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Naam bataiye
17/11/2023

Naam bataiye

न्यूजीलैंड के आंखो में जो नामी उस सब का कारण सामी है      completed
16/11/2023

न्यूजीलैंड के आंखो में जो नामी उस सब का कारण सामी है completed

And finally
15/11/2023

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Sorry 😂😂
15/11/2023

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Koi to hai daya 🤣🤣😂😂
14/11/2023

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Paisa hi Paisa 😂🤣
14/11/2023

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Music 😂😂🤣🤣
13/11/2023

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 #पाटण_की_रानी_रुदाबाई जिसने सुल्तान बेघारा के सीने को फाड़ कर दिल निकाल लिया था, और कर्णावती शहर के बिच में टांग दिया थ...
06/09/2022

#पाटण_की_रानी_रुदाबाई जिसने सुल्तान बेघारा के सीने को फाड़ कर दिल निकाल लिया था, और कर्णावती शहर के बिच में टांग दिया था, और धड से सर अलग करके पाटन राज्य के बीचो बीच टांग दिया था।

गुजरात से कर्णावती के राजा थे, राणा वीर सिंह वाघेला ( #सोलंकी ),इस राज्य ने कई तुर्क हमले झेले थे, पर कामयाबी किसी को नहीं मिली, सुल्तान बेघारा ने सन् 1497 पाटण राज्य पर हमला किया राणा वीर सिंह वाघेला के पराक्रम के सामने सुल्तान बेघारा की 40000 से अधिक संख्या की फ़ौज २ घंटे से ज्यादा टिक नहीं पाई, सुल्तान बेघारा जान बचाकर भागा।

असल मे कहते है सुलतान बेघारा की नजर रानी रुदाबाई पे थी, रानी बहुत सुंदर थी, वो रानी को युद्ध मे जीतकर अपने हरम में रखना चाहता था। सुलतान ने कुछ वक्त बाद फिर हमला किया।

राज्य का एक साहूकार इस बार सुलतान बेघारा से जा मिला, और राज्य की सारी गुप्त सूचनाएं सुलतान को दे दी, इस बार युद्ध मे राणा वीर सिंह वाघेला को सुलतान ने छल से हरा दिया जिससे राणा वीर सिंह उस युद्ध मे वीरगति को प्राप्त हुए।

सुलतान बेघारा रानी रुदाबाई को अपनी वासना का शिकार बनाने हेतु राणा जी के महल की ओर 10000 से अधिक लश्कर लेकर पंहुचा, रानी रूदा बाई के पास शाह ने अपने दूत के जरिये निकाह प्रस्ताव रखा,

रानी रुदाबाई ने महल के ऊपर छावणी बनाई थी जिसमे 2500 धर्धारी वीरांगनाये थी, जो रानी रूदा बाई का इशारा पाते ही लश्कर पर हमला करने को तैयार थी, सुलतान बेघारा को महल द्वार के अन्दर आने का न्यौता दिया गया।

सुल्तान बेघारा वासना मे अंधा होकर वैसा ही किया जैसे ही वो दुर्ग के अंदर आया राणी ने समय न गंवाते हुए सुल्तान बेघारा के सीने में खंजर उतार दिया और उधर छावनी से तीरों की वर्षा होने लगी जिससे शाह का लश्कर बचकर वापस नहीं जा पाया।

सुलतान बेघारा का सीना फाड़ कर रानी रुदाबाई ने कलेजा निकाल कर कर्णावती शहर के बीचोबीच लटकवा दिया।

और..उसके सर को धड से अलग करके पाटण राज्य के बिच टंगवा दिया साथ ही यह चेतावनी भी दी की कोई भी आक्रांता भारत वर्ष पर या सनातनी महिला पर बुरी नज़र डालेगा तो उसका यही हाल होगा।

इस युद्ध के बाद रानी रुदाबाई ने राजपाठ सुरक्षित हाथों में सौंपकर कर जल समाधि ले ली, ताकि कोई भी तुर्क आक्रांता उन्हें अपवित्र न कर पाए।

ये देश नमन करता है रानी रुदाबाई को, गुजरात के लोग तो जानते होंगे इनके बारे में। हमारे पुर्वजो और विरांगानाये ऐसा कर्म कर सनातन संस्कृति का मान रखा है और वैदिक धर्म को बचाया है।
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Gadar2  ्रेम_कथाआमिर खान!....लगान नजदीकी सिनेमाघरों में साथ आएगी तो क्या गदर....कमाई नहीं करेगी?....करेगी और जरूर करेगी।...
22/08/2022

Gadar2
्रेम_कथा
आमिर खान!....लगान नजदीकी सिनेमाघरों में साथ आएगी तो क्या गदर....कमाई नहीं करेगी?....करेगी और जरूर करेगी। गदर को बॉक्स ऑफिस का कोई भी क्लेश कमाई करने से नहीं रोक सकता है।

गदर-एक प्रेम कथा! 15 जून 2001 यानी बीस साल पहले आज के दिन नज़दीकी सिनेमाघरों में पहुँची थी और भयँकर गदर काटा था।

दर्शक बावले हो चले थे। भारतीय सिनेमा इतिहास की पहली फ़िल्म रही होगी। जिसके आठ शो चलाए गए। फिर भी दर्शक बेकाबू थे। नज़दीकी सिनेमाघरों के मालिक परेशान, उन्हें समझ न आ रहा था। कि क्या करे? क्या न करें?

15 जून 2001 की सुबह भुवनेश्वर उड़ीसा के नज़दीकी सिनेमाघर मालिक ने निर्देशक अनिल शर्मा को फ़ोन करके पूछा कि सर! आपने क्या बना दिया है? इतना बवाल हो रहा है?

निर्देशक अनिल शर्मा हैरानी भरे स्वर में बोले कि 'क्यों कही दंगा हो गया है?

नहीं सर! लेकिन दर्शकों को काबू करना मुश्किल हो रहा है। जितना पब्लिक अंदर है उससे अधिक बाहर है। दर्शकों से सब्र नहीं हो रहा है। रिपीट वेल्यू अधिक है। पहला शो खत्म कर रहे है। दूसरे में अंदर जा रहे है। नए लोगों को मौका नहीं मिल पा रहा है।

इधर, फ़िल्म समीक्षक वर्ग उल्टियां पर उल्टियां कर रहा था। क्योंकि गदर ने उनका हाजमा बिगाड़ दिया था। अपच हो गई थी। गदर का कंटेंट उन्हें डाइजेस्ट नहीं हुआ। एक समीक्षक ने अखबार को हेड लाइन दी। 'गदर- गटर एक प्रेम कथा' अति राष्ट्रवाद का हैवी डोज।

समीक्षक वर्ग तारा सिंह के झटके को झेल न पाया था। बॉक्स ऑफिस पहले से बेहोश पड़ा था। लोग ट्रक में बैठकर तारा से मिलने आ रहे थे। उसके संवाद गुनगुना रहे थे। गीत बज रहे थे। दर्शकों के लिए उसत्व जैसा माहौल बन गया था।

गदर का सिग्नेचर एक्शन सीक्वेंस हैंडपंप उखाड़ने वाला ठीक से शूट न हुआ। सूरज की रोशनी ने हल्का खलल डाल दिया था। परन्तु इससे पहले हुई डायलॉगबाजी ने सब संभाल दिया था।

अमीषा पटेल की जगह काजोल रहती। जो निर्देशक की पहली पसंद थी। गदर के रोमांच में इजाफा हो जाता।

उस दिन बॉक्स ऑफिस पर लगान न लगाया होता। तो गदर सुनामी ला देती। ऐसा नहीं है कि लगान अच्छी फिल्म न थी। बहुत अच्छी फिल्म थी। लेकिन गदर का माहौल बिगाड़ने की क्या जरूरत थी। एक हफ्ता जल्दी/देरी से लगान वसूल कर लेते। क्योंकि लगान से 270 स्क्रीन काउंट कम हो गए थे। सोलो रिलीज में गदर भारतीय सिनेमा इतिहास की सबसे अधिक कमाई करने वाली फिल्म हो जाती।

अगर गदर आज के परिवेश में रिलीज होती तो बाहुबली के सिंहासन को टक्कर दे रही होती या कहे बॉक्स ऑफिस के पार्किंग लॉट में तारा सिंह का ट्रक खड़ा होता। मल्टीप्लेक्स और सिंगल स्क्रीन नजदीकी सिनेमाघर जाम हो चुके होते। ख़ैर।

15 जून 2001 के दिन केंद्र में कांग्रेस की सरकार होती तो यकीनन गदर सेंसर बोर्ड में पास न होती। उसे लटकाए रखते। या फिर कुछ कट के साथ, बॉलीवुड के संविधान को लागू करने का आदेश दिया जाता।
#गदर #बीससाल

श्रेय - ओम लवानिंया जी

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भगत_सिंह की बैरक की साफ-सफाई करने वाले सफाई कर्मी (वाल्मीकि) का नाम  #बोघा था. भगत सिंह उसको  #बेबे (मां) कहकर बुलाते थे...
16/08/2022

भगत_सिंह की बैरक की साफ-सफाई करने वाले सफाई कर्मी (वाल्मीकि) का नाम #बोघा था. भगत सिंह उसको #बेबे (मां) कहकर बुलाते थे.

जब कोई पूछता कि भगत सिंह ये बोघा तेरी बेबे कैसे हुआ?

तब भगत सिंह कहते,

'मेरा मल-मूत्र या तो मेरी बेबे ने उठाया, या इस भले पुरूष बोघे ने. बोघे में मैं अपनी बेबे (मां) देखता हूं.ये मेरी बेबे ही है."

यह कहकर भगत सिंह बोघे को अपनी बाहों में भर लेता.

भगत सिंह जी अक्सर बोघा से कहते,

"बेबे ! मैं तेरे हाथों की रोटी खाना चाहता हूँ,"

पर बोघा अपनी जाति को याद करके झिझक जाता और कहता,...

"भगत सिंह तू ऊँची जात का सरदार, और मैं एक अदना सा वाल्मीकि, भगतां तू रहने दे, ज़िद न कर."

सरदार भगत सिंह भी अपनी ज़िद के पक्के थे, फांसी से कुछ दिन पहले जिद करके उन्होंने बोघे को कहा....

"बेबे! अब तो हम चंद दिन के मेहमान हैं, अब तो इच्छा पूरी कर दे!"

बोघे की आँखों में आंसू बह चले. रोते-रोते उसने खुद अपने हाथों से उस वीर शहीद ए आजम के लिए रोटिया बनाई, और अपने हाथों से ही खिलाई.

भगत सिह के मुंह में रोटी का ग्रस डालते ही बोघे की रुलाई फूट पड़ी.

"ओए भगतां, ओए मेरे शेरा, धन्य है तेरी मां, जिसने तुझे जन्म दिया."

भगत सिंह ने बोघे को अपनी बाहों में भर लिया.

ऐसी सोच के मालिक थे वीर सरदार भगत सिंह जी...

परन्तु आजादी के 75साल बाद भी हम समाज में व्याप्त ऊँच-नीच के भेद-भाव की भावना को दूर करने के लिये वो न कर पाए जो 88 साल पहले भगत सिंह ने किया. ,, हम सभी को भी भगत सिंह जी की तरह जातपात के बंदन से मुक्त होकर समाज के लिए काम करना चाहिए

महान शहीदे आजम को इस देश का सलाम!
जय हिन्द,, ,,इंकलाब जिंदाबाद,, प्रणाम शहीद
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कैसे किसी के जन्मदिन का पता लगाएँ👇👇👇👇🌹👇जन्मदिन भूल जाना आपको शर्मिंदा कर सकता है, विशेषकर तब, जब वह किसी करीबी का हो। यद...
12/08/2022

कैसे किसी के जन्मदिन का पता लगाएँ
👇👇👇👇🌹👇
जन्मदिन भूल जाना आपको शर्मिंदा कर सकता है, विशेषकर तब, जब वह किसी करीबी का हो। यदि आप को पूछने में संकोच हो रहा हो, मगर आप बिना अधिक शोर किए, जानना चाहते ही हों, तो आशा की किरण है, वह भी तब जबकि आपको पता हो कि पूछना क्या है। आप बिना ज़ाहिर किए, जानकारी निकालना और यदि आसानी से नहीं निकले तो घुमा फिरा कर, आसानी से निकालना सीख सकते हैं..

विधि 1
विधि 1 का 3:
अप्रत्यक्ष रूप से पूछना
1👇
व्यक्ति से पूछिये कि उसका आधा जन्मदिन कौन सा है: गोपनीय तरकीब: आधे जन्मदिनों के संबंध में चर्चा करिए। अपने मित्र को बताइये कि आपका आधा जन्मदिन आने वाला है। और पूछिये कि उनका कब है, तब गणना करिए और सही तिथि तक पहुँच जाइए। आप बिना शोरगुल किए किसी से गुप्त जानकारी निकलवा सकते हैं। है न आसान।

2👇
व्यक्ति से उसके प्रिय जन्मदिन का विवरण पूछिये: लापरवाही से, व्यक्ति से उसके प्रिय जन्मदिन के बारे में पूछिये। उससे पूछिये कि वह कैसा था, और देखिये कि क्या आप बताए गए संदर्भों से, जैसे मौसम, आने वाली छुट्टियों या गर्मी या बर्फबारी के ज़िक्र से साल के किसी समय का अंदाज़ा लगा सकते हैं। इससे शायद आपकी याददाश्त काम करने लगे।

3👇
जन्मदिनों के बारे में आम तौर पर बातचीत करिए: सामान्य तौर पर अपने जन्मदिन की चर्चा करिए और देखिये कि क्या वह व्यक्ति अपने जन्मदिन के संबंध में कुछ कहता है। आप कह सकते हैं कि, “मुझे बहुत ही बुरा लगता है कि मैं गर्मियों में पैदा हुआ था। मेरे जन्मदिन की पार्टी में शामिल होने के लिए कभी भी कोई नहीं होता है!” या, “मुझे जन्मदिन का मार्च में होना बहुत अच्छा लगता है। उसके कारण, मुझे शीत के बुरे मौसम के बाद भविष्य के लिए कुछ आशाजनक देखने को रहता है।“
आप ऐसा भी कुछ कह सकते हैं जैसे, “मेरे जन्मदिन को बस अब एक महीना बचा है” या यह कि “मेरे आधे जन्मदिन को बस कुछ ही हफ्ते बचे हैं”। देखिये कि क्या वह व्यक्ति भी अपने जन्मदिन की चर्चा शुरू कर देता।
व्यक्ति से उसकी जन्मराशि पूछिये। ऐसा कुछ कहिए, “मेरी राशि मेष है, जिसका अर्थ है कि मैं तुनक मिजाज हूँ। फिर से बताइये तो कि आपकी राशि क्या है?

4👇
उनके जन्मरत्न का पता लगाये: कुछ लड़कियां अपने जन्मरत्न वाले आभूषण पहनना पसंद करती हैं,; जैसे कि ओपल, अक्तूबर का जन्मरत्न है। यदि लड़की ने कुछ रत्न-युक्त आभूषण पहने हुये हों तो आप कह सकते हैं कि,”क्या यह आपका जन्मरत्न है? क्या है यह?” यदि वह लड़की का जन्मरत्न है तो वह बता देगी कि वह क्या है, और तब आपको पता चल जाएगा कि उसका जन्म किस महीने में हुआ था। यदि नहीं होगा, तब उसके यह कहने से संकेत मिल जाएगा कि, “नहीं, यह नहीं है। मेरा जन्मरत्न तो पन्ना है।“

5👇
किसी उभय मित्र या संबंधी से पूछिये: यदि आपके और उस व्यक्ति के कोई उभय मित्र हों, तो उस मित्र से जन्मदिन पूछने के संबंध में विचार करिए। यदि उन्हें भी नहीं पता हो, तब अपने मित्र से कहिए कि वे पता लगाएँ। इस मामले में शरमाने की आवश्यकता नहीं है। केवल इतना कहिए कि आप उस व्यक्ति का जन्मदिन भूल गए हैं और आपको बुरा लग रहा है। जवाब पाने के लिए बहुत चापलूसी की आवश्यकता नहीं है।

विधि 2
विधि 2 का 3:
ऑनलाइन पता लगाइये
1👇
उस व्यक्ति की जानकारी फेसबुक से प्राप्त करिए: सबसे आसान तरीका तो यह है कि आप यह देखें कि उसने अपना जन्मदिन फेसबुक पर डाला है अथवा नहीं। यदि आपका खाता है, तो आप लॉग-इन कर सकते हैं और तब जिसे आप ढूंढ रहे हैं, उस व्यक्ति का नाम टाइप कर सकते हैं। जब आप उनकी टाइम लाइन पर पहुँच जाते हैं, तब उनकी प्रोफ़ाइल तस्वीर के नीचे दिये गए सूचना बॉक्स पर क्लिक करिए।
यदि वह लिस्ट किया हो, तो उसका जन्मदिन “बेसिक इन्फ़ो” शीर्षक के अंतर्गत होगा। मगर ध्यान रखिए कि इस कार्यवाही को करने के लिए आपको संभवतः उस व्यक्ति फ्रेंड की तरह से जोड़ना पड़ेगा।
अनेक व्यक्ति, वहाँ पर, वर्ष देने के स्थान पर, केवल जन्म की तिथि ही लिस्ट करते हैं। यदि आप वर्ष भी खोज रहे हैं, तब यह विधि, शायद उतनी कारगर, नहीं होगी।

2👇
फेसबुक में थोड़ी खोज बीन करिए: उस व्यक्ति की टाइम लाइन पर यह देखने के लिए ज़रा स्क्रोलिंग (scrolling) करिए, कि कहाँ पर “हैप्पी बर्थ डे!” का सागर देखने को मिलता है। यदि आपको कहीं यह उसकी टाइम लाइन पर मिल जाता है, तो संभावना यह है कि, वही उस व्यक्ति का वास्तविक जन्मदिन होगा।
उस व्यक्ति की फेसबुक तसवीरों को देखिये। देखिये कि क्या आप कहीं कोई ऐसी फ़ोटो खोज पाते हैं जहां वह अपना जन्मदिन मना रहा/रही हो। हालांकि इससे एकदम सही तिथि तो पता नहीं चलेगी, क्योंकि सभी तस्वीरें उसी दिन तो नहीं पोस्ट कर दी जाती हैं, जिस दिन उनको लिया जाता है, मगर एक करीबी अनुमान लगाया जा सकता है।

3👇
अन्य सोशल नेटवर्किंग साइट्स (social networking sites) का प्रयोग करिए: यदि फेसबुक से काम नहीं बनता है, तो शायद आप उन अन्य सोशल नेटवर्किंग साइट्स या ऐसी साइट्स, जैसे ब्लोगस या पोर्टफ़ोलिओ (blogs or portfolio), जहां पर लोग अपनी जानकारी रखते हों, को देखना चाहेंगे। अन्य सोशल नेटवर्किंग साइट्स में भी जन्मदिन दिया हो सकता है, और यदि जन्मदिन नहीं भी दिया हो तो आप अन्य पोस्ट, ट्वीट (tweet) या फ़ोटो देख कर अंदाज़ा लगा सकते हैं। इन्हें देखिये, शायद तकदीर साथ दे:
👇
ट्विट्टर (twitter)
इन्स्टाग्राम (Instagram)
उस व्यक्ति की वेब साइट या ब्लॉग (blog)
टंबलर (tumblr)

4👇
ऑनलाइन डाटाबेस का उपयोग करिए: अनेक डाटाबेस उपलब्ध हैं, जिनका उपयोग आप बिना किसी शुल्क के या बहुत कम शुल्क दे कर, कर सकते हैं। इनका उपयोग करने के लिए आपको उस व्यक्ति का पूरा नाम और लगभग आयु पता होनी चाहिए, जिसे आप खोज रहे हों। चूंकि आपको एक ही नाम, मगर अलग अलग पतों वाले अनेक लोग मिल सकते हैं, इसलिए आपको यदि यह पता हो कि वह व्यक्ति रहता कहाँ है, तो अच्छा होगा, विशेषकर तब, जबकि उस व्यक्ति का नाम बहुत आम नाम हो।
शुरुआत में आप Birth Database[१] या अन्य निःशुल्क डेटाबेस Anybirthday[२] या Zabasearch[३] पर खोज करके देखिये। यदि आपको प्रथम नाम और नाम का अंतिम भाग तथा व्यक्ति की अनुमानित आयु पता हो, तो आम तौर पर साइट आपको जन्म दिन बता ही देती है। मगर उनकी विश्वसनीयता का स्तर फर्क फर्क होता है।

विधि 3
विधि 3 का 3:
ताक झांक करना
1👇
मित्र के कैलंडर में झाँकिए: अधिकांश लोग अपना जन्मदिन अपने कैलंडर पर तो नहीं नोट करते हैं, मगर इसकी बहुत संभावना है कि उनके किसी मित्र ने उसको चिन्हित किया हो। कैलंडर पर ऐसे चिन्हों के लिए ध्यान रखिए जैसे “जॉन का जन्मदिन” या “जन्मदिन पार्टी!”

2👇
अपने फ़ोन पर पुराने “हॅप्पी बर्थडे” संदेश खोजिए: यदि आप व्यक्ति को उसके पिछले जन्मदिन पर भी जानते थे, तब बहुत संभावना यह है कि आपने उसे “हॅप्पी बर्थ डे” का टेक्स्ट संदेश भेजा होगा। उस व्यक्ति को भेजे गए अपने समस्त संदेशों को देखिये, और खोजिए कि क्या आप यह संदेश ढूंढ पाते हैं। यदि आप इसे पा जाते हैं, तब तो आप उसकी सही जन्म तिथि जान ही जाएँगे। वाह रे जासूस साहब, बढ़िया काम कर दिया आपने!
उनके फोन की भी जांच करिए। अगर आप उनको खफा किए बगैर उसे देखना चाहते है, तो आप कह सकते हैं कि, “सुनिए, क्या मैं आपके फोन का कैलंडर एक पल के लिए देख सकता हूँ? मुझे कुछ देखना है।“

3👇
अपने ख़र्चों की जांच पड़ताल करिए: यदि आपने पिछले वर्ष उस व्यक्ति को जन्मदिन पर कोई उपहार दिया था, या उसे रात्रि भोज के लिए ले गए थे, या उपहार के लिए क्रेडिट कार्ड से भुगतान किया था तो आप अपने पुराने बैंक स्टेटमेंटों को देख कर पता लगा सकते हैं कि आपने यह किस दिन किया था। हालांकि आपको यह तो याद करना पड़ेगा कि आपने दिया क्या था या आप कहाँ पर रात्रि भोज के लिए गए थे, क्योंकि इससे आप तारीख का पता लगा सकते हैं।
याद रखिए कि यह आवश्यक नहीं है कि उपहार आपने ठीक जन्मदिन की तिथि पर ही खरीदा हो या आप रात्रिभोज पर जन्मदिन वाले दिन ही गए हों। तब भी इससे आप उस जादुई तिथि के निकट तो पहुँच ही जाएँगे।

4👇
पृष्ठभूमि की जांच करवाइए: यदि आपको इतनी खोजबीन के बाद भी समुचित जानकारी नहीं मिल पाती है, तो आप शुल्क दे कर उस व्यक्ति की पृष्ठभूमि की जांच करवाने के विकल्प को भी चुन सकते हैं। जैसे कि punlicbackgroundchecks[४] , जहां पर आप थोड़ी सी जानकारी, थोड़ा सा शुल्क दे कर, प्राप्त कर सकते हैं। या कुछ विस्तृत चीज़ जैसे Goverenment-records.com[५] , जो कि कभी कभी आपको ऐसी साइट्स पर भेज देता है जहां एक महीने का शुल्क देने की आवश्यकता हो सकती है।
पैसे देने से पहले यह सुनिश्चित कर लीजिये कि वह सेवा वैध है। यह भी सोच लीजिये, कि क्या व्यक्तिगत रूप से उस व्यक्ति से पूछ लेना ही इससे अच्छा नहीं होगा।
सलाह👇👇
यदि आप जन्मदिन “सचमुच” भूले नहीं हैं मगर आपको केवल याद गलत है, तब लज्जित मत होइए। जब आप अचानक सामने आकार ‘हे, ......... हॅप्पी बर्थडे!’ कहेंगे तब वे समझ जाएँगे कि आप उनकी परवाह तो करते हैं, मगर हैं भुलक्कड़।
एक ऑनलाइन डायरी रखिए। सारे जन्मदिन उसमें नोट कर लीजिये और उन पर बार बार बजने वाले रिमाइन्डर लगा लीजिये। फिर आप उनका जन्मदिन कभी नहीं भूलेंगे।
यदि आपके पास टैब्लेट, आई फोन, या आई पॉड टच है तो उसमें जो कैल्कुलेटर है उसका प्रयोग करिए। यदि नहीं है, तब एक डिजिटल कैल्कुलेटर का उपयोग करिए।
चेतावनी👇👇👇👇
यदि आप जन्मदिन इसलिए भूल जाएँ क्योंकि आपने पता नहीं किया था, तब उपहार और बिलेटेड (belated) कार्ड के साथ क्षमा याचना करिए और भविष्य के उपयोग के लिए तारीख लिख लीजिये। अगले साल देर मत करिएगा!
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गोदी मीडिया हाय हायक्या किसी 'गोदी मीडिया' ने आपको कभी यह बताया है?1977 से पहलेलोक जनसम्पर्क विभाग द्वारा प्रोजेक्टर द्व...
11/08/2022

गोदी मीडिया हाय हाय

क्या किसी 'गोदी मीडिया' ने आपको कभी यह बताया है?

1977 से पहले

लोक जनसम्पर्क विभाग द्वारा प्रोजेक्टर द्वारा 4'×3' की सफेद कपड़े वाली स्क्रीन पर नगरों की गलियों में और गाँवों के चौराहों पर रात के 7-8 बजे उपकार और पूरब और पश्चिम फिल्में दिखायी जाती थी जिनके एक दो गीतों में तिरंगे झंडे के साथ गाँधी और नेहरू का नाम अवश्य होता था। तब चूँकी आजादी नयी-नयी मिली थी तो इन नामों का जादू सिर चढ़ कर बोला करता था।

हर सिनेमा हॉल में फिल्म आरंभ होने से पहले 15 मिनट की डाक्यूमेंट्री फिल्म दिखाना आवश्यक होता था जिनमें 14 मिनट और 50 सैकिंड के लिये नेहरू और इंदिरा गांधी के वीडियो उनके कारनामों सहित दिखाये जाते थे।

उन डाक्यूमेंट्री फिल्मों में लाल बहादुर शास्त्री को वायुयान से उतरते हुए केवल 5-10 सैकिंड के लिये ही दिखाया जाता था तो सिनेमा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठता था। उनके जय जवान जय किसान के नारे को दिखाना तो दूर की बात है 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में हुई विजय तो कभी दिखायी ही नहीं जाता था।

उन फिल्मों में भारतीय संविधान निर्माता भीम राव अंबेडकर को कभी एक बार भी नहीं दिखाया जाता था। सुभाष चन्द्र बोस, भगत सिंह, चंद्रशेखर इत्यादि को तो दिखाना ही क्यों था?

उन दिनों स्कूलों और कॉलिजों में जो प्रतियोगिता कार्यक्रम होते थे या यूथ फेस्टिवल होते थे तो उनमें उन्हीं भाषणों, नाटकों इत्यादि को प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार मिलते थे जो कि नेहरू और इंदिरा गांधी के कारनामों का बखान किया करते थे।

हर 14 नवंबर को स्कूली बच्चों से 'चाचा' नेहरू जिंदाबाद के नारे लगवा कर और उन्हें 2-2 लड्डू बाँट कर स्कूल की छुट्टी कर दी जाती थी।

हर 30 जनवरी को प्रातःकाल 10 बजे नगरपालिका का भोंपू बजा करता था। तब सरकारी कार्यालयों, स्कूलों इत्यादि में हर किसी को मौन खड़े हो कर 'उसे' श्रद्धांजलि देना आवश्यक होता था।

सरकारी कृषि विभाग के खेतों में कीट नाशक दवाओं का छिड़काव करने वाले छोटे हेलीकॉप्टर नुमा हवाई जहाजों से कांग्रेस उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार के पर्चें फैंकना सो सामान्य बात थी। उन चुनावों के दौरान चुनाव आयोग छुट्टी ले कर नानी के यहाँ चला जाता था।

तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की रैलियों में सभी सरकारी कर्मचारियों की उपस्थिति आवश्यक होती थी और उनके अधिकारी उन रैलियों में हाजिरी रजिस्टर अपने साथ ले जाते थे और उपस्थित कर्मचारियों की हाजिरी लगाते थे। यदि कोई कर्मचारी किसी रैली में उपस्थित नहीं होता था तो बाद में उस पर कारवाई की जाती थी।

■ मैंने सोचा कि मैं ये बातें नयी पीढ़ी को भी बता देता हूँ।
साभार

*उज्जैन स्वर्ग है क्यौ है  जानते हैं ?* उज्जैन मध्य प्रदेश.MP   एक मात्र स्थान जहाँ शक्तिपीठ भी है, ज्योतिर्लिंग भी है, ...
02/08/2022

*उज्जैन स्वर्ग है क्यौ है जानते हैं ?*
उज्जैन मध्य प्रदेश.MP

एक मात्र स्थान जहाँ शक्तिपीठ भी है, ज्योतिर्लिंग भी है, कुम्भ महापर्व का भी आयोजन किया जाता है ।

*यहाँ साढ़े तीन काल विराजमान है*

"महाँकाल,कालभैरव, गढ़कालिका और अर्धकाल भैरव।"

*यहाँ तीन गणेश विराजमान है।*
"चिंतामन,मंछामन, इच्छामन"

*यहाँ 84 महादेव है,यही सात सागर है।।*

"ये भगवान कृष्ण की शिक्षा स्थली है।।"

*ये मंगल ग्रह की उत्पत्ति का स्थान है।।*

"यही वो स्थान है जिसने महाकवी कालिदास दिए।"

*उज्जैन विश्व का एक मात्र स्थान है जहाँ अष्ट चरिंजवियो का मंदिर है,यह वह ८ देवता है जिन्हें अमरता का वरदान है (बाबा गुमानदेव हनुमान अष्ट चरिंजीवि मंदिर)*

"राजा विक्रमादित्य ने इस धरा का मान बढ़ाया।।"

*विश्व की एक मात्र उत्तर प्रवाह मान क्षिप्रा नदी!!*

"इसके शमशान को भी तीर्थ का स्थान प्राप्त है *चक्र तीर्थ* ।
यहां नो नारायण और सात सागर है
भारत को सोने की चिड़िया का दर्जा यहां के राजा विक्रमादित्य ने ही दिया था इनके राज्य में सोने के सिक्के चलते थे सम्राट राजा विक्रमादित्य के नाम से ही विक्रम संवत का आरंभ हुआ जो हर साल चैत्र माह के प्रति प्रदा के दिन मनाया जाता है उज्जैन से ही ग्रह नक्षत्र की गणना होती है कर्क रेखा उज्जैन से होकर गुजरती है

और तो और पूरी दुनिया का *केंद्र बिंदु* _(Central Point)_ है महाकाल जी का मंदिर
_*महाभारत की एक कथानुसार उज्जैन स्वर्ग है।।*

_यदि आप भी *अवंतिका* एवं *कालों के काल महाकाल* के प्रेमी व पुजारी हैं तो इस संदेश को सभी शिव भक्तों तक पहुंचाए।_
🙏🏻जय श्री महाकाल 🙏🏻

मशान देखे हो?यकीन मानो, दोस्त! अगर मसान नहीं देखी,तो कुछ नहीं देखा! एक बार इस फ़िल्म की चर्चा चली! मैंने सामने वाले से पू...
04/07/2022

मशान देखे हो?
यकीन मानो, दोस्त! अगर मसान नहीं देखी,तो कुछ नहीं देखा!

एक बार इस फ़िल्म की चर्चा चली! मैंने सामने वाले से पूछा, तुमने मसान देखी है? वो बोला..."हाँ"! मैने फिर पूछा, कैसी लगी? बोला कि अबे यार! कुछ खास तो नहीं है! बस वही एक लड़की और एक लड़का! हर बॉलीवुड फिल्म का तो यही हाल है! मैं बस मुस्कुरा कर रह गया! मैं समझ गया कि बन्दे ने फ़िल्म तो देख ली, लेकिन वो उस इमोशन तक नहीं जा पाया, जो इस फ़िल्म में दिखाने की कोशिश की गई है!

माना कि अधिकांश बॉलीवुड फिल्मों की तरह यह भी एक लव स्टोरी है! लेकिन मात्र एक लव स्टोरी कह देना इसके साथ न्याय नहीं होगा, कम से कम मेरे लिए तो एकदम नहीं!

इसमें भी एक लड़का है! एक लड़की है! लड़की मध्यमवर्गीय परिवार की, लेकिन लड़का बनारस के हरिश्चंद्र घाट पर शव जलाने वाली जाति का! बहुत बड़ा विरोधाभास! लेकिन प्रेम!प्रेम तो मात्र इस डायलॉग पर ही हो जाता है कि "पांच रुपए के भुजा के लिए कोई लड़की इतना उत्पात भी तो नहीं मचाती!"

अच्छा ,दुनिया चाहे जैसी की तैसी हो जाए, बनारस हमेशा अपने ही रंग में रहता है! यहां की प्रेम कहानियां उपन्यासों में लिखी और फिल्मों में दिखाई गईं प्रेम कहानियों की तरह अतिश्योक्तिपूर्ण नहीं होतीं!

अब देखिए ना! दीपक को भी अपने फ्रेंड की गर्लफ्रैंड की फ्रेंड, शालू गुप्ता से बस इसलिए प्रेम हो जाता है क्योंकि वह पाँच रुपए के भूजे के लिए उत्पात मचा रही थी!

और वही दीपक जब उसका नाम जानने की जद्दोजहद करता है और साइबर कैफे में जाकर फेसबुक आईडी बनाकर उसे खोजता और रिक्वेस्ट भेजने के बाद फिर रोज उसी साइबर कैफे में जाकर उसके एक्सेप्ट होने का इंतजार करता है, तब लगता है कि हर लौंडे में एक दीपक है!

वही दीपक, जो फ्रेंड रिक्वेस्ट न एक्सेप्ट होने के बाद भी, जोश जोश में सीधे इनबॉक्स में मैसेज कर देता है..."आप दुर्गापूजा में आएँगी न?"

उफ्फ़! कितना मासूम प्रेम है यह! और तो और शालू गुप्ता की फेसबुक प्रोफाइल के पेज का प्रिंटआउट निकालकर, शर्माता हुआ साइबर कैफे वाले की नजर बचाकर भागता दीपक हर लड़के को अपने सा लगता है!

और उस फ्रेंड रिक्वेस्ट का एक्सेप्ट होने पर दीपक का खुशी के मारे उछलना, कितना कमाल लगता है!कितने जुड़ जाते हैं हम शालू और दीपक के किरदारों से!

और सब छोडिए! जब दशहरे के मेले में केवल दीपक का गुब्बारा ऊपर उठता है, शालू उसके बगल से मुस्कुराते हुए लौटती है और बैकग्राउंड में गाना बजता है....

"तू किसी रेल सी गुजरती है......
मैं किसी पुल सा, थरथराता हूँ......."

तब तो लगता है बस कलेजा निकलकर बाहर आ गया!

दीपक ठहरा गरीब परिवार का इंजीनियर लड़का! और शालू साहित्य पढ़ने की शौकीन! जब शालू उसे सुनाती है....

"चरागों को आंखों में महफूज रखना,
बड़ी दूर तक सिर्फ रात ही रात होगी!
मुसाफिर हो तुम भी, मुसाफिर हैं हम भी,
किसी मोड़ पर फिर मुलाकात होगी!"

और जब दीपक कुछ देर तक चुप रहने के बाद बाल खुजलाते हुए बोलता है...

"उं, क्या था.....मतलब समझ में नहीं आया, मगर अच्छा था!"

तब आपको दीपक पर हंसी भी आती है और उसकी मासूमियत पर प्यार भी!

फिर शालू हँस देती है और कहती है....

"आप न! बड़े वाले बुद्धू हो! मगर अच्छे वाले बुद्धू हो!"

उस वक़्त भी लगता ही नहीं कि कोई फ़िल्म चल रही है!

फिर एक सीन में जब दीपक शालू से पहली बार डेट पर मिलता है तो रेस्टोरेंट में बैठे हुए ,बड़ी शालीनता से पूछता है.....

"अब तो हम दोस्त हो गए हैं न!"

और शालू हां में सर हिलाती है!

फिर इम्प्रेशन जमाने के लिए दीपक कहता है....

"अच्छा! कॉलेज में कोई लड़का परेशान करे तो हमे बताइएगा!"

"अच्छा! क्यों बताएंगे आपको?" शालू के तपाक से पूछने पर दीपक हड़बड़ा जाता है!

"नहीं....मतलब....व्वो....." इसके पहले कि दीपक कुछ कहे, शालू फिर बडी नजाकत से पूछती है.....

"और अगर आपने परेशान कर दिया तो?"

दीपक फिर हड़बड़ा जाता है लेकीन फिर उसी मासूमियत से कहता है.....

"तो भी आप हमी से कहिएगा!"

इससे भी प्यारा कोई सीन हो सकता है क्या भला!

***********
इस फ़िल्म में और भी ऐसे कई सीन और सम्वाद हैं जो आपको हंसाएंगे भी,रुलायेंगे भी, जिंदगी की सच्चाई भी दिखाएंगे! इसीलिए तो कहता हूँ कि यह एक फ़िल्म भर नहीं, एक इमोशन है!

ये तो रही दीपक और शालू के दृष्टिकोण से मसान की कहानी! लेकिन इस फ़िल्म में एक कहानी और भी है जो दीपक और शालू की कहानी के समानांतर चलती रहती है!

और यकीन मानिए, आप दिल खोलकर रोयेंगे, फ़िल्म का अंत होते होते! और दिल से बस वाह निकलेगी!

आप वाह करेंगे जब जब दीपक और शालू सामने आएंगे!
जब जब ऋचा चड्ढा और संजय मिश्रा जी सामने आएंगे!
और जब पंकज त्रिपाठी जी ऋचा चड्ढा से कहेंगे.....

"देवी जी! हम पिताजी के साथ रहते हैं! पिताजी अकेले रहते हैं!"

इस लाइन का मतलब दिल तक पहुँचे तो बताइएगा!

आप दिल खोलकर रोयेंगे जब दीपक को अपने दोस्तों के बीच रोते हुए और ये बोलते हुए देखेंगे......

"ई साला दुख कभी खत्म काहे नहीं होता बे!"

और फिर बजेगा गाना....

"मन कस्तूरी रे....जग दस्तूरी रे!
बात हुई ना.......पूरी रे!"

और यकीन मानिए, यह गाना भी केवल गाना नहीं, जीवन की सच्चाई है! एकांत में सुनिएगा कभी इसे! फ़िल्म के साथ साथ इसे देखेंगे तब इसकी तह तक बेहतर ढंग से पहुँच पाएंगे आप!

और भी तमाम बातें हैं मसान के बारे में! फिलहाल बस यही कहना है कि अब तक देखी गई मेरी सबसे बेहतरीन फिल्में जैसे,
"जब वी मेट" , "तेरे नाम" , "बद्रीनाथ की दुल्हनियां", "अंग्रेजी मीडियम", "मसान" आदि
में मसान मेरी टॉप फाइव की लिस्ट में जरूर रहेगी।

तो आप भी देखिए!महसूस कीजिए एक निश्छल प्रेम कहानी को और एक ऐसी कहानी को भी, जो जीवन की सच्चाई दिखाती है! एक मजबूर बेटी, एक निर्धन पिता, इस तरह अन्त में आते आते पहली वाली कहानी से जुड़ जाती है कि आपको लगता ही नहीं कि आप कोई फ़िल्म देख रहे हैं! और अंतिम वाली लाइन भी सबको जरूर याद रह जायेगी....

"कहते हैं जिंदगी में संगम दो बार जरूर आना चाहिए! एक बार अकेले.....और एक बार किसी के साथ!"

तो आपने मसान देखी हो तो अपने भी विचार बताइए! नहीं देखी हो तो जरूर देखिएगा और तब बताइएगा!
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पहला साल- 21,000×12= 2,52,000दूसरा साल- 23,100×12= 2,77,200तीसरा साल- 25,580×12= 3,06,960चौथा साल- 28,000×12= 3,36,000इस...
17/06/2022

पहला साल- 21,000×12= 2,52,000
दूसरा साल- 23,100×12= 2,77,200
तीसरा साल- 25,580×12= 3,06,960
चौथा साल- 28,000×12= 3,36,000
इस तरह से चार साल नौकरी के दौरान अग्निवीर को कुल 11,72,160 रुपये सैलरी मिलेगी. खास बात यह है कि नौकरी के दौरान अगर अग्निवीर चाहें तो पूरी सैलरी की सेविंग कर सकते हैं. क्योंकि सुविधाएं सेना की तरह मिलेंगी. जिसमें खाना, रहना और इलाज फ्री है. साथ ही वर्दी भी मिलती है. ऐसे में युवा अपने सपनों को साकार करने के लिए सैलरी के तौर पर भी मिली राशि को बचा सकते हैं. युवा के सामने 4 साल में 23 लाख 43 हजार 160 रुपये कमाने का सुनहरा मौका होगा.
दौरान अगर कोई अग्निवीर वीरगति को प्राप्त हो जाता है तो उसके परिवार को एक करोड़ की सहायता राशि मिलेगी. साथ ही अग्निवीर की बची हुई सेवा की सैलरी भी परिवार को मिलेगी. वहीं अगर कोई अग्निवीर सेवा के दौरान अपंग हो जाता है तो उसे 44 लाख की राशि दी जाएगी और बाकी बची सेवा की सैलरी भी मिलेगी. युवाओं को सबसे ज्यादा चिंता इस बात की है कि चार साल बाद वो क्या करेंगे? चार साल बाद वो फिर से बेरोजगार हो जाएंगे और उन्हें ना वेतन मिलेगा ना पेंशन.


जलेबी--------- आज से बारह सौ साल पहले बग़दाद में जन्मे कवि इब्न अल-रूमी अपनी एक कविता में सफ़ेद आटे के गाढ़े घोल को चांदी क...
16/05/2022

जलेबी
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आज से बारह सौ साल पहले बग़दाद में जन्मे कवि इब्न अल-रूमी अपनी एक कविता में सफ़ेद आटे के गाढ़े घोल को चांदी की उपमा देते हैं जिसे गोल-गोल पका कर शहद में डुबोया जाय तो वह सोने में तब्दील हो जाता है.

तमाम किस्से चलते हैं कि दुनिया की सबसे पहली जलेबी किसने बनाई थी. एक बार आन्दालूसिया के बादशाह ने रसोइयों को हुक्म दिया कि रमजान के दौरान इफ्तार के लिए कोई ख़ास मिठाई तैयार करें. ख़ासी मेहनत के बाद बनी जलेबियों से भरी तश्तरियां थामे रसोइए राजा के पास जा ही रहे थे कि उनमें से एक फिसल गया. वह घबरा कर चिल्लाया, “या रबी, ज़ेलेबिया, ज़ेलेबिया, ज़ेलेबिया ...” यानी “या ख़ुदा, मैं फिसल गया.”

एक और किस्सा आन्दालूसिया के एक ही नानबाई का है जिसने गलती से बन गयी जलेबी को देखते ही अपनी बीवी को डांटना शुरू किया, “हदी ज़ल्ला बीया” यानी “सब बर्बाद हो गया!”

तीसरा क़िस्सा ईराकी बादशाह हारूं अल रशीद के दरबार में काम करने वाले संगीतकार अब्दुर्रहमान नाफ़ा ज़िरियाब का है जिसे मुल्कबदर कर दिया गया था. बेहतर जीवन की तलाश में अब्दुर्रहमान बग़दाद से उत्तरी अफ्रीका होता हुआ आन्दालूसिया की राह लगा. रास्ते में ट्यूनीशिया पड़ा जहाँ उसकी मुलाक़ात कुछ उस्ताद संगीतकारों से हुई. उनसे संगीत सीखने की नीयत से वह कई महीने वहीं रह गया. ट्यूनीशिया में रहते हुए उसने आटे, शहद की चाशनी और गुलाबजल से बनी एक मिठाई तैयार की और उसे अपना नाम दिया – अल ज़िरियाबा जो अपभ्रंश होकर अरबी संसार में ज़लाबिया बना और भारत पहुंचकर जलेबी.

जलेबी का पहला आधिकारिक सन्दर्भ दसवीं शताब्दी के पाकशास्त्री मुहम्मद बिन हसन अल बगदादी के ग्रन्थ ‘किताब अल तबीह’ में ज़ुलूबिया के नाम से मिलता है. लेबनान से लेकर साइप्रस और ईरान से लेकर सीरिया तक इस नाम के अनेक रूप देखने को मिलते हैं.

जलेबी शब्द यूरोप में पहली दफ़ा 1886 में हॉब्सन-जॉब्सन डिक्शनरी में अपनी जगह बना सका जिसमें इसकी उत्पत्ति अरबी भाषा में बताई गई.

भारत में जलेबी का इतिहास करीब 500 साल पुराना है. एक जैन भिक्षु की लिखी पुस्तक में इसे कुंडलिका या जलाविका कहा गया है जिसे एक अमीर व्यापारी द्वारा दिए गए भोज के दौरान परोसा गया था. 1600 ईस्वी के संस्कृत ग्रन्थ ‘गुण्यगुणबोधिनी’ में जलेबी बनाने का तरीका विस्तार से बताया गया है. सत्रहवीं शताब्दी की ही एक और किताब ‘भोजनकुतूहलम’ में भी जलेबी निर्माण का सन्दर्भ आता है.

मेरी अपनी स्मृति में जिन नगरों ने सबसे अधिक स्थान घेरा हुआ है, उन सब की अपनी-अपनी जलेबियाँ थीं. रामनगर में एक जमाने में दलपत हलवाई की जलेबी का सिक्का चलता था. नैनीताल नगर के तल्लीताल में एक सज्जन लोटे की मदद से जलेबी बनाते थे – उनकी जलेबी लोटिया जलेबी के नाम से अब भी विख्यात है. अल्मोड़े में केशवदत्त जोशी उर्फ़ केशव हलवाई की अस्सी साल पुरानी दुकान में जलेबी के साथ मिलने वाला दही गिलास में परोसा जाता है. भुक्खन हलवाई की दुकान सौ से अधिक सालों से हल्द्वानी के भोजनप्रेमियों की आत्मा तर कर रही है.

जलेबी हमेशा आसपास बनी रही है. उसने हमारी सभ्यता को बचाए रखा है. उसके साथ सृजित किये जाने वाले नित नए संयोजनों ने सुनिश्चित किया है कि हमारी रचनात्मकता और कल्पनाशीलता सदैव तरोताजा बनी रहे. तड़के जागने से लेकर आधी रात बिस्तर में घुसने से पहले तक देश के चप्पे चप्पे में फैले धर्मात्मा जन दूध-जलेबी, भुजिया-जलेबी, दही-जलेबी, समोसा-जलेबी, पोहा-जलेबी, भात-जलेबी, रबड़ी-जलेबी, खीर-जलेबी और डबलरोटी-जलेबी जैसे नायाब नुस्खों की मदद से राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की सफलता को लेकर कटिबद्ध हैं. कभी गाढ़े दही में चार जलेबियां डुबोया भरा कटोरा लेकर बिस्तर में घुस जाइए. मैं अक्सर करता हूँ. चांदी को सोना बना सकने वाली जलेबी और कुछ करे न करे आपको आदमी से इंसान तो बना ही देगी.

जय जलेबी.

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#खानपान #जलेबी

संसार का आठवां आश्चर्य -इस आधुनिक संसार में सबसे बड़े अपराधियो में अमेरिका है। वह अपने आर्थिक हित के लिये युद्ध करता है। ...
06/05/2022

संसार का आठवां आश्चर्य -

इस आधुनिक संसार में सबसे बड़े अपराधियो में अमेरिका है। वह अपने आर्थिक हित के लिये युद्ध करता है। मीडिया , बुद्धिजीवी वर्गों से राष्ट्रों और नेताओं को बदनाम करता है।

आज एक ऐसे नेता कि बात होगी जिसे विश्व के अधिकतर लोग तानाशाह मानते है।
जिसे नोबेल पुरस्कार मिलना चाहिये था। लेकिन मिली मौत। दुर्भाग्य यह है कि लोग उसे अपराधी समझते है।

लीबिया , सहारा मरुस्थल से लगा अफ्रीकी देश है। वहाँ 80 % जमीन रेगिस्तान है। केवल 10 % भूमि ऐसी है कि लोग रह सकते है। देश के अधिकतर हिस्से ऐसे है, जँहा 20 वर्ष एक बूंद पानी नहीं गिरा।
जब दुनिया में तेल की खोज हुई तो हर देश में तेल कि खोज होने लगी। लीबिया में तेल की जगह जो मिला वह आश्चर्य में डालने वाला था।
रेगिस्तान में 500 मीटर नीचे , पानी की मोटी पर्त मिली, इसको मोटाई कही कही 700 मीटर मोटी थी।
विशेषज्ञयो की राय में यह इतना पानी है कि 2- 3 हजार वर्ष तक लीबिया को पानी दे सकता है।
जिस देश का 90 % हिस्सा रेगिस्तान हो , उसके लिये इसकी अहमियत समझी जा सकती है।

लेकिन इस पानी को निकालना , उसको अन्य भागों में भेजना भगीरथ तपस्या से कम नहीं था। 1960 में इस काम में जो धन की आवश्यकता थी वह 25 अरब डॉलर थी। आज की दृष्टि से देखे तो 100 अरब डॉलर से उपर होगी।
इस परियोजना पर विचार छोड़ दिया गया। लेकिन जब कर्नल ग़दाफी राष्ट्रपति बने तो उन्होंने इस कार्य को शुरू किया।
पश्चिमी देश ग़दाफी के विरोधी थे। IMF , वर्ल्ड बैंक किसी ने लीबिया को इस कार्य के लिये कर्ज नहीं दिया।
ग़दाफी ने अपने ही राष्ट्र से व्यवस्था करके इस असंभव परियोजना को आगे बढ़ाया।
दक्षिण कोरिया के इंजीनियर इसमें मदद किये। बाद में यूनिस्को ने भी इंजीनियरो को प्रशिक्षण दिया।
बड़ी बड़ी पाइपों का निर्माण हुआ। इतनी चौड़ी कि मेट्रो ट्रेन गुजर जाय।
28 अगस्त 1984 को कर्नल ग़दाफी ने इस परियोजना का उद्घाटन किया।
500 मीटर गहरे , 1300 कुओं का निर्माण हुआ। जो 4000 किलोमीटर लंबी पाइप लाइन से पानी ले जाती थी। इतने बांध बने की उतने से 12 मिस्र के पिरामिड बन जाय। इसमें बने कुएं अंतरिक्ष यात्री भी देख सकते है।
33 अरब डॉलर ग़दाफी ने खर्च किये। पूरे अफ्रीका को हरा भरा होने की उम्मीद जग गई।
2008 में गिनीज़ ऑफ बुक ने इस परियोजना को सबसे बड़ी परियोजना के रूप में सम्मिलित किया।
लीबिया के बड़े शहरों त्रिपोली , बेआन्जी में पानी पहुँचने से लोग खुशी से पागल हो गये। 13 हजार हेक्टेयर जमीन में सिंचाई होने लगी।

लेकिन 2011 में अमेरिका , NATO ग़दाफी के विरुद्ध दुष्प्रचार करके हमला कर दिया।
आश्चर्य की बात यह है उन्होंने ने सबसे अधिक बम इसी परियोजना पर गिराये। जिससे 25 % से अधिक ध्वस्त हो गई।
अफ्रीका के लिये वरदान को पश्चिमी देशों ने कैसे खंडहर में बदला देखा जा सकता है।
अब तड़फते अफ्रीका को बोतल का पानी बेचेंगें , कोई मदर टरेसा आकर धर्मपरिवर्तन करायेंगी। नोबेल पुरस्कार , संत की उपाधी लेंगी।
ग़दाफी बुरे थे, तो उनके देश के लोग समझते, तुम कौन लोग हो बम , मिसाइल गिराने वाले।

भारतीय विदेश मंत्री जयशंकर , यही सब तो कह रहे है। तुम्हारी नियत ठीक नहीं है। वह कहते है ब्रिटेन ने 100 वर्ष में भारत से 45 ट्रिलियन डॉलर लूटा। यह ब्रिटेन के ही विश्वविद्यालयो का शोध है। भारत 75 साल में 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था नहीं बन पाया।तो कितना लुटा होगा अनुमान लगाया जा सकता है।

विश्वभर के इंजीनियर के सहयोग बनी यह परियोजना ! ग़दाफी को महान नेता बनाती है।


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