06/10/2020
निजीकरण क्यों आवश्यक है...??
लोगों की दलील :-
1) :- जब 60 से 80 हज़ार की सेलरी पाने वाला शिक्षक / शिक्षिका हफ़्ते भर ग़ायब रह कर पूरी सेलरी उठाता है , वो भी 2-4 घण्टे की ड्यूटी के लिए और फिर पेंशन के लिए धरना भी करेंगे , तो निजीकरण ज़रूरी हो जाता है ।
2) :- जब रेलवे की बुकिंग लाइन में 3-4 घण्टे से खड़े किसी मजबूर को नज़र अन्दाज़ करते हुए , कम्प्यूटर के सामने बैठी कर्मचारी मज़े में “ Solitare “ खेलती है , तो निजीकरण ज़रूरी हो जाता है ।
3) :- SBI/PNB की लाइन मे सुबह से खड़े एक ज़रूरतमंद को बैंक का सुस्त कर्मी सिर हिलाते हुए बोल देता है “ कल आना “ , तो निजीकरण ज़रूरी हो जाता है ।
4) :- लाख रुपए या उससे भी ज़्यादा सेलरी पाने वाला एक अधिकारी छोटे - मोटे काम के लिए ग़रीब से ग़रीब आदमी से घूस माँगता है , तो निजीकरण ज़रूरी हो जाता है ।
5) :- अगर Air India की टिकट 7000/- की है , उसी रूट पर Indigo/ spiceJet की टिकट 2500/- की होती है और आपको फ़्लाइट भी समय से मिल जाती है , तो निजीकरण ज़रूरी हो जाता है ।
6) :- सरकारी अस्पतालों में दवा , सुुई , सिरिंज , हर तरह की जाँच मुफ़्त या न्यूनतम मूल्य पर होते हुए भी जब समय पर मरीज़ को डाक्टर / दवाई / सुविधा मुहैया ना होने पर असमय मर जाता है , तो निजीकरण ज़रूरी हो जाता है ।
7) :- रेलवे में AC का किराया Flight ✈️ से भी महँगा होते हुए भी कोई ख़ास सुविधा ना मुहैया होने व 12-15 घण्टे ट्रेन लेट होता है , तो निजीकरण ज़रूरी हो जाता है ।
8 ) :- किसी भी छोटे - बड़े काम के लिए लोग जब रोज़ सरकारी दफ़्तरों में अपनी चप्पलें घिसते हैं , और कभी साहब नहीं आते तो कभी बाबू नहीं आते, कभी घूस इतना माँग लेते हैं कि सामने वाले के बजट से ही बाहर हो , तो कभी network नहीं आता है और अगर उसने आपका काम समय पर कर दिया तो एहसान जताना भी नहीं भूलता , तो निजीकरण ज़रूरी हो जाता है ।
9) :- जिस आदमी को बाज़ार से नमक उधार नहीं मिलता , उस आदमी को किसी सरकारी बैंक से लोन मिल जाता , मैनेजर व PO की सेटिंग से , तो निजीकरण ज़रूरी हो जाता है ।
10) :- 25-30 हज़ार रुपए की सेलरी पाने वाला सरकारी बाबू अपने 30-35 साल के करियर में 4-5 करोड़ तक की जमा पूँजी / ज़मीन / मकान / गाड़ी / आरामदायक जीवन शैली कर लेता है , तो निजीकरण ज़रूरी हो जाता है ।
11) :- और आख़िर में सबसे गहरी व ज़ोरदार चोट “ सरकारी कर्मी काम ना करने की सेलरी लेते हैं और काम करने के लिए रिश्वत..
आदि , ये सारी दलीलें लोगों द्वारा इस समय ख़ूब दी जा रही हैं ।
अगर सच में कोई खुद्दार सरकारी कर्मी हो , तो आजकल सोशल मीडिया पर चली रही इन दलीलों को पढ़ कर सच में घूस - रिश्वत लेना छोड़ दे और ईमानदारी से अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वहन करे जिसके लिए उसे सरकार से मोटी तनख़्वाह मिलती है ।
देखिए मैं एक Tax payer हूँ , मैं लगभग हर Tax सरकार को अदा करता हूँ , GST , Income Tax आदि सारी और पूरी जानकारी भी रखता हूँ , मुझे सरकार से मेरे Tax के बदले अच्छी सड़क , समुचित विकास , स्वच्छ जल , अच्छी स्वास्थ्य व्यवस्था व सुरक्षित परिवेश आदि चाहिए ।
लेकिन दुखद ये है कि इनमे से कुछ भी वक़्त पर नहीं मिलता है । अगर ये सारे काम सरकारी तन्त्र की जगह निजी तन्त्र व्यवस्थित ढंग से करे तो मुझे क्या किसी को भी निजीकरण से कोई आपत्ति नहीं होगी ।
और ये भाजपा या कोंग्रेस की बात नहीं , व्यवस्था की बात है । सरकारी कर्मचारी व विभाग व शासन,प्रशासन इतना निकम्मा, निठल्ला, लापरवाह, कर्त्तव्यहीन,गुणहीन,संस्कारहीन,क्रियाहीन,चोर ,घूसखोर, कमीशनखोर,कामचोर, मक्कार, हो गया है , सुधरने की गुंजाइश भी नहीं है, जनता के टैक्स के पैसे से मौज कर रहे है। नौकर होकर मालिक की उपेक्षा करते है। आज देखते देखते एक बाबू करोड़ों की सम्पत्ति का मालिक बन जाता है।
मुझे तो ऐसी व्यवस्था पर शर्म आती है...
इन्हीं कारणों से कोई मालिक बनना नहीं चाहता..... सब नौकर ही बनना चाहते है। यही देश ,समाज का दुर्भाग्य है .....उपरोक्त समस्याओं से निजात पाने के लिए अब निजीकरण आवश्यक है??
उदाहरण:-- सरकारी स्कूलों के शिक्षक अपने बच्चों को निजी स्कूलों में पढ़ाते हैं और सरकारी स्कूलों मे कोई नहीं पढ़ाता है।जनता के पैसे से मौज करते हैं।
आपके विचार सादर आमंत्रित हैं..
जय हिंद!