कब तक आंखों के सामने राख होते रहेंगे आशियाने।
पहाडों में जीवनयापन खासा कठिन है। यहां दुर्गम घाटियों में एक मकान खड़ा करने में पूरा जीवन निकल जाता है। कम संसाधनों के साथ घर बनाने के लिए कड़ी मेहनत के साथ साथ लोगों की जीवन भर एकत्रित की गई पूंजी लग जाती है। पारम्परिक काठकुणी शैली से बने मकानों को कब आग राख के ढेर में बदल दे, इसकी चिंता हमेशा रहती है। अकेले कुल्लू जिला में कई गांव स्वाहा हो चुके हैं। सरकार और प्रशासन की ओर से इन घरों को बचाने के लिए कोई पुख्ता इंतजाम नहीं है। किसी गांव तक सड़क नही है तो किसी गांव से अग्निशमन केंद्र कोसों दूर है। कहीं तो पेयजल आपूर्ति की ही सुचारू व्यवस्था नही है। ऐसे में अपने सपनों के घरौंदे को आंखों के सामने जलता देखना यहां के जनमानस की मजबूरी बन गई है। बीते दिन मनाली विधानसभा क्षेत्र की बस्तूरी पंचायत के सरली गांव में भयंकर अग्निकांड हुआ। बदकिस्मती हैं कि आजादी के सालों बाद भी गांव को सड़क नही मिली। हर चुनाव के दौरान वायदे तो बहुत होते हैं लेकिन चुनाव खत्म होते ही नेतागण सारे वायदे भूल जाते हैं। गांव तक सड़क न होने के कारण फायरब्रिगेड नही पहुंच सकी। ग्रामीण कोशिश करते रहे लेकिन घरों को तेज लपटों से बचा नही सके।