Leelu singh badda

Leelu singh badda गौचर ओरण गौमाता, धरोहर स्थल
लोक देवता गौरक्षक वीर श्री पनराज जी

ध्येय वाक्य: यतो धर्म: ततो:जय

10/06/2023

#ओरण #महत्त्व समझे #राजस्व_रिकॉर्ड दर्ज हो

लीलू सिंह बड़डा

ओरण’ मरुक्षेत्र की प्राकृतिक, भौगोलिक एवं पर्यावरणीय परिस्थितियों से सम्बद्ध एक ऐसा ‘लघु वनक्षेत्र’ है जो मरुस्थलीय क्षेत्रों की विकट स्थिति में भी वहाँ के अनूठे पारिस्थितिकी-तन्त्र के माध्यम से गाँवों के स्वावलंबन एवं आत्मनिर्भरता में क्रांतिकारी परिवर्तन का सूत्रपात करता है। इतिहास गवाह है कि पश्चिमी राजस्थान के विशाल थार मरुस्थल क्षेत्र में शताब्दियों से स्थान-स्थान पर नखलिस्तान रूपी ‘ओरणों’ के चमत्कार से ही पशुपालन व्यवसाय आधारित अर्थव्यवस्था के बल पर ही यहाँ के ग्रामीण अत्यन्त पिछड़े युग में भी भीषणतम अकालों का सहजता से मुकाबला करते रहे हैं। दुर्भाग्य से पिछले लगभग दो दशकों से ग्रामीणों में ‘ओरणों’ के प्रति आस्था कम होते जाने एवं आबादी के जबर्दस्त विस्तार के कारण इन जीवनदायिनी धरोहरों का विनाश जारी है। सैकड़ों ओरणें तो अपना अस्तित्व ही खो चुकी हैं जिससे मरुक्षेत्र के ग्रामीणों को अकाल के दौरान अपनी एवं पशुओं की जान के लाले पड़ने लगे हैं।

उल्लेखनीय है कि अकाल एवं ओरण के मध्य मरुस्थलीय पारिस्थितिकी तन्त्र में आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आरोग्य एवं पर्यावरणीय दृष्टि से गहरा सम्बन्ध रहा है। दूरस्थ ग्रामीण मरुस्थल समाज की सदियों पुरानी ‘लघु वन’ आधारित इस अनूठी आत्मनिर्भर व्यवस्था का जीवन्त स्वरूप ‘ओरण’ संस्कृति में देखा जा सकता है। देश की आजादी एवं तत्पश्चात विकास के आधार पर मरुक्षेत्र की अर्थव्यवस्था एवं पर्यावरण सुधार की धुरी बने इन ‘ओरणों’ की संख्या में इजाफा होने की बजाय दुर्भाग्य से इनकी संख्या में तेजी से गिरावट आती गई और मरुस्थल की प्राकृतिक धरोहर हजारों ‘ओरणें’ विलुप्ति के कगार पर पहुँच गई। ओरण एवं मरुस्थलीय समाज में उत्पन्न असन्तुलन वर्तमान में प्रतिवर्ष अकाल एवं अल्प वर्षा में बाढ़ के हालात के प्राकृतिक प्रकोप के रूप में मरुक्षेत्र के बाशिन्दों के जान-माल एवं संसाधनों का अप्रत्याशित रूप से हरण करता हुआ क्षेत्र की अर्थव्यवस्था को झकझोर रहा है। आजादी के बाद भूमि के नियमनों में ‘ओरणों’ का कृषि जोतों में बदला जाना, उनकी भूमि पर अतिक्रमण, वहाँ के वृक्षों की अवैध कटाई, विलायती बबूल के साथ-साथ घातक विदेशी खरपतवारों में लेन्टेना, सत्यानाशी पार्थेनियम का अनियन्त्रित अतिक्रमण, वन्यजीवों का शिकार, मानवीय संवेदना एवं आध्यात्म में घटती रुचि आदि के कारण ओरण संस्कृति विलुप्ति के कगार पर पहुँच गई।

‘ओरण’ की परम्परा के सम्बन्ध में यह स्पष्ट है कि मरुक्षेत्र में ढाणियाँ एवं गाँव बसने के साथ-साथ गाँव की भूमि के एक भूखंड को स्थानीय ग्रामीणों द्वारा अपने किसी लोक देवी-देवता या पितरों के नाम संकल्पित कर छोड़ देने की परम्परा शताब्दियों पुरानी है। ऐसा माना जाता है कि अपने लोक देव या पितरों के प्रति अपार श्रद्धास्वरूप लोक कल्याण में इस भूखंड का दान कर उनके प्रति ‘उऋण’ होने के अनूठी परम्परा की वजह से ही इसका नाम ‘ओरण’ पड़ा। कुछ लोग वन अर्थात ‘अरण्य’ शब्द के अपभ्रंश स्वरूप से ‘ओरण’ शब्द की उत्पत्ति मानते हैं। इस देव-सम्पत्ति भूखंड पर स्वतः विभिन्न वन सम्पदाएँ पनपती जाती हैं और कालांतर में छोटे-छोटे वन्य जीवों का भी विकास होता रहता है। ग्रामीण इसे नष्ट करने की बजाय इसके प्रति अपार श्रद्धा रखते हैं तथा इसे और समृद्ध करने में ही अपने परिवार का कल्याण मानते हैं। शीघ्र ही ‘ओरणें’ गाँव के पशुओं के लिये शानदार चराई एवं आश्रय-स्थल बन जाती हैं.... तथा रियासत कालीन से हजारों वर्षों से ग्राम विकास के एक महत्त्वपूर्ण संसाधन के रूप में अपनी भूमिका अदा करने लगती हैं।

‘ओरणों’ के प्रति श्रद्धा एवं भय बनाये रखने के लिये इनमें एक छोटा सा मंदिर अर्थात ‘थान’ भी ग्रामीणों द्वारा स्थापित किया जाता था। लोक देवी-देवताओं में ,जुझारोंं,भैरू, माताजी, बापजी, नागजी, ठाकुरजी, भोपोजी आदि के छोटे-छोटे ‘थान’ बनाकर विधिवत दर्शन, पूजा एवं मेला उत्सव चलते थे। गाँवों की समृद्धि का अपरोक्ष सम्बन्ध वहाँ की परिपक्व ‘ओरणों’ से था तथा लोग अपनी पुत्री की शादी करने में इसी को प्राथमिकता देते थे ताकि उनकी लाड़ली एवं होने वाली संतानें ओरण के फलस्वरूप उपलब्ध गाँव के जल एवं पशु-संसाधनों की समृद्धि जीवनपर्यन्त भोग सकें। किसी अनिष्ट के भय की परम्परागत भावना के कारण इस ओरण से वृक्ष या लकड़ी तो दूर, वनस्पति की एक पत्ती, फल या फूल तक तोड़ने से ग्रामीण भय खाते थे। प्रकृति की धरोहरस्वरूप वनस्पतियों के साथ इस प्रकार की स्वप्रेरित ‘न छूने’ की बेजोड़ व्यवस्था वनस्पतियों को स्वतन्त्र रूप से फलने-फूलने का मौका देती थी जिसके चलते फलों-फूलों से लदी वनस्पतियों का प्राकृतिक सौन्दर्य, तथा स्वतः भूमि पर गिरे वानस्पतिक उत्पाद एवं विचरते पशुओं के गोबरमिश्रित पोषणकणों से युक्त मुलायम, अतिउर्वरा मिट्टी की सौंधी खुशबूयुक्त ‘ओरण’ का खुशनुमा माहौल जीव-जन्तुओं को बेहद सुकून देता था। ग्रामीण नियमित रूप से ऐसे माहौल की ओरण में आकर देव-दर्शन के साथ जाने-अनजाने पापों के प्रायश्चितस्वरूप ओरण में आश्रयप्राप्त वन्य जीवों को दाना-पानी डालकर जैव विविधताओं का विकास एवं ‘ग्राम स्वावलंबन’ की बुनियाद मजबूत करते थे। इन ओरणों में मात्र एक-दो पगडंडियाँ छोड़कर सड़क का निर्माण वर्जित था ताकि वन्यजीव सहजता से विचरण एवं विकास करते हुए पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी तन्त्र का सन्तुलन बनाये रखें।

‘ओरणों’ में जलस्रोतों के साथ-साथ विशालकाय बरगद, इमली, पीपल, आंवला, आम, कैर के वृक्षों एवं झाड़ियों के अलावा सुगंधित जड़ी-बूटियाँ भी बहुतायत में मिलती हैं। घास-चारा की प्रमुख प्रजातियों में बोरडी, खेजडी, देसी बबूल, सजानो, गुगरिया आदि वनस्पतियाँ भी बहुतायत में पाई जाती हैं। ‘विग्ना एकोनिटिफोलिया’, ‘बोथरियो चालोआ पर्टुसा’, ‘क्रिपसिस स्योएनोएड’, ‘डिगिटरिया पेनेटा’, ‘डिगनेथिया हिर्टेला’, ‘ऐलिओनुरस रायलीनस’, ऐनिआपोगस सेंचराइड’, ‘ऐ. ब्रेंचिस्टासियम’, तथा ‘ऐ. सिम्प्रेनस’ भी ओरणों में मिलती है। स्थानीय अज्ञात नामों वाली चराई वनस्पतियों में ‘इरेग्रोसटीला बाइफेरिया’, ‘इ. डाइरिहना’, ‘इरेग्रोस्टिस गेग्गेटिका’, ‘टरगस रोक्सबर्गी’, एवं ‘ट्रिपोगोन जक्वेमोण्टी’ भी ‘ओरणों’ में मिलती हैं।

गौरतलब है कि पश्चिमी राजस्थान के जैसलमेर क्षेत्र की ओरणों के साथ ही लुप्तप्राय इन घास-चारा वनस्पतियों से उत्तम पोषकता का पशु आहार तैयार किया जा सकता है तथा कुछ वनस्पतियों में चमत्कारी औषध-गुण भी विद्यमान हैं। ये ओरणें हरिण, खरगोश, सरीसृप, सेही, गिलहरी, लंगूर, मोर, जंगली बिल्ली, वन्यजीवों सहित काफी तादाद में अनेक पक्षियों का प्राकृतिक आवास हैं। मरुक्षेत्र के गाँवों में अलग-अलग आकार की ओरणें मिलती हैं तथा जल-संसाधन समृद्ध गाँवों की बस कुछेक ‘ओरणें’ तो आज भी विशालकाय प्राकृतिक वनोद्यान का स्वरूप लिये हैं। ‘गोचर’ (ग्रासलैण्ड) एवं जलस्रोत की ‘आगोर’ (कैचमेंट) जैसे दुर्लभ परम्परागत भूखंड भी विशाल ओरणों का हिस्सा रहे हैं। मरुक्षेत्र के सिमटते चारागाह तथा ओरणों के लुप्त होने के कारण पशु संख्या में तेजी से गिरावट के साथ-साथ उन्नत पशु-नस्ल, पर्यावरण एवं स्थानीय अर्थव्यवस्था का ह्रास जारी है।

मरुस्थल में ओरण संस्कृति का विकास ‘आवश्यकता आविष्कार की जननी है’ कहावत के अनुसार हुआ। ‘थार’ जैसी विषम परिस्थितियों से जूझने के लिये अनूठी समझ क्षेत्रीय पर्यावरण सृजन एवं सुधार के रूप में विकसित हुई। जब इसका प्रत्यक्ष लाभ अन्य गाँवों के ग्रामीणों को समझ में आने लगा तो गाँव-गाँव में ‘ओरणों’ का विकास होने लगा। अकाल के दौरान विकसित ‘ओरणों’ वाले ग्रामीणों पर संकट का न होना एवं ओरणविहीन गाँवों में भीषण अकाल से ग्रामीणों के पीड़ित होने के परिणामस्वरूप ग्रामीणों को ओरण की महत्ता समझ में आने लगी। शनैः शनैः मरुक्षेत्र के सभी गाँवों में ‘ओरणों’ की परम्परा-सी चल पड़ी।

शताब्दियों तक मरुक्षेत्र की अर्थव्यवस्था की धुरी रहा गौरवशाली ‘पशुपालन व्यवसाय’ इन ‘ओरणों’ की आधारभूमि पर ही टिका है। आजादी के पश्चात इन ओरणों के विलुप्त होने से क्षेत्र के इस एकमात्र व्यवसाय की कमर टूट गई और गाँवों की आत्मनिर्भरता शनैः शनैः खंडित होती गई। देश के ‘कृषि एवं वन विशेषज्ञों’ तथा ‘नीति निर्माताओं’ की उदासीनता आश्चर्य का विषय है। जबकि ‘मरू विकास’ योजनाओं के नाम पर सरकार अरबों रुपये व्यय कर चुकी है लेकिन फिर भी मरुक्षेत्र की अकाल स्थिति भयावह बनी हुई है।

वर्तमान में गाँव एवं वहाँ की आबादी के अनुपात में अत्यन्त न्यून संख्या में ओरणें बची हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार आबादी वाले जैसलमेर जिले के 38 हजार 401 वर्ग कि.मी. है जिसमे वनक्षेत्र में 45ओरणें वर्तमान में अवस्थित हैं।वन क्षेत्र में 45ओरणों में से कुछेक को छोड़कर अधिकांश दयनीय अवस्था में भूखंडों के अत्यन्त न्यून क्षेत्रफल के रूप में उपेक्षित-सी अवस्थित हैं। राजस्थान मात्र में ही पाई जाने वाली ‘ओरण संस्कृति है।
ताज्जुब की बात है कि राजतन्त्र के उस काल में वर्तमान की तरह सरकार, मीडिया, तीव्र संचार एवं यातायात, तथा भूमंडलीकरण सुविधा कल्पना मात्र भी नहीं थी। फिर भी अकाल के प्रकोप से आज जैसा संकट ओरणों की संस्कृति के कारण गाँवों में कदापि नहीं रहा। प्रजातन्त्र व्यवस्था के अत्याधुनिक युग में इन गौरवशाली ओरणों का लुप्त होना विकसित मानव के मस्तिष्क पर कलंक का टीका है। ओरण आधारित समृद्धि की यह बात तो आजादी से पूर्व एवं पश्चात प्रति व्यक्ति पशु संख्या अनुपात के आँकड़ों से स्पष्ट है। आजादी के पश्चात मरुक्षेत्र की आबादी में तो बेतहाशा वृद्धि हुई लेकिन दुधारु पशुओं की संख्या का अनुपात आठ गुना पिछड़ गया जिसका पुनर्भरण राज्य में विश्व बैंक की मदद से चल रही ‘जलग्रहण विकास परियोजनाओं’ में ओरण एवं चारागाह विकसित करने के जरूरत है। गाँवों की ‘आत्मनिर्भरता’ के प्रेरक ‘सुखद मॉडलों’ में ओरण संस्कृति की बुनियाद ही छुपी है।

आज आवश्यकता इस बात की है कि प्रत्येक गाँव का एक-एक जागरुक व्यक्ति गाँव सेवा के लिये संकल्पित हो। कुछ उत्साही ग्रामीणों को साथ लिये बिना सरकारी सहायता की ओर देखें गाँव की ओरण, गोचर एवं आगोर जैसी परम्परागत भूमि को अतिक्रमणकारियों से प्रेम एवं ग्राम कल्याण प्रोत्साहन भावना पूर्वक समझाइश से छुड़वा कर ओरणों को पुनर्जीवित करने का प्रयास करें। अपने ही गाँव के विकास के प्रति संकल्पित होकर निःस्वार्थ भाव से किये जाने वाले ऐसे लोक कल्याणकारी प्रयासों से शुरू में तो जबर्दस्त विरोध एवं हताशा का सामना करना पड़ेगा लेकिन धैर्य रखने से अन्ततोगत्वा निःसंदेह सफलता मिलेगी। अपने दैनिक जीवन में से मात्र थोड़ा समय नियमित इस क्रम में दिया जाये तो उपेक्षित ओरण एवं स्थानीय ग्रामीण समुदाय के मध्य लाभकारी सन्तुलन स्थापित होते ही गाँव की आत्मनिर्भरता के एकीकृत सुखद परिणाम सभी को नजर आने लगेंगे। ओरण विकास के कार्यों के लिये तकनीकी सहयोग गाँव के ही किसी तकनीकी विशेषज्ञ के सहज लिया जा सकता है।

पिछले कुछ वर्षों से निरन्तर पड़ रहे अकालों से मरुक्षेत्र के पीड़ित बाशिन्दों में ओरण संस्कृति की महत्ता का भान होने लगा है। वैसे सरकार राजस्थान में विशाल क्षेत्रफल वाले अभ्यारण्यों की व्यवस्था पर तो प्रति वर्ष करोड़ों रुपये व्यय कर रही है। फिर भी क्षेत्रीय लोगों को उनकी सुरक्षा के प्रति जवाबदेह नहीं बना सकी है। इसका प्रमाण लम्बे समय से अभ्यारण्यों में वन्य जीवों का अवैध शिकार, वनों की कटाई एवं वनकर्मियों के साथ उनके संघर्षों की दुर्भाग्यशाली घटनाओं से स्पष्ट है। इन स्थितियों के मद्देनजर सर्वप्रथम जैसलमेर में लुप्त हो चुकी एवं दयनीय स्थिति वाली ओरणों के सर्वेक्षण पश्चात समुचित विकास की कार्ययोजना की आवश्यकता है। गाँव-गाँव में उत्साही व्यक्तियों के समूह द्वारा ‘ओरणों’ के नेटवर्क की स्थापना एवं संरक्षण अभ्यारण्यों की तुलना में अधिक उपयुक्त है। ‘ओरणों’ से गाँवों का पर्यावरण सुधरेगा; पशुओं को चारा एवं आश्रय मिलेगा; वर्षा, आँधी एवं तूफान में ओरणों की उर्वरा मिट्टी का ग्रामीणों के खेतों में प्राकृतिक वितरण होगा; भीषण कर्मी में गाँवों का तापमान नमीयुक्त, ठंडा रहेगा तथा वर्षों से सूखी पड़ी नदियों का पौराणिक सदानीरा स्वरूप लौटने के अलावा गाँव की अर्थव्यवस्था की धुरी ‘पशुपालन व्यवसाय’ सुदृढ़ होकर गाँवों को ‘अकाल’ के प्रभाव से निःसंदेह निजात भी दिलायेगा।

ओरण राजस्व दर्ज हो।

 #दावानल सीमावर्ती क्षेत्र में लंबे समय से गर्मी मौसम आते ही जंगलों में प्राकृतिक आग दावानल विकराल रूप से धधक उठती है। ल...
12/05/2023

#दावानल

सीमावर्ती क्षेत्र में लंबे समय से गर्मी मौसम आते ही जंगलों में प्राकृतिक आग दावानल विकराल रूप से धधक उठती है। लेकिन हमने सन 2008 से जिला प्रशासन व जिले जनप्रतिनिधियों लिखित मौखिक में अवगत करवा चुके हैं आज तक कोई सुंध नहीं ली गई । लेकिन हर वर्ष दावानल से हजारों संख्या में पेड़ पौधे जलकर राख हो जाते है हजारों की संख्या में वन्यजीव विचरण करने जलकर भस्म हो गए, नाचना से सुलताना, तेजपाला, बड़डा, नगा, रायमला,रामगढ़ मध्य क्षेत्र में राष्ट्रीय पक्षी मोर हजारों संख्या में विचरण करते है आग की लपेटों में आ रहे है,राज्य पक्षी गौडावंन विचरण विचरण करते क्षेत्र में देखे गए ।
विशेष मांग गत 15 साल से हम लोग करते आ रहे है सीमावर्ती क्षेत्रों में लंबी दूरी होने के कारण अव्यवस्था है 1. दो पंचायत में एक स्थान पर अग्निशमन केंद्र स्थापित हो।
2.फायर ब्रिगेड गाड़ी व्यवस्था की जाएं।
3.केंद्र स्थाई रूप से स्थापित किया जाए ।

11.05.2023
सुल्ताना बड़डा गांवों के मध्य बड़ी चुनौती से आग बुझाने में समय लगा था,ग्रामीण के सहयोग से सफल हुआ।

अपील
लीलू सिंह बड़ा
Deepak Vyas Bhanwar Singh Sadhna Manish Vyas

गांवों की परंपरा त्यौहारों से  एकता प्रतीक बनाकर भाव से जुड़ाव देते है,अक्षय तृतीया की हार्दिक शुभकामनाएं।
23/04/2023

गांवों की परंपरा त्यौहारों से एकता प्रतीक बनाकर भाव से जुड़ाव देते है,अक्षय तृतीया की हार्दिक शुभकामनाएं।

पीढ़ीयों से परंपरा जुड़ा रखने वाले  श्री रबन खां पुत्र श्री चीमे खां मेरासी (मंगनियार) रायमला आज देवलोगमन  का समाचार सुन...
20/04/2023

पीढ़ीयों से परंपरा जुड़ा रखने वाले श्री रबन खां पुत्र श्री चीमे खां मेरासी (मंगनियार) रायमला आज देवलोगमन का समाचार सुनकर दुःख हुआ। पुण्य आत्मा को ईश्वर शांति प्रदान करें।

आपका परिवार राहड़की से पीढ़ीयों की परंपरा से जुड़ा था, (पिता पुत्र की जोड़ी) आपके पिताजी स्व.चीमे खां आप स्वन्य मेले अवसर पर आराध्य देव लोक देवता गौ रक्षक श्री पनराज जी दादा के देव वाणी रूपी #छंद व #सावली का #गायन करते थे, #दादाजी के कृपा से आपको भेंट रूप में आकाशी #चांदी #सिक्का प्राप्ति होती थी।

लोक देवता श्री पनराज जी
Bhanwar Singh sadhna

07/04/2023

मेरे जन्मदिन के अवसर पर बधाई प्रेषित करने वाले सब बंधुजनों का दिल की गहराइयों से आभार व्यक्त करता हूं युही स्नेह,अपनापन भाव बना रहे है। जय श्री पनराज जी

मेरे राहड़की परिवार  प्रखर व्यकित्व के  शख्सियत आदरणीय गेमर सिंह जी राहड तेजपाला का इस अल्प आयु में स्वर्गवास का समाचार ...
04/01/2023

मेरे राहड़की परिवार प्रखर व्यकित्व के शख्सियत आदरणीय गेमर सिंह जी राहड तेजपाला का इस अल्प आयु में स्वर्गवास का समाचार ह्रदय विदारक करने वाला है। आपका जाना हम सब के लिए मेरे,राहड़की परिवार व समाज के लिए अपूरणीय क्षति है।
मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि दिवगंत आत्मा को श्रीचरणो में स्थान देवे व इस दुःख की घड़ी में परिजनों को वज्रपात सहन करने की शक्ति प्रदान करे।
ान्ति

देश की महान शख्सियत,पूर्व वित्त, विदेश, रक्षा मंत्रालय की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वहन, जिनकी सूझबूझ और व्यक्तित्व क...
03/01/2023

देश की महान शख्सियत,पूर्व वित्त, विदेश, रक्षा मंत्रालय की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का निर्वहन,
जिनकी सूझबूझ और व्यक्तित्व का हर कोई कायल रहा, राजनीतिक सफ़र सदैव बेदाग रख इस मरुभूमि को गौरवान्वित किया।
जयंती पर सादर श्रद्धांजलि अर्पित।
नमन ।
Manvendra Singh Jasol

Bhanwar Singh Sadhna Bhanwar Singh sadhna

मेरे भारतवर्ष में अंग्रेजी हुकुमत की आजादी मिलने के बाद, अंग्रेजी वर्ष की मानने की होड़ लगी हुई।  #आज हम सभी नया साल आजा...
01/01/2023

मेरे भारतवर्ष में अंग्रेजी हुकुमत की आजादी मिलने के बाद, अंग्रेजी वर्ष की मानने की होड़ लगी हुई।
#आज हम सभी नया साल आजादी से खुशी से मना रहे हैं ,यह सब जुंझारों के लहू से इतिहास ने रचा,जो सेनापति सामंत जागीरदार #लोक #देवता वीर श्री #पनराज जी, छत्र पति श्री #आलाजी वीर श्री #दूदा जी,श्री #तिलोकी जी जैसे महान पुर्वजों की देन हैं जिन्होंने यह आज पर्यटक स्थल बने, गढ़ हवेलियां धरा को अपने प्राणों की आहुति देकर शीश देकर अक्षुण्ण रखा।
हमें ऐसे शूरवीरों के त्याग बलिदान को भूलना नही।

जैसलमेर रियासत के पूर्व महारावल स्व. श्री बृजराज सिंह जी की द्वितीय पुण्यतिथि पर सादर नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !!
28/12/2022

जैसलमेर रियासत के पूर्व महारावल स्व. श्री बृजराज सिंह जी की द्वितीय पुण्यतिथि पर सादर नमन एवं विनम्र श्रद्धांजलि !!

सिक्किम में जैसलमेर जिले से जोगा गांव निवांसी आदरणीय सूबेदार गुमानसिंह सोलंकी की शहादत पर शत शत नमन।
24/12/2022

सिक्किम में जैसलमेर जिले से जोगा गांव निवांसी आदरणीय सूबेदार गुमानसिंह सोलंकी की शहादत पर शत शत नमन।

 ैसाण जैसलमेर के महारावल श्री Chaitanya Raj Singh जी के जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।
24/12/2022

ैसाण
जैसलमेर के महारावल श्री Chaitanya Raj Singh जी के जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।

निः शब्द । हे भगवान हंसते खेलते परिवारों को  किस जन्म की सजा दी। राज्य सरकार मानवीय संवेदना को ध्यान में रखकर इस त्रासदी...
13/12/2022

निः शब्द । हे भगवान हंसते खेलते परिवारों को किस जन्म की सजा दी।
राज्य सरकार मानवीय संवेदना को ध्यान में रखकर इस त्रासदी पीड़ितों के लिए विशेष पैकेज की घोषणा करें। सभी दान दाताओ से निवेदन है कि आगे आकर इसमे मदद करें।

अनुशासन की प्रतिमूर्ति, द्रोणाचार्य व सबके अभिभावक पूर्व शारीरिक शिक्षक स्व.श्री धौंकलसिंह जी को नमन।
12/12/2022

अनुशासन की प्रतिमूर्ति, द्रोणाचार्य व सबके अभिभावक पूर्व शारीरिक शिक्षक स्व.श्री धौंकलसिंह जी को नमन।

10/12/2022

आओ मिलकर पर्यावरण संरक्षण करें,देव कार्य के सारथी बनकर जैसान की ओरण गोचर भूमि बचाएं।
एक #संकल्प एक #धैर्य एक #मुद्दा
लोक देवता गौ रक्षक वीर श्री पनराज जी
#यतो #धर्म: #ततो #जय

09/12/2022

ाओ_यात्रा

यह कोई यात्रा नही है यह #जंग_है हमारी ... हमारी #जमीन के लिए ... हमारे #जंगल के लिए और हमारे #जल के लिए ... जिसका कुछ लोग सरकारी सह में विनाश करने पर तुले है ... हम भारत के पढ़े लिखे युवा नेताओं से ज्यादा #देश की चिंता करते है और समझते है कि देश क्या होता है ... पांच - पांच साल वाली #राजनीती हमें नही आती ... हमारा तो जीवन ही देश के लिए है चाहे वो सौ साल का हो या सोलह साल का ... किसी न किसी पार्टी को हम भी फॉलो करते होंगे ... किसी नेता को हम भी लाइक करते होंगे लेकिन हमारे लिए सबसे पहले देश है ... जो कई राज्यों में जिलों में और गांवों में बंटा है लेकिन एक है ... हमारा #जैसाण भी इसी देश के एक राज्य का छोटा सा जिला है ... जिसके #जंगल कहे या #ओरण देश की ही #प्राकृतिक_संपदा_है ... जैसाण की प्राकृतिक संपदा है ... जिस पर जैसाण का जीवन निर्भर है ... सीधे तौर पर जैसाण का #बहुसंख्यक_पशुपालक वर्ग इन्ही ओरणों पर निर्भर है ... हमारे लिए पशुपालन किसी #रोजगार से कम नही है या यु कहे की जैसाण के ओरण जैसाण की पशुपालन इंड्रस्टीज चलाने में सहायक है ... लेकिन सत्ता में बैठे चंद लोग अपने रोजगार के लिए आम जन का रोजगार छीनने में आमादा है ... सरकारें चुनी जाती है जनता के लिए लेकिन ऐसा लगता है कि यह केवल दिखावा है क्योंकि सरकारों के कर्म केवल नेताओं के नफे के लिए है ... पांच साल तुम खाओ हम चुप रहते है पांच साल हम खाएंगे तुम चुप रहना ... चुनाव कौन से सरकार की रिपोर्ट कार्ड पर होते है कि उन्होंने पांच साल क्या किया ... वोट तो नाम पे पड़ते है दाम पे पड़ते है ... जाति पर पड़ते है धर्म पर पड़ते है ... नेता पर पड़ते है पार्टी पर पड़ते है ... लेकिन अब ऐसा नही होगा ... वोट केवल काम पर पड़ेंगे ... देश जाग रहा है देश का युवा जाग रहा है ... और जो नही जागते उनके क्या हालात होते उससे हम सभी वाकिफ है ... अभी भी समय है जागो और अपने स्वर्ग से सुंदर जैसाण के लिए आगे आओ ... अनमोल ओरणों के लिए लड़ो ... हमारी लड़ाई जारी है और रहेगी केवल आपके सहयोग की बारी है ... युवा हो तो युवा दिखो और जिन्दा हो तो जिन्दा लगो ... खुली आंखों से विनाश मुर्दा ही देख सकते है जिन्दा नही ... #पर्यावरण है तो ही #जीवन है #प्रकृति है तो ही #पृथ्वी है ... जैसाण के ओरण मात्र पशुपालकों को ही जीवन नही देते हम सभी के जीवन में भी सहयोगी है जैसे पृथ्वी के अन्य जंगल सहयोगी है ... यहाँ के विशाल और सघन वन #वर्षा भी लाते है और हमें #ऑक्सीजन भी देते है ... जैसाण में वर्षा का क्या महत्व है यह कोई जैसाण वाशी ही जान सकता है ... तो सोचो यह ओरण और इनके वन हमारे लिए जैसाण के लिए कितने जरुरी है ... इन्ही ओरणों की सूखी लकड़ी से गरीब के घर का चूल्हा जलता है ... लेकिन गरीब की सुनने वाला कोई नही है ... ओरण बेजुबान #वन्यजीवों की शरणस्थली है उनकी पालक है ... इन्ही ओरणों के सघन वन पृथ्वी की गर्मी को भी नियंत्रित करने में सहयोगी है ... ओरण बचेंगे तो इनमें बहने वाले #नदी - #नाले भी बचेंगे ... #झीलें - #तालाब और #कुएं भी बचेंगे ... जल है तो कल है ... #वैज्ञानिक_दृष्टिकोण से देखे तो इन ओरणों और जंगलों पर ही पृथ्वी का जीवन चक्र टिका है ... जंगल नही तो जीवन नही ... जीवन विहीन पृथ्वी मात्र पत्थर के सामान है ... टीम ओरण जैसाण के ओरणों के #संरक्षण के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रही है जो सदैव जारी है और आगे भी जारी रहेगा ... हमारी िलोमीटर की यह ओरण बचाओ यात्रा इसी संघर्ष की एक कड़ी है ... जिसमें जुड़ने का टीम ओरण जैसाण के हर आम और खास से आह्वान करती है ... 225 किलोमीटर के सफर में जो भी गांव आएंगे हमारा प्रयास होगा उन्हें ओरणों के प्रति #जागरूक करें और ओरणों की आवाज बुलंद करें ... जिससे की ओरण बचे ... जैसाण बचे और ओरण आधारितों का जीवन बचे ... सभी से साथियों से एक ही निवेदन है ... यात्रा में सहयोगी बनें ... यात्रा को सफल बनावे ...

आओ साथ चले - जैसाण के लिए लड़े ...

जय हिंद
जय जैसाण

#टीम_ओरण

08/12/2022
राहड़की परिवार मुखिया सत्यता के मार्ग पर अडिग ,हमेशा मार्गदर्शन करते थे,आदरणीय दाताश्री  ठाकुर स्व. चुहड़ सिंह राहड नगों...
21/11/2022

राहड़की परिवार मुखिया सत्यता के मार्ग पर अडिग ,हमेशा मार्गदर्शन करते थे,आदरणीय दाताश्री ठाकुर स्व. चुहड़ सिंह राहड नगों की ढाणी 7वीं पुण्यतिथि पर सादर श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।

जैसलमेर शहर के प्रथम नागरिक (नगर परिषद सभापति) श्री हरिवल्लभ कल्ला (गुड्डू भा ) को जन्म दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामन...
12/11/2022

जैसलमेर शहर के प्रथम नागरिक (नगर परिषद सभापति) श्री हरिवल्लभ कल्ला (गुड्डू भा ) को जन्म दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं प्रेषित करते है।

 #मध्यप्रदेश_में_भाटियों_के_गांव_एवं_ठिकाणे ..... #भाटियों के  #वंश एवं  #इतिहास के विषय में अभी बहुत कम काम हुआ है ... ...
27/10/2022

#मध्यप्रदेश_में_भाटियों_के_गांव_एवं_ठिकाणे .....

#भाटियों के #वंश एवं #इतिहास के विषय में अभी बहुत कम काम हुआ है ... जितना भी हुआ है और जिन लोगों ने किया है वे #धन्यवाद के पात्र है ... लेकिन अब भी बहुत कुछ बाकी है ... इसके कई कारण है ... भाटियों की प्रमुख रियासत जैसलमेर सदैव संघर्षों में रही और जहाँ संघर्ष होता है वहाँ दूसरी बातों पर कम गोर किया जाता है ... आजादी के बाद जैसलमेर रियासत सीमाव्रती जिला बन गई और जो अंतिम छोर पर होता है उसकी सुध कम ही ली जाती है ... इसलिए सड़क और शिक्षा हमारे यहाँ बहुत देरी से आए ... आगे बढ़ने में सड़क और शिक्षा दोनों ही महत्वपूर्ण पायदान है ... मूलभूत सुविधाओं के अभाव के कारण हम उन्ही से जुंझते रहें उससे आगे कुछ कर पाना हमारा लिए सम्भव नही था ... लेकिन संसाधनों एवं मूलभूत सुविधाओं के अभाव में भी कुछ लोगों ने प्रयास अवश्य किए जो मेरे जैसे नए प्रयास कर्ताओं के लिए नींव के पत्थर बनें ... उसी नींव पर मैंने नए प्रयास किए ... उन्ही प्रयासों में मैं सदैव भाटियों और जैसाण पर कुछ न कुछ लिखता रहता हूँ और आप सभी के साथ सांझा भी करता हूँ ... मैं #नारायण_दासोत_भाटी हूँ तो मैंने मेरी नारायण दासोत भाटी शाखा का वंश व्रक्ष भी बनाया ... जो नारायण दासोत भाटियों के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ ... उसी प्रयास को आगे बढ़ा में मध्यप्रदेश में रहने वाले भाटियों का #वंश_परिचय एवं #इतिहास तैयार कर रहा हूँ ... भाटी वहाँ कैसे गए ... क्यों गए ... कब गए ... अब उनके गांव व ठिकाणे कितने है ... वे उन्होंने कैसे हासिल किए एवं कौन कौन सी शाखा के भाटी मध्यप्रदेश में है ... मरुप्रदेश से मध्यप्रदेश तक के सफर का #संघर्ष जो उन्होंने #साहस और #हौसले से तय किया ... एक अनुपम अध्याय है मध्यप्रदेश के भाटियों की इस यात्रा का जिसे अन्य सभी भाटियों को समझना होगा और जनाना भी ... इस लिए ही में पिछले लंबे समय से इस कार्य में लगा हुआ हूँ जिस में असंख्य सहयोगी रहें ... भाटी इतिहास की #किताबें ... भाटियों और जैसाण के इतिहास के विषय में जानकारी रखने वाले #इतिहासकार एवं #जानकार ... क्षेत्र के #बड़े_बुजुर्ग ... मध्यप्रदेश के बहुत से #भाटी_भाइयों के साथ - साथ विशेषकर भाटी वंश के #राव_जी लोगों का भी बहुत सहयोग रहा ... जल्द ही मेरा मध्यप्रदेश के भाटियों से मिल उन से भी कुछ जानने और समझने का प्रयास है ... लेकिन फिर भी कुछ छूट सकता है मध्यप्रदेश बहुत बड़ा है और भाटी वंश बहुत पुराना इस कारण यह पता कर पाना की हमारे भाई मध्यप्रदेश में कहा कहा बैठे है मुश्किल है ... कुछ हद तक यह मुश्किल सोशल मीडिया दूर कर सकती है और कि भी है ... क्योंकि इस प्रयास में पहले भी फ़ेसबुक और वाट्सएप पर जुड़े भाटी एवं अन्य राजपूत भाइयों का मुझे जनाकारी जुटाने में अमूल्य सहयोग मिला है ... उसी सहयोग की अब भी आशा है ... जितनी जानकारी मेरे पास है उस मोटा मोटी जानकारी को आपको के साथ सांझा कर रहा हूँ ... उसके अलावा भी किसी बन्धु के पास मध्यप्रदेश के भाटियों से सम्बंधित कोई भी जानकारी हो तो अवश्य सांझा करें ...

#समेचा_भाटी
लाहौर के राजा बालबन्ध के पुत्र एवं राजा भाटी के छोटे भाई समा के वंशज समेचा भाटी कहलाए ...जिनके मध्यप्रदेश में सिद्धिगंज, रामपुरा कला, बिलपान जागीर, कुंडिया धागा, और धूराडा कला पांच बड़े गांव सीहोर जिले में है ... इन्ही गांवों से निकल बहुत से समेचा भाटी आस पास के 20 - 25 गांवों में रहते है ...

#गोगली_भाटी
मारोठ के राव मंझमराव के पुत्र गोगली के वंशज गोगली भाटी कहलाए ... मध्यप्रदेश में सीहोर जिले के नीलकंठ गांव में रहते है ...

#बानर_भाटी
जैसलमेर के रावल शालिवाहन के पुत्र बानर के वंशज बानर भाटी कहलाए ... जिनके मध्यप्रदेश में खिमलासा और बसारी दो बड़े गांव सागर जिले में है और साथ ही इनके 24 गांव आस पास में है ...

#मोकल_भाटी
जैसलमेर के रावल शालिवाहन के पुत्र मोकल के वंशज मोकल भाटी कहलाए ... जिनके मध्यप्रदेश में सोठिया, धनकोट, राला, छितगांव मोजी, बावचा, खिरकीया, ससली, सीगांव, बीजला, खरसानिया, तिलाडिया, बरखेड़ा, मालीबायां, भागियां, दमाड़िया, हरसूल, अमलाडा, आगरा, टेमला, मुडियाखेड़ी, वासनिया, पीपरबेर, नंदगांव, चींच, सुल्तानिया, बेरवास ... जिनमें अधिकतर गांव सीहोर, होशंगाबाद जिले में है और कुछ गांव देवास, राजगढ़ और गुना जिले में है ...

#जैचंद_भाटी
जैसलमेर के रावल कालण के पुत्र जैचंद के वंशज जैचंद भाटी कहलाए ... जिनके मध्यप्रदेश में रहवारी और लहारा दो गांव है जो भिंड जिले में है ...

#उर्जनोत_भाटी
जैसलमेर के रावल मूलराज के देवराज और देवराज के हमीरदे और हमीरदे के छत्रसाल और छत्रसाल के पुत्र अर्जुन के वंशज उर्जनोत भाटी कहलाए ... जिनके मध्यप्रदेश में मलेंडिया, देवासिया और कोटड़ी मण्डा गांव है जो देवास और मंदसौर जिले में है ...

#केलण_भाटी
जैसलमेर के रावल केहर के पुत्र केलण के वंशज केलण भाटी कहलाए ... जिनके मध्यप्रदेश के मंदसौर जिले में लसूड़िया, धतुरिया, हलदुनि, खजूरी नाग, सताखेड़ी के साथ साथ कुल 10 - बारह गांव है ...

#जैसा_भाटी
रावल केहर के पुत्र थे कलकरण और कलकरण के पुत्र थे जैसा ... जैसा के ही वंशज जैसा भाटी कहलाए ... जिनके मध्यप्रदेश में रणवा, गाजीखेड़ी, चितोड़ा, बरामदखेड़ा, टोकरा, मकानी, कुआझघर, तिलगारा, बडोदिया, लसूड़िया चुवड, पारलिया, मुंडला सुलेमान, नापाखेड़ी, हत्याखेड़ी, मसवाडीया, पलदुना, लखेसरा, जालमपुरा, नगरा, बड़गावा, रोहलखुर्द, घोडावन, राजाखेड़ी, अचेरा, दलौदा रेल, पिठौरा, कंकराज, नेगदडा, गुरला, सतकुई, अजडावदा, पदुनिया खेता के साथ साथ और भी कुछ गांव है ... जो मंदसौर, रतलाम, उज्जैन जिले में है ...

#मालदेवोत_भाटी
जैसलमेर के रावल लूणकरण के पुत्र रावल मालदेव औऱ रावल मालदेव के पुत्र खेतसी औऱ खेतसी के पुत्र ईसरदास और ईसरदास के पुत्र द्वारकादास ... द्वारकादास के वंशज मालदेवोत भाटी कहलाए ... जिनके मध्यप्रदेश के उज्जैन जिले में कोयलखेड़ी , नानुखेड़ी, बिरमखेड़ी, चुरलाई और सलामता के साथ औऱ भी कुछ गांव है ...

#बिहारिदासोत_भाटी
जैसलमेर के रावल मालदेव के पुत्र खेतसी और खेतसी के पुत्र दयालदास और दयालदास के पुत्र बिहारीदास ... बिहारीदास के वंशज ही बिहारिदसोत भाटी कहलाए ... जनका मध्यप्रदेश में कडोला राघव गांव जिला हरदा में है ...

#रावलोत_भाटी
जैसलमेर के रावल सबल सिंह के वंशज रावलोत भाटी कहलाए ... जिनके मध्यप्रदेश में हिनोती , फुलखेड़ी , हताई खेड़ी, बरखेड़ा, बसई, लादुना, कुचारखेड़ी, भालोट, टोलखेड़ी, भाटी बडोडिया आदि गांव है जो मंदसौर, रतलाम और राजगढ़ जिले में है ...

इन शाखाओं के अलावा और शाखाओं के भाटी भी मध्यप्रदेश में हो सकते है लेकिन अभी तक उन की #जानकारी मिल नही पाई है ... मैं मेरे सहयोगीयों के साथ प्रयास कर ही रहा हूँ ... आप सभी #सोशल_मीडिया_साथियों से भी सहयोग की उम्मीद है जिससे सही जानकारी जुटे और कार्य आसान हो ... भाटी वंश एवं इतिहास पर हमारा यह प्रयास सतत जारी है ... जैसे ही मध्यप्रदेश का कार्य पूर्ण होगा हम किसी नए क्षेत्र में प्रयास शुरू करेंगे ... आइए भाटियों के संघर्ष - साहस और सफलता को जाने ...

जय हिंद
जय जैसाण

भोपाल सिंह झलोड़ा
9461993066

रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चुकाऊंला,ओ सीस पड़ै पण पाघ नही दिल्ली रो मान झुकाऊंला,पीथळ के खिमता बादल रीजो रोकै सूर उगा...
20/10/2022

रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चुकाऊंला,
ओ सीस पड़ै पण पाघ नही दिल्ली रो मान झुकाऊंला,

पीथळ के खिमता बादल री
जो रोकै सूर उगाळी नै,

सिंघां री हाथळ सह लेवै
बा कूख मिली कद स्याळी नै?

धरती रो पाणी पिवै इसी
चातग री चूंच बणी कोनी,

कूकर री जूणां जिवै इसी
हाथी री बात सुणी कोनी,

आं हाथां में तलवार थकां
कुण रांड़ कवै है रजपूती?

म्यानां रै बदळै बैर्यां री
छात्याँ में रैवैली सूती,

माड़ धरा धधकतो अंगारो आंध्यां में चमचम चमकै लो,
कड़खै री उठती तानां पर पग पग पर खांडो खड़कैलो,

राखो थे मूंछ्याँ ऐंठ्योड़ी
लोही री नदी बहा द्यूंला,

हूँ अथक लडूंला बादशाह स्यूँ
उजड्यो जैसान बसा द्यूंला,

जद महारावल रो संदेश गयो पीथळ री छाती दूणी ही,
जैसान सूरज चमकै हो खिलजी री दुनियां सूनी ही।

जय मां स्वांगिया ।।
लोक देवता गौ रक्षक वीर श्री पनराज जी ।।
जय जैसान

मार्गदर्शक बड़े भाई श्री Bhanwar Singh sadhna  को जन्मदिन की बधाई हो,सदा मां स्वांगिया जी,लोक देवता गौरक्षक वीर श्री पनर...
18/10/2022

मार्गदर्शक बड़े भाई श्री Bhanwar Singh sadhna को जन्मदिन की बधाई हो,सदा मां स्वांगिया जी,लोक देवता गौरक्षक वीर श्री पनराज जी आशीर्वाद रहे ।

11/10/2022

लोक देवता गौ रक्षक वीर श्री पनराज जी जयंती समारोह में सभापति के द्वार किसी समाज विशेष पर कोई टिप्पणी नहीं की गई है और रही बात भाव व समर्पण की तो देवता किसी जाति व समाज विशेष के नहीं होते और उक्त स्थान पट्टा किसी व्यक्ति या समाज को नहीं लोकदेवता व गौ रक्षक श्री पनराज जी को निमित है इस पर आपसी सौहार्द व सामाजिक ताना बाना जो सदियों से चलता रहा उसको ध्यान में रखते हुए सर्व समाज बंधुओ व धर्म प्रेमियों से भावपूर्ण विनती है पावन कार्य में सहयोगी बने सभापति महोदय का साधुवाद जो पावन कार्य हेतु पहल की जय स्वांगियां जी जय श्री पनराज जी

09/10/2022

#श्री_पनराज_जी_जुंझार ...

जिन्हें आज #हिन्द ही नही #सिंध में भी लोग पूजते है और ऐसा सौभाग्य कम लोगों को ही मिलता है ... एक #पनराज_जी और दूसरे #आला_जी_जुंझार आप दोनों #जैसाण के ऐसे #जबरें_जुंझार हुए जिन्हें हिन्द और सिंध दोनों धराओं पर पूजा जाता है ... जैसाण धरा के दोनों ही सपूत #माँ_आवड़ के अनन्य भक्त थे ... आप जो भी प्रयास करते माँ आवड़ उसे सफल करती ... बेटों का माँ पर पूर्ण विश्वास और माँ का बेटों को अद्भुत सहयोग ... कहते है दोनों सर कटने के बाद मीलों तक शत्रु से लड़ते रहें ... भला कोई मृत व्यक्ति लड़ सकता है ... लड़ सकता है लेकिन जब उसके साथ उसका ईश्वर हो ... जिसके लिए वही सब कुछ हो और जिसे उस ईश्वर पर पूर्ण विश्वास हो ... पत्थर कभी पानी पर तैर सकते है लेकिन वे भी तेरे क्योंकि कुछ लोगों को अपने पर विश्वास था ... अपने ईश्वर पर विश्वास था और वे पत्थर तेरे ... इसी विश्वास के बूते पनराज जी #घड़सी_जी के दल के साथ #दिल्ली गए ... वहाँ घड़सी जी के दल ने वे कारनामे कर दिखाए जो बड़े बड़े #राजराजेश्वरों के बस की नही थी ... और असम्भव सा लगने वाला काम कर दिखाया ... वे दिल्ली से जैसाण का पट्टा ले आए ... दिल्ली की नीयत बदल गई ... लेकिन किसी की भी हिम्मत नही हुई उनसे जैसाण छीनने की ... जितने बरस घड़सी जी ने राज किया पनराज जी एक #रक्षक की तरह #सूली_डूंगर सुरक्षा चौकी पर सदैव तैनात रहें ... #रज और #राज से ऐसा प्रेम विरलों को ही होता है ... पनराज जी वही विरले थे ... और जब समय ने #गौ #ब्राह्मण और #गरीब की रक्षा में उनका #बलिदान मांगा तो जैसाण के इस वीर सपूत ने हंसते हंसते अपना बलिदान दे दिया ... साहब हर कोई पनराज नही बन सकता उसके लिए पनराज बन जीना पड़ता है औऱ पनराज बन मरना पड़ता है ...

जय जय जैसाण

समय निकालें औऱ जयंती कार्यक्रम में अवश्य पधारें ...

भोपाल सिंह झलोड़ा
9461993066

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345001

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