08/02/2024
निराश करेगा पाकिस्तान का आम चुनाव
पाकिस्तान में होने वाले आम चुनाव का नतीजा वहां की सेना, सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग ने पहले से तय कर रखा है। वहां नई सरकार के ज़रूरत महज इसलिये है कि दूसरे देशों से कर्ज मांगने के लिये एक लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई वैधानिक सरकार मौजूद हो।
यह बात न सिर्फ विश्व बिरादरी को उजागर हो चुकी है बल्कि पाकिस्तान का बड़ा वर्ग भी इस सचाई को जान चुका है। नई सरकार उसकी उम्मीदों पर खरी उतरने वाली नहीं होगी
पाकिस्तान में 18 से 22 फरवरी तक नई सरकार सक्रिय हो जाएगी। निस्संदेह आवाम की उम्मीदें उफान पर होनी चाहिये पर जनता का एक बड़े हिस्सा नाउम्मीद है।
यह वर्ग जानता है जम्हूरियत के इस जश्न में उसकी कोई खास जरूरत नहीं। सब कुछ तयशुदा है, नतीजे नियत हैं। और ये नतीजे उनके हालात में कोई बड़ा बदलाव नहीं लाएंगे। पाकिस्तान स्थित विदेशी दूतावास अपने देशों को जो ब्रीफिंग में बेशक यहां के अहवाल लिख रहे होंगे और उनको यहां के उच्चतम न्यायालय, सेना और चुनाव आयोग की करतूतें जाहिर हो चुकी होंगी, लोकतांत्रिक और निष्पक्ष चुनाव की हकीकत मालूम होगी।
उधर विदेशी मीडिया में इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ ने अलग अभियान छेड रखा है, पाकिस्तान के चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश काजी फ़ैज़ ईसा और पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर सहित पाकिस्तानी खुफिया एजेंसियों के मंसूबों की पोल खोलते लेख द इकॉनमिस्ट, बीबीसी उर्दू, अल जजीरा और तमाम ब्लॉग और अन्य माध्यमों पर आम हैं।
कोई भी संबंधित संस्था इस प्रचार के खिलाफ अपने बचाव में कुछ खास नहीं कह पा रही ऐसे में पाकिस्तानी चुनाव कवर करने आने वाले 500 से अधिक विदेशी पत्रकारों और पर्यवेक्षकों के बीच एक पूर्वनियत धारणा बलवती हो चुकी है कि पाकिस्तानी चुनाव सेना द्वारा पहले से नियत तथा धांधलीपूर्ण होने वाले हैं। यह भी तय है कि इस चुनाव समय से कराने में अप्रत्यक्ष रूप से अमेरिका का हाथ है।
पाकिस्तान चुनावों के नतीजों पर सेना के प्रभाव संबंधी लेख पाकिस्तानी मीडिया में भी आने से वहां के जनमानस यह धारणा बनना स्वाभाविक है कि आने वाली सरकार भी सेना के इशारों पर चलेगी जो उनकी बजाये सेना के हितों की पोषक होगी।
उसे तो बस इतनी सी उम्मीद है कि सब कुछ शांतिपूर्वक निबट जाये, सेना की पिट्ठू सही पर एक चुनी सरकार आए, आर्थिक बदहाली से निजात मिले, शांति और स्थिरता कायम हो। पर अफसोस पाकिस्तानी आवाम की यह उम्मीद भी रहने वाली है।
पाकिस्तानी चुनाव में तीन चेहरे प्रमुख हैं। इमरान खान, बिलावल भुट्टो और नवाज़ शरीफ इसके अलावा मौलाना फजलुर रहमान। इमरान खान चुनाव लड़ नहीं सकते, उनकी पार्टी तितर बितर है और सेना, सुप्रीम कोर्ट तथा पाकिस्तानी चुनाव आयोग ने मिल कर उसकी ऐसी गत बना रखी है कि पार्टी चुनावों में होने के बावजूद बिन चुनाव चिन्ह के निर्दल और अप्रासांगिक है, तय है पीटीआई की सरकार नहीं बननी।
बिलावल की पार्टी देश के कई हिस्सों में निष्प्रभावी है। उनके भी सरकार बनाने के आसार नहीं है। खैबर पख्तूनख्वा में प्रभावी मौलाना डीजल या फजल उर रहमान इतनी सीटें नही ला सकते कि सरकार बनाने के लिये काफी हों। जिस तरह नवाज को हर अपराध, सभी कदाचार, भ्रष्टाचार मामलों में क्लीन चिट दिया गया है, सेना और न्यायालय परोक्ष समर्थन उन्हें मिल रहा है उसे देखते हुये यह तय लगता है कि सेना नवाज़ शरीफ की सरकार बनवाएगी।
हालांकि वह पूर्ण बहुमत वाली सरकार बने ऐसा होते देखना नहीं चाहेगी, उसकी अपेक्षा एक विकलांग सरकार की होगी जो जमीयत उलेमा ए इस्लाम के फजल उर रहमान और बिलावल के बैसाखियों पर टिकी सदैव अपने अंतरविरोधों में फंसी रहे ताकि सेना उसे डगमगा कर हमेशा अपना हित साधती रहे। ऐसी सरकार से यह उम्मीद बेमानी है कि वह जनहित में कोई ठोस काम कर पायेगी, क्रांतिकारी, लीक से अलग हट कर फैसले लेगी।
महंगाई, राजनीतिक दिशाहीनता और अव्यवस्था से त्रस्त जनता की आने वाली सरकार से आर्थिक स्थिति सुधारने की उम्मीद बेमानी है। आर्थिक व्यवस्था की चूलें इमरान खान के समय से हिलनी शुरू हुई थीं, फिलहाल सहानुभूति और अमेरिकी चाहत के बावजूद वे सत्ता में नहीं आएंगे। न पाकिस्तान को इस आर्थिक स्थिति से उबार सकने की उनमें कूव्वत है। बिलावल भुट्टो की राजनीतिक परिपक्वता को सभी संदेह से देखते हैं उनसे भी कोई ऐसी उम्मीद नहीं पाल सकता। नई सरकार में शामिल होने के बावजूद आर्थिक मामले की डोर उनके हाथ में हो यह मुमकिन नहीं लगता।
धार्मिक नेता फजल उर रहमान का आर्थिक विषयों में चंदा छोड़ किसी और से नाता नहीं। नवाज शरीफ आज कल गरीबी, बेरोजगारी से निपटने और आर्थिक स्थिति में सुधार का सब्जबाग दिखाते घूम रहे हैं कि वे कैसे पाकिस्तान को आर्थिक तबाही से उबार लेंगे। लेकिन सफल उद्द्यमी, उद्योगपति नवाज शरीफ इसका कोई रोडमैप उजागर नहीं करते वैसे भी वे उद्योगपति हैं, आर्थिक विशेषज्ञ नहीं। वे आर्थिक घपलों के माहिर हैं पर आर्थिक रणनीति के नहीं।
भले वे खुद के लिए पैसा बनाना जानते हों पर देश और जनता के लिए नहीं। अभी जिस बेहिसाब महंगाई और बुरी आर्थिक हालात के चलते पाकिस्तान की जनता बागी हो रही है उसकी जड़ में नवाज़ की पार्टी को ही माना जा रहा है जो कार्यवाहक प्रधानमंत्री के आने से ठीक पहले शासन का हिस्सा थी। ऐसे में आर्थिक बेहतरी को बस विदेशी कर्ज का आसरा है। और यही पाकिस्तान के चुनाव की सचाई तथा एक मात्र उद्देश्य है।
पाकिस्तान में दिखावे के लिये एक लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार चाहिये जो अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे संस्थानों और सऊदी अरब, चीन, अमेरिका जैसे देशों से कर्ज लाने के लिये अधिकृत हो जिसे दूसरे देश वैधानिक तौर पर आधिकारिक स्तर पर कर्ज दे सकें। नई सरकार विदेशों से कर्ज लाने सफल होगी लेकिन मुख्यतया और मूलत: अपने और सेना के लिये।
जनता और प्रशासन की भलाई प्राथमिकता में सबसे नीचे होगी। ऐसे में एक अव्यवस्थागत परेशानियों से निकल कर व्यवस्थित मुश्किलों में फंसी जनता उग्र और हिंसक विद्रोह कर सकती है। इसे देखते हुए चुनाव के बाद पाकिस्तान में आर्थिक बेहतरी और अमन दूर की ही कौड़ी लगती है।
पडोसी होने के नाते पाकिस्तान की स्थिरता, अस्थिरता, उसकी राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक स्थिति का असर परोक्ष तौर पर हम पर पड़ता है। कश्मीर, पाक अधिकृत कश्मीर, आतंकवाद और रक्षा सुरक्षा तथा कई वैदेशिक मुद्दे मसले पाकिस्तान से जुड़े हैं।
पाकिस्तान के चुनावों का क्या नतीजा निकलेगा नई सरकार किसकी और कैसी होगी, भारत के प्रति उसका रुख क्या हो सकता है आकलन आवश्यक है।
फिलहाल पाकिस्तान अपने घरेलू मुद्दों मसलों, विकराल हो चुकी समस्याओं इस कदर फंसा हुआ है, कि वह भारत के खिलाफ किसी आतंकी या सैन्य साजिश को अंज़ाम दे इसकी गुंजाइश नहीं है।
पाकिस्तान की आवाम अब यह समझ चुकी है कि कश्मीर के नाम पर उसे बहुत बहकाया गया है, कश्मीर भारत भारत का ही रहेगा और उसके हुक्मरान गाल बजाने के सिवा कुछ न कर पायेंगे। इसलिये अब पाकिस्तान में कश्मीर मुद्दा बहुत प्रभावी नहीं है और न ही इस दौरान जम्मू कश्मीर घाटी या पाक अधिकृत कश्मीर में सियासी लाभ के लिए कोई खेल खेलना किसी को कोई बड़ा फायदा दिला सकता है।
पाकिस्तान के आम चुनावों के बाद अगर नवाज़ शरीफ आते हैं तो अफगानिस्तान, ईरान, चीन जैसे पडोसियों को वे साध कर रखेंगे ऐसा माना जा सकता है। इधर अमेरिका एक बार फिर पाकिस्तान में गहरी रुचि लेने लगा है, उनको चीन और अमेरिका के बीच संतुलन बिठाना होगा।
जहां तक भारत का सवाल है नवाज़ के आने से उम्मीद की जा सकती है कि व्यापारिक, व्यावसायिक रिश्तों में थोड़ी तेजी आये। लेकिन पाकिस्तान में चुनाव के बाद वहां स्थिरता आ जायेगी। एक चुनी लोकतांत्रिक सरकार वहां की आर्थिक स्थिति सुधार देगी, अमन कायम होगा, पाकिस्तान के मौजूदा हालात देख इस तरह की अपेक्षाएं आकाश कुसुम सरीखी हैं।