Vivek Kumar Tech

Vivek Kumar Tech New Story

आइंस्टीन के जो ड्राइवर थे, उन्होंने एक दिन आइंस्टीन से कहा- " सर,आप हर सभा में जो भाषण देते हैं, वह मैंने याद कर लिया है...
01/12/2023

आइंस्टीन के जो ड्राइवर थे, उन्होंने एक दिन आइंस्टीन से कहा- " सर,आप हर सभा में जो भाषण देते हैं, वह मैंने याद कर लिया है।''

-आइंस्टीन हैरान रह गये!

फिर उन्होंने कहा, "ठीक है, मैं अगली बैठक में जहां जा रहा हूं, वे मुझे नहीं जानते, आप मेरे स्थान पर भाषण दीजिए और मैं ड्राइवर बनूंगा।"

- ऐसे ही हुआ अगले दिन बैठक में ड्राइवर मंच पर चढ़ गई और ड्राइवर ने हूबहू आइंस्टीन की भाषण देने लगा....

दर्शकों ने जमकर तालियां बजाईं. फिर वे यह सोचकर गाड़ी के पास आए कि ड्राइवर आइंस्टीन है।

- तभी एक प्रोफेसर ने ड्राइवर से पूछा, ''सर, रिश्तेदार ने क्या कहा, क्या आप एक बार फिर संक्षेप में बताएंगे?''

- असली आइंस्टीन ने देखा बड़ा खतरा !!

इस बार ड्राइवर पकड़ा जाएगा। लेकिन ड्राइवर का जवाब सुनकर वह हैरान रह गये....

ड्राइवर ने उत्तर दिया. -"क्या यह साधारण बात आपके दिमाग में नहीं आई?

मेरे ड्राइवर से पूछिए वह आपको समझाएंगे "

नोट : "यदि आप बुद्धिमान लोगों के साथ चलते हैं, तो आप भी बुद्धिमान बनेंगे और मूर्खों के साथ ही सदा उठेंगे-बैठेंगे तो आपका मानसिक तथा बुद्धिमता का स्तर और सोच भी उन्हीं की भांति हो जाएगी..!!

08/10/2023

0️⃣6️⃣❗1️⃣0️⃣❗2️⃣0️⃣2️⃣3️⃣

*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*

*!! असली शांति !!*
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एक राजा था जिसे चित्रकला से बहुत प्रेम था। एक बार उसने घोषणा की कि जो कोई भी चित्रकार उसे एक ऐसा चित्र बना कर देगा जो शान्ति को दर्शाता हो तो वह उसे मुँह माँगा पुरस्कार देगा।

निर्णय वाले दिन एक से बढ़ कर एक चित्रकार पुरस्कार जीतने की लालसा से अपने-अपने चित्र लेकर राजा के महल पहुँचे। राजा ने एक-एक करके सभी चित्रों को देखा और उनमें से दो चित्रों को अलग रखवा दिया। अब इन्ही दोनों में से एक को पुरस्कार के लिए चुना जाना था।

पहला चित्र एक अति सुन्दर शान्त झील का था। उस झील का पानी इतना स्वच्छ था कि उसके अन्दर की सतह तक दिखाई दे रही थी। और उसके आस-पास विद्यमान हिमखंडों की छवि उस पर ऐसे उभर रही थी मानो कोई दर्पण रखा हो। ऊपर की ओर नीला आसमान था जिसमें रुई के गोलों के सामान सफ़ेद बादल तैर रहे थे। जो कोई भी इस चित्र को देखता उसको यही लगता कि शान्ति को दर्शाने के लिए इससे अच्छा कोई चित्र हो ही नहीं सकता। वास्तव में यही शान्ति का एक मात्र प्रतीक है।

दूसरे चित्र में भी पहाड़ थे, परन्तु वे बिलकुल सूखे, बेजान, वीरान थे और इन पहाड़ों के ऊपर घने गरजते बादल थे जिनमें बिजलियाँ चमक रहीं थीं… घनघोर वर्षा होने से नदी उफान पर थी… तेज हवाओं से पेड़ हिल रहे थे… और पहाड़ी के एक ओर स्थित झरने ने रौद्र रूप धारण कर रखा था। जो कोई भी इस चित्र को देखता यही सोचता कि भला इसका ‘शान्ति’ से क्या लेना देना… इसमें तो बस अशांति ही अशांति है।

सभी आश्वस्त थे कि पहले चित्र बनाने वाले चित्रकार को ही पुरस्कार मिलेगा। तभी राजा अपने सिंहासन से उठे और घोषणा की कि दूसरा चित्र बनाने वाले चित्रकार को वह मुँह माँगा पुरस्कार देंगे। हर कोई आश्चर्य में था!

पहले चित्रकार से रहा नहीं गया, वह बोला, “लेकिन महाराज उस चित्र में ऐसा क्या है जो आपने उसे पुरस्कार देने का फैसला लिया… जबकि हर कोई यही कह रहा है कि मेरा चित्र ही शान्ति को दर्शाने के लिए सर्वश्रेष्ठ है?”
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“आओ मेरे साथ!”, राजा ने पहले चित्रकार को अपने साथ चलने के लिए कहा। दूसरे चित्र के समक्ष पहुँच कर राजा बोले, “झरने के बायीं ओर हवा से एक ओर झुके इस वृक्ष को देखो। उसकी डाली पर बने उस घोंसले को देखो… देखो कैसे एक चिड़िया इतनी कोमलता से, इतने शान्त भाव व प्रेमपूर्वक अपने बच्चों को भोजन करा रही है…”

फिर राजा ने वहाँ उपस्थित सभी लोगों को समझाया, “शान्त होने का अर्थ यह नहीं है कि आप ऐसी स्थिति में हों जहाँ कोई शोर नहीं हो…कोई समस्या नहीं हो… जहाँ कड़ी मेहनत नहीं हो… जहाँ आपकी परीक्षा नहीं हो… शान्त होने का सही अर्थ है कि आप हर तरह की अव्यवस्था, अशांति, अराजकता के बीच हों और फिर भी आप शान्त रहें, अपने काम पर केंद्रित रहें… अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर रहें।”

अब सभी समझ चुके थे कि दूसरे चित्र को राजा ने क्यों चुना है।
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*शिक्षा:-*
मित्रों, हर कोई अपने जीवन में शान्ति चाहता है। परन्तु प्राय: हम ‘शान्ति’ को कोई बाहरी वस्तु समझ लेते हैं और उसे दूरस्थ स्थलों में ढूँढते हैं, जबकि शान्ति पूरी तरह से हमारे मन की भीतरी चेतना है और सत्य यही है कि सभी दुःख-दर्दों, कष्टों और कठिनाइयों के बीच भी शान्त रहना ही वास्तव में शान्ति है..!!
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*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

"जो जीता वह चन्द्रगुप्त मौर्य "सिकन्दर भारत से घायल होकर , पिट कर और हारकर वापिस गया था और उसके सेनापति सेल्युकस निकेटर ...
03/10/2023

"जो जीता वह चन्द्रगुप्त मौर्य "
सिकन्दर भारत से घायल होकर , पिट कर और हारकर वापिस गया था और उसके सेनापति सेल्युकस निकेटर ने चंद्रगुप्त मौर्य से पराजित होकर अपनी बेटी हेलिना का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्य से किया था और हजारों घोड़े, हाथी सहित चार देश दहेज में दिए थे!

मगर मुर्दा कौम कहती है - "जो जीता वही सिकन्दर"

कहना तो चाहिए था - "जो जीता वही चन्द्रगुप्त मौर्य "

" जो हारा वह सिकन्दर का सेनापति सेल्यूकस निकेटर "

तर्क करो! ये पागलपन अब बंद करो! देश के सच्चे इतिहास को जानो
महान तो सम्राटों के सम्राट, अखंड भारत के निर्माता चंद्रगुप्त मौर्य और सम्राट अशोक महान थे!

जय चंद्रगुप्त मौर्य ,
जय सम्राट अशोक!!

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ
24/09/2023

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ

अंतर्राष्ट्रीय बेटी दिवस
24/09/2023

अंतर्राष्ट्रीय बेटी दिवस

24/09/2023
अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस
21/09/2023

अंतर्राष्ट्रीय शांति दिवस

पूनम के पति फौज में थे, एक दिन पूनम के पास सन्देश आया, कि वह नहीं रहे, देश की रक्षा करते हुए वह वीरगति को प्राप्त हो गए।...
15/09/2023

पूनम के पति फौज में थे, एक दिन पूनम के पास सन्देश आया, कि वह नहीं रहे, देश की रक्षा करते हुए वह वीरगति को प्राप्त हो गए।तब से पूनम प्रतिदिन अपने पति की समाधी पर फूल चढ़ाने जाया करती है। एक दिन पूनम ने देखा, कि एक गरीब बच्चा अपने पिता की समाधी पर बस्ता फेक कर शिकायत कर रहा है, और कह रहा था "उठो ना पापा टीचर ने कहा है" कल फीस लेकर आना।

पापा आपको टीचर ने बुलाया है, अगर मैंने कल फीस जमा नहीं की तो वह मुझे स्कूल से निकाल देंगे, उठो ना पापा अब आपको कल स्कूल चलना ही होगा। बच्चे के इन शब्दों ने पूनम के ह्रदय को छलनी कर दिया, थोड़ी देर बाद पूनम उसके पास गई, और पूनम ने पैसे बच्चे के हाथ में रख दिए और कहा,बेटा ये पैसे लो, यह पैसे तुम्हारे पापा ने भेजे है। कल स्कूल में जमा कर देना, और साथ ही आपके पापा ने यह नंबर भी भेजा है। जब कभी भी पैसों की जरूरत हो तो इस नंबर पर फ़ोन कर लेना, आपके पापा पैसे भिजवा देंगे।

हिंदी दिवस
14/09/2023

हिंदी दिवस

मोदी आपके राज में कटोरा दे दो हाथ में
13/09/2023

मोदी आपके राज में कटोरा दे दो हाथ में

Channel ko subscribe kar
04/09/2023

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0️⃣5️⃣❗0️⃣8️⃣❗2️⃣0️⃣2️⃣3️⃣*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*            *!! हमारा दिया हमें वापस !!*~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~...
06/08/2023

0️⃣5️⃣❗0️⃣8️⃣❗2️⃣0️⃣2️⃣3️⃣

*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*

*!! हमारा दिया हमें वापस !!*
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एक राज्य में बहुत पानी गिरने से बाढ़ आ गई थी. वहां के कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं ने मिल कर गांव गांव से चंदा, खान पान की चीजें, कपड़े आदि लेकर जमा करना शुरु किया ताकि बाढ़ से पीड़ित लोगों की कुछ मदद कर सके.

हर कोई अपनी अपनी इच्छा और हैसियत के अनुसार कुछ न कुछ दे रहा था.

जब वे एक संपन्न परिवार के घर गये तो उनका बच्चा बहुत उत्साहित हुआ कि उन्हें वे बहुत कुछ दे सके पर जब वह अपने मां बाप से कहने लगा तो वे कहने लगे, "ऐसे तो मांगने वाले बहुत आते रहेंगे तो क्या सारा घर लुटा दोगे, जाओ वो एक फटी हुई पुरानी चादर पड़ी है दे दो उन्हें."

कुछ घंटों बाद पानी का बहाव और बढ़ गया और उस परिवार का घर भी पानी से लदालद हो गया. फिर उन्हें भी घर छोड़ कर उस धर्मशाला में जाना पड़ा जहां सभी पीड़ित लोग आये हुए थे.

बरसात की वजह से ठंड भी काफी लग रही थी. उन्होंने वहां से कुछ कंबल या चादर की याचना की. कार्यकर्ताओं ने कहा, "भाई जो काफी समय से, यहां सारे लोग आ चुके हैं , हमने सभी में सब बांट लिया है, देखता हूं कुछ बचा है क्या?"

जब उसने देखा तो एक चादर दिखी और ले आया. चादर काफी फटी हुई थी.

चादर देते वक्त उसने कहा, "माफ करना भाई कुछ रहा तो नहीं सिवा इस फटी चादर के. इसी से गुजारा कर लो. यह शायद नहीं बचती, फटी है इसलिये बच गई है."

अब वे तीन भला उस फटी चादर में कैसे गुजारते? उन्होंने वह चादर अपने बच्चे को ओढ़ दी.

जब बच्चे ने वह देखी तो कहने लगा, "हमारा ही दिया हमें वापस."

*शिक्षा:-*
जैसे वह परिवार संपन्न था उसके बावजूद भी उन्होंने फटी मैली चादर ही दी जोकि उन्हें ही वापस मिली. अगर वे कुछ अच्छी रजाईयां या कंबल देते तो हो सकता है वो उन्हीं के काम में आते.

हमारे मन में जैसी भावना हो वैसी ही भावना हमें वापसी में मिलती है. और हमारा ही दिया हुआ हमें वापस मिलता है... अगर अच्छा दो तो अच्छा ही वापस भी

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

19/05/2023

अपनी गद्दारी का ख़ुद ही आईना हो जायेगा

मुझ को छोटा कर के तू कैसे बड़े हो जायेगा

तुम गिराने में लगे थे तुमने ये सोचा नहीं

मैं गिरा तो और ताकत से खड़ा हो जाऊँगा

मुझ को चलने दो कि जारी है अभी मेरा सफ़र

रास्ता रोकोगे तो फिर क़ाफ़िला हो जाऊँगा

कद्र खुद्दारी कि करना तेरी फितरत में नहीं

तू ने क्या समझा था तेरा पालतू हो जाऊँगा?

*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*    *!!वास्तव में सुखी कौन!!*~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~एक भिखारी किसी किसान के घर भीख माँगने ग...
14/05/2023

*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*
*!!वास्तव में सुखी कौन!!*
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
एक भिखारी किसी किसान के घर भीख माँगने गया। किसान की स्त्री घर में थी, उसने चने की रोटी बना रखी थी। किसान जब घर आया, उसने अपने बच्चों का मुख चूमा, स्त्री ने उनके हाथ पैर धुलाये, उसके बाद वह रोटी खाने बैठ गया। स्त्री ने एक मुट्ठी चना भिखारी को डाल दिया, भिखारी चना लेकर चल दिया।

रास्ते में भिखारी सोचने लगा, “हमारा भी कोई जीवन है? दिन भर कुत्ते की तरह माँगते फिरते हैं। फिर स्वयं बनाना पड़ता है। इस किसान को देखो कैसा सुन्दर घर है। घर में स्त्री है, बच्चे हैं, अपने आप अन्न पैदा करता है। बच्चों के साथ प्रेम से भोजन करता है। वास्तव में सुखी तो यह किसान है।

इधर वह किसान रोटी खाते-खाते अपनी स्त्री से कहने लगा, “नीला बैल बहुत बुड्ढा हो गया है, अब वह किसी तरह काम नहीं देता, यदि कहीं से कुछ रुपयों का इन्तजाम हो जाये तो इस साल का काम चले। साधोराम महाजन के पास जाऊँगा, वह ब्याज पर दे देगा।”

भोजन करके वह साधोराम महाजन के पास गया। बहुत देर चिरौरी विनती करने पर 1रु. सैकड़ा सूद पर साधों ने रुपये देना स्वीकार किया। एक लोहे की तिजोरी में से साधोराम ने एक थैली निकाली और गिनकर रुपये किसान को दे दिये।

रुपये लेकर किसान अपने घर को चला, वह रास्ते में सोचने लगा- “हम भी कोई आदमी हैं, घर में 5 रु. भी नकद नहीं। कितनी चिरौरी विनती करने पर उसने रुपये दिये हैं। साधो कितना धनी है, उसके पास सैकड़ों रुपये हैं।” वास्तव में सुखी तो यह साधो राम ही है। साधोराम छोटी सी दुकान करता था, वह एक बड़ी दुकान से कपड़े ले आता था और उसे बेचता था।

दूसरे दिन साधोराम कपड़े लेने गया, वहाँ सेठ पृथ्वीचन्द की दुकान से कपड़ा लिया। वह वहाँ बैठा ही था कि इतनी देर में कई तार आए कोई बम्बई का था तो कोई कलकत्ते का, किसी में लिखा था 5 लाख मुनाफा हुआ, किसी में एक लाख का। साधो महाजन यह सब देखता रहा, कपड़ा लेकर वह चला आया। रास्ते में सोचने लगा, “हम भी कोई आदमी हैं, सौ दो सौ जुड़ गये महाजन कहलाने लगे। पृथ्वीचन्द कैसे हैं, एक दिन में लाखों का फायदा। “वास्तव में सुखी तो यह है, उधर पृथ्वीचन्द बैठा ही था, कि इतने ही में तार आया कि 5 लाख का घाटा हुआ। वह बड़ी चिन्ता में था कि नौकर ने कहा, आज लाट साहब की रायबहादुर सेठ के यहाँ दावत है। आपको जाना है, मोटर तैयार है।”

पृथ्वीचन्द मोटर पर चढ़ कर रायबहादुर की कोठी पर चला गया। वहाँ सोने चाँदी की कुर्सियाँ पड़ी थी, रायबहादुर जी से कलक्टर-कमिश्नर हाथ मिला रहे थे। बड़े-बड़े सेठ खड़े थे। वहाँ पृथ्वीचन्द सेठ को कौन पूछता, वे भी एक कुर्सी पर जाकर बैठ गया। लाट साहब आये, राय बहादुर से हाथ मिलाया, उनके साथ चाय पी और चले गये।

पृथ्वीचन्द अपनी मोटर में लौट रहें थे, रास्ते में सोचते आते हैं, हम भी कोई सेठ हैं, 5 लाख के घाटे से ही घबड़ा गये। राय बहादुर का कैसा ठाठ है, लाट साहब उनसे हाथ मिलाते हैं। “वास्तव में सुखी तो ये ही है।”

अब इधर लाट साहब के चले जाने पर रायबहदुर के सिर में दर्द हो गया, बड़े-बड़े डॉक्टर आये एक कमरे वे पड़े थे। कई तार घाटे के एक साथ आ गये थे। उनकी भी चिन्ता थी, कारोबार की भी बात याद आ गई। वे चिन्ता में पड़े थे, तभी खिड़की से उन्होंने झाँक कर नीचे देखा, एक भिखारी हाथ में एक डंडा लिये अपनी मस्ती में जा रहा था। राय बहदुर ने उसे देखा और बोले, “वास्तव में तो सुखी यही है, इसे न तो घाटे की चिन्ता न मुनाफे की फिक्र, इसे लाट साहब को पार्टी भी नहीं देनी पड़ती, सुखी तो यही है।”

*शिक्षा:-*
इस प्रसंग से हमें यह पता चलता है कि हम एक-दूसरे को सुखी समझते हैं, पर वास्तव में सुखी कौन है, इसे तो वही जानता है जिसे आन्तरिक शान्ति है, जिसे आन्तरिक सुकून है। आप चाहे भिखारी हों चाहे करोड़पति हों। लेकिन आप के मन में जब तक शांति नहीं है तब तक आपको सुकून नहीं मिल सकता।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

10/05/2023

*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*
*!! लोहे का तराजू !!*
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एक बार एक व्यापारी को व्यापार के सिलसिले में परदेस जाना था और उसके लिए पैसों की जरूरत थी। वह एक साहूकार के पास गया और उससे पैसे उधार लिए। व्यापारी ने अपनी लोहे की तराजू साहूकार के पास गिरवी रखवा दी।

अपनी यात्रा से वापस आने के बाद, व्यापारी साहूकार के घर गया। उसने उसके पैसे वापस किए और उससे अपनी तराजू मांगा। लालची साहूकार बोला, “मेरी दुकान में बहुत सारे चूहे हैं। चूहों ने तुम्हारी तराजू कुतर दिया।”

व्यापारी को पता था कि साहूकार झूठ बोल रहा है पर उसने साहूकार से कोई बहस नहीं किया। उसने कहा, “कोई बात नहीं। मैं तुम्हारे लिए रेशम के कुछ कपड़े की थान लाया हूं। क्या तुम अपने बेटे को मेरे साथ भेज दोगे? वह कपड़ों के थान को लेकर वापस आ जाएगा।” सौदागर की आंखें चमक उठी और उसने अपने बेटे को व्यापारी के साथ भेज दिया।

व्यापारी साहूकार के बेटे को एक गुफा में ले गया और बोला, “मैंने अपना सामान इस गुफा में रखा हुआ है। अंदर जाकर दो थान निकाल लो।” जैसे ही लड़का अंदर गया, व्यापारी ने गुफा का दरवाजा बंद कर दिया। व्यापारी अकेला साहूकार के पास गया। परेशान साहूकार ने पूछा, “मेरा बेटा कहां है?”

व्यापारी ने कहा, “मुझे माफ करना। एक चील तुम्हारे बेटे को अपने पंजे में दबाकर उड़ गया।”

साहूकार गुस्से में बोला, “ऐसा कैसे हो सकता है? मैं तुम्हारी शिकायत गांव के बड़े बुजुर्ग से करूंगा।”

जब बुजुर्गों ने व्यापारी से लड़के को वापस करने को कहा तो व्यापारी बोला, “जब लोहे के तराजू को चूहा खा सकता है, तो लड़के को चील कैसे नहीं उठा सकता?”

उन लोगों ने व्यापारी से पूरा मामला बताने को कहा। व्यापारी की बात सुनकर बुजुर्गों ने साहूकार को तराजू वापस देने को कहा।

*शिक्षा:-*
मित्रों, जैसा बीज बोओगे, वैसी फसल काटोगे।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

08/05/2023

*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*
*!! विश्वास की जीत !!*
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एक बार एक गांव में एक सज्जन पुरूष रहते थे, वे बहुत ही दयालू तथा हृदय ग्राही थे, किसी को भी कभी अपशब्द नहीं कहते थे। जो भी उनके घर आता वे अच्छे से उसका आथित्य सत्कार करते। लोग उनसे सलाह मशविरा लेने आया जाया करते थे।

एक बार एक कैदी जेल से भाग जाता है, पुलिस उसके पीछे लगी रहती है। वह जब गांव के बीच पहुंचता है तो उसे एक घर का दरवाजा खुला दिखता है। वह घर उसी सज्जन पुरूष का था। वह बिना इजाजत के अन्दर प्रवेश करता है।

जैसे ही वह कैदी अन्दर पहुचता है तो वह सज्जन पुरूष बड़ी सौम्यता से कहते है, आइए महाराज आपका स्वागत है। उसे आराम से बिठाता है और कहता है कि तुम कौन हो और कहां से आ रहे हो। वह कैदी कहता है कि मैं रास्ता भटक गया हूं, क्या आप मुझे आज रात रहने की जगह दे सकते हैं। आपका बडा एहसान होगा।

वह पुरूष कहता है- क्यों नहीं आप आराम से यहां रहिए, आप नहा लिजिए मैं आपके लिये खाने सोने की व्यवस्था करता हूं। जब तक वह कैदी नहाता है तब तक वह सज्जन पुरूष उसके लिए सब व्यवस्था करता है। खाने के बाद सब सो जाते हैं। लेकिन उसकी नियत खराब हो जाती है और वह वहां से सोने की चीजें चुरा लेता है और फिर भाग जाता है।

रास्ते में पुलिस उसे पकड़ लेती है। और जब पूछताछ करती है तो वह कहता है कि मैंने उस सज्जन पुरूष के यहां से यह चुराया है। उस कैदी को उस पुरूष के सामने लाया जाता है। लेकिन वह पुरूष कहता है कि यह सोने की वस्तु मैंने ही इसे दान में दी है।

उस कैदी की आंखें खुल जाती है और उस पुरूष से माफी मांगता है। और कहता है कि जब भी तुम्हें किसी चीज की जरूरत हो तो मांग लेना चाहिए ना की चुराना।

*शिक्षा :-*
इसीलिये कहा गया है कि विश्वास रखो तो सब कुछ सही हो जाता है।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

07/05/2023

गरीब के साथ बदसलूकी करती पुलिस

*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*     *लोभ नर्क का द्वार है।*~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~एक बड़ा जमींदार था। उसके मन में आया ...
02/05/2023

*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*
*लोभ नर्क का द्वार है।*
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एक बड़ा जमींदार था। उसके मन में आया कि अपनी कुछ जमीन गरीबों को बांटनी चाहिये। एक लोभी मनुष्य उसके पास पहुंचा और कहने लगा, “मुझे जमीन चाहिये।” जमींदार ने कहा, “ठीक बात है, सूर्योदय से चलना प्रारंभ करो। सूर्यास्त तक वहीं वापस लौटो। उस घेरे में जितनी भी जमीन आ जायगी, वह सब तुम्हारी होगी।”

प्रारंभ के स्थान पर निशान गाडकर वह आदमी चलने लगा। उसने सोचा कि बड़ा लम्बा घेरा लूंगा तब बहुत अधिक जमीन मिलेगी। वह दौड़ा बिना रुके, बिना विश्राम किये वह दौड़ता रहा। भोजन तो क्या उसने पानी तक नहीं पिया। अभी वह बिना मुड़े आगे ही बढ़ता जा रहा था। जब सूरज भगवान अस्ताचल की ओर झुके, तब वह घबराया। मैं तो बहुत दूर चला आया हूं, अब सूर्यास्त के पूर्व प्रारंभ के स्थान पर भला कैसे पहुंचूंगा ? वहां तक नहीं पहुंचूंगा तो घेरा अधूरा रह जायगा और मुझे कुछ भी नहीं मिलेगा। इस कल्पना मात्र से वह बहुत व्यथित हुआ और भूखा प्यासा होते हुए भी वह जी जान से दौड़ने लगा। वह हांफने लगा। उसके पैर लड़खड़ाने लगे। उधर सूर्यास्त हो रहा था, इधर इस आदमी के प्राण भी अस्त हो रहे थे। वह मूर्च्छित हुआ और शीघ्र ही मृत्यु को प्राप्त हुआ।

लोगों को जब पता चला तब वे वहां आ पहुंचे। उसे श्मशान में ले जाया गया। उसे गाड़ने के लिये केवल साढ़े तीन हाथ जगह पर्याप्त रही।

*शिक्षा:-*
हमें लालच नहीं करना चाहिए। जितना हमें प्राप्त है, उसी में संतुष्ट रहना चाहिए। लोभ-लालच के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए, इससे अनिष्ट ही होता है..!!

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

Good morning 🌄🌄🌄
02/05/2023

Good morning 🌄🌄🌄

01/05/2023

*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*
*!! मूर्ख पड़ोसी !!*
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प्राचीन भारत में, एक बहुत ही दयालु व्यापारी रहता था। वह निर्धन लोगों को पैसे दान करता था और अपने दोस्तों की हमेशा मदद करता था। उस व्यापारी ने एक दिन अपना सारा पैसा और पैसे के साथ अपनी ख्याति भी खो दी। उसके दोस्त उसे अनदेखा करने लगे। इन सबसे तंग आकर एक रात उसने सोचा, “मैंने सब कुछ खो दिया, कोई मेरे साथ नहीं है। मुझे मर जाना चाहिए।”

यह सोचते सोचते उसे गहरी नींद आ गई। सोते हुए उसने एक सपना देखा। सपने में एक भिक्षु ने उससे कहा, “कल मैं तुम्हारे द्वार पर आऊंगा। तुम्हें मेरे सिर पर लाठी से चोट करनी होगी। मैं सोने की मूर्ति में बदल जाऊंगा।” लगभग सुबह हो चुकी थी। व्यापारी जागा और सपने के बारे में सोचने लगा।

फिर कुछ समय बाद, एक भिक्षु ने घर के दरवाजे पर दस्तक दी। व्यापारी ने भिक्षु को अंदर बुलाया। व्यापारी ने भिक्षु के सिर पर लाठी से वार किया और भिक्षु तुरंत ही सोने की मूर्ति में बदल गया। पास से ही एक पड़ोसी जा रहा था उसने यह सब देख लिया।

लालची पड़ोसी ने व्यापारी की नकल करने का फैसला लिया। अगले दिन पड़ोसी एक आश्रम में गया और कुछ भिक्षुओं से एक कठिन पुस्तक को समझाने के लिए अपने घर पर आने का आग्रह किया। भिक्षुओं ने उसका आग्रह स्वीकार कर लिया।

अगले दिन कई भिक्षु उस पड़ोसी के घर आए। उसने अपने घर का द्वार बंद कर दिया और भिक्षुओं के सिर पर लाठी से प्रहार करना शुरू कर दिया। जब एक भी भिक्षु सोने की मूर्ति में नहीं बदला तो पड़ोसी निराश हो गया।

पड़ोसी को भिक्षुओं पर हमला करने के अपराध में बंदी बना लिया गया। पड़ोसी ने अपने कृत्य के लिए व्यापारी को दोषी ठहराया। राजा ने व्यापारी को राजदरबार में बुलाया। व्यापारी ने राजा को अपने सपने के बारे में सब कुछ बता दिया। उसने कहा, “महाराजा, मैंने पड़ोसी से भिक्षुओं पर हमला करने के लिए नहीं कहा। पड़ोसी को यह मूर्खता करने से पहले इसके दुष्परिणामों के बारे में सोचना चाहिए था।”

राजा व्यापारी की बात से सहमत था अत‌‌: उसने व्यापारी को मुक्त कर दिया और सैनिकों से मूर्ख पड़ोसी को कारागार में डालने का आदेश दिया।

*शिक्षा:-*
मित्रों! बिना सोचे समझे कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️✍️

30/04/2023

*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*
*!! एक गिलास पानी !!*
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सरकारी कार्यालय में लंबी लाइन लगी हुई थी। खिड़की पर जो क्लर्क बैठा हुआ था, वह तल्ख़ मिजाज़ का था और सभी से तेज स्वर में बात कर रहा था।

उस समय भी एक महिला को डांटते हुए वह कह रहा था, "आपको ज़रा भी पता नहीं चलता, यह फॉर्म भर कर लायीं हैं, कुछ भी सही नहीं है। सरकार ने फॉर्म फ्री कर रखा है तो कुछ भी भर दो, जेब का पैसा लगता तो दस लोगों से पूछ कर भरतीं आप।"

एक व्यक्ति पंक्ति में पीछे खड़ा काफी देर से यह देख रहा था, वह पंक्ति से बाहर निकल कर, पीछे के रास्ते से उस क्लर्क के पास जाकर खड़ा हो गया और वहीं रखे मटके से पानी का एक गिलास भरकर उस क्लर्क की तरफ बढ़ा दिया।

क्लर्क ने उस व्यक्ति की तरफ आँखें तरेर कर देखा और गर्दन उचका कर 'क्या है?' का इशारा किया।

उस व्यक्ति ने कहा, "सर, काफी देर से आप बोल रहे हैं, गला सूख गया होगा, पानी पी लीजिये।"

क्लर्क ने पानी का गिलास हाथ में ले लिया और उसकी तरफ ऐसे देखा जैसे किसी दूसरे ग्रह के प्राणी को देख लिया हो! और कहा, "जानते हो, मैं कड़वा सच बोलता हूँ, इसलिए सब नाराज़ रहते हैं, चपरासी मुझे पानी तक नहीं पिलाता!"

वह व्यक्ति मुस्कुरा दिया और फिर पंक्ति में अपने स्थान पर जाकर खड़ा हो गया।

अब उस क्लर्क का मिजाज बदल चुका था, काफी शांत मन से उसने सभी से बात की और सबको अच्छे से सेवाएं देनी शुरू की।

शाम को उस व्यक्ति के पास एक फ़ोन आया, दूसरी तरफ वही क्लर्क था, उसने कहा, "भाई साहब, आपका नंबर आपके फॉर्म से लिया था, धन्यवाद देने के लिये फ़ोन किया है। मेरी माँ और पत्नी में बिल्कुल नहीं बनती, आज भी जब मैं घर पहुंचा तो दोनों बहस कर रहीं थी, लेकिन आपका गुरुमंत्र काम आ गया।"

वह व्यक्ति चौंका, और कहा, "जी? गुरुमंत्र?"

"जी हाँ, मैंने एक गिलास पानी अपनी माँ को दिया और दूसरा अपनी पत्नी को और यह कहा कि गला सूख रहा होगा पानी पी लो। बस तब से हम तीनों हँसते-खेलते बातें कर रहे हैं।

अब भाई साहब, आप आज हमारे घर पर खाने पर आइये।"

"जी! लेकिन, खाने पर क्यों?"

क्लर्क ने भर्राये हुए स्वर में उत्तर दिया, "गुरू माना है तो इतनी दक्षिणा तो बनेगी ना आपकी और ये भी जानना चाहता हूँ, एक गिलास पानी में इतना जादू है तो खाने में कितना होगा?"

*शिक्षा:-*
दूसरों के क्रोध को प्यार से ही दूर किया जा सकता है। कभी-कभी हमारे एक छोटे से प्यार भरे बर्ताव से दूसरे इंसान में बहुत बड़ा परिवर्तन हो जाता है और प्यार भरे रिश्तों की एकाएक शुरूआत होने लगती है जिससे घर और कार्यस्थल पर मन को सुकुन मिलता है..!!

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*        *!! मुश्किल दौर !!*~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~एक बार की बात है, एक कक्षा में गुरूजी अपने ...
28/04/2023

*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*
*!! मुश्किल दौर !!*
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एक बार की बात है, एक कक्षा में गुरूजी अपने सभी छात्रों को समझाना चाहते थे कि प्रकृति सभी को समान अवसर देती हैं और उस अवसर का इस्तेमाल करके अपना भाग्य खुद बना सकते हैं। इसी बात को ठीक तरह से समझाने के लिए गुरूजी ने तीन कटोरे लिए। पहले कटोरे में एक आलू रखा, दूसरे में अंडा और तीसरे कटोरे में चाय की पत्ती डाल दी।

अब तीनों कटोरों में पानी डालकर उनको गैस पर उबलने के लिए रख दिया।

सभी छात्र ये सब हैरान होकर देख रहे थे लेकिन किसी को कुछ समझ नहीं आ रहा था। बीस मिनट बाद जब तीनों बर्तन में उबाल आने लगे, तो गुरूजी ने सभी कटोरों को नीचे उतरा और आलू, अंडा और चाय को बाहर निकाला।

अब उन्होंने सभी छात्रों से तीनों कटोरों को गौर से देखने के लिए कहा। अब भी किसी छात्र को समझ नहीं आ रहा था। आखिर में गुरु जी ने एक बच्चे से तीनों (आलू, अंडा और चाय) को स्पर्श करने के लिए कहा। जब छात्र ने आलू को हाथ लगाया तो पाया कि जो आलू पहले काफी कठोर हो गया था और पानी में उबलने के बाद काफी मुलायम हो गया था।

जब छात्र ने अंडे को उठाया तो देखा जो अंडा पहले बहुत नाज़ुक था उबलने के बाद वह कठोर हो गया है। अब बारी थी चाय के कप को उठाने की। जब छात्र ने चाय के कप को उठाया तो देखा चाय की पत्ती ने गर्म पानी के साथ मिलकर अपना रूप बदल लिया था और अब वह चाय बन चुकी थी।
अब गुरु जी ने समझाया, हमने तीन अलग-अलग चीजों को समान विपत्ति से गुज़ारा, यानी कि तीनों को समान रूप से पानी में उबाला लेकिन बाहर आने पर तीनों चीजें एक जैसी नहीं मिली।

आलू जो कठोर था वो मुलायम हो गया, अंडा पहले से कठोर हो गया और चाय की पत्ती ने भी अपना रूप बदल लिया। उसी तरह यही बात इंसानों पर भी लागू होती है।

*शिक्षा:-*
सभी को समान अवसर मिलते हैं और मुश्किले आती हैं लेकिन ये पूरी तरह आप पर निर्भर है कि आप परेशानी का सामना कैसा करते हैं और मुश्किल दौर से निकलने के बाद क्या बनते हैं।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*       *!! चालाक मछली !!*~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~एक बार की बात है, एक मछुआरा था। वह रोज़ ताल...
27/04/2023

*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*
*!! चालाक मछली !!*
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एक बार की बात है, एक मछुआरा था। वह रोज़ तालाब में जाकर मछली पकड़ता था। जिसे बेचकर वह अपना गुजारा करता था। कभी उसके जाल में बहुत सारी मछली आती थी और कभी कम। एक दिन वह तालाब पर मछली पकड़ने के लिए गया। वह अपना जाल लगाकर कुछ देर बैठ गया। कुछ देर के बाद जब उसने अपना जाल निकाला तो उसके जाल में बहुत सारी मछली थी। वह बहुत खुश हुआ। उसने वह सारी मछली बाज़ार ले जाकर बेच दी। जिससे उसको अच्छे पैसे मिले। अगले दिन वह उसी उम्मीद से तालाब गया।

उसने अपना जाल तालाब में डाला और कुछ देर इंतज़ार किया। कुछ देर के बाद उसके जाल में कुछ सरसराहट सी होने लगी। जब उसने अपना जाल खींचा तो उसमें एक छोटी सी मछली थी। जब वह उस मछली को निकालने लगा तो वह मछली मछुआरे से बोली तुम मुझे छोड़ दो नहीं तो पानी के बिना मैं मर जाउंगी। उसकी इस बात को मछुआरे ने अनसुना कर दिया। मछली मछुआरे से बोली अगर तुम मुझको छोड़ दोगे तो मैं अपने सभी साथी मछलियों को कल तुम्हारे लिए बुलाकर लाऊंगी जिससे तुम बहुत सारी मछली पकड़ सकते हो।

मछुआरे को मछली की बात फ़ायदेमन्द लगी। उसने सोचा अगर मुझे एक छोटी सी मछली के बदले बहुत सारी मछली मिलती है तो यह अच्छा है। यह सोचकर उसने उस छोटी मछली को छोड़ दिया। मछली मछुआरे के जाल से छूट कर बहुत खुश हुई और बहुत दूर चली गयी। अगले दिन मछुआरा बहुत सारी मछली मिलने की उम्मीद से आया। लेकिन उस दिन भी उसको कोई मछली नहीं मिली। इस तरह मछली ने चालाकी से अपनी जान बचा ली।

*शिक्षा:-*
मित्रों, हमें मुसीबत में घबराना नहीं चाहिए बल्कि होशियारी से काम करना चाहिए..!!

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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24/04/2023

2️⃣4️⃣❗0️⃣4️⃣❗2️⃣0️⃣2️⃣3️⃣
*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*
*!! मूर्ख पड़ोसी !!*
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प्राचीन भारत में, एक बहुत ही दयालु व्यापारी रहता था। वह निर्धन लोगों को पैसे दान करता था और अपने दोस्तों की हमेशा मदद करता था। उस व्यापारी ने एक दिन अपना सारा पैसा और पैसे के साथ अपनी ख्याति भी खो दी। उसके दोस्त उसे अनदेखा करने लगे। इन सबसे तंग आकर एक रात उसने सोचा, “मैंने सब कुछ खो दिया, कोई मेरे साथ नहीं है। मुझे मर जाना चाहिए।”

यह सोचते सोचते उसे गहरी नींद आ गई। सोते हुए उसने एक सपना देखा। सपने में एक भिक्षु ने उससे कहा, “कल मैं तुम्हारे द्वार पर आऊंगा। तुम्हें मेरे सिर पर लाठी से चोट करनी होगी। मैं सोने की मूर्ति में बदल जाऊंगा।” लगभग सुबह हो चुकी थी। व्यापारी जागा और सपने के बारे में सोचने लगा।

फिर कुछ समय बाद, एक भिक्षु ने घर के दरवाजे पर दस्तक दी। व्यापारी ने भिक्षु को अंदर बुलाया। व्यापारी ने भिक्षु के सिर पर लाठी से वार किया और भिक्षु तुरंत ही सोने की मूर्ति में बदल गया। पास से ही एक पड़ोसी जा रहा था उसने यह सब देख लिया।

लालची पड़ोसी ने व्यापारी की नकल करने का फैसला लिया। अगले दिन पड़ोसी एक आश्रम में गया और कुछ भिक्षुओं से एक कठिन पुस्तक को समझाने के लिए अपने घर पर आने का आग्रह किया। भिक्षुओं ने उसका आग्रह स्वीकार कर लिया।

अगले दिन कई भिक्षु उस पड़ोसी के घर आए। उसने अपने घर का द्वार बंद कर दिया और भिक्षुओं के सिर पर लाठी से प्रहार करना शुरू कर दिया। जब एक भी भिक्षु सोने की मूर्ति में नहीं बदला तो पड़ोसी निराश हो गया।

पड़ोसी को भिक्षुओं पर हमला करने के अपराध में बंदी बना लिया गया। पड़ोसी ने अपने कृत्य के लिए व्यापारी को दोषी ठहराया। राजा ने व्यापारी को राजदरबार में बुलाया। व्यापारी ने राजा को अपने सपने के बारे में सब कुछ बता दिया। उसने कहा, “महाराजा, मैंने पड़ोसी से भिक्षुओं पर हमला करने के लिए नहीं कहा। पड़ोसी को यह मूर्खता करने से पहले इसके दुष्परिणामों के बारे में सोचना चाहिए था।”

राजा व्यापारी की बात से सहमत था अत‌‌: उसने व्यापारी को मुक्त कर दिया और सैनिकों से मूर्ख पड़ोसी को कारागार में डालने का आदेश दिया।

*शिक्षा:-*
मित्रों! बिना सोचे समझे कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए।

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️**सीख जो जीवन बदल दे*~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~एक राजा था जिसका नाम रामधन था उनके जीवन में सभी सु...
22/04/2023

*♨️ आज का प्रेरक प्रसंग ♨️*
*सीख जो जीवन बदल दे*
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एक राजा था जिसका नाम रामधन था उनके जीवन में सभी सुख थे | राज्य का काम काज भी ऐशो आराम से चल रहे था | राजा के नैतिक गुणों के कारण प्रजा भी बहुत प्रसन्न थी | और जिस राज्य में प्रजा खुश रहती हैं वहाँ की आर्थिक व्यवस्था भी दुरुस्त होती हैं इस प्रकार हर क्षेत्र में राज्य का प्रवाह अच्छा था |
इतने सुखों के बाद भी राजा दुखी था क्यूंकि उसकी कोई संतान नहीं थी यह गम राजा को अंदर ही अंदर सताता रहता था | प्रजा को भी इस बात का बहुत दुःख था | वर्षों के बाद राजा की यह मुराद पूरी हुई और उसे एक पुत्र की प्राप्ति हुई | पुरे नगर में कई दिनों तक जश्न मना | नागरिको को राज महल में दावत दी गई | राजा की इस ख़ुशी में प्रजा भी झूम रही थी |

समय बितता जा रहा था राज कुमार का नाम नंदनसिंह रखा गया | पूजा पाठ एवम इन्तजार के बाद राजा को सन्तान प्राप्त हुई थी इसलिये उसे बड़े लाड़ प्यार से रखा जाता था लेकिन अति किसी बात की अच्छी नहीं होती अधिक लाड़ ने नंदन सिंह को बहुत बिगाड़ दिया था | बचपन में तो नंदन की सभी बाते दिल को लुभाती थी पर बड़े होते होते यही बाते बत्तमीजी लगने लगती हैं | नंदन बहुत ज्यादा जिद्दी हो गया था उसके मन में अहंकार आ गया था वो चाहता था कि प्रजा सदैव उसकी जय जयकार करे उसकी प्रशंसा करें | उसकी बात ना सुनने पर वो कोलाहल मचा देता था | बैचारे सैनिको को तो वो पैर की जुती ही समझता था | आये दिन उसका प्रकोप प्रजा पर उतरने लगा था | वो खुद को भगवान के समान पूजता देखना चाहता था | आयु तो बहुत कम थी लेकिन अहम् कई गुना बढ़ चूका था |

नन्दन के इस व्यवहार से सभी बहुत दुखी थे | प्रजा आये दिन दरबार में नन्दन की शिकायत लेकर आती थी जिसके कारण राजा का सिर लज्जा से झुक जाता था | यह एक गंभीर विषय बन चूका था |

एक दिन राजा ने सभी खास दरबारियों एवम मंत्रियों की सभा बुलवाई और उनसे अपने दिल की बात कही कि वे राज कुमार के इस व्यवहार से अत्यंत दुखी हैं , राज कुमार इस राज्य का भविष्य हैं अगर उनका व्यवहार यही रहा तो राज्य की खुशहाली चंद दिनों में ही जाती रहेगी | दरबारी राजा को सांत्वना देते हैं और कहते हैं कि आप हिम्मत रखे वरना प्रजा निसहाय हो जायेगी | मंत्री ने सुझाव दिया कि राजकुमार को एक उचित मार्गदर्शन एवम सामान्य जीवन के अनुभव की जरुरत हैं | आप उन्हें गुरु राधागुप्त के आश्रम भेज दीजिये सुना हैं,वहाँ से जानवर भी इंसान बनकर निकलता हैं | यह बात राजा को पसंद आई और उसने नन्दन को गुरु जी के आश्रम भेजा |

अगले दिन राजा अपने पुत्र के साथ गुरु जी के आश्रम पहुँचे | राजा ने गुरु राधा गुप्त के साथ अकेले में बात की और नन्दन के विषय में सारी बाते कही | गुरु जी ने राजा को आश्वस्त किया कि वे जब अपने पुत्र से मिलेंगे तब उन्हें गर्व महसूस होगा | गुरु जी के ऐसे शब्द सुनकर राजा को शांति महसूस हुई और वे सहर्ष अपने पुत्र को आश्रम में छोड़ कर राज महल लौट गये|

अगले दिन सुबह गुरु के खास चेले द्वारा नंदन को भिक्षा मांग कर खाने को कहा गया जिसे सुनकर नंदन ने साफ़ इनकार कर दिया | चेले ने उसे कह दिया कि अगर पेट भरना हैं तो भिक्षा मांगनी होगी और भिक्षा का समय शाम तक ही हैं अन्यथा भूखा रहना पड़ेगा | नंदन ने अपनी अकड़ में चेले की बात नहीं मानी और शाम होते होते उसे भूख लगने लगी लेकिन उसे खाने को नहीं मिला | दुसरे दिन उसने भिक्षा मांगना शुरू किया | शुरुवात में उसके बोल के कारण उसे कोई भिक्षा नहीं देता था लेकिन गुरुकुल में सभी के साथ बैठने पर उसे आधा पेट भोजन मिल जाता था | धीरे-धीरे उसे मीठे बोल का महत्व समझ आने लगा और करीब एक महीने बाद नंदन को भर पेट भोजन मिला जिसके बाद उसके व्यवहार में बहुत से परिवर्तन आये |

इसी तरह गुरुकुल के सभी नियमों ने राजकुमार में बहुत से परिवर्तन किये जिसे राधा गुप्त जी भी समझ रहे थे एक दिन राधा गुप्त जी ने नंदन को अपने साथ सुबह सवेरे सैर पर चलने कहा |दोनों सैर पर निकल गये रास्ते भर बहुत बाते की | गुरु जी ने नंदन से कहा कि तुम बहुत बुद्धिमान हो और तुममे बहुत अधिक उर्जा हैं जिसका तुम्हे सही दिशा मे उपयोग करना आना चाहिये | दोनों चलते-चलते एक सुंदर बाग़ में पहुँच गये | जहाँ बहुत सुंदर-सुंदर फूल थे जिनसे बाग़ महक रहा था | गुरु जी ने नंदन को बाग़ से पूजा के लिये गुलाब के फुल तोड़ने कहा | नंदन झट से सुंदर-सुंदर गुलाब तोड़ लाया और अपने गुरु के सामने रख दिये | अब गुरु जी ने उसे नीम के पत्ते तोड़कर लाने कहा | नंदन वो भी ले आया | अब गुरु जी ने उसे एक गुलाब सूंघने दिया और कहा बताओ कैसा लगता हैं नंदन ने गुलाब सुंघा और गुलाब की बहुत तारीफ की | फिर गुरु जी उसे नीम के पत्ते चखकर उसके बारे में कहने को कहा | जैसे ही नंदन ने नीम के पत्ते खाये उसका मुंह कड़वा हो गया और उसने उसकी बहुत निंदा की | और जतर क़तर पीने का पानी ढूंढने लगा |

नन्दन की यह दशा देख गुरु जी मुस्कुरा रहे थे | पानी पिने के बाद नंदन को राहत मिली फिर उसने गुरु जी से हँसने का कारण पूछा | तब गुरु जी ने उससे कहा कि जब तुमने गुलाब का फुल सुंघा तो तुम्हे उसकी खुशबू बहुत अच्छी लगी और तुमने उसकी तारीफ की लेकिन जब तुमने नीम की पत्तियाँ खाई तो तुम्हे वो कड़वी लगी और तुमने उसे थूक दिया और उसकी निंदा भी की | गुरु जी से नन्दन को समझाया जिस प्रकार तुम्हे जो अच्छा लगता हैं तुम उसकी तारीफ करते हो उसी प्रकार प्रजा भी जिसमे गुण होते हैं उसकी प्रशंसा करती हैं अगर तुम उनके साथ दुर्व्यवहार करोगे और उनसे प्रशंसा की उम्मीद करोगे तो वे यह कभी दिल से नही कर पायेंगे | इस प्रकार जहाँ गुण होते हैं वहाँ प्रशंसा होती हैं |

नंदन को सभी बाते विस्तार से समझ आ जाती हैं और वो अपने महल लौट जाता हैं | नंदन में बहुत परिवर्तन आता हैं और वो बाद में एक सफल राजा बनता हैं |

*कहानी की शिक्षा*

गुरु की सीख ने नंदन का जीवन ही बदल दिया वो एक क्रूर राज कुमार से एक न्याय प्रिय दयालु राजा बन गया |इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती हैं कि हममे गुण होंगे तो लोग हमें हमेशा पसंद करेंगे लेकिन अगर हम अवगुणी हैं तो हमें प्रशंसा कभी नहीं मिल सकता हैं

*सदैव प्रसन्न रहिये - जो प्राप्त है, पर्याप्त है।*
*जिसका मन मस्त है - उसके पास समस्त है।।*
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