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Kavita बचपन की स्मृतियां

07/01/2025

।। ठगी से सावधान।।
सावधान!हर बस्ती में दो चार भेड़िए घूम रहे हैं।
खिली कली के दीवाने भौंरे आ आकर चूम रहे हैं।
सहज सुलभ सौन्दर्य देह का आकर्षण पैदा करता है।
लोभी वंचक लालच देकर इस निधि का सौदा करता है।
दुनिया का बाजार सजा है क्रय-विक्रय का चक्र चल रहा।
बाह्य प्रदर्शन को लालायित चेहरे पर नर क्रीम मल रहा।
जिसकी पैकिंग है मन मोहक माल भले हो दो नम्बर का।
वही वस्तु बिक रही फटा फट यह प्रभाव है आडम्बर का।।
मूर्ख बाहरी देख प्रदर्शन लालायित हो ठगे जा रहे।
एक दूसरे को लख लख कर उसी दिशा में भगे जा रहे।
रुप सजाने की दूकानें ब्यूटीपार्लर कहलाती है।
पैसे लेकर वे सुन्दरियां चेहरे को सुख सहलाती हैं।।
औरत मर्द सभी की चाहत ठगने को प्रेरित करती है।
यही वंचना मन में रखकर यह दुनिया प्यासी मरती है।।
यह पागलपन लाइलाज है भरी जवानी में पलता है।
ज्यों नजदीक बुढ़ापा आता मन ही मन ज्यादा खलता है।।
कहें कहां तक अकथ कहानी रहते समय समझ ना आनी।
चढ़ा मुलम्मा जहां उतरता दिखता अलग दूध और पानी।।
इस बेवकूफी के शिकार हो बर्बादी का जश्न मनाते।
पाॅकेट खाली हो जाने पर वही लोग ज्यादा दुख पाते।।
इस बाजार वाद के युग में देखा देखी करो न भाई।
स्वयं वास्तविकता को आंको जीवन में है तभी भलाई।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

28/12/2024

।।करो या मरो।।
हिन्दू मानस अब भी सोचे क्यों सिमट रहा है तू दिन दिन।
खतरे इससे आगे भी हैं वे मारेंगे तुमको गिन गिन।
योजना समझकर के उनकी उसका उपाय करना होगा।
अन्यथा पीढ़ियां भोगेंगी काश्मीर भूमि पर जो भोगा।
वे सघन बस्तियां बसा बसा अपना एकत्व बनाते हैं।
फिर हर हिन्दू आतंकित हो अपना सर्वस्व लुटाते हैं।
जीवन जीना मुश्किल करके हिन्दू को मार भगाते हैं।
औने पौने ले जायदाद वे नरपिशाच बस जाते हैं।।
नेता भी वोटों के खातिर उन पर निज प्यार लुटाते हैं।
सत्ता लोलुप सत्ता पाकर हिन्दू को आंख दिखाते हैं।।
प्रतिरोध करो तो शक्ति प्रदर्शन कर गोली चलवाते हैं।
फिर संविधान कानून बता उल्टे हमको समझाते हैं।।
यह खेल चल रहा दशकों से हिन्दू बनता बेचारा है।
अब भी न हुए सब एक अगर हिन्दू खुद का हत्यारा है।
उनका चरित्र अब तक देखा अपने पड़ोस के देशों में।
वे अजगर ज्यों ग्रस लेते हैं भाईचारे के वेशों में।।
वे भीड़ जुटा हमला करते सर्वस्व तुम्हारा हरते हैं।
सत्ता शासक निरुपाय बने बस हां हां ना ना करते हैं।।
चाहो अपना अस्तित्व अगर हर भेद-भाव से उठ जाओ।
एकता सूत्र में बंध कर ही इनकी लंका को दहकाओ।।
अन्यथा तुम्हें भाई कहकर ये चारा ज्यों खा जायेंगे।
हिन्दू हिन्दू कहने वाले कर मल मलकर पछतायेंगे।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

23/12/2024

।। लोकतंत्र या शोकतन्त्र।।
जनता नहीं जनार्दन अब कहलायेगी।
जब लावचवश शासक के गुण गायेगी।।
लोकतंत्र के रक्षक वोट कमायेंगे।
मुफ्त रेवड़ियां जनता को बंटवायेंगे।
जनता नेता को चुनाव जितवायेगी।
फिर सरकारी कर्ज माफ करवायेगी।
व्यापारी जनता की जेबें काटेंगे।
सत्ता भोगी अफसर को ही डांटेंगे।।
मुफ्त खोर भ्रष्टाचारी बढ़ जायेंगे।
चोर उचक्के ठग कोठी बनवायेंगे।।
रिश्वत लेकर होंगे गन्दे काम सभी।
शुचिता के भाषण होवेंगे कभी-कभी।।
बन्दर बांट योजनाओं की कर लेंगे।
नेता अफसर खुद अपने घर भर लेंगे।।
लोकतंत्र के खैरख्वाह पछतायेंगे।
झूठे आरोपों में डण्डे खायेंगे।।
उनका क्या होगा जो कल बलिदान हुए।
अमर शहीदों ने जो जो अहसान किए।।
जहां तहां उनके स्मारक बनवायेंगे।
कभी-कभी जाकर माला पहनायेंगे।।
जाति,धर्म की घुट्टी खूब पिलायेंगे।
जगह-जगह से आन्दोलन करवायेंगे।।
संविधान न्यायाधीशों की अलग कथा।
इसी लिए तो लोकतंत्र की बढ़ी व्यथा।।
भीड़ तन्त्र का आलम जोर दिखाता है।लूटक,मारक,दाहक बन मुस्काता है।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

21/12/2024

।।पढ़े लिखे मूर्ख।।
पैकिंग देख हुए दीवाने गुणवत्ता का ध्यान नहीं है।
असली नक़ली ना पहचाने सच्चाई का ज्ञान नहीं है।
कम्पनियां प्रोडक्ट बेचकर तुमको पागल बना रही हैं।
जनता है कि आंख मूंद कर सेहत अपनी गंवा रही है।।
चूल्हे चौके से मुंह मोड़ा जीवन स्वस्थ रहेगा कैसे?
मेहनत से जो करी कमाई खर्च कर रहे पानी जैसे।।
मात्र जीभ का स्वाद खोजते बीसों रोग हो रहे पैदा।
पल छिन के सुख हित न्यौछावर होना तो घाटे का सौदा।।
चटक मटक विज्ञापन देखे और वही पाने को आतुर।
बर्बादी की गर्त गिर रहे झूठी शान दिखाने खातिर।।
अपना खुद का खो विवेक बचकानी जिद पर ऐसे जूझे।
पेट गटर में कुछ भी झोंकों हित अनहित की बात न सूझे।।
नहीं जरुरी जो रुचिकर हो उससे तुम्हें मिलेगा फायदा।
खाना-पीना सुखद सात्विक,यही स्वस्थ रहने का कायदा।।
अधुनातन की जीवन-शैली सौ में नब्बे नहीं निरोगी।
दवा खा रहे किसी रोग की ऐसे हैं हम सुविधा भोगी।।
शोचनीय बच्चों का जीवन चिप्स कुरकुरे हर-दिन खाते।
पीज़ा बर्गर ब्रेड जेम खा बचपन में तुन्दिल हो जाते।।
हर मनुष्य यह सोच रहा है हम तो पैसे कमा रहे हैं।
किन्तु छल-कपट का शिकार बन अपना सर्वस गंवा रहे हैं।।
विज्ञापन के द्वारा सबको झूठ परोसा जाता है।
अल्पकाल में निधन प्राप्त कर विधि को कोसा जाता है।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

20/12/2024

।। राजनीति के पैंतरे बाज।।
बच्चों जैसी हरकत करके राजनीति चमकाते हैं।
संस्थाओं के मुखियाओं को जब तब आंख दिखाते हैं।
अपनी गरिमा भूल दूसरों पर आरोप लगाते हैं।
जोर जबरदस्ती करके भी निज प्रभाव दिखलाते हैं।।
जन नेता के आदर्शों को हरदम धता बताते हैं।
जननायक बनने का हरदम भोंडा स्वांग रचाते हैं।।
औरों पर कीचड़ उछालकर ही नेता बन पायें हैं।
गुण्डोंऔर ठगों के बल पर निज पहचान बनाये हैं।।
इनकी बड़ी योग्यता ही है झूठे को सच बतलाना।
जनता के सेवक कहलाकर उसका माल उड़ा जाना।।
मक्कारी का आलम है चेहरा मुस्काता मिलता है।
लम्बा हाथ मारने पर ही मनवा इनका खिलता है।।
सच को झूठ झूठ को सच बतलाना इनका धन्धा है।
इनकी नीयत को ना समझे वही आदमी अन्धा है।।
लोक सभा या राज्यसभा में इनके कृत्य अजूबे हैं।
देख पैंतरबाजी इनकी नित हम चिन्ता में डूबे हैं।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

।। गीता जयंती।।जब कुरुक्षेत्र के प्रांगण में अर्जुन था मन से हारा।तब शिष्य भाव से श्री कृष्ण को अपना गुरु स्वीकारा।यह जी...
11/12/2024

।। गीता जयंती।।
जब कुरुक्षेत्र के प्रांगण में अर्जुन था मन से हारा।
तब शिष्य भाव से श्री कृष्ण को अपना गुरु स्वीकारा।
यह जीवन है वह युद्ध भूमि प्रतिद्वंद्वी विविध लुटेरे।
ममता वश मन कर्तव्य विमुख उर में दुख प्रकट घनेरे।
है जीव सखा परमात्मा का द्रष्टा बन हिय में रहता है।
क्या करना और नहीं करना उपदेश वाक्य नित कहता है।
कर्तृत्व भाव का अहंकार जब क्लैब्य भाव दर्शाता है।
तब अर्जुन जैसा भी समर्थ आंखों से अश्रु बहाता है।
सारथि जीवन में श्रीहरि हों उनके हाथों दो बागडोर।
तब मोहजनित अवसाद मिटे लड़ने की हो प्रेरणा घोर।
कर्तव्यशील बन लड़ो युद्ध गीता का यह उपदेश सत्य।
मत कायरबन कर्तव्य छोड़ स्वीकारो खुद को नीचभृत्य।
यदि हार जीत का द्वंद बने कर्तव्य भाव से युद्ध करो।
निज स्वाभिमान जागृत करके अपने मानस को शुद्ध करो।
अपना अधिकार कर्म में है फल दाता कृष्ण मुरारी हैं।
उत्साह पूर्ण हो लड़ो सदा सोचो रक्षक असुरारी हैं।।
मत हार जीत से बंधो कभी निरपेक्ष रहो सुख या दुख में।
कठपुतली बन जा प्रभु कर की वह जैसा चाहे वही करो।
जीवन भी देता है वह ही उसकी इच्छा स्वीकार मरो।

गीता जयंती समारोह की समस्त देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

05/12/2024

।।मृत्योर्मा अमृतं गमय।।
जब किसी की मृत्यु की सुन सूचना
लोग कहते क्या हुआ कैसे हुआ।
जब कि उससे पूर्व मिलते थे कभी
दाएं बाएं कर निकल, देते दुआ।।
वस्तुतस्तु यथार्थ है सबको पता
मृत्यु का आना नहीं कोई खता।
जन्म जिसने है लिया मरना उसे
आज कल या सौ बरस के बाद हो।
किन्तु आंखें बंद कर सब जोहते
हम रहें खुश दूसरा बरबाद हो।।
न्याय कारी की व्यस्था चुस्त है
पूर्णतः हो स्वस्थ या कि दुरुस्त है।
मौत तो आती बहाना ढ़ूंढ़कर
तुम भले बैठे रहो मुंह मोड़ कर।।
स्वार्थ के सम्बन्ध हमको जोड़ते
अन्यथा हर एक से मुंह मोड़ते।
जन्म से मरणान्त कर्मों की कथा
कर्म फल में सुख मिले अथवा व्यथा।।
मैं मरूंगा एक दिन सब जानते
पर यहां तम्बू हैं ऐसा तानते।।
घर मकां परिवार धन का स्वत्व है
जब कि खुद निज देह का न महत्व है।।
काल का अन्तिम बुलावा आ गया
हर तरफ दु:खान्त मातम छा गया।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

30/11/2024

।। अनुसन्धान।।
है जिनसे जुड़ा तू जरुरत समझकर
वो बिछड़ेंगे तुझसे भले तू न चाहे।
ये जीवन तेरा एक लम्बा सफ़र है
सभी साथियों की जुदा होंगी राहें।
समझ ले मिलन भी है कुछ ही दिनों का
परस्पर बिछड़ना सुनिश्चित है सबका।
नहीं कल्पना में है वो दृश्य तेरी
तेरा हाथ खाली न तब का न अब का।।
बहुत श्रम किया खूब जन धन कमाया
निजी चाहतों का महल भी बनाया।
तेरी चाह जितनी थी उतना न पाया
जो पाया जतन से हुआ सब पराया।।
कहां क्या रही चूक सोचो विचारो
मनुजता खिले ऐसा जीवन संवारो।
अहंता मिटे मूढ़ता को निवारो
स्वयं भी तरो दूसरों को भी तारो।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

30/11/2024
।। हिन्दू खुद का  विस्तार करें।।मज़हब की कट्टरता का हर परिणाम भयावह होता है।पर सब कुछ देख समझअब भी जाने हिन्दू क्यों सोत...
27/11/2024

।। हिन्दू खुद का विस्तार करें।।
मज़हब की कट्टरता का हर परिणाम भयावह होता है।
पर सब कुछ देख समझअब भी जाने हिन्दू क्यों सोता है।
तुम सहिष्णुता दिखलाकर भी उनका दिल जीत नहीं पाते।
वे तुमसे नफरत ही करते और कदम कदम हैं तड़पाते।
तुम अपना शौर्य वीर्य खोकर सन्त्रास सहन करते आये।
वो तुमको भगा भगा कर के इस हालत में हैं ले आये।
अब और कहां तक सिमट सिकुड़ अपनी दुर्गति करवाओगे।
निज बहन बेटियों की अस्मत इन दुष्टों से लुटवाओगे।।
ये बड़ी तुम्हारी कमजोरी संगठित नहीं हो सकते हो।
हम हैं हिन्दू,जय परशुराम, बस ये नारे रट सकते हो।।
ये छल प्रपंच में माहिर हैं जाहिल मक्कार हैं मायावी।
गंगा जमुनी तहजीब बता होते आये तुम पर हावी।।
विश्वास घना तुममें बसता ये मास्टर धोखेबाजी के।
तुम निज विवेक के आदी हो वे अनुचर मुल्ला, क़ाज़ी के।।
तुम नहीं कौम के संवाहक, निज निजता के हो संरक्षक।
वे कौमी मिल्लत की मिसाल तुम सबके हैं जानी भक्षक।।
अब तक पहचान नहीं पाये इन आस्तीन के सांपों को।
आतंकवाद की सीख स्वयं देनेवाले उन बापों को।।
पत्थरबाजी चाकूबाजी करके दहशत को फैलाना।
जहरीली तकरीरें करके उकसाते हैं सब मौलाना।।
कितना करना बर्दाश्त और इन अत्याचारी लोगों को।
रोहिंग्या, बांग्लादेशागत लूटक,मारक उन भोगों को।।
बांग्लादेशी, पाकिस्तानी, अफगानी हिन्दू मरते हैं।
फिर भी भारत के हिन्दूजन इन बातों से ना डरते हैं।।
तुम और सिकुड़ते जाओगे अपना अस्तित्व गंवाओगे।
आपसी कलह में उलझ उलझ अपनों से मारे जाओगे।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

17/11/2024

।।समझना है।।
देह के सौन्दर्य पर मत रीझ इतना,यह क्षणिक है।
विश्व के व्यापार में तू कुछ नहीं बस एक वणिक है।।
सोच ले तेरी हदें निश्चित कहां तक, क्यों उछलता?
प्राप्य ही तुझको मिलेगा ना अधिक,तू क्यों मचलता।।
दूर से दिखता तुझे जैसा सुहाना ,है न वैसा।
पा लिया गर कर परिश्रम फिर कहेगा ये है कैसा?
जांच ले पहले परख ले, शक्ति श्रम निज व्यर्थ मत कर।
जो तुझे रुचिकर दिखे पर वस्तुत:वह हो न हितकर।।
मन कहे वैसा न कर ,यह एक सा रहता न हरदम।
मांग इसकी अटपटी रहती सदा, ज्यादा कभी कम।।
अनुभवी बूढ़े बड़ों ने जो दिया उपदेश उसको मान ले।
शक्ति का विनियोग मैं कैसे करुंगा और कब यह जान ले।।
कर्म का अधिकार तेरा है सही,तू मत पिछड़ कर्तव्य से।
फल न मनचाहा मिलेगा ध्यान रख,वह मिले भवितव्य से।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

09/11/2024

।।आस की प्यास।।
ऐ मानव तू सोच अभी तक कितने किये प्रयास।
फिर भी तेरे मानस की अद्यावधि मिटी न प्यास।।
हर पड़ाव पर जहां रुका तू शान्ति मिली न मन की।
जितने कारक मिले मिटाते रहे प्यास इस तन की।।
तन की प्यास क्षणिक है प्यारे मनवा नित का प्यासा।
पग पग पल पल भटका दर दर हुई न पूरी आसा।।
जिन सुविधाओं को बटोर कर तूने था सुख माना।
देखा-देखी एक दूजे की मूरख रहा दिवाना।।
किन्तु अमूल्य बिता कर जीवन स्थिर हो किया विचार।
किया इकट्ठा जो कुछ श्रम से सब कुछ लगा असार।। नहीं वास्तविकता का मूल्यांकन मानव तू कर पाया।
जिसको जिसको गले लगाया वह ही हुआ पराया।।
सांसों की पूंजी खोकर भी और रहा पाना क्या शेष।
शरणागत होजा प्रभु का तू वही परमधन नित्य अशेष।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

09/11/2024

।। मुसाफिर।।
ऐ मुसाफिर तू न रुक चलता चला चल।
तेरी मंजिल कब मिलेगी आज या कल।।
जब तेरी मंजिल अभी निश्चित नहीं है।
दृष्टि तेरी लक्ष्य से ओझल कहीं है।।
दूसरों को देखकर मत लक्ष्य तय कर।
ज़िन्दगी सीमित समय मत व्यर्थ क्षय कर।।
हर कदम अहसास होना है जरुरी।
हो नहीं सकतीं सभी आशायें पूरी।।
धन,मकां, आजीविका,यश, कीर्ति फिर क्या?
संगिनी मन मोहिनी,सुत और क्या क्या?
मिल गया गर मन-मुताबिक हर मनोरथ
सोच कितना ये चलेगा देह का‌ रथ।।
अब बता क्या योजना तेरी दिली है।
मृत्यु की क्या चोट इन सबसे झिली है।।
वो जवानी की न ताकत अब रही है।
आ गया तन में बुढ़ापा यह सही है।।
ज़िन्दगी भर जो कमाया व्यर्थ है।
सब किये पुरुषार्थ का क्या अर्थ है?
तू मुसाफिर जो कमाया माल है।
छोड़कर जाता हुआ कंगाल है।।
ये दशा होती यहां हर एक की।
कर्म से बदनाम या फिर नेक की।।
है जरुरी लक्ष्य की संकल्पना कर।
अन्यथा यूं ही जन्म ले और मर।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

07/11/2024

।। राम ।।

हैं राम हमारे प्राण आत्मा जीवन धन।
हैं राम अखिल ब्रह्माण्ड विश्व काआराधन।।
हैं राम सकल वैभव विलास का आवर्तन।
हैं राम चिरंतन सत्य पूर्ण जग का चिंतन।।
शाश्र्वत सुख का अभिलाषी है यदि तेरा मन।
हैं निजानंद की चाह, मिटाना है भटकन।।
तो दृढ़ निश्चय कर चरणों में हो जा अर्पण।
विश्वास जमा मिल जायेगा वह जीवन धन।।
यह जन्म मरण का चक्र बड़ा दुखदायी है।
शरणागत हो भज राम सदासुखदायी है।।
मोहाभिभूत हो क्यों न समझ में आता है।
कुछ न अपना सब है सपना पर भाता है।।।
सब शास्त्र सन्त नित मार्ग सुलभ बतलाते हैं।
पर परम सत्य की राह नहीं हम जाते हैं।।
चौरासी के चक्कर में कब तक भटकोगे।
यदि नहीं चेतते सिर पत्थर पर पटकोगे।।
गीता रामायण हमें सिखाते चेतो नर।
सम्बन्ध पराये हैं जग के नहीं अपना घर।।
सिर धुन पछताने से क्या मिलने वाला है।
अपना प्रभु तो सारे जग का रखवाला है।।
अभ्यास करो प्रभु ध्यान धरो पाओ अनन्त विश्राम।।
जप राम राम आनन्दधाम लोकाभिराम श्रीराम।।

एस के त्रिपाठी
हिन्दी शिक्षक
एम एन पी एस

04/11/2024

।। लक्ष्मण रेखा।।

विधि निषेध की लक्ष्मण रेखा मर्यादा कहलाती है।
मर्यादा पालन करती छवि हर जन मन को भाती है।।
ये रेखाएं अनुशासन का सबको पाठ पढ़ाती हैं।
पौराणिक गाथाएं इनका असली मर्म बताती हैं।।
जो उल्लंघन करते विधि का उनकी आंखें फूटी हैं।
निर्धारित रेखा लांघी सीता रावण ने लूटी है।।
बहू, बेटियां, बच्चे, बूढ़े, यौवन में जो मतवाले।
आत्मनियंत्रण पूर्वक जीवें बौद्धिक भ्रम खुद ना पालें।
सामाजिक दुर्घटनाएं,देखें समझें मत देर करें।
आने वाली पीढ़ी जिससे दुष्परिणामों से न गुजरे।।
परम्पराएं जो सदियों से हमें जोड़ती आई हैं।
उनका उल्लंघन कर हमने पाई कौन भलाई है।।
मनमाना आचरण हमारा कभी न होगा सुखकारी।
मर्यादाओं का उल्लंघन होगा दिन पर दिन भारी।।
स्वच्छंदता त्याग हर कोई विधि निषेध का मान करे।
अपने पुरखों के गौरव का पग पग पर सम्मान करे।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

।।मान का पान।।पान खाकर थूक देना एक छोटी बात थी।पान छाती में सटाकर मुग्ध तब बारात थी।पान पत्ता है न केवल व्यक्ति का सम्मा...
04/11/2024

।।मान का पान।।
पान खाकर थूक देना एक छोटी बात थी।
पान छाती में सटाकर मुग्ध तब बारात थी।
पान पत्ता है न केवल व्यक्ति का सम्मान था।
देवदुर्लभ पान खाना गौरवास्पद मान था।।
पान बिन पूजा न होती पान घर की शान था।
पान पाहुन को दिया ना तो बड़ा अपमान था।।
पान घर घर था बसा पर आज गायब पान है।
ढूंढ़ने पर भी सुलभ ना पान की दूकान है।।
पान के थे फायदे पर आज नर अंजान है।
पान खाना छोड़ कर झूठी दिखाता शान है।।
पान से संबद्ध था बीड़ा उठाना काम का।
पान या पानी न लेता था कोई बदनाम का।।
फांकते कमला,विमल कहते मसाला पान का।
कैंसर तक है पनपता क्या करें अज्ञान का।।
ये पढ़ाई और लिखाई‌ है कहो किस काम की।
मूढ़ता पर गर्व करते त्याग महिमा राम की।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

24/10/2024

।। नाट्य शाला।।
नाट्य शाला है जगत जगदीश की।
जो घटित होता है इच्छा ईश की।
है हमारी भूमिका जितनी जहां
हम करें निर्वाह उतना ही वहां।
वह नहीं दिखता कहीं प्रत्यक्ष है
नाट्य शाला का वही अध्यक्ष है।
पात्रता अनुसार जो कर्तव्य हो
कीजिए उतना रहे भवितव्य जो।
हर क्रिया इस सृष्टि में जो हो रही
बीज उसका ईशमाया बो रही।
हो सुखद परिणाम वह तेरे लिए
है न सम्भव प्राप्ति बिन उसके दिये।
यदि तेरा अभिनीत उसको भा गया
तो समझ उसकी कृपा तू पा गया।
जो जहां जिस हाल में जो कर रहा
सूत्रधर संकेत उसका कर रहा।
तू इशारे को समझ कर काम कर
हो फंसावट ना तेरी ऐसे निखर।
है सफलता प्राप्त अभिनेता वही
कह उठें दर्शक किया इसने सही।
जन्म से मरणान्त इस सिद्धांत पर
भूमिकाएं कर अदा मत नेक डर।
जो उसे मंजूर है होगा वही
चाहने से कुछ तेरे होगा नहीं।
मुस्कुराता चल हृदय में धीरधर
तू कहायेगा तभी तो वीरवर।।

पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर

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