10/01/2023
यदि #कुम्हार समाज को राष्ट्रीय पटल पर गिनती में लाना है तो देश भर में एक सर्वमान्य सरनेम #प्रजापति को अपनाना ही होगा
प्राचीन काल में जब जातियों का प्रादुर्भाव हुआ तो सभी कुम्हारों का एक ही व्यवसाय हुआ करता था वो था मिट्टी के बर्तन बनाना। और इसी कारण उसका नामकरण कुंभ +कार कुंभ = घड़ा [मिट्टी का बर्तन] कार = बनाने वाला, जो बोलचाल की भाषा में कुम्हार के नाम से जाना जाने लगा।
समय के साथ व जमाने की मांग के अनुरूप इसमें कई मिट्टी से बनने वाले उत्पादन व कार्य जुड़ते गए। बर्तन के अलावा खिलोने, मूर्तियां, ईंट, खपरेल एवं भवन निर्माण आदि कार्य भी कुम्हार समाज करने लगा। ओर साथ में खेती तो सबके पास हुआ ही करती थी जिससे अपनी जरूरत का अन्न व पशुओं के लिए चारा पैदा करते थे।
ऐसा सभी कुम्हारों का कार्य था। कोई बर्तन बनाने वाला अलग, गधे रखने वाला अलग,खिलौने या मूर्ति बनाने वाला अलग, भवन बनाने या खेती करने वाला अलग - अलग कुम्हार नहीं था।✍️snp
कालांतर में जब पेट जरूरत से ज्यादा भरने लगा तो मनुष्य प्रवृत्तिवश हमारे कुम्हार समाज को भी नखरे आने शुरू हुए। और अपने आप को बड़ा साबित करने के लिए अपने ही भाइयों को नीचा बताने के लिए तू मटेड़ा मैं खतेड़ा, तू बांडा मैं मारू, तू बर्तन बनाने वाला - मैं भवन बनाने वाला, तू कुम्हार मैं कुमावत, तू गोला मैं महार, तू वारिया मैं वटालिया, तू वर्दीया मैं सोरेठिया आदि का उपयोग करने लगा। कोई कुम्हार यह कहता हुआ नहीं पाया जाएगा कि मै फलाणा ( उस अन्य) जाति से श्रेष्ठ हूं। बस अपनों में ही श्रेष्ठ साबित करने की होड़ लगी हुई है।✍️snp
और इसी श्रेष्ठता की होड़ में कुम्हार समाज देश के पटल पर लुप्त होता जा रहा है। न तो राजनीतिक क्षेत्र में कोई पूछता और न ही सामाजिक क्षेत्र में कहीं गिनती होती है। जिससे कुम्हार समाज में जिंदगी झंड, फिर भी घमंड वाली स्थिति पैदा हो चुकी है।
यही हाल रहा तो कुछ समय में कुम्हार समाज का जो थोड़ा बहुत मान सम्मान बचा है उसको भी पलीता लग जायेगा।
देश के विभिन्न प्रदेशों में भी कुम्हार अलग-2 सरनाम लगाते हैं जैसे पूर्वी भारत में पाल, चक्रवर्ती, रुद्रपाल, बिहार में पंडित, झारखण्ड में महतो और पंडित, उड़ीसा में कुराल और राणा, पंजाब में घूमार, छत्तीसगढ़ में चक्रधारी और कुम्भकार, दक्षिणी राज्यों में कुलालार , कुलाल, मूल्या, वाडियार, शालीवाहन, नाडीयार, चेट्टी, भगत, सेठ आदि।
जिससे अन्य राज्य के कुम्हार भी नहीं जान पाते की ये कुम्हार है। फिर देश की सरकार कैसे जानेगी। अन्य जाति के लोग कैसे जानेंगे। अन्य प्रदेशों के कुम्हार समाज के लोग कैसे संपर्क में आयेंगे।✍️snp
कुम्हार समाज को अपना मान सम्मान बनाना है, राजनैतिक सामाजिक रूप से अपनी पहचान बनानी है, तो सब ऊंच नीच मटेडा, खतेडा, बांडा,, गोला, मारू, वर्मा, गोत्र आदि सब छोड़कर देश भर में सर्वमान्य व पहचान वाले #प्रजापति सरनेम को ही अपनाना होगा। सभी कुम्हार समाज के लोग एक ही सरनेम #प्रजापति अपनाएंगे तो आपस में पहचान बढ़ेगी। ऊंच नीच का भेदभाव मिटेगा।✍️snp
देश की छठी- सातवीं सबसे बड़ी जाति , दस करोड़ से अधिक संख्या के साथ समस्त भारत में अच्छी संख्या में निवास करने के बावजूद हम कुम्हारों को कोई किसी योग्य नहीं समझता तो विचार करना तो बनता है कि आखिर कमी कहां है।
गर्व से अपना सरनेम #प्रजापति लिखें और अपनी जाति पर गर्व कर उसका गौरव बढ़ाएं। जब तक आप अपना सम्मान खुद करना नहीं सीखेंगे तो फिर दुनिया से सम्मान की क्या उम्मीद।
भले ही डॉक्युमेंट्स में आपने प्रजापति सरनेम नहीं लगा रखा हो, लेकिन सोशल मीडिया ( Facebook, Instagram, Twitter, YouTube, LinkedIn आदि) पर अपने नाम के आगे #प्रजापति सरनेम का ही प्रयोग करें, और भविष्य में अपनी संतानों के नाम के आगे प्रजापति सरनेम जरूर लिखवायें।
वर्तमान में हम अपने समाज की काफी महान हस्तियों को उनके नाम के आगे प्रजापति सरनेम ना होने के कारण नहीं पहचानते हैं, और आगे भी अगर ऐसा ही रहेगा तो हम अपने समाज की हस्तियों को नहीं पहचान पायेंगे और समाज को आगे बढ़ने की जो प्रेरणा समाज की हस्तियों की सफलता को देखकर मिलती है, वो नहीं मिल पायेगी, जिससे समाज का अति पिछड़ापन दूर होने में काफी ज्यादा समय लगेगा
#प्रजापति_परिवार_Live