12/12/2024
पड़ोस के घर में बेटी का ब्याह था। बहुत सालों के बाद ब्याह के घर को ब्याह जैसी गहमागहमी वाला घर बने देखा।
पिछले एक हफ्ते से उनके घर में विवाह की धूम मची हुई थी। मामा, मौसी, बुआ, ताऊ, चाचा अपने-अपने परिवार सहित इकट्ठे हो रखे थे। दूर से आए लोग छुट्टियां लेकर आए हुए थे। उनके कुछ घरवाले जिनको छुट्टियां नहीं मिल पाई, वे कुछ दिन बाद आए थे। जो रिश्तेदार आसपास रहते हैं, वे यहीं से अपने काम पर आना जाना कर रहे थे।
उन्होंने घर पर हलवाई बिठा दिया था, जो सुबह-शाम भोजन बना देता था। पर चाय-नाश्ते का दौर पूरे दिन चलता रहता था। किसी एक को चाय पीनी होती, तो उसे कंपनी देने के लिए पांच और जाने चाय पीने को तैयार मिलते। हलवाई के होते हुए भी किसी न किसी बच्चे की डिमांड पर कोई चाची, ताई, मामी या बुआ रसोई में घुसकर कुछ बनाती दिख जाती थी। एक बच्चा कहता, "बुआजी, आपके हाथ के परांठे खाए बहुत दिन हो गए।", बच्चे की फरमाइश पर बुआ लाड में आकर अपने भतीजे के लिए दो परांठे बनाने किचन में घुसती, और कम से कम बीस परांठे बनाने के बाद ही बाहर निकलती। जब पांच-सात लोग परांठे खाने बैठ जाते तो बुआ का हाथ बंटाने दो और महिलाएं रसोई में घुसती। एक परांठा बेलती, एक सेंकती, और एक पराठों पर मक्खन लगाकर बच्चों को परोसती जाती। रसोई में काम कर रही महिलाएं परांठे बनाने के साथ-साथ घर-बार के बारे में बोलना-बतलाना भी कर लेती थी।
घर में बहुत अधिक डेकोरेशन न करके, घर को हल्के रेशमी कपड़ों से सजाया हुआ था, व तम्बू वाले के यहां से लाकर दरी, कुर्सी, मेज आदि बिछा दी गई थी। मुख्यद्वार के सामने लगी कुर्सियों पर सारा दिन लोग बैठे ब्याह की प्लानिंग में बिजी पाए जाते। घर के लड़के-लड़कियां सजे-धजे कुछ न कुछ लाने के लिए दिन में कई चक्कर बाजार के लगा आते।
हफ्तेभर रोज कोई न कोई रस्म चल रही होती थी। भावी दुल्हन को सरसों का तेल व हल्दी लगाकर विवाह से सात दिन पहले बान बिठा दिया गया था। घर की महिलाएं दिन-रात ब्याह के गीत गाते हुए कुछ न कुछ रीति पूरी कर रही होती थी। कभी सब इकट्ठी होकर गीत गाते हुए कुम्हार के यहां चाक पूजने जाती, तो कभी पड़ोस के घरों से पानी का कलश भरकर लेने जाती।
घर में इकट्ठे हुए बच्चों ने डीजे की ड्यूटी संभाली हुई थी। रोज रात को भोजन के पश्चात एक ओर गीतों का दौर चलता, तो दूसरी ओर बच्चे डीजे पर गाने लगाकर नाच रहे होते। खूब रात होने पर घर के बड़े लोग बच्चों को डांट लगाकर डीजे बंद करवाते, और बच्चों को सोने भेजते। सब लोग घर के अंदर फर्श पर बिछे गद्दों पर रजाई ओढ सो रहते, और अगले दिन सुबह उठते ही फिर से विवाह की धूम शुरू हो जाती।
सालों बाद ऐसा रौनक वाला विवाह देखने को मिला। वरना, आजकल विवाह के फंक्शंस के समय विवाह वाला घर सुनसान पड़ा होता है, और घरवाले फंक्शन मनाने किसी बैंकेट हॉल या रिजॉर्ट में गए होते हैं। मेहमान भी सीधे वेन्यू पर पहुंचते हैं। विवाह के वेन्यू व प्रति प्लेट खाने का पैसा इतना अधिक होता है कि आजकल विवाह में अत्याधिक धन खर्च हो जाता है। खूब खर्चा करके भी विवाह वाले घर में कोई खास रौनक नहीं लगती, वह अक्सर यूंही खाली खड़ा लोगों के आने की बाट जोह रहा होता है। दूसरी ओर ये ब्याह था, कम खर्चे व अधिक रौनक वाला, जिसे लोग वर्षों तक याद रखेंगे।
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✍️ रेखा वशिष्ठ मल्होत्रा