आर्यवर्त

आर्यवर्त हमारा उद्देश्य प्राचीन भारत की सांस्कृतिक विरासत को नई पीढ़ी के सामने लाना, जिस पर वो गर्व कर सके ।
(13)

पांच शताब्दियों की प्रतीक्षा पर पूर्ण विराम ... त्रिभुवन स्वामी, हमारे भगवान प्रभु श्री राम पधार रहे हैं। 🙏🚩
22/01/2024

पांच शताब्दियों की प्रतीक्षा पर पूर्ण विराम ...

त्रिभुवन स्वामी, हमारे भगवान प्रभु श्री राम पधार रहे हैं।

🙏🚩

युद्ध वाली देवी : माॅं तनोटराय सन् १९६५ का भारत-पाकिस्तान युद्ध। पाकिस्तान की सेना ने तनोट के आसपास का क्षेत्र तीनों ओर ...
18/10/2023

युद्ध वाली देवी : माॅं तनोटराय

सन् १९६५ का भारत-पाकिस्तान युद्ध। पाकिस्तान की सेना ने तनोट के आसपास का क्षेत्र तीनों ओर से घेर लिया था। तनोट, यह स्थान रेडक्लिप रेखा से महज बीस किलोमीटर दूर, जैसलमेर जिला मुख्यालय से १३० किलोमीटर उत्तर में स्थित। यहीं स्थित है भाटी वंश की इष्टदेवी आवड़ माता जी का मंदिर। पाकिस्तानी सेना जानती थी कि यदि तनोट पर अधिकार कर लिया जाए, तो वहां से तीनों दिशाओं में प्रखरता से आगे बढ़ा जा सकता है। इसलिए पाक सेना ने तीनों दिशाओं से तनोट पर भयंकर बमबारी की, कुल तीन हजार से अधिक बम इस क्षेत्र में गिराए गए और मंदिर परिसर में 450 बम। मातेश्वरी का यह अद्भुत चमत्कार था कि एक भी बम फटा नहीं। फिर लेफ्टिनेंट कर्नल जयसिंह के नेतृत्व में भारतीय सेना ने पाकिस्तान के पांव उखाड़ दिए थे।

सभी 450 बम आज भी तनोट राय मंदिर स्थित संग्रहालय में ज्यों के त्यों पड़े हैं।

दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट के अनुसार उस युद्ध में पाक सेना का बिग्रेडियर रहा शाहनवाज खान भी तनोटराय माता जी के चमत्कार के समक्ष नतमस्तक हुआ था। उसने भारत सरकार से माताजी के दर्शन करने की अनुमति मांगी थी। उसने न केवल माता जी के दर्शन किए, अपितु उसने माताजी के चरणों में चांदी का एक छत्र भी चढ़ाया था।

१९७१, लोंगेवाला की लड़ाई से कौन परिचित नहीं होगा भला ? महज एक सौ बीस भारतीय शेरों ने दो हजार पाक सैनिकों को धूल चटा दी थी। पाक सेना के सारे टैंक ध्वस्त कर दिए गए थे। युद्ध में शामिल फौजियों का मानना था कि वह युद्ध मां तनोटराय के आशीर्वाद के बिना जीतना असंभव था। उस युद्ध के नायक स्व. भैरोंसिंह मां के परम् भक्त थे।

उस युद्ध की स्मृति में इसी मंदिर परिसर में विजय स्तंभ बनवाया गया।

सन् १९६५ की भारत विजय के पश्चात इस मंदिर का समस्त उत्तरदायित्व बीएसएफ ने अपने हाथों में ले लिया था। मंदिर प्रबंधन से लेकर पूजा-आरती तक।

विक्रम संवत् ८०८, चैत्र शुक्ला नवमी। शक्ति उपासना के महत् पर्व नवरात्र में मामड़ जी चारण के घर उनकी धर्मपत्नी मोहवती जी की कोख से आवड़ का अवतरण हुआ। यह मामड़ जी की सात बार की हिंगलाज मां की पैदल यात्रा का प्रतिफल था। मां आवड़ एक भाई और सात बहनों की अग्रजा, परिवार की प्रथम संतति।

भाटी राजा तनु राव ने उनका मंदिर तनोट में बनवाया था। तब तनोट भाटियों की राजधानी हुआ करता था। तनु राव का पुत्र विजैराव और फिर उसका पुत्र देवराज। देवी आवड़ मां की भाटी राज परिवार पर असीम अनुकम्पा रही। लोक वार्ताएं कहती हैं कि युद्ध के समय आवड़ मां सुगन चिड़ी का रूप धार भाटी राजाओं के घोड़े की कनौती में उपस्थित रहती थीं और भाटी युद्ध जीत जाया करते थे।

राजस्थानी साहित्य में एक दूहा विश्रुत है -

तनु राव ने तख्त दियो, विजै राव ने चूड़।
देवराज ने खड़ग दियो, दुस्ट करवा दूर।

मां आवड़ की कृपा से तनु राव का राज्य अभय, अप्रतिहत रहा। आवड़ माता ने तनु राव के पुत्र विजै राव को एक चूड़ दी थी, कहते हैं कि उसमे उपलब्ध सैंकड़ों तलवारें एक साथ चलती थीं। फिर देवराज का पराक्रमी इतिहास तो जगचावा है, उन्होंने जिस खड़ग के बल पर 52 परवाड़े जीते थे, वो मां आवड़ ने उन्हें सौंपा था।

आवड़ मां १९१ वर्ष इस धरती पर सशरीर जीवित रहीं, यह कौनसा कम चमत्कार है।

प्रवीण कुमार मकवाणा

( चित्र : गूगल से साभार
कथ्य : विभिन्न पुस्तकों और लोक वार्ताओं से साभार )

चित्तौड़गढ की रानी द्वारा हुमायूं को राखी भेजने की कथा का तथ्यात्मक विश्लेषणगर्म रक्त चमड़ी की गन्ध याद रखना हिंदुओं ।राख...
13/08/2023

चित्तौड़गढ की रानी द्वारा हुमायूं को राखी भेजने की कथा का तथ्यात्मक विश्लेषण
गर्म रक्त चमड़ी की गन्ध याद रखना हिंदुओं ।

राखी का ऐतिहासिक झूठ-सन 1535 दिल्ली का शासक है बाबर का बेटा हुमायूँ
.... उसके सामने देश में दो सबसे बड़ी चुनौतियां हैं , पहला अफगान शेर खाँ और दूसरा गुजरात का शासक बहादुरशाह .... पर तीन वर्ष पूर्व सन 1532 में चुनार दुर्ग पर घेरा डालने के समय शेर खाँ ने हुमायूँ का अधिपत्य स्वीकार कर लिया है और अपने बेटे को एक सेना के साथ उसकी सेवा में दे चुका है।

अफीम का नशेड़ी हुमायूँ शेर खाँ की ओर से निश्चिन्त है , हाँ पश्चिम से बहादुर शाह का बढ़ता दबाव उसे कभी कभी विचलित करता है।

हुमायूँ के व्यक्तित्व का सबसे बड़ा दोष है कि वह घोर नशेड़ी है। इसी नशे के कारण ही वह पिछले तीन वर्षों से दिल्ली में ही पड़ा हुआ है, और उधर बहादुर शाह अपनी शक्ति बढ़ाता जा रहा है। वह मालवा को जीत चुका है और मेवाड़ भी उसके अधीन है। पर अब दरबारी अमीर, सामन्त और उलेमा हुमायूँ को चैन से बैठने नहीं दे रहे। बहादुर शाह की बढ़ती शक्ति से सब भयभीत हैं। आखिर हुमायूँ उठता है और मालवा की ओर बढ़ता है।

इस समय बहादुरशाह चित्तौड़ दुर्ग पर घेरा डाले हुए है। चित्तौड़ में किशोर राणा विक्रमादित्य के नाम पर राजमाता कर्णावती शासन कर रहीं हैं। उनके लिए यह विकट घड़ी है। सात वर्ष पूर्व खनुआ के युद्ध मे महाराणा सांगा के साथ अनेक योद्धा सरदार वीरगति प्राप्त कर चुके हैं। रानी के पास कुछ है, तो विक्रमादित्य और उदयसिंह के रुप में दो अबोध बालक, और एक राजपूतनी का अदम्य साहस। सैन्य बल में चित्तौड़ बहादुर शाह के समक्ष खड़ा भी नहीं हो सकता, पर साहसी राजपूतों ने बहादुर शाह के समक्ष शीश झुकाने से इनकार कर दिया है।

इधर बहादुर शाह से उलझने को निकला हुमायूँ अब चित्तौड़ की ओर मुड़ गया है। अभी वह सारंगपुर में है तभी उसे बहादुर शाह का सन्देश मिलता है जिसमें उसने लिखा है, "चित्तौड़ के विरुद्ध मेरा यह अभियान विशुद्ध जेहाद है। जबतक मैं काफिरों के विरुद्ध जेहाद पर हूँ तबतक मुझपर हमला गैर-इस्लामिल है। अतः हुमायूँ को चाहिए कि वह अपना अभियान रोक दे।”

हुमायूँ का बहादुर शाह से कितना भी बैर हो पर दोनों का मजहब एक है, सो हुमायूँ ने बहादुर शाह के जेहाद का समर्थन किया है। अब वह सारंगपुर में ही डेरा जमा के बैठ गया है, आगे नहीं बढ़ रहा।

इधर चित्तौड़ राजमाता ने कुछ राजपूत नरेशों से सहायता मांगी है। पड़ोसी राजपूत नरेश सहायता के लिए आगे आये हैं, पर वे जानते हैं कि बहादुरशाह को हराना अब सम्भव नहीं। पराजय निश्चित है सो सबसे आवश्यक है चित्तौड़ के भविष्य को सुरक्षित करना। और इसी लिए रात के अंधेरे में बालक युवराज उदयसिंह को पन्ना धाय के साथ गुप्त मार्ग से निकाल कर बूंदी पहुँचा दिया जाता है।
अब राजपूतों के पास एकमात्र विकल्प है वह युद्ध, जो पूरे विश्व में केवल वही करते हैं। शाका और जौहर…...

आठ मार्च 1535, राजपूतों ने अपना अद्भुत जौहर दिखाने की ठान ली है। सूर्योदय के साथ किले का द्वार खुलता है। पूरी राजपूत सेना माथे पर केसरिया पगड़ी बांधे निकली है। आज सूर्य भी रुक कर उनका शौर्य देखना चाहता है, आज हवाएं उन अतुल्य स्वाभिमानी योद्धाओं के चरण छूना चाहती हैं, आज धरा अपने वीर पुत्रों को कलेजे से लिपटा लेना चाहती है, आज इतिहास स्वयं पर गर्व करना चाहता है, आज भारत स्वयं के भारत होने पर गर्व करना चाहता है।

इधर मृत्यु का आलिंगन करने निकले वीर राजपूत बहादुरशाह की सेना पर विद्युतगति से तलवार भाँज रहे हैं, और उधर किले के अंदर महारानी कर्णावती के पीछे असंख्य देवियाँ मुह में गंगाजल और तुलसी पत्र लिए अग्निकुंड में समा रही हैं। यह जौहर है। वह जौहर जो केवल राजपूत देवियाँ जानती हैं। वह जौहर जिसके कारण भारत अब भी भारत है।

किले के बाहर गर्म रक्त की गंध फैल गयी है, और किले के अंदर अग्नि में समाहित होती क्षत्राणियों की देहों की....!

पूरा वायुमंडल बसा उठा है और घृणा से नाक सिकोड़ कर खड़ी प्रकृति जैसे चीख कर कह रही है- “भारत की आने वाली पीढ़ियों! इस दिन को याद रखना, और याद रखना इस गन्ध को। जीवित जलती अपनी माताओं के देह की गंध जबतक तुम्हें याद रहेगी, तुम्हारी सभ्यता जियेगी। जिस दिन यह गन्ध भूल जाओगे तुम्हें फारस होने में दस वर्ष भी नहीं लगेंगे…”

दो घण्टे तक चले युद्ध में स्वयं से चार गुने शत्रुओं को मार कर राजपूतों ने वीरगति पा ली है, और अंदर किले में असंख्य देवियों ने अपनी राख से भारत के मस्तक पर स्वाभिमान का टीका लगाया है। युद्ध समाप्त हो चुका। राजपूतों ने अपनी सभ्यता दिखा दी, अब बहादुरशाह अपनी सभ्यता दिखायेगा।

अगले तीन दिन तक बहादुर शाह की सेना चित्तौड़ दुर्ग को लुटती रही। किले के अंदर असैनिक कार्य करने वाले लुहार, कुम्हार, पशुपालक, व्यवसायी इत्यादि पकड़ पकड़ कर काटे गए। उनकी स्त्रियों को लूटा गया। उनके बच्चों को भाले की नोक पर टांग कर खेल खेला गया। चित्तौड़ को तहस नहस कर दिया गया।

और उधर सारंगपुर में बैठा बाबर का बेटा हुमायूँ इस जेहाद को चुपचाप देखता रहा, खुश होता रहा।

युग बीत गए पर भारत की धरती राजमाता कर्णावती के जलते शरीर की गंध नहीं भूली। फिर कुछ गद्दारों ने इस गन्ध को भुलाने के लिए कथा गढ़ी- “राजमाता कर्णावती ने हुमायूँ के पास राखी भेज कर सहायता मांगी थी।”
अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए मुँह में तुलसी दल ले कर अग्निकुंड में उतर जाने वाली देवियाँ अपने पति के हत्यारे के बेटे से सहायता नहीं मांगती पार्थ! राखी की इस झूठी कथा के षड्यंत्र में कभी मत फंसना

महाप्रभु❤️🙏
20/06/2023

महाप्रभु❤️🙏

सुना है कि इतिहासमूढ़ और अज्ञानी नयी संसद भवन का डिजाइन को ताबूत जैसा बता रहे हैं,जबकि यह भारतीय वास्तुशास्त्र का नायाब ...
29/05/2023

सुना है कि इतिहासमूढ़ और अज्ञानी नयी संसद भवन का डिजाइन को ताबूत जैसा बता रहे हैं,जबकि यह भारतीय वास्तुशास्त्र का नायाब नमूना और पुरातन वास्तुपुरुषमंडल के डिजाइन से प्रेरित है।
#संसदभवन

सुनो! हिंदू लड़कियो, तुम कौन हो ?? तुम उस  #नायिका_देवी की कुलपुत्री हो, जिसने अपने दांतों में घोड़े की लगाम पकड़ रखी थी...
11/05/2023

सुनो! हिंदू लड़कियो, तुम कौन हो ??

तुम उस #नायिका_देवी की कुलपुत्री हो, जिसने अपने दांतों में घोड़े की लगाम पकड़ रखी थी, दोनों हाथों से तलवारें लहराते हुए गौरी के सैनिकों का सूपड़ा साफ कर दिया था। मुहम्मद गौरी अपनी लंगोट पकड़कर भागा था। फिर कभी उसने आबू के रास्ते भारत में घुसने की कोशिश नहीं की।

तुम उस #हीरा_दे की आत्मजा हो, जिसने स्वामी से घात करने वाले अपने पति को मार डाला था।

तुम संतति हो, युद्ध से वापस लौट आने वाले पति के प्रवेश पर दुर्ग के द्वार बंद कर देने वाली रानी #जसवंत_दे_हाड़ी की।

तुम उस ंवर_हाड़ी की परंपरा में पैदा हुई हो, जिसने युद्ध में जाने से आनाकानी कर रहे अपने पति को अपना शीश उतार कर निशानी के रूप में दे दिया था।

तुम अपनी रियासत एवम् औरंगजेब के विरुद्ध जाकर मेवाड़ नरेश राजसिंह को अपने वरण हेतु आमंत्रित करने वाली #चारुमति की संतान हो।

अपने पति के एक गलत आचरण के कारण उसे आजीवन क्षमा नहीं किया #उमादे_भटियाणी ने, तुम नवकोटि मारवाड़ धणी के सामने नहीं झुकने वाली उस स्वाभिमानी रूठी रानी की रक्तवाहिका हो।

तुम्हारे भीतर अग्निकुंड में स्नान करने वाली #मां_पद्मिनी जैसी अगणित क्षत्राणियों की आग है।

तुम झांसी की रानी #लक्ष्मी_बाई के #क्षात्र_व्योम की तारिका हो।

तुम अपनी परंपरा पहचानो।
तुम्हें कोई विधर्मी बरगला कैसे सकता है ?
हे नारी!
तुम पर धर्म, संस्कृति और इस राष्ट्र का महत् उत्तरदायित्व है।

🙏🙏🙏✍️
Praveen Kumar Makwana जी
प्रवीण मकवाणा

राम राम
30/03/2023

राम राम

30/03/2023

जय श्री राम

सनातन संस्कृति और भारतीय धर्म  दर्शन शास्त्र के ज्ञाता स्वामी विवेकानंद जी को उनकी जन्मोत्सव पर सादर स्मरण। स्वामी जी का...
12/01/2023

सनातन संस्कृति और भारतीय धर्म दर्शन शास्त्र के ज्ञाता स्वामी विवेकानंद जी को उनकी जन्मोत्सव पर सादर स्मरण। स्वामी जी का राजस्थान से घनिष्ट सम्बन्ध था यही वह भूमि है जिसने उन्हें अमेरिका तक पहुंचाया था ।

©️डाँ. महेन्द्रसिंह तँवर

सनातन धर्म के प्रचारक खेतड़ी नरेश अजीतसिंह जी और स्वामी विवेकानन्द जी के मध्य गहरा रिश्ता था दोनों ही सनातन संस्कृति धर्म और दर्शन शास्त्र के ज्ञाता और संरक्षक थे । स्वामी जी को शिगागो तक पहुंचाने में राजपुताने इस वीर राजा का बहुत बड़ा योगदान था कभी भुलाया नही जा सकता आज स्वामी जी जन्मोत्सव पर खेतड़ी के इस महान तपस्वी को भी सादर वंदन है ।

सारा संसार प्रसिद्ध विद्वान , धर्मज्ञाता स्वामी विवेकानन्द जी को जानता है लेकिन उनके सबसे प्रिय मित्र शिष्य ओर सरंक्षक राजा अजीतसिंह जी खेतड़ी को बहुत कम लोग ही जानते होंगे । १८९१ में जब राजा साहब आबू की कोठी में पधारे हुवे थे तभी वहाँ पर स्वामी जी आबू में विश्राम कर रहे थे । अप्रेल के महीने में दोनो की भेंट हुई ओर दोनो अलग अलग विषयों पर घंटो बातें करते रहे । इस पहली भेंट के पश्चात नित्य राजा साहब स्वामी जी के प्रवचन सुनने लगे । जिज्ञासा बढ़ती गयी ओर अनेक ज्ञान की बातें होती रही ।
जब राजा साहब आबू से खेतड़ी लोटे तो साथ में अनुनय विनय करके स्वामी जी को भी ले आये । खेतड़ी में राजा साहब ने स्वामी जी से पदार्थ विज्ञान , धर्म , राजनीति , ओर अनेक विषयों का ज्ञान प्राप्त किया । जब स्वामी जी खेतड़ी में थे तब वहाँ के राज पंडित नारायणदास जी से अस्ट्ाध्यायी महाभाष्य ओर व्याकरण की शिक्षा ली । स्वामी जी इन्हें अपना गुरु कहकर सम्बोधित करते थे ।

स्वामी जी का मूल नाम “ विविदिषानन्द “ था । राजा अजीतसिंह जी से इसका उच्चारण कठिनता से होता था इसलिए उन्होंने स्वामी जी की आज्ञा से नाम रखा “ स्वामी विवेकानन्द “ अौर स्वामी जी ने राजा जी की इच्छा अनुसार अपना नाम विवेकानन्द रख लिया । ये स्वामी जी का राजा जी के प्रति कितना प्रेम था इस बात का प्रमाण है ।
खेतड़ी प्रवास के समय की एक घटना बड़ा महत्त्व रखती है । एक दिवस संध्याकल में राजा जी बाग़ में बैठे थे तभी उन्होंने स्वामीजी को बुलाया । उसी समय एक वेश्या - गायिका राजाजी से मिलने आयी ओर उसने गाना सुनाने की इच्छा प्रकट की स्वामी जो ने उठ कर जाने का प्रयास किया परंतु राजा जी ने रोक लिया । उस वेश्या ने ये भजन अपनी मधुर आवाज़ में ताल स्वर के साथ सूरदासजी का ये पद - “हमारे प्रभु अौगुन चित न धरे “ गाया । स्तब्धता छा गयी । स्वामी जी ने उसी समय उस वेश्या को माता कह कर क्षमा माँगी ओर कहा की तुमने मेरी आँखे खोल दी । में तो कुछ ओर सोच कर उठने वाला था । मैं सन्यासी होकर भी भक्ति का ये भेद न जान सका ।

स्वामी विवेकानन्द कई महीने ठहर कर खेतड़ी से विदा लेकर चल पड़े। जब राजा साहब के राजकुमार का जन्म हुआ तब स्वामी जी को विशेष आग्रह से बुलाया गया । स्वामी जी उस समय विश्व धर्म सभा जो अमेरिका के शिकागो शहर में होनी थी में जाने के लिये धन एकत्रित कर रहे थे । वे मद्रास में थे जहाँ पर खेतड़ी से मुंशी जगमोहनलाल जी के भेजा उन्होंने स्वामी जी जाकर समाचार कहे ओर खेतड़ी पधारने का अनुरोध किया । स्वामी जी ने कहा की उन्हें ३१ मई को अमेरिका जाना है ओर उसके लिये धन की व्यवस्था भी करनी है। मुंशी जी के आग्रह पर स्वामीजी खेतड़ी पधारे । राजकुमार को आशीर्वाद दिया ।कुछ दिन रुके । राजा अजीतसिंहजी में मुंशी जी को कह कर स्वामी के अमेरिका जाने ओर लोटने तक का पूरा प्रबन्ध करवा दिया ।

इस प्रकार राजा साहब ने भारतीय संस्कृति ओर धर्म के प्रचार प्रसार में स्वामी जी का पूरा साथ दिया ।
प्रथम श्रेणी के टिकट पर स्वामी जी ने ३१ मई १८९३ को बम्बई से अमेरिका के लिये प्रस्थान किया ।
कहते है कि राजा साहब ने स्वयं स्वामी जी को साफ़ा ( पगड़ी ) पहनाई थी जो वे जीवन पर्यन्त धारण करते रहे ।

जब स्वामी ने शिकागो की धर्म सभा को सम्बोधित किया तो पूरी दुनिया मंत्र मुग्ध हो गयी । इस पर राजा अजीतसिंह जी ने दरबार का आयोजन कर स्वामी जी को पत्र लिखकर आभार व मंगलकामना प्रकट की ।

स्वामी जी का राजाजी के साथ बड़ा स्नेह था उन्होंने अमेरिका से अनेक पत्र लिखे जो खेतड़ी के इतिहास ग्रन्थ में प्रकाशित है ।

राजा साहेब स्वामी जी की माताजी को सहायता स्वरूप १०० रुपये प्रति माह भिजवाते थे जो स्वामी जी के माताजी को जीवन भर खेतड़ी के राज्य से दी जाती रही थी। स्वामी जी के गुरु भाई अखण्डानन्द जी का भी राजा साहब के साथ अच्छा सम्बंध था तथा इन्होंने राजा साहब की प्रेरणा से खेतड़ी श्री रामकृष्ण परमहंश संस्था की स्थापना की जिससे शिक्षा का प्रचार प्रसार शेखावटी क्षेत्र में हो सके ।
दो बार राजा साहब ने कलकता की यात्रा की थी । तब वहाँ की प्रजा ओर मारवाड़ी सेठों ने राजा साहब का बहुत ज़ोरदार स्वागत किया जैसा कलकता में उस समय किसी का नहीं हुवा ।

प्रसिद्ध रायबहादुर सेठ सूर्यमलजी झुँझनू के नेत्रत्व में भव्य कार्यक्रमों का आयोजन किया गयी जिसकी बानगी उस समय के पप्रकाशित समाचार पत्रों में मिलती है।

धर्म ओर संस्कृति की रक्षा के लिये तत्पर रहने वाले सदेव पूजे जाते है। आज पूरी दुनिया में स्वामी विवेकानन्द के नाम का स्मरण किया जाता है तब राजा अजीतसिंह जी का ज़िक्र ना हो ऐसा हो नहीं सकता । ऐसे प्रजा प्रीय ओर सनातन धर्म के रक्षक विरले ही जन्म लेते है , धन्य है राजपूताने की धरा जिसने एक से एक बढ़कर एक वीरो को जन्म दिया ।

मैं इस मातृभूमि एवं उन महान वीरों को दण्डवत प्रणाम करता हूँ ।

हम मरने वालों को तो वापिस नहीं ला सकते है पर इन उजड़े हुए परिवारो के सदस्य जो हॉस्पिटल मैं मौत से लड़ रहे है उनकी स्वस्थ...
13/12/2022

हम मरने वालों को तो वापिस नहीं ला सकते है पर इन उजड़े हुए परिवारो के सदस्य जो हॉस्पिटल मैं मौत से लड़ रहे है उनकी स्वस्थ होने की प्रार्थना और हेल्प ज़रूर कर सकते है 🙏🙏🙏

plz help
13/12/2022

plz help

अधिकांश घरों में -    दीपावली के दिन सूरन की सब्जी बनती है,,,सूरन को जिमीकन्द (कहीं कहीं ओल) भी बोलते हैं,, आजकल तो मार्...
24/10/2022

अधिकांश घरों में - दीपावली के दिन सूरन की सब्जी बनती है,,,सूरन को जिमीकन्द (कहीं कहीं ओल) भी बोलते हैं,, आजकल तो मार्केट में हाईब्रीड सूरन आ गया है,, कभी-२ देशी वाला सूरन भी मिल जाता है,,,

सब्जियो में सूरन ही एक ऐसी सब्जी है जिसमें फास्फोरस अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है,, ऐसी मान्यता है और अब तो मेडिकल साइंस ने भी मान लिया है कि इस एक दिन यदि हम देशी सूरन की सब्जी खा ले तो स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में पूरे साल फास्फोरस की कमी नही होगी,,

मुझे नही पता कि ये परंपरा कब से चल रही है लेकिन सोचीए तो सही कि हमारे लोक मान्यताओं में भी वैज्ञानिकता छुपी हुई होती थी ,,, धन्य पूर्वज हमारे जिन्होंने विज्ञान को परम्पराओं, रीतियों, रिवाजों, संस्कारों में पिरो दिया 🙏🏻🙏

17/10/2022

❤️

हमने कभी वेदों का अध्ययन नही किया,हमने कभी गीता पढ़कर उसे अमल में लाने का प्रयास नही किया,हमने योग विद्या को कभी नही अपना...
09/07/2022

हमने कभी वेदों का अध्ययन नही किया,हमने कभी गीता पढ़कर उसे अमल में लाने का प्रयास नही किया,हमने योग विद्या को कभी नही अपनाया,हमने आयुर्वेद में कोई अनुसंधान नही किया,हमने संस्कृत भाषा को कोई महत्व नही दिया ऐसी बहुत सी अच्छी और महत्वपूर्ण चीजें है जो हमारे पूर्वज हमारे बुजुर्ग हमे विरासत में दे गए पर हम पाश्चात्य संस्कृति अपनाने में अंधे हो गए हमने धीरे धीरे हमारी संस्कृति को ही छोड़ने का काम किया.
अब एक बहुत छोटी सी बात है पर हमने उसे विस्मृत कर दिया हमारी भोजन संस्कृति इस भोजन संस्कृति में बैठकर खाना और उस भोजन को "दोने पत्तल" पर परोसने का बड़ा महत्व था कोई भी मांगलिक कार्य हो उस समय भोजन एक पंक्ति में बैठकर खाया जाता था और वो भोजन पत्तल पर परोसा जाता था जो विभिन्न प्रकार की वनस्पति के पत्तो से निर्मित होती थी.

क्या हमने कभी जानने की कोशिश की कि ये भोजन पत्तल पर परोसकर ही क्यो खाया जाता था?नही क्योकि हम उस महत्व को जानते तो देश मे कभी ये "बुफे"जैसी खड़े रहकर भोजन करने की संस्कृति आ ही नही पाती.
जैसा कि हम जानते है पत्तले अनेक प्रकार के पेड़ो के पत्तों से बनाई जा सकती है इसलिए अलग-अलग पत्तों से बनी पत्तलों में गुण भी अलग-अलग होते है| तो आइए जानते है कि कौन से पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से क्या फायदा होता है?

लकवा से पीड़ित व्यक्ति को अमलतास के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना फायदेमंद होता है|
जिन लोगों को जोड़ो के दर्द की समस्या है ,उन्हें करंज के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए|
जिनकी मानसिक स्थिति सही नहीं होती है ,उन्हें पीपल के पत्तों से बनी पत्तल पर भोजन करना चाहिए|
पलाश के पत्तों से बनी पत्तल में भोजन करने से खून साफ होता है और बवासीर के रोग में भी फायदा मिलता है|
केले के पत्ते पर भोजन करना तो सबसे शुभ माना जाता है ,इसमें बहुत से ऐसे तत्व होते है जो हमें अनेक बीमारियों से भी सुरक्षित रखते है|
पत्तल में भोजन करने से पर्यावरण भी प्रदूषित नहीं होता है क्योंकि पत्तले आसानी से नष्ट हो जाती है|
पत्तलों के नष्ट होने के बाद जो खाद बनती है वो खेती के लिए बहुत लाभदायक होती है|
पत्तले प्राकतिक रूप से स्वच्छ होती है इसलिए इस पर भोजन करने से हमारे शरीर को किसी भी प्रकार की हानि नहीं होती है|
अगर हम पत्तलों का अधिक से अधिक उपयोग करेंगे तो गांव के लोगों को रोजगार भी अधिक मिलेगा क्योंकि पेड़ सबसे ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रो में ही पाये जाते है|

अगर पत्तलों की मांग बढ़ेगी तो लोग पेड़ भी ज्यादा लगायेंगे जिससे प्रदूषण कम होगा|
डिस्पोजल के कारण जो हमारी मिट्टी ,नदियों ,तालाबों में प्रदूषण फैल रहा है ,पत्तल के अधिक उपयोग से वह कम हो जायेगा|

जो मासूम जानवर इन प्लास्टिक को खाने से बीमार हो जाते है या फिर मर जाते है वे भी सुरक्षित हो जायेंगे ,क्योंकि अगर कोई जानवर पत्तलों को खा भी लेता है तो इससे उन्हें कोई नुकसान नहीं होगा|

सबसे बड़ी बात पत्तले ,डिस्पोजल से बहुत सस्ती भी होती है|

ये बदलाव आप और हम ही ला सकते है अपनी संस्कृति को अपनाने से हम छोटे नही हो जाएंगे बल्कि हमे इस बात का गर्व होना चाहिए कि हम हमारी संस्कृति का विश्व मे कोई सानी नही है

लेखक अभय

यह अवशेष विश्व के प्रथम आवासीय विश्वविद्यालय नालंदा विश्वविद्यालय का है। खिलजी ने 1193 में इसपर आक्रमण कर इसको जला दिया ...
09/07/2022

यह अवशेष विश्व के प्रथम आवासीय विश्वविद्यालय नालंदा विश्वविद्यालय का है। खिलजी ने 1193 में इसपर आक्रमण कर इसको जला दिया था । दिनकर जी ने लिखा है-

यह टूटा प्रासाद सिद्धि का, महिमा का खँडहर है,
ज्ञानपीठ यह मानवता की तपोभूमि उर्वर है।

06/07/2022

जय श्री राम

●  #धर्मरक्षकराजामानसिंहआमेर ने उड़ीसा में जगन्नाथ मंदिर समेत 7000 मंदिरो से ज़्यादा मंदिरो की रक्षा की ।● राजा मान ने ह...
06/07/2022

● #धर्मरक्षकराजामानसिंहआमेर ने उड़ीसा में जगन्नाथ मंदिर समेत 7000 मंदिरो से ज़्यादा मंदिरो की रक्षा की ।

● राजा मान ने हिंदुओ का मुक्ति स्थल गयाजी की न केवल रक्षा की, बल्कि वहां कई मंदिर बनवाये भी ।

●राजा मान ने एशिया की सबसे बड़ी शक्ति अफगान मूलवंश बंगाल सल्तनत का नाश किया

राजामान की पुण्यतिथि पर शत शत नमन

दैनिक भास्कर की आज कि ख़बर झारखंड के एक ज़िले की स्कूल में समुदाय विशेष की जनसंख्या ज़्यादा होने से वहा की स्कूल में प्र...
05/07/2022

दैनिक भास्कर की आज कि ख़बर
झारखंड के एक ज़िले की स्कूल में समुदाय विशेष की जनसंख्या ज़्यादा होने से वहा की स्कूल में प्रार्थना के नियम भी बदलवा दिए अभी भी समय है सरकार यूनफ़ॉर्म सिविल कोड लागू कर देना चाहिए ॥

03/07/2022

महाप्रभु

02/04/2022
जानिए  #लोटा और  #गिलास के पानी में अंतर......... #भारत में हजारों साल की पानी पीने की जो सभ्यता है वो गिलास नही है, ये ...
09/01/2022

जानिए #लोटा और #गिलास के पानी में अंतर.........
#भारत में हजारों साल की पानी पीने की जो सभ्यता है वो गिलास नही है, ये गिलास जो है #विदेशी है.
गिलास भारत का नही है. गिलास #यूरोप से आया.
और यूरोप में #पुर्तगाल से आया था. ये पुर्तगाली जबसे भारत देश में घुसे थे तब से गिलास में हम फंस गये.
गिलास अपना नही है. अपना लोटा है. और लोटा कभी भी #एकरेखीय नही होता. तो #वागभट्ट जी कहते हैं कि जो बर्तन एकरेखीय हैं उनका #त्याग कीजिये. वो काम के नही हैं. इसलिए गिलास का पानी पीना अच्छा नही माना जाता. लोटे का पानी पीना अच्छा माना जाता है. इस पोस्ट में हम गिलास और लोटा के पानी पर चर्चा करेंगे और दोनों में अंतर बताएँगे.
फर्क सीधा सा ये है कि आपको तो सबको पता ही है
कि पानी को जहाँ धारण किया जाए, उसमे वैसे ही #गुण उसमें आते है. पानी के अपने कोई गुण नहीं हैं.
जिसमें डाल दो उसी के गुण आ जाते हैं. #दही में मिला दो तो #छाछ बन गया, तो वो दही के गुण ले लेगा.
दूध में मिलाया तो #दूध का गुण. लोटे में पानी अगर रखा तो बर्तन का गुण आयेगा. अब लौटा गोल है तो वो उसी का गुण धारण कर लेगा. और अगर थोडा भी गणित आप समझते हैं तो हर गोल चीज का #सरफेस_टेंशन कम रहता है. क्योंकि सरफेस एरिया कम होता है तो सरफेस टेंशन कम होगा. तो सरफेस टेंशन कम हैं तो हर उस चीज का सरफेस टेंशन कम होगा. और स्वास्थ्य की दष्टि से कम सरफेस टेंशन वाली चीज ही आपके लिए लाभदायक है.अगर ज्यादा सरफेस टेंशन वाली चीज आप पियेंगे तो बहुत तकलीफ देने वाला है. क्योंकि उसमें #शरीर को तकलीफ देने वाला एक्स्ट्रा प्रेशर आता है.
गिलास और लोटा के पानी में अंतर गिलास के पानी और लौटे के पानी में जमीं आसमान का अंतर है.
इसी तरह #कुए का पानी, कुंआ गोल है इसलिए सबसे अच्छा है. आपने थोड़े समय पहले देखा होगा कि सभी #साधू #संत कुए का ही पानी पीते है. न मिले तो प्यास सहन कर जाते हैं, जहाँ मिलेगा वहीं पीयेंगे. वो कुंए का पानी इसीलिए पीते है क्यूंकि कुआ गोल है, और उसका सरफेस एरिया कम है. सरफेस टेंशन कम है. और साधू संत अपने साथ जो केतली की तरह पानी पीने के लिए रखते है वो भी लोटे की तरह ही आकार वाली होती है. जो नीचे चित्र में दिखाई गई है.
सरफेस टेंशन कम होने से पानी का एक गुण लम्बे समय तक जीवित रहता है. पानी का सबसे बड़ा गुण है सफाई करना. अब वो गुण कैसे काम करता है वो आपको बताते है. आपकी #बड़ी_आंत है और #छोटी_आंत है,
आप जानते हैं कि उसमें #मेम्ब्रेन है और कचरा उसी में जाके फंसता है. पेट की सफाई के लिए इसको बाहर लाना पड़ता है. ये तभी संभव है जब कम सरफेस टेंशन वाला पानी आप पी रहे हो. अगर ज्यादा सरफेस टेंशन वाला पानी है तो ये कचरा बाहर नही आएगा, मेम्ब्रेन में ही फंसा रह जाता है.
दुसरे तरीके से समझें, आप एक एक्सपेरिमेंट कीजिये. थोडा सा #दूध ले और उसे चेहरे पे लगाइए, 5 मिनट बाद रुई से पोंछिये. तो वो रुई काली हो जाएगी. स्किन के अन्दर का कचरा और गन्दगी बाहर आ जाएगी. इसे दूध बाहर लेकर आया. अब आप पूछेंगे कि दूध कैसे बाहर लाया तो आप को बता दें कि दूध का सरफेस टेंशन सभी वस्तुओं से कम है. तो जैसे ही दूध चेहरे पर लगाया, दूध ने चेहरे के सरफेस टेंशन को कम कर दिया क्योंकि जब किसी वस्तु को दूसरी वस्तु के सम्पर्क में लाते है तो वो दूसरी वस्तु के गुण ले लेता है.
इस एक्सपेरिमेंट में दूध ने स्किन का सरफेस टेंशन कम किया और त्वचा थोड़ी सी खुल गयी. और त्वचा खुली तो अंदर का कचरा बाहर निकल गया. यही क्रिया लोटे का पानी पेट में करता है. आपने पेट में पानी डाला तो बड़ी आंत और छोटी आंत का सरफेस टेंशन कम हुआ और वो खुल गयी और खुली तो सारा कचरा उसमें से बाहर आ गया. जिससे आपकी आंत बिल्कुल साफ़ हो गई. अब इसके विपरीत अगर आप गिलास का हाई सरफेस टेंशन का पानी पीयेंगे तो आंते सिकुडेंगी क्यूंकि #तनाव बढेगा. तनाव बढते समय चीज सिकुड़ती है और तनाव कम होते समय चीज खुलती है. अब तनाव बढेगा तो सारा कचरा अंदर जमा हो जायेगा और वो ही कचरा #भगन्दर, #बवासीर, मुल्व्याद जैसी सेंकडो पेट की बीमारियाँ उत्पन्न करेगा.
इसलिए कम सरफेस टेंशन वाला ही पानी पीना चाहिए. इसलिए लौटे का पानी पीना सबसे अच्छा माना जाता है, गोल कुए का पानी है तो बहुत अच्छा है. गोल तालाब का पानी, पोखर अगर खोल हो तो उसका पानी बहुत अच्छा. नदियों के पानी से कुंए का पानी अधिक अच्छा होता है. क्योंकि #नदी में गोल कुछ भी नही है वो सिर्फ लम्बी है, उसमे पानी का फ्लो होता रहता है. नदी का पानी हाई सरफेस टेंशन वाला होता है और नदी से भी ज्यादा ख़राब पानी समुन्द्र का होता है उसका सरफेस टेंशन सबसे अधिक होता है.
अगर #प्रकृति में देखेंगे तो #बारिश का पानी गोल होकर धरती पर आता है. मतलब सभी #बूंदे गोल होती है क्यूंकि उसका #सरफेस टेंशन बहुत कम होता है.
तो गिलास की बजाय पानी लोटे में पीयें.
तो लोटे ही घर में लायें.
गिलास का प्रयोग बंद कर दें. जब से आपने लोटे को छोड़ा है तब से भारत में लौटे बनाने वाले #कारीगरों की रोजी रोटी ख़त्म हो गयी. गाँव गाँव में कसेरे कम हो गये, वो #पीतल और #कांसे के लौटे बनाते थे.
सब इस गिलास के चक्कर में भूखे मर गये.
तो वागभट्ट जी की बात मानिये और लौटे वापिस लाइए

युद्ध कहां तक टाला जाए,.............. द्वंद कहा तक पाला जाए,............... राणा का तू वंशज है, फेंक जहा तक भाला जाए!! 🧡...
24/12/2021

युद्ध कहां तक टाला जाए,.............. द्वंद कहा तक पाला जाए,............... राणा का तू वंशज है, फेंक जहा तक भाला जाए!! 🧡🚩🇮🇳😍

और वे कहते हैं, हमने कभी महान चीजें नहीं बनाईं। ये उस समय (शताब्दी) की पुरातन धरोहर है जब पूरे पृथ्वी पर सनातन के अलग कु...
23/12/2021

और वे कहते हैं, हमने कभी महान चीजें नहीं बनाईं। ये उस समय (शताब्दी) की पुरातन धरोहर है जब पूरे पृथ्वी पर सनातन के अलग कुछ और नही होता था🧡...🧡🚩😍

Jai Shree Ram 🚩🧡🚩
27/11/2021

Jai Shree Ram 🚩🧡🚩

श्री चतुर्भुज मंदिर ओरछा
23/11/2021

श्री चतुर्भुज मंदिर ओरछा

रथयात्रा की शुभकामनाएँ आप सभी को जय महाप्रभु
12/07/2021

रथयात्रा की शुभकामनाएँ आप सभी को
जय महाप्रभु

शंख बजाने के धार्मिक व वैज्ञानिक फायदे-----------------------------------------------------शंख बजाने के पीछे धार्मिक कार...
11/07/2021

शंख बजाने के धार्मिक व वैज्ञानिक फायदे
-----------------------------------------------------

शंख बजाने के पीछे धार्मिक कारण तो है साथ ही इसके पीछे वैज्ञानिक कारण भी है और शंख बजाने वाले व्यक्ति को स्वास्थ्य लाभ भी मिलता है शंख. की उत्पत्ति कैसे हुई? इस संबंध में हमारे धर्म ग्रंथ कहते हैं सृष्टी आत्मा से, आत्मा आकाश से, आकाश वायु से, वायु अग्रि से, आग जल से और जल पृथ्वी से उत्पन्न हुआ है और इन सभी तत्व से मिलकर शंख की उत्पत्ति मानी जाती है. शंख की पवित्रता और महत्व को देखते हुए हमारे यहां सुबह और शाम शंख बजाने की प्रथा शुरू की गई है.

शंख का महत्त्व धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, वैज्ञानिक रूप से भी है. वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि शंख - ध्वनि के प्रभाव में सूर्य की किरणें बाधक होती हैं. अतः प्रातः व सायंकाल में जब सूर्य की किरणें निस्तेज होती हैं, तभी शंख - ध्वनि करने का विधान है. इससे आसपास का वातावरण तता पर्यावरण शुद्ध रहता है. आयुर्वेद के अनुसार शंखोदक भस्म से पेट की बीमारियाँ, पीलिया, कास प्लीहा यकृत, पथरी आदि रोग ठीक होते हैं.

ऋषि श्रृंग की मान्यता है कि छोटे - छोटे बच्चों के शरीर पर छोटे - छोटे शंख बाँधने तथा शंख में जल भरकर अभिमंत्रित करके पिलाने से वाणी - दोष नहीं रहता है. बच्चा स्वस्थ रहता है. पुराणों में उल्लेख मिलता है कि मूक एवं श्वास रोगी हमेशा शंख बजायें तो बोलने की शक्ति पा सकते हैं.

आयुर्वेदाचार्य डॉ विनोद वर्मा के अनुसार रूक - रूक कर बोलने व हकलाने वाले यदि नित्य शंख - जल का पान करें, तो उन्हें आश्चर्यजनक लाभ मिलेगा. दरअसल मूकता व हकलापन दूर करने के लिए शंख - जल एक महौषधि है.

हृदय रोगी के लिए यह रामबाण औषधि है. दूध का आचमन कर कामधेनु शंख को कान के पास लगाने से `'की ध्वनि का अनुभव किया जा सकता है. यह सभी मनोरथों को पूर्ण करता है.

यजुर्वेद में कहा गया है कि यस्तु शंखध्वनिं कुर्यात्पूजाकाले विशेषतः, वियुक्तः सर्वपापेन विष्णुनां सह मोदते अर्थात पूजा के समय जो व्यक्ति शंख - ध्वनि करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वह भगवान विष्णु के साथ आनंद करता है.

1928 में बर्लिन यूनिवर्सिटी ने शंख ध्वनि का अनुसंधान करके यह सिद्ध किया कि इसकी ध्वनि कीटाणुओं को नष्ट करने कि उत्तम औषधि है.

ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, पूजा के समय शंख में जल भरकर देवस्थान में रखने और उस जल से पूजन सामग्री धोने और घर के आस - पास छिड़कने से वातावरण शुद्ध रहता है. क्योकि शंख के जल में कीटाणुओं को नष्ट करने की अद्भूत शक्ति होती है. साथ ही शंख में रखा पानी पीना स्वास्थ्य और हमारी हड्डियों, दांतों के लिए बहुत लाभदायक है. शंख में गंधक, फास्फोरस और कैल्शियम जैसे उपयोगी पदार्थ मौजूद होते हैं. इससे इसमें मौजूद जल सुवासित और रोगाणु रहित हो जाता है. इसीलिए शास्त्रों में इसे महाऔषधि माना जाता है.

तानसेन ने अपने आरंभिक दौर में शंख बजाकर ही गायन शक्ति प्राप्त की थी. अथर्ववेद के चतुर्थ अध्याय में शंखमणि सूक्त में शंख की महत्ता वर्णित है.

अथर्ववेद के अनुसार, शंख से राक्षसों का नाश होता है - शंखेन हत्वा रक्षांसि. भागवत पुराण में भी शंख का उल्लेख हुआ है.

यजुर्वेद के अनुसार युद्ध में शत्रुओं का हृदय दहलाने के लिए शंख फूंकने वाला व्यक्ति अपिक्षित है. गोरक्षा संहिता, संहिता विश्वामित्र, पुलस्त्य संहिता आदि ग्रंथों में दक्षिणावर्ती शंख को आयुर्वद्धक और समृद्धि दायक कहा गया है.

शंख को समुद्रज, कंबु, सुनाद, पावनध्वनि, कंबु, कंबोज, अब्ज, त्रिरेख, जलज, अर्णोभव, महानाद, मुखर, दीर्घनाद, बहुनाद, हरिप्रिय, सुरचर, जलोद्भव, विष्णुप्रिय, धवल, स्त्रीविभूषण, पाञ्चजन्य, अर्णवभव आदि नामों से भी जाना जाता है।
स्वस्थ काया के साथ माया देते हैं शंख। शंख दैवीय के साथ-साथ मायावी भी होते हैं। शंखों का हिन्दू धर्म में पवित्र स्थान है। घर या मंदिर में शंख कितने और कौन से रखें जाएं इसके बारे में शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख मिलता है। कहीं ऐसा तो नहीं कि आपके घर में युद्ध से संबंधित शंख रखा हो जबकि आपको जरूरत है शांति और समृद्धि की। शिवलिंग और शालिग्राम की तरह शंख भी कई प्रकार के होते हैं सभी तरह के शंखों का महत्व और कार्य अलग-अलग होता है। समुद्र मंथन के समय देव- दानव संघर्ष के दौरान समुद्र से 14 अनमोल रत्नों की प्राप्ति हुई। जिनमें आठवें रत्न के रूप में शंखों का जन्म हुआ ।

शंख के जानिए 12 चमत्कारिक रहस्य...

शंख नाद का प्रतीक है।शंख ध्वनि शुभ मानी गई है। प्रत्येक शंख का गुण अलग अलग माना गया है। कोई शंख विजय दिलाता है, तो कोई धन और समृद्धि। किसी शंख में सुख और शांति देने की शक्ति है तो किसी में यश और कीर्ति। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देवस्वरूप है। इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा और सरस्वती का निवास है।

शंख की प्रसिद्ध :आपके हाथों की अंगुलियों के प्रथम पोर पर भी शंखाकृति बनी होती है और अंगुलियों के नीचे भी। शंख के नाम से कई बातें विख्यात है जैसे योग में शंख प्रक्षालन और शंख मुद्रा होती है, तो आयुर्वेद में शंख पुष्पी और शंख भस्म का प्रयोग किया जाता है। प्राचीनकाल में शंख नाम से एक लिपि भी हुआ करती थी।

विज्ञान के अनुसार शंख समुद्र में पाए जाने वाले एक प्रकार के घोंघे का खोल है जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए बनाता है।विश्व का सबसे बड़ा शंखकेरल राज्य के गुरुवयूर के श्रीकृष्ण मंदिर में सुशोभित है, जिसकी लंबाई लगभग आधा मीटर है तथा वजन दो किलोग्राम है।इस बार हम आपको बताएंगे ऐसे चमत्कारिक और दैवीय शंखों के बारे में जिन्हें जानकार आप है हैरान रह जाएंगे...

नोटे :ध्यान रहे कि आप यदि अपने घर में इनमें से किसी भी प्रकार का शंख रखना चाहते हैं ‍तो किसी जानकार से पूछकर ही रखे। कितने शंख रखना है और कौन कौन से यह वही बता सकता है।

पहले जानिए शंख के प्रमुख प्रकार...

द्विधासदक्षिणावर्तिर्वामावत्तिर्स्तुभेदत:
दक्षिणावर्तशंकरवस्तु पुण्ययोगादवाप्यते
यद्गृहे तिष्ठति सोवै लक्ष्म्याभाजनं भवेत्

हालांकि प्राकृतिक रूप से शंख कई प्रकार के होते हैं।इनके 3 प्रमुख प्रकार हैं-वामावर्ती, दक्षिणावर्ती तथा गणेश शंख या मध्यवर्ती शंख। इन तीनों ही प्रकार के शंखों में कई तो चमत्कारिक हैं, तो कई दुर्लभ और बहुत से सुलभ हैं। सभी तरह के शंखों के अलग-अलग नाम हैं। अथर्ववेद के अनुसार, शंख से राक्षसों का नाश होता है- शंखेन हत्वा रक्षांसि। भागवत पुराण में भी शंख का उल्लेख हुआ है। यजुर्वेद के अनुसार युद्ध में शत्रुओं का हृदय दहलाने के लिए शंख फूंकने वाला व्यक्ति अपेक्षित है। अद्भुत शौर्य और शक्ति का संबल शंखनाद से होने के कारण ही योद्धाओं द्वारा इसका प्रयोग किया जाता था।

दक्षिणावर्ती शंख :इस शंख को दक्षिणावर्ती इसलिए कहा जाता है, क्योंकि जहां सभी शंखों का पेट बाईं ओर खुलता है वहीं इसका पेट विपरीत दाईं और खुलता है। इस शंख को देवस्वरूप माना गया है। दक्षिणावर्ती शंख के पूजन से खुशहाली आती है और लक्ष्मी प्राप्ति के साथ-साथ संपत्ति भी बढ़ती है। इस शंख की उपस्थिति ही कई रोगों का नाश कर देती है। दक्षिणावर्ती शंख में रात में जल भरकर रख दिया जाए और सुबह उठकर खाली पेट उस जल को पिया जाए तो पेट के रोग जल्दी समाप्त हो जाते हैं। नेत्र रोगों में भी यह लाभदायक है।

* दक्षिणावर्ती शंख के प्रकार :दक्षिणावर्ती शंख 2 प्रकार के होते हैं नर और मादा। जिसकी परत मोटी हो और भारी हो वह नर और जिसकी परत पतली हो और हल्का हो, वह मादा शंख होता है।

वामवर्ती शंख :वामवर्ती शंख का पेट बाईं ओर खुला होता है। इसके बजाने के लिए एक छिद्र होता है। इसकी ध्वनि से रोगोत्पादक कीटाणु कमजोर पड़ जाते हैं। यह शंख आसानी से मिल जाता है, क्योंकि यह बहुतायत में पैदा होता है। यह शंख घर से नकारात्मक ऊर्जा को बाहर निकालने में सक्षम है। इसके घर में रखे होने से ही आसपास का वातावरण शुद्ध होता रहता है

1)गणेश शंख :
समुद्र मंथन के दौरान 8वें रत्न के रूप में सर्वप्रथम गणेश शंख की ही उत्पत्ति हुई थी। इसे गणेश शंख इसलिए कहते हैं कि इसकी आकृति हू-ब-हू गणेशजी जैसी है।

शंख में निहित सूंड का रंग अद्भुत प्राकृतिक सौन्दर्ययुक्त है। प्रकृति के रहस्य की अनोखी झलक गणेश शंख के दर्शन से मिलती है। यह शंख दरिद्रतानाशक और धन प्राप्ति का कारक है।

श्रीगणेश शंख का पूजन जीवन के सभी क्षेत्रों की उन्नति और विघ्न बाधा की शांति हेतु किया जाता है। इसकी पूजा से सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। गणेश शंख आसानी से नहीं मिलने के कारण दुर्लभ होता है। आर्थिक, व्यापारिक, कर्ज और पारिवारिक समस्याओं से मुक्ति पाने का श्रेष्ठ उपाय श्री गणेश शंख है।

2)कृष्ण का पाञ्चजन्य शंख :

महाभारत में लगभग सभी योद्धाओं के पास शंख होते थे। उनमें से कुछ योद्धाओं के पास तो चमत्कारिक शंख होते थे, जैसे भगवान कृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था जिसकी ध्वनि कई किलोमीटर तक पहुंच जाती थी।

पाञ्चजन्यं हृषीकेशो देवदत्तं धनञ्जय:।
पौण्ड्रं दध्मौ महाशंखं भीमकर्मा वृकोदर:।। -महाभारत

भगवान श्रीकृष्ण के पास पाञ्चजन्य शंख था। कहते हैं कि यह शंख आज भी कहीं मौजूद है। इस शंख के हरियाणा के करनाल में होने के बारे में कहा जाता रहा है। माना जाता है कि यह करनाल से 15 किलोमीटर दूर पश्चिम में काछवा व बहलोलपुर गांव के समीप स्थित पराशर ऋषि के आश्रम में रखा था, जहां से यह चोरी हो गया। यहां हिन्दू धर्म से जुड़ी कई बेशकीमती वस्तुएं थीं।

मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत युद्ध के बाद अपना पाञ्चजन्य शंख पराशर ऋषि के तीर्थ में रखा था। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि श्रीकृष्ण का यह शंख आदि बद्री में सुरक्षित रखा है।

महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण अपने पाञ्चजन्य शंख से पांडव सेना में उत्साह का संचार ही नहीं करते थे बल्कि इससे कौरवों की सेना में भय व्याप्त हो जाता था। इसकी ध्वनि सिंह गर्जना से भी कहीं ज्यादा भयानक थी। इस शंख को विजय व यश का प्रतीक माना जाता है। इसमें 5 अंगुलियों की आकृति होती है। हालांकि पाञ्चजन्य शंख अब भी मिलते हैं लेकिन वे सभी चमत्कारिक नहीं हैं। इन्हें घर को वास्तुदोषों से मुक्त रखने के लिए स्थापित किया जाता है। यह राहु और केतु के दुष्प्रभावों को भी कम करता है।

3)देवदत्त शंख :

यह शंख महाभारत में अर्जुन के पास था। वरुणदेव ने उन्हें यह गिफ्ट में दिया था। इसका उपयोग दुर्भाग्यनाशक माना गया है।

माना जाता है कि इस शंख का उपयोग न्याय क्षेत्र में विजय दिलवाता है। न्यायिक क्षेत्र से जुड़े लोग इसकी पूजा कर लाभ प्राप्त कर सकते हैं। इस शंख को शक्ति का प्रतीक भी माना गया है।

4)महालक्ष्मी शंख:

इस शंख को प्राकृतिक रूप से निर्मित श्रीयंत्र भी कहा जाता है इसीलिए इसका नाम महालक्ष्मी शंख है। माना जाता है कि यह महालक्ष्मी का प्रतीक है।

इसकी आवाज सुरीली होती है। माना जाता है कि इस शंख की जिस भी घर में पूजा-अर्चना होती है, वहां देवी लक्ष्मी का स्वयं वास होता है।

किसी भी शंख की पूजा इस मंत्र से करना चाहिए-
त्वंपुरा सागरोत्पन्न विष्णुनाविघृतःकरे देवैश्चपूजितः सर्वथौपाच्चजन्यमनोस्तुते।

5)पौण्ड्र शंख :

पोंड्रिक या पौण्ड्र शंख महाभारत में ‍भीष्म के पास था। जिस व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी हो उन्हें यह पौण्‍ड्र शंख रखना चाहिए।

इसके घर में रखे होने से मनोबल बढ़ता है। अधिकतर इसका उपयोग विद्यार्थियों के लिए उत्तम माना गया है। इसे विद्यार्थियों के अध्ययन कक्ष में पूर्व की ओर रखना चाहिए।

6)कामधेनु शंख:

ये शंख भी प्रमुख रूप से दो प्रकार के हैं। एक गोमुखी शंख और दूसरा कामधेनु शंख। यह शंख कामधेनु गाय के मुख जैसी रूपाकृति का होने से इसे गोमुखी कामधेनु शंख के नाम से जाना जाता है।

कहते हैं कि कामधेनु शंख की पूजा-अर्चना करने से तर्कशक्ति प्रबल होती है और सभी तरह की मनोकामनाएं भी पूरी होती हैं। इस शंख को कल्पना पूरी करने वाला भी कहा गया है। कलियुग में मानव की मनोकामना पूर्ति का एकमात्र साधन है। यह शंख वैसे बहुत दुर्लभ है।

कामधेनु शंख हर तरह की मनोकामना पूर्ण करने में सक्षम है। महर्षि पुलस्त्य ने लक्ष्मी प्राप्ति के लिए इस शंख का उपयोग किया था। पौराणिक शास्त्रों में इसके प्रयोग द्वारा धन और समृद्धि स्थायी रूप से बढ़ाई जा सकती है।

7)कौरी शंख (Kauri Shankha) :

कौरी शंख अत्यंत ही दुर्लभ शंख है। माना जाता है कि यह जिसके भी घर में होता है उसका भाग्य खुला जाता है और समृद्धि बढ़ती जाती है।

प्राचीनकाल से ही इस शंख का उपयोग गहने, मुद्रा और पांसे बनाने में किया जाता रहा है। कौरी को कई जगह कौड़ी भी कहा जाता है। पीली कौड़िया घर में रखने से धन में वृद्धि होती है।

8 )हीरा शंख :
इसे पहाड़ी शंख भी कहा जाता है। इसका इस्तेमाल तांत्रिक लोग विशेष रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा के लिए करते हैं। यह दक्षिणावर्ती शंख की तरह खुलता है।

यह पहाड़ों में पाया जाता है। इसकी खोल पर ऐसा पदार्थ लगा होता है, जो स्पार्कलिंग क्रिस्टल के समान होता है इसीलिए इसे हीरा शंख भी कहते हैं। यह बहुत ही बहूमुल्य माना गया है।

9)मोती शंख :

यदि आपको घर में सुख और शांति चाहिए तो मोती शंख स्थापित करें। सुख और शांति होगी तभी समृद्धि बढ़ेगी। मोती शंख हृदय रोगनाशक भी माना गया है। मोती शंख को सफेद कपड़े पर विराजमान करके पूजाघर में इसकी स्थापना करें और प्रतिदिन पूजन करें।

*यदि मोती शंख को कारखाने में स्था‍पित किया जाए तो कारखाने में तेजी से आर्थिक उन्नति होती है। यदि व्यापार में घाटा हो रहा है, दुकान से आय नहीं हो रही हो तो एक मोती शंख दुकान के गल्ले में रखा जाए तो इससे व्यापार में वृद्धि होती है।

*यदि मोती शंख को मंत्र सिद्ध व प्राण-प्रतिष्ठा पूजा कर स्थापित किया जाए तो उसमें जल भरकर लक्ष्मी के चित्र के साथ रखा जाए तो लक्ष्मी प्रसन्न होती है और आर्थिक उन्नति होती है।

*मोती शंख को घर में स्थापित कर रोज 'ॐ श्री महालक्ष्मै नम:' 11 बार बोलकर 1-1 चावल का दाना शंख में भरते रहें। इस प्रकार 11 दिन तक प्रयोग करें। यह प्रयोग करने से आर्थिक तंगी समाप्त हो जाती है।

10)अनंतविजय शंख :

युधिष्ठिर के शंख का नाम अनंतविजय था। अनंत विजय अर्थात अंतहीन जीत। इस शंख के होने से हर कार्य में विजय मिलती जाती है। प्रत्येक क्षेत्र में विजय प्राप्त के लिए अनंतविजय नामक शंख मिलना दुर्लभ है।

11)मणि पुष्पक और सुघोषमणि शंख :

नकुल के पास सुघोष और सहदेव के पास मणि पुष्पक शंख था। मणि पुष्पक शंख की पूजा-अर्चना से यश कीर्ति, मान-सम्मान प्राप्त होता है। उच्च पद की प्राप्ति के लिए भी इसका पूजन उत्तम है।

12)वीणा शंख :

विद्या की देवी सरस्वती भी शंख धारण करती है। यह शंख वीणा समान आकृति का होता है इसीलिए इसे वीणा शंख कहा जाता है। माना जाता है कि इसके जल को पीने से मंदबुद्धि व्‍यक्ति भी ज्ञानी हो जाता है। अगर वाणी में कोई दोष है या बोल नहीं पाते हैं तो इस शंख का जल पीने के साथ-साथ इसे बजाएं भी।

13)अन्नपूर्णा शंख :

अन्नपूर्णा का अर्थ होता है अन्न की पूर्ति करने वाला या वाली। इस शंख को रखने से हमेशा बरकत बनी रहती है। यह धन और समृद्धि बढ़ाता है। गृहस्थ जीवन-यापन करने वालों को प्रतिदिन इसके दर्शन करने चाहिए।

14)ऐरावत शंख :

इंद्र के हाथी का नाम ऐरावत है। यह शंख उसी के समान दिखाई देता है इसीलिए इसका नाम ऐरावत है। यह शंख मूलत: सिद्ध और साधना प्राप्ति के लिए माना गया है।

माना जाता है कि रंग और रूप को निखारने के लिए भी इस शंख का उपयोग किया जाता है। इस शंख में 24 से 28 घंटे जल भर करके रखें और फिर उसको ग्रहण करेंगे तो चेहरा कांतिमय बन जाएगा। ऐसा प्रतिदिन कुछ दिनों तक करना।

15)विष्णु शंख :

इस शंख का उपयोग लगातार प्रगति के लिए और असाध्य रोगों में शिथिलता के लिए किया जाता है। इसे घर में रखने भर से घर रोगमुक्त हो जाता है। प्रतिदिन इस शंख के जल का सेवन करने से कई तरह के असाध्य रोग भी मिट जाते हैं

16)गरूड़ शंख:

गरूड़ की मुखाकृति समान होने के कारण इसे गरूड़ शंख कहा गया है। यह शंख भी अत्यंत दुर्लभ है। यह शंख भी सुख और समृद्धि देने वाला है। माना जाता है कि इस शंख के घर में होने से किसी भी प्रकार की विपत्ति नहीं आती है।

अन्य दैवीय शंख.

शंख के अन्य प्रकार :देव शंख, चक्र शंख, राक्षस शंख, शनि शंख, राहु शंख, पंचमुखी शंख, वालमपुरी शंख, बुद्ध शंख, केतु शंख, शेषनाग शंख, कच्छप शंख, शेर शंख, कुबार गदा शंख, सुदर्शन शंक आदि।

उपरोक्त सभी तरह के शंख किसी न किसी विशेष कार्य और लाभ के लिए घर में रखे जाते हैं। इनमें से अधिकतर तो दुर्लभ है जिनके यहां मात्र नाम दिए जा रहे हैं। भगवान शंकर रुद्र शंख को बजाते थे जबकि उन्होंने त्रिपुरासुर के संहार के समय त्रिपुर शंख बजाया था।

अंत में जानिए शंख के ये महत्वपूर्ण लाभ...

नादब्रह्म :शंख को नादब्रह्म और दिव्य मंत्र की संज्ञा दी गई है। शंख की ध्वनि को 'ॐ' की ध्वनि के समकक्ष माना गया है। शंखनाद से आपके आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का नाश तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। शंख से निकलने वाली ध्वनि जहां तक जाती है, वहां तक बीमारियों के कीटाणुओं का नाश हो जाता है।

सेहत में फायदेमंद शंख :शंखनाद से सकारात्मक ऊर्जा का सर्जन होता है जिससे आत्मबल में वृद्धि होती है। शंख में प्राकृतिक कैल्शियम, गंधक और फॉस्फोरस की भरपूर मात्रा होती है। प्रतिदिन शंख फूंकने वाले को गले और फेफड़ों के रोग नहीं होते।

शंख बजाने से चेहरे, श्वसन तंत्र, श्रवण तंत्र तथा फेफड़ों का व्यायाम होता है। शंखवादन से स्मरण शक्ति बढ़ती है। शंख से मुख के तमाम रोगों का नाश होता है। गोरक्षा संहिता, विश्वामित्र संहिता, पुलस्त्य संहिता आदि ग्रंथों में दक्षिणावर्ती शंख को आयुर्वर्द्धक और समृद्धिदायक कहा गया है।

पेट में दर्द रहता हो, आंतों में सूजन हो अल्सर या घाव हो तो दक्षिणावर्ती शंख में रात में जल भरकर रख दिया जाए और सुबह उठकर खाली पेट उस जल को पिया जाए तो पेट के रोग जल्दी समाप्त हो जाते हैं। नेत्र रोगों में भी यह लाभदायक है। यही नहीं, कालसर्प योग में भी यह रामबाण का काम करता है।

श्रेष्ठ शंख के लक्षण-
शंखस्तुविमल: श्रेष्ठश्चन्द्रकांतिसमप्रभ:
अशुद्धोगुणदोषैवशुद्धस्तु सुगुणप्रद:

अर्थात निर्मल व चन्द्रमा की कांति के समान वाला शंख श्रेष्ठ होता है जबकि अशुद्ध अर्थात मग्न शंख गुणदायक नहीं होता। गुणों वाला शंख ही प्रयोग में लाना चाहिए। क्षीरसागर में शयन करने वाले सृष्टि के पालनकर्ता भगवान विष्णु के एक हाथ में शंख अत्यधिक पावन माना जाता है। इसका प्रयोग धार्मिक अनुष्ठानों में विशेष रूप से किया जाता है।

शंख से वास्तुदोष का निदान :शंख से वास्तुदोष भी मिटाया जा सकता है। शंख को किसी भी दिन लाकर पूजा स्थान पर पवित्र करके रख लें और प्रतिदिन शुभ मुहूर्त में इसकी धूप-दीप से पूजा की जाए तो घर में वास्तुदोष का प्रभाव कम हो जाता है। शंख में गाय का दूध रखकर इसका छिड़काव घर में किया जाए तो इससे भी सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।

Address

Chekla , Jaswantpura
Jalore
307515

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when आर्यवर्त posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Business

Send a message to आर्यवर्त:

Videos

Share

Category



You may also like