24/07/2024
कायरों की नर्सरी - आरएसएस
मोहन बगावत अपने भाषणों से कड़े संकेत दे रहे हैं। लगता है कि वे सरकार की नीति रीति पर शिकंजा कस देंगे।
नही। कुछ नही होगा।
आरएसएस में उतना आत्मबल नही है।
उसके लोगो मे फ्लेम नही है।
वह कांग्रेस नही है।
अंग्रेजो की बनाई कांग्रेस, उनका सेफ गैस्केट थी। कुकर की सीटी की तरह, जब प्रेशर ज्यादा भर जाए- तो थोड़ी भाप निकाल दो।
20 साल यूँ ही चली। नीति थी- गिड़गिड़ाओ, पत्र लिखो। प्रस्ताव करो, 100 मांगे रखो, हुजूर से उम्मीद करो कि 2 मान ली जाये।
तिलक नें यह धारा तोड़ दी। वे आंदोलन के समर्थंक थे। मांग रखेंगे, पर भीख न मांगेंगे इल्तजा नही..
दबाव से पास कराएंगे।
पार्टी के नेता, गोखले को नहीं जँचा। गरम दल को हाशिये पर फेंक दिया। तिलक ने अध्यक्ष बनने की कोशिश की, लेकिन गोखले के पैंतरे के सामने नही टिके।
कुर्सियों की फेंक फांक, मारपीट हुई। अंततः कांग्रेस दो फाड़ हो गयी। नरम दल- गरम दल।दरअसल, इससे कांग्रेस बढ़ी, लोगो की उम्मीदें जुड़ी। उन्हें लगा-
यहां लड़ने वाले लोग हैं।
दूसरे अनुशासनहीन- गांधी
खिलाफत, चंपारण, अहमदाबाद, और असहयोग आंदोलन से जनता में अनुशासनहीनता रोप दी।
नमक आंदोलन, भारत छोड़ो अभियान इसकी कड़ी थे। इस अनुशासनहीनता से कांग्रेस फैली। हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सब जुड़े। अंग्रेज भागे। देश आजाद हुआ।
गांधी के जमे सिक्के के खिलाफ आये सुभाषचंद्र बोस। अनुशासन को धता बताकर चुनाव लड़ा, जीते।
पर पार्टी ने नकार दिया, तो इस्तीफा दिया। पार्टी तोड़ी, नया दल बनाया- फार्वर्ड ब्लॉक। बंगाल में कांग्रेस को हरवाया।
पर जल्द ही देश छोड़ दिया।
रेस्ट इज हिस्ट्री।
नेहरू के पसंदीदा राजगोपालाचारी, गवर्नर जनरल बने। पहला राष्ट्रपति उन्हें ही बनना था, मगर बन न पाए।
पार्टी तोड़ी, नया दल बनाया।
स्वतंत्र पार्टी
इंदिरा ने अनुशासन तोड़ा। पार्टी पे बैठे सिंडीकेट को ठेंगा दिखाया, नई कॉन्ग्रेस बनाई, नया मैंडेट लिया। इतिहास रचा।
मोरारजी देसाई, वीपी सिंह- अनुशाशन तोड़ा, पार्टी तोड़ी। सरकारें बदल थी, इतिहास की धारा बदल दी।
अर्जुन सिंह, नारायण दत्त तिवारी से लेकर G- 22 तक कांग्रेस में अनुशासनहीनो की लंबी कतार है।
कुछ कद के लिए, कुछ पद के लिए, कुछ लालच में, कुछ देश के लिए अनुशासनहीन बने। ये सभी- भीतर से मजबूत लोग थे। जो सोचते थे- वह बोलते थे।
उस अनुसार एक्शन करते थे।
कांग्रेस तो अनुसाशनहीनता की घुट्टी से बढ़ी है। उसमे बोलने और मनवाने की धारा है। सत्याग्रह की धारा है। जिसे आप अनुसाशनहीनता कहते हैं, गांधी ने आत्मबल कहा।
अगर कांग्रेस,अनुशासित, लॉ एबाइडिंग लोगो ने चलाई होती, तो आरएसएस और हिन्दू महासभा की तरह, वह भी नेशनल मूवमेंट से गायब होती।
दरअसल, आत्मबल प्राकृतिक ताकत है। जो जगने पर, मनुष्य में 100 हाथियों की ताकत पैदा कर सकता है।
जिसमे शख्स यह नही देखता की 100 लोगो का झुंड क्या कहता है? नियम क्या कहता है, अंग्रेजो का कानून क्या कहता है।
यही वीरता है, डेमोक्रेटिक वैल्यूज के प्रति कमिटमेंट है। जो अपनी बात न रख सकता, जनता की क्या ही रखेगा???
ये अनुशाशन उस हाथी के पैर की वह रस्सी है, जो बचपन मे बांध दी जाती है। जो सदा के लिए, मन पर बंध जाती है। आरएसएस अपने वर्कर्स की ब्रेनवॉशिंग से, यही रस्सी बांधता है।
"संगठन में शक्ति है" "अनुशाशन ताकत है" बताकर उन्हें भीड़ के आगे सरेंडर करने की शिक्षा देता है।
उन्हें आज्ञाकारी, भीतग्रस्त, कायर बनाता है।
तो ऐसा नही की भाजपा में मजबूत लोग नही, विजनरी लोग नही।
शिवराज, गडकरी, राजनाथ, वसुंधरा.. कतार है उनके पास। मगर आत्मबल फुस्स..
भाजपा में विद्रोह के नाम पर शंकर सिंह वाघेला याद आते हैं। क्लीव जमात में एकमात्र मर्द जो अपने हक, अपनी सोच, अपने विचार के साथ गया। नतीजा, चाहे जो मिले।
तो संघ की नर्सरी से तिलक, गांधी, सुभाष, राजगोपालाचारी, इंदिरा, वीपी, अर्जुन सिंह कभी निकल नही सकते।
इसलिए 100 साल में वे कोई आंदोलन करते नही दिखे। इसके लोग, गुपचुप कानो में अफवाहें फुसफुसा सकते हैं। इंडोक्टरीनेटेड वर्कर, वोटर बना सकता है।
पर इससे लीडर्स नही निकल सकते। मैनेजर निकलते है-भीड़ के, फंड के, सत्ता के,
इवेंट के..
तो डरपोकों का संघ, खुद के खड़े किए मोदी और योगी की उच्छृंखलता से सहम जाता है।
जबकि उनकी भी ताकत दरअसल सत्ता में है,आत्मबल नही। सबका आत्मबल, यहां तक कि स्वयं सरसंघचालक का भी, संघ की शिक्षाओं से, बचपन मे ही मर चुका है।
तो हालिया बयानों से नाहक ही सुर्खियां बटोर रहे सरसंघचालक पर ध्यान देने की जरूरत नही। उनके बस में कुछ नही। वह तो खुद उसी नर्सरी की पैदावार हैं..
जो विश्व मे कायरों की, सबसे बड़ी नर्सरी है।