31/10/2024
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।
तुम्हारे जीवन में हो नित्य दिवाली
- पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
(दीपावली पर्व : 31 अक्टूबर - 1 नवंबर)
पाँच पर्वों का झुमका
विश्व के जो भी मजहब, पंथ हैं, उनमें सबसे ज्यादा और सुखदायी पर्व हैं तो हिन्दुस्तान में, हिन्दू संस्कृति में हैं । उन सुखद और आनंददायी पर्वों में पर्वों का झुमका है तो दिवाली है । धनतेरस, नरक चतुर्दशी (काली चौदस), दिवाली, नूतन वर्ष, भाईदूज - यह पर्वों का पुंज है । इसमें जीव नित्य दिवाली मना सके ऐसा संकेत है ।
दीपावली के दिन पटाखे फोड़ना, दीये जलाना यह उस अखंड ब्रह्म की ओेर संकेत है । दीये अनेक जगमगाते हैं, हजारों-लाखों नहीं करोड़ों-करोड़ों दीये जगमगाते हैं किंतु सभी दीयों में प्रकाश वही-का-वही । किस्म-किस्म के पटाखे फूटते हैं लेकिन गंधक सभीमें एक । मिठाइयों के स्वाद अनेक परंतु सबमें मिठास तत्त्व एक-का-एक । ऐसे ही चित्त अनेक, वृत्तियाँ अनेक, राग-द्वेष अनेक, भय, हर्ष, शोक अनेक लेकिन चैतन्य सत्ता एक-की-एक । यह दीपावली अनेक रंगों में, अनेक दीपों में, अनेक मिठाइयों में, अनेक पटाखों में, अनेक सुखाकार, दुःखाकार, लोभाकार, मोहाकार चित्त-वृत्तियों में, अनेक अवस्थाओं में ज्ञान देवता एक का संदेश देती है ।
दिवाली का आध्यात्मिकीकरण
ये ऐहिक दिवालियाँ ऐहिक हर्ष देती हैं लेकिन ऐहिक दिवाली का निमित्त साधकर आध्यात्मिक दिवाली मनाने का जो लोग उद्देश्य बनाते हैं, वे धनभागी हैं । जैसे दिवाली में चार काम करते हैं - साफ-सफाई करते हैं, नयी चीज लाते हैं, दीये जलाते हैं, मिठाई खाते-खिलाते हैं । घर साफ-सूफ करते हैं, ऐसे अपना साफ इरादा कर दो कि हमको इसी जन्म में परमात्म-सुख, परमात्म-ज्ञान, परमात्म-आनंद, परमात्म-माधुर्य पाना है ।
दूसरा काम नयी चीज लाना । जैसे घरों में चाँदी, कपड़े या बर्तन आदि खरीदे जाते हैं, ऐसे ही अपने चित्त में उस परमात्मा को पाने के लिए कोई दिव्य, पवित्र, आत्मसाक्षात्कार में सीधा साथ दे ऐसा जप, ध्यान, शास्त्र-पठन आदि का व्रत-नियम ले लेना चाहिए । जैसे गांधीजी ने अपने जीवन में व्रत रख दिया था, हफ्ते में एक दिन न बोलने का व्रत, ब्रह्मचर्य का व्रत, सत्य का व्रत, प्रार्थना का व्रत... ऐसे ही कोई व्रत आप अपने जीवन में, अपने चित्त में रख दें जिस व्रत से सर्वदुःखनाशक और परम सुख, शाश्वत सुख प्राप्त हो, अपने लक्ष्य की तरफ दृढ़ता से चल सकें और अपना ईश्वरीय अंश विकसित कर सकें ।
तीसरा काम है आप दीये जलाते हैं । बाह्य दीयों के साथ आप ज्ञान का दीया जलाओ । हृदय में है तो आत्मा है और सर्वत्र है तो परमात्मा है । जैसे घड़े में है तो घटाकाश है, सर्वत्र है तो महाकाश है । वह परमात्मा दूर नहीं, दुर्लभ नहीं, परे नहीं, पराया नहीं, सबका अपना-आपा है । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । उस वासुदेव के नजरिये से, ज्ञान के नजरिये से अपने ज्ञानस्वरूप में जगो । व्यर्थ का खर्च न करो, व्यर्थ का बोलो नहीं, व्यर्थ का सोओ नहीं, ज्यादा जगो नहीं, युक्ताहारविहारस्य... ज्ञान का दीप जलाओ ।
चौथी बात मिठाई खाना और खिलाना है । आप प्रसन्न रहिये । सुबह गहरा श्वास लेकर सवा मिनट रोकिये और ‘मैं आनंदस्वरूप ईश्वर का हूँ और ईश्वर मेरे हैं ।’ - यह चिंतन करके दुःख, अशांति और नकारात्मक विचारों को फूँक मार के बाहर फेंक दो । ऐसा दस बार करो, आप मीठे रहेंगे, अंतरात्मदेव के ध्यान की, वैदिक चिंतन की मिठाई खायेंगे और आपके सम्पर्क में आनेवाले भी मधुर हो जायेंगे, उन्हें भी प्रेमाभक्ति का रस मिलेगा ।
सुख-सम्पदा-आरोग्य बढ़ाने हेतु
(1) दीपावली के दिन नारियल व खीर की कटोरी लेकर घर में घूमें । घर के बाहर नारियल फोड़ें और खीर ऐसी जगह पर रखें कि कोई जीव-जंतु या गाय खाये तो अच्छा है, नहीं तो और कोई प्राणी खाये । इससे घर में धन-धान्य की बरकत में लाभ होता है ।
(2) घर के बाहर हल्दी और चावल के मिश्रण या केवल हल्दी से स्वस्तिक अथवा ॐकार बना दें । यह घर को बाधाओं से सुरक्षित रखने में मदद करता है । द्वार पर अशोक और नीम के पत्तों का तोरण (बंदनवार) बाँध दें । उससे पसार होनेवाले की रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी ।
(3) आज के दिन सप्तधान्य उबटन (पिसे हुए गेहूँ, चावल, जौ, तिल, चना, मूँग और उड़द से बना मिश्रण) से स्नान करने पर पुण्य, प्रसन्नता और आरोग्यता की प्राप्ति होती है । दिवाली के दिन अथवा किसी भी पर्व के दिन गोमूत्र से रगड़कर स्नान करना पापनाशक स्नान होता है ।
(4) इन दिनों में चौमुखी दीये जलाकर चौराहे पर चारों तरफ रख दिये जायें तो वह भी शुभ माना जाता है ।
(5) दीपावली की रात को घर में लक्ष्मीजी के निवास के लिए भावना करें और लक्ष्मीजी के मंत्र का भी जप कर सकते हैं । मंत्र : ॐ नमो भाग्यलक्ष्म्यै च विद्महे । अष्टलक्ष्म्यै च धीमहि । तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ।
(6) घर में विसंवादिता मिटाने के लिए गौ-चंदन अगरबत्ती पर देशी गाय का घी डाल के जलायें, घर के लोग मिलकर ‘हरि ॐ’ का गुंजन करें । दीवाल पर या कहीं भी अपने नेत्रों की सीध में इष्टदेवता या सद्गुरु के नेत्र हों, उन्हें एकटक देखें और आसन बिछाकर ऐसी ध्वनि (ॐकार का गुंजन) करें । और दिनों में नहीं कर सकें तो दिवाली के पाँच दिन तो अवश्य करें, इससे घर में सुख-सम्पदा का वास होगा । परंतु यह है शरीर का घर, तुम्हारा घर तो ऐसा है कि महाराज ! सारी सुख-सम्पदाएँ वहीं से सबको बँटती रहती हैं और कभी खूटती नहीं । उस अपने आत्म-घर में आने का भी इरादा करो ।
(ऋषि प्रसाद : नवम्बर 2012)