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Kavita बचपन की स्मृतियां

17/11/2024

।।समझना है।।
देह के सौन्दर्य पर मत रीझ इतना,यह क्षणिक है।
विश्व के व्यापार में तू कुछ नहीं बस एक वणिक है।।
सोच ले तेरी हदें निश्चित कहां तक, क्यों उछलता?
प्राप्य ही तुझको मिलेगा ना अधिक,तू क्यों मचलता।।
दूर से दिखता तुझे जैसा सुहाना ,है न वैसा।
पा लिया गर कर परिश्रम फिर कहेगा ये है कैसा?
जांच ले पहले परख ले, शक्ति श्रम निज व्यर्थ मत कर।
जो तुझे रुचिकर दिखे पर वस्तुत:वह हो न हितकर।।
मन कहे वैसा न कर ,यह एक सा रहता न हरदम।
मांग इसकी अटपटी रहती सदा, ज्यादा कभी कम।।
अनुभवी बूढ़े बड़ों ने जो दिया उपदेश उसको मान ले।
शक्ति का विनियोग मैं कैसे करुंगा और कब यह जान ले।।
कर्म का अधिकार तेरा है सही,तू मत पिछड़ कर्तव्य से।
फल न मनचाहा मिलेगा ध्यान रख,वह मिले भवितव्य से।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

09/11/2024

।।आस की प्यास।।
ऐ मानव तू सोच अभी तक कितने किये प्रयास।
फिर भी तेरे मानस की अद्यावधि मिटी न प्यास।।
हर पड़ाव पर जहां रुका तू शान्ति मिली न मन की।
जितने कारक मिले मिटाते रहे प्यास इस तन की।।
तन की प्यास क्षणिक है प्यारे मनवा नित का प्यासा।
पग पग पल पल भटका दर दर हुई न पूरी आसा।।
जिन सुविधाओं को बटोर कर तूने था सुख माना।
देखा-देखी एक दूजे की मूरख रहा दिवाना।।
किन्तु अमूल्य बिता कर जीवन स्थिर हो किया विचार।
किया इकट्ठा जो कुछ श्रम से सब कुछ लगा असार।। नहीं वास्तविकता का मूल्यांकन मानव तू कर पाया।
जिसको जिसको गले लगाया वह ही हुआ पराया।।
सांसों की पूंजी खोकर भी और रहा पाना क्या शेष।
शरणागत होजा प्रभु का तू वही परमधन नित्य अशेष।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

09/11/2024

।। मुसाफिर।।
ऐ मुसाफिर तू न रुक चलता चला चल।
तेरी मंजिल कब मिलेगी आज या कल।।
जब तेरी मंजिल अभी निश्चित नहीं है।
दृष्टि तेरी लक्ष्य से ओझल कहीं है।।
दूसरों को देखकर मत लक्ष्य तय कर।
ज़िन्दगी सीमित समय मत व्यर्थ क्षय कर।।
हर कदम अहसास होना है जरुरी।
हो नहीं सकतीं सभी आशायें पूरी।।
धन,मकां, आजीविका,यश, कीर्ति फिर क्या?
संगिनी मन मोहिनी,सुत और क्या क्या?
मिल गया गर मन-मुताबिक हर मनोरथ
सोच कितना ये चलेगा देह का‌ रथ।।
अब बता क्या योजना तेरी दिली है।
मृत्यु की क्या चोट इन सबसे झिली है।।
वो जवानी की न ताकत अब रही है।
आ गया तन में बुढ़ापा यह सही है।।
ज़िन्दगी भर जो कमाया व्यर्थ है।
सब किये पुरुषार्थ का क्या अर्थ है?
तू मुसाफिर जो कमाया माल है।
छोड़कर जाता हुआ कंगाल है।।
ये दशा होती यहां हर एक की।
कर्म से बदनाम या फिर नेक की।।
है जरुरी लक्ष्य की संकल्पना कर।
अन्यथा यूं ही जन्म ले और मर।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

07/11/2024

।। राम ।।

हैं राम हमारे प्राण आत्मा जीवन धन।
हैं राम अखिल ब्रह्माण्ड विश्व काआराधन।।
हैं राम सकल वैभव विलास का आवर्तन।
हैं राम चिरंतन सत्य पूर्ण जग का चिंतन।।
शाश्र्वत सुख का अभिलाषी है यदि तेरा मन।
हैं निजानंद की चाह, मिटाना है भटकन।।
तो दृढ़ निश्चय कर चरणों में हो जा अर्पण।
विश्वास जमा मिल जायेगा वह जीवन धन।।
यह जन्म मरण का चक्र बड़ा दुखदायी है।
शरणागत हो भज राम सदासुखदायी है।।
मोहाभिभूत हो क्यों न समझ में आता है।
कुछ न अपना सब है सपना पर भाता है।।।
सब शास्त्र सन्त नित मार्ग सुलभ बतलाते हैं।
पर परम सत्य की राह नहीं हम जाते हैं।।
चौरासी के चक्कर में कब तक भटकोगे।
यदि नहीं चेतते सिर पत्थर पर पटकोगे।।
गीता रामायण हमें सिखाते चेतो नर।
सम्बन्ध पराये हैं जग के नहीं अपना घर।।
सिर धुन पछताने से क्या मिलने वाला है।
अपना प्रभु तो सारे जग का रखवाला है।।
अभ्यास करो प्रभु ध्यान धरो पाओ अनन्त विश्राम।।
जप राम राम आनन्दधाम लोकाभिराम श्रीराम।।

एस के त्रिपाठी
हिन्दी शिक्षक
एम एन पी एस

04/11/2024

।। लक्ष्मण रेखा।।

विधि निषेध की लक्ष्मण रेखा मर्यादा कहलाती है।
मर्यादा पालन करती छवि हर जन मन को भाती है।।
ये रेखाएं अनुशासन का सबको पाठ पढ़ाती हैं।
पौराणिक गाथाएं इनका असली मर्म बताती हैं।।
जो उल्लंघन करते विधि का उनकी आंखें फूटी हैं।
निर्धारित रेखा लांघी सीता रावण ने लूटी है।।
बहू, बेटियां, बच्चे, बूढ़े, यौवन में जो मतवाले।
आत्मनियंत्रण पूर्वक जीवें बौद्धिक भ्रम खुद ना पालें।
सामाजिक दुर्घटनाएं,देखें समझें मत देर करें।
आने वाली पीढ़ी जिससे दुष्परिणामों से न गुजरे।।
परम्पराएं जो सदियों से हमें जोड़ती आई हैं।
उनका उल्लंघन कर हमने पाई कौन भलाई है।।
मनमाना आचरण हमारा कभी न होगा सुखकारी।
मर्यादाओं का उल्लंघन होगा दिन पर दिन भारी।।
स्वच्छंदता त्याग हर कोई विधि निषेध का मान करे।
अपने पुरखों के गौरव का पग पग पर सम्मान करे।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

।।मान का पान।।पान खाकर थूक देना एक छोटी बात थी।पान छाती में सटाकर मुग्ध तब बारात थी।पान पत्ता है न केवल व्यक्ति का सम्मा...
04/11/2024

।।मान का पान।।
पान खाकर थूक देना एक छोटी बात थी।
पान छाती में सटाकर मुग्ध तब बारात थी।
पान पत्ता है न केवल व्यक्ति का सम्मान था।
देवदुर्लभ पान खाना गौरवास्पद मान था।।
पान बिन पूजा न होती पान घर की शान था।
पान पाहुन को दिया ना तो बड़ा अपमान था।।
पान घर घर था बसा पर आज गायब पान है।
ढूंढ़ने पर भी सुलभ ना पान की दूकान है।।
पान के थे फायदे पर आज नर अंजान है।
पान खाना छोड़ कर झूठी दिखाता शान है।।
पान से संबद्ध था बीड़ा उठाना काम का।
पान या पानी न लेता था कोई बदनाम का।।
फांकते कमला,विमल कहते मसाला पान का।
कैंसर तक है पनपता क्या करें अज्ञान का।।
ये पढ़ाई और लिखाई‌ है कहो किस काम की।
मूढ़ता पर गर्व करते त्याग महिमा राम की।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

24/10/2024

।। नाट्य शाला।।
नाट्य शाला है जगत जगदीश की।
जो घटित होता है इच्छा ईश की।
है हमारी भूमिका जितनी जहां
हम करें निर्वाह उतना ही वहां।
वह नहीं दिखता कहीं प्रत्यक्ष है
नाट्य शाला का वही अध्यक्ष है।
पात्रता अनुसार जो कर्तव्य हो
कीजिए उतना रहे भवितव्य जो।
हर क्रिया इस सृष्टि में जो हो रही
बीज उसका ईशमाया बो रही।
हो सुखद परिणाम वह तेरे लिए
है न सम्भव प्राप्ति बिन उसके दिये।
यदि तेरा अभिनीत उसको भा गया
तो समझ उसकी कृपा तू पा गया।
जो जहां जिस हाल में जो कर रहा
सूत्रधर संकेत उसका कर रहा।
तू इशारे को समझ कर काम कर
हो फंसावट ना तेरी ऐसे निखर।
है सफलता प्राप्त अभिनेता वही
कह उठें दर्शक किया इसने सही।
जन्म से मरणान्त इस सिद्धांत पर
भूमिकाएं कर अदा मत नेक डर।
जो उसे मंजूर है होगा वही
चाहने से कुछ तेरे होगा नहीं।
मुस्कुराता चल हृदय में धीरधर
तू कहायेगा तभी तो वीरवर।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

16/10/2024

।। ज़िन्दगी एक अबूझ पहेली।।
ज़िन्दगी की मुश्किलों से तू अगर घबरा रहा है।
छोड़ दे इसकी फिकर तू ठोकरें क्यों खा रहा है।
ठोकरों से सीख लेकर मंजिलें गर पा रहा है।
मस्त रह अपनी खुदी में जन्म बीता जा रहा है।।
हैअगर तनहाइयों का ग़म किसी से व्यर्थ कहना।
कौन खुशियों को संजोए रह सका मत दु:ख सहना।
चाह चिन्ता को बढ़ाये ,है अगम इसमें न बहना।
जो मिले उसमें खुशी का भाव रख ,यह भी न रहना।।
है तेरे बस का न सब कुछ पा सके करके जतन।
जो चढ़ा ऊंचे शिखर उसका सुनिश्चित है पतन।
हार से मत डर सजल गहराइयों में हैं रतन।
खौफ से जो भर गया वह पा सका कब रत्न धन।।
जोखिमों का सिलसिला यूं ही बना रहता यहां।
उद्यमी का भाग्य भी मालुम नहीं सोता कहां?
बैठ किस्मत के भरोसे ठोकरें मिलती जहां?
किस्मती बैठे जहां खुलता खजाना है वहां।।
है तेरे पुरुषार्थ के वश हर सफलता कौन कहता?
भाग्य में अंकित पराभव वह समर में हाथ मलता।
वध जयद्रथ का सुनिश्चित सूर्य का भी अस्त टलता।
सूर्य भी मध्यान्ह के उपरान्त क्रमशः नित्य ढ़लता।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

16/10/2024

।। ज़िन्दगी के अनुभव।।
ज़िन्दगी हर पल सिखाती आ रही है।
काल चिड़िया आयु तेरी खा रही है।।
जाने कितने लोग आये और गये।
वृक्ष में ज्यों पात आते नित नये।
शुष्क पत्ते टूट टूट बिखर गये।
कौन जाने कैसे और किधर गये।।
एक दूजे से बिछड़ना या मिलन।
स्निग्ध छाया या दुखद मन की तपन।।
प्यास मिटती ही नहीं है आस की।
पीर सबकी आम की या खास की।।
देखकर भी आंख क्यों खुलती नहीं।
मानसिक जड़ता कभी घुलती नहीं।।
जो निकट था दूर कब हो जायेगा।
दूरतर क्या पास भी आ पायेगा।।
है अनिश्चित क्या घटेगा आज कल।
योजना अपनी सफल हो या विफल।।
ज़िन्दगी तुझको सिखाती जायेगी।
मौत का पैगाम लेकर आयेगी।।
हार थक चलता यूं ही रह जायेगा।
क्या खबर विश्राम भी तू पायेगा।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

15/10/2024

।। मृग मरीचिका।।
संसार में नहीं है सौन्दर्य,यह सही है।
सब भुक्तभोगियों ने यह बात सच कही है।।
विषयाभिलाषियों की ना‌ प्यास बुझने वाली।
सुख सूर्य डूबते ही दुख रात होगी काली।।
यदि दूर से ही देखो दुनिया लुभावनी है।
छूने की की तमन्ना तब तो डरावनी है।।
दिखती है आज जैसी वैसी न कल रहेगी।
अ‌भिशप्त चाहकों की चाहत विफल रहेगी।।
दुर्भाग्यवश फंसा जो,कहता है ठीक है सब।
औरों को भी फंसाकर सन्तोष मानता अब।।
सन्तुष्ट हो सका न श्रृंगार की छुवन से।
आशीष ना मिला है सुख चैन के हवन से।।
करके जतन हजारों कर्मों को कोसते हैं।
आनन्दधाम तजकर निज मोह पोसते हैं।।
जीवन गुजार कर भी सौन्दर्य हेतु प्यासा।
मर जायेगा अभागे पूरी न होगी आशा।।
अपनी कहें क्या यारों!हम भी छले गये हैं ।
सौन्दर्य प्यास लेके लाखों चले गए हैं।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

15/10/2024

।। नफरत की खेती।।
राजनेता नफरतें क्यों बो रहे?
लोग उनके करतबों पर रो रहे।
जातिगत अस्तित्व को उकसा रहे
स्वत्व बंदरबांट कर खुद खा रहे।
लोग कुर्ते की सफेदी पर फिदा
भाइ भाई हो रहे लड़कर जुदा।
पार्टियों के नाम पर बंटते रहे
हिन्दू मुस्लिम खुद-ब-खुद कटते रहे।
एक मंडल पक्षधर बनकर खड़े
दूसरे अपना कमंडल ले अड़े।
जो सवर्णों को बकें खुब गालियां
भाषणों पर बज रही हैं तालियां।
योग्यता तो तेल लेने को गयी
नीतियां होतीं सुनिश्चित नित नयी।
जो दलित का बन मसीहा आ गया
वो मलाई आंत भर भर खा गया।
जो ग़रीबों की जलाते बस्तियां
वे कहाती लोकरक्षक हस्तियां।
दल बदल कर रोटियां जो सेंकते
वे ही पत्थर दूसरों पर फेंकते।
नफरती बाजार इतना गर्म है
राजनेता बन गया बेशर्म है।
चैनलों की हो रही भरमार है
एक दूजे पर कराते वार हैं।
लोकहित का बैण्ड बाजा बज गया
न्याय, जनहित का जनाजा सज गया।
धुन्ध नफरत की घनी चहुं ओर है
लोकरक्षक ही असल के चोर हैं।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

।। सम्बन्धों की थाती।।सम्बन्ध संजोकर के रखना सम्बन्ध बड़ी सौगात है।सम्बन्ध बड़ी थाती अपनी सम्बन्धों से औकात है।।पैदा तो ...
14/10/2024

।। सम्बन्धों की थाती।।
सम्बन्ध संजोकर के रखना सम्बन्ध बड़ी सौगात है।
सम्बन्ध बड़ी थाती अपनी सम्बन्धों से औकात है।।
पैदा तो एकाकी होते मां से सम्बन्ध प्रथम होता।
अपनी आवश्यकता बतलाने को स्वाभाविक ही शिशु रोता।
शैशव का काल बिता कर के ज्यों ज्यों हम बढ़ते जाते हैं।
अभिभावक पिता भाई भगिनी के नाते जुड़ते जाते हैं।
घर की चहारदीवारी से बाहर जब यौवन खिलता है।
संगी साथी सब समवयस्क लोगों से पलछिन मिलता है।।
उद्दाम जवानी का अवसर दाम्पत्य सुखद पल दिखलाता।
सारे सम्बन्ध सिमट जाते संगिनी हाथ जब मिल जाता।।
व्यवहार जगत के अनुबन्धों से बंधना बहुत जरूरी है।
निर्वाह करें दायित्व बोध पूर्वक ना ही मजबूरी है।।
आखिर कितने दिन का जीवन सम्बन्ध विसर्जन ठीक नहीं।
मानवता रक्खें बरकरार पुरखों की मेटें लीक नहीं।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

।। दशहरा।।राम ने दुर्वृत्तियों के रुप में सीस दश काटे दशानन तब मरा।आज उस संघर्ष को ही याद कर हम मनाते आ रहे हैं दशहरा।चल...
12/10/2024

।। दशहरा।।
राम ने दुर्वृत्तियों के रुप में सीस दश काटे दशानन तब मरा।
आज उस संघर्ष को ही याद कर हम मनाते आ रहे हैं दशहरा।
चल रहा था अनवरत संघर्ष जब जय पराजयबोध भी संदिग्ध था।
राम दल नैराश्य में डूबा दिखा देवरिषि प्रत्यक्ष दर्शन स्निग्ध था।
शक्ति पूजा के बिना अरि का दमन हो नहीं सकता करो आराधना।
राम ने श्रद्धा समन्वित शक्ति की अर्चना कर पूर्ण की निज साधना।
प्राप्त कर वरदान दुर्गा का सदय राम ने संघर्ष कर जीता समर।
पीढ़ियां तब से मनातीं आ रही पर्व का निहितार्थ अपने चित्त धर।
न्याय की अन्याय पर यह जीत ही राम रावण युद्ध का वह बोध है।
सत्य का लेकर सहारा जीतना वास्तविक साफल्य का ही शोध है।।

अन्याय पर न्याय एवं असत्य पर सत्य की जीत का पर्व दशहरा सबके लिए मंगल मय हो यही शुभकामना है।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

।। लड़कियों की दुविधा।।खिले हर कली बाग में मुस्करायेपवन के झकोरों से खुशियां मनायेसुरभि फूल की बन्दिशें छोड़ धायेदिवाना ...
06/10/2024

।। लड़कियों की दुविधा।।
खिले हर कली बाग में मुस्कराये
पवन के झकोरों से खुशियां मनाये
सुरभि फूल की बन्दिशें छोड़ धाये
दिवाना भ्रमर क्यों नहीं पास आये।।
बगीचे का माली जतन से सम्हाले
समय पर स्वयं खाद पानी भी डाले
सलीके से पौधे को देखे औ भाले
जहां हो जरुरत वो कैंची चला ले।।
मगर जब खिला फूल सुन्दर सलोना
अनोखी महक से भरा कोना कोना
भ्रमर देख माली को क्यों आये रोना
वो क्यों चाहता है सुमन को पिरोना?
नियति चाहती क्या उसे कौन जाने
लगे हैं नजर के अनेकों निशाने
मगर बागवां ने जो मंसूबे ठाने
भंवर या खिला फूल उसको न माने।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

।। गांधी जयंती।।मोहन दास करमचंद गांधी सेवा का पर्याय थे।अलख जगाई जन सेवा की लड़े जहां अन्याय थे।।ऊंच नीच और छुआ-छूत को क...
02/10/2024

।। गांधी जयंती।।
मोहन दास करमचंद गांधी सेवा का पर्याय थे।
अलख जगाई जन सेवा की लड़े जहां अन्याय थे।।
ऊंच नीच और छुआ-छूत को कड़ी चोट पहुंचाई थी।
भारत नहीं विश्व भर में गांधी ने लड़ी लड़ाई थी।।
सत्य अहिंसा की ताकत को गांधी ने पहचाना था।
भारत का हर बच्चा बच्चा-बच्चा गांधी का दीवाना था।
रंग भेद का अफ्रीका में गांधी ने प्रतिरोध किया।
गोरों के हर दमन चक्र का पग पग कड़ा विरोध किया।।
सत्याग्रह की ताकत से अंग्रेजों को मजबूर किया।
सदियों से जो रही गुलामी पीड़ा उसकी दूर किया।।
नर में नारायण को देखा सबको गले लगाया था।
सबने कहा महात्मा है यह भाव सभी को भाया था।।
वैमनस्य की काली छाया सकल विश्व में छाई है।
गांधी जी के सर्वोदय की बात सभी को भाई है।।
बम बारुद इकट्ठे कर के मानव ने क्या पाया है।
मानव मूल्यों को ठुकराकर निज सर्वस्व गंवाया है।।
गांधी आज अधिक प्रासंगिक हुए सभी ने माना है।
सच्ची श्रद्धांजलि गांधी के मूल्यों को अपनाना है।।

गांधी जयंती के शुभ अवसर पर सभी देशवासियों को हार्दिक बधाई।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

।। राज्य माता गौ।।घोषणा महाराष्ट्र ने की गाय होगी राज्य माता।किन्तु दुष्ट विपक्षियों को गाय का हित क्यों न भाता।एक तबका ...
01/10/2024

।। राज्य माता गौ।।
घोषणा महाराष्ट्र ने की गाय होगी राज्य माता।
किन्तु दुष्ट विपक्षियों को गाय का हित क्यों न भाता।
एक तबका है विरोधी गाय का जो मांस खाता।
हिन्दुओं को हर्ष है अब ना कटेगी गाय माता।।
है जरुरी केन्द्र भी आदेश ऐसा पास कर दे।
हिन्दुओं की भावनाओं को न कोई नाश कर दे।
ये सनातन मान्यता का राष्ट्र में अहसास भर दे।
जो करेगा गोकशी तो दण्ड शासन खास कर दे।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

30/09/2024

।।संबन्ध और संस्कार।।
क्या कहिए आज जमाने को संबन्ध हुए हैं तार तार।
नवयुवक युवतियों को देखो स्वच्छंद हुए बिन संस्कार।
अपने मतलब को छोड़ किसी नजदीकी से न सरोकार।
मां बाप हुए जब शक्ति हीन तो बच्चे समझें उन्हें भार।
मामा मौसा फूफा चाचा बहनोइ बहन को ना जाने।
अपने बच्चे अपनी बीवी अपनी गाड़ी घर पहचाने।।
सामाजिक एक समन्वय था जब लोगों से हममिलतेथे।
टोला पड़ोसियों से मिलकर एक दूजे के दिल खिलतेथे।
सम्बोधन थे अपनेपन के चाचा काका भैय्या कहते।
सुख दुख में हम सहभागी थे और ऊंच नीच को भी सहते।
वो थे संस्कार पूर्वजों के अनपढ़ गंवार कुछ भी कह लो।
पर सोच यही थी हर एक की आपस में एक साथ रह लो।।
जब साक्षरता की अलख जगी टेक्नोलॉजी का उठा ज्वार।
राक्षसी भाव उद्दीप्त हुआ मच गयी आपसी काट मार।।
यह मानवता की जीत नहीं सर्वथा पराजय का प्रमाण।
सम्बन्ध और संस्कार रहें तब हो समाज का परित्राण।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

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