Das Prabhu ka

Das Prabhu ka नो मन सूत उलझीया, ऋषि रहे झक मार।
सतगुरु ऐसा सुलझा दे, उलझे ना दूजी बार।।

07/03/2024

संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य में अयोध्या राम जन्म भूमि पर भव्य भंडारे का अयोजन हो रहा है।
यह भंडारा एक महीने तक अयोजन हो सकता है। इस भंडारे का अनुभव इस वीडियो से कर सकते है। वीडियो पूरा अवश्य देखे।

25/11/2023

गुरू जी का विशेष ध्यान से सुनने योग्य सत्संग।

Thanks for being a top engager and making it on to my weekly engagement list! 🎉 Manju Sinsinwar, Subhas Das, Sonu Kumar
03/10/2023

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25/09/2023

Special Sandesh Episode - 4 | दृष्टि परै सो धोखा रे, खंड पिंड ब्रह्मण्ड चलेंगे, थीर नहीं रहसी लोका रे।।

20/09/2023

Das Prabhu ka what's app चैनल लिंक उपलब्ध है । कृपया लिंक पर क्लिक करें और ज्वाइन करे। नोटिफिकेशन ऑन जरूर करें।।
🙏🙏🙏

18/09/2023

सत्संग कि आधी घड़ी, तप के वर्ष हजार। तो भी बराबर है नहीं, कहे कबीर विचार*🌸
सभी भक्तों से प्रार्थना है परमात्मा के अनमोल संदेश को सभी ध्यान से सुनें।💫
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15/09/2023

पवित्र चारों वेदों और सभी धर्म ग्रंथो में प्रमाण है कबीर साहेब ही भगवान है देखिए विशेष वीडियो। Sant rampal ji maharaj satlok aashram Sojat Sant Rampal Ji Maharaj Videos Satlok Ashram Das Prabhu ka

JAGAT GURU RAMPAL JI पवित्र वेदों में पूर्ण परमात्मा की अवधारणा (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद)(यजुर्वेद, ऋग्वेद, स...
14/09/2023

JAGAT GURU RAMPAL JI


पवित्र वेदों में पूर्ण परमात्मा की अवधारणा (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद, अथर्ववेद)
(यजुर्वेद, ऋग्वेद, सामवेद, अथर्ववेद)
पवित्र वेद सबसे पहले पवित्र शास्त्र हैं जो भगवान कबीर ने अपनी प्रिय आत्माओं के लिए दिए थे। वेद सबसे पुराने धार्मिक शास्त्र हैं जो वैदिक संस्कृत में लिखे गए थे। यह एक आम धारणा है कि वेद हिंदू धर्म से संबंधित हैं लेकिन यह सच्चाई नहीं है।

चारों वेद प्रभु जानकारी के पवित्र प्रमाणित शास्त्र हैं। पवित्र वेदों की रचना उस समय हुई थी जब कोई अन्य धर्म नहीं था। इसलिए पवित्र वेदवाणी किसी धर्म से सम्बन्धित नहीं है, केवल आत्म कल्याण के लिए है। पवित्र वेदों का ज्ञान पूरी मानवता के लिए है।

पवित्र वेदों का ज्ञान किसने दिया?
दुनिया में कितने प्रकार के पवित्र वेद विद्यमान हैं?
पवित्र वेद किसने लिखे? या चारों पवित्र वेद कैसे लिखे गए थे?
चार पवित्र वेदों का संक्षिप्त परिचय
पवित्र ऋग्वेद
पवित्र यजुर्वेद
पवित्र सामवेद
पवित्र अथर्ववेद
वेदों को प्रलय के दौरान काफी बार नष्ट कर दिया गया है, लेकिन भगवान कबीर ने अपने भक्तों के लाभ के लिए संतों के माध्यम से ज्ञान प्रकट किया है। हमारे पास उपलब्ध वेदों का वर्तमान संकलन लगभग 5000 साल पहले संकलित किया गया था, और उस समय वास्तव में कोई धर्म नहीं था।

पहले ऋषि हृदय से पूर्ण वेदों को सीखते थे, लेकिन कलयुग में इनका संकलन किया गया है। यदि हम विभिन्न धर्मों को देखते हैं तो हमें पता चलता है कि ईसाई धर्म लगभग 20 शताब्दी पुराना है, इस्लाम लगभग 1500 वर्ष पुराना है और सिख धर्म लगभग 250 वर्ष पुराना है, लेकिन वेद तो इन धर्मों से भी पहले के हैं। सृष्टि रचना को समझने के लिए, और पूर्ण परमात्मा के बारे में ज्ञान प्राप्त करने के लिए, वेद अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।

पवित्र वेदों का ज्ञान किसने दिया?
अब तक ऋषियों का मानना था कि ब्रह्मा जी ने पवित्र वेदों का ज्ञान दिया था। लेकिन हम यहां आपको वेद किसने और क्यों बनाये, इसके बारे में पूरी वास्तविक जानकारी देंगे।

वेद मूल रूप से कबीर परमात्मा द्वारा काल ब्रह्म को दिए गए थे। जब काल ब्रह्म को उसके 21 ब्रह्मांडों सहित सतलोक से निष्कासित कर दिया गया था। उस समय, कबीर परमात्मा ने काल को 5 वेदों (4 के बजाय) का ज्ञान दिया था, जो कि कबीर परमात्मा के आदेश अनुसार, काल की सांसों के माध्यम से प्रकट हुए।

यह ऐसा है जैसे जब हम फैक्स मशीनों के बीच एक देश से दूसरे देश में एक दस्तावेज़ फैक्स करते हैं। इसी तरह कविर्देव ने काल ब्रह्म को 5 वेद दिए जो उसके सांस छोड़ते समय निकले।

काल ब्रह्म ने उन सभी ग्रंथों को पढ़ा जो उसके सांसों के माध्यम से बाहर आए थे। उन ग्रंथों में पूर्ण परमात्मा की पूजा के सच्चे मंत्रों के साथ पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब जी की महिमा समाहित है। इसलिए काल ने 5 वें वेद को नष्ट कर दिया।

दुनिया में कितने प्रकार के पवित्र वेद विद्यमान हैं?
हिंदू धर्म के अनुसार, दुनिया में चार पवित्र वेद विद्यमान हैं, जिनके नाम नीचे दिए गए हैं।

पवित्र ऋग्वेद।
पवित्र यजुर्वेद।
पवित्र सामवेद।
पवित्र अथर्ववेद।
पवित्र वेद किसने लिखे? या चारों पवित्र वेद कैसे लिखे गए थे?
लगभग 5000 साल पहले, महर्षि वेद व्यास ने वेदों का संकलन किया था। उन्होंने मंत्रों को चार संहिताओं (संग्रह) में व्यवस्थित किया जो चार वेद हैं:

पवित्र ऋग्वेद।
पवित्र यजुर्वेद।
पवित्र सामवेद।
पवित्र अथर्ववेद।
वे वैदिक संस्कृत में लिखे गए थे लेकिन आज इन वेदों का हिंदी और कुछ अन्य भाषाओं में भी अनुवाद किया गया है।

चार पवित्र वेदों का संक्षिप्त परिचय
आइए चार पवित्र वेदों का संक्षिप्त परिचय शुरू करते हैं।

पवित्र ऋग्वेद
पवित्र ऋग्वेद दस पुस्तकों (मंडलों) में आयोजित लगभग 10,600 मंत्र, 1,028 सूक्तों का संग्रह है।
पवित्र ऋग्वेद में भगवान कबीर देव की महिमा का विस्तार से वर्णन किया गया है। पूर्ण परमात्मा कहां रहता है, ऋग्वेद के अनुसार, सृष्टि रचना और परमात्मा अपने साधक की आयु भी बढ़ा देता है, इस खंड में विस्तार से बताया गया है।
पूर्ण परमात्मा, सर्वशक्तिमान परमात्मा कहाँ रहते हैं | ऋग्वेद
परमपिता परमात्मा सतलोक नामक शाश्वत स्थान में रहते हैं।

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 18

ऋषिमना य ऋषिकृत्स्वर्षाः सहस्त्रणीथः पदवीः कवीनाम्।
तृतीयं धाम महिषः सिषासन्त्सोमो विराजमनु राजति ष्टुप्।।18।।

ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वर्षाः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम्। तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप्।।

अनुवाद - वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि (य) जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर (कवीनाम्) प्रसिद्ध कवियों की (पदवीः) उपाधि प्राप्त करके अर्थात् एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस (ऋषिकृत्) संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची (सहस्त्राणीथः) हजारों वाणी (ऋषिमना) संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अर्थात् भक्तों के लिए (स्वर्षाः) स्वर्ग तुल्य आनन्द दायक होती हैं। (सोम) वह अमर पुरुष अर्थात् सतपुरुष (तृतीया) तीसरे (धाम) मुक्तिलोक अर्थात् सत्यलोक की (महिषः) सुदृढ़ पृथ्वी को (सिषा) स्थापित करके (अनु) पश्चात् (सन्त्) मानव सदृश संत रूप में होता हुआ (स्टुप) गुबंद अर्थात् गुम्बज में उच्चे टिले रूपी सिंहासन पर (विराजमनुराजति) उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात् मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।

पवित्र यजुर्वेद
"यजुर्वेद" एक धार्मिक पवित्र पुस्तक है जिसमें प्रभु की यज्ञीय स्तुतियों की ऋचाऐं लिखी हैं तथा प्रभु कैसा है? कैसे पाया जाता है? सब विस्तृत वर्णन है।

यजुर्वेद का अर्थ यज्ञीय स्तुतियों का ज्ञान है।
पवित्र यजुर्वेद संहिता में लगभग 1,875 मंत्र शामिल हैं। यजुर्वेद में ज्ञान है कि परमेश्वर कबीर साहेब जी कैसे दिखते हैं और क्या वह अपने भक्तों के पापों को क्षमा करते हैं या नहीं?
पूर्ण परमात्मा साकार है या निराकार? | पवित्र यजुर्वेद
वेदों में लिखा है कि

'अग्ने: तनूर असि' - (पवित्र यजुर्वेद अध्याय 1 मंत्र 15) परमेश्वर सशरीर है तथा पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 1 में दो बार लिखा है कि
'अग्ने: तनूर असि विष्णवे त्वा सोमस्य तनूर असि'। - इस मंत्र में दो बार वेद गवाही दे रहा है कि सर्वव्यापक, सर्वपालन कर्ता सतपुरुष सशरीर है।
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8 में कहा है कि (कविर मनिषी) जिस परमेश्वर की सर्व प्राणियों को चाह है, वह कविर अर्थात कबीर परमेश्वर पूर्ण विद्वान है। उसका शरीर बिना नाड़ी (अस्नाविरम) का है, (शुक्रम अकायम) वीर्य से बनी पांच तत्व से बनी भौतिक काया रहित है। वह सर्व का मालिक सर्वोपरि सत्यलोक में विराजमान है। उस परमेश्वर का तेजपुंज का (स्वर्ज्योति) स्वयं प्रकाशित शरीर है। जो शब्द रूप अर्थात अविनाशी है। वही कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है जो सर्व ब्रह्मण्डों की रचना करने वाला (व्यदधाता) सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार (स्वयम्भूः) स्वयं प्रकट होने वाला (यथा तथ्यः अर्थान्) वास्तव में (शाश्वतिभः) अविनाशी है जिसके विषय में वेद वाणी द्वारा भी जाना जाता है कि परमात्मा साकार है तथा उसका नाम कविर्देव अर्थात् कबीर प्रभु है(गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में भी प्रमाण है।) भावार्थ है कि पूर्ण ब्रह्म का शरीर का नाम कबीर (कविर देव) है। उस परमेश्वर का शरीर नूर तत्व से बना है।

परमात्मा पाप नष्ट कर सकता है | यजुर्वेद
पवित्र यजुर्वेद अध्याय 5 मंत्र 32 में है कि कविरंघारिसि = (कविर्) कबिर परमेश्वर (अंघ) पाप का (अरि) शत्रु (असि) है अर्थात् पाप विनाशक कबीर है। बम्भारिसि = (बम्भारि) बन्धन का शत्रु अर्थात् बन्दी छोड़ कबीर परमेश्वर (असि) है।

यजुर्वेद अध्याय 8 मंत्र 13

यह बहुत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि परमात्मा पाप नाश कर सकते हैं। परमात्मा अपने उपासक के पापों का नाश कर देते हैं। परमात्मा पिता द्वारा किए गए पापों को भी नष्ट कर देते हैं।
परमात्मा घोर पाप का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अनजाने में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं। परमात्मा अतीत में किए गए या वर्तमान में किए गए सभी पापों का भी नाश कर देते हैं।
पवित्र सामवेद
सामवेद “मंत्रों का वेद” या “धुनों का ज्ञान” है। इसमें 1,549 मंत्र हैं।
सामवेद संख्या नं. 822 में वर्णन मिलता है कि पूर्ण संत तीन प्रकार के मंत्रों (नाम) को तीन बार में उपदेश करेगा जिसका वर्णन
तीन बार में नाम जाप देने का प्रमाण | सामवेद
संख्या न. 822 सामवेद उतार्चिक अध्याय 3 खण्ड न. 5 श्लोक न. 8 (पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा भाषा-भाष्य):-

मनीषिभिः पवते पूर्व्यः कविर्नृभिर्यतः परि कोशां असिष्यदत्।
त्रितस्य नाम जनयन्मधु क्षरन्निन्द्रस्य वायुं सख्याय वर्धयन्।।8।।

मनीषिभिः - पवते - पूर्व्यः - कविर् - नृभिः - यतः - परि - कोशान् - असिष्यदत् - त्रि - तस्य - नाम - जनयन् - मधु - क्षरनः - न - इन्द्रस्य - वायुम् - सख्याय - वर्धयन्।

शब्दार्थ - (पूर्व्यः) सनातन अर्थात् अविनाशी (कविर नृभिः) कबीर परमेश्वर मानव रूप धारण करके अर्थात् गुरु रूप में प्रकट होकर (मनीषिभिः) हृदय से चाहने वाले श्रद्धा से भक्ति करने वाले भक्तात्मा को (त्रि) तीन (नाम) मन्त्र अर्थात् नाम उपदेश देकर (पवते) पवित्र करके (जनयन्) जन्म व (क्षरनः) मृत्यु से (न) रहित करता है तथा (तस्य) उसके (वायुम्) प्राण अर्थात् जीवन-स्वांसों को जो संस्कारवश गिनती के डाले हुए होते हैं को (कोशान्) अपने भण्डार से (सख्याय) मित्रता के आधार से (परि) पूर्ण रूप से (वर्धयन्) बढ़ाता है। (यतः) जिस कारण से (इन्द्रस्य) परमेश्वर के (मधु) वास्तविक आनन्द को (असिष्यदत्) अपने आशीर्वाद प्रसाद से प्राप्त करवाता है।

भावार्थ:- इस मन्त्र में स्पष्ट किया है कि पूर्ण परमात्मा कविर अर्थात् कबीर मानव शरीर में गुरु रूप में प्रकट होकर प्रभु प्रेमीयों को तीन नाम का जाप देकर सत्य भक्ति कराता है तथा उस मित्र भक्त को पवित्र करके अपने आशीर्वाद से पूर्ण परमात्मा प्राप्ति करके पूर्ण सुख प्राप्त कराता है। साधक की आयु बढ़ाता है। यही प्रमाण गीता अध्याय 17 श्लोक 23 में है कि ओम्-तत्-सत् इति निर्देशः ब्रह्मणः त्रिविद्य स्मृतः

भावार्थ है कि पूर्ण परमात्मा को प्राप्त करने का ॐ (1) तत् (2) सत् (3) यह मन्त्र जाप स्मरण करने का निर्देश है। इस नाम को तत्वदर्शी संत से प्राप्त करो। तत्वदर्शी संत के विषय में गीता अध्याय 4 श्लोक नं. 34 में कहा है तथा गीता अध्याय नं. 15
श्लोक नं. 1 व 4 में तत्वदर्शी सन्त की पहचान बताई तथा कहा है कि तत्वदर्शी सन्त से तत्वज्ञान जानकर उसके पश्चात् उस परमपद परमेश्वर की खोज करनी चाहिए। जहां जाने के पश्चात् साधक लौट कर संसार में नहीं आते अर्थात् पूर्ण मुक्त हो जाते हैं। उसी पूर्ण परमात्मा से संसार की रचना हुई है।

विशेष:- उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हुआ कि पवित्र चारों वेद भी साक्षी हैं कि पूर्ण परमात्मा ही पूजा के योग्य है, उसका वास्तविक नाम कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है तथा तीन मंत्र के नाम का जाप करने से ही पूर्ण मोक्ष होता है।

पवित्र अथर्ववेद
अथर्ववेद की रचना वैदिक संस्कृत में की गई है, और यह लगभग 6,000 मंत्रों के साथ 730 सूक्तों का संग्रह है, जिन्हें 20 पुस्तकों में विभाजित किया गया है, जिन्हें अनुवाक कहा जाता है।

पूर्ण परमात्मा का क्या नाम है | अथर्ववेद
पूर्ण परमात्मा का नाम सरकारी दस्तावेज (वेदों) में कविर्देव है, परन्तु पृथ्वी पर अपनी-अपनी मातृ भाषा में कबीर, कबिर, कबीरा, कबीरन् आदि नामों से जाना जाता है।

अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक न. 1, मन्त्र नं. 7 (पूर्ण संत रामपाल जी महाराज जी द्वारा भाषा भाष्य) :-

योऽथर्वाणं पित्तरं देवबन्धुं बृहस्पतिं नमसाव च गच्छात्।
त्वं विश्वेषां जनिता यथासः कविर्देवो न दभायत् स्वधावान् ।।7।।

यः - अथर्वाणम् - पित्तरम् - देवबन्धुम् - बृहस्पतिम् - नमसा - अव - च - गच्छात् - त्वम् - विश्वेषाम् - जनिता - यथा - सः - कविर्देवः - न - दभायत् - स्वधावान्

अनुवाद:- (यः) जो (अथर्वाणम्) अचल अर्थात् अविनाशी (पित्तरम्) जगत पिता (देवबन्धुम्) भक्तों का वास्तविक साथी अर्थात् आत्मा का आधार (बृहस्पतिम्) सबसे बड़ा स्वामी ज्ञान दाता जगतगुरु (च) तथा (नमसा) विनम्र पुजारी अर्थात् विधिवत् साधक को (अव) सुरक्षा के साथ (गच्छात्) जो सतलोक जा चुके हैं उनको सतलोक ले जाने वाला (विश्वेषाम्) सर्व ब्रह्मण्डों को (जनिता) रचने वाला (न दभायत्) काल की तरह धोखा न देने वाले (स्वधावान्) स्वभाव अर्थात् गुणों वाला (यथा) ज्यों का त्यों अर्थात् वैसा ही (सः) वह (त्वम्) आप (कविर्देवः कविर्/देवः) कबीर परमेश्वर अर्थात् कविर्देव है।

भावार्थ:- जिस परमेश्वर के विषय में कहा जाता है -

त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धु च सखा त्वमेव, त्वमेव विद्या च द्रविणम्, त्वमेव सर्वम् मम् देव देव।।

वह जो अविनाशी सर्व का माता पिता तथा भाई व सखा व जगत गुरु रूप में सर्व को सत्य भक्ति प्रदान करके सतलोक ले जाने वाला, काल की तरह धोखा न देने वाला, सर्व ब्रह्मण्डों की रचना करने वाला कविर्देव (कबीर परमेश्वर) है।

इस मंत्र में यह भी स्पष्ट कर दिया कि उस परमेश्वर का नाम कविर्देव अर्थात् कबीर परमेश्वर है, जिसने सर्व रचना की है।

निष्कर्ष: इस पूरे लेख का निष्कर्ष इस प्रकार है: -

पवित्र चारों वेद भगवान का संविधान हैं।
वेदों में पूर्ण परमेश्वर के बारे में पूरी जानकारी है, लेकिन पूर्ण परमेश्वर को प्राप्त करने के लिए पूजा की सही विधि क्या है, या हम कैसे पूर्ण मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं इसका उल्लेख पवित्र वेदों में नहीं किया गया है।
यदि आप जानना चाहते हैं कि पूर्ण परमात्मा तथा पूर्ण मोक्ष कैसे प्राप्त कर सकते हैं, तो आपको पूर्ण संत की शरण लेनी होगी। इस समय पूरे विश्व पूर्ण संत जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ही हैं। उनसे नाम उपदेश प्राप्त कर अपना कल्याण कराएं।

13/09/2023

बन्दीछोड़ सतगुरु रामपाल जी महाराज जी की जय*"

🌼 *सतगुरुदेव जी का विशेष संदेश~2*🌼

🔗 मालिक के आदेशानुसार विशेष संदेश का दूसरा भाग Publish कर दिया गया है।
सभी भक्तों को मालिक का अनमोल विशेष संदेश को सुनना है और सभी भक्तों तक भेजना है।

*🪻Episode~2*

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12/09/2023

अपने सतगुरु के अतिरिक्त किसी से भी स्वपन्न में भी कोई लाभ न चाहो || विशेष संदेश || Episode 01

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02/09/2023

तीन दिवसीय विशाल भंडारे का आयोजन संत रामपाल जी महाराज जी के सानिध्य मे।
आप सभी सादर आमंत्रित हैं।

02/09/2023

एक बार फिर संत रामपाल जी महाराज के अवतरण दिवस पर हो रहा है पाप नासिक भंडारा

पवित्र ग्रंथों के अनुसार वास्तविक आदिपुरुष कबीर साहेब है, राम नहींआदि यानी सबसे पहला, सर्वप्रथम, और पुरूष अर्थात परमात्म...
02/09/2023

पवित्र ग्रंथों के अनुसार वास्तविक आदिपुरुष कबीर साहेब है, राम नहीं

आदि यानी सबसे पहला, सर्वप्रथम, और पुरूष अर्थात परमात्मा। सबसे पहला स्वयंभू परमात्मा जिसने सर्व ब्रह्मांड रचे। अपने स्वरूप में अपने जैसे नर आकार मनुष्यों की रचना की। विश्व की आधी से अधिक आबादी भगवान विष्णु के अवतार श्री रामचन्द्र जी उर्फ दशरथ पुत्र राम को आदिपुरुष मानते हैं। लेकिन क्या वाकई में श्री राम उर्फ श्री विष्णुजी जी आदिपुरुष यानि सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता हैं? इस प्रश्न का प्रमाण सहित उत्तर जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख तथा जानिए अपने ही धर्मग्रंथों के अनुसार आदिपुरुष की पहचान व आदिपुरुष अर्थात सृष्टि रचनहार परमात्मा की वास्तविक जानकारी।

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01/09/2023

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पवित्र ग्रंथों के अनुसार वास्तविक आदिपुरुष कबीर साहेब, राम नहीं
Published on Jul 22, 2023

पवित्र ग्रंथों के अनुसार वास्तविक आदिपुरुष कबीर साहेब, राम नहीं
आदि यानी सबसे पहला, सर्वप्रथम, और पुरूष अर्थात परमात्मा। सबसे पहला स्वयंभू परमात्मा जिसने सर्व ब्रह्मांड रचे। अपने स्वरूप में अपने जैसे नर आकार मनुष्यों की रचना की। विश्व की आधी से अधिक आबादी भगवान विष्णु के अवतार श्री रामचन्द्र जी उर्फ दशरथ पुत्र राम को आदिपुरुष मानते हैं। लेकिन क्या वाकई में श्री राम उर्फ श्री विष्णुजी जी आदिपुरुष यानि सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता हैं? इस प्रश्न का प्रमाण सहित उत्तर जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख तथा जानिए अपने ही धर्मग्रंथों के अनुसार आदिपुरुष की पहचान व आदिपुरुष अर्थात सृष्टि रचनहार परमात्मा की वास्तविक जानकारी।

इस लेख में हम आपको आदिपुरुष से जुड़े निम्न बिंदु पर जानकारी देंगे
आदिपुरुष का क्या अर्थ होता है?
कौन है आदिपुरुष, क्या है उसकी पहचान?
क्या आदिपुरुष जन्म-मृत्यु के दुष्चक्र में आता है या अविनाशी होता है?
क्या श्री विष्णु जी के अवतार श्री रामचंद्र हैं आदिपुरुष?
क्या श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु, श्री शिव जी या इनके पिता काल ब्रह्म हैं आदिपुरुष?
धर्मग्रंथों के अनुसार, सर्व सृष्टा अर्थात आदिपुरुष परमात्मा कौन है, जिसकी प्रभुता सर्व ब्रह्मांडो पर है?
सत्यपुरुष, परम अक्षर ब्रह्म, वासुदेव, सच्चिदानंद घन ब्रह्म किस परमेश्वर के उपमात्मक नाम हैं?
आदिपुरूष शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है?
आदिपुरूष दो शब्दों 'आदि' और 'पुरुष' से मिलकर बना है। आदिपुरुष मूल पुरुष को कहते हैं। सबसे पहला पुरुष, किसी वंश या साम्राज्य की पहली कड़ी को आदिपुरुष कहा जाता है, जिससे किसी वंश की शुरुआत होती है सभी जीवों, सृष्टि और ब्रह्माण्डों के रचनहार कबीर परमेश्वर ही आदिपुरुष हैं। कबीर जी से ही हम सभी मनुष्यों की उत्पत्ति हुई है।

कौन है आदिपुरुष?
आदिपुरुष का सीधा अर्थ है "पहला भगवान" अर्थात जिसने सर्व ब्रह्मांडों की सृष्टि की है, हमें बनाया है, जोकि अजर अमर अविनाशी है। इसी आदिपुरुष के विषय में पवित्र गीता अध्याय 2 श्लोक 17 में कहा गया है कि उस अविनाशी को मारने में कोई सक्षम नहीं है। इन्हीं आदिपुरुष अर्थात सबसे पहले परमेश्वर को श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 8 श्लोक 3, अध्याय 15 श्लोक 17, अध्याय 7 श्लोक 19 व अध्याय 17 श्लोक 23 में परम अक्षर ब्रह्म, उत्तम पुरुष, वासुदेव व सच्चिदानंद घन ब्रह्म के नाम से संबोधित किया गया है।

आदिपुरुष की क्या पहचान है?
हमारे धर्मग्रंथ जैसे: चारों वेद, श्रीमद्भागवत गीता, कुरान आदि में पूर्ण परमात्मा यानि आदिपुरुष की अनेकों पहचान बताई गई हैं। पवित्र ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 93 मंत्र 2 तथा मण्डल 10 सूक्त 4 मंत्र 3 में आदिपुरुष की पहचान के विषय में लिखा है कि आदिपुरुष स्वयं सशरीर प्रकट होता है, जब वह शिशु रूप में प्रकट होता है तो उसका जन्म माता के गर्भ से नहीं होता बल्कि वह स्वयं सशरीर प्रकट होता है और सशरीर अपने अमर लोक को चला जाता है। मुस्लिम धर्म की पवित्र पुस्तक कुरान शरीफ, सूरा अल इख़लास 112 आयत 1 - 4 में कहा गया है कि ना वह अल्लाह (परमात्मा) मां से जन्म लेता है और ना ही मरता है अर्थात अविनाशी है। वही कुल का मालिक अर्थात सर्व का सृजनहार है।

क्या ब्रह्मा, विष्णु (श्रीराम) व शिव जी यह तीनों भगवान आदिपुरुष हैं?
तीन लोक (स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक या मृत्युलोक व पाताल लोक) के स्वामी श्री विष्णु जी ने त्रेतायुग में अयोध्या के राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या के गर्भ से राम के रूप में जन्म लिया था और अंत समय में श्री रामचंद्र जी ने सरयू नदी में जल समाधि लेकर अपने प्राण अपनी स्वेच्छा से त्यागे थे। इसी तरह द्वापरयुग में श्री विष्णु जी, श्रीकृष्ण के रूप में माता देवकी के गर्भ से जन्मे थे और अंत में एक शिकारी द्वारा छोड़े गए विषाक्त तीर के लगने से उनकी मौत हुई थी। गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद्देवी भागवत के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 4-5 में श्री विष्णु जी अपनी माता दुर्गा की स्तुति करते हुए कहते हैं कि हे माता! आप शुद्ध स्वरूपा हो, मैं (विष्णु), ब्रह्मा और शंकर तो आपकी कृपा से विद्यमान हैं, हमारा तो अविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है, हम अविनाशी नहीं हैं। देवी पुराण के इस उल्लेख से ये स्पष्ट है कि ये तीनों देवता नाशवान हैं तथा गीता और वेदों के ज्ञान अनुसार यह तीनों देवता आदिपुरुष यानि सृष्टि रचनहार भगवान नहीं हैं।

क्या काल ब्रह्म है आदिपुरुष?
श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 11 श्लोक 32 व अध्याय 8 श्लोक 13 से स्पष्ट है कि गीता बोलने वाला प्रभु काल ब्रह्म है। उसने स्वयं गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5 और अध्याय 10 श्लोक 2 में अपनी स्थिति स्पष्ट की है कि मेरी उत्पत्ति यानि मेरा जन्म-मरण होता है, अर्जुन यह तू नहीं जानता मैं जानता हूँ अर्थात मैं भी नाशवान हूँ। गीता अध्याय 15 श्लोक 1- 4, अध्याय 4 श्लोक 34 में गीता ज्ञान दाता ब्रह्म कहता है कि तत्वदर्शी संत की तलाश करने के पश्चात् उस परमेश्वर के परम पद अर्थात् सतलोक को भली-भाँति खोजना चाहिए, जिसमें गये हुए साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते और जिस परम अक्षर ब्रह्म से सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की है, उस सनातन पूर्ण परमात्मा की ही मैं शरण में हूँ। इससे स्पष्ट है कि काल ब्रह्म से कोई अन्य भिन्न भगवान है जोकि आदिपुरुष है।

हिन्दू धर्म के अनुसार आदिपुरुष कौन है?
चारों वेदों, ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद में वर्णित प्रमाण देख कर जानिए की क्या आदिपुरुष परमात्मा कविर्देव यानि कबीर साहेब जी हैं? पढ़िये वेदों से प्रमाण :

जिस परमेश्वर की सर्व प्राणियों को चाह है, वह कविर्देव अर्थात कबीर परमेश्वर पूर्ण विद्वान है। उसका शरीर बिना नाड़ी का है, वह वीर्य से बनी पांच तत्व की भौतिक काया रहित है। वह सर्व का मालिक सर्वोपरि सत्यलोक (अमरलोक) में विराजमान है। उस परमेश्वर का तेजपुंज का स्वयं प्रकाशित शरीर है। जो शब्द रूप अर्थात अविनाशी है। वही कविर्देव यानि कबीर साहेब है जो सर्व ब्रह्मण्डों की रचना करने वाला सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार स्वयं प्रकट होने वाला वास्तव में अविनाशी है। – पवित्र यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8
जो अचल अर्थात् अविनाशी जगत पिता भक्तों का वास्तविक साथी अर्थात् आत्मा का आधार सबसे बड़ा स्वामी, जगतगुरु तथा विनम्र पुजारी अर्थात् विधिवत् साधक को सुरक्षा के साथ सतलोक ले जाने वाला सर्व ब्रह्मण्डों को रचने वाला काल की तरह धोखा न देने वाले स्वभाव अर्थात् गुणों वाला ज्यों का त्यों वह कबीर परमेश्वर अर्थात् कविर्देव है। – अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र 7
सर्व सृष्टी रचनहार कुल का मालिक कविर्देव अर्थात् कबीर परमात्मा है जोकि तेजोमय शरीर युक्त है। यही परमात्मा साधकों के लिए पूजा योग्य है। – ऋग्वेद मण्डल 1 सुक्त 1 मंत्र 5
जो पूर्वोक्त परमात्मा कवियों की भूमिका करके अपना तत्वज्ञान प्रदान करता है वह कविर्देव है अर्थात् वह कबीर प्रभु है, जिसकी प्रभुता सर्व ब्रह्मण्डों के प्रभुओं पर है। वह सदा एक रस रहता है अर्थात् जन्मता व मरता नहीं है यानि अविनाशी, वह मनुष्य सदृश शरीर से सुशोभित है। – ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 94 मंत्र 3
सर्व सृष्टि रचनहार कविर्देव (कबीर साहेब) पूर्ण ईश्वरीय शक्तियुक्त पूर्णब्रह्म के समान मनोहर जो सब ओर से न मारा जाने वाला अर्थात् अविनाशी अपने उपासक भक्त के पाप कर्मों को नष्ट करके पवित्र करने वाला स्वयं कबीर ही है। – संख्या न. 920 सामवेद के उतार्चिक अध्याय न. 5 के खण्ड न. 4 का श्लोक न. 2
संख्या न. 822 सामवेद उतार्चिक अध्याय 3 खण्ड न. 5 श्लोक न. 8, संख्या न. 968 सामवेद अध्याय न. 6 का खण्ड न. 2 का श्लोक न. 1 और ऋग्वेद मण्डल न. 9 सुक्त न. 20 श्लोक न. 1 में कहा गया है कि प्रथम अर्थात् पुरातन-सनातन अविनाशी परमेश्वर कविर्देव अर्थात कबीर साहेब हैं।
पूर्ण सृष्टा अर्थात सर्व ब्रह्मांडों का रचनहार परमात्मा कविर्देव (कबीर साहेब) है। – संख्या नं. 1318 सामवेद उतार्चिक अध्याय नं. 10 खण्ड नं. 9 श्लोक नं. 9
मुस्लिम व ईसाई धर्म में अल्लाहु अकबर (आदिपुरुष) का प्रमाण सहित वर्णन
कुरान शरीफ (मजीद), सूरत फुरकानी 25 आयत 52-59 में लिखा है कि वह कबीर अल्लाह है जो कभी मरने वाला नहीं है अर्थात वह अविनाशी है। वह अपने उपासकों के सर्व पापों का नाशक है, उसने ही 6 दिन में सर्व सृष्टि की रचना की है। ऑर्थोडॉक्स जयूइश बाइबिल (OJB) - IYOV 36:5 में लिखा है कि परमात्मा कबीर है, वह किसी से भी नफरत नहीं करता है। वह कबीर है और अपने उद्देश्य में दृढ़ है।

सिख धर्म के अनुसार आदिपुरुष कौन है?
श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 721, राग तिलंग महला 1 की वाणी :

यक अर्ज गुफतम् पेश तो दर कून करतार।
हक्का कबीर करीम तू बेअब परवरदिगार।।

इस शब्द में गुरुनानक देव जी ने कहा है कि, हे! हक्का कबीर अर्थात सतकबीर आप (कून करतार) शब्द शक्ति से रचना करने वाले शब्द स्वरूपी प्रभु अर्थात् सर्व सृष्टि के रचनहार हो, आप ही बेएब निर्विकार (परवरदिगार) सर्व के पालन कर्ता दयालु प्रभु हो। साथ ही, पुस्तक "भाई बाले वाली जन्म साखी" के पृष्ठ 189 पर एक काजी रूकनदीन सूरा के प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री नानक देव जी ने कहा है :

खालक आदम सिरजिआ आलम बड़ा कबीर।
काइम दाइम कुदरती सिर पीरां दे पीर।
सयदे (सजदे) करे खुदाई नूं आलम बड़ा कबीर।

अर्थात जिस परमात्मा ने आदम जी की उत्पति की वह सबसे बड़ा परमात्मा कबीर है। वही सर्व उपकार करने वाला है तथा सब गुरुओं में शिरोमणि गुरु है। उस सब से बड़े कबीर परमेश्वर को सिजदा करो अर्थात् प्रणाम करो, उसी की पूजा करो।

आदिपुरुष (सृष्टि उत्पत्तिकर्ता) का संतों की वाणियों में उल्लेख
परमेश्वर प्राप्त संतों जैसे सिख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक देव जी और दादू पंथी संत दादू जी, गरीबदास पंथी संत गरीबदास जी महाराज जी आदि ने अपनी वाणियों में यह बताया है कि आदिपुरुष, परमेश्वर कबीर जी हैं, इन्होंने ही सर्व ब्रह्मांडों की रचना की है। इनका जन्म मां से नहीं होता बल्कि यह स्वयं सशरीर आते हैं और सशरीर वापिस चले जाते हैं। संत गरीबदास जी ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह आदिपुरुष परमेश्वर कबीर वह है जिन्होंने सन् 1398-1518 यानि 120 वर्षों तक काशी बनारस में एक जुलाहे के रूप में लीला की थी, यही कबीर परमेश्वर मुझे (गरीबदास जी), नानक जी, दादू जी और अधम सुल्तान को मिले थे।

गरीब, अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सृजन हार।।
हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया।
जात जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।
गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मांड में, बंदी छोड़ कहाय।
सो तो एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय।।

- संत गरीबदास जी



जिन मोकूँ निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार।
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजन हार।।

- संत दादू जी

आदिपुरुष, कबीर परमेश्वर अपना परिचय स्वयं देते हैं
कबीर, हमहीं अलख अल्लाह हैं, मूल रूप करतार।
अनंत कोटि ब्रह्मांड का, मैं ही सृजनहार।।
हम ही अलख अल्लाह हैं, हमरा अमर शरीर।
अमर लोक से चलकर आए, काटन जम की जंजीर।।
कविः नाम जो बेदन में गावा, कबीरन् कुरान कह समझावा।
वाही नाम है सबन का सारा, आदि नाम वाही कबीर हमारा।।

आदिपुरुष, परमेश्वर कबीर जी अपनी महिमा स्वयं बताते हुए कहते हैं कि "मैं ही वह मूल परमात्मा (अल्लाहु अकबर) हूँ, मैंने ही सर्व ब्रह्मांडों को रचा है, मेरा अजर अमर अविनाशी शरीर है तथा मेरी ही महिमा वेदों में कवि: (कविर्देव) के रूप में है और कुरान में मुझे कबीरन्, कबीरु, अकबीरु, कबीरा, खबीरन आदि कहा गया है। मैं ही सबका मालिक यानि सर्व सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता कबीर हूँ।

कबीर साहेब द्वारा गोरखनाथ को अपना परिचय देना
जो बूझे सोई बावरा, क्या है उम्र हमारी।
असंख युग प्रलय गई, तब का ब्रह्मचारी।।
कोटि निरंजन हो गए, परलोक सिधारी।
हम तो सदा महबूब हैं, स्वयं ब्रह्मचारी।।
अरबों तो ब्रह्मा गए, उनन्चास कोटि कन्हैया।
सात कोटि शम्भू गए, मोर एक नहीं पलैया।।
कोटिक नारद हो गए, मुहम्मद से चारी।
देवतन की गिनती नहीं है, क्या सृष्टि विचारी।।
नहीं बुढ़ा नहीं बालक, नाहीं कोई भाट भिखारी।
कहैं कबीर सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी।।

कबीर परमेश्वर, श्री गोरखनाथ सिद्ध को अपनी आयु का विवरण देते हुए कहते हैं कि असंख युग प्रलय हो गई। करोड़ों ब्रह्म (काल), अरबों ब्रह्मा, 49 करोड़ श्रीकृष्ण (विष्णु), 7 करोड़ शिव भगवान, मृत्यु को प्राप्त होकर पुनर्जन्म प्राप्त कर चुके हैं। लेकिन तब का मैं वर्तमान में भी हूँ अर्थात् अमर हूँ।

ऊपर वर्णित सभी प्रमाणों से यह स्पष्ट होता है कि पूर्ण परमात्मा आदिपुरुष यानी सबसे पहले का स्वयंभू परमात्मा, सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता (सर्व सृष्टि रचनहार) कविर्देव अर्थात कबीर साहेब जी हैं, जिसने 626 वर्ष पहले काशी बनारस में 120 वर्ष तक रहकर जुलाहे की भूमिका निभाई। आदिपुरुष की और अधिक विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए आज ही अपने गूगल प्ले स्टोर से Sant Rampal Ji Maharaj App डाऊनलोड करें या आप Sant Rampal Ji Maharaj Youtube Channel देखें।

निष्कर्ष
सतयुग से मानव परमात्मा प्राप्ति के लिए भक्ति में लगा है लेकिन उसे मार्गदर्शन अर्थात सत्यज्ञान प्राप्त न होने के कारण वह तीनों देवताओं ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी तथा उनके अवतारों को ही आदिपुरुष अर्थात सर्व सृष्टि रचनहार पूर्ण परमात्मा मान बैठा जोकि उसकी भूल थीं। इसलिए भक्त समाज को अपने धर्म शास्त्रों के सत्यज्ञान को जानना बेहद जरूरी है तथा उसी आधार पर भक्ति करना चाहिए। उपरोक्त प्रमाणों से निम्नलिखित निष्कर्ष निकलता है :-

आदिपुरुष परमात्मा कविर्देव अर्थात कबीर साहेब हैं, इन्होंने ही सर्व सृष्टि की रचना की है। इस परमात्मा की प्रभुता सब पर है। वह जन्मता मरता नहीं है बल्कि अविनाशी है।
श्री विष्णु अवतार के अवतार श्री रामचन्द्र जी आदिपुरुष परमात्मा नहीं हैं बल्कि इनका जन्म मृत्यु होता है और न ही श्री ब्रह्मा, श्री शिव जी और काल ब्रह्म अविनाशी है।
आदिपुरुष परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव है लेकिन भाषा भिन्नता के कारण उन्हें कबीरन, कबीर साहेब, बन्दीछोड़ कबीर, हक्का कबीर, सतकबीर आदि नामों से जाना जाता है।
कबीर परमात्मा का जन्म माता के गर्भ से नहीं होता बल्कि वह स्वयं शरीर प्रकट होता है और स्वयं वापिस चला जाता है।
आदिपुरुष परमात्मा कबीर जी के ही उपमात्मक नाम परम अक्षर ब्रह्म, वासुदेव, सच्चिदानंद घन ब्रह्म इत्यादि हैं।
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पवित्र ग्रंथों के अनुसार वास्तविक
Published on Jul 22, 2023

पवित्र ग्रंथों के अनुसार वास्तविक आदिपुरुष कबीर साहेब, राम नहीं
आदि यानी सबसे पहला, सर्वप्रथम, और पुरूष अर्थात परमात्मा। सबसे पहला स्वयंभू परमात्मा जिसने सर्व ब्रह्मांड रचे। अपने स्वरूप में अपने जैसे नर आकार मनुष्यों की रचना की। विश्व की आधी से अधिक आबादी भगवान विष्णु के अवतार श्री रामचन्द्र जी उर्फ दशरथ पुत्र राम को आदिपुरुष मानते हैं। लेकिन क्या वाकई में श्री राम उर्फ श्री विष्णुजी जी आदिपुरुष यानि सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता हैं? इस प्रश्न का प्रमाण सहित उत्तर जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख तथा जानिए अपने ही धर्मग्रंथों के अनुसार आदिपुरुष की पहचान व आदिपुरुष अर्थात सृष्टि रचनहार परमात्मा की वास्तविक जानकारी।

इस लेख में हम आपको आदिपुरुष से जुड़े निम्न बिंदु पर जानकारी देंगे
आदिपुरुष का क्या अर्थ होता है?
कौन है आदिपुरुष, क्या है उसकी पहचान?
क्या आदिपुरुष जन्म-मृत्यु के दुष्चक्र में आता है या अविनाशी होता है?
क्या श्री विष्णु जी के अवतार श्री रामचंद्र हैं आदिपुरुष?
क्या श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु, श्री शिव जी या इनके पिता काल ब्रह्म हैं आदिपुरुष?
धर्मग्रंथों के अनुसार, सर्व सृष्टा अर्थात आदिपुरुष परमात्मा कौन है, जिसकी प्रभुता सर्व ब्रह्मांडो पर है?
सत्यपुरुष, परम अक्षर ब्रह्म, वासुदेव, सच्चिदानंद घन ब्रह्म किस परमेश्वर के उपमात्मक नाम हैं?
आदिपुरूष शब्द का शाब्दिक अर्थ क्या है?
आदिपुरूष दो शब्दों 'आदि' और 'पुरुष' से मिलकर बना है। आदिपुरुष मूल पुरुष को कहते हैं। सबसे पहला पुरुष, किसी वंश या साम्राज्य की पहली कड़ी को आदिपुरुष कहा जाता है, जिससे किसी वंश की शुरुआत होती है सभी जीवों, सृष्टि और ब्रह्माण्डों के रचनहार कबीर परमेश्वर ही आदिपुरुष हैं। कबीर जी से ही हम सभी मनुष्यों की उत्पत्ति हुई है।

कौन है आदिपुरुष?
आदिपुरुष का सीधा अर्थ है "पहला भगवान" अर्थात जिसने सर्व ब्रह्मांडों की सृष्टि की है, हमें बनाया है, जोकि अजर अमर अविनाशी है। इसी आदिपुरुष के विषय में पवित्र गीता अध्याय 2 श्लोक 17 में कहा गया है कि उस अविनाशी को मारने में कोई सक्षम नहीं है। इन्हीं आदिपुरुष अर्थात सबसे पहले परमेश्वर को श्रीमद्भागवत गीता अध्याय 8 श्लोक 3, अध्याय 15 श्लोक 17, अध्याय 7 श्लोक 19 व अध्याय 17 श्लोक 23 में परम अक्षर ब्रह्म, उत्तम पुरुष, वासुदेव व सच्चिदानंद घन ब्रह्म के नाम से संबोधित किया गया है।

आदिपुरुष की क्या पहचान है?
हमारे धर्मग्रंथ जैसे: चारों वेद, श्रीमद्भागवत गीता, कुरान आदि में पूर्ण परमात्मा यानि आदिपुरुष की अनेकों पहचान बताई गई हैं। पवित्र ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 93 मंत्र 2 तथा मण्डल 10 सूक्त 4 मंत्र 3 में आदिपुरुष की पहचान के विषय में लिखा है कि आदिपुरुष स्वयं सशरीर प्रकट होता है, जब वह शिशु रूप में प्रकट होता है तो उसका जन्म माता के गर्भ से नहीं होता बल्कि वह स्वयं सशरीर प्रकट होता है और सशरीर अपने अमर लोक को चला जाता है। मुस्लिम धर्म की पवित्र पुस्तक कुरान शरीफ, सूरा अल इख़लास 112 आयत 1 - 4 में कहा गया है कि ना वह अल्लाह (परमात्मा) मां से जन्म लेता है और ना ही मरता है अर्थात अविनाशी है। वही कुल का मालिक अर्थात सर्व का सृजनहार है।

क्या ब्रह्मा, विष्णु (श्रीराम) व शिव जी यह तीनों भगवान आदिपुरुष हैं?
तीन लोक (स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक या मृत्युलोक व पाताल लोक) के स्वामी श्री विष्णु जी ने त्रेतायुग में अयोध्या के राजा दशरथ के यहां माता कौशल्या के गर्भ से राम के रूप में जन्म लिया था और अंत समय में श्री रामचंद्र जी ने सरयू नदी में जल समाधि लेकर अपने प्राण अपनी स्वेच्छा से त्यागे थे। इसी तरह द्वापरयुग में श्री विष्णु जी, श्रीकृष्ण के रूप में माता देवकी के गर्भ से जन्मे थे और अंत में एक शिकारी द्वारा छोड़े गए विषाक्त तीर के लगने से उनकी मौत हुई थी। गीताप्रेस गोरखपुर से प्रकाशित श्रीमद्देवी भागवत के तीसरे स्कन्ध के अध्याय 4-5 में श्री विष्णु जी अपनी माता दुर्गा की स्तुति करते हुए कहते हैं कि हे माता! आप शुद्ध स्वरूपा हो, मैं (विष्णु), ब्रह्मा और शंकर तो आपकी कृपा से विद्यमान हैं, हमारा तो अविर्भाव (जन्म) तथा तिरोभाव (मृत्यु) हुआ करता है, हम अविनाशी नहीं हैं। देवी पुराण के इस उल्लेख से ये स्पष्ट है कि ये तीनों देवता नाशवान हैं तथा गीता और वेदों के ज्ञान अनुसार यह तीनों देवता आदिपुरुष यानि सृष्टि रचनहार भगवान नहीं हैं।

क्या काल ब्रह्म है आदिपुरुष?
श्रीमद्भगवत गीता अध्याय 11 श्लोक 32 व अध्याय 8 श्लोक 13 से स्पष्ट है कि गीता बोलने वाला प्रभु काल ब्रह्म है। उसने स्वयं गीता अध्याय 2 श्लोक 12, अध्याय 4 श्लोक 5 और अध्याय 10 श्लोक 2 में अपनी स्थिति स्पष्ट की है कि मेरी उत्पत्ति यानि मेरा जन्म-मरण होता है, अर्जुन यह तू नहीं जानता मैं जानता हूँ अर्थात मैं भी नाशवान हूँ। गीता अध्याय 15 श्लोक 1- 4, अध्याय 4 श्लोक 34 में गीता ज्ञान दाता ब्रह्म कहता है कि तत्वदर्शी संत की तलाश करने के पश्चात् उस परमेश्वर के परम पद अर्थात् सतलोक को भली-भाँति खोजना चाहिए, जिसमें गये हुए साधक फिर लौटकर संसार में कभी नहीं आते और जिस परम अक्षर ब्रह्म से सम्पूर्ण सृष्टि की रचना की है, उस सनातन पूर्ण परमात्मा की ही मैं शरण में हूँ। इससे स्पष्ट है कि काल ब्रह्म से कोई अन्य भिन्न भगवान है जोकि आदिपुरुष है।

हिन्दू धर्म के अनुसार आदिपुरुष कौन है?
चारों वेदों, ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद में वर्णित प्रमाण देख कर जानिए की क्या आदिपुरुष परमात्मा कविर्देव यानि कबीर साहेब जी हैं? पढ़िये वेदों से प्रमाण :

जिस परमेश्वर की सर्व प्राणियों को चाह है, वह कविर्देव अर्थात कबीर परमेश्वर पूर्ण विद्वान है। उसका शरीर बिना नाड़ी का है, वह वीर्य से बनी पांच तत्व की भौतिक काया रहित है। वह सर्व का मालिक सर्वोपरि सत्यलोक (अमरलोक) में विराजमान है। उस परमेश्वर का तेजपुंज का स्वयं प्रकाशित शरीर है। जो शब्द रूप अर्थात अविनाशी है। वही कविर्देव यानि कबीर साहेब है जो सर्व ब्रह्मण्डों की रचना करने वाला सर्व ब्रह्मण्डों का रचनहार स्वयं प्रकट होने वाला वास्तव में अविनाशी है। – पवित्र यजुर्वेद अध्याय 40 मंत्र 8
जो अचल अर्थात् अविनाशी जगत पिता भक्तों का वास्तविक साथी अर्थात् आत्मा का आधार सबसे बड़ा स्वामी, जगतगुरु तथा विनम्र पुजारी अर्थात् विधिवत् साधक को सुरक्षा के साथ सतलोक ले जाने वाला सर्व ब्रह्मण्डों को रचने वाला काल की तरह धोखा न देने वाले स्वभाव अर्थात् गुणों वाला ज्यों का त्यों वह कबीर परमेश्वर अर्थात् कविर्देव है। – अथर्ववेद काण्ड नं. 4 अनुवाक नं. 1 मंत्र 7
सर्व सृष्टी रचनहार कुल का मालिक कविर्देव अर्थात् कबीर परमात्मा है जोकि तेजोमय शरीर युक्त है। यही परमात्मा साधकों के लिए पूजा योग्य है। – ऋग्वेद मण्डल 1 सुक्त 1 मंत्र 5
जो पूर्वोक्त परमात्मा कवियों की भूमिका करके अपना तत्वज्ञान प्रदान करता है वह कविर्देव है अर्थात् वह कबीर प्रभु है, जिसकी प्रभुता सर्व ब्रह्मण्डों के प्रभुओं पर है। वह सदा एक रस रहता है अर्थात् जन्मता व मरता नहीं है यानि अविनाशी, वह मनुष्य सदृश शरीर से सुशोभित है। – ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 94 मंत्र 3
सर्व सृष्टि रचनहार कविर्देव (कबीर साहेब) पूर्ण ईश्वरीय शक्तियुक्त पूर्णब्रह्म के समान मनोहर जो सब ओर से न मारा जाने वाला अर्थात् अविनाशी अपने उपासक भक्त के पाप कर्मों को नष्ट करके पवित्र करने वाला स्वयं कबीर ही है। – संख्या न. 920 सामवेद के उतार्चिक अध्याय न. 5 के खण्ड न. 4 का श्लोक न. 2
संख्या न. 822 सामवेद उतार्चिक अध्याय 3 खण्ड न. 5 श्लोक न. 8, संख्या न. 968 सामवेद अध्याय न. 6 का खण्ड न. 2 का श्लोक न. 1 और ऋग्वेद मण्डल न. 9 सुक्त न. 20 श्लोक न. 1 में कहा गया है कि प्रथम अर्थात् पुरातन-सनातन अविनाशी परमेश्वर कविर्देव अर्थात कबीर साहेब हैं।
पूर्ण सृष्टा अर्थात सर्व ब्रह्मांडों का रचनहार परमात्मा कविर्देव (कबीर साहेब) है। – संख्या नं. 1318 सामवेद उतार्चिक अध्याय नं. 10 खण्ड नं. 9 श्लोक नं. 9
मुस्लिम व ईसाई धर्म में अल्लाहु अकबर (आदिपुरुष) का प्रमाण सहित वर्णन
कुरान शरीफ (मजीद), सूरत फुरकानी 25 आयत 52-59 में लिखा है कि वह कबीर अल्लाह है जो कभी मरने वाला नहीं है अर्थात वह अविनाशी है। वह अपने उपासकों के सर्व पापों का नाशक है, उसने ही 6 दिन में सर्व सृष्टि की रचना की है। ऑर्थोडॉक्स जयूइश बाइबिल (OJB) - IYOV 36:5 में लिखा है कि परमात्मा कबीर है, वह किसी से भी नफरत नहीं करता है। वह कबीर है और अपने उद्देश्य में दृढ़ है।

सिख धर्म के अनुसार आदिपुरुष कौन है?
श्री गुरु ग्रन्थ साहेब पृष्ठ नं. 721, राग तिलंग महला 1 की वाणी :

यक अर्ज गुफतम् पेश तो दर कून करतार।
हक्का कबीर करीम तू बेअब परवरदिगार।।

इस शब्द में गुरुनानक देव जी ने कहा है कि, हे! हक्का कबीर अर्थात सतकबीर आप (कून करतार) शब्द शक्ति से रचना करने वाले शब्द स्वरूपी प्रभु अर्थात् सर्व सृष्टि के रचनहार हो, आप ही बेएब निर्विकार (परवरदिगार) सर्व के पालन कर्ता दयालु प्रभु हो। साथ ही, पुस्तक "भाई बाले वाली जन्म साखी" के पृष्ठ 189 पर एक काजी रूकनदीन सूरा के प्रश्न का उत्तर देते हुए श्री नानक देव जी ने कहा है :

खालक आदम सिरजिआ आलम बड़ा कबीर।
काइम दाइम कुदरती सिर पीरां दे पीर।
सयदे (सजदे) करे खुदाई नूं आलम बड़ा कबीर।

अर्थात जिस परमात्मा ने आदम जी की उत्पति की वह सबसे बड़ा परमात्मा कबीर है। वही सर्व उपकार करने वाला है तथा सब गुरुओं में शिरोमणि गुरु है। उस सब से बड़े कबीर परमेश्वर को सिजदा करो अर्थात् प्रणाम करो, उसी की पूजा करो।

आदिपुरुष (सृष्टि उत्पत्तिकर्ता) का संतों की वाणियों में उल्लेख
परमेश्वर प्राप्त संतों जैसे सिख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक देव जी और दादू पंथी संत दादू जी, गरीबदास पंथी संत गरीबदास जी महाराज जी आदि ने अपनी वाणियों में यह बताया है कि आदिपुरुष, परमेश्वर कबीर जी हैं, इन्होंने ही सर्व ब्रह्मांडों की रचना की है। इनका जन्म मां से नहीं होता बल्कि यह स्वयं सशरीर आते हैं और सशरीर वापिस चले जाते हैं। संत गरीबदास जी ने यह भी स्पष्ट किया है कि यह आदिपुरुष परमेश्वर कबीर वह है जिन्होंने सन् 1398-1518 यानि 120 वर्षों तक काशी बनारस में एक जुलाहे के रूप में लीला की थी, यही कबीर परमेश्वर मुझे (गरीबदास जी), नानक जी, दादू जी और अधम सुल्तान को मिले थे।

गरीब, अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का एक रति नहीं भार।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सृजन हार।।
हम सुल्तानी नानक तारे, दादू कूं उपदेश दिया।
जात जुलाहा भेद नहीं पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।
गरीब, अनंत कोटि ब्रह्मांड में, बंदी छोड़ कहाय।
सो तो एक कबीर हैं, जननी जन्या न माय।।

- संत गरीबदास जी



जिन मोकूँ निज नाम दिया, सोई सतगुरु हमार।
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजन हार।।

- संत दादू जी

आदिपुरुष, कबीर परमेश्वर अपना परिचय स्वयं देते हैं
कबीर, हमहीं अलख अल्लाह हैं, मूल रूप करतार।
अनंत कोटि ब्रह्मांड का, मैं ही सृजनहार।।
हम ही अलख अल्लाह हैं, हमरा अमर शरीर।
अमर लोक से चलकर आए, काटन जम की जंजीर।।
कविः नाम जो बेदन में गावा, कबीरन् कुरान कह समझावा।
वाही नाम है सबन का सारा, आदि नाम वाही कबीर हमारा।।

आदिपुरुष, परमेश्वर कबीर जी अपनी महिमा स्वयं बताते हुए कहते हैं कि "मैं ही वह मूल परमात्मा (अल्लाहु अकबर) हूँ, मैंने ही सर्व ब्रह्मांडों को रचा है, मेरा अजर अमर अविनाशी शरीर है तथा मेरी ही महिमा वेदों में कवि: (कविर्देव) के रूप में है और कुरान में मुझे कबीरन्, कबीरु, अकबीरु, कबीरा, खबीरन आदि कहा गया है। मैं ही सबका मालिक यानि सर्व सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता कबीर हूँ।

कबीर साहेब द्वारा गोरखनाथ को अपना परिचय देना
जो बूझे सोई बावरा, क्या है उम्र हमारी।
असंख युग प्रलय गई, तब का ब्रह्मचारी।।
कोटि निरंजन हो गए, परलोक सिधारी।
हम तो सदा महबूब हैं, स्वयं ब्रह्मचारी।।
अरबों तो ब्रह्मा गए, उनन्चास कोटि कन्हैया।
सात कोटि शम्भू गए, मोर एक नहीं पलैया।।
कोटिक नारद हो गए, मुहम्मद से चारी।
देवतन की गिनती नहीं है, क्या सृष्टि विचारी।।
नहीं बुढ़ा नहीं बालक, नाहीं कोई भाट भिखारी।
कहैं कबीर सुन हो गोरख, यह है उम्र हमारी।।

कबीर परमेश्वर, श्री गोरखनाथ सिद्ध को अपनी आयु का विवरण देते हुए कहते हैं कि असंख युग प्रलय हो गई। करोड़ों ब्रह्म (काल), अरबों ब्रह्मा, 49 करोड़ श्रीकृष्ण (विष्णु), 7 करोड़ शिव भगवान, मृत्यु को प्राप्त होकर पुनर्जन्म प्राप्त कर चुके हैं। लेकिन तब का मैं वर्तमान में भी हूँ अर्थात् अमर हूँ।

ऊपर वर्णित सभी प्रमाणों से यह स्पष्ट होता है कि पूर्ण परमात्मा आदिपुरुष यानी सबसे पहले का स्वयंभू परमात्मा, सृष्टि का उत्पत्तिकर्ता (सर्व सृष्टि रचनहार) कविर्देव अर्थात कबीर साहेब जी हैं, जिसने 626 वर्ष पहले काशी बनारस में 120 वर्ष तक रहकर जुलाहे की भूमिका निभाई। आदिपुरुष की और अधिक विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए आज ही अपने गूगल प्ले स्टोर से Sant Rampal Ji Maharaj App डाऊनलोड करें या आप Sant Rampal Ji Maharaj Youtube Channel देखें।

निष्कर्ष
सतयुग से मानव परमात्मा प्राप्ति के लिए भक्ति में लगा है लेकिन उसे मार्गदर्शन अर्थात सत्यज्ञान प्राप्त न होने के कारण वह तीनों देवताओं ब्रह्मा, विष्णु व शिव जी तथा उनके अवतारों को ही आदिपुरुष अर्थात सर्व सृष्टि रचनहार पूर्ण परमात्मा मान बैठा जोकि उसकी भूल थीं। इसलिए भक्त समाज को अपने धर्म शास्त्रों के सत्यज्ञान को जानना बेहद जरूरी है तथा उसी आधार पर भक्ति करना चाहिए। उपरोक्त प्रमाणों से निम्नलिखित निष्कर्ष निकलता है :-

आदिपुरुष परमात्मा कविर्देव अर्थात कबीर साहेब हैं, इन्होंने ही सर्व सृष्टि की रचना की है। इस परमात्मा की प्रभुता सब पर है। वह जन्मता मरता नहीं है बल्कि अविनाशी है।
श्री विष्णु अवतार के अवतार श्री रामचन्द्र जी आदिपुरुष परमात्मा नहीं हैं बल्कि इनका जन्म मृत्यु होता है और न ही श्री ब्रह्मा, श्री शिव जी और काल ब्रह्म अविनाशी है।
आदिपुरुष परमात्मा का वास्तविक नाम कविर्देव है लेकिन भाषा भिन्नता के कारण उन्हें कबीरन, कबीर साहेब, बन्दीछोड़ कबीर, हक्का कबीर, सतकबीर आदि नामों से जाना जाता है।
कबीर परमात्मा का जन्म माता के गर्भ से नहीं होता बल्कि वह स्वयं शरीर प्रकट होता है और स्वयं वापिस चला जाता है।
आदिपुरुष परमात्मा कबीर जी के ही उपमात्मक नाम परम अक्षर ब्रह्म, वासुदेव, सच्चिदानंद घन ब्रह्म इत्यादि हैं।
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पवित्र ग्रंथों के अनुसार वास्तविक

आदिराम, सारनाम, सतनाम, सारशब्द क्या वस्तु है? | Sant Rampal Ji Maharaj LIVE | SATLOK ASHRAM________________________________________ संत रामपाल जी महाराज से न...

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