17/11/2024
।।समझना है।।
देह के सौन्दर्य पर मत रीझ इतना,यह क्षणिक है।
विश्व के व्यापार में तू कुछ नहीं बस एक वणिक है।।
सोच ले तेरी हदें निश्चित कहां तक, क्यों उछलता?
प्राप्य ही तुझको मिलेगा ना अधिक,तू क्यों मचलता।।
दूर से दिखता तुझे जैसा सुहाना ,है न वैसा।
पा लिया गर कर परिश्रम फिर कहेगा ये है कैसा?
जांच ले पहले परख ले, शक्ति श्रम निज व्यर्थ मत कर।
जो तुझे रुचिकर दिखे पर वस्तुत:वह हो न हितकर।।
मन कहे वैसा न कर ,यह एक सा रहता न हरदम।
मांग इसकी अटपटी रहती सदा, ज्यादा कभी कम।।
अनुभवी बूढ़े बड़ों ने जो दिया उपदेश उसको मान ले।
शक्ति का विनियोग मैं कैसे करुंगा और कब यह जान ले।।
कर्म का अधिकार तेरा है सही,तू मत पिछड़ कर्तव्य से।
फल न मनचाहा मिलेगा ध्यान रख,वह मिले भवितव्य से।।
पं शैलेश कुमार शास्त्री
जमशेदपुर