21/11/2022
जिला मत्स्य कार्यालय, देवघर में आज विश्व मात्स्यिकी दिवस’ (World Fisheries Day) मनाया गया।
हर वर्ष 21 नवंबर को विश्व मत्स्य दिवस (World Fisheries Day- WFD) मनाया जाता है।
प्रमुख बिंदु
WFD को विश्व भर में सभी मछुआरों, मछली किसानों और संबंधित हितधारकों के साथ एकजुटता प्रदर्शित करने के लिये मनाया जाता है।
इसे वर्ष 1997 में शुरू किया गया था जब "वर्ल्ड फोरम ऑफ फिश हार्वेस्टर्स एंड फिशवर्कर्स " (World Forum of Fish Harvesters & Fish Workers) की मीटिंग नई दिल्ली में हुई, इसमें 18 देशों के प्रतिनिधियों के साथ "वर्ल्ड फिशरीज़ फोरम" (World Fisheries Forum) का गठन किया गया था तथा स्थायी मछली पकड़ने की प्रथाओं और नीतियों के वैश्विक जनादेश की वकालत करते हुए एक घोषणा पर हस्ताक्षर किये गए ।
इसका उद्देश्य समुद्री और अंतर्देशीय संसाधनों की स्थिरता के लिये अत्यधिक मछली पकड़ने की गतिविधियों, आवास विनाश और अन्य गंभीर खतरों पर ध्यान आकर्षित करना है।
मत्स्य पालन क्षेत्र:
मत्स्य पालन क्षेत्र के बारे में:
फिशरीज़ समुद्री, तटीय और अंतर्देशीय क्षेत्रों में जलीय जीवों का कब्ज़ा है।
जलीय कृषि के साथ-साथ समुद्री और अंतर्देशीय मत्स्य पालन, प्रसंस्करण, विपणन तथा वितरण दुनिया भर में लगभग 820 मिलियन लोगों को भोजन, पोषण व आय का स्रोत प्रदान करते हैं। कई लोगों के लिये यह उनकी पारंपरिक सांस्कृतिक पहचान का भी हिस्सा है।
वैश्विक मत्स्य संसाधनों की स्थिरता के लिये सबसे बड़े खतरों में से एक अवैध, असूचित और अनियमित रूप से मछली पकड़ना है।
भारतीय परिदृश्य:
वर्ष 2019-20 में 142 लाख टन के कुल मत्स्य उत्पादन के साथ इस क्षेत्र में भारत की वैश्विक हिस्सेदारी कुल 8% रही ।
इसी अवधि के दौरान भारत का मत्स्य निर्यात 46,662 करोड़ रुपए रहा, जो भारत के कृषि निर्यात का लगभग 18% है।
भारत का लक्ष्य वर्ष 2024-25 तक 22 मिलियन मीट्रिक टन मछली उत्पादन का लक्ष्य हासिल करना है।
मत्स्य पालन क्षेत्र ने पिछले कुछ वर्षों में तीन बड़े परिवर्तन देखे हैं:
अंतर्देशीय जलीय कृषि का विकास, विशेष रूप से मीठे पानी की जलीय कृषि।
मछली पकड़ने में मशीनीकरण का विकास।
खारे पानी के झींगा जलीय कृषि की सफल शुरुआत।
पिछले वर्ष की तुलना में वर्ष 2021-22 में मत्स्य पालन क्षेत्र के लिये बजट में 34% की वृद्धि हुई है।
भारत के लिये मत्स्य पालन का महत्त्व:
भारत विश्व में जलीय कृषि के माध्यम से मछली का दूसरा प्रमुख उत्पादक देश है।
भारत विश्व में मछली का चौथा सबसे बड़ा निर्यातक देश है क्योंकि यह वैश्विक मछली उत्पादन में 7.7% का योगदान देता है।
वर्तमान में यह क्षेत्र देश के भीतर 2.8 करोड़ से अधिक लोगों को आजीविका प्रदान करता है। फिर भी यह अप्रयुक्त क्षमता (Untapped Potential) वाला क्षेत्र है।
भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 का अनुमान है कि अब तक देश की अंतर्देशीय क्षमता का केवल 58% ही दोहन किया जा सका है।
बुनियादी ढाँचे से संबंधित चुनौतियों के बावजूद पिछले छह वर्षों में केंद्र सरकार के उपायों ने सुनिश्चित किया कि मत्स्य पालन क्षेत्र 10% से अधिक की वार्षिक वृद्धि दर दर्ज करना जारी रखे।
मत्स्य पालन क्षेत्र की चुनौतियाँ:
खाद्य और कृषि संगठन (FAO) के अनुसार, वैश्विक समुद्री मछली के लगभग 90% स्टॉक का या तो पूरी तरह से दोहन किया गया है या यह अधिक हो गया है या यह काफी मात्रा में समाप्त हो गया है जिसकी रिकवरी जैविक रूप से संभव नहीं हो सकती है।
जलीय निकायों में प्लास्टिक और अन्य अपशिष्ट जैसे हानिकारक पदार्थों का निर्वहन जो जलीय जीवन के लिये विनाशकारी परिणाम पैदा करते हैं।
जलवायु परिवर्तन
मत्स्य पालन में सुधार के लिये सरकार के प्रयास:
फिशिंग हार्बर:
पाँच प्रमुख फिशिंग हार्बर (कोच्चि, चेन्नई, विशाखापत्तनम, पारादीप, पेटुआघाट) का आर्थिक गतिविधियों के केंद्र के रूप में विकास।
समुद्री शैवाल पार्क:
तमिलनाडु में बहुउद्देशीय समुद्री शैवाल पार्क एक हब और स्पोक मॉडल पर विकसित गुणवत्ता वाले समुद्री शैवाल आधारित उत्पादों के उत्पादन का केंद्र होगा।
प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना:
यह 15 लाख मछुआरों, मत्स्य पालकों आदि को प्रत्यक्ष रोज़गार देने का प्रयास करती है जो अप्रत्यक्ष रोज़गार के अवसरों के रूप में इस संख्या का लगभग तीन गुना है।
इसका उद्देश्य वर्ष 2024 तक मछुआरों, मत्स्य पालकों और मत्स्य श्रमिकों की आय को दोगुना करना है।
'पाक बे' योजना:
‘डायवर्सिफिकेशन ऑफ ट्राउल फिशिंग बोट्स फ्रॉम पाक स्ट्रेट्स इनटू डीप सी फिशिंग बोट्स’ नामक यह योजना वर्ष 2017 में ‘केंद्र प्रायोजित योजना’ के तौर पर लॉन्च की गई थी। इसे ‘ब्लू रेवोल्यूशन स्कीम’ के हिस्से के रूप में लॉन्च किया गया था।