 साल से अधिक उम्र के लोगों को,
'बुजुर्ग' कहने के बजाय,
'भाग्यशाली लोग' कहने की
वकालत करते हैं.

डॉ. वाडा ने 60 साल के लोगों के
"भाग्यशाली व्यक्ति" बनने के रहस्य को
"35 वाक्यों" में इस प्रकार समझाया :-

1. चलते रहो.
2. जब आप चिड़चिड़ा महसूस करें
तो गहरी साँस लें.
3. व्यायाम करें, ताकि शरीर में
अकड़न महसूस न हो.
4. गर्मियों में,
एयर-कंडीशनर चालू होने पर,
अधिक पानी पिएं.
5. आप जितना चबाएंगे,
आपका शरीर और मस्तिष्क
उतना ही ऊर्जावान होगा.
6. याददाश्त उम्र के कारण नहीं,
बल्कि लंबे समय तक
मस्तिष्क का उपयोग
न करने के कारण
कम होती है.
7. ज्यादा दवाइयाँ लेने की
जरूरत नहीं है.
8. रक्तचाप और रक्त शर्करा के
स्तर को जानबूझ कर
कम करने की आवश्यकता
नहीं है.
9. केवल वही काम करें,
जिससे आप प्यार करते हैं.
10. चाहे कुछ भी हो जाए,
हर समय घर में नहीं रहना चाहिए.
रोज घर से बाहर जरूर निकलें,
और टहलें भी.
11. जो चाहो खाओ,
पर नियन्त्रित रखिये.
12. हर काम सावधानी से करें.
13. उन लोगों से वह व्यवहार न करें,
जिसे आप भी नापसंद करते हैं.
14. अपनों का ख्याल रखें.
15. बीमारी से,
अंत तक लड़ने के बजाय
इसके साथ जीना बेहतर है.
16. मुश्किल समय में,
आगे बढ़ने से मदद मिलती है.
17. हर बार, खाना खाने के बाद,
थोड़ा सा गुनगुना पानी,
अवश्य पियें.
18. रात में, जब भी उठें,
पानी अवश्य पियें.
19. जब नींद नहीं आये, तो
जबरदस्ती न करें.
20. खुशमिजाज चीजें करना,
दिमाग को तेज करने वाली
सबसे अच्छी गतिविधि है.
21. अपने लोगों से
बातचीत करते रहें.
22. एक "पारिवारिक चिकित्सक"
अपने आसपास जल्दी खोज लें.
23. धैर्य रखें, लेकिन अत्यधिक नहीं,
या हर समय अपने आप को
अच्छा बनने के लिए
मजबूर न करें.
24. नया सीखते रहें,
वर्ना बूढ़े कहलाएंगे.
25. लालची मत बनो,
अब जो कुछ भी तुम्हारे पास है,
वही अच्छा व काफी है.
26. जब कभी बिस्तर से उठना हो,
तो तुरंत खड़े न हों,
2-3 मिनट रुककर, उठें.
27. जितनी परेशानी वाली चीजें हैं,
उतनी ही दिलचस्प हैं.
28. स्नान करने के बाद
कपड़े पहनते वक्त
दीवार आदि का सहारा लें.
29. वही करें, जो अपने और
दूसरों के लिए हितकारी हो
30. अपने आज को,
इत्मिनान से जिएं.
31. इच्छा, दीर्घायु का स्रोत है.
32. एक आशावादी के रूप में जियें.
33. प्रसन्नचित्त व्यक्ति, लोकप्रिय होंगे.
34. जीवन और जीवन के नियम
आपके अपने हाथों में हैं.
35. इस उम्र में सब कुछ
शाँति से स्वीकार करें.

🙏🏻🪷🕉️🪷🙏🏻

15/04/2024

*पढ़ाई पूरी करने के बाद एक छात्र किसी बड़ी कंपनी में नौकरी पाने की चाह में इंटरव्यू देने के लिए पहुँचा...!!***

*छात्र ने बड़ी आसानी से पहला इंटरव्यू पास कर लिया...

*अब फाइनल इंटरव्यू
कंपनी के डायरेक्टर को लेना था...

*और डायरेक्टर को ही तय
करना था कि उस छात्र को नौकरी पर रखा जाए या नहीं...

*डायरेक्टर ने छात्र का सीवी (curricular vitae) देखा और पाया कि पढ़ाई के साथ- साथ यह छात्र ईसी (extra curricular activities) में भी हमेशा अव्वल रहा...

*डायरेक्टर- "क्या तुम्हें पढ़ाई के दौरान
कभी छात्रवृत्ति (scholarship) मिली...?"

*छात्र- "जी नहीं..."

*डायरेक्टर- "इसका मतलब स्कूल-कॉलेज की फीस तुम्हारे पिता अदा करते थे.."

*छात्र- "जी हाँ , श्रीमान ।"

*डायरेक्टर- "तुम्हारे पिताजी क्या काम करते है?"

*छात्र- "जी वो लोगों के कपड़े धोते हैं..."

*यह सुनकर कंपनी के डायरेक्टर ने कहा- "ज़रा अपने हाथ तो दिखाना..."

*छात्र के हाथ रेशम की तरह मुलायम और नाज़ुक थे...

*डायरेक्टर- "क्या तुमने कभी कपड़े धोने में अपने पिताजी की मदद की...?"

*छात्र- "जी नहीं, मेरे पिता हमेशा यही चाहते थे
कि मैं पढ़ाई करूं और ज़्यादा से ज़्यादा किताबें
पढ़ूं...

*हाँ , एक बात और, मेरे पिता बड़ी तेजी से कपड़े धोते हैं..."

*डायरेक्टर- "क्या मैं तुम्हें एक काम कह सकता हूँ...?"

*छात्र- "जी, आदेश कीजिए..."

*डायरेक्टर- "आज घर वापस जाने के बाद अपने पिताजी के हाथ धोना...
फिर कल सुबह मुझसे आकर मिलना..."

*छात्र यह सुनकर प्रसन्न हो गया...
उसे लगा कि अब नौकरी मिलना तो पक्का है,

*तभी तो डायरेक्टर ने कल फिर बुलाया है...

*छात्र ने घर आकर खुशी-खुशी अपने पिता को ये सारी बातें बताईं और अपने हाथ दिखाने को कहा...

*पिता को थोड़ी हैरानी हुई...

*लेकिन फिर भी उसने बेटे
की इच्छा का मान करते हुए अपने दोनों हाथ उसके
हाथों में दे दिए...

*छात्र ने पिता के हाथों को धीरे-धीरे धोना शुरू किया। कुछ देर में ही हाथ धोने के साथ ही उसकी आंखों से आंसू भी झर-झर बहने लगे...

*पिता के हाथ रेगमाल (emery paper) की तरह सख्त और जगह-जगह से कटे हुए थे...

*यहाँ तक कि जब भी वह कटे के निशानों पर पानी डालता, चुभन का अहसास
पिता के चेहरे पर साफ़ झलक जाता था...।

*छात्र को ज़िंदगी में पहली बार एहसास हुआ कि ये
वही हाथ हैं जो रोज़ लोगों के कपड़े धो-धोकर उसके
लिए अच्छे खाने, कपड़ों और स्कूल की फीस का इंतज़ाम करते थे...

*पिता के हाथ का हर छाला सबूत था उसके एकेडैमिक कैरियर की एक-एक
कामयाबी का...

*पिता के हाथ धोने के बाद छात्र को पता ही नहीं चला कि उसने उस दिन के बचे हुए सारे कपड़े भी एक-एक कर धो डाले...

*उसके पिता रोकते ही रह गए , लेकिन छात्र अपनी धुन में कपड़े धोता चला गया...

*उस रात बाप- बेटे ने काफ़ी देर तक बातें कीं ...

*अगली सुबह छात्र फिर नौकरी के लिए कंपनी के डायरेक्टर के ऑफिस में था...

*डायरेक्टर का सामना करते हुए छात्र की आंखें गीली थीं...

*डायरेक्टर- "हूँ , तो फिर कैसा रहा कल घर पर ?

*क्या तुम अपना अनुभव मेरे साथ शेयर करना पसंद करोगे....?"

*छात्र- " जी हाँ , श्रीमान कल मैंने जिंदगी का एक वास्तविक अनुभव सीखा...

*नंबर एक... मैंने सीखा कि सराहना क्या होती है...
मेरे पिता न होते तो मैं पढ़ाई में इतनी आगे नहीं आ सकता था...

*नंबर दो... पिता की मदद करने से मुझे पता चला कि किसी काम को करना कितना सख्त और मुश्किल होता है...

*नंबर तीन.. . मैंने रिश्तों की अहमियत पहली बार
इतनी शिद्दत के साथ महसूस की..."

*डायरेक्टर- "यही सब है जो मैं अपने मैनेजर में देखना चाहता हूं...

*मैं यह नौकरी केवल उसे देना चाहता हूँ जो दूसरों की मदद की कद्र करे,
ऐसा व्यक्ति जो काम किए जाने के दौरान दूसरों की तकलीफ भी महसूस करे...

*ऐसा शख्स जिसने
सिर्फ पैसे को ही जीवन का ध्येय न बना रखा हो...

*मुबारक हो, तुम इस नौकरी के पूरे हक़दार हो..."

*आप अपने बच्चों को बड़ा मकान दें, बढ़िया खाना दें,
बड़ा टीवी, मोबाइल, कंप्यूटर सब कुछ दें...

*लेकिन साथ ही अपने बच्चों को यह अनुभव भी हासिल करने दें कि उन्हें पता चले कि घास काटते हुए कैसा लगता है ?

*उन्हें भी अपने हाथों से ये काम करने दें...

*खाने के बाद कभी बर्तनों को धोने का अनुभव भी अपने साथ घर के सब बच्चों को मिलकर करने दें...

*ऐसा इसलिए
नहीं कि आप मेड पर पैसा खर्च नहीं कर सकते,
बल्कि इसलिए कि आप अपने बच्चों से सही प्यार करते हैं...

*आप उन्हें समझाते हैं कि पिता कितने भी अमीर
क्यों न हो, एक दिन उनके बाल सफेद होने ही हैं...

*सबसे अहम हैं आप के बच्चे किसी काम को करने
की कोशिश की कद्र करना सीखें...

*एक दूसरे का हाथ
बंटाते हुए काम करने का जज्ब़ा अपने अंदर
लाएं...

*यही है सबसे बड़ी सीख...!!**

*उक्त कहानी यदि पसंद आई हो तो अपने परिवार में सुनाएँ और अपने बच्चों को सर्वोच्च शिक्षा प्रदान कराये**

*आँखे बन्द करके जो प्रेम करे वो 'प्रेमिका' है।**

*आँखे खोल के जो प्रेम करे वो 'दोस्त' है।**

*आँखे दिखा के जो प्रेम करे वो 'पत्नी' है।**

*अपनी आँखे बंद होने तक जो प्रेम करे वो 'माँ' है।**

*परन्तु आँखों में प्रेम न जताते हुये भी जो प्रेम करे वो 'पिता' है।**

*दिल से पढ़ो और ग़ौर करो...!!**

14/04/2024

. “मन को जीतने का तप”

एक ऋषि यति-मुनि एक समय घूमते-घूमते नदी के तट पर चल रहे थे। मुनि को मौज आई। हम भी आज नाव पर बैठकर नदी की सैर करें और प्रभु की प्रकृति के दृश्यों को देखें। चढ़ बैठे नाव को देखने के विचार से। मुनिवर नीचे के खाने में गये, जहाँ नाविक का सामान और निवास होता है। जाते ही उनकी दृष्टि एक कुमारी कन्या पर पड़ी, जो नाविक की पुत्री थी। कुमारी इतनी रुपवती थी कि मुनिवर विवश हो गये, उन्हें मूर्च्छा सी आ गई। देवी ने उनके मुख में पानी डाला तो होश आया।
कुमारी ने पूछा–‘मुनिवर ! क्या हो गया ?’
मुनि बोला–‘देवी ! मैं तुम्हारे सौन्दर्य पर इतना मोहित हो गया कि मैं अपनी सुध-बुध भूल गया अब मेरा मन तुम्हारे बिना नहीं रह सकता। मेरी जीवन मृत्यु तुम्हारे आधीन है।’
कुमारी बोली–‘आपका कथन सत्य है, परन्तु मैं तो नीच जाति की मछानी हूँ।’
मुनि–‘मुझमें यह सामर्थ्य है कि मेरे स्पर्श से तुम शुद्ध हो जाओगी।’ ‘श्रीजी की चरण सेवा’ की सभी धार्मिक, आध्यात्मिक एवं धारावाहिक पोस्टों के लिये हमारे पेज से जुड़े रहें तथा अपने सभी भगवत्प्रेमी मित्रों को भी आमंत्रित करें।
कुमारी–‘पर अभी तो दिन है।’ मुनि–‘मैं अभी रात कर दिखा सकता हूँ।’
कुमारी–‘फिर भी यह जल (नदी) है।’
मुनि–‘मैं आन की आन में इसे स्थल (रेत) बना सकता हूँ।’
कुमारी–‘मैं तो अपने माता-पिता के आधीन हूँ। उनकी सम्मति तो नहीं होगी।’
मुनि–‘मैं उनको शाप देकर अभी भस्म कर सकता हूँ।’
कुमारी–‘मुनिवर ! जब परमात्मा ने आपको आपके जप, तप के प्रताप से इतनी सामर्थ्य और सिद्धि वरदान दीये है तो कितनी मूर्खता की बात है कि आप अपने जन्म जन्मान्तरों के तप को एक नीच काम करने और क्षणिक आनन्द में विनष्ट करने के लिए तैयार हो। ‘श्रीजी की चरण सेवा’ की सभी धार्मिक, आध्यात्मिक एवं धारावाहिक पोस्टों के लिये हमारे पेज से जुड़े रहें तथा अपने सभी भगवत्प्रेमी मित्रों को भी आमंत्रित करें।
ऋषिवर ! आपमें इतनी सामर्थ्य है कि जल को थल, दिन को रात बना सको पर यह सामर्थ्य नहीं कि मन को रोक सको।’
मुनि ने इतना सुना ही था कि उसके ज्ञानचक्षु खुल गए। तत्काल देवी के चरणों में गिर पड़ा कि तुम मेरी गुरु हो, सम्भवतः यही न्यूनता थी जो मुझे नाव की सैर का बहाना बनाकर खींच लाई।

-: दृष्टान्त :-

(१) रूप और काम बड़े-बड़े तपस्वियों को गिरा देता है।

(२) तपी-जती स्त्री रुप से बचें।

(३) कच्चे पक्के की परीक्षा तो संसार में होती है, जंगल में नहीं।

(४) जब अपनी भूल का भान हो जावे, तब हठ मत करो।

(५) जिन पर प्रभु की दया होती है, उनका साधन वे आप बनाते हैं।

इसी सन्देश को मनुस्मृति में बताया गया है-

इन्द्रियाणां विचरतां विषयेष्वपहारिषु।
संयमे यतनमातिष्ठेविद्वान यत्नेव वाजिनाम॥
मनु - 2 / 88

जिस प्रकार से विद्वान सारथि घोड़ों को नियम में रखता है, उसी प्रकार हमको अपने मन तथा आत्मा को खोटे कामों में खींचने वाले विषयों में विचरती हुई इन्द्रियों को सब प्रकार से खींचने का प्रयत्न करना चाहिए।
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"जय जय श्री राधे"
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14/04/2024

पचास रुपए का नोट🌺🌺🌿🌿🌺🌺
एक व्यक्ति office में देर रात तक काम करने के बाद थका -हारा घर पहुंचा . दरवाजा खोलते ही उसने देखा कि उसका पांच वर्षीय बेटा सोने की बजाये उसका इंतज़ार कर रहा है .
अन्दर घुसते ही बेटे ने पूछा —“ पापा , क्या मैं आपसे एक question पूछ सकता हूँ ?” हाँ -हाँ पूछो , क्या पूछना है ?” पिता ने कहा .
बेटा – “ पापा , आप एक घंटे में कितना कमा लेते हैं ?”

holy rummy
“ इससे तुम्हारा क्या लेना देना …तुम ऐसे बेकार के सवाल क्यों कर रहे हो ?” पिता ने झुंझलाते हुए उत्तर दिया .

बेटा – “ मैं बस यूँही जानना चाहता हूँ . Please बताइए कि आप एक घंटे में कितना कमाते हैं ?”

पिता ने गुस्से से उसकी तरफ देखते हुए कहा , “ 100 रुपये .”

“अच्छा ”, बेटे ने मासूमियत से सर झुकाते हुए कहा -, “ पापा क्या आप मुझे 50 रूपये उधार दे सकते हैं ?”

इतना सुनते ही वह व्यक्ति आग बबूला हो उठा , “ तो तुम इसीलिए ये फ़ालतू का सवाल कर रहे थे ताकि मुझसे पैसे लेकर तुम कोई बेकार का खिलौना या उटपटांग चीज खरीद सको ….चुप –चाप अपने कमरे में जाओ और सो जाओ ….सोचो तुम कितने selfish हो …मैं दिन रात मेहनत करके पैसे कमाता हूँ और तुम उसे बेकार की चीजों में बर्वाद करना चाहते हो ”

यह सुन बेटे की आँखों में आंसू आ गए …और वह अपने कमरे में चला गया .

व्यक्ति अभी भी गुस्से में था और सोच रहा था कि आखिर उसके बेटे कि ऐसा करने कि हिम्मत कैसे हुई ……पर एक -आध घंटा बीतने के बाद वह थोडा शांत हुआ , और सोचने लगा कि हो सकता है कि उसके बेटे ने सच -में किसी ज़रूरी काम के लिए पैसे मांगे हों , क्योंकि आज से पहले उसने कभी इस तरह से पैसे नहीं मांगे थे .

फिर वह उठ कर बेटे के कमरे में गया और बोला , “ क्या तुम सो रहे हो ?”, “नहीं ” जवाब आया .

“ मैं सोच रहा था कि शायद मैंने बेकार में ही तुम्हे डांट दिया , दरअसल दिन भर के काम से मैं बहुत

थक गया था .” व्यक्ति ने कहा .

“I am sorry….ये लो अपने पचास रूपये .” ऐसा कहते हुए उसने अपने बेटे के हाथ में पचास की नोट रख दी .

“Thank You पापा ” बेटा ख़ुशी से पैसे लेते हुए कहा , और फिर वह तेजी से उठकर अपनी आलमारी की तरफ गया , वहां से उसने ढेर सारे सिक्के निकाले और धीरे -धीरे उन्हें गिनने लगा .

यह देख व्यक्ति फिर से क्रोधित होने लगा , “ जब तुम्हारे पास पहले से ही पैसे थे तो तुमने मुझसे और पैसे क्यों मांगे ?”

“ क्योंकि मेरे पास पैसे कम थे , पर अब पूरे हैं ” बेटे ने कहा .

“ पापा अब मेरे पास 100 रूपये हैं . क्या मैं आपका एक घंटा खरीद सकता हूँ ? Please आप ये पैसे ले लोजिये और कल घर जल्दी आ जाइये , मैं आपके साथ बैठकर खाना खाना चाहता हूँ .” इतना सुनते ही पिता के आंखो में आसू आ गए और बच्चे को गले से लगा लिया

दोस्तों , इस तेज रफ़्तार जीवन में हम कई बार खुद को इतना busy कर लेते हैं कि उन लोगो के लिए ही समय नहीं निकाल पाते जो हमारे जीवन में सबसे ज्यादा importance रखते हैं. इसलिए हमें ध्यान रखना होगा कि इस आपा-धापी में भी हम अपने माँ-बाप, जीवन साथी, बच्चों और अभिन्न मित्रों के लिए समय निकालें, वरना एक दिन हमें भी अहसास होगा कि हमने छोटी-मोटी चीजें पाने के लिए कुछ बहुत बड़ा खो दिया

14/04/2024

"निर्णय"
एक दिन मेरे पिताजी ने हलवे के 2 कटोरे बनाये और उन्हें मेज़ पर रख दिया। एक के ऊपर 2 बादाम थे, जबकि दूसरे कटोरे में हलवे के ऊपर कुछ नहीं था। फिर उन्होंने मुझे हलवे का कोई एक कटोरा चुनने के लिए कहा। क्योंकि उन दिनों तक हम गरीबों के घर बादाम आना मुश्किल था, मैंने 2 बादाम वाले कटोरे को चुना। मैं अपने बुद्धिमान विकल्प/निर्णय पर खुद को बधाई दे रहा था और जल्दी-जल्दी मुझे मिले 2 बादाम वाला हलवा खा रहा था। परंतु मेरे आश्चर्य का ठिकाना नहीं था, जब मैंने देखा कि मेरे पिता वाले कटोरे के नीचे 4 बादाम छिपे थे। बहुत पछतावे के साथ, मैंने अपने निर्णय में जल्दबाजी करने के लिए खुद को डांटा।
मेरे पिता मुस्कुराए और मुझे यह याद रखना सिखाया कि
आपकी आँखें जो देखती हैं, वह हरदम सच नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि यदि आप स्वार्थ को अपनी आदत बना लेते हैं तो "आप जीत कर भी हार जाएंगे"।
अगले दिन मेरे पिता ने फिर से हलवे के 2 कटोरे पकाए और टेबल पर रखे। एक कटोरा के शीर्ष पर 2 बादाम और दूसरा कटोरा, जिसके ऊपर कोई बादाम नहीं था। फिर से उन्होंने मुझे अपने लिए कटोरा चुनने को कहा। इस बार मुझे कल का संदेश याद था, इसलिए मैंने शीर्ष पर बिना किसी बादाम वाली कटोरी को चुना। परंतु मेरे आश्चर्य करने के लिए इस बार इस कटोरे के नीचे एक भी बादाम नहीं छिपा था।
फिर से मेरे पिता ने मुस्कुराते हुए मुझसे कहा- मेरे बच्चे!
आपको "हमेशा अनुभवो पर भरोसा नहीं करना चाहिए" क्योंकि "कभी-कभी जीवन आपको धोखा दे सकता है या
आप पर चालें खेल सकता है।" स्थितियों से कभी भी ज्यादा परेशान या दुःखी न हों, बस अनुभव को एक सबक के रूप में समझें, जो किसी भी पाठ्यपुस्तकों से प्राप्त नहीं किया जा सकता है।
तीसरे दिन मेरे पिता ने फिर से हलवे के 2 कटोरे पकाए। पहले 2 दिन की ही तरह, एक कटोरे के ऊपर 2 बादाम, और दूसरे के शीर्ष पर कोई बादाम नहीं। मुझे उस कटोरे को चुनने के लिए कहा, जो मुझे चाहिए था। लेकिन इस बार, मैंने अपने पिता से कहा- पिताजी, आप पहले चुनें, आप परिवार के मुखिया हैं और आप परिवार में सबसे ज्यादा योगदान देते हैं।
आप मेरे लिए जो अच्छा होगा वहीचुनेंगे। मेरे पिताजी मेरे इस निर्णय से खुश थे।उन्होंने शीर्ष पर 2 बादाम के साथ कटोरा चुना लेकिन जैसे ही मैंने अपने कटोरे का हलवा खाया, कटोरे के हलवे के एकदम नीचे 8 बादाम और थे।
मेरे पिताजी मुस्कुराए और मेरी आँखों में प्यार से देखते हुए उन्होंने कहा- मेरे बच्चे! तुम्हें याद रखना होगा कि जब तुम ईश्वर पर या सतगुरू पर सब कुछ छोड़ देते हो तो वे हमेशा तुम्हारे लिए सर्वोत्तम का ही चयन करेंगे। और जब तुम दूसरों की भलाई के लिए सोचते हो, अच्छी चीजें स्वाभाविक तौर पर आपके साथ भी हमेशा होती रहेंगी।
शिक्षा:- बड़ों का सम्मान करते हुए उन्हें पहले मौका व स्थान दे । बड़ों का आदर-सम्मान करोगे तो कभी भी खाली हाथ नही लौटोगे।
शुभ संध्या , जय भारत ।

14/04/2024

नटराज के पैरों के नीचे कौन दबा रहता है..........!!
*
जब भगवान शिव शंकर ने त्रिपुर नामक असुर का वध किया तो उसके बाद वे खुशी से झूमने लगे। नृत्य की शुरुआत में उन्होंने अपनी भुजाएं नहीं खोली क्योंकि वे जानते थे कि उससे प्रकृति का संतुलन बिगड़ जायेगा और सृष्टि का विनाश होने लगेगा। लेकिन भगवान शिव कुछ समय पश्चात नृत्य में इतने मगन हो जाते हैं कि उन्हें किसी तरह कि सुध नहीं रहती और खुल कर नृत्य करने लगते हैं जिसके साथ-साथ सृष्टि भी डगमगाने लगती है। तब उस समय संसार की रक्षा के लिये देवी पार्वती भी प्रेम और आनंद में भरकर लास्य नृत्य आरंभ करती हैं जिससे सृष्टि में संतुलन होने लगता है व भगवान शिव भी शांत होने लगते हैं। भगवान शिव को सृष्टि के प्रथम नर्तक के रूप में भी जाना जाता है।
वहीं ऐतिहासिक रूप से भगवान शिव के नटराज स्वरूप के विकास को सातवीं शताब्दी के पल्लव एवं आंठवी से दसवीं शताब्दी के बीच दक्षिण भारत के चोल साम्राज्य से जोड़ा जाता है। वहीं योगसूत्र के जनक महर्षि पतंजलि द्वारा बनवाये गये चिदंबरम में स्थित नटराज स्वरूप की भव्य मूर्ति पुख्ता प्रमाण भी मानी जा सकती है। हालांकि महर्षि पंतजलि ने भगवान शिव के नटराज स्वरूप को योगेश्वर शिव के रूप में निरूपित करने का प्रयास किया।
अपने नटराज स्वरूप में भगवान शिव एक बौने राक्षस पर तांडव नृत्य करते हुए लगते हैं। यहां शारीरिक दिव्यांगता को बौनापन नहीं माना बल्कि बौना अज्ञान का प्रतीक है। अज्ञानी व्यक्ति का कद समाज में हमेशा बौना माना जाता है। अज्ञान को दूर कर ज्ञान प्राप्त करने पर जो खुशी मिलती है उन्हीं भावों को शिव के इस स्वरूप में देखा जा सकता है। भगवान शिव की यह नृत्य भंगिमा आनंदम तांडवम के रूप में चर्चित है। इसी मुद्रा में उनके बायें हाथ में अग्नि भी दिखाई देती है जो कि विनाश की प्रकृति है शिव को विनाशक माना जाता है। अपनी इस अग्नि से शिव सृष्टि में मौजूद नकारात्मक सृजन को नष्ट कर ब्रह्मा जी को पुनर्निमाण के लिये आमंत्रित करते हैं। नृत्य की इस मुद्रा में शिव का एक पैर उठा हुआ है जो कि स्वतंत्र रूप से हमें आगे बढ़ने का संकेत करता है। उनकी इस मुद्रा में एक लय एक गति भी नजर आती है जिसका तात्पर्य है परिवर्तन या जीवन में गतिशीलता। शिव का यह आनंदित स्वरूप बहुत व्यापक है। जितना अधिक यह विस्तृत है उतना ही अनुकरणीय भी है।
हम सभी ने भगवान शिव के नटराज रूप को कई बार देखा है। किन्तु क्या आपने ध्यान दिया है कि नटराज की प्रतिमा के पैरों के नीचे एक दानव भी दबा रहता है? आम तौर पर देखने से हमारा ध्यान उस राक्षस की ओर नहीं जाता किन्तु नटराज की मूर्ति के दाहिने पैर के नीचे आपको वो दिख जाएगा। क्या आपको पता है कि वास्तव में वो है कौन? आइये आज इस लेख में हम उस रहस्य्मयी दानव के विषय में जानते हैं।
भगवान नटराज के पैरों के नीचे जो दानव दबा रहता है उसका नाम है "अपस्मार"। उसका एक नाम "मूयालक" भी है। अपस्मार एक बौना दानव है जिसे अज्ञानता एवं विस्मृति का जनक बताया गया है। इसे रोग का प्रतिनिधि भी माना जाता है। आज भी मिर्गी के रोग को संस्कृत में अपस्मार ही कहते हैं। योग में "नटराजासन" नामक एक आसन है जिसे नियमित रूप से करने पर निश्चित रूप से मिर्गी के रोग से मुक्ति मिलती है।
एक कथा के अनुसार अपस्मार एक बौना राक्षस था जो स्वयं को सर्वशक्तिशाली एवं दूसरों को हीन समझता था। स्कन्द पुराण में उसे अमर बताया गया है। उसे वरदान प्राप्त था कि वो अपनी शक्तियों से किसी की भी चेतना का हरण कर सकता था। उसे लापरवाही एवं मिर्गी के रोग का प्रतिनिधि भी माना गया है। अपनी इसी शक्ति के बल पर अपस्मार सभी को दुःख पहुँचता रहता था। उसी के प्रभाव के कारण व्यक्ति मिर्गी के रोग से ग्रसित हो जाते थे और बहुत कष्ट भोगते थे। अपनी इस शक्ति एवं अमरता के कारण उसे अभिमान हो गया कि उसे कोई परास्त नहीं कर सकता।
एक बार अनेक ऋषि अपनी-अपनी पत्नियों के साथ हवन एवं साधना कर रहे थे। प्रभु की माया से उन्हें अपने त्याग और सिद्धियों पर अभिमान हो गया और उन्हें लगा कि संसार केवल उन्ही की सिद्धियों पर टिका है। तभी भगवान शंकर और माता पार्वती भिक्षुक के वेश में वहाँ पधारे जिससे सभी स्त्रियाँ उन्हें प्रणाम करने के लिए यज्ञ छोड़ कर उठ गयी। इससे उन ऋषियों को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने अपनी सिद्धि से कई विषधर सर्पों को उत्पन्न किया और उन्हें भिक्षुक रुपी महादेव पर आक्रमण करने को कहा किन्तु भगवान शंकर ने सभी सर्पों का दलन कर दिया। तब उन ऋषियों ने वही उपस्थित अपस्मार को उनपर आक्रमण करने को कहा। स्कन्द पुराण में ऐसा भी वर्णित है कि उन्ही साधुओं ने अपनी सिद्धियों से ही अपस्मार का सृजन किया।
अपस्मार ने दोनों पर आक्रमण किया और अपनी शक्ति से माता पार्वती को भ्रमित कर दिया और उनकी चेतना लुप्त कर दी जिससे माता अचेत हो गयी। ये देख कर भगवान शंकर अत्यंत क्रुद्ध हुए और उन्होंने १४ बार अपने डमरू का नाद किया। उस भीषण नाद को अपस्मार सहन नहीं कर पाया और भूमि पर गिर पड़ा। तत्पश्चात उन्होंने एक अलौकिक नटराज का रूप धारण किया और अपस्मार को अपने पैरों के नीचे दबा कर नृत्य करने लगे। नटराज रूप में भगवान शंकर ने एक पैर से उसे दबा कर तथा एक पैर उठाकर अपस्मार की सभी शक्तियों का दलन कर दिया और स्वयं संतुलित हो स्थिर हो गए। उनकी यही मुद्रा "अंजलि मुद्रा" कहलाई।
उन्होंने उसका वध इसीलिए नहीं किया क्यूंकि एक तो वो अमर था और दूसरे उसके मरने पर संसार सेउपेक्षा का लोप हो जाता जिससे किसी भी विद्या को प्राप्त करना अत्यंत सरल हो जाता। इससे विद्यार्थियों में विद्या को प्राप्त करने के प्रति सम्मान समाप्त हो जाता। जब उन साधुओं भगवान शंकर का वो रूप देखा तो उनका अभिमान समाप्त हो गया और वे बारम्बार उनकी स्तुति करने लगे। उन्होंने उसी प्रकार अपस्मार को निष्क्रिय रखने की प्रार्थना की ताकि भविष्य में संसार में कोई उसकी शक्तियों के प्रभाव में ना आये। नटराज रूप में महादेव ने जो १४ बार अपने डमरू का नाद किया था उसे ही आधार मान कर महर्षि पाणिनि ने १४ सूत्रों वाले रूद्राष्टाध्यायी "माहेश्वर सूत्र" की रचना की।
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर के मन में एक आलौकिक नृत्य करने की इच्छा हुई। उसे देखने के लिए सभी देवता, यक्ष, ऋषि, गन्धर्व इत्यादि कैलाश पर एकत्र हुए। स्वयं महाकाली ने उस सभा की अध्यक्षता की। देवी सरस्वती तन्मयता से अपनी वीणा बजाने लगी, भगवान विष्णु मृदंग बजाने लगे, माता लक्ष्मी गायन करने लगी, परमपिता ब्रह्मा हाथ से ताल देने लगे, इंद्र मुरली बजाने लगे एवं अन्य सभी देवताओं ने अनेक वाद्ययंत्रों से लयबद्ध स्वर उत्पन किया। तब महादेव ने नटराज का रूप धर कर ऐसा अद्भुत नृत्य किया जैसा आज तक किसी ने नहीं देखा था। उस मनोहारी नृत्य को देख कर सभी अपनी सुध-बुध खो बैठे।
जब नृत्य समाप्त हुआ तो सभी ने एक स्वर में महादेव को साधुवाद दिया। महाकाली तो इतनी प्रसन्न हुई कि उन्होंने कहा - "प्रभु! आपके इस नृत्य से मैं इतनी प्रसन्न हूँ कि मुझे आपको वर देने की इच्छा हुई है। अतः आप मुझसे कोई वर मांग लीजिये।" तब महादेव ने कहा - "देवी! जिस प्रकार आप सभी देवगण मेरे इस नृत्य से प्रसन्न हो रहे हैं उसी प्रकार पृथ्वी के सभी प्राणी भी हों, यही मेरी इच्छा है। अब मैं तांडव से विरत होकर केवल "रास" करना चाहता हूं।"
ये सुनकर महाकाली ने सभी देवताओं को पृथ्वी पर अवतार लेने का आदेश दिया और स्वयं श्रीकृष्ण का अवतार लेकर वृन्दावन पधारी। भगवान शंकर ने राधा का अवतार लिया और फिर दोनों ने मिलकर देवदुर्लभ "महारास" किया जिससे सभी पृथ्वी वासी धन्य गए।
तो इस प्रकार अपस्मार को अपने पैरों के नीचे दबाये अभय मुद्रा में भगवान शंकर का नटराज स्वरुप ये शिक्षा देता है कि यदि हम चाहें तो अपने किसी भी दोष को स्वयं संतुलित कर उसका दलन कर सकते हैं। महादेव का नटराज स्वरुप पाप के दलन का प्रतीक तो है ही किन्तु उसके साथ-साथ आत्मसंयम एवं इच्छाशक्ति का भी प्रतीक है।

!! जय श्री नटराजन!!

Address

Madhepur
847408

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