03/12/2023
।। गीता जयंती।।
हे मानव!तेरा जीवन भी एक समर है।
मृत्यु लोक में जन्मा कोई नहीं अमर है।।
न्याय और अन्याय आश्रय जिसका लेगा।
जैसे होंगे कर्म ईश वैसा फल देगा।।
अहंकार वश यदि तूने अपनी ही ठानी।
दुर्योधन की भांति किया तूने मनमानी।।
कर्ण, शकुनि दुर्वृत्त समर्थित उसकी सत्ता।
भीष्म, द्रोण,कृप रक्षित की भी मिटी महत्ता।।
कुन्ती बुद्धि विचार नियन्त्रित पांचों पाण्डव।
हरि के शरणापन्न मचाया रण में ताण्डव।।
धर्म परायण जीवन की महिमा पहचानो।
परमहितैषी नाथ कृष्ण को अपना मानो।।
जहां धर्म है वहां विजय, मत सत्य सनातन।
यह शाश्वत सिद्धांत न नूतन नहीं पुरातन।।
विजयी पाण्डव हुए कृष्ण के हो शरणागत।
ईश्वर अर्पित कर्म मुक्तिदायक श्रुति सम्मत।।
मत कर स्वेच्छाचार नियन्त्रित जीवन जी ले।
है श्रुतियों का सार ज्ञान गीतोदक पी ले।।
रथी जीव रथ देह इन्द्रियां इसके घोड़े।
उलटी इनकी चाल दुखद परिणाम न थोड़े।।
इस रथ का सारथी बनाओ प्रभु समर्थ को।
बनो विजेता अर्जुन जैसे, तज अनर्थ को।।
पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर