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सांप को दूध पिला रहे थे....Mame Khan जो इन्हें सपोर्ट करके आगे बढ़ा रहे थे... उसी मेवाड़ी पगड़ी की बेज्जती की हैLakshyar...
01/10/2021

सांप को दूध पिला रहे थे....
Mame Khan

जो इन्हें सपोर्ट करके आगे बढ़ा रहे थे... उसी मेवाड़ी पगड़ी की बेज्जती की है
Lakshyaraj Singh Mewar
खीमो काको न्यूज़
Sam Sand Dunes, Jaisalmer
बड़े बड़े फिल्मी घराने तो कई वर्षों से हमारी प्रतिष्ठा को धूमिल करने में जी जान से लगे हुए है ही पर अब हम जिनको पीढ़ियों से पालते आ रहे है जिनका सरंक्षण कर रहे है उनमें से भी कुछ ऐसे #कुकरमुते उग आये है जो वही काम करना चाहते है साथ ही साथ खुद की पूरी कम्युनिटी को भी बदनाम करते है।

"गो री मौत आवे जदे भीलों रे घरे रे भाठा बावे"

केवल राजपूतों को बदनाम करने के सिवा आपके पास और कोई थीम थी ही नही क्या।

तेरे तो पेट में आज भी हमारे ही घर का नमक पड़ा है फिर इतना हरामीपना कंहा से लाते हो।

इन महाशय की भी जब बॉलीवुड के लोगो से कुछ नजदीकियां बढ़ी तो हवा लगी और पता चला कि राजपूतों की बदनामी में ही टीआरपी है।

खूब काम पड़ा है आप लोगो के लिए आपके जजमान भी आपको सपोर्ट कर रहे है बरसो से आप काम करते आ रहे हो किसिने टोका क्या आजतक आपको।

अभी बीच मे बच्ची की शादी थी आपके जजमान वंहा 2-3 दिन तक तुझे अपना मानकर लगातार पैरों पर खड़े रहे और उसके उपरांत आप जैसे लोगो की ये करतूतें धिक्कार है तुमको शर्म आनी चाहिए।

मैं सतो के भाइयों से कहना चाहूंगा कि समय रहते आप इस महान आर्टिस्ट के कुछ नकेल कस लो।

इस गाने में इसने एक राजपूत घराने की लड़की को अपनी प्रेमिका बताया है।
विरोध होना चाहिए और जबरदस्त होना।
https://youtu.be/9veL6ZXspi8

Mahipal Singh ji k***a

13/09/2021

Ravindra Singh Bhati

12/09/2021

जयपुर कूच
छात्र क्रांति
Ravindra Singh Bhati
RAVINDRA SINGH BHATI 💪💪💪💪💪🤘🤘🤘🤘🤘
Ravindra Singh Bhati jnvu
Ravindra singh jnvu jodhpur अध्यक्ष रविन्द्र सिंह भाटी
Ravindra Singh JNVU Jodhpur
अध्यक्ष रविन्द्र सिंह भाटी Ravindra Singh Bhati Jnvu

12/09/2021

खीमो काको न्यूज़
🔥🔥🔥

12/08/2021

*शीश* कर खग को समर्पित
नभ को चली *क्षत्राणियां*
*केसरी* श्रृंगार कर
*रण* को रणबंके सजे!!1!!

*रक्त* से रंगे थे हाथ
जिन से थे वे पले बड़े
*दिल्ली* थी आज दोगली
*मरण मंगल* से रखी माँ ने लाज!!2!!

दुर्ग सा मजबूत *दुर्गा*
*हिमालय* सा ह्रदय जिसका
देह पावन *गंग* जैसी
*प्रण* था जिसे प्राणों से प्यारा!!3!!

थी *लड़ाई* मान की
*अजीत* के जान की
*धरा* के सम्मान की
राठौड़ो के *स्वाभिमान* की!!4!!

दिल्ली का था दिल *दहलता*
दहाड़ से *दुर्गेश* की
रक्त से खेली थी *होली*
लाज रखने *पचरंगे* की!!5!!

*गगन* गुंजा
धरा *दहली*
*ओरंग* का अभिमान टूटा
*मरुधर* नरेश दिल्ली से छुटा!!6!!

*जय जय दुर्गादास* महान
तूने रखी *मरुधरा* की आन
*हिन्द* धरा की तू ही शान
जय जय *दुर्गादास* महान
जय जय दुर्गादास *महान*!!7!!

कल 13 अगस्त को *वीरवर दुर्गादास जी का जयंती पर्व है* ... जिन्हें मैंने मेरे शब्दों से सच्ची श्रधांजलि देने का साहस किया है ... हम चाहे तो उनके जीवन के एक एक पहलू पर असंख्य काव्यों की रचना कर सकते है ... फिर भी उस *बलिदानी* के बलिदान का कोई न कोई अध्याय अवश्य ही छूट जाएगा ... मैंने उनके जीवन के उस कठिन समय का चित्रण मेरी कविता के माध्यम से करने का प्रयास किया है ... जब जोधपुर के *महाराजा जसवंत सिंह जी* स्वर्ग सिधार गए और उनका रानीवाश अफगानिस्तान से जोधपुर लौट रहा था तब दिल्ली के बादशाह *औरंगजेब* ने उन्हें जोधपुर जाने से रोक दिया और दिल्ली बुलवा लिया ... राठौड़ी सेना दिल्ली के षड्यंत्र को समझ चुकी थी लेकिन दिल्ली ने जोधपुर भी अपनी सेना भेज पूरा बंदोबस्त कर रखा था ... मजबूरन जोधपुर के राजपरिवार को दिल्ली जाना पड़ा ... औरंगजेब जसवंत सिंह जी के उत्तराधिकारी *अजित सिंह* पर गलत दृष्टि रखता था ... *मारवाड़* पर तो उसकी कुदृष्टि थी है अब जसवंत सिंह जी के न होने और बाल उत्तराधिकारी के होने का वो पूर्ण लाभ लेना चाहता था ... षडयंत्र की बू दिन ब दिन दिल्ली की हवाओं में फेल रही थी ... जो राठौड़ी दल को बेचैन कर रही थी ... राज ने राठौड़ी सेना को भी अपने घरों को लौट जाने का आदेश दे दिया था ... लेकिन मारवाड़ के विश्वस्त लोग राज का रुख जान गए थे ... दुर्गादास के नेतृत्व में एक दल दिल्ली में ही राजपरिवार की सुरक्षा के लिए रुका रहा ... एक दल दिल्ली के आस पास के गांवों में बिखर गया जिसे संकट काल में सहायता के लिए बुलाया जा सकें ... और बाकी के साथियों को विदा किया और जोधपुर पर लगे राज के थाने की खबर रखने को कहा गया ... राज के षड्यंत्र का शिकंजा धीरे धीरे कसता जा रहा था ... आखिर वो दिन आ ही गया जिस दिन का *राठौड़ी तलवारों* को इंतजार था ... जसवंत सिंह जी की हवेली को राज के सैनिकों ने घेर लिया औऱ अजित सिंह को उन्हें सौपने का फरमान सुनाया ... राठौड़ी रणबंके शत्रु का सर कुचलना भलीभांति जानते थे ... लेकिन युद्ध का परिणाम ईश्वर ही जानता है उन्हें यही चिंता थी कि अगर परिणाम अकुशल रहा तो रानीवाश का क्या होगा ... बाहर शत्रु की ललकार और भीतर रजपूती म्यान में देख रानीवाश भी समझ गया कि वीरों के पथ की बाधा कौन है ... *जौहर* के संसाधनों की कमी ने उन वीरांगनाओं के हौसले कमजोर नही किए बल्कि और बढ़ा दिए ... शत्रु के हाथ लज्जित हो मरने से बेहतर उन्हें अपनों की तलवारों से मरना स्वर्गगमन जैसा लगा ... *माताओं* ने निज धरा के भाल को ऊंचाईयां देने शीश वीरों की खडग के आगे अर्पण कर दिए ... सुरों का प्रसव सुख भोगने वाली माताएं किसी शूरवीर से कम नही होती ... ईश्वर आज इम्तहान ले रहा था रजपूती का जिसमें माँ और बेटे दोनों अव्वल थे ... चाहे हमारी धरा नही रही लेकिन धरा के ध्वज इन्हीं बलिदानों के बूते हवा में सदैव लहराते रहें ... शमशीरों में इतना साहस कहा जो *क्षत्राणियों* के शीश उतार सकें ... माताओं ने स्वयं पुत्रों का हाथ पकड़ अपने शीश *मातृभूमि* के चरणों में अर्पित कर दीए ... रक्त से रंगे हाथ तन में *ज्वाला* जगा रहें थे ... मातृ ऋण से उऋण होने का प्रण पिला रहें थे ... हवेली का द्वारा खोल वीर *सिंघों* की भांति अरी दल पर टूट पड़े ... *माँ दुर्गा* का जय जय कार सुन शत्रु के सीने बैठ रहें थे ... बिजली सी चमकती शमशीरों ने शत्रु दल के थे *मुंड* उतार लिए ... कुछ भागे कुछ मर छुटे ... मारवाड़ का रास्ता साफ हुआ और राठौड़ी सेना ने हवेली को आग के हवाले कर जोधाणे का रुख किया ... औरंगजेब के मंसूबों पर पानी फिर गया ... दुर्गादास के नेतृत्व में राठौड़ी सेना ने वो कर दिखाया जिसका किसी को अंदाजा भी नही था ... हमारे भी कुछ भाई काम आए ... माताओं ने अपना बलिदान दिया लेकिन रजपूती झुकी नही लड़ी ... और ये लड़ाई सालों चली अंत में दिल्ली झुकी और मारवाड़ पर पचरंगा लहराया ... ये तमाम घटनाएं एक लंबे काल खंड में घटित हुई ... मैंने दिल्ली में हुए राठौड़ी सेना और राज की सेना के संग्राम और माताओं के बलिदान को काव्य के द्वारा व्यक्त करने का प्रयास किया है ... माँ भगवती ने अवसर दिया तो आगे और प्रयास होगा कई काव्य निकलेंगे ... धरा के बलिदानियों को नमन कर में मेरी बात को यही विराम देता हूँ ...

धन्यवाद देना चाहूंगा भाई *प्रभु सिंह इन्दा बालेसर* को जिन्होंने सदैव की भांति आज भी मेरे बिखरे शब्दों को अपनी अमूल्य आवाज दे और वीडियों बना जो सहयोग किया है उसके लिए में आपका ह्रदय से आभारी हूँ ...

कल हम सभी समय निकाल धरा के लाल मरुधरा के सपूत वीरवर दुर्गादास जी राठौड़ को अवश्य याद करें ... श्री क्षत्रिय युवक संघ के द्वारा आयोजित हर तरह के कार्यक्रमों में अपनी सहभागिता दर्ज करवाए ...

जय हिंद
जय जैसाण

भोपाल सिंह झलोड़ा
9461993066

11/08/2021
11/08/2021

Ravindra Singh Bhati jnvu president Live from maharaja Ganga Singh University Bikaner

11/08/2021

Ravindra Singh Bhati छात्र क्रांति
लाइव

10/08/2021

राजकुमारी रत्नावती girls school, कनोई

Thank u Dhruv Rathee
खीमो काको न्यूज़
Ravindra Singh Bhati
Jaisalmer
Barmer - Jaisalmer

 #झुंझार #लोकतंत्रजरुर पढे खासकर जो सामंत शब्द का अर्थ जानना चाहते हो!! कार्पोरेट जगत की कई मंजिला ऊँची कांक्रीट, सीमेन्...
08/07/2021

#झुंझार
#लोकतंत्र
जरुर पढे खासकर जो सामंत शब्द का अर्थ जानना चाहते हो!!
कार्पोरेट जगत की कई मंजिला ऊँची कांक्रीट, सीमेन्ट और ईटों की खोखली दसों बिल्डिंगो के मध्य मे दो खण्डित देवलियां (मूर्तियाँ) पास बैठी एक अस्सी नब्बे साल की बूढ़ी महिला से बातें कर रही थी ‌।

बङी देवली (मूर्ति) बोली~

"मेरा जन्म एक राजपूत परिवार में हुआ था और मैं मेरी वंश परम्परा का मोभी (सबसे बडा और उत्तराधिकारी) था तो मेरे जन्म पर रावळे में जश्न होना लाजिमी था, उस दिन शायद पांचम(पंचमी)थी पुरा रावळा दीयों से सजाया गया रावळे के कगुरों पर बन्दूक धारी ठाकुरों और कुंवरो नें गोलियों की गड़गड़ाहट से आकाश को गुंजयमान कर दिया था।

अभी मैंने अपनी उम्र के तीन पङाव ही पार किए होंगे की तभी एक दिन रावळे में अचानक सन्नाटा छा गया खबर आई की ठाकुर साहब महाराजा के साथ लङाई मे काम आ गए । मुझे ज्यादा कुछ तो पता नहीं चला पर उस दिन बहुत सारे लोग मेरे पास आए और सब लोग मुझे ठाकुर साब ठाकुर साहब कह के पुकार रहे थे इससे मुझे अचंभा भी हो रहा था की कल तक मेरे पिताजी को ठाकर साब कहने वाले लोग आज मुझे कुंवर सा की जगह ठाकुर साब क्यों कह रहे हैं ।

मेरे माता जी और काकोसा ने मुझे तलवार बाजी, घुङसवारी और युध्दकला में दक्ष किया पर जब मैने अठारहवां साल पार किया होगा तभी एक दिन अचानक रावले मे फिर सन्नाटा छा गया था, ठीक वैसा ही जैसा पिताजी के युध्द मे काम आने के दिन हुआ था फिर मेरे बुढे हो चुके कामदार 'बाबु जी मोहते' ने बताया कि ठाकुरों देश आजाद हो गया है और अंग्रेज अपने बोरियाँ बिस्तर समेट कर चले गए हैं और साथ मे हमारे बोरिये बिस्तर भी गोल कर दिए है और अब राजतंत्र की जगह लोकतंत्र ने ले ली है।

उस दिन के बाद धिरे धिरे मेरी आर्थिक स्थिति कमजोर हो गई जिस कारण अब मेरे नौकर, मेरे सैनिक, मेरे कामदार, मेरे बावरची के साथ ही साथ मेरे ऊँटों और घोङो के टोळे ने भी मेरा साथ छोङ दिया था । अब बस रहने के लिए रावळा था और चढने के लिए एक नौलखा जो शायद इस विपरीत परिस्थितियों में भी मेरे साथ लङ कर जीवित रहने में कामयाब रहा था ।

धीरे-धीरे समय बीत रहा था एक दिन तेज आँधी और भारी बारिश के बीच इन्द्र देव ने ऐसा कहर ढाया की सब ध्वस्त हो गया । भयंकर धमाके के साथ क्षणप्रभा(बिजली) नें एक क्षण में रावळे को‌ खण्डहर में बदल दिया । अब विरासत के नाम पर केवल कोटङी बची थी जो मेहमानों और भाई भाई-बंधुओं के लिए हथाई और रात्री वास का एकमात्र स्थल था।

एक दिन झांझरके मैं अपनी उसी कोटङी के बाहर सोया मंद बयार में गुज़रे वक्त को याद कर ही रहा था कि तभी पास के नीम पर एक कौआ धमका और अपनी चिर परिचित आवाज मे बांगे मारने लगा, चूंकि मे शकुन मे विश्वास रखता था, अतः प्रात:काल में कौवे की आवाज सुनकर मुझे लगा की आज दिन भर में जरूर कोई मेहमान आएंगे पर मैंने यह कतई नहीं सोचा था की आज इस कोटङी मे मुझे स्वयं यमराज की मेहमाननवाजी करनी पड़ जाएगी ‌‌।

मैं ये सब कुछ कल्पना कर ही रहा था कि कोटङी की तरफ हांफते हांफते एक सोलह एक साल की बालिका आती दिखी, क्षण भर में वह समीप आ पहुंची और हांफते हुए बोली " दाता गजब हो ग्यो एक कटक आई अर् म्हारी गायों घेर न लेईगा, थें खाताक हालो"

"बाई पेलां आ बता तूं है कुंण??"

"दाता हू धीर दा री बेटी हूँ आज बापू गऊंतरे (काम से बाहर) गियोङा है अर् जावता कैर गिया हा के कोई अबकाई आवे तो तुरत ही ठाकरां खनै पूगती हुजे, जकाऊं हूं पैलपोत थां खनै आई हूं, थै खताउळ करो ।

मैंने मन ही मन सोचा यह लङकी और धीर दा कितने भोले हैं, जिन्हे अभी तक यह पता ही नही हैं की राजाओं के राज चले गए हैं और ठाकुरों के पास अब कुछ नहीं है । दुसरे ही पल विचार आया की मेरे पास कुछ नहीं होते हुए भी इस लङकी को मुझ पर विश्वास तो है कि ठाकुर अपने प्राण देकर भी मेरी गायें बचा लेंगे इसी विश्वास के कारण ही तो यह लङकी सबसे पहले मेरे पास आई है इसलिए मुझे इसकी सहायता करनी चाहिये, अगर आज में इसे ना कहता हूँ तो मेरे क्षत्रिय धर्म और मेरे पूर्वजों पर कलंक लगेगा ।

यही सोचकर मैंने अपने बङे बेटे पदमे (पदम सिंह) को आवाज दी,

" ऐ पदमा , फुड़ती कर फुड़ती, फटाआफट्ट बैरियां लारे वार चढणों है ।

मेरा इतना कहना ही हुआ और पदमा हाथ मे ठकुराणी की पुरानी ओढनी में लपेटी हुईं तथा जंग के कारण भूरी पड़ चुकी तलवार के साथ हाज़िर हो गया ।।

मैने समय की नज़ाकत को समझते हुए घोङे पर जीण डालना उचित नही समझा और अपने नौलखे घोड़े के गर्दन पर हाथ फेरते हुए कहा "थूं है तो घणोंई घोड़ो पंण आज थारे माथे गऊ माता रो भार है, आज जे थूं बैरियों रे जोङे ले चाल अर जे कोई जीवतो परो जावे तो हूँ रजपूत नीं कैवाऊं, आ म्हारी आंण है , हे ! म्हारा नौलखा, आज गायों री रक्षा अर रजपूती रे मान रो भार थारे पगां माथे है ; सेंठो रेजे ।।

घोङा अपने पैरों की ताकत दिखाते हुए एक ही झटके मे हवा से बाते करने लगा था शायद उसे भी आभास हो गया था की आज मुझे अपने स्वामी का कर्ज उतारने का मौका मिला है तभी मुझे आभास हुआ किसी दुसरे घोङे की टापे वातावरण को गुंजयमान कर रही है कुछ ही क्षण मे देखा मेरे पास मे अपनी बसेरी पर दो हाथ लम्बे भाले के साथ पदमा होङ लगा रहा था शायद उसे मरने और मारने की उत्सुकता मुझसे भी अधिक थी ।
मैने कहा "पदमा थूं क्यू आयो?"

उसने कहा "जिसा जे आज आप घरां रेवता तो आपरी माँ रो दूध लाजतो, अर जे हुं घरे बैठतो तो म्हारी माँ रो दूध लाजतो,अर हुं बां मिंनखां मुं नीं हुं जका प्राणां रे मोह में आपरी मां रे दूध अर रजपूती नें लजा देवे । मनैं प्राणां सुं तनिक भी मोह नीं है; मन्नें म्हारी रजपूती अर धर्म री लाज बचावतां प्राणोत्सर्ग करंण में घणों अंजस हुसी ।।

यह बात सुनकर मेरा सीना और चौङा हो गया था और मुझे गर्व भी हो रहा था की मेरे द्वारा दी गई शिक्षा कामयाब रही है और सही भी है धजा(अपने राज्य), धरा(अपनी मातृ भूमि), धर्म और धेनु (गायों) पर आंच आए और किसी राजपूत का खुन न खोले यह तो असंभव है ।

कोई तीन कोस की दूरी तय की होगी की हमे गायों को ले जाते दुश्मन दिख गए मैंने और कुंवर ने दुश्मनों को ललकारते हुए कहा "अरे ओ हिंजड़ां" एक एकली सवासणीं री गायां घेरतां थानें लाज नीं आई । गायों पाछी दे दो, नीं तो आवोरा दो दो हाथ कर लां ; इयों मुक पशुओं माथे कई जोर करो , मर्द हो तो आवोरा मैदान में, और हां बा तो नान्हीं सी टिंगरी ही जंण गायों घेर लाया, बाकी तो सौ हिंजड़ा भी मिलर एक मरद री बरात कौन लुट सकै । और जको कृत्य थैं किन्हो है बो हिंजड़ापंणें सुं कम कौनीं ।

वे लोग संख्या में दस थे और हम दो शायद इसीलिए वो ठहाके मारकर हँसे और उनमे से उनका सरदार बोला "ठाकरों घरे बैठा रेवो कनीं क्यूं सुथा बैठा घर में काळिन्दर (सांप की प्रजाति - ब्लैक कोबरा) घालो, ठाकरों थें तो मरो साथे इण टाबर ने ही मरावो; बोला बोला घरे परा जावो ऐ गायों म्हे आज दों न कोई काल दों । जको करणो व्है करलो" ।

इतना सुनते ही पदमा जय माँ भवानी का उद्घघोष करता हुआ उन पर ताटका मैने भी ललकारते हुए तलवार से वार शुरू कर दिए लङते हुए थोङा ही समय हुआ होगा की किसी कायर ने पीछे से वार किया और मेरा सर धङ से अलग कर दिया, मेरा शीश लुढकता हुवा दूर जा गिरा और मै बिना शीश तलवार चलाता रहा जिससे मेरा क्षत्रियत्व और दुगुना हो गया और मै उस कटक का किचर घाण निकालने लगा । थोङी देर बाद मेरे दूर पङे शीश नें मेरे धङ और पदमे के शरीर को ठण्डे पङते हुए और अपने आठ सैनिकों को मरवाकर दो दुश्मनों को भागते देखा था ।

आज जब धीर दा अपने मेहमानों के यहा से जब वापस आए तो उस पौती ने पुरी बात बताई तो धीर जी के घर के सभी सदस्यों की आँखे नम थीं और रूहासे गले से धीर दा के मुँह से बस यही निकला "वा राजपूतों वा निमस्कार है थोने अर धिनबाद है ऐड़ा शूरा जामण आळा मात पिता नें ।

कुछ दिनों बाद ओरण मे स्थित मेरे शहादत स्थल पर धीर जी‌ नें अपने हाथ से बनाकर मेरी और पदमे की मुर्ति लगाई जहा धीर जी और उनकी बेटी हर माह की पांचम को रैवाण करवाते थे, रातीजगा देते थे और ढोली अपने ढोल के साथ मेरे वीरता का बखाण करता था । पर जब से धीर दा ने संसार छोङा है उसके बाद से मै हर पांचम का इंतजार करता हूँ पर कोई नही आता है ।
हां कभी कभी गांव के भटके हुए वीर (व्यंग्यात्मक) हाथ मे दारू की पव्वे लिए मेरे चबुतरे पर आ बैठते हैं क्योंकि यह जगह ओरण मे है और सुनसान जगह है जिस कारण शाम ढलने के बाद यहा कोई नहीं आता है जिससे इन वीरों के तृप्त होने तक कोई व्यवधान नही पङता ।

कुछ समय पहले कुछ एक गाङियों में कुछ अंग्रेजी बोलने वाले लोग आए थे उन्होने आस पास के क्षेत्र की सफ़ाई करवाई तो मुझे लगा शायद इन लोगो को मेरे बारे मे पता चला होगा और यह लोग शायद मेरे प्रति सम्मान जताने के लिए आए होगे पर ऐसा कुछ नहीं था । वे किसी कम्पनी से थे और यहा बिल्डिंग बनाना चाहते थे । कुछ समय बाद चारों और बड़े बड़े भवन बन गए , सीसी सङके बन गई; पर इस बीच मेरा अस्तित्व बच गया । शायद पास मे पार्क बन रहा था और मेरी देवली पार्क मे आती थी इसलिए थोङी मानवता दिखाने के लिए उन्होने मेरी जगह को छोङ दिया था । और पास मे साईं बाबा का मन्दिर बना दिया था जहा कई अर्ध्दनग्न बालाएं आती थी जिसे में देख नहीं पाता था और अपने आप को धरती मे गढाने का असफल प्रयास करता था।
मेरे सामने ही एक और मुर्ति लगा दी गई है, जो मुझसे लगभग पाँच फुट ऊपर है और उसने नीला कोट और चश्मा पहन रखा है, तथा वहां हर साल बङा मेला लगता है और लोग उस बाबा के जयकारे लगाते है ।

एक दिन बङा सा हुजूम पार्क मे आया जिसका नेतृत्वकर्ता जोर-जोर से नारे लगा रहा था,

"सामन्त वाद मुर्दाबाद"

"विदेशियों भारत छोङो"

"सामंतों गाँव छोङो"

"सामंत वाद से आजादी - हम ले के रहेंगे आजादी "

ऐसे फलां फलां नारे लगा रहा था और किसी की जोर जोर से जय बोल रहा था शायद नीले कोट वाले व्यक्ति की जय बोल रहा था मुझे ज्यादा तो ज्ञात नही है पर इतना जरूर लग रहा है उस नीले कोट वाले व्यक्ति ने इन लोगो के लिए किसी बङे काम के लिए दुश्मनों से लङता हुआ काम आया होगा जिस कारण यह इतना पूजनीय है और अचानक उस नेतृत्वकारी युवक ने सभी को मेरी मूर्ति को इशारा करते हुए कहा यह प्रतिमा भी एक सामंत की है इसे उखाङ फेंको ‌। यह हमारे आदरणीय बाबा(नीले कोट वाली मुर्ति) के साथ इस पार्क मे फब नही रही है, उनके स्तर को गिरा रही है । इतने मे उस तथाकथित सेना ने मेरी मूर्ति पर हमला बोल दिया उन्होने मुझे उखाङने का प्रयास किया परंतु में मजबूत रहा पर उन लोगो ने मेरी मूर्ति के टुकड़े टुकड़े कर दिए ।
मुझे बाक़ी तो कुछ समझ मे नही आया पर मैने उस नेतृत्वकर्ता की आवाज को जरूर पहचान लिया वो और कोई नही धीर दा का पङपौता था और अभी उस कायर सेना का जिलाध्यक्ष था ।

मैं उन दूर जाते कायर भेङियो के झुण्ड को देख रहा था जो अपने आप को सेना बता रहे थे और मैं सोच रहा था कि उस दिन धीर दा के लिए मैं और मेरा बेटा प्राणोत्सर्ग नहीं करते तो धीर दा की तरह मेरे भी पोते पड़पोते होते ; और मेरे पोते पड़पोते होते तो जरूर आज भी वे भारतीय सेना में देश हित भारत की पाक और चीन के साथ हुई लड़ाईयों में शहीद ही हूवे होते ना कि धीर दा के पड़पोते की तरह वोटबैंक की राजनीति के लि कृतघ्न होते ।
"क्यों कि वक्त बदला है रक्त नहीं" राजपूती रक्त आज भी वैसा ही है जैसा हल्दी घाटी और खानवा में बहा था, वैसा ही है जैसा पृथ्वी राज के समय तराईन में बहा था और वैसा ही है जैसा आऊवा में अंग्रेजों के खिलाफ कुशाल सिंह चांपावत के नेतृत्व में बहा था ‌। कितनें उदाहरण गिनाऊं, कौनसे उदाहरण गिनाऊं, पांच बताउं तो पांचसौ छूटते हैं ।

इस तरह नाम के पीछे सेना लगा लेने से सेना नहीं बनती । वीरता तो खून में होती है ।

माल उडाणां मौज सुं, मांडे नंह रण पग्ग ।
माथा वे ही देवसी, जां दीधा अब लग्ग ।।

अर्थात - मौज से माल ऊड़ाकर ऐशो आराम करके सेना चलाने वाले कभी कुर्बानी नहीं दे सकते, शीश तो आज भी वही कटायेंगे जो पीढ़ीयों से कटाते आए हैं ।।

यह कहते हुए मेरा मन आत्मग्लानि से भर गया कि क्या मैंने अपना बलिदान ये दिन देखने के लिए दिया था कि धीर दा के वंशज और जाति-बिरादरी के लोग एक दिन मुझै लातों से सम्मानित करेंगे ।

यह बात सुनकर सामने बैठी उस बूढ़ी माई के आँखो से अश्रूधार फूट पड़ी ।
वो औरत और कोई नही धीर दा की वही बेटी है और बङी खण्डित मूर्ति के रूप मे ठाकुर और छोटी मुर्ति के रूप मे उनका बेटा पदमा है ।।

साभार - हेमेन्द्र सिंह राठौङ तेना

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पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी के गुणों से प्रभावित होकर जिस प्रकार रविंद्र सिंह जी प्रधानमंत्री को भारतरत्न प्रदान करन...
30/06/2021

पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी के गुणों से प्रभावित होकर जिस प्रकार रविंद्र सिंह जी प्रधानमंत्री को भारतरत्न प्रदान करने के लिए सरकार से अनुरोध कर रहे है, हम सभी को इस मुहिम का हिस्सा बनना चाहिए क्योंकि माननीय प्रधानमंत्री जी को उनके योगदानों के लिए भारतरत्न सम्मान स्वरूप मिलना हम सभी की तरफ से सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
आइए जानिए आप किस प्रकार इस उत्सव का हिस्सा बन सकते है।
आपको ऊपर दिया हुआ रविंद्र सिंह जी के द्वारा भारत सरकार व अन्य को भेजा हुआ पत्र निम्न ईमेल अकाउंट पर भेजना है व सरकार से अनुरोध स्वरूप रविंद्र सिंह जी की मंशा का साथ देना है व प्रधानमंत्री जी के लिए भारतरत्न की मांग करनी है आशा करते है आप एक आदर्श पुरूष जो सदैव समाज व जन मानस के जीता रहा अपना अमूल्य समय निकाल कर इस मुहिम का हिस्सा बनेंगे
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24/06/2021

(स्वांगिया/ #भादरिया राय माता)

देवी स्वांगिया का इतिहास बहुत पुराना है। भगवती आवड़ के पूर्वज सिन्ध में निवास करने वाले सउवा शाखा के चारण थे जो गायें पालते और घी व घोडों का व्यापार करते थे। मांड प्रदेश (जैसलमेर) के चेलक गांव में चेला नामक एक चारण आकर रहे। उसके वंश में मामड़िया जी चारण हुए जिसने संतान प्राप्ति के लिए सात बार हिंगलाज माता धाम की यात्रा की तब विक्रमी सम्वत् 808 में सात कन्याओं के रूप में देवी हिंगलाज ने मामड़िया के घर में जन्म लिया। इनमें बडी कन्या का नाम आवड़ रखा गया। आवड़ की अन्य बहिनों के नाम आशी, सेसी, गेहली, हुली, रूपां और लांगदे था। अकाल पडने पर ये कन्याएँ अपने माता-पिता के साथ सिन्ध में जाकर हाकड़ा नदी पाकिस्तान के किनारे पर रहीं। पहले इन कन्याओं ने सूत कातने का कर्म किया। इसलिए ये कल्याणी देवी कहलाई। फिर आवड़ देवी की पावन यात्रा और जनकल्याण की अद्भुत घटनाओं के साथ ही क्रमशः सात मन्दिरों का निर्माण हुआ और समग्र मांड प्रदेश में आवड माता के प्रति लोगों की आस्था बढती गई|
देवी का प्रतीक रुप स्वांग(भाला) व सुगन चिड़ी है। ये प्रतीक जैसलमेंर के राज्य चिन्ह में विद्यमान है। आजादी से पहले तक जैसलमेर के शासक दशहरा, दीपावली के दिन अपने घोड़ों को सजाते समय चांदी या सोने की चिड़िया बनाकर शक्ति के प्रतीक को बैठा कर पूजा करते थे| जैसलमेर के सिक्कों पट्टो-परवानो, स्टांपो, तोरणो आदि पर शुगन चिड़ी की आकृतियों का अंकन किया जाता था |

स्वांगिया या आवड़ माता के ये सात मन्दिर निम्नलिखित हैं –

(1) तनोट राय मन्दिर:-
राव तनु ने 8 वी शताब्दी में निर्माण करवाया।
इस स्थान पर मोहम्मद बिन कासिम, हुसैनशाह पठान, लंगाहो, वराहों,यवनों जोइयों व खीचियों ने कई आक्रमण किए। तनोट के शासक विजयराव ने देवी के प्रताप से ईरान के शाह व खुरासान के शाह को पराजित कर कुल 22 युद्ध जीते।
सिंध के मुसलमान ने जब विजयराव पर आक्रमण किया तो देवी से प्रार्थना की कि अगर विजयी हुआ तो अपना मस्तक देवी को अर्पित करेगा। युद्ध में देवी ने विजयराव की मदद की और राव की विजय हुई। इस पर वह मंदिर में जाकर तलवार से अपना मस्तक काटने लगा तो देवी प्रकट हो गई और बोले कि मैनै तेरी पूजा मान ली और अपनी हाथ की सोने की चूड़ उतार🎂 कर दी। यही विजयराव इतिहास में विजयराव चूंडाला के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1965 ई व 1971 ई में पाकिस्तान से युद्ध हुआ। सभी युद्धों में देवी के प्रताप से विजय मिली। 1965 ई के बाद BSF द्वारा पूजा अर्चना की जाती है।
जहाँ 1965 ई में पाकिस्तान के गिराए 300 बम बेअसर हुए थे। देवी की कृपा से पाकिस्तान के सैनिक रात के अंधेरे में आपस में लड़.कर मारे गए। इस समय पाकिस्तान ने 150 किमी तक कब्जा कर लिया था।
तनोट देवी को थार की वैष्णों देवी भी कहा जाता है। BSF की एक यूनिट का नाम तनोट वारियर्स है।


जठै यादवों राज जोरे जमाया।
वठै जा करी जोगणी छत्र छाया।।

जय माँ स्वांगीया 🚩🙏

खीमो काको

24/06/2021

Rajkumari ratnawati girl's school,kanoi jaisalmer

!! हल्दीघाटी विजय दिवस की बधाइयां !!हल्दीघाटी के चमत्कार और उनके कारण =भाग - १ १- आज 18 जून को सन 1576 में हल्दीघाटी के ...
18/06/2021

!! हल्दीघाटी विजय दिवस की बधाइयां !!

हल्दीघाटी के चमत्कार और उनके कारण =
भाग - १

१- आज 18 जून को सन 1576 में हल्दीघाटी के इतिहास प्रसिद्ध महासंग्राम में महाराणा प्रताप की छोटी सी जन-सेना ने अकबर की विशाल शाही सेना को धूल चटाई थी !

२- अकबर के इतिहासकार अबुल फज़ल ने लिखा कि प्रताप की सेना की मार के आगे हमारी फौज बारह मील तक भागती रही!

३- अकबर की फौज के पास तोपें और बंदूकें भी थी, जब कि प्रताप की सेना ने केवल तीर-कमान, तलवार-भालों और पत्थरों की सहायता से युद्ध किया. तो भी अकबरियों के छक्के छूट गए ! अकबर की फौज तोपें और बंदूकें छोड़ भागी !

४- अकबर के फौजियों के पास आधुनिक शस्त्रास्त्र तो थे किंतु साहस तो नाम-मात्र का भी नहीं था. इसलिए उनकी भीषण हार हुई!

५- चित्तौड़ के युद्ध में अकबर मेवाड़ी सेना के तीर से घायल हो गया था, इसलिए इस बार डर मारे वह युद्ध में आया ही नहीं और मानसिंह के नेतृत्व में अपनी सेना भेजी! इधर वीरवर प्रताप स्वयं अपनी सेना के साथ थे! अपने निराले चेतक पर आरूढ़ होकर कुलाराध्य भगवान एकलिंगनाथजी की जयकार बुलाते हुए हल्दीघाटी से सबसे पहले हिंदुआ-सूर्य महाराणा प्रताप ही उतरे तो पहले से पहाड़ों में छिपे हुए हिंदू सैनिक उत्साह से अकबरियों पर टूट पड़े, तो असावधान और बुझदिल अकबरियों को भाग छूटने के अलावा और कोई चारा नहीं था!

६- अकबर के सिपहसालारों ने अपनी फौज को इस भुलावे में रखा हुआ था कि प्रताप तो डरपोक है, पहाड़ी चूहा है, किंतु आज 18 जून के दिन 1576 में प्रताप पहाड़ी चूहे की बजाय हिन्दुआ सिंह सिद्ध हुए!

७- ख्वाजा साहब से मन्नत मांग कर अजमेर से चली अकबरी फौज को हल्दीघाटी तक कहीं भी किसी प्रकार का मुकाबला ही नहीं करना पड़ा था, इसलिए अकबर के फौजी निश्चिंत होकर आगे बढ़ रहे थे!
उनको तो आभास ही नहीं था कि युद्ध सामने ही मुंह फैलाए हुए खड़ा है!
इधर प्रताप ने पहाड़ी मुख पर और आसपास युद्ध की अपूर्व पूर्व-योजना कर रखी थी! इसलिए आकस्मिक आक्रमण के कारण असावधान मुगलिया फौज भाग छूटी!

८- 17 जून को सायंकाल तक शिकार के बहाने मानसिंह ऊपरी क्षेत्र का निरीक्षण करता रहा था. किसी प्रकार की हलचल न देख कर 18 जून को प्रातःकाल की शीतल वेला में उसने अपनी फौज निश्चिंत होकर आगे बढ़ाई!
अकबर की फौज बनास नदी के बाएं किनारे पर '' मोलेला '' गांव में पड़ाव डाले हुई थी! १८ जून को वह बीस हजार की विशाल फौज धीरे धीरे बनास नदी पार कर '' खमनोर '' के पार रेंगते हुए शाही बाग़ के बीच हल्दीघाटी के मुहाने पर अल्ला हो अकबर चिल्लाती हुई पहुंची ही थी कि, इन बुजदिलों पर प्रताप की सेना ने चारों ओर से आक्रमण कर दिया!
विशेष बात यह है कि प्रताप ने अपनी सेना को हल्दीघाटी 12 कि.मी. दूर '' लोसिंग '' ग्राम में एकत्र किया था, जिसकी खबर अकबर के बाल-बच्चों को तक लग ही नहीं सकती थी!
अकबर की सेना तो अपने पड़ाव से दो-तीन कि.मी. ही चली और प्रताप की सेना 12 कि.मी. दूर से रातोंरात चुपचाप चल कर प्रातःकाल भूखे सिंह के समान अकबरियों पर टूट पड़ी!
इसी गतिक तीव्रता के कारण प्रताप की जीत हुई और सुस्ती एवं असावधानी के कारण अकबर की हार हुई!

९- '' लोसिंग '' का अर्थ होता है लौहसिंह! प्रताप के सैनिक इस प्रसिद्ध युद्ध में लौह के सिंह ही सिद्ध हुए!

१०- एकमात्र हल्दीघाटी युद्ध ही ऐसा युद्ध है, जिसमे राजपूतों की सभी जातियां, खांपे सम्मिलित हुई, चाहे कोई प्रताप के पक्ष में थी, चाहे कोई अकबर के पक्ष में!

११- जो राजपूत अकबर की सेना में अकबर के पक्ष में आये थे, वे भी प्रताप से युद्ध नहीं करना चाहते थे! युद्धस्थल में मानसिंह के काका जगन्नाथ कछवाहा का प्रताप से सामना हुआ, तो उसने प्रताप से युद्ध न करना चाहा, इसलिए वह भाला उलटा कर खड़ा हो गया तो प्रताप भी उसको छोड़ कर आगे निकल गए!

१२- स्वयं मानसिंह के हाथी पर प्रताप ने अपना घोड़ा चढ़ा दिया और उस पर भाले से वार किया तो मानसिंह ने हौदे में एक ओर झुककर कर अपने प्राण तो बचाए, किंतु उसने पलट कर प्रताप पर वार नहीं किया!

१३- मेवाड़ में पहली बार राजपूतों के अतिरिक्त अन्य जातियां भी युद्ध में महाराणा प्रताप के नेतृत्व में हल्दीघाटी युद्ध में सम्मिलित हुई थी! चित्तौड़ युद्ध के बाद से ही महाराणा उदयसिंह और फिर प्रताप ने आम जनता को युद्ध प्रशिक्षण देना प्रारंभ किया था!

१४- जो मुसलमान अकबर को विदेशी खानदान का मानते थे, ऐसे अफगान मुसलमान भी प्रताप के पक्ष से युद्ध में सम्मिलित भी हुए और मातृभूमि के लिए बलिदान भी हुए! हाकिम खां सूरी इनमें प्रमुख नाम है!

१५- प्रताप के बहुत से प्रमुख सेना नायक युद्ध में बलिदान को प्राप्त हुए और अकबर के प्रमुख सेनानायक भागने में सफल हुए!

खीमो काको

समाज गौरव बाईसा साक्षी भाटी (निहारिका भाटी) सुपुत्री श्री हठे सिंह भाटी ताणु रावजी ने राष्ट्रीय प्रतिभा खोज परीक्षा(NTSE...
18/06/2021

समाज गौरव बाईसा साक्षी भाटी (निहारिका भाटी) सुपुत्री श्री हठे सिंह भाटी ताणु रावजी ने राष्ट्रीय प्रतिभा खोज परीक्षा(NTSE) में सम्पूर्ण राजस्थान में प्रथम स्थान प्राप्त करने पर हार्दिक बधाई ।। शुभकामनाएं सा.....
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खीमो काको

श्री देगराय ओरण बचाओ अभियानखीमो काको
17/06/2021

श्री देगराय ओरण बचाओ अभियान

खीमो काको

आप हैं ह्रदयेश्वर सिंह भाटी। आपने अपनी 85% से अधिक विकलांगता व घातक बीमारी का शिकार होने के बावजूद बहुत की कम उम्र में 7...
17/06/2021

आप हैं ह्रदयेश्वर सिंह भाटी। आपने अपनी 85% से अधिक विकलांगता व घातक बीमारी का शिकार होने के बावजूद बहुत की कम उम्र में 7 अविष्कार किये व 3 पेटेंट आपने अपने नाम करवाए। देश-विदेश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में शतरंज जैसे खेल को दो से अधिक खिलाड़ियों द्वारा खेले जाने लायक बनाने के लिए आपको अविष्कार की प्रशंसा हुई। इन उपलब्धियों हेतु ‛प्रधान मंत्री राष्ट्रीय शक्ति पुरस्कार-2020’ भी प्रदान किया गया। प्रतिष्ठित वैश्विक मीडिया स्रोतों ने आपको ‛भारत के मिनी स्टीफन हॉकिंग्स’ का नाम दिया गया।
आपका देर रात हृदयगति के रुक जाने से निधन हो गया, जो कि देश व समाज के लिए अपूरणीय क्षति है। शारीरिक कमतरी के बावजूद इतनी सी उम्र में अपनी जीवटता के लिए आप सदैव सभी के प्रेरणीय रहेंगे।
सादर श्रद्धांजली।
💐🙏🏼💐

खीमो काको
Ravindra Singh Bhati

14/06/2021

खजवाना, नागौर

गोवंश बचाओ अभियान

Nagour

Miss you SushantSushant Singh Rajput   खीमो काको न्यूज़
14/06/2021

Miss you Sushant

Sushant Singh Rajput


खीमो काको न्यूज़

गुजरात में राजपूत समाज की एक बेटी ने 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' अभियान को खासा प्रोत्साहित किया है। यहां वडोदरा की रहने वाली...
12/06/2021

गुजरात में राजपूत समाज की एक बेटी ने 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' अभियान को खासा प्रोत्साहित किया है। यहां वडोदरा की रहने वाली 28 वर्षीय निशिता राजपूत पिछले आठ सालों से कमजोर तबके की अथवा किसी अन्य वजह से शिक्षा से वंचित रही लड़कियों को पढ़ा रही हैं। अपने पिता गुलाब सिंह राजपूत के नक्शे-कदम पर चलते हुए उन्होंने खुद के खर्चे पर अब तक करीब 34,500 लड़कियों को पढ़ाया। वह बताती हैं कि उन्होंने सबसे पहले 151 लड़कियों की फीस का भुगतान किया था, धीरे-धीरे ये संख्या बहुत बढ़ गई। इस साल आर्थिक रूप से कमजोर 10,000 लड़कियों की पढ़ाई कराने का जिम्मा उठाया है।

Nish*ta Rajput
खीमो काको न्यूज़
जैसलमेर खबर 24x7

05/06/2021

महेंद्र सिंह जी जाखली साहब

संस्थापक सदस्य

दहेज विरोधी ग्रुप

05/06/2021

*जैसलमेर से आंधी निकल चुकी है आगे बाड़मेर की तरफ बढ़ रही है सावधान रहें सभी*

04/06/2021

Thank u

Suryagarh Jaisalmer

खीमो काको

जैसलमेर जवाहर चिकित्सालय पहुंची PSA Tower बड़ी ऑक्सीजन मशीन, जो की 24 घंटे में 100 सिलेंडर से भी ज्यादा ऑक्सीजन बनाएगी, ...
02/06/2021

जैसलमेर जवाहर चिकित्सालय पहुंची PSA Tower बड़ी ऑक्सीजन मशीन, जो की 24 घंटे में 100 सिलेंडर से भी ज्यादा ऑक्सीजन बनाएगी,
जवाहर चिकित्सालय में इस मशीन के लगने के बाद कोरोना के मरीजों को मिलेगी सुविधाएं

खीमो काको
Sam Sand Dunes, Jaisalmer

30/05/2021

RAS महेंद्र प्रताप सिंह 1 जून से जोईन करेंगे टेरिटॉरीयल आर्मी की सिख इनफेंट्री रेजीमेंट।

बाड़मेर जैसलमेर के लिए यह गर्व और गौरव का विषय।

टेरिटॉरीयल आर्मी जोईन करने वाले पहले RAS अधिकारी बने भाटी।

Mahendra Pratap Singh Girab

खीमो काको

Barmer - Jaisalmer

29/05/2021

जैसलमेर, राजस्थान

खीमो काको न्यूज़
Sam Sand Dunes, Jaisalmer
Golden city Jaisalmer

27/05/2021

एक स्कूल ऐसा भी जहां कोई ac नहीं है और ठंडा भी है।।
Rajkumari ratnawati girl's school,kanoi, jaisalmer
खीमो काको न्यूज़
Sam Sand Dunes, Jaisalmer

22/05/2021

खुशी....

पॉजिटिव vibes

खीमो काको न्यूज़
खीमो काको

राजसमंद में देवगढ CHC पर 75 वर्षिय महिला कोरोना से पूर्ण रूप से स्वस्थ होकर पुनः अपने घर की ओर प्रस्थान करने की खुशी में डांस करती हुई।

बड़ी से बड़ी बीमारी का इलाज है सकारात्मक सोच ।

Stay Positive.

सेवा ही संगठनकोविड- 19(सेवा ही संगठन) संयोजक एवं जिला मंत्री कँवराज सिंह चौहान इस महामारी के समय में निरंतर सेवा के लिए ...
22/05/2021

सेवा ही संगठन

कोविड- 19(सेवा ही संगठन) संयोजक एवं जिला मंत्री कँवराज सिंह चौहान इस महामारी के समय में निरंतर सेवा के लिए तत्पर रहते है। किसी भी समय चाहे किसी मरीज के लिए बेड की व्यवस्था करवानी हो या किसी गंभीर बीमार को रेमेडिसिवर की आवश्यकता हो, जहां से भी किसी जरूरतमंद का फोन आये ये तुरंत सहायता के लिए पंहुच जाते है। आज सुबह जिला चिकित्सालय के डॉ रेवता राम से संपर्क कर आये हुवे मरीज को भर्ती करने की प्रक्रिया के सहयोग किया एवं पीड़ित के परिजनों से मिलकर हरसंभव सहायता का वचन दे कर उनका मनोबल बढ़ाया।
Kanwrajsingh chouhan


#जीतेगा_जैसाण

Kanwrajsingh chouhan
खीमो काको न्यूज़
खीमो काको

21/05/2021

Chetna bhati
Dysp, udaipur
Jaisalmer
खीमो काको
खीमो काको न्यूज़
Niharika Times

20/05/2021

अपनी प्रचंड वीरता, कर्त्तव्य के प्रति निष्ठा और प्रेरणादायी कार्य के लिए कंपनी हवलदार मेजर पीरू सिंह भारत के युद्धकाल के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से मरणोपरांत सम्मानित किए गए।

शूरां निपजै झुंझुनू लिंयां कफन नै साथ | रण भूमि रा लाडला प्राण हथेली हाथ ||

भारतवर्ष की एकता और अखंडता पर प्राण न्यौछावर करने वाले भारत माँ के वीर सपूत को आज उन के जन्म दिवस पर शत्-शत् नमन ... _/\_ जय हिन्द !! जय जवान !!

  Manvendra Singh Jasol
19/05/2021


Manvendra Singh Jasol

18/05/2021

रावल वीरम देव जी चौहान.... बलिदान दिवस

Thanks to I love jaisalmer & Hemkunt Foundation for donating 5 Oxygen Concentrators to PHC HOSPITAL Khuri & Mayajlar Spa...
17/05/2021

Thanks to I love jaisalmer & Hemkunt Foundation for donating 5 Oxygen Concentrators to PHC HOSPITAL Khuri & Mayajlar
Spacial Thanks 🙏
H H Maharawal Chaitanya Raj Singh
Manvendra Singh Shekhawat
Harish Dhandev
🙏🙏
Golden city Jaisalmer Royal Jaisalmer खीमो काको JaisalmerPortal

 #धन्यवाद_मंत्री_महोदय25लाख बाड़मेर हॉस्पिटल,25 लाख नाहटा हॉस्पिटल बालोतरा,25 लाख जैसलमेर हॉस्पिटल,15 लाख पाटोदी,10 लाख ...
17/05/2021

#धन्यवाद_मंत्री_महोदय

25लाख बाड़मेर हॉस्पिटल,
25 लाख नाहटा हॉस्पिटल बालोतरा,
25 लाख जैसलमेर हॉस्पिटल,
15 लाख पाटोदी,
10 लाख गिड़ा,
5 लाख कल्याणपुर,
5 लाख सिणधरी,
5 लाख चोहटन ,
5 लाख गुड़ामालानी,
7 लाख शिव,
7 लाख फतेहगढ़,
7.5 लाख देवीकोट,
15 लाख और जैसलमेर,
6 लाख रामगढ़,
7 लाख मोनगढ,

50 आक्सीजन सिलेंडर बायतु को
बालोतरा में ऑक्सीजन प्लांट
दो बड़े हॉस्पिटल बनाने की घोषणा

और आगे भी जहां जरूरत है वहां सेवा दे रहे हैं

बाड़मेर जैसलमेर को ईमानदार एवं संघर्षशील जननायक मिला है जो बाड़मेर जैसलमेर की जनता के साथ हर वक्त खड़ा नजर आता है

धन्यवाद

कैलाश जी चौधरी

केंद्रीय कृषि कल्याण राज्य मंत्री भारत सरकार

सांसद बाड़मेर जैसलमेर
Kailash Choudhary

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