Pankaj Dudhoria

Pankaj Dudhoria Social Worker, Anuvrat Activist, Jain Terapanth News (Former Co-Editor), Writer , Poet, Creator, Blog

GST ?
15/01/2025

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14/01/2025
मेरे जन्मदाता पिता आज आपका जन्मदिवस है,इस अवसर पर हम करते आपको वंदन नमन हैआपके आदर्शों ने जीवनपथ पर चलना सिखाया,हम बहन भ...
11/01/2025

मेरे जन्मदाता पिता आज आपका जन्मदिवस है,
इस अवसर पर हम करते आपको वंदन नमन है

आपके आदर्शों ने जीवनपथ पर चलना सिखाया,
हम बहन भाई को आध्यात्मिक पथ दिखाया है।

संस्कारों द्वारा ही आपने हमें नैतिकता का पाठ पढ़ाया,
हर परिस्थिति में साथ दिया और हमारा हौसला है बढ़ाया।

आपकी मुस्कान से ही खुशहाल परिवार का आधार है,
मेरे ब्रह्मा विष्णु महेश तुमसे ही जगमग मेरा संसार है।

मौलिक पंकज भावों से समर्पित जन्मदिन पर शुभकामना,
स्वस्थ रहे, प्रसन्न रहें, संघसेवा करें यही है मनोकामना।

गृहस्थ जीवन में नैतिकता रखने का प्रयास होना चाहिए : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण
03/01/2025

गृहस्थ जीवन में नैतिकता रखने का प्रयास होना चाहिए : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

01/01/2025

बेटे को जन्मदिन की व आपसब को अंग्रेजी नववर्ष की ढेरों बधाई शुभकामना

Happy birthday to my son and a very happy English New Year to all of you.

अणुव्रत पुरस्कार से सम्मानित भारत के पूर्व प्रधानमंत्री माननीय मनमोहन सिंह जी का निधन सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए अपूर्णीय क...
28/12/2024

अणुव्रत पुरस्कार से सम्मानित भारत के पूर्व प्रधानमंत्री माननीय मनमोहन सिंह जी का निधन सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए अपूर्णीय क्षति है।
ऐसे व्यक्तित्व यदाकदा ही जन्म लेते है, आपका जीवन सादगीपूर्ण होने के साथ साथ आप धीर गंभीर थे। भारत की सुदृढ़ अर्थव्यवस्था को बनाने व नई दिशा देने में आपके योगदान को कभी भुलाया नही जा सकता। इतने बड़े मुकाम पर पहुचने के बाद भी आपकी सरलता, विनम्रता, नैतिकता व सादगी पूर्ण जीवनशैली सबको प्रेरणा देता रहेगा। स्मृतियां शेष रहेगी......

आपको भावभीनी विनम्र श्रद्धांजलि
- पंकज दुधोडिया

Dr. Manmohan Singh PMO India Jain Terapanth News Akhil Bharitya Terapanth Yuvak Parishad (ABTYP) RJ Praveen

धर्माराधना द्वारा अपनी आत्मा को मित्र बनाए मानव : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणअपने आराध्य को विदा करने उमड़ा वडोदरा, जन-...
15/12/2024

धर्माराधना द्वारा अपनी आत्मा को मित्र बनाए मानव : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

अपने आराध्य को विदा करने उमड़ा वडोदरा, जन-जन को आशीष देने में लगे कई घंटे

12 कि.मी. का विहार कर आचार्यश्री का कोयली में पावन पदार्पण

स्वयं की आत्मा को मित्र बनाने को आचार्यश्री ने किया अभिप्रेरित

15.12.2024, रविवार, कोयली, वड़ोदरा (गुजरात) , संस्कारी नगरी वडोदरा में आध्यात्मिकता की अलख जगाने वाले जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी रविवार को प्रातः जब वडोदरा से विहार के लिए तत्पर हुए तो श्रद्धालु जनता मानों अपने आराध्य से निवेदन कर उठी, गुरुदेव! कुछ दिन और कृपा कराओ। इस भावना को लेकर मानों वडोदरा का जन-जन आध्यात्मिक अनुशास्ता को विदाई देने के लिए प्रातःकाल से ही अपने-अपने स्थानों पर करबद्ध नजर आ रहा था। भावविभोर जनता की भावनाओं पर कृपा कराते हुए, जन-जन पर आशीष वृष्टि करते हुए गंतव्य की ओर बढ़ते जा रहे थे, लेकिन जनभावना का प्रवाह मानों आज ज्योतिचरण को जकड़े हुए था। आचार्यश्री वडोदरा के तेरापंथ भवन में पधारे और वहां उपस्थित जनता को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। इसके उपरान्त भी आचार्यश्री वडोदरा में अनेक स्थानों पर उपस्थित श्रद्धालुओं को आशीष और मंगलपाठ प्रदान किया, इस कारण विहार में विलम्ब हुआ।

वडोदरा से बाहर निकले से पूर्व ही मुनि उदितकुमारजी तथा अन्य संत जो बहिर्विहार में जाने वाले थे, आचार्यश्री से विदा ली। ़युगप्रधान आचार्यश्री लगभग बारह किलोमीटर का विहार कर कोयली गांव में स्थित राजकीय विद्यालय में पधारे। रविवार का दिन होने के कारण आसपास सैंकड़ों की संख्या में श्रद्धालु अपने आराध्य की सन्निधि में उपस्थित थे।

विद्यालय परिसर में सम्मुख उपस्थित श्रद्धालु जनता को शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन संबोध प्रदान करते हुए कहा कि दुनिया में मित्र भी होते हैं। बच्चे और बड़े सभी के जीवन में मित्र होते हैं। मित्र आदमी के जीवन के सुख-दुःख में काम आते हैं और जीवन में सहयोगी बनते हैं। मित्रता का अनुबंध कई जन्मों तक भी चल सकता है। शुत्रता का संबंध भी कई जन्मों तक चलने वाला हो सकता है। शास्त्र में एक बात बताई गई कि आदमी के जीवन में सबसे महत्त्वपूर्ण मित्र भी स्वयं की आत्मा और सबसे बड़ी शत्रु भी स्वयं की आत्मा होती है। इस संदर्भ में यह भी कहा गया कि हे पुरुष! तुम्हीं तुम्हारे मित्र हो। निश्चय की भूमिका यह बहुत बढ़िया बात है। दूसरे मित्र भला कितने दुःख को दूर कर सकते हैं। कुछ दुःख और तकलीफ ऐसे होते हैं जो कि मित्र और परिजनों के होते हुए भी स्वयं को ही सहन करना पड़ता है।

आदमी अपनी आत्मा को मित्र बना ले तो सुख की प्राप्ति भी संभव हो सकती है। आदमी की आत्मा जब अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य आदि में रमती है तो वह आत्मा आदमी की मित्र बनती है और जब वह आत्मा हिंसा, चोरी, झूठ, कपट, छल, व्यभिचार आदि की ओर ले जाती है तो वह आत्मा आदमी की शत्रु बन जाती है। गुस्सा करने से आत्मा शत्रु और शांति व क्षमा में रहने से आत्मा मित्र बनती है। संक्षेप में कहें तो जहां धर्म का आचरण होता है, वहां आत्मा मित्र बनती है और जहां पाप से युक्त आचरण होता है, वही आत्मा उसकी दुश्मन बन जाती है। इसलिए आदमी को अहिंसा, ईमानदारी, सच्चाई व शांति में रहते हुए अपनी आत्मा को मित्र बनाने का प्रयास करना चाहिए। आत्मा शत्रु न बने, इसलिए आदमी को धर्म के पथ पर चलने का प्रयास करना चाहिए। पूर्व के पुण्यकर्मों से वर्तमान जीवन में सुख प्राप्त हो रहा है, लेकिन आगे के लिए भी आदमी को धर्म-ध्यान के माध्यम से सुख प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए। त्याग, तपस्या, साधना, स्वाध्याय आदि के द्वारा आदमी को अपनी आत्मा को मित्र बनाने का प्रयास करना चाहिए। श्रावक जीवन भी त्याग, संयम, सामायिक भी अपनी आत्मा को मित्र बनाने का उपाय हो सकता है। मानव धर्माराधना के द्वारा अपनी आत्मा को मित्र बनाने का प्रयास करे।

अल्प लाभ के लिए ज्यादा नुक्सान से बचने का हो प्रयास : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणमहातपस्वी महाश्रमण का सन् 2028 का मर्...
14/12/2024

अल्प लाभ के लिए ज्यादा नुक्सान से बचने का हो प्रयास : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

महातपस्वी महाश्रमण का सन् 2028 का मर्यादा महोत्सव भी बृहत्तर दिल्ली में घोषित

14.12.2024, शनिवार, वड़ोदरा (गुजरात), जन-जन के मानस को आध्यात्मिक सिंचन प्रदान करने वाले, जन-जन को सन्मार्ग दिखाने वाले, जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशमाधिशास्ता, युगप्रधान, आचार्यश्री महाश्रमणजी शनिवार को अपनी धवल सेना के साथ संस्कारी नगरी वडोदरा में पधारे तो श्रद्धालु जनता ने महातपस्वी का भव्य स्वागत किया। महामानव के स्वागत में मानों मानव मात्र का हुजूम उमड़ आया। जाति-वर्ग का भेद समाप्त होकर स्वागत जुलूस में सद्भावना का रंग छाया हुआ था। गूंजते जयघोष, भव्य स्वागत जुलूस के मध्य श्रद्धालुओं पर आशीष वृष्टि करते हुए आचार्यश्री वडोदरा में स्थित लाल बहादुर शास्त्री विद्यालय में पधारे। वडोदरावासियों का विशेष सौभाग्य है कि वर्ष 2023 और वर्ष 2024 में भी उन्हें अपने आराध्य के पावन प्रवास के साथ मंगलवाणी श्रवण करने और आशीष प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा था। इसके पूर्व आचार्यश्री अपनी धवल सेना के साथ प्रातः की मंगल बेला में जाम्बुवा से प्रस्थान किया तो उत्साही वडोदरावासी अपने आराध्य की अगवानी में वहीं पहुंच गए थे। लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री जैसे ही वडोदरा नगर की सीमा में पधारे तो स्वागत में उपस्थित सैंकड़ों-सैंकड़ों श्रद्धालुओं के बुलंद जयघोष से पूरा वातावरण गुंजायमान हो रहा था।

युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी ने उपस्थित जनता को पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि मनुष्य एक चिंतनशील प्राणी होता है। चिंतन का स्तर सभी एक समान नहीं भी होता है। कोई मनुष्य बहुत ही मंदबुद्धि के हो सकते हैं तो कोई मनुष्य ही ज्यादा तेज-तर्रार और चिंतनशील होते हैं। सामन्यतया मानव में चिंतनशीलता होती है। यदि उसके चिंतन में गहराई आ जाए तो अच्छी बात हो सकती है। यों तो ऐसा कोई भी जीव नहीं होता, जिसमें कोई बोध न हो। सभी प्राणियों में बोध की स्थिति रहती है। जैन दर्शन की दृष्टि से विचार करें तो न्यूनतम क्षयोपशमभाव तो प्राप्त होता ही होता है।

शास्त्र में बताया गया कि आदमी को अपने विवेक अथवा चिंतन का उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। आदमी को एक चिंतन यह करना चाहिए कि थोड़े लाभ के लिए ज्यादा नुक्सान नहीं उठाना चाहिए। जिस काम में लाभ का पलड़ा भारी हो, वह कार्य करने का प्रयास करना चाहिए। थोड़े लाभ के लिए बहुत की हानि कर लेना बुद्धिमत्ता की बात नहीं होती। गृहस्थ हो अथवा साधु उसे विचार करना चाहिए कि थोड़े और क्षणिक लाभ के लिए बहुत ज्यादा नुक्सान उठाने का प्रयास न हो।

चतुर्दशी के संदर्भ में आचार्यश्री ने कहा कि साधु-साध्वियों को भी अपनी साधना के बदले कोई निदान कर लेना भी थोड़े लाभ के लिए ज्यादा नुक्सान की बात हो सकती है। कठिनाई अथवा विपत्ति में भी धर्म को नहीं छोड़ने का प्रयास करना चाहिए। आदमी जिस किसी क्षेत्र में कार्य करे, वहां अच्छे ढंग से अपने धर्म को याद रखने का और उसका अनुपालन करने का प्रयास करना चाहिए। धर्म को बनाए रखने का, अहिंसा, संयम और नैतिकता को बनाए रखने का प्रयास करे। आदमी राजनीति, व्यापार, धंधा करे, उसमें ईमानदारी रखने का प्रयास करना चाहिए। कभी गुस्सा भी आ जाए तो उसे भी समाप्त करने का प्रयास होना चाहिए। जितना संभव सके अपने गुस्से को भी नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए। अहंकार से भी बचने का प्रयास करना चाहिए।

साधु-साध्वियों को चारित्र रत्न मिला हुआ है। भला इससे बहुमूल्य दुनिया की कौन संपत्ति होती है। इस चारित्र रत्न के सामने राजा का देव भी झुकते हैं। सम्यक्त्व चारित्र की यत्ना पूर्वक रक्षा करने का प्रयास करना चाहिए। जहां तक संभव हो सके, धर्म, ध्यान का विकास करने का प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री ने बहुश्रुत परिषद के सदस्य साधु-साध्वियों को पावन प्रेरणा प्रदान की तथा वडोदरा में चतुर्मास करने वाली साध्वी पंकजश्रीजी को पावन आशीर्वाद प्रदान किया।

इसके उपरान्त आचार्यश्री ने चतुर्दशी के संदर्भ में हाजरी के क्रम को संपादित किया। तदुपरान्त उपस्थित चारित्रात्माओं ने अपने स्थान पर खड़े होकर लेखपत्र का उच्चारण किया। आचार्यश्री ने चारित्रात्माओं को विविध प्रेरणाएं प्रदान की। दिल्ली की ओर विहार करने से पूर्व मुनि उदितकुमारजी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।

राज्यसभा सांसद श्री लहरसिंह सिरोहिया ने भी आचार्यश्री के दर्शन और मंगल प्रवचन श्रवण के उपरान्त कहा कि आज का दिन मेरे लिए परम सौभाग्य की बात है। मैं आचार्यश्री महाश्रमणजी के दर्शन करने, उन्हें वंदन करने और उनसे मंगल आशीर्वाद लेने के लिए आया हूं। इसके उपरान्त तेरापंथी सभा-दिल्ली के अध्यक्ष श्री सुखराज सेठिया तथा राज्यसभा सांसद महोदय आदि ने आचार्यश्री से सन् 2028 के मर्यादा महोत्सव करने की अर्ज की तो आचार्यश्री ने अपनी विशेष कृपा प्रदान करते हुए घोषणा करते हुए कहा कि सन् 2027 के चतुर्मास के बाद सन् 2028 का मर्यादा महोत्सव बृहत्तर दिल्ली में करने का भाव है।’ आचार्यश्री की इस घोषणा से पूरा वातावरण गुंजायमान हो उठा।

वडोदरा में चतुर्मास करने वाली साध्वी पंकजश्रीजी के सिंघाड़े की ओर से साध्वी शारदाप्रभाजी ने अपनी श्रद्धाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ युवक परिषद-वडोदरा ने स्वागत गीत का संगान किया।

दुर्वृत्ति से सुवृत्ति की दिशा में करें प्रस्थान : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण13.12.2024, शुक्रवार, जाम्बुवा, वड़ोदरा (...
13/12/2024

दुर्वृत्ति से सुवृत्ति की दिशा में करें प्रस्थान : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

13.12.2024, शुक्रवार, जाम्बुवा, वड़ोदरा (गुजरात), सद्भावना, नैतिकता व नशामुक्ति जैसे कल्याणकारी सूत्रों के माध्यम से जन-जन का कल्याण करने के लिए गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ शुक्रवार को गुजरात प्रदेश के वड़ोदरा जिले में स्थित पोर से गतिमान हुए। गुजरात प्रदेश का मानों भाग्योदय हुआ है तो राष्ट्रसंत आचार्यश्री का इतना लम्बा प्रवास व विहार उसे प्राप्त हो रहा है। वर्ष 2023 में विहार और अक्षय तृतीया के कार्यक्रम के उपरान्त आचार्यश्री ने भारत की आर्थिक राजधानी के रूप में विख्यात भारत का प्रवेश द्वार मुम्बई में भव्य चतुर्मास किया। उसके उपरान्त वर्ष 2024 का चतुर्मास गुजरात की डायमण्ड नगरी सूरत में चतुर्मास तथा उसके उपरान्त विहार भी गुजरात प्रदेश में तथा आगामी वर्ष 2025 का चतुर्मास भी गुजरात की राजधानी अहमदाबाद में होना निर्धारित है। ऐसा सौभाग्य प्राप्त कर गुजरातवासी श्रद्धालु हर्षविभोर बने हुए हैं। कई क्षेत्र ऐसे हैं, जिन्हें पूज्यचरणों से दूसरी बार पावन होने का अवसर प्राप्त हो रहा है। इनमें एक वड़ोदरा शहर भी है, जहां आचार्यश्री का 14 दिसम्बर को मंगल प्रवेश होगा। लगभग दस किलोमीटर का विहार कर युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणजी जाम्बुवा गांव स्थित नमन आइडियल स्कूल में पधारे।

स्कूल परिसर में ही आयोजित मुख्य प्रवचन कार्यक्रम के दौरान शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने पावन प्रतिबोध प्रदान करते हुए कहा कि आदमी के भीतर अनेक वृत्तियां होती हैं और वृत्तियों से प्रवृत्ति भी होती है। वृत्ति, प्रवृत्ति और निवृत्ति ये तीन शब्द हैं। इन तीनों शब्दों पर ध्यान दिया जाए तो मानव के भीतर अनेक प्रकार की वृत्तियां होती हैं-लोभ, क्रोध, मान, माया, राग-द्वेष। वृत्तियों के कारण प्रवृत्ति भी होती है। जैसे किसी के भीतर हिंसा की वृत्ति है तो वह आदमी पापाचरण में प्रवृत्त हो सकता है। आदमी को पापाचार की दिशा में ले जाने वाली वृत्तियों को दुर्वृत्ति और धर्माचार और अच्छी दिशा में ले जाने वाली वृत्ति सुवृत्ति होती है। इस प्रकार दुर्वृत्तियों को सुवृत्तियों को जानकर अपने भीतर सुवृत्तियों को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिए। इन वृत्तियों के आधार पर आदमी का विचार भी बदलता रहा है। कभी गुस्सा तो कभी क्षमा, कभी हिंसा तो कभी दया की भावना भी होती है। इसलिए आदमी को अपने भावों को शुद्ध और सुवृत्ति की दिशा में आगे बढ़ने का प्रयास करना चाहिए।

मंगल प्रवचन के उपरान्त आचार्यश्री ने उपस्थित संतवृन्दों से चर्चा की तो बहुत सुन्दर दृश्य उत्पन्न हो गया। इस संदर्भ में मुख्यमुनिश्री महावीरकुमारजी, मुनि उदितकुमारजी, मुनि दिनेशकुमारजी व मुनि योगेशकुमारजी ने अपनी विचाराभिव्यक्ति दी। आचार्यश्री ने सबके विचारों को सुनने के बाद तात्विक विषय का उपसंहार किया। कल गुरुदर्शन करने वाली साध्वी लब्धिश्रीजी ने आचार्यश्री के समक्ष अपनी भावाभिव्यक्ति देते हुए अपनी सहवर्ती साध्वियों के साथ गीत का संगान किया। आचार्यश्री सभी साध्वियों को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया।

नमन आइडियल स्कूल के शिक्षक श्री कल्पितजी ने आचार्यश्री के स्वागत में अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथी सभा-वड़ोदरा के अध्यक्ष श्री सुशील कोठारी ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल-वडोदरा ने गीत का संगान किया।

नशा है दुर्गति का कारण : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमणनशीले पदार्थों के साथ अत्याधुनिक यंत्रों के अनावश्यक प्रयोग से बचन...
12/12/2024

नशा है दुर्गति का कारण : युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण

नशीले पदार्थों के साथ अत्याधुनिक यंत्रों के अनावश्यक प्रयोग से बचने की दी प्रेरणा

12.12.2024, गुरुवार, पोरगांव, वडोदरा (गुजरात), गुजरात के वड़ोदरा जिले की सीमा में गतिमान जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के वर्तमान अधिशास्ता, भगवान महावीर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमणजी अपनी धवल सेना के साथ गुरुवार को प्रातःकाल की मंगल बेला में कंडारी से मंगल विहार किया। गांव के लोगों ने आचार्यश्री को वंदन कर पावन आशीर्वाद प्राप्त किया। मार्ग के अनेक स्थानों पर ग्रामीण जनता को आशीष प्रदान करते हुए शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी अपने गंतव्य की ओर बढ़ते जा रहे थे। लगभग ग्यारह किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पोर गांव में स्थित श्री नारायण ग्लोबल स्कूल में पधारे। स्कूल के संचालक आदि ने आचार्यश्री का भावभीना अभिनंदन किया।

शांतिदूत आचार्यश्री महाश्रमणजी ने अपने पावन प्रवचन में उपस्थित जनता को पावन पाथेय प्रदान करते हुए कहा कि यात्रा दो प्रकार की होती है-अंतर्यात्रा और बहिर्यात्रा। अंतर्यात्रा अर्थात् भीतर की यात्रा। प्रेक्षाध्यान पद्धति का तो अंतर्यात्रा एक प्रयोग भी है। भीतर की यात्रा मानों संयम और साधना की यात्रा होती है। संयम की साधना में रमण करना भी अंतर्यात्रा है। इस अंतर्यात्रा को तो कोई अक्षम साधु भी कर सकता है, किन्तु बहिर्यात्रा तो भले ही सक्षम साधु या व्यक्ति करते हैं। बहिर्यात्रा करते हुए भी साधु अथवा जीव अंतर्यात्रा कर सकता है और इसे बिना विश्राम किए हुए भी किया जा सकता है।

बहिर्यात्रा यदि धर्म और अध्यात्म व धर्म की दृष्टि से होती है, वह यात्रा भी धर्मयात्रा हो सकती है। हमारी यह यात्रा वर्तमान में गुजरात प्रदेश में हो रही है। यात्रा में हम नैतिकता, सद्भावना व नशामुक्ति की भी बात बताते हैं, प्रतिज्ञाएं भी कराते हैं। इसलिए यह बहिर्यात्रा होते हुए भी इसे धर्म की यात्रा कहा जा सकता है। यहां धर्म की चर्चा भी होती है। हमारे चारित्रात्माएं अपने ढंग से धर्म और स्वाध्याय का कार्य भी करते हैं। यात्रा के द्वारा लोगों को नशामुक्ति की बात भी बताते हैं। कई लोग अनेक प्रकार के नशीले पदार्थों का प्रयोग करते हैं। शराब पीने वाले लोगों के विषय में बताया गया है कि उनका चित्त भ्रांत हो जाता है और वह पापाचार में चला जाता है और वैसे लोग दुर्गति की ओर आगे बढ़ जाते हैं। इसलिए आदमी को मद्यपान से बचने का प्रयास करना चाहिए। शराब पीने से आगे के जीवन में भी दुर्गति हो सकती है और वर्तमान जीवन में दुर्गति हो सकती है। नशे में धुत होकर कहीं गिर जाए, लोग उसका धन लूट लेते हैं आदि-आदि रूप में दुर्गति होती है। मुम्बई चतुर्मास के दौरान ड्रग्स आदि के संदर्भ में कार्यक्रम हुआ था। वर्तमान में आधुनिक यंत्र मोबाइल आदि-आदि उनका भी लोगों को मानों ऐसी आदत सी लग जा रही है। बच्चों में भी मोबाइल का अत्यधिक प्रभाव देखा जा रहा है। मोबाइल एक सीमा तक उपयोगी है तो उससे अधिक की स्थिति में सजा भी बन सकती है। मोबाइल फोन इन वर्षों में इतना तेजी से फैला है कि बच्चों के हाथ-हाथ में पहुंच गया है। इसकी कोई उपयोगिता भी है कि दूर बैठे बात हो सकती है, देखा भी जा सकता है, कुछ सुना भी जा सकता है। कोई चीज देखनी हो, समझनी हो तो तुरन्त जाना जा सकता है। आधुनिक यंत्रों का उजला पक्ष भी है तो उसका अंधेरा पक्ष भी है। डिजिटल डिटॉक्स के रूप में इनके अत्यधिक प्रयोग से बचने का प्रयास करना चाहिए।

आचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत के माध्यम से नशामुक्ति की बात चली। परम पूज्य आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के समय भी चली थी और वर्तमान में हमारे त्रिसूत्रीय कार्यक्रम में तीसरा सूत्र नशामुक्ति का है। इसके संदर्भ में प्रतिज्ञाएं दिलाई जाती हैं। आदमी उचित दिशा में पुरुषार्थ करे तो इन बुराईयों से बच सकता है।

आचार्यश्री ने विद्यालय परिवार को मंगल आशीर्वाद प्रदान किया। श्री नारायण ग्लोबल स्कूल के ट्रस्टी श्री अश्विनभाई पटेल ने अपनी भावाभिव्यक्ति दी। तेरापंथ महिला मण्डल-बड़ोदरा ने गीत का संगान किया।

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