Be aware of yourself

Be aware of yourself हर व्यक्ति गर स्वयं के प्रति जागरूक हो जाए।
जागरूकता अभियानों की जरूरत न रह जाए।

27/04/2024

(अभिवृत्ति - Attitude )
किसी व्यक्ति ,वस्तु,विचार,विषय,या किसी के प्रति भी सकारात्मक या नकारात्मक रुझान/भाव ही अभिवृत्ति कहलाती है यह रुझान हमारा किसके प्रति कैसा होगा यह आसपास समाज ,उसका वातावरण ,शिक्षण ,अध्यन,आसपास के लोगो के रवैया इत्यादि पर निर्भर करता है क्योंकि इन्ही सब सामाजिक तत्वों से ही व्यक्ति की अभिवृत्ति का निर्माण होता है अभिवृत्ति जन्मजात नही होती है ( प्रवृत्ति जन्मजात होती है जैसे भूख लगना ,टॉयलेट,सुनाई पढ़ना,दिखाई पड़ना इत्यादि बहुत सी प्रवृत्ति हैं ) यह यहीं समाज द्वारा हमे प्राप्त होती है हां यहां साथ में हमारी स्वीकार्य क्षमता कार्य करती है उदाहरणार्थ यदि किसी व्यक्ति के प्रति किसी विषय को लेकर हमारा रुझान नकात्मरत्मक हो तो यह जरूरी नही कि उसका भी रुझान हमारे प्रति नकारात्मक हो। उसका रुझान हमारे प्रति सकारात्मक भी हो सकता है परंतु अभिवृत्ति में बदलाव संभव है क्योंकि यह हमारे आसपास के माहौल,हमारे अध्यन ,हमारा शिक्षण,आसपास की विचारधारा,समझ,संवेदना,सामाजिक प्रभाव इत्यादि से ही निर्मित होती है यदि हमारे अध्यन,विचारधारा,समझ,संवेदना, सामाजिक प्रभाव आदि को एक अलग माहौल,दिशा दे या इनमें बदलाव लाया जाए दे तो निश्चित ही किसी की अभिवृत्ति बदलाव लाया जा सकता है परन्तु किसी वस्तु,व्यक्ति,विचार, विषय आदि के बारे में निखारता ,निपुणता नही लाई जा सकती क्योंकि इसके लिए अभिरुचि का होना आवश्यक हो जायेगा। किसी भी के प्रति हमारी कैसी अभिवृत्ति है यह उसके प्रति हमारा परस्पर संबंध भी दर्शाती है और किसी के प्रति हमारी अभिवृत्ति कैसी है इससे हमारा उसके प्रति व्यवहार भी परिलक्षित होता है अभिवृत्ति को एक और उदाहरण से भी समझते है जैसे टॉयलेट आना हमारी प्रवृत्ति है परंतु यदि लक्जरी टॉयलेट में टॉयलेट करने की हमारी आदत बन जाए तो यह अभिवृत्ति कहलाएगी इस प्रकार यह स्पष्ट है की अभिवृत्ति शिक्षाप्रद होती है और प्रवृत्ति शिक्षाप्रद नही होती । इस प्रकार यह भी कह सकते है की यदि किसी की अभिवृत्त नकारात्मक है तो सर्वप्रथम उसके आसपास के समाज,वातावरण,शिक्षा,आसपास के लोग उनका रवैया इत्यादि जिम्मेदार है हां दूसरा पहलू आता है उस नकारात्मक अभिवृत्ति वाले व्यक्ति की स्वीकार्यता का परंतु इसका उतना महत्व नही क्योंकि आसपास के समाज,वातावरण,शिक्षा,आसपास के लोग उनका रवैया काफी प्रबल होता है यह सब us व्यक्ति को बचपन से सिखाया गया होगा जिस जिस चीज को वह बचपन से स्वीकार करता आ रहा उसको एक दम से अस्वीकार कैसे कर सकता है और अगर उसने स्वीकार कर दिया समाज आसपास लोग उसको ही स्वीकार कर देते है अनेकों उदाहरण हैं इसके। इस प्रकार यह तो समझ में आ ही गया की आसपास के
समाज,वातावरण,शिक्षा,आसपास के लोग उनका रवैया इत्यादि की कितनी प्रबलता व छाप रहती है। जो लोग किसी व्यक्ति से बेहतर सकारात्मक अभिवृत्ति की अपेक्षा करते हैं तो ऐसे लोग को अपने समाज ,उसका वातावरण ,अपस्पास के लोगो का रवैया सकारात्मक करे इसमें बदलाव लाएं फिर नए लोगों की नई अभिवृत्तियां मिलेगी।
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29/03/2024

✍️✍️,,असल प्रेम,,
सांसों का चलना तो जीवन का क्रमिक संचालन है
हर दो सांसों के बीच का समय ही असल में जीवन है
इतने क्षणिक जीवन में क्या बैर किसी से करना है
यह तो प्रेम से नमस्कार बोलने के लिए भी कम है
प्रेम भरे नमस्कार में भी लगता कई सांसों का समय है
गौर फरमाए फिर कहां बैर के लिए बचता समय है
अनेक सालों का जीवन है यह ज्ञान देता हमें भ्रम है
भ्रम को असल समझना ही असल बैर का कारण है
इतने भौतिक ज्ञान में तेरा सांसों का ज्ञान भी जरूरी है
भ्रम को छोड़ इसके प्रति जागरूक होना भी जरूरी है
मृतक के पास कभी जाकर गौर से आजमा लेना
सांसों के सिवा जो भी जीवन में था सारा पड़ा यही है
अर्थात हमारी सांसे ही जीवन की हमारी मूल संपदा है
दो सांसों के बीच ही जीवन जीने का असल मूल्य है
वर्तमान में जीना है कि कहावत शायद निकली यहीं से है
दो सांसों के बीच जीवन लक्ष्य ही असल जानकारी है
ज्ञान हो जाए इसका फिर कहां रहे बैर का अहंकारी है
यहीं से शुरू होती है असल प्रेम की जानकारी है
#असल प्रेम
love
life
#भ्रम


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28/03/2024

✍️✍️,,अपना घर,,
यात्रा के बाद हर व्यक्ति को अपने ही घर लौट जाना हो
फिर शहरों की यात्रा हो या जीवन की यात्रा पे आना हो

Ghar
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25/03/2024

होली
होली तो इतना सुंदर त्योहार है खुशियों ,रंगो ,मिलने का त्योहार है,पुराने बैर भुलाकर हृदय से मिलकर नए सम्बंध जोड़ने का त्योहार है,इतना अद्भुत त्योहार है की बच्चों में हर्षों उल्लास भर दे,युवाओं में भी अपने जिगरी दोस्तों करीबी लोगो से एक उमंग के साथ मिलने का अवसर दे, बुजुर्गों में भी साथ होने भावना दे।इस प्रकार इस त्योहार का गर थोड़ा बहुत भी उद्देश्य समझा जाए तो बच्चों का हर्षाें उल्लास ,युवाओं को उमंग से भरना आपसी तालमेल बेहतर करना आदि, संक्षिप्त में कहें तो लोगों का लोगों से आपसी तालमेल में बैर भूलकर एक दूसरे में प्रेम भरना,,,,,,,परंतु आजकल का त्योहार की गतिविधियां इसकी वास्तविक आकांक्षा/उद्देश्य को पूरी करती नही दिखती। असल में यह रंगो का त्योहार है रंग कितने सुहावने होते है रंगो की उपस्थिति जहां भी देखने को मिले मन प्रसन्न हो जाए,,परंतु आजकल तो रंगो की जगह, गंदा पानी,कीचड़,कपड़े फाड़ना ,हुड़दंग मचाना(फिर चाहे झगड़े हो जाए या मनमुटाव हो जाए),पीकर अनकंट्रोल्ड ड्राइविंग करना, आदि विभिन्न गतिविधियों से तो ऐसा लगता है जैसे यह त्योहार आपसी बैर,द्वेष,ईर्ष्या,रंजिशो को बढ़ावा देना इत्यादि को जन्म देना उद्देश्य हो गया हो।,,,,वहीं दूसरी ओर यह आपस में मिलने का त्योहार है,,मतलब समस्त आपसी बैर को भूलकर आपसी मिलन को बढ़ावा देना।,,,परंतु मिलन समारोह के दिन लोग मिलने के भी माध्यम सोचते हैं कि किस किस से मिला जाए, कोन बैरी है,कोन अपना है कोन कितना बैरी या अपना है ( मूल्यांकन तक किया जाता है ),किसके यहां जाना किसके यहां नहीं जाना ,पूरा गणित बिठाया जाता है,,जब मिलने न मिलने के इतने माध्यम ढूंढे जाते है कि यहां हृदय से मिलने का भाव तो रह ही नही जाता, बैर भूलने की बात ही छोड़ें,,यहां मिलने न मिलने की पूरी गणना ही बैर,मनमुटाव आदि पर आधारित होती है,,अगर सोचे तो इतने सालों से होली मिलन का समारोह होता आ रहा है अगर बैर भूलकर ह्रदयिक मिलन होता तो अब तक सारे बैर मिट गए होते, एक दूसरे में हृदय प्रेम का प्रवाह हो गया होता, है बच्चा बच्चा हर्षाे उल्लास से भरा होता, बैर का कारण न रह जाता,हमने अपना दृष्टिकोण दिया,,लोग सहमत या असहमत हो सकते है,,,,,,,to be continued
फिलहाल आप सभी को रंगो व मिलन के त्योहार होली की हार्दिक शुभकामनाएं 🎉🎉।
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#होली

22/03/2024

विश्व जल दिवस
आज 22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में जानते /मनाते है इस दिन जल के महत्व को समझाने /जागरूकता हेतु विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं
आज हम जल पर बहुत ही सरल बात करेंगे चाहे जागरूकता की हो या महत्व की,,,,केवल एक दिन जागरूकता अभियान करके जल महत्व को समझ ले जरूरी नही,क्योंकि हम लोग जागरूकता कार्यक्रम/अभियानों को भी त्योहार की भांति मनाने लगते है ऐसे मनाते है जैसे हमने जल संकट पे बहुत बड़ी विजय पा ली हो,,,जबकि इस दिन या इसको मनाने का उद्देश्य जल के महत्व को हर क्षण समझना जल के प्रति हर समय जागरूक रहना होना चाहिए।
वैसे तो धरती पर जल अत्यधिक मात्रा में उपलब्ध है परंतु मीठे जल अर्थात् हमारे उपयोग लायक जल की मात्रा बहुत कम है जो भी मात्रा है वो भी अतिदोहन व प्रदूषण के कारण कम होती जा रही है वर्तमान हो या भावी जल संकट की बात, यदि बात छोटे स्तर /किसी एक विशेष क्षेत्र की होती तो बात छोटी थी,परंतु इसके प्रति सरकार द्वारा, अंतराष्ट्रीय सरकारों द्वारा जागरूकता दिवस / अभियान कार्यक्रम घोषित है तो यह विचारणीय है अर्थात् जल संकट बड़ा है हम सब जानते है की जल के बिना जीवन संभव नहीं है और जल को बनाना भी।
अतः जल के प्रति हमे हर समय ( कम से कम जब जब जल का उपयोग करे तब तब तो जरूर) जागरूक रहने की आवश्यकता तो है ही ,कम से कम मीठे जल के प्राकृतिक श्रोत,सरकारी संसाधन इत्यादि को संरक्षित,स्वच्छ,गंदगी रहित,अनावश्यक बरबादी, के प्रति तो जागरूक रहना ही चाहिए,तथा इसमें जो भी सहयोग/ भागेदारी हो सके करनी चाहिए, हमे हमारे जीवन के उद्देश्य से ही सही :-

बिन जल जीवन का आधार क्या,
बिन जल जीवन का उद्धार क्या,
बिन जल जीवन का मोल क्या,
बिन जल जीवन का सार क्या,
बिन जल कुछ दिन खाना खाओ,
बिन जल कुछ दिन स्नान करो,
बिन जल कुछ दिन कपड़े धो लो,
फिर जानो जल का मूल्य क्या,
गर जान लो जल का मूल्य क्या,
फिर जल को बहाने में मजा क्या,
और जल को बचाने में हर्ज क्या,
#जल को बचाएं,
#जीवन को बचाएं,
#वर्षा जल संरक्षित करें
#जल श्रोत के पास सफाई रखें
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10/03/2024

ये उनको समर्पित है जो संघर्ष में है,जो आगे बढ़ रहे है,जो अपनी क्षमता को पहचान गए,जिन्हे अपनी रुचि के अनुसार अपना लक्ष्य दिखाई पड़ने लगे,,बस उन्हे किसी के बहकावे में नही आना चाहिए,,,और जीवन में बहकाने वाले अपने करीबी ही होते है,,क्योंकि उन्हें ही पता होता है आप कैसे बहकेंगे तथा आपकी कमजोरियों,,वो बार बार याद दिलाएंगे की आप कमजोर हो आप इसके लिए पैदा ही नहीं हुए ,,इस तरह के लोगों से लड़ाई नहीं लड़नी है बस प्यार से उस माहौल को अलविदा कर देना है,,

" कुछ लोगों के गांव नही बसते
यूं ही मिल जाते राहों में चलते"

जो खुद सच के सामने खड़े नहीं हो पाते,
अन्य को झूठा कहकर खड़े होने की कोशिश करते है।
जो खुद के स्वभाव से खुश नहीं हो पाते,
अन्य के स्वभाव को तमाशा कहकर खुश होने की कोशिश करते है।
जो खुश होने की कोशिश में बार बार बेचैन होते,
अन्य को बेचैन कहकर खुश होने की कोशिश करते है।
जो खुद के तर्क से खुद के विचारों की रक्षा नहीं कर पाते,
अन्य के तर्क को तर्क विरोधी कहकर खुश होने की कोशिश करते है।
जो खुद के फेज़ को कभी नहीं पहचान पाते,
अन्य को भिन्न फेज़ में कहकर खुश होने की कोशिश करते हैं।
जो खुद की बौद्धिक क्षमता से खुश नहीं हो पाते,
अन्य की बौद्धिक क्षमता को निम्न कहकर खुश होने की कोशिश करते हैं।
जो सिमट कर एक सीमित दायरे में रह पाए,
वह अन्य को भी एक सीमित दायरे में ही देखते रहने की कोशिश करते हैं।
जो खुद सिमट कर सीमित फेज में रह पाए,
वह अन्य को भी इस सीमित फेस में देखते रहने की कोशिश करते।
जो भी संघर्ष कर जैसा बन पाए,
अन्य को भी मात्र अपना जैसा बनना देखते रहने की कोशिश करते है।

इस तरह पहचानें,
जो भी बहुत जल्द बहस में उतरने को आतुर हो जाए(यहां जब भी कोई तुमको खुश रहने या किसी भी चीज का मतलब समझाए तो तुरंत उसे ये जरूर पूछ लेना की वो क्या खुश है उन परिभाषाओं से जो उसने अतीत से हस्तांतरित परिभाषाओं को धारण कर रखा अगर वो खुश नहीं रह पाया तो बिलकुल मत सुनना तुरंत भाग लेना वहां से ) । समझना वह इसी प्रकार का व्यक्ति है ऐसे लोगो से अपनी शुद्ध चेतना को दूर रखना है,यहां करीबी लोगो को छोड़ो यदि खुद की आदतें भी ऐसी है तो उनसे भी दूर रखना है यहां तक की ऐसे लोगों को खुश होने की परिभाषा तक भी नहीं पता होती है अगर पता होती तो खुद को कभी नाखुश नहीं होने देते हमेशा खुद को खुश रख पाते हैं,

08/03/2024

✍️✍️"किसी और के विचार/मान्यताओं
को मानना एवं उसका असर""
जिस प्रकार छत पर चढ़ने को सीढ़ी का उपयोग करते है छत पे चढ़ने के बाद सीढ़ी को कंधों पे ढोते नही है, इसी प्रकार दूसरे विचार या मान्यताओं को मानना हमारे विचार विकसित होने सीढ़ी के रूप में उपयोग मात्र होना चाहिये बस,,खुद के विचार परिपक्व होने के बाद उनको ढोना नहीं,,,थोड़ा सूक्ष्मता से देखें तो,,गर हम दूसरे के टांगों पे खड़े हैं,तो जब भी वो टांगे टूटेंगे हम टूट जाएंगे बिखर जाएंगे यदि दूसरे के टांगों पे खड़े भी हो गए तो स्थिरता नहीं होगी ,,इसी प्रकार दूसरे के विचारों पर हमारा विचार / जीवन टिका है तो जब भी वह विचार टूटेगा हम टूटेंगे हमारा विचार / जीवन टूटेगा।,,, दूसरे के विचारों में कितनी गहराई है, किस परिस्थिति / स्तर से लिखा गया, हमें इसकी कोई जानकारी ,समझ नहीं और हम सीधे विचार को मान लेते है जबकि हमरे पास मानने का कोई ठोस आधार भी नही होता है बस विचार पुराना है/ पूर्वज बता गए / कही लिखा था इसलिए मान लिया । ,,,मानने में बुराई नही है,, जिस तरह के विचार को कभी समझा नही ,इसका क्या असर है या है ही नही कुछ पता नहीं ,कभी खुद पे आजमाया नही ,खुद से कभी जाना जाना नही,,,फिर भी सीधे मान लिया,,,ये कोई मानना हुआ,,,उदाहरण के लिए थोड़ा स्पष्ट करूं तो ,, जिस विचार/ मान्यताओं की वजह से हमारे बिगड़े काम बनते नजर आते है तो कभी जागरूकता से ध्यान देकर ये परखा जाए कि यदि वह विचार या मान्यता को हमने न माना होता तो क्या वो बिगड़े काम मान्य विचार या मान्यता के बिना नहीं बनते । ,,,, हां हो सकता सभी कार्य नही होते परंतु ये भी नकारा नहीं जा सकता की कई काम हो भी जाते । अब जो काम उस विचार ,मान्यता को बिना माने हुए है उनमें इन विचारों या मान्यता की निष्क्रियता साबित हो गई ।इसका अर्थ है की हमे केवल भ्रम था की हमारे जो काम उन रूढ़िवादी विचार या दूसरे के अपनाए विचार मान्यता को बिना समझे अपनाने से हो रहे है,,,,यह स्पष्ट हो जाता है की हम जीवन में इस तरह के हजारों भ्रम पाले रहते है जिनकी सक्रियता या भागेदारी हमारे बिगड़े काम बनने में कोई नजर ही नहीं आती ,,,अब सवाल है की वो काम फिर किसकी वजह से हुए ,,,यही खोजना है,,समझना है,,या कहे जागरूक रहना है ,,,कम से कम निरर्थक विचार को मानने में लगा समय किसी अन्य सार्थक कामों में लगाया जा सकता है ,,

27/02/2024

✍️,,प्रतीक,मूल,,
गर प्रतीक ही मूल हो पाता
तो ग्लोब भी पृथ्वी हो जाता

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25/02/2024

✍️✍️,,,,,Manner (ढंग),,,,,
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Manner या ढंग ,किसी काम को करने या कुछ घटित होने का तरीका, या किसी से व्यवहार या आचरण करने के तरीके को कहा जाता है,,,,परंतु इसको बनाए रखने में हमारी क्षमता व योग्यता बहुत कम है या कहे न के बराबर है,,,,,,,,एक सरल उदाहरण से समझते है,,,,,,,यदि हम कई कथित सभ्य लोगो के साथ बैठे है काफी समय होने बाद गर हमको टॉयलेट आने का आभास होता है तो हम उसको अपने चेहरे के हावभाव में नही आने देते हैं और मन ही मन टॉयलेट की खोज में लग जाते है,,,परंतु सोचे जहां हम बैठे है वहां तथा उसके आस पास दूर दूर तक टॉयलेट नही है,,और मैनर कहता है की टॉयलेट टॉयलेटरूम में ही जाना है ,,, जो वहां मौजूद नहीं है,,,,अब यहां इसको रोकने की भी हमारी एक अधिकतम क्षमता है ,,उससे ज्यादा समय तक तो हम चाहकर भी नही रोक सकते,,,,,,अब सोचिए की ऐसी स्थिति में हम अपने मैनर या ढंग को कितने समय तक बरकरार रख सकते है,,,,अधिकतम सीमा के बाद फिर मैनर पे हमारा कंट्रोल छूट जाता है और फिर उसको प्रकृति अपने कंट्रोल में ले लेती है और अपने हिसाब से ,अपने समय से, अपने तरीके से मैनेज करती है,,,,और उस समय हम दर्शक से ज्यादा कुछ भी नही होते,,,,इतने करीब से प्रकृति का अहसास होने के उपरांत भी हम प्रकृति के प्रति कभी जागरूक नही हो पाते,,,जबकि इससे बड़ा जागरूकता अभियान क्या होगा,,,जो प्रकृति खुद हमारे पास आकर हमे विषम परिस्थिति से उबारने में मदद करती है,,,अब सोचने की बात यह है की जब प्रकृति हमे इतने करीब से( चाहे दिन हो या रात ) हर क्षण हर समय जागरूक रहने का आभास कराती है अपने से जोड़े रखने का संदेश देती है,,,,अगर हम समझना भी न चाहे फिर भी पास रहकर समझाती है,,,,,,इसके बावजूद भी हम अपने अहं में रहते है,,अतः जागरूक होना या रहना जीवन का महत्वपूर्ण पहलू है,, हां यहां हमने टॉयलेट का ही एक उदाहरण मात्र इसलिए लिया क्योंकि इससे कोई भी अपरिचित नहीं होगा,,,इसी तरह प्रकृति हमे अन्य माध्यमों से हर क्षण जागरूक रहने का अहसास कराती है ,,,,,,,,,,धन्यवाद!
aware of yourself !

✍️✍️,,,जल के प्रति थोड़ा              जागरूक रहे🙏🙏बिन जल जीवन का आधार क्या,बिन जल जीवन का  उद्धार क्या,बिन जल जीवन का मो...
25/02/2024

✍️✍️,,,जल के प्रति थोड़ा
जागरूक रहे🙏🙏
बिन जल जीवन का आधार क्या,
बिन जल जीवन का उद्धार क्या,
बिन जल जीवन का मोल क्या,
बिन जल कुछ दिन खाना खाओ,
बिन जल कुछ दिन स्नान करो,
बिन जल कुछ दिन कपड़े धो लो,
फिर जानो जल का मूल्य क्या,
गर जान लो जल का मूल्य क्या,
फिर जल को बहाने में मजा क्या,
और जल को बचाने में हर्ज क्या,
#जल को बचाएं,
#जीवन को बचाएं,
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25/02/2024

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✍️✍️,,,, हमारे जीवन की रचना,,,
बिन लक्ष्य मकसद का क्या माने
मकसद क्या जीवन का कोई क्या जाने
गर जान भी ले मकसद अपना
वह सच्चा है या झूठा है कैसे माने
हम जीवन में तो लक्ष्य बनाते है
हमारे होने का क्या लक्ष्य कैसे जाने
गर लक्ष्य जान लें खुद होने का
वह सच्चा है या झूठा उसका कोई क्या जाने
बिन लक्ष्य हमारा होना है धरती पे बोझ सामना
या दुनिया में भीड़ सामना है
बिन लक्ष्य रचा ईश्वर ने हमको इतना खाली तो न होगा
हमको बना के मजा लिया इतना मसखरा भी न होगा
खुद के होने के मकसद में यदि हम दर दर भटक रहे
देख नजारा यह हम पर कितना वो भी हंसता होगा
गर हम पे हंसता होगा क्या उसकी हंसी नहीं होगी
रचा उसी ने हमको है कैसे उसकी ना हां होगी
कुछ तो सोच रचा होगा बिन सोच कहा रचना होगी
हमसे मजा लिया होगा या खुद को आनंद दिया होगा
सोचो कितना घूमा जीवन फिर क्यों हम ना उलझे इसमें
हमको रचने वाला जब खुद इसमें उलझा होगा
गर थोड़ा सा सोचा होता एक नेम प्लेट बना देता
हमारे जन्म के साथ ही हममें चिपकाकर भिजवा देता
जीवन के सारी उलझन मकसद और लक्ष्य लिखा होता
फिर जीवन को समझना सोचो कितना आसान होता
गर ऐसा होता तो हम इंसान वो ईश्वर क्यों होता.........✍️✍️लिखना अभी जारी है।🙏🙏

24/02/2024

Dedicated to all self-confident and self-aware individuals,,,
✍️✍️,,खुद को अज्ञानी मत समझना,,

तुम्हारी बात अगर कोई न समझे ,
तो खुद को अज्ञानी मत समझना।
खुद में मस्तियाकर समझ लेना,
वो बात उसके ज्ञान के बाहर थी समझना ।

23/02/2024

✍️✍️,,ऊर्जा,,
वैज्ञानिक दृष्टि से भी ""किसी कार्य को कर सकने की क्षमता को ऊर्जा कहते हैं"",,, इसको ना तो नष्ट किया जा सकता है ना ही जन्मा जा सकता है हां इसको एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है (स्वतः परिवर्तनशील है) ऊर्जा विभिन्न प्रकार की होती है जैसे- गतिज ऊर्जा, स्थैतिक ऊर्जा, उष्मीय ऊर्जा इत्यादि इत्यादि,,, परंतु यहां अलग तरीके से ( उपयोग या व्यवहारिक दृष्टिकोण से ) समझेंगे,,, इसके अनुसार ऊर्जा सृजनात्मक( सकारात्मक) होती है या विध्वंसक(नकारात्मक) होती है,,,,इस प्रकार हमारे जीवन/ भीतर विद्यमान ऊर्जा या तो सृजनात्मक है या विध्वंसक ,,,,हालांकि ऊर्जा को कुछ हद तक अपने अनुसार मोड़ दिया जा सकता है या यूं कहें यदि ऊर्जा को सृजनात्मक कार्यों में नहीं लगाया तो वह विध्वंसक कार्यों में लग जाएगी है ,,,,,यहां यदि कोई यह सोचे कि ऊर्जा को हम विध्वंसक कार्यों में नहीं लगाएंगे तो कैसे लग जाएगी। ठीक है मान लिया हमने""" परंतु यहां भी ऊर्जा का स्वपरिवर्तन होना निश्चित है रोक नहीं सकते हैं हम """,,,,,अतः यहां यदि कोई अपनी ऊर्जा के सृजनात्मक कार्यों में बाधा बन जाए तो ऊर्जा का विध्वंसक हो जाना निश्चित हो जाता है ,,,,यहां भले ही हमने ऊर्जा को विध्वंसक मार्ग नहीं दिया परंतु सृजनात्मक कार्यों में बाधा से ही उसका रुख विध्वंसक की ओर निश्चित हो जाता है ,,,,,,उदाहरण - एक बीज अगर अंकुरित नहीं हो पाया तो उसमें विद्यमान ऊर्जा उसका विध्वंसक/नष्ट होने का कारण बन जाती है और वह उसे बीच को नष्ट कर देगी हालांकि यहां भी लोग यह सोचेंगे कि जो बीज अंकुरित हो जाता है उसमें भी तो बीज नष्ट हो जाता है ,, हां हो जाता है,,,, परंतु यहां वह ऊर्जा अंकुरित पौधे में सृजनात्मक रूप में परिवर्तित हो जाती है अर्थात वह सृजनात्मक कार्य में लग चुकी है,,,,जो पौधे को उगने में सहायक होगी ,,,यदि ऊर्जा इसमें सृजनात्मक नही हो पाती तो यह अंकुरित बीज उतना ही बड़ा रह जाता आगे क्यों बढ़ता इसका मतलब उसमें ऊर्जा सृजनात्मक रूप में परिवर्तित हो चुकी है ,,,जो बीज अंकुरित नही हो पाता वहां ऊर्जा विध्वंसक होकर उसको नष्ट कर देती है,,,,, इसी प्रकार जीवन में यदि हमने अपनी ऊर्जा को सृजनात्मक या सकारात्मक कार्यों में नहीं लगाया तो वह परिवर्तित होकर विध्वंसक या नकारात्मक कार्यों में खुद लग जाती है,,,,धन्यवाद!

22/02/2024

✍️,,,सच देखने की दृष्टि,,

खुद की आंख बंद कर लेने से,
सूर्य का कही ताप कम होए।
खुद की आंख खुलने से ही ,
सूर्य का दिखना क्या सच होए।
सच देखने की दृष्टि कहां से आए,
गर ऐसा ही भ्रम बार बार होए।

✍️✍️,,परमात्मा,ज्ञान,भ्रम,चमत्कार,,परमात्मा का प्रभाव असीमित हैप्रताप व विराटता भी असीमित हैवह मेरे अधीन है कैसा झूठा सं...
22/02/2024

✍️✍️,,परमात्मा,ज्ञान,भ्रम,चमत्कार,,

परमात्मा का प्रभाव असीमित है
प्रताप व विराटता भी असीमित है
वह मेरे अधीन है कैसा झूठा संदेश है
उस पर कहां किसकी हुई कैद है
बोलकर किसी ने आत्मा मेरे अधीन है
साफ बताया वो आत्मा से अनभिज्ञ है
जन्म के पहले आत्मा का स्वरूप क्या है
मृत्यु के बाद आत्मा का स्वरूप क्या है
अब तक का यह सबसे बड़ा रहस्य है
जहां जहां रहस्य है वहां वहां परमात्मा है
मानव जनित सबसे बड़े छिपे यहीं भ्रम हैं
हम देते संकेत है कि परमात्मा सीमित है
इनका प्रताप और विराटता भी सीमित है
जो कहने में हर्ज नहीं करने में क्या हर्ज है
किसी ने इन पे भी आजमाए चमत्कार है
पर्वतों को शिफ्ट करने का क्या यंत्र है
जग की सारी वायु भर जाए ऐसा क्या पात्र है
तो सूर्य को कैद करने का क्या उपाय है
सागर के पानी भरने का कौन सा पात्र है
हमारे उपयोग की सारी वस्तुएं यहीं उपलब्ध है
उनको हमने खोजा बस इतना ही श्रेय है
वर्ण कौन क्या जन्म के साथ लाया है
और कौन क्या मृत्यु के बाद ले जाता है
परमात्मा का स्वरूप विराट व अनंत है
ब्रह्मांडो की संख्या तक से तो हम अनभिज्ञ है
जिससे हम सब अब तक अनभिज्ञ है
परमात्मा समक्ष तो केवल व केवल समर्पण है
🙏🙏,,,,👎👎👎👎

21/02/2024

✍️✍️,,,,,Life,,,,

Life is an entertainment according to the nature's rules.
Lise is more serious according to the human's rules.

21/02/2024

✍️✍️,,,,शुद्वता, उत्थान,,,,
जरूरी नहीं किसी वस्तु का उठना ही उत्थान कहा जाए
यहां मानसिक विकास शुद्वता को भी उत्थान कहा जाए
प्रयास हो हर क्षण शरीर ही नहीं मन भी शुद्ध किया जाए
लक्ष्य हो शरीर के उठने से पहले मन को शुद्ध किया जाए

21/02/2024

✍️,,प्रकृति का नियम और भ्रम,,

ईश्वर हमारे साथ है यह प्रकृति का नियम है
ईश्वर सिर्फ मेरे ही साथ है यह हमारा भ्रम है
ईश्वर हमारा भला करता है यह प्रकृति का नियम है
ईश्वर मेरे कहने पे किसी का बुरा करता है यह भ्रम है

20/02/2024

इतनी जागरूकता से जीवन में सम्मुख आना सोचा न था
भ्रम रूप में बसी लोगों की आस्थाएं तोड़ना चाहा न था
मजबूर कर दिया लोगों ने मेरी जागरूकता बाहर लाने को
मजबूर हो गए हम भी जागरूकता से जीवन में आने को

20/02/2024

✍️✍️,,,,मेरा लिखना,,,
लोगो ने कहा मैं रसपूर्ण कविताएं नही लिखता हूं,
मैं रसपूर्ण लिखता ही नही संदेश पूर्ण लिखता हूं,
मेरी कोशिश रहती है जागरूकता पूर्ण लिखने की,
किसी भी चीज को बिना बनावटी असली देखने की,
शब्दों के अर्थ का अनर्थ किए बिना अर्थ समझने की,
कोशिश करता हूं खुद को बनावटी से ही दूर रखने की,
लिखकर किसी को ठेस पहुंचना भी मेरा मकसद नहीं,
किसी को समझाना भी अब मेरा कोई प्रयास नही,
गर पढ़कर कोई समझ ही जाए तो आपत्ति भी नही,
शायद अपना दृष्टिकोण लिखने का आदी हो गया हूं,
प्रयास रहता है दृष्टिकोण जागरूकता से विलख न हो,
अंजाने में हो भी जाए तो किसी को हृदयिक कष्ट न हो,
छः पंक्तियां फिर प्रस्तुत कर रहा हूं,,,👎

"ना पता आने का था ना ही पता जाने का होगा।
दो घड़ी की जिंदगी है क्या किसी से बैर करना।"

"मेरा लिखा हर वाक्य ही कैसा जिसमे कोई संदेश ना हो
हर वाक्य में संदेश ही कैसा जिसमे जागरूकता ना हो"

"वो कहानी कैसी जिसमे कोई नायक नायिका न हो
मेरा लिखना कैसा जिसमें जागरूकता की चिंगारी ना हो"

✍️,,,आंखों की महानता या सूर्य की विराटता,,आंखों की महानता नहीं कि दूरस्थ सूर्य को देख पाएं।शुक्रिया करें उसकी विराटता का...
20/02/2024

✍️,,,आंखों की महानता या सूर्य की विराटता,,

आंखों की महानता नहीं कि दूरस्थ सूर्य को देख पाएं।
शुक्रिया करें उसकी विराटता का जो हमको दिख पाए।
सुप्रभात !🙏🙏

✍️✍️,,,,,'''रास्ते'''रास्तों पर कहां कोई घर होता है,फिर भी अपने से लगते हैं। यह खुद में तो वीरान ही होते हैं,फिर भी यह घ...
19/02/2024

✍️✍️,,,,,'''रास्ते'''
रास्तों पर कहां कोई घर होता है,
फिर भी अपने से लगते हैं।
यह खुद में तो वीरान ही होते हैं,
फिर भी यह घर को घर से मिलाते है।
वीराने होते हुए भी रास्तों पे अपनापन सा लगता है,
दिन हो या रात चलने में कहां डर लगता है।
रास्तों के सूचक बोर्ड साथी से लगते हैं,
जो लंबे रास्ते को भी आसान कर देते हैं।
रास्तों पर बनी सफेद पट्टियां,
मार्गदर्शक का काम करती है।
सड़क की साइड की सुरक्षा रेलिंग,
घरों की छत की रेलिंग सी लगती है।
डिवाइडर पर लगी घास पौधे,
घर के बगीचे से लगते हैं ।
दूरी सूचक बोर्ड बिन बोले ही,
यात्री द्वारा तय की दूरी बताते चलते हैं।
वही चेतावनी बोर्ड बिन इशारे ही,
रास्तों पर चेताते चलते हैं।
हाई स्पीड चेतावनी बोर्ड,
घर के बुजुर्गों से लगते हैं ।
जो अधिकतम स्पीड को भी,
बिन बोले ही बताते हैं।
सड़कों पर चलते हुए अनजाने लोग,
सहारे से लगते हैं।
अपने साथ रखी दवाई किट,
दवा खाना से लगते हैं।
रास्ते तो मध्यस्थता का काम करते हैं,
जो बिन चालक होते हुए भी,
यात्रियों को एक घर से दूसरे घर को ले जाते हैं।

19/02/2024

✍️✍️...जीवन जीने के लिए क्या जरूरी,,
अगर हम जीवित हैं तभी जीवन है अर्थात् जो हमें जीवित रखने में सहायक है सबसे ज्यादा उसकी महत्वपूर्णता होनी चाहिए ,इस आधार पर जीवन के लिए सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण जैसे पानी,वायु ,वृक्ष (ऑक्सीजन दाता) ,वातावरण ,सूरज इत्यादि मालूम पड़ते हैं परंतु इनमे वृक्ष को छोड़ कर किसी की भी उपलब्धता शिक्षाप्रद नही है,, यहां इनकी शुद्धता बनाए रखने में शिक्षाप्रद पूर्ण सहायक है यह भी नहीं कहा जा सकता ,,,परंतु जागरूकता अनिवार्य है ,,,वैसे जागरूकता ,ईमानदारी,करुणा,,,,,इत्यादि अभी तक शिक्षाप्रद नही हो पाए है ,,, शिक्षाप्रद का मतलब है की जिसको शिक्षा से ग्रहण कर इंप्लीमेंटेशन किया जा सके यहां जागरूकता,ईमानदारी करना आदि की शिक्षा तो दी जा सकती है परंतु उसका इंप्लीमेंटेशन कराया जा सके इसकी कोई गारंटी नहीं है अर्थात इसको पूर्ण रूप से शिक्षाप्रद के अंतर्गत नहीं ले सकते,,,शारीरिक शुद्धता, भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के अलावा मानसिक शुद्धता भी जीवन के लिए बहुत आवश्यक है परंतु मानसिक शुद्धता को पाने के लिए लोग मस्तिष्क को एक सूचना भंडारण बना लेते हैं पढ़ी पढ़ाई चीजों को पढ़ पढ़ कर, गढ़े गढ़ाए विचारों को याद कर, लिखी लिखाई चीजों को रट रट कर, मस्तिष्क को एक सूचना भंडारण बना लेते हैं और हमे लगता है कि इससे मस्तिष्क शुद्ध हो गया,,, शुद्ध हो या न हो परंतु एक सूचना भंडार जरूर हो जायेगा,,, और इस आधुनिक वैज्ञानिक दुनिया में मस्तिष्क को सूचना भंडारण बनाना कितना सार्थक है ,,,जब आजकल सूचना भंडारण के रूप में मोबाइल तो सबके पास ही रहता है तो फिर मस्तिष्क को सूचना भंडारण बनाना आवश्यक नही मालूम पड़ता है,,,, स्पष्ट करना चाहूंगा कि खुद के प्रति सजग / जागरूक रहकर (जो खुद के प्रति जागरूक/सजग होगा वो दूसरों के प्रति अजागरूक/असजग हो ही नही सकता) ,खुद के अनुभव से अपनी समझ कुछ सार्थक पढ़ने समझने आदि में लगागर भी मस्तिष्क को शुद्ध/स्वस्थ रखा जा सकता है ,,,,
''''गर जन्म के प्रति हंसना खुश होना अच्छाई है
तो मृत्यु के प्रति जागरूक होने में क्या बुराई है ''''
हालांकि जन्म के समय जन्मा बच्चा रोता ही है इससे स्पष्ट है की वो खुश नहीं है इस माहौल में आने से😊,,,कृपया बहस न करें चर्चा के लिए स्वागत है,,,अभी इतना ही ,,,धन्यवाद ! ,,जागरूक/सजग रहें।
सुप्रभात मित्रों 🙏🙏

18/02/2024

✍️,,,,,भ्रम,परमात्मा का मिलन,,,,

अधिकतर लोग तो भ्रमित होकर भ्रम से ही मिल लेते हैं
भ्रम से मिलने को ही परमात्मा का मिलन समझ लेते हैं

18/02/2024

✍️✍️,,,,मित्रता,,
बोलचाल में आम शब्द है परंतु इसको केवल शब्द ही समझा जाए तो भूल हो जायेगी,,,ऐसे तो इसके शाब्दिक अर्थ वाले पर्यायवाची शब्द जैसे-दोस्ती,मंत्री, यारी इत्यादि अनेक शब्द है,,,गर मित्रता का अर्थ इसके शाब्दिक अर्थों में ही समेट कर रख दिया जाए,, तो मित्रता का जो भाव है,,,,उसकी जो अमूल्य कीमत है (जिसका कोई मोल नहीं),,,मित्रों के लिए जो हृदयिक स्नेह है आदि का कोई मतलब नहीं रह जाता,,,, सूक्ष्मता से देखा जाए तो मित्रता में शाब्दिक अर्थ नही ,बल्कि शब्दों के भाव पढ़े/समझे जाते है,,,, उदाहरणार्थ-मित्रों या दोस्तों में आपस में अक्सर गाली ( सामाजिक रूप से अपशब्दों) का प्रयोग हो ही जाता है,,, परंतु नाराजगी नहीं होती क्योंकि यहां शब्द का अर्थ नही,इसका भाव समझा गया ,,,,वही दूसरी ओर कभी कभी नॉर्मल शब्दों या वाक्यों का प्रयोग होता है जो असल में गाली जैसे नही होते है फिर भी आपस में बुरा/असहज महसूस करा देते हैं ,,,,यहां भी शब्द का अर्थ नही,,इसका भाव ही समझा गया,,,,मुख्य बात यह भी है की मित्र एक दूसरे की भावनाओ को अच्छे से समझते हैं शायद तभी वो कभी कभी शब्द के अर्थ वाले नही बल्कि भाव जागने वाले शब्दों का प्रयोग कर जाते हैं,,,वैसे नाराजगी के दौरान मित्रता में बिन बोले भी मनोभाव से बातचीत होती रहती है,,,,कभी कभी मित्रता में नाराजगी या मनमुटाव होने का कारण ,,''''मित्रो में बातचीत के दौरान मित्र भाव/बंधन से भिन्न भाव से बातचीत होना प्रतीत होता है'''',,,, अब कितना लिखें,,या कहे मित्रता का भाव/अमूल्य कीमत/हृदयिक स्नेह लिखना निश्चित हो जाए या निर्धारित सीमा में हो जाए,,फिर तो मित्रता के भाव/अमूल्य कीमत/हृदयिक स्नेह को एक निर्धारित सीमा निश्चित करना जैसा हो जायेगा,,,जहां मित्रता के भाव/अमूल्य कीमत/हृदयिक स्नेह की सीमा निर्धारित हो जाए फिर महाभारत काव्य में '''कर्ण''' जैसे मित्रों के लिए मित्रता अपमानजनक शब्द हो जायेगा,,,हालांकि मित्रता एक ऐसा अलौकिक अनुभूति, हृदयिक स्नेह है,,, जो बिना मूल्य चुकाए ही अमूल्य चीज/भाव/हृदयिक स्नेह मिल जाता है,,,कृपया इसको खोने से परहेज करें,,
''मित्रता एक ऐसा भाव हृदयिक स्नेह है।
को बिना मूल्य ही अमूल्य मिल जाता है।''
,,,,अभी इतना ही बस,,,धन्यवाद!

18/02/2024

3..✍️✍️,,,,परमात्मा रहस्यमयी या रहस्य ही परमात्मा ,,,
(""मेरे द्रष्टिकोण से परमात्मा एक रहस्य है या कहें जो रहस्य है वहीं परमात्मा है"")
परमात्मा ऐसा रहस्य जो खुली आँखों में छुप सकता है, मस्तिष्क में रहस्यमयी रहता है,,,जीवन से जोड़कर स्पष्ट करूँ तो,,,,यहाँ हम दो प्रचलित रिश्तों पति - पत्नी और प्रेमी - प्रेमिका में से एक पति - पत्नी का उदाहरण लेता हूं क्योंकि इसकी मान्यता, स्वीकृति, सहजता, बच्चों में, युवाओं में, बुजुर्गों में ,पुरुषों में ,महिलाओं में ,समाज में सभी में है ,,,,यहाँ रिश्ता निभाना तथा प्रेम करना दोनों अलग-अलग बाते है,,, रिश्ते में शरीर की उपस्थिति और आदतों का तालमेल अनिवार्य है,,,जबकि प्रेम में इसकी अनिवार्यता नहीं ,,,, अक्सर लोग चर्चा करते हैं, जो नहीं करते वो महसूस तो करते ही होंगे,,,,किसी एक को दूसरे से प्रेम नहीं रहा,, ऐसे लोग रिश्ते को ही प्रेम समझ लेते हैं,,हमने ऊपर बताया है कि रिश्ते निभाने में शरीर की उपस्थिति और आदतों का तालमेल अनिवार्य है तथा जब जब ये डगमगाएगा तब तब रिश्ते डगमगाएगें परंतु प्रेम नहीं,,पति - पत्नी के रिश्ते में एक दूसरे के प्रति प्रेम कम होने का करण शरीर की उपस्थति और आदतो का तालमेल को ही प्रेम समझ लेना है,,,,और फिर लोग कहते हैं हमें अब प्रेम नहीं रहा,,उनको कभी प्रेम था ही नहीं, वो रिश्ता निभा रहे थे,,,क्योंकि इस रिश्ते में लोग एक दूसरे के शरीर , आदतो को जान चुके होते हैं तभी ये ख़तम होने से लगते हैं,,,परंतु दोनो में आत्मा,एक रहस्यमयी, अंजाना तत्व वास करता है जिसे कोई पूरा कभी नहीं जान सकता जिसे हम पूरा कभी जान नहीं पाते वही प्रेम टिकता है जहां प्रेम टिकता है वहीं उत्सुक्ता रहती है, रुचि, लगाव टिकता है ,ठहराव होता है ,,,यूँ कहें जहां आत्मा मेल खाती है वहाँ प्रेम हमेशा रहता है,," कण कण में परमात्मा " ये कहानी सबने सुनी होगी पर समझी नही होगी,, इसको मैंने अपने बोध से जितना,खोजा, जाना,समझा,,,वह यह है कि ब्रह्माण्ड का हर कण परिवर्तनशील है इसीलिए हर कण रहस्यमयी है,,और रहस्यमयी है तभी इसको अभी तक वैज्ञानिक दृष्टि से भी पूरा जाना नहीं जा सका,,अतः परमात्मा रहस्यमयी है,,,अर्थात् जो रहस्यमयी है वही परमात्मा है,,,यहाँ हर कण रहस्यमयी है,,,इस आधार पर कह सकते हैं कि कण कण या हर कण में परमात्मा विद्यामान होता है।,,,बस। धन्यवद !🙏🙏

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