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07/05/2024

कोर्ट ने जोर देकर कहा कि न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों को गरिमा बनाए रखनी चाहिए और ऐसे आचरण से बचना चाहिए जो न्यायपा...
04/05/2024

कोर्ट ने जोर देकर कहा कि न्यायाधीशों और न्यायिक अधिकारियों को गरिमा बनाए रखनी चाहिए और ऐसे आचरण से बचना चाहिए जो न्यायपालिका की प्रतिष्ठा को धूमिल कर सके। उन्होंने उल्लेख किया कि जब न्यायिक अधिकारी का व्यवहार न्यायपालिका की छवि को कमजोर करता है तो रिट अदालतों द्वारा हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं होती।

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10/04/2024

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08/04/2024

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक 24 साल पुराने आपराधिक मामले को रद्द/खारिज करते हुए जोर देकर कहा कि स्पीडी ट्रायल संवि...
21/09/2022

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में एक 24 साल पुराने आपराधिक मामले को रद्द/खारिज करते हुए जोर देकर कहा कि स्पीडी ट्रायल संविधान के अनुच्छेद 21 में निहित जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का एक अभिन्न अंग है। जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी की पीठ ने पिछले कई वर्षों से अनावश्यक और आधारहीन आपराधिक कार्यवाही लंबित होने पर भी अपना रोष व्यक्त किया और कहा कि वर्तमान मामले में, आपराधिक कार्यवाही 1998 से, यानी लगभग 24 वर्षों से लंबित है और यह केवल डिस्चार्ज आवेदन के चरण तक पहुंच पाई थी।
कोर्ट ने आगे अपने आदेश में कहा,''चूंकि इस अदालत ने कार्यवाही को रद्द कर दिया है, लेकिन 24 साल बाद, इसलिए आरोपी व्यक्तियों/आवेदकों की पीड़ा की भरपाई नहीं की जा सकती है। स्पीडी ट्रायल न केवल शिकायतकर्ता का बल्कि आरोपी व्यक्तियों का भी अधिकार है। इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं है कि दो दशक से अधिक समय बीत जाने के बाद भी कार्यवाही केवल डिस्चार्ज आवेदन के चरण तक ही क्यों पहुंच पाई है ... निचली अदालतों को यह प्रयास करने का निर्देश दिया जाता है कि प्रत्येक आपराधिक कार्यवाही को शीघ्रता से समाप्त किया जाए क्योंकि स्पीडी ट्रायल शिकायतकर्ता और आरोपी दोनों व्यक्तियों का अधिकार है।''

संक्षेप में मामला डॉ. मेराज अली और अन्य (आवेदक) के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 420, 467 और 468 के तहत कथित रूप से अपराध करने के मामले में एक एफआईआर दर्ज की गई थी। जांच के बाद 18 नवंबर 2000 को चार्जशीट दाखिल की गई और संज्ञान भी लिया गया। आवेदकों ने 23 दिसंबर, 2021 को डिस्चार्ज के लिए एक आवेदन दायर किया, जिसे 9 मार्च, 2022 के आक्षेपित आदेश के माध्यम से खारिज कर दिया गया।
अदालत ने आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया क्योंकि कोर्ट ने पाया कि आवेदकों के खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही में स्पष्ट रूप से दुर्भावना शामिल थी और निजी और व्यक्तिगत रंजिश के कारण आवेदकों से बदला लेने की दृष्टि से एक गुप्त उद्देश्य के साथ दुर्भावनापूर्ण तरीके से कार्यवाही शुरू की गई थी।
परिणामस्वरूप, आवेदन को अनुमति दे दी गई और मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, अलीगढ़ द्वारा 09 मार्च, 2022 को पारित आदेश को रद्द कर दिया गया।
केस टाइटल - डॉ. मेराज अली व अन्य बनाम यू.पी. राज्य व अन्य

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 195/340 के तहत शिकायत करने से पहले किसी संभावित-आरोपी...
19/09/2022

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 195/340 के तहत शिकायत करने से पहले किसी संभावित-आरोपी को सुनवाई का मौका देना जरूरी नहीं है। जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस विक्रम नाथ की खंडपीठ दो न्यायाधीशों की पीठ की ओर से भेजे गये संदर्भ का जवाब दे रही थी। संदर्भित मुद्दे थे- (i) क्या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 340 किसी कोर्ट द्वारा संहिता की धारा 195 के तहत शिकायत किए जाने से पहले प्रारंभिक जांच और संभावित आरोपी को सुनवाई का अवसर प्रदान करती है? (ii) ऐसी प्रारंभिक जांच का दायरा और परिधि क्या है?
कोर्ट ने कहा: एक आदेश दिए गए तथ्यात्मक परिदृश्य में है। निर्णय कानून के सिद्धांतों को निर्धारित करता है। परिदृश्य यह है कि इस कोर्ट द्वारा पारित कोई भी आदेश या निर्णय रिपोर्ट किए गए मामलों की अधिक मात्रा तैयार करने के लिए रिपोर्ट योग्य कवायद बन जाता है! इस प्रकार प्रचलित कानूनी सिद्धांतों पर कुछ भ्रम पैदा होने की संभावना बनती है। उपरोक्त उद्धृत पैराग्राफ में टिप्पणियों को स्पष्ट रूप से कानून के किसी भी सिद्धांत के निर्धारण के बजाय आदेश के तहत सामने आया था और यही कारण है कि बेंच ने इसे दिये गये तथ्यात्मक परिदृश्य के रूप में वर्गीकृत किया।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 195/340 के तहत शिकायत करने से पहले किसी संभावित-आरोपी...
19/09/2022

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 195/340 के तहत शिकायत करने से पहले किसी संभावित-आरोपी को सुनवाई का मौका देना जरूरी नहीं है। जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस विक्रम नाथ की खंडपीठ दो न्यायाधीशों की पीठ की ओर से भेजे गये संदर्भ का जवाब दे रही थी। संदर्भित मुद्दे थे- (i) क्या दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 340 किसी कोर्ट द्वारा संहिता की धारा 195 के तहत शिकायत किए जाने से पहले प्रारंभिक जांच और संभावित आरोपी को सुनवाई का अवसर प्रदान करती है? (ii) ऐसी प्रारंभिक जांच का दायरा और परिधि क्या है?
कोर्ट ने कहा: एक आदेश दिए गए तथ्यात्मक परिदृश्य में है। निर्णय कानून के सिद्धांतों को निर्धारित करता है। परिदृश्य यह है कि इस कोर्ट द्वारा पारित कोई भी आदेश या निर्णय रिपोर्ट किए गए मामलों की अधिक मात्रा तैयार करने के लिए रिपोर्ट योग्य कवायद बन जाता है! इस प्रकार प्रचलित कानूनी सिद्धांतों पर कुछ भ्रम पैदा होने की संभावना बनती है। उपरोक्त उद्धृत पैराग्राफ में टिप्पणियों को स्पष्ट रूप से कानून के किसी भी सिद्धांत के निर्धारण के बजाय आदेश के तहत सामने आया था और यही कारण है कि बेंच ने इसे दिये गये तथ्यात्मक परिदृश्य के रूप में वर्गीकृत किया।
पंजाब सरकार बनाम जसबीर सिंह
2022 (एससी) 776

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि वादी की आपत्ति पर बाद के खरीदारों को प्रतिवादी के रूप में पक्षका...
18/09/2022

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने कहा कि वादी की आपत्ति पर बाद के खरीदारों को प्रतिवादी के रूप में पक्षकार न बनाना वादी का जोखिम होगा। मौजूदा मामले में वादी ने घोषणा, स्थायी निषेधाज्ञा और कब्जे की रिकवरी के लिए मुकदमा दायर किया था। ट्रायल कोर्ट ने आदेश I नियम 10 के तहत प्रतिवादी की ओर से दायर एक आवेदन को अनुमति दी, जिसके तहत बाद के खरीदारों को पक्षकार के रूप में शामिल करने की अनुमति मांगी गई थी। आदेश के खिलाफ वादी की ओर से दायर याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था।

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एमआर शाह ने शनिवार को नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ओडिशा (एनएलयूओ) के 9वें दीक्षांत समारोह में अपने स...
18/09/2022

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस एमआर शाह ने शनिवार को नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ओडिशा (एनएलयूओ) के 9वें दीक्षांत समारोह में अपने संबोधन में युवा लॉ ग्रेजुएट को सलाह दी कि वे अपनी नैतिकता से कभी समझौता न करें और हमेशा ईमानदारी और सत्यनिष्ठा से भरा जीवन जिएं।
युवा लॉ ग्रेजुएट को संबोधित करते हुए, न्यायमूर्ति शाह ने कहा कि, ''भविष्य में आप लिटिगेशन या ज्यूडिशरी या यहां तक कि एक कॉर्पाेरेट ऑफिस में काम करना शुरू कर सकते हैं। मेरा आपसे अनुरोध और सलाह है कि आप अपनी नैतिकता से समझौता न करें। अपनी ईमानदारी और सत्यनिष्ठा से समझौता न करें।'' उन्होंने उन लोगों के लिए कुछ महत्वपूर्ण सलाह भी दी,जो स्नातक स्तर की पढ़ाई पूरी करने के बाद लिटिगेशन में जाना चाहते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि एक सफल वकील बनने के लिए चार पी आवश्यक हैं।
जो लोग लिटिगेशन/वकालत में शामिल होना चाहते हैं, उन्हें एक सफल वकील बनने के लिए कुछ बुनियादी आवश्यकताओं को सीखना चाहिए। मेरे अनुसार एक केस में अदालत में पेश होने के दौरान 4 पी महत्वपूर्ण होते हैं- 1) तैयारी 2) पूर्णता 3) प्रस्तुति 4) विनम्रता।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, ओडिशा के 9वें वार्षिक दीक्षांत समारोह में विशिष्ट अतिथि...
17/09/2022

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, ओडिशा के 9वें वार्षिक दीक्षांत समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया। जस्टिस चंद्रचूड़ ने अपने संबोधन में कहा कि जब तक कानून समावेश और बहुलता को प्रोत्साहित करता है तब तक समाज जीवित और स्थिर रह सकता है।

उन्होंने कहा, "कानून हमें अनुशासन के रूप में क्या देता है? अनुशासन के रूप में कानून हमें तर्क देता है, हम एक दूसरे के साथ तर्क करते हैं, हम एक दूसरे के साथ शारीरिक रूप से कुश्ती नहीं करते और जब हम एक दूसरे के साथ संघर्ष में होते हैं तो हम आग्नेयास्त्रों को नहीं उतारते। हम एक दूसरे के साथ तर्क करते हैं। कानून आपको संवाद के बारे में बताता है- समाज के विभिन्न तत्व, समाज में विभिन्न समूह, परिवारों के भीतर विभिन्न समूह, व्यवसायों के भीतर, समुदायों के भीतर, कानून के बारे में एक संवाद में प्रवेश करेंगे। दूसरे शब्दों में कानून क्या करना चाहता है, अत्याचार को जवाबदेही के साथ विस्थापित करना। कानून अधिकारों के सम्मान के लिए संस्कृति के साथ मनमानी को चुनौती देता है। उस अर्थ में कानून हमारे समाज में बहुत ही महत्वपूर्ण तत्व है, क्योंकि हमारा समाज तब तक जीवित और स्थिर रह सकता है जब तक कानून समावेश और बहुलता को प्रोत्साहित करता है। जब हम इस तथ्य का सम्मान करते हैं कि हम में से प्रत्येक के अलग-अलग विचार हैं और हम उन विचारों का सम्मान करते हैं। हम उन विचारों को बर्दाश्त नहीं करते हैं, मेरे विचार में किसी को सहन करने के लिए सहिष्णुता कठिन शब्द है। इसका मतलब है कि आपको वे पसंद नहीं है, लेकिन आप उन विचारों के लिए लोगों का सम्मान करते हैं, जो उनके पास हैं। यहां तक ​​कि उन विचारों के लिए भी जो आपके अपने विचारों से मेल नहीं खाते।"
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17/09/2022
10/09/2022

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने शुक्रवार को एक नाबालिग लड़के द्वारा दायर रिट याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें गंभीर रूप से बीमार पिता को लीवर डोनेट करने की अनुमति मांगी गई है। भारत के मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष याचिका का तत्काल उल्लेख किया गया। मामले की तात्कालिकता को ध्यान में रखते हुए, पीठ ने यूपी राज्य को नोटिस जारी किया, भले ही याचिका को औपचारिक रूप से क्रमांकित और सूचीबद्ध किया जाना बाकी था, और मामले को अगले सोमवार को पोस्ट कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के एक आदेश को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि, "अस्पता...
10/09/2022

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग के एक आदेश को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया था कि, "अस्पताल के संस्थागत वातावरण में हर मौत आवश्यक चिकित्सा देखभाल की कमी की काल्पनिक धारणा पर आधारित चिकित्सा लापरवाही नहीं है।" जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस जेबी पारदीवाला की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ एनसीडीआरसी की ओर से पारित एक निर्णय और आदेश के खिलाफ दायर एक सिविल अपील पर सुनवाई कर रहे थे। अपील में कथित चिकित्सा लापरवाही और सेवा में कमी की शिकायतों को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि मामला निर्णायक रूप से स्थापित नहीं किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को कहा कि स्थगन की मांग करने के लिए वकीलों द्वारा अपनाई जाने वाल...
10/09/2022

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने शुक्रवार को कहा कि स्थगन की मांग करने के लिए वकीलों द्वारा अपनाई जाने वाली नियमित प्रथा ने सुप्रीम कोर्ट की प्रतिष्ठा को धूमिल कर दिया है। उन्होंने कहा कि वे इस बात से चिंतित हैं कि संस्था का लक्ष्य ' तारीख पर तारीख वाली अदालत की छवि को बदलना है। हम सुप्रीम कोर्ट की छवि को ' तारीख पे तारीख ' कोर्ट के रूप में बदलना चाहते हैं । " जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस हेमा कोहली की बेंच को शुक्रवार को जब एक वकील ने अवगत कराया कि उन्होंने स्थगन की मांग करते हुए एक पत्र प्रसारित किया है तो जस्टिस चंद्रचूड़ ने इस मामले पर किसी और दिन सुनवाई से इनकार इनकार कर दिया। उन्होंने वकील से कहा कि वे बहस करें या पास ओवर लें, तैयारी करें और फिर मामले पर बहस करें।


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