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15/01/2025
जब किसी विवाहित स्त्री से प्रेम हो जाता है, तो यह संबंध बहुत संवेदनशील हो जाता है। इसमें बहुत-सी बातों का ध्यान रखना पड़ता है। उसके पति के घर आने का समय गिनना पड़ता है, कुकर की सीटी का ख्याल रखना पड़ता है, और बार-बार गली में नजर डालनी होती है कि कोई आ तो नहीं रहा। यह सुनिश्चित करना होता है कि उसने चूल्हा बंद किया या नहीं, और उसके परिवार की जरूरतों का भी ध्यान रखना पड़ता है। हर दिन उसके बेटे के हालचाल पूछने और उसकी दिनचर्या का हिस्सा बनने की आदत डालनी पड़ती है।
रातों को जागकर उसके लिए संदेश लिखने पड़ते हैं, अपनी भावनाओं को शब्दों में पिरोना पड़ता है। उसकी बुझी हुई आँखों में झाँकते हुए कई शामें बितानी पड़ती हैं। उसका प्रेम निस्वार्थ होता है, इसलिए उसकी बातों को धैर्य से सुनना पड़ता है। कभी-कभी उसके लिए खुद को उसकी पसंद में ढालना पड़ता है—गुलाब की तरह खिलना पड़ता है, उसके झुमकों पर ज़ुल्फ़ की तरह ढलना पड़ता है। उसके पति पर मन में झुंझलाहट होने के बावजूद उसके दर्द को सहानुभूति के साथ सुनना पड़ता है।
उसके जख्मों को देखकर उन्हें भरने की कोशिश करनी होती है, और उसे अपनी बाँहों में भरकर यकीन दिलाना पड़ता है कि आप हर हाल में उसके साथ हैं। उसकी चुप्पी को समझने की कोशिश करनी होती है और उसे इस बात का एहसास दिलाना होता है कि वह अकेली नहीं है। उसकी सास की शिकायतें, ननद-भौजाई की साजिशें और घर के अन्य झमेलों से उसका ध्यान हटाकर उसे सुकून देना पड़ता है। उसे यह भरोसा दिलाना होता है कि आपका प्रेम न केवल सच्चा है, बल्कि उसके जीवन का सहारा भी है।
उसकी नाराज़गी को प्यार से दूर करना पड़ता है, और जब वह चुप होती है, तब उसे बड़े धैर्य और प्रेम से अपने पास बुलाना होता है। उसे यह महसूस कराना पड़ता है कि प्रेम एक खूबसूरत एहसास है, जिसमें वह सुरक्षित और खुश महसूस कर सकती है।
यह मेरे अनुभव हैं, और जरूरी नहीं कि ये हर किसी के लिए सही हों। लेकिन यदि इनमें कुछ बातें सही लगती हैं, तो उन्हें अपनाएं। अगर नहीं लगतीं, तो उन्हें छोड़ दें। मैं कोई उपदेशक नहीं हूँ, बस वही कहती हूँ जो मैंने महसूस किया है और जो मेरे लिए सही प्रतीत होता है।