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Face of आर्यावर्त “ गुरुकुल बचाओ संस्कृति बचाओ ”

“भारतस्य प्रतिष्ठे द्वे संस्कृतं संस्कृतिस्तथा” 🦚🦚🦚
(1)

त्रिशिराः काञ्चनः केतुस्तालस्तस्य महात्मनः। स्थापितः पर्वतस्याग्रे विराजति सवेदिकः ॥५३॥'पर्वत के ऊपर उन महात्मा की ताड़ ...
08/01/2025

त्रिशिराः काञ्चनः केतुस्तालस्तस्य महात्मनः। स्थापितः पर्वतस्याग्रे विराजति सवेदिकः ॥५३॥

'पर्वत के ऊपर उन महात्मा की ताड़ के चिह्न से युक्त सुवर्णमयी ध्वजा फहराती रहती है। उस ध्वजा की तीन शिखाएँ हैं और उसके नीचे आधारभूमि पर वेदी बनी हुई है। इस तरह उस ध्वज की बड़ी शोभा होती है॥ ५३॥

पूर्वस्यां दिशि निर्माणं कृतं तत् त्रिदशेश्वरैः। ततः परं हेममयः श्रीमानुदयपर्वतः॥५४॥

'यही तालध्वज पूर्व दिशा की सीमा के सूचकचिल के रूप में देवताओं द्वारा स्थापित किया गया है। उसके बाद सुवर्णमय उदयपर्वत है, जो दिव्य शोभा से सम्पन्न है॥५४॥

-वाल्मीकि रामायण किष्किन्धाकाण्ड सर्ग 40

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03/01/2025

कई लोग मुझसे पूछते हैं कि अपने बच्चों को क्या पढ़ाएं जो उन्हें अपने धर्म का ज्ञान हो तो मैं उन्हें कहता हूं कि सत्यार्थ प्रकाश पढ़ाओ और कोई दूसरा विकल्प ही नहीं है

नववर्ष का आरंभ 🔭🔭वैदिक कैलेंडर के अनुसार वैदिक नववर्ष का आरंभ चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 30 मार्च, 2025 ...
31/12/2024

नववर्ष का आरंभ 🔭🔭

वैदिक कैलेंडर के अनुसार वैदिक नववर्ष का आरंभ चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 30 मार्च, 2025 से हो रहा है. यह विक्रम संवत 2082 होगा. सनातन धर्म में यह मान्यता है कि इस तिथि से ही परमात्मा ने सृष्टि की रचना आरंभ की थी. साथ ही इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम का जन्म और राज्याभिषेक भी हुआ था. इसके अलावा युधिष्ठिर का राज्याभिषेक भी इसी दिन हुआ था. इस तिथि के अनुसार नव संवत्सर के राजा निर्धारित होते हैं...

चैत्रः श्रीमानयं मासः पुण्यः पुष्पितकाननः।
यौवराज्याय रामस्य सर्वमेवोपकल्प्यताम्।।

उदिते विमले सूर्ये पुष्ये चाभ्यागतेऽहनि।
लग्ने कर्कटके प्राप्ते जन्म रामस्य च स्थिते ॥१३॥
अभिषेकाय रामस्य द्विजेन्द्रैरुपकल्पितम् ।।१४।।

अर्थात् राम के जन्म का जो लग्न है, उसी लग्न में अभिषेक का भी दिन पड़ा था..✍️ Face of आर्यावर्त

29/12/2024

सुन्दरोऽपि सुशीलोऽपि कुलीनोऽपि महाधन:।
शोभते न विना विद्यां, विद्या सर्वस्य भूषणम ।''

कोई व्यक्ति कितना भी सुन्दर, सुशील, कुलीन, धनवान क्यों न हो ये चीजें विद्या के बिना शोभा नहीं देती क्योंकि विद्या सभी का आभूषण है।

28/12/2024

गुरुकुल बचाओ संस्कृति बचाओ

25/12/2024

आप में से कितने हैं जिसने अब तक के जीवन काल में गुरुकुलों में दान किया हो?

शंका - क्या स्त्री को अग्निहोत्र व मंत्र उच्चारण करने का अधिकार नहीं है?समाधान - स्त्री और पुरुष अर्थात् मनुष्यमात्र को ...
17/08/2024

शंका - क्या स्त्री को अग्निहोत्र व मंत्र उच्चारण करने का अधिकार नहीं है?
समाधान - स्त्री और पुरुष अर्थात् मनुष्यमात्र को अग्निहोत्र, मंत्र उच्चारण, वेद पढ़ने का अधिकार है

#कौसल्या #वाल्मीकि_रामायण

17/08/2024
विवाह की आयु -  #महर्षि_सुश्रुत  #आयुर्वेद
17/08/2024

विवाह की आयु - #महर्षि_सुश्रुत #आयुर्वेद

प्राचीन विमान मैं पहने जाने वाले विशेष वस्त्र किस विधि द्वारा  तैयार किए जाते थे।यन्तृप्रावरणीयौ पृथक् पृथगृतुमेदात् ॥ व...
04/08/2024

प्राचीन विमान मैं पहने जाने वाले विशेष वस्त्र किस विधि द्वारा तैयार किए जाते थे।

यन्तृप्रावरणीयौ पृथक् पृथगृतुमेदात् ॥

वस्त्रप्रबोधकपदान्यन्तृ णामृतुभेदतः ।

उक्तानि त्रीणि सूत्रेस्मिन् तेषामयों विविच्यते ॥१॥

धारणाच्छादनवस्त्रप्रमेदो यन्तृणा क्रमात् ।

सूत्रादिमपदेनोक्त द्वितीयपदतस्तथा ॥ २ ॥

तेषा सस्कारतद्वर्णगुणजात्पादय स्मृता ।

सूत्रतृतीयपदत कालभेदो निरूपित ॥ ३ ॥
इत्य सूत्रार्थमुक्त्वाय विशेषार्थी निरूप्यते ।

अनन्तसूर्यकिरणशक्तिवैचित्रधभेदत वसन्ताद्याप्यतव यजुराण्यके ॥ ४ ॥
प्रभवन्त्यदितेर्मु खात् । सूर्यानन्तत्वप्रतिपादने ॥५॥
यद् द्याव इन्द्र ते । शतमितिवाक्याच्छ्र तिर्जगौ ।

ऋतुभेद से विमानचालक यात्रियों के वस्त्रों के प्रबोधक पद तीन सूत्र में कहे हैं उनके अर्थ का विवेचन किया जाता है। यात्रियों के पहनने और ओढने का वस्त्रभेद क्रम से सूत्र के आदिम पद से कहा दूसरे पद से संस्कार उसके वर्ण गुण जाति आदि कहे हैं, तीसरे पद से काल भेद कहा है इस प्रकार सूत्रार्थ कह कर विशेष अर्थ निरूपित्त किया जाता है, अदिति-व्याप्त अग्नि के मुख से एवं अनन्त सूर्यकिरण शक्तियों की विचित्रता के भेद से वसन्त आदि छ ऋतुएं होती हैं। यजुर्वेद के आरण्यक में सूर्य किरणों की अनन्तता प्रतिपादन होने से "बद् द्याव इन्द्र ते शतम्" (तै० श्र० १। ७।५) हे इन्द्र सूर्य तेरी किरणें सैकड़ों सहस्रों हैं।। इस प्रकार वाक्य श्रुति ने गान किया-कहा है ॥ १-५
तस्मादनन्तसूर्याणामशुशक्तिसमाकुलात्

विषामृतविभागेन भिद्यन्ते ऋतुशक्तय ॥ ६ ॥ छेदिनो रक्तपामेधस्सिरा हा रादय कमात् ।

पञ्चविशतिसख्याका ऋतूना विषशक्तय ।। ७ ।। त्वड् मासमेधामज्जास्थिस्नायुरक्तरसादिकान् । वेरवीजान् नश्यन्ति खपथे यानयन्तृ णाम् ॥ ८ ॥

तस्मात्तद्वेरबीजादिरक्षणार्थ कपादिना 1 ऋतुशक्तयनुसारेण वस्त्रभेदा निरूपिता ॥ ६ ॥

अत. अनन्त सूर्यो के शक्तिसमूह से विष और अमृत के विभाग से ऋतुशक्तियां भिन्न-भिन्न हो जाती हैं। छेदिनी अङ्गछेदन करनेवाली, रक्तपा-रक्त पीनेवाली, मेधा-मद मांस चिकनाई सिरा आहार वाली क्रम से सख्या में ऋतुओं की विषशक्तियां है जो कि आकाशमार्ग में विमानयात्रियों के त्वचा मांस मेद मज्जा-चर्बी हड्डी नाडो रक्त सिरा आदि बेर बोजों-शरीर के तत्त्वों को नष्ट करती हैं। अत शरीर के तत्त्वों की रक्षा के अर्थ कपर्दी ने ऋतुशक्ति के अनुसार वस्त्रों के भेद निरूपित किये हैं। ६-६।

उक्तं हि पटसंस्काररत्नाकरे- कहा हो है पटसंस्कार रत्नाकर ग्रन्थ में-

पट्टकार्पासशैवाललोमा भ्रकत्वगादिकान् ।

सप्तविशतिसस्कारशुद्धानत्रकवारिणा ।। १० ।।

क्षालयित्वाथ तान् सर्वान् यन्त्रे सन्धाय शाक्षत ।

गालवोक्तविधानेन तन्तून् सम्यक् प्रकल्पयेत् ।। ११ ।। केतकीवटतालार्कनारिकेलशणादय ।
एकोनविशत्स स्कारैस्सस्कृत्य विधिवत् क्रमात् । तत्तद्वल्कलमादाय यन्त्रे तन्तुमुखाभिधे (दे') ।॥ १३ ॥ समग्रेणाथ सन्धार्य तन्तून् कृत्वा यथाविधि । गालवोक्तेन मार्गेण कुर्याद वस्त्राण्यथाक्रमम् ॥ १४ ॥

तत्तच्छुद्धिप्रकारेण शोधायित्वाष्टवारत ॥ १२॥

पश्चाद् वस्त्रान् समाहृत्य पश्चतैलैस्तु पाचयेत् ।

अतसीतुलसीधात्रीशमीमालूरुचक्रिका ॥ १५ ॥

रेशम, रूई, जलकाई, बाल, अभ्रकपरत आदि को २७ संस्कार शुद्ध करे हुओं को अभ्रक - जल या कपूरजल या नागरमोथे के जल से प्रक्षालित करके सबको शास्त्र से यन्त्र में रखकर गालव की विधि से धागों को बनावे। केतकी केवड़ा, (बांस केवड़ा) वह, ताड़, यख, नारियल, सण आदि उस उसके शुद्धिप्रकार से ८ बार शोध कर १६ संस्कारों से विधिवत् करके उसके उस उसके वकल लेकर तन्तुमुख नामक यन्त्र में रखकर तन्तुओं को बनाकर गालब के कहे मार्ग से त्रस्त्र यथाक्रम करे पश्चात् वस्त्रों को लेकर पांच तैलों से पकावे जो कि पांच तैल हैं अलसी, तुलसी, आमला, शमी, मालु- काली तुलसी, रुचिका-सरसों ॥ १०-१५ ॥

एतदोषधिवीजाना तैलात् सप्ताहमातपे ।
प्रत्यंह पञ्चधातप्त्वा शुष्क कृत्वा तत गोपीलाक्षाचण्डमुखीमधुपिष्टाभ्रक्रास्समम् ।
परम् ।। १६ ।।
सम्मेल्य एणाक्षारेण बृहन्मुषामुखे क्रमात् ॥ १७ ॥
सम्पूर्य विधिवत् सर्व कूर्मव्यासटिकान्तरे ।
निधाय त्रिमुखीभस्त्राद् ध्मनेच्छिञ्जीरवेगत ॥ १८ ॥ तन्मध्येगस्तिपत्राणा रसप्रस्थाष्टक न्यसेत् । ।। १६ ।। माक्षिकाभ्रकसिञ्जीरवज्रटगुणवाकुटे तैलमाहृत्य विधिवत् तस्मिन् पश्चान्नियोजयेत् । पश्चात् सगृह्य तत्काञ्ज गर्भता पनयन्त्रके ॥ २० ॥
सन्ताप्य तत्तैललिप्तवस्त्राण्यथ समाहरेत् ।[ २७

इन औषधियों के बीजों के तेल से सप्ताहभर धूप में प्रतिदिन पांच बार तपाकर सुखाकर गोपी-गोपिका-कृष्ण सारिवा, लाख चण्डमुखी-इमली, मधु, पिष्ट-तिल की खल, अभ्रक ये समान लेकर एणक्षार ?-ऐणाक्षार हरिणश्टङ्ग भस्म के क्षार से मिला कर बड़ी मूषा (कृत्रिम बोतल के मुख में भर कर कुर्भव्यासटिका-कछवे के आकारवाले कुण्ड के अन्दर रखकर तीन मुखवाली भस्त्रा से सिब्ज़ीर? के वेग से धमन करे। उसके मध्य मे अगस्त्य वृत्त के पत्तों का सेर रस डाल दे स्वर्णमाक्षिक अभ्रक सिञ्जीर ? थूहर, सुहागा, वाकुट त्राकुची? या वाकुन-अकुत्त का फत्त वस्तुओं से विधिवत् तेल लेकर उस में डाल दे पश्चात् लेकर भर्भरात यन्त्र में उनके काव्ज ?- रस तपाकर उस तैल से लिप्त वस्त्र लेले ॥१६-२०

अग्निमित्रोक्तविधिना पटजात्यनुमारत

ऋतुधर्मानुसारेण कवचादीन् प्रकत्पयेत् ॥ २१ ॥

तत्तत्कालोचितान् वस्त्रकवचादीन् यथाक्रमम् ।

यानयन्तृत्वाधिकारवरिष्ठेभ्यो मनोहरान् ॥ २२ ॥

दत्त्वा स्वस्त्ययन कृत्वा रक्षाकरणपूर्वकम् ।

पश्चात् सम्प्रेषयेद् यानयन्त्रकर्माणि हर्षत ॥ २३ ॥

सर्वदोषविनाशस्स्यात् तत्पट्ट बलवर्धनम् ।

मेघोवृद्धिर्षातुवृद्धिरङ्गपुष्टिरजाड्यता

॥ २४ ॥

अग्निमित्र की कही विधि में पट जाति के अनुसार ऋतु धर्मानुसार कवच आदि बनावें, उस उस काल के योग्य वस्त्र कवच आदि यथाक्रम मनोहर विमानचालन अधिकार में श्रेष्ठों के लिये देकर स्वरूपयन रक्षाकरणपूर्वक करके उन्हें हर्ष से विमानचालन के कार्य में प्रेरित करे, सर्व दोषों का विनाश हो उन वस्त्रों से विमानयात्रियों का बल बढ़े, मेधा बढे, धातु वृद्धि हो अङ्ग पुष्टि स्फुर्ति अङ्गरक्षण आदि हो । २१-२४ ।।....✍️
- अंकित खटकड़

22/07/2024

जो लोग कह रहे हैं कि राम ने झूठे बेर खाए थे वह वाल्मीकि रामायण से प्रमाण देकर बताएं अन्यथा व्यर्थ में ना चिल्लाए

महादेवजी बोले- हे पुत्र ! सुनो, जो बात तीनों लोकों में दुर्लभ है। उसे संक्षेप में कहता हूँ। सारे ही धनुषों का परिमाण (शक...
10/07/2024

महादेवजी बोले- हे पुत्र ! सुनो, जो बात तीनों लोकों में दुर्लभ है। उसे संक्षेप में कहता हूँ। सारे ही धनुषों का परिमाण (शक्ति या सामर्थ्य) बताता हूँ ॥ १६ ॥ चार सरसों के दानों के बराबर एक यव (जौ) का मान (भार) होता है। चार यव की एक कलिका, १२ कलिका का एक माषक और १२ माषक (मासा) का एक ताल (तोला)

होता है॥ १७ ॥

पाँच ताल का एक पल होता है। इन १०० पल का शास्त्रानुसार धनुष का भार होता है ॥ १८ ॥
भार के बिना धनुष खींचने योग्य नहीं होता, इसलिए शक्ति के अनुसार भार धनुष में अवश्य रखना चाहिये। जितना सामर्थ्य हो उतना ही भार रखना उचित है ॥ १९ ॥

योगिक चाप का भार २०० पल, क्रिया धनुष का ३०० पल, शलाका का ४०० पल, वाम (बाँये हाथ से चलाया जानेवाला) धनुष ७०० पल का और दक्षिण (दाँयें हाथ से चालाया जानेवाला ९०० पल का धनुष बनाना चाहिये। इस प्रकार बनाये हुए धनुष शुभ होते हैं ॥ २०, २१ ॥

हे वत्स ! संग्राम में प्रयोग किया जानेवाला धनुष ७०० पल का बनाना चाहिये। दृढ़ लक्ष्य के भेदनार्थ १००० पल का, विकर्ष में १२०० पल और हे पुत्र। फलार्थ २००० पल का धनुष बनाना चाहिये। यह धनुषों का प्रमाण मैंने कहा है।.....✍️
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१. पताका- दीर्घा तु तर्जनी यत्र आश्रिताङ्गुष्ठमूलकम्। पताका सा च विज्ञेया 'नालिका दूरमोक्षणे ॥ ८५ ॥वा० ५० सिहंकर्णिकमुष्...
09/07/2024

१. पताका- दीर्घा तु तर्जनी यत्र आश्रिताङ्गुष्ठमूलकम्। पताका सा च विज्ञेया 'नालिका दूरमोक्षणे ॥ ८५ ॥

वा० ५० सिहंकर्णिकमुष्टौ च तर्जनी चेत्प्रसारिता। पताको नाम मुष्टिः स्यान्नलिकास्थूलकाण्डके ॥ ११७ ॥

- मानसोल्लास अ० १ वि० ४

२. वज्रमुष्टिः -

तर्जनीमध्यमामध्यमङ्गुष्ठो विशते यदि। वज्रमुष्टिश्च सा ज्ञेया स्थूलनाराचमोक्षणे ॥ ८६ ॥

- वा० ४०

तर्जन्यावेष्टिताङ्गुष्ठः शेषाः पाणितलेस्थिताः। वज्रमुष्टिरियं ख्याता दृढकर्मणि कोविदैः ॥ १२० ॥

मानसोल्लास अ० १ वि० ४

३. सिंहकर्णी:-

अङ्गुष्ठमध्यदेशं तु तर्जन्यग्रं सुसंस्थितम्। सिंहकर्णः स विज्ञेयो दृढ लक्ष्यस्य वेधने ॥ ८७॥

- वा० ६०

अङ्गुष्ठपीडितं कुर्यात् तर्जनी नखरं तले। अङ्गुलीत्रितयं स्थाप्यं मुष्टिः स्यात् सिंहकर्णिकः ॥ ११६ ॥

मानसो० अ० १ वि० ४

अङ्गुष्ठनखमूले तु मध्यमाग्रं सुसंस्थितम् ॥ २२॥ सिंहकर्णी तु विज्ञेया वत्सदन्तविमोक्षणे ॥ २३ ॥

आकाशभैरव पटल १३६

४. मत्सरी-

अङ्गुष्ठनखमूले तु तर्जन्यग्रं सुसंस्थितम्। मत्सरी सा च विज्ञेया चित्रलक्ष्यस्य वेधने ॥ ८८ ॥

- वा० ६०

अङ्गुष्ठनखपृष्ठे च तर्जनी नखरो भवेत्। अधोवर्ती भवेन्मुष्टिः शेषाङ्गुल्योऽत्र पूर्ववत् ॥ ११८ ॥

- मानसोल्लास अ० १ वि० ४
काकतुण्डी -

अङ्गुष्ठाग्रे तु तर्जन्याः मुखं यत्र निवेशितम्। काकतुण्डी तु सा ज्ञेया सूक्ष्मलक्ष्ये तु योजिता ॥ ८६ ॥

- वा० ५०

'तर्जन्यङ्गुष्ठयोरग्रे श्लिष्टे चेत् पूर्ववत् पुरः। मुचुटी सूक्ष्मनाराच व्यधे मुष्टिः प्रशस्यते ॥ ११९ ॥ मानसो० अ० १ वि० ४ ६. त्रैयम्बक

७. एकलव्य- पुङ्खस्योर्ध्वमधः स्याच्चेत्तर्जनीमध्यमा स्थिता। तथा पुङ्खमुखेऽङ्गुष्ठो मुष्टिस्त्रैयम्बको मतः ॥ १२१ ॥

तर्जनीमध्यमामध्ये यन्त्र पुङ्खः प्रपीड्यते। अनामिका समायोगान्मुष्टिः स्यादेकलव्यकः ॥ १२२ ॥ त्रैयम्बकैकलव्यौ द्वौ तिर्यक्कोदण्डमार्गणे। - मानसो० अ० १ वि० ४

आकाशभैरवतन्वेऽयमधिकः -

योज्याऽऽलीबे पताकाख्या प्रत्यालीढे तु पावंति ॥ २५ ॥

वज्रमुष्टिर्विधातव्या विशाखे सिंहकर्णिका। मत्सरी दर्दुरे योज्या गारुडे काकतुण्डिका ॥ २६ ॥

सर्पव्यूहः -चतुर्दिक्षु रथौ द्वौ तत् पृष्ठे तु द्विरदा दश। चतुर्विंशतिरश्वाश्च त्रिंशत् खड्गधरास्ततः ॥ २२ ॥ शरचापधराश्चै...
09/07/2024

सर्पव्यूहः -

चतुर्दिक्षु रथौ द्वौ तत् पृष्ठे तु द्विरदा दश। चतुर्विंशतिरश्वाश्च त्रिंशत् खड्गधरास्ततः ॥ २२ ॥ शरचापधराश्चैव खेटपट्टिशधारिणः । तेषां पृष्ठे कुन्तधराः यन्त्रधरास्तथैव च ॥ २३ ॥ सर्पाकारं रथेभाश्वैः पूरयेत् सैनिकैरपि। सर्पव्यूहः स विज्ञेयः कृतान्तो युद्धकर्मणि ॥ २४ ॥

अर्थात् चारों दिशाओं में दो-दो रथ, उनके पीछे दश हाथी, चौबीस घोड़े, तीस

तलवारधारी योद्धा रहें। उनके पश्चात् धनुर्धर, ढाल और पट्टा के योद्धा भी तीस-तीस रहें। उनके पश्चात् भालाधारी सैनिक और यन्त्र (शतघ्न्यादि) स्थित करे। इस प्रकार रथ, हाथी, घोड़े और पदाति सैनिकों से सर्पाकार में इस व्यूह की रचना करे। इस व्यूह को सर्पव्यूह कहते हैं। यह यमराज के सदृश युद्ध में दुर्जय और संहारक है॥ २२-२४ ॥
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