
31/03/2025
'फ्रीबीज-रेवड़ियां’ सिर्फ पूंजीपतियों को ही, गरीब इससे मुफ्तखोर बनते हैं!
संपादकीय | 'यथार्थ' पत्रिका (जनवरी-मार्च 2025)
बजट व अन्य आर्थिक नीतियां - 'फ्रीबीज-रेवड़ियां' सिर्फ पूंजीपतियों-अमीरों को ही, गरीब इससे मुफ्तखोर बनते हैं! - फासीवादी दौर का 'वेलफेयर' मॉडल
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर चुनावों के पहले मुफ्त चीजें या फ्रीबीज देने के राजनीतिक दलों के वादे पर नाराजगी जताई और कहा कि लोग काम नहीं करना चाहते, क्योंकि आप उन्हें फ्री राशन दे रहे हैं, बिना कुछ किए पैसे दे रहे हैं। क्या हम परजीवियों का वर्ग नहीं बना रहे हैं। बेहतर होगा कि इन्हें समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बनाकर राष्ट्रीय विकास में योगदान दिया जाए। इन्हें परजीवी न बनायें। जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ड मसीह की बेंच दिल्ली में शहरी बेघरों को आसरा दिए जाने की याचिका सुन रही थी। कोर्ट ने कहा कि दुर्भाग्यवश, चुनाव से ठीक पहले इन मुफ्त की योजनाओं- जैसे 'लाडकी बहिन' और ऐसी अन्य योजनाओं के कारण लोग काम करने को तैयार नहीं हैं। जब याचिकाकर्ताओं में से एक के वकील ने कहा कि अगर काम हो तो शायद ही कोई ऐसा होगा जो न करना चाहे। इस पर जस्टिस गवई ने कहा कि आपको एकतरफा जानकारी है, मैं भी किसान परिवार से हूं। महाराष्ट्र में चुनाव से पहले घोषित मुफ्त सुविधाओं के कारण, किसानों को मजदूर नहीं मिल रहे हैं।...
संपादकीय | ‘यथार्थ’ पत्रिका (जनवरी-मार्च 2025) बजट व अन्य आर्थिक नीतियां – ‘फ्रीबीज-रेवड़ियां’ सिर्फ पूंजीपतियों-अमी...