Baten vanaras ki

Baten vanaras ki Varanasiˈ,Banaras vanaras or kashi is a city on the banks of the river in . A major religious hub in . varanasi culture photos and videos in this page.
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Varanasi lies along, and is served by and Lal Varanasi,kashi,banaras,benaras,avimukta,anandavana,rudravasa,vanarash in utarpradesh india

Netural haven sports.
26/12/2023

Netural haven sports.

19/08/2023

I love varanasi ...
07/07/2022

I love varanasi ...

07/06/2022

हॉस्पिटल में मरते हुए पिता के आखिरी इच्छा से हुई शादी,
ऐसा तो सिर्फ फिल्मों में होता है ।

बनारस से सटे गाजीपुर जनपद के एक बुजुर्ग को जब एहसास हो गया की मेरी चन्द सांसें बची हैं तो उन्होने परिवार वालों से बनारस चलने की इच्छा जताई परिवार वालों ने उनको कबीरचौरा स्थित मण्डलीय जिला चिकित्सालय में भर्ती कराया , उनके साथ उनकी एक बेटी भी थी जिसके शादी की बात बनारस में चल रही थी बनारस में जब उनके होने वाले रिश्तेदारों को ये बात पता चली तो वे औपचारिकतवस बुजुर्ग को देखने हॉस्पिटल आये ।

होने वाले रिश्तेदारों को देखा तो उनके आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी अपुष्ट शब्दों एवं इशारों से उनके बेटी की शादी उनके सामने हो जाये ऐसी उन्होने आखिरी इच्छा जताई,लेकिन ऐसा कहीं होता है, अभी तो दहेज की रकम भी तय नहीं हुई थी, कितने बाराती कब आयेंगे, तिलक बरक्क्षा कुछ भी तय नही हुआ था । सबमें खुसुर पुसुर होने लगी ,किसी ने 100 नम्बर डायल करके पुलिस को भी बुला लिया,लेकिन यहां तो माजरा ही कुछ और था अस्पताल के एक बेड पर एक बुजुर्ग जिसका आधा शरीर लकवाग्रस्त हो चुका था अस्पष्ट लड़खड़ाती आवाज कुछ इशारे और कुछ आंसूओं से अपनी आखिरी तमन्ना के रूप में अपनी बेटी की शादी देखना चाहता था । मरणासन्न बुजुर्ग के पायताने चरणो को पकड़े बेटी चुपचाप रो रही थी और दूर सिरहाने होने वाला दामाद निर्लिप्त भाव से खड़ा था ,
लेकिन यही तो बनारस है ।

यहां तो आज पुलिस वाले भी दोस्त बन गये , डॉक्टरो ने दवाई के साथ भावनाओं की भी खुराक परोस दी ,अस्पताल के अन्य कर्मियों ने भी विवाह के सामाजिक रस्म निभाने की बजाय सिन्दूर की वास्तविक कीमत समझाया। अन्य मरीज के परिजन ने आशीर्वाद की महत्ता समझाई। खास कर एक आखिरी सांस गिनते पिता के आशिर्वाद की। पल भर में ही दृश्य बदल गया ।

दवा के साथ साथ ही चुटकी भर सिन्दूर आया , बुजुर्ग का बेड ही पवित्र हवन कुण्ड बन गया , अगल बगल के मरीज बाराती बन गये , डॉक्टर जयेश मिश्रा पण्डित बन गये , लोगों की तालियां बैंड बाजा , परिजनो की दुआ मन्त्रोच्चार बनी , और बूढ़े बाप के आसुं दूल्हा दुल्हन के लिये सबसे बड़ा आशीर्वाद ।

लेकिन अलबेली शादी में दूसरे मिनट ही ठहराव आ गया ,,,,
आशीर्वाद देने के लिये पिता के हाथ उठे तो उठे ही रह गये , उनके हाथों की आखिरी मुद्रा थी। खुशी से उनकी आंखें छलकी तो छलकती ह

Har har gange in Varanasi.
03/05/2022

Har har gange in Varanasi.

24/04/2022

Beauty of varanasi.

Varanasighats.
20/04/2022

Varanasighats.

27/03/2022
Dashashvamedh ghat.
25/01/2022

Dashashvamedh ghat.

30/12/2021
Godwaliya.
21/12/2021

Godwaliya.

14/08/2021

याद है #पंचईयाँ का वह त्योहार।
जब गांव से सुबह सुबह महिलावों की दो टोली निकलती थी,एक घर की बुजुर्ग माताएं होती थी,और दूसरी बहनें।। मतावों के हाँथ में #दूध घुघुनी और लावे से भरा लोटा,अगरबत्ती,माचिस, सिंदूर तथा बहनों के हांथ में एक थाल,थाल में #गुड़िया और दूसरे हाँथ में घुघुनी।
गांव के बाहर कुछ दूर निकलने के बाद टोलियां दो भागों में बट जाती थी,माताएं #डीह बाबा तर जाती थी और बहनें #तालाब की तरफ।
आईये चलते है तालाब की तरफ।।।वहां गांव के हर घर से एक भाई पहले से खड़ा होता था,हांथो में 3 चार फीट का #बइर का डंडा रंगबिरंगे तरीके का होता था,जो भाईयों के द्वारा एक दिन पहले बड़ी शिद्दत से तैयार किया जाता था।।
अब यहाँ से युवा टोली के पंचईयाँ का कार्यक्रम शुरू।।लड़कियो के द्वारा #गुड़ियों को पानी मे फेंका जाता था और लड़के, लड़के डंडों से पिट पिट कर गुड़ियों को पानी मे डूबो देते थे,घंटो तक चलने वाला यह कार्यक्रम सम्प्पन होने के बाद जब भाई लोग तालाब से बाहर निकलते थे,तब् एक एक मुट्ठी #घुघुरी मिल जाती थी उसी मेहनताने के साथ लोग पहुचते थे अखाड़े पर।।
इधर लावा चढ़ा कर घर लौटी माताएं और गुड़िया सेरवा कर घर आई बहनें ।एक घंटे में 10 यों किस्म के #पकवान बना कर तैयार।
। इग्यारह बजे तक अखाड़े से आये भाई लोग सहित पूरा परिवार खा पी कर रेड्डी।।
अब।।।
बागों में झूला।।एक साथ झूले पर कई महिलाएं ।दो लड़किया #पेंग लगाती थी तो चार औरते बीच मे बैठ कर कजरी गाती थी।अंधेरा हो जाता था झूलते गाते।

हेभगवान पूरा दिन,, हल्ला बोल #कजरी।।
मजा कुछ और था।।

#कसम से भारत बदल गया।।।

Manikarnika.
17/07/2021

Manikarnika.

Reviews about my page please!
09/07/2021

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B.H.U
24/06/2021

B.H.U

ज़िंदगी की दौड़ समाप्त होने के साथ हम सभी को अलविदा कह गए "फ्लाइंग सिख" ......मिल्खा सिंह जी को विनम्र श्रद्धांजलि,ईश्वर...
19/06/2021

ज़िंदगी की दौड़ समाप्त होने के साथ हम सभी को अलविदा कह गए "फ्लाइंग सिख" ......

मिल्खा सिंह जी को विनम्र श्रद्धांजलि,ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें।

ॐ शांति।।

    गौरी_केदारेश्वर_मन्दिर दो भागों में बंटा है ये अदभुत शिवलिंगभोलेनाथ खुद आते हैं यहां खिचड़ी खानेमन्दिरों के शहर बनारस...
07/06/2021

गौरी_केदारेश्वर_मन्दिर

दो भागों में बंटा है ये अदभुत शिवलिंग
भोलेनाथ खुद आते हैं यहां खिचड़ी खाने

मन्दिरों के शहर बनारस में कई रहस्य छुपे हुए हैं। इन्हीं में से एक है काशी के केदार खण्ड का गौरी केदारेश्वर मंदिर। वैसे तो आपने कई शिवलिंग देखे होने लेकिन काशी के इस शिवलिंग की एक नहीं बल्कि कई महिमा है। यह शिवलिंग आमतौर पर दिखने वाले बाकी शिवलिंग की तरह ना होकर दो भागों में बंटा हुआ है। एक भाग में भगवान शिव माता पार्वती के साथ वास करते ही वही दूसरे भाग में भगवान नारायण अपनी अर्धनगिनी माता लक्ष्मी के साथ। यही नहीं इस मंदिर की पूजन विधि भी बाकी मंदिरों की तुलना में अलग है। यहां बिना सिला हुआ वस्त्र पहनकर ही ब्राह्मण चार पहर की आरती करते हैं वही इस स्वंभू शिवलिंग पर बेलपत्र, दूध गंगाजल के साथ ही भोग में खिचड़ी जरूर लगाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव स्वयं यहां भोग ग्रहण करने आते हैं।

ऋषि मान्धाता की तपस्या से खुश होकर काशी आये गौरी केदारेश्वर
मंदिर के महंत श्री पंडित शिव प्रसाद पांडेय ने बताया कि जिस स्थान पर गौरी केदारेश्वर का मंदिर है जब ये काशी भगवान विष्णु का होता था तब यह मान्धाता ऋषि कुटिया बना कर रहते थे। कहा जाता है कि मान्धाता जाति से बंगाली थे जिसके कारण वो चावल का सामान ही बनाते थे। ऋषि मान्धाता भगवान शिव के परम भक्त थे और वो रोज तपस्या करने के बाद इसी स्थान पर खिचड़ी बना कर पत्तल पर निकाल देते और फिर उस खिचड़ी के दो भाग कर दिया करते थे। शिवपुराण में वर्णन है कि ऋषि मान्धाता अपने हाथों से बनाई खिचड़ी के एक हिस्से को लेकर रोजाना पहले गौरी केदारेश्वर को खिलाने हिमालय जाते और फिर वापस आने पर आधी खिचड़ी के दो भाग कर एक हिस्सा अतिथि को देते और एक स्वयं खाते।
कई वर्षो तक ऐसे ही सेवा देने के बाद एक दिन ऋषि मान्धाता की अवस्था ज्यादा होने पर तबीयत खराब हो गयी। बहुत प्रयास के बाद भी जब वो खिचड़ी बनाने के बाद हिमालय जाने में असमर्थ महसूस करने लगे तो दुखी होकर कहा कि आज मैं अपने प्रभु और माता को खिचड़ी नही खिला पाया मेरी सेवा व्यस्त हो गयी और बेहोश हो गए। तब हिमालय से गौरी केदारेश्वर इस स्थान पर प्रकट हुए और खुद ही अपने हिस्से की खिचड़ी लेकर भोग लगाया।आधे हिस्से में से वहां मौजद मान्धाता ऋषि के अतिथियों को खुद शिव और पार्वती ने अपने हाथों से खिलाया। जिसके बाद ऋषि मान्धाता को जगा कर उन्हें खिचड़ी खिलाई और आशिर्वाद किया कि आज के बाद मेरा एक स्वरूप काशी में वास करेगा।

यह चिता नहीं, यह काया थीजो  भस्म  हुई बस माया  थीमोह मिथ्या का उचाट यही हैमणिकर्णिका का घाट यही हैयहीं चिता में इच्छा सो...
05/06/2021

यह चिता नहीं, यह काया थी
जो भस्म हुई बस माया थी
मोह मिथ्या का उचाट यही है
मणिकर्णिका का घाट यही है

यहीं चिता में इच्छा सोती है
यहीं 'दीप्त' आत्मा होती है
जब सौभाग्य तुझे बुलाएगा
देखना तू भी काशी आएगा

पापों का बोझ निगलती है
यह शुद्ध अनामय करती है
अग्नि का स्पर्श जैसे पारस
गंगा और ये शहर 'बनारस'

इच्छा केवल एक करूँ मैं
मरना जब हो यहीं मरूँ मैं
गंगा किनारे पड़ी हो जो
उसी 'राख़' का ढेर बनूँ मैं

भ्रमजाल सभी हट जाएंगे
इस नगरी में मिट जाएंगे
फिर बयार मोक्ष की आएगी
अस्तित्व अमर कर जाएगी

सनातन मैंकहलाऊंगा
अविरल मैं रहजाऊँगा
'वेग' मेरा अटल रहेगा
मैं गंगा में बहजाऊँगा...

तट पर सजे हैं पुंज भस्म के
जैसे शिव का ललाट यही है
मणिकर्णिका का घाट यही है
मणिकर्णिका का घाट यही है

#

मैं मूरत होऊँ जिस मंदिर की,तुम उसका कोई कपाट बनो,मैं होऊँ शाम बनारस की,तुम गंगा आरती घाट बनो।मैं कोई किनारा हो जाऊँ,तुम ...
03/06/2021

मैं मूरत होऊँ जिस मंदिर की,
तुम उसका कोई कपाट बनो,
मैं होऊँ शाम बनारस की,
तुम गंगा आरती घाट बनो।

मैं कोई किनारा हो जाऊँ,
तुम बनकर नदी कोई बहना,

जब डूबूँ साँझ को सूरज सा,
तुम मेरी लाली में रहना,

मैं कोई गोताखोर बनूँ,
तुम सिक्का एक का हो जाना,

जब बहूँ किसी पुरवाई सा,
आग़ोश में मेरी सो जाना,

मैं कोई रेशम का कीड़ा,
तुम मुझसे निकला पाट बनो,
मैं होऊँ शाम बनारस की,
तुम गंगा आरती घाट बनो।

मैं गंगा नदी कुलीन पवित्र,
तुम होना अविचल विश्वनाथ,

मैं हो जाऊँ जब गौतम बुद्ध,
तुम बनना ज्ञान का सारनाथ,

मैं मणिकर्णिका घाट बनूँ,
तुम बनना राख किसी तन की,

सारे कर्मों का एक चरण,
हो जाना निर्मय जीवन की,

मैं नृत्य करूँ नटराज सा जब,
तुम शिव तांडव का पाठ बनो,
मैं होऊँ शाम बनारस की,
तुम गंगा आरती घाट बनो।

मैं जब चटकारा पान बनूँ,
तुम कोई मुसाफिर हो जाना,

मैं रस भरी रबड़ी बनूँगा जब,
तुम घुलकर मुझमे खो जाना,

मैं उत्तर से 'वरुणा' बन आऊँ,
दक्षिण से तुम बन आना 'असि',

मिलकर के दोनों पवित्र परम,
बनाएंगे शहर ये वाराणसी,

जहाँ ज्ञान, धर्म, इतिहास खड़ा,
तुम शिव नगरी वो विराट बनो,
मैं होऊँ शाम बनारस की,
तुम गंगा आरती घाट बनो।

03/06/2021

मै काशी हूँ"
मैं धर्म शुशोभीत काशी हूँ,

मैं सनातन इतिहास की साक्षी, नगर ऐतिहासिक काशी हूँ
पतित पावन गंगा जहाँ पर, मानव हित की अभीलाषी हूँ

मैं हूँ भारत की अमूल्य धरोहर, शिव चरणो की दासी हूँ।
मैं हूँ रक्षक "मनु-कुल" की, पवित्र नगरी काशी हूँ।।

विपदा जब आयी है जग मे, मैं ही एकमात्र अविनाशी हूँ।
अलौकिक धरा इस आर्यावर्त की, मै श्रेष्ठ नगरी काशी हूँ।।

बिस्मिल्लाह हैं यही के, लाल बहादुर की जननी हूँ।
हरिश्चन्द्र की सत्य सुशोभित, मैं जयशंकर की श्रद्धा हूँ।।

महात्मा बुद्ध की बोली हूँ, प्रेमचंद की मैं कथनी हूँ ।
लक्ष्मी बाई की माता हूँ मैं,महात्मा मालवीय की करनी हूँ।।

बिरजू के कथक की छान , तो रवि शंकर की सितार हूँ।
मैं ही इस हिन्दू प्राचीर की महारुद्र रूपी तलवार हूँ ।।

मैं "विश्वनाथ" मे अमृत वाली,
तो "मणिकर्णिका" मे लहर विनाशी हूँ ।
मैं हूँ मुक्तक स्वतंत्र शिला सी,
मैं ही साहित्यिक नगरी काशी हूँ।।

जहाँ हर गलियां हैं नमन करती ,
आराध्य शिव शंकर कैलाश निवासी हैं।
मधुर, सरल सत्य संस्कृति,
मैं अत्यंत मृदु भाषी हूँ।।

शिव की महिमा के गुणगान करती
"विश्वकर्मा" रचित मैं काशी हूँ।।

27/05/2021

Yogi geet

Camera life.    ..        hotography    gindia     radesh     odi       #mumbai
15/12/2020

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