Shariq niyaz Pathan

Shariq niyaz Pathan meri zindagi ka maqsad tere Deen ki sarfarazi main isliye muslman main isliye namazi

11/01/2025
Kuch lamhat apne liye bhi hote he meri zindagi me alhamdulillah
24/12/2024

Kuch lamhat apne liye bhi hote he meri zindagi me alhamdulillah

05/11/2024

Seerat un Nabi(ﷺ)Part 24 | (سیرت النبی(ﷺ |Madina pahuch kar kya hua

Kya samjhe ?
06/10/2024

Kya samjhe ?

11/09/2024

अख़लाक़ ही आज़ादी है

दूसरो की ज़िंदगी जहन्नुम बना कर,
सजदों में जन्नत मांगना हिमाकत के सिवा कुछ नहीं

26/08/2024

Seerat un Nabi(ﷺ)Part 23 | (سیرت النبی(ﷺ |Madina pahuch kar kya hua

21/08/2024

💐 *हिकमत और गहरी सूझ-बूझ* 💐

इन सब ख़ूबियों के साथ एक बहुत ही अहम ख़ूबी हिकमत यानी सूझ-बूझ है, जिसपर बड़ी हद तक कामयाबी का दारोमदार है। दुनिया में ज़िन्दगी के जो निज़ाम भी क़ायम हैं उनको आला दर्जे के अक़्लमन्द और होशियार लोग चला रहे हैं और उनके पीछे माद्दी वसाइल (भौतिक संसाधनों) के साथ अक़्ली और फ़िक्री (वैचारिक) ताक़तें और इल्मी व फन्नी (ज्ञान-विज्ञान एवं कला सम्बन्धी) कुव्वतें काम कर रही हैं। उनके मुक़ाबले में एक दूसरे निजाम को क़ायम कर देना और कामयाबी के साथ चला लेना कोई बच्चों का खेल नहीं है। यह उन भोले-भाले लोगों का काम नहीं है जो एक कोने में बैठे अल्लाहु अल्लाहु करते रहते हैं। ये भोले-भाले लोग चाहे कितने ही अच्छे और नेक नीयत हों, इस काम को नहीं कर सकते। इसके लिए गहरी सूझ-बूझ और तदब्बुर (चिंतन-शक्ति) की ज़रूरत है। इसके लिए समझदारी और मामले की समझ चाहिए। इस काम को वही लोग कर सकते हैं जो मौक़े को पहचाननेवाले और तदबीर करनेवाले हों और ज़िन्दगी के मसाइल को समझने और उन्हें हल करने की सलाहियत रखते हों।
'हिकमत' इन सब खूबियों के लिए एक ऐसा लफ़्ज़ है जिसमें ये सारे मतलब आ जाते हैं और समझदारी और सूझ-बूझ के कई काम हिकमत के तहत आते हैं।
यह हिकमत है कि आदमी इनसानों की नफ़सियात (मनोविज्ञान) की समझ रखता हो और इनसानों से मामलात करना जानता हो। लोगों के जेहनों को अपनी दावत से प्रभावित करने और उनको अपने मक़सद के लिए इस्तेमाल करने के तरीक़ों से वाक़िफ़ हो। हर शख़्स को एक ही लगी-बँधी दवा देता न चला जाए बल्कि हर एक के मिज़ाज और मर्ज की सही जाँच करके इलाज करे। सबको एक लकड़ी से न हाँके, बल्कि जिन-जिन शख़्सों, वर्गों और गरोहों से उसका सामना हो उनके ख़ास हालात को समझकर उनके साथ मामला करे। यह भी हिकमत है कि आदमी अपने काम को और उसके करने के तरीक़ों को जानता हो और उसके रास्ते में पेश आनेवाली मुश्किलों, मुखालिफ़तों और रुकावटों से निबटना भी उसको आता हो। उसे ठीक-ठीक मालूम होना चाहिए कि जिस मक़सद के लिए वह कोशिश करने उठा है
उसके लिए उसे क्या कुछ करना है, किस-किस तरह की रुकावटों को दूर करना है।

- यह भी हिकमत ही है कि आदमी वक़्त के हालात पर नज़र रखता हो, मौक़ों को समझता हो और यह जानता हो कि किस मौक़े पर क्या तदबीर की जानी चाहिए। हालात को समझे बिना अंधा-धुंध क़दम उठा देना, बे-मौक़ा काम करना और मौक़े पर चूक जाना नादान और लापरवाह लोगों का काम है और ऐसे लोग चाहे कितने ही पाक मक़सद के लिए कितनी ही नेकी और नेकनियती के साथ काम कर रहे हों, कभी कामयाब नहीं हो सकते ।

और इन सब हिकमतों से बढ़कर हिकमत का सबसे बड़ा दर्जा यह है कि आदमी दीन की गहरी समझ और दुनिया के मामलों की सूझ-बूझ रखता हो। महज़ शरीअत के हुक्मों और मरहलों से वाक़िफ़ होना और उन्हें पेश आनेवाले मामलों पर चस्पाँ कर देना किसी मुफ़्ती के मंसब के लिए तो काफ़ी हो सकता है, मगर बिगड़े हुए समाज को ठीक करने और ज़िन्दगी के निजाम को जाहिलियत की बुनियादों से उखाड़कर नए सिरे से क़ायम करने के लिए काफ़ी नहीं हो सकता। इस मक़सद के लिए तो जरूरी है कि आदमी शरई हुक्मों की छोटी-छोटी बातों के साथ उनके तमाम पहलुओं पर, बल्कि दीन के पूरे निज़ाम (व्यवस्था) पर नज़र रखता हो। फिर हुक्मों के साथ उनकी हिकमत का भी उसे इल्म हो और उन हालात और समस्याओं को भी वह समझता हो जिनमें हुक्मों को लागू करने की जरूरत हो।

*तहरीके इस्लामी कामयाबी की शराईत*
(मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी रह०)

13/08/2024

Seerat un Nabi(ﷺ)Part 22 | (سیرت النبی(ﷺ | Hijrat e Madina

11/08/2024

💐 *अच्छी सीरत और किरदार* 💐

इन दो ख़ूबियों के असर (प्रभाव) को जो चीज़ अमली तौर पर एक ज़बरदस्त दिल जीत लेनेवाली कुव्वत में बदल देती है वह अच्छी सीरत और किरदार है। अल्लाह की राह में काम करनेवालों को बड़े दिल का और हिम्मतवाला होना चाहिए। लोगों का हमदर्द और इनसानियत का खैरखाह होना चाहिए और नर्म दिल और शरीफ़ तबीअत का होना चाहिए, खुद्दार (आत्मसम्मानी) और क़नाअत पसन्द (सन्तोषी) होना चाहिए। सुशील और विनम्र होना चाहिए। मीठी बोली बोलनेवाला और नर्म मिज़ाज होना चाहिए। वे ऐसे लोग होने चाहिएँ जिनसे किसी को बुराई का अंदेशा न हो और हर एक उनसे भलाई की उम्मीद रखे, जो अपने हक़ से कम पर राज़ी हों और दूसरों को उनके हक़ से ज़्यादा देने पर तैयार हों, जो बुराई का जवाब भलाई से दें या कम-से-कम बुराई से न दें। जो अपने ऐबों को तस्लीम करते हों और दूसरों की भलाइयों के क़द्रदान हों, जो इतना बड़ा दिल रखते हों कि लोगों की कमजोरियों को अनदेखा कर सकें, ग़लतियों को माफ़ कर सकें, ज़्यादतियों को नज़रअन्दाज़ कर सकें और अपने खुद के लिए किसी से बदला न लें। जो दूसरों की ख़िदमत लेकर नहीं बल्कि ख़िदमत करके खुश होते हों, अपने ग़रज़ के लिए नहीं बल्कि दूसरों की भलाई के लिए काम करें, हर तारीफ़ और हर मलामत (निन्दा) से बेपरवाह होकर वे अपना फ़र्ज़ पूरा करें और खुदा के सिवा किसी के इनाम पर निगाह न रखें, जो ताक़त से दबाए न जा सकें, दौलत से ख़रीदे न जा सकें, मगर हक़ और सच्चाई के आगे बेझिझक सिर झुका दें, जिनके दुश्मन भी उनपर भरोसा रखते हों कि किसी हाल में उनसे शराफ़त और इनसाफ़ के ख़िलाफ़ कोई हरकत नहीं हो सकती। ये दिलों को मोह लेनेवाले अख़लाक़ हैं। इनकी काट तलवार की काट से बढ़कर और इनकी दौलत चाँदी-सोने की दौलत से ज़्यादा क़ीमती है। किसी शख़्स को ये अख़लाक़ मिले हों तो वह अपने आसपास की आबादी का मन मोह लेता है। अगर कोई जमाअत ये खूबियाँ रखती हो, और फिर वह किसी बड़े मक़सद के लिए मिल-जुलकर कोशिश भी कर रही हो, तो देश के देश उसके आगे झुकते चले जाते हैं, यहाँ तक कि दुनिया की कोई ताक़त उसको हरा पाने में कामयाब नहीं हो सकती ।

*तहरीके इस्लामी कामयाबी शराईत*
(मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी रह०)

10/08/2024

💐 *आख़िरत की फ़िक्र* 💐

इसी से कुछ ज़्यादा क़रीबी ताल्लुक़ रखनेवाली दूसरी ख़ूबी आख़िरत की फ़िक्र है। मोमिन (ईमानवाले) के काम करने की जगह अगरचे दुनिया है और जो कुछ उसे करना है यहीं करना है, मगर वह काम इस दुनिया के लिए नहीं करता बल्कि आख़िरत के लिए करता है और उसकी नज़र के सामने दुनियावी नतीजे नहीं बल्कि आख़िरत में मिलनेवाले नतीजे होते हैं। उसे हर लिहाज़ से वह काम करना चाहिए जो आख़िरत में फ़ायदेमन्द है और हर उस काम को छोड़ देना चाहिए जिसका वहाँ कोई हासिल नहीं निकलना है। उसे हर उस फ़ायदे को ठुकरा देना चाहिए जो आख़िरत में नुक़सान का सबब हो और हर उस नुक़सान को बरदाश्त कर लेना चाहिए जो आख़िरत में फ़ायदेमन्द हो। उसे फ़िक्र सिर्फ़ आख़िरत के अज़ाब व सवाब की होनी चाहिए, दुनिया के किसी अज़ाब व सवाब की कोई अहमियत उसकी निगाह में न होनी चाहिए। उसकी कोशिशें इस दुनिया में कोई फल लाएँ या न लाएँ, यहाँ उसे कामयाबी होती नज़र आए या नाकामी, यहाँ उसकी तारीफ़ हो या उसे बुरा कहा जाए, यहाँ वह इनाम पाए या आज़माइशों में डाला जाए, हर हाल में उसको इस यक़ीन के साथ काम करना चाहिए कि जिस खुदा के लिए वह ये सारी मेहनतें कर रहा है उसकी निगाह से कुछ छिपा नहीं है, और उसके यहाँ आख़िरत के घर के हमेशा रहनेवाले इनाम से वह हरगिज़ महरूम न रहेगा, और वहीं की कामयाबी अस्ल कामयाबी है। इस ज़ेहनियत के बिना आदमी के लिए चन्द क़दम भी इस राह में सही रुख़ पर चलना मुमकिन नहीं है। दुनिया को मक़सद समझने का लगाव किसी मामूली से दर्जे में भी उसके साथ लगा रह जाए तो वह क़दम में लड़खड़ाहट पैदा किए बगैर नहीं रह सकता। अल्लाह के रास्ते में एक चोट तो नहीं दो-चार चोटें आख़िरकार उस शख़्स की हिम्मतें तोड़ देती हैं जो दुनियावी कामयाबियों को मक़सूद (अभीष्ट) बनाकर चलता है और उस राह की कोई कामयाबी किसी न किसी मरहले पर उस आदमी के रवैये में बिगाड़ पैदा कर देती है जिसके दिल को दुनियावी मक़सदों की कोई चाट लगी हुई हो।

*तहरीके इस्लामी कामयाबी की शराईत*
(मौलना सैयद अबुल आला मौदूदी रह०)

07/08/2024

*अल्लाह से ताल्लुक़ और इख़लास (निष्ठा)*
💐💐

इनमें सबसे पहली खूबी अल्लाह से ताल्लुक़ और अल्लाह के लिए मुख़लिस होना है। दुनिया के दूसरे सब काम तो खुद या ख़ानदान या क़बीले या क़ौम और वतन की ख़ातिर किए जा सकते हैं, निजी फ़ायदों और माद्दी मक़सदों की सारी गन्दगियों के साथ किए जा सकते हैं, खुदापरस्ती ही नहीं, खुदा के इनकार तक के साथ किए जा सकते हैं, और उनमें हर तरह की दुनियावी कामयाबियाँ मुमकिन हैं। लेकिन इस्लामी निज़ामे-ज़िन्दगी का क़ायम करना एक ऐसा काम है, जिसमें कोई कामयाबी उस वक़्त तक मुमकिन नहीं है जब तक आदमी का ताल्लुक़ अल्लाह के साथ सही, मज़बूत और गहरा न हो, और उसकी नीयत सिर्फ और सिर्फ़ अल्लाह ही के लिए काम करने की न हो। इसकी वजह यह है कि यहाँ जिस चीज़ को आदमी क़ायम करना चाहता है वह अल्लाह का दीन है और उसे क़ायम करने के लिए ज़रूरी है कि आदमी सब कुछ उस खुदा के लिए करे जिसका यह दीन है। उसी की खुशी इस काम का मक़सद होनी चाहिए, उसी की मुहब्बत इसके लिए एक अकेला मुहर्रिक (एक मात्र उत्प्रेरक) होनी चाहिए। उसी की मदद व हिमायत पर पूरा भरोसा होना चाहिए। उसी से इनाम की सारी उम्मीदें जुड़ी होनी चाहिएँ। उसी की हिदायतों और उसी के हुक्मों का पालन होना चाहिए और उसी की पकड़ का डर दिल पर छाया रहना चाहिए। उसके सिवा जिस डर, जिस लालच और जिस मुहब्बत और जिस पैरवी व फ़रमाँबरदारी की मिलावट भी होगी और जो दूसरी ग़रज़ भी इस काम में शामिल हो जाएगी वह सीधे रास्ते से क़दम हटा देगी और इसके नतीजे में और जो कुछ भी क़ायम हो जाए बहरहाल अल्लाह का दीन क़ायम न हो सकेगा।

*तहरीके इस्लामी कामयाबी की शराईत*
(मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी रह०)

06/08/2024

*इज्तिमाई ख़ूबियां*

💐सुधार के लिए तंक़ीद (आलोचना)💐

आख़िरी और बहुत अहम ख़ूबी यह है कि जमाअत में सुधार के मक़सद
से तंक़ीद (आलोचना) की रूह भी मौजूद हो और उसका सलीक़ा भी पाया जाता हो। अंधानुकरण करनेवालों और सीधे-सादे अक़ीदतमन्दों का गरोह चाहे कैसी ही सही जगह से काम का आग़ाज़ करे, कैसे ही सही मक़सद को सामने रखकर चले, बहरहाल अख़िरकार बिगड़ता चला जाता है, क्योंकि इनसानी काम में कमज़ोरियों का ज़ाहिर होना फ़ितरी तौर पर ज़रूरी है, और जहाँ कमजोरियों पर निगाह रखनेवाला कोई न हो, या उनकी निशानदेही
करना बुरा समझा जाता हो, वहाँ ग़फ़लत या मजबूरी की वजह से चुप्पी
साधने के सबब हर कमज़ोरी सुकून व इत्मीनान के घोंसले में जगह पाती
चली जाती है और अण्डे-बच्चे देने लगती है। जमाअत की सेहत और
तन्दुरुस्ती के लिए तंक़ीद की रूह के न होने से बढ़कर कोई चीज़ नुक़सानदेह नहीं, और तंक़ीदी सोच को दबाने से बढ़कर जमाअत की और कोई बदखाही नहीं हो सकती। यही तो वह चीज़ है जिसके ज़रिए से ख़राबियाँ ठीक वक़्त पर सामने आ जाती हैं और उनके सुधार की कोशिश की जा सकती है। लेकिन तंक़ीद के लिए ज़रूरी शर्त यह है कि वह ऐब और कमी निकालने के लिए न हो बल्कि खुलूस के साथ सुधार की नीयत से हो, और इसके साथ दूसरी इतनी ही ज़रूरी शर्त यह है कि तंक़ीद करनेवालों को तंक़ीद का सलीक़ा आता हो । नेक नीयत से तंक़ीद करनेवाला भी बेढंगी, बे मौक़ा और भौंडी तंक़ीद से जमाअत को वही नुक़सान पहुँचा सकता है जो एक ख़राबियाँ और ऐब ढूँढनेवाले और बद-नीयत बिगाड़ फैलानेवाले के हाथों पहुँचना मुमकिन है।

तहरीके इस्लामी कामयाबी की शराईत
(मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी रह०)

05/08/2024

*इज्तिमाई ख़ूबियां*

💐💐अनुशासन (Discipline)💐💐

तीसरी अहम ख़ूबी है अनुशासन, ज़ाबिते और क़ायदे की पाबन्दी, आपसी सहयोग और टीम की तरह काम करना । एक जमाअत अपनी तमाम ख़ूबियों के बावजूद सिर्फ़ इस वजह से नाकाम हो जाती है कि वह अपने फ़ैसलों और मंसूबों को अमल में नहीं ला सकती और यह नतीजा होता है अनुशासन की कमी और सहयोग के न होने का। बिगाड़ के काम सिर्फ हुल्लड़ से भी हो सकते हैं, मगर बनाव का कोई टिकाऊ काम सिर्फ़ उसी वक़्त हो सकता है जब सब लोग मिल-जुलकर कोशिश करें और मुनज़्ज़म (संगठित) कोशिश नाम है इस चीज़ का कि जो उसूल और क़ायदा बनाया गया हो, पूरी जमाअत उसकी पाबन्दी करे। जमाअत में जिसको जिस दर्जे में भी हुक्म देनेवाला बनाया गया हो, उसके हुक्मों पर अमल किया जाए। जमाअत का हर शख़्स अपने फ़र्ज़ को पहचानता हो और अपने ज़िम्मे का काम ठीक वक़्त पर लगन के साथ पूरा करने की कोशिश करे। जिन कारकुनों को जो काम मिलकर करना हो, वे एक-दूसरे को पूरा सहयोग दें। और जमाअत की मशीन इतनी चुस्त हो कि एक फ़ैसला होते ही उसको अमल में लाने के लिए तमाम पुर्जे हरकत में आ जाएँ। दुनिया में अगर वास्तव में कोई काम बना सकती हैं तो ऐसी ही जमाअतें बना सकती हैं। वरना उन जमाअतों का होना, न होना बराबर होता है जिन्होंने पूर्जे तो जुटा लिए हों मगर उनके जोड़ने और कसकर मशीन की तरह बाक़ायदा चलाने का कोई इन्तिज़ाम न किया हो।

तहरीके इस्लामी कामयाबी की शराईत
(मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी रह०)

04/08/2024

*इज्तिमाई ख़ूबबियाँ*

💐💐आपस में सलाह मशवरा💐💐

दूसरी ज़रूरी खूबी यह है कि इस जमाअत को आपसी मशवरे से काम करना चाहिए और मशवरे के आदाब का हमेशा ध्यान रखना चाहिए। ऐसे
लोगों की जमाअत, जिसमें हर शख़्स अपनी मनमानी करे, हक़ीक़त में कोई
जमाअत नहीं होती, बल्कि सिर्फ़ एक मण्डली होती है, जिससे कोई काम भी
बन नहीं सकता और वह जमाअत भी ज़्यादा देर तक नहीं चल सकती,
जिसमें कोई एक शख़्स या कुछ असरदार लोगों का एक टोला सर्वेसर्वा बन
जाए, बाक़ी सब लोगों का काम उसके इशारों पर चलना हो। सही काम सिर्फ़
सलाह-मशवरे ही से हो सकता है क्योंकि इस तरह न सिर्फ़ यह कि बहुत-से
दिमाग़ सोच-विचार और उसपर चर्चा करके हर मामले के अच्छे और बुरे
पहलुओं का जाइज़ा लेकर एक बेहतर नतीजे पर पहुँच सकते हैं। बल्कि
इससे दो फ़ायदे और भी होते हैं। एक यह कि जिस काम में पूरी जमाअत
का मशवरा सीधे तौर पर या किसी वास्ते से शामिल हो उसे पूरी जमाअत
दिल के इत्मीनान के साथ पूरा करने की कोशिश करती है और कोई भी यह
नहीं सोचता कि हमपर एक चीज़ ऊपर से ठूंस दी गई है। दूसरे. यह कि इस
तरीक़े से पूरी जमाअत को मामले की समझ की तरबियत मिलती है। हर
आदमी जमाअत और उसके मामलों से दिलचस्पी लेता है और उसके फ़ैसलों
में अपनी जिम्मेदारी महसूस करता है। लेकिन शर्त यह है कि सलाह-मशवरा
करने के साथ उसके आदाब का भी ध्यान रखा जाए। सलाह-मशवरे के
आदाब ये हैं कि हर शख़्स ईमानदारी के साथ अपनी राय पेश करे और कोई
बात दिल में छिपाकर न रखे। बहस में जिद, हठधर्मी और किसी तरह का
तास्सुब (पक्षपात) न आने पाए और जब बहुमत से एक फ़ैसला हो जाए तो
इख़्तिलाफ़ रखनेवाले चाहे अपनी राय न बदलें, मगर जमाअती फ़ैसलों को
पूरी खुशदिली के साथ अमल में लाने की कोशिश करें। ये तीन बातें अगर
न हों तो सलाह-मशवरे के तमाम फ़ायदे बेकार हो जाते हैं, बल्कि यही चीज़
आखिरकार जमाअत में फूट डाल देती है।

तहरीके इस्लामी कामयाबी की शराईत
(मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी रह०)

02/08/2024

*इज्तिमाई ख़ूबियाँ*

💐💐भाईचारा और मुहब्बत💐💐

ऐसी जमाअत की सबसे पहली खूबी यह होनी चाहिए कि उसमें शरीक लोग आपस में मुहब्बत करनेवाले हों। एक-दूसरे के साथ ईसार (त्याग) का मामला करें। जिस तरह एक इमारत उसी वक़्त मज़बूती से क़ायम हो सकती है जब उसकी ईंटें आपस में मज़बूती के साथ जुड़ी हों, और ईंटों को जोड़नेवाली चीज़ सीमेंट है। इसी तरह एक जमाअत भी उस वक़्त सीसा पिलाई दीवार बनती है जबकि उसके अरकान (सदस्यों) के दिल एक-दूसरे से जुड़े हुए हों, और दिलों को जोड़नेवाली चीज़ खुलूस भरी मुहब्बत है। आपस की खैरख़ाही और हमदर्दी है और एक-दूसरे के साथ ईसार (त्याग) का सुलूक है। नफ़रत करनेवाले दिल कभी नहीं मिल सकते। छल-कपट भरा मेल-जोल कोई सच्ची एकता पैदा नहीं कर सकता। खुदगर्जी (स्वार्थ) से भरी एकता छल-कपट की पहली अलामत होती है और सिर्फ एक रूखा-सूखा कारोबारी ताल्लुक़ किसी दोस्ती की बुनियाद नहीं हो सकता, कोई दुनियावी ग़रज़ ऐसे बेजोड़ चीज़ों को जमा भी कर दे तो वे सिर्फ़ बिखराव के लिए जमा होती हैं और कुछ बनाने के बजाय आपस ही में कट मरती हैं। एक मज़बूत जमाअत सिर्फ़ उसी वक़्त वुजूद में आती है जबकि अपने ख़यालात में मुखलिस (निष्ठावान) और अपने मक़सद में मुहब्बत रखनेवाले लोग आपस में इकट्ठे हों और फिर यही खुलूस और मक़सद से यही मुहब्बत उनके अन्दर आपस में भी खुलूस और मुहब्बत पैदा कर दे। इस तरह की जमाअत हक़ीक़त में एक सीसा पिलाई हुई दीवार होती है, जिसके अन्दर बिगाड़ डालने के लिए शैतान कोई दरार नहीं पाता और बाहर से मुखालिफ़तों के सैलाब उठा-उठाकर लाता भी है तो उसे अपनी जगह से हिला नहीं सकता ।

तहरीके इस्लामी कमियाबी की शराईत
(मौलाना सैयद अबुल आला मौदूदी रह०)

16/07/2024

Maqsad e Hussain (rz) Series part 5 || Shahadat e Hussain ||

15/07/2024

Maqsad e Hussain (rz) Series part 4 || complete waqiya Karbala||

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