11/09/2024
मदरसा की शिक्षा लेता हुआ पप्पू
[साभार.....कल AKTK चैनल पर #जातीय_संघर्ष के दो उदाहरण बताए गए जो भारत मे चल ही जातीय जनगणना वाली राजनीति का भविष्य हो सकता है।
पहला उदाहरण था लेबनान का।
1943 में जब लेबनान आजाद हुआ तो वहां मुस्लिम और ईसाई जनसँख्या के हिसाब से #जितनी_आबादी_उतनी_हिस्सेदारी की गई।
इसके तहत मुस्लिमो की 54 सीट और ईसाइयों की 99 सीट संसद के लिए आरक्षित की गई।
अब इसमें भी मुस्लिमो में शिया ज्यादा थे तो तय हुआ कि शिया संसद का स्पीकर बनेगा और ईसाइयों में मेरोनिट ईसाइ ज्यादा थे तो वो राष्ट्रपति होगा।
लेकिन मुसलमानों ने चालाकी से Pilesस्टीन से मुसलमान बुलाने शुरू कर दिए। इसके बाद लेबनान में #गृहयुद्ध हो गया।
फिर 1989 में जब युद्ध खत्म हुआ तो वापिस जितनी आबादी उतनी हिस्सेदारी के तहत अब लेबनान की संसद में हिस्सेदारी 64-64 सीट की हो गयी।
लेकिन अब लेबनान में न मेरोनिट ईसाई बचे थे और न शिया।
और आगे चलकर ये हाल हुआ कि अब बाकी ईसाई भी वहां अल्पसंख्यक हो गए और आज लेबनान #मुस्लिम_राष्ट्र है।
दूसरा उदाहरण इससे ज्यादा डरावना है।
1918 में रवांडा नामक देश मे बेल्जियम कब्जा कर देता है।
वहां तीन प्रमुख जनजाति रहा करती थी।
हुतुस(Hutus), तुत्सी(Tutsi) और तवा(Twa)
हुतुस सबसे ज्यादा थे, तुत्सी थोड़े कम और तवा सबसे कम।
अब जितनी आबादी उतनी हिस्सेदारी के नाम पर इन्हें लड़ाना शुरू किया गया।
होना तो ये चाहिए था कि सब मिलकर बेल्जियम से लड़ते लेकिन अब तुत्सी और रवा कहते थे कि हुतुस हमारा हिस्सा खा रहे हैं।
खैर, 1962 में रवांडा आजाद हो गया लेकिन ये जातीय संघर्ष चलता रहा।
1973 आ गया और अब हुतुस जाति का जुबिनल हेबिरिमाना राष्ट्रपति बनता है।
1994 में उसकी प्लेन क्रैश में मौत हो जाती है।
इसका आरोप हुतुस, तुत्सी पर लगाते हैं कि इन्होंने हमारे राष्ट्रपति को मरवाया है और इतिहास के सबसे बड़े गृहयुद्ध में से एक शुरू हो जाता है।
इसमें 8 लाख से ज्यादा लोगों की हत्या कर दी जाती है। साथ ही डेढ़ से ढाई लाख महिलाओं का रेप भी कर दिया जाता है।
अब भारत मे इसे समझो।
यहां हिन्दुओ की जातियां गिनने की बात हो रही है।
लेकिन मुस्लिम की जातीय गणना नही _____________________________होगी।
अब भारत मे एक भी जाति हिन्दू की ऐसी नही है जो 20% मुसलमानों से ज्यादा हो।
कल को इस तरह मुस्लिम सबसे ज्यादा हो जाएगा और ये बात उठ जाएगी कि जितनी जिसकी आबादी, उस हिसाब से उसकी हिस्सेदारी होगी।
20% मुसलमान खुद के लिए प्रधानमंत्री से लेकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की कुर्सी मांगने लगेगा।
अतिश्योक्ति नही है बल्कि 1947 से पहले इसी तरह मुस्लिमो को उनकी आबादी के हिसाब से सीटें दी जा चुकी हैं और बाद में इन्होंने ही फिर देश के टुकड़े कर दिए थे।
हिन्दुओ में भी ब्राह्मण, राजपूत करते हुए... ओबीसी, दलित, वनवासी शुरू हो जाएगा और सब अपने अपने हिसाब से अपने लिए मांगने लग जाएंगे।
और जाहिर है कि इसका विरोध होगा जिसके फलस्वरूप वही होगा जो लेबनान या रवांडा में हुआ था।
मुसलमान चैन से मौज लेगा कि हिन्दुओ को आपस में मरने दो।
कांग्रेस जैसे चुप्पी साध लेंगे क्योंकि उनके 20% वोट तो सही सलामत हैं और उनके पीछे खड़े हैं।
फिर जाहिर है कि कुछ जातियां खत्म भी हो जाएंगी।
मान लो कि दलित, ओबीसी मिलकर संवर्ण को मुसलमान के साथ मिलकर खत्म कर देते हैं जय मीम जय भीम करकर।
अब बचे नॉन संवर्ण और मुसलमान।
फिर कल को ये कह दिया जाएगा कि ओबीसी भी तुम्हारा दुश्मन है, असली जय मीम जय भीम तो दलित और मुसलमान है।
और इस तरह ओबीसी भी खत्म हो गया।
अंत मे बचेगा दलित और मुसलमान।
तो याद कर लो कि यही मीम भीम की एकता के चक्कर मे एक जोगिनाथ मंडल पाकिस्तान बनाने का साथ दिया था। शुरू में वहां का कानून मंत्री भी बना लेकिन फिर उसे और उसके चक्कर मे पड़े दलितों का क्या हाल हुआ ये आप खुद सर्च कर सकते हैं और अंत मे बचा तो सिर्फ मुसलमान।
मुझे पता है कि अभी लोगों को लगेगा कि ये सब कोरी कल्पना है, ऐसा नही होगा।
लेकिन यही समझाने को मैंने दूसरे देशों की टाइमलाइन भी लिखी थी।
वहां भी लेबनान में 1943 से चीजे बिगड़नी शुरू हुई थी या उससे पहले से... और 1989 आते आते ईसाइयों के हाथों से देश छीन गया।
रवांडा में भी 1918 में बेल्जियम ने शुरू किया और 1962 आते आते अब वो खुद से शुरू हो गए और 1994 आते आते रवांडा में सबसे बड़ा नरसंहार हो गया।
भारत मे भी 1925 में कोई नही कहता था कि भारत के टुकड़े हो जाएंगे लेकिन 1947 आते आते हो गए।
जिस कश्मीर से 1990 में हिन्दू भगाए गए वहां 1985 तक कोई ऐसा नही सोच रहा था।
आज जिस असम में 40% मुसलमान हो गया, कुछ दशक पहले तक नही था। बंगाल से लेकर केरल के हालात जो आज हैं वो कल तक नही थे।
1947 के बाद शेष पंजाब को नही पता था कि 1980 आते आते क्या होने वाला है। उसके बाद जो पंजाब शांत हुआ उसे लग रहा था कि सब पुरानी बातें हो गयी लेकिन आज फिर पंजाब में वही सब शुरू करने की कोशिश है।
राज्यो को छोड़ो.... एक शहर, कस्बे या गांव जहां से #पलायन शुरू होता है, उन्हें कुछ साल पहले तक लगता है कि ऐसा कुछ नही होगा लेकिन एक समय आता है कि अपने घर के आगे लिखना पड़ता है कि ये घर बिकाऊ है।
इसलिए ऐसा कुछ नही है जो हो नही सकता।
हमें तो इतना समझना है कि क्या हम इसे होने देंगे या नहीं?
और ये किसी को चुप कराने से नही रुकेगा बल्कि ये इससे तय होगा कि क्या हमारे अंदर एकता है या एक दूसरे से चिढ़।
क्योंकि दुश्मन उस चिढ़ का ही फायदा उठाता है।
यदि आपके अंदर ये पहले से है कि दूसरा आपके हिस्से का खा रहा है तो आप एक को चुप कराएंगे भी तो दस और खड़े हो जाएंगे आपको इस बात के लिए भड़काने।
डंडे के जोर पर सबको चुप करा भी देंगे तो भी अंदर जो नफरत है वो खत्म नही होगी और डंडे का जोर भी ज्यादा दिन नही टिकता है।
बंग्लादेश का उदाहरण ही लीजिए कि जिहादियों के अंदर तो जहर हमेशा से था। हसीना डंडे के जोर पर दबाने की कोशिश भी करती थी लेकिन उससे उनके अंदर का जहर खत्म नही हुआ।
उल्टा जब उनके हाथ मौका लगा तो वो अपना सारा जहर निकालने लग गए।
इसलिए इतना सब लिखने का मतलब सिर्फ इतना नही है कि कांग्रेस क्या करना चाहती है या मदरनंदन क्या बोल रहा है।
क्योंकि सच्चाई ये भी है कि उससे जो ये सब बुलवा रहा है वो हमारी फाल्ट लाइन्स जानता है।
इसलिए वो तो सिर्फ मदरनंदन का इस्तेमाल कर रहे हैं कि तू इसका फायदा उठा और हमारे लिए काम कर।
इसलिए इससे बचना है तो हमें ही सोचना होगा।
और जैसा योगीजी ने कहा है कि हम बंटेंगे तो कटेंगे, क्या हम इसे समझेंगे?
क्योंकि योगी जी ने ये भी समझाया कि एक रहेंगे तो सुरक्षित रहेंगे, तो क्या हम ऐसा करेंगे?
वरना फिर शिकायत ही करते रहे जाएंगे कि दूसरा आग लगाने की कोशिश कर रहा है जबकि दूसरी तरफ़ कोई दूसरा तो ये भी समझा रहा है कि अपनी एकता नही तोड़नी है।
तो सवाल है कि हम किसकी सुनेंगे??
नोट:विचार अवश्य करिएगा और अपने अनुभव साझा करिएगा।
अवधेश प्रताप सिंह कानपुर उत्तर प्रदेश,9451221253
[11/09, 1:43 pm] Pinku Chacha: बहुत भयानक आहट सुनाई दे रही है देश में ?
और हमारे विपक्षी दलों के नेताओं ने यह बात कहनी भी शुरू कर दी है कि हमने केरोसिन छिड़क दिया है सिर्फ आग लगानी बाकी है
क्या आप ने सुनी ?
👉पूरे देश में सभी रेलवे लाइनों के दोनों ओर बांग्लादेशी जिहादी घुसपैठियों और रोहिंग्याओं ने झुग्गियां बना ली हैं।
👉हर स्टेशन पर सौ मीटर के अंदर मस्जिद-मजार ज़रूर मिल जाएगी।एक ही झटके में और एक ही कॉल पर पूरे भारत का रेलवे नेटवर्क जाम कर देने की स्थिति में वे आ चुके हैं।
👉सभी स्टेशनों, प्लेटफॉर्म्स, रेलवे लाइनों के आस पास बनी अवैध मजारों में संदिग्ध किस्म के लोग दिन रात मंडराते रहते हैं और रेकी करते रहते हैं...??
👉उनकी गठरियों में क्या सामान बिना टिकट देश भर में फैलाया जा रहा है, कोई चेक नहीं करता।
👉मज़ारों-मस्जिदों में किस तरह के गोदाम और काम चल रहे हैं, इससे प्रशासन आँखें बंद किये है।
👉हमारे शहरों में जितने हाईवे निकलते हैं। किसी पर भी बढ़ जाइये, तो हर तीन चार किलोमीटर पर एक नई मजार बनी मिल जाएगी बिल्कुल रोड पर।
👉अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि कुछ तो षड़यंत्र चल रहा है। यदि पूरे देश में हालात यही हैं तो कितनी खतरनाक स्थिति है आप स्वयं समझ सकते हैं....
👉देश की राजधानी दिल्ली को जिहादियों ने लगभग चारों तरफ से घेर लिया है बल्कि दिल्ली के भीतर नई दिल्ली, जहां हमारी केन्द्र सरकार रहती है उसे भी पूरी तरह से घेर लिया है। हजरत निजामुद्दीन स्टेशन से देवबंद तक तो जमात का गढ़ ही हो गया है..
👉जब भी कभी हालात बिगड़े तो राजधानी पूरी तरह से जाम मिलेगी, रेलवे लाइनें जाम मिलेंगी, हाईवेज जाम मिलेंगे। आपको भागने का मौका कहीं नहीं मिलेगा।
👉ट्रेने उड़ा दी जाएं सड़कों पर चक्का जाम कर दिया जाए तो न आप तक मदद आ पाएगी, न आप कहीं भाग पाएंगे...
👉सोचिए तब इस अशांतिप्रिय समुदाय के देश के भीतर फैले देशद्रोही क्या हालत करेंगे आप सोच भी नहीं सकते....??
👉कैसे एक आवाज पर सड़कें रोकी जानी है, पुलिस चौकियों, सुरक्षा बलों पर हमले होने हैं, इसकी रिहर्सल शाहीन बाग और दिल्ली दंगों में की जा चुकी है।
👉कौन कहाँ से कमांड करेगा, हर शहर में कौन कहाँ से लीड लेगा, कौन कहाँ फॉलो करेगा, कैसे मैसेज पास होंगे, कैसे गजवाए हिंद अमलीजामा पहनेगा....तैयारी पूरी दिखती है।
👉इंतजार है तो शायद सिर्फ पाकिस्तानी और बाँग्लादेशी आर्मी के ग्रीन सिग्नल और तालिबानी लड़ाकों का।
👉साथ ही निजामे मुस्तफा में सारे तकनीकी काम सुचारू रूप से चलाने में दक्षता प्राप्त करने का इसीलिये बच्चों को शिक्षा दिलाने में अचानक इनकी रुचि बढ़ गयी है।
👉साथ ही हिजाब-नकाब-हलाल दुकानों, और शहर के उन हिस्सों में भी, जहाँ इनकी आबादी नहीं है!
👉सहारनपुर, मुजफ्फरपुर, मेरठ, अलीगढ़, गाजियाबाद, मेवात, अलवर, गुड़गांव चारों तरफ से दिल्ली तालिबानी मानसिकता से घिर चुकी है....??
👉याद रहे अशांतिप्रिय मजहब का प्रत्येक व्यक्ति ना केवल घातक हथियारों से लैस है बल्कि मार काट में भी पूर्णतः निपुण है, और हैवानियत को शेरदिली और दयाभाव को बुज़दिली और कमजोरी तथा छल कपट करना, घात लगाकर हमला करना इनकी परवरिश है।
👉सोचिए विभिन्न राजनीतिक दलों के जाति के नाम पर बांटने वाले नेता, क्या हमें, हमारे परिवारों को इन देशद्रोहियों के हाथों से बचा पाएंगे?
👉हमें छोड़िये, क्या खुद को बचा पाएंगे?
👉और अपने सेकुलर खोटे सिक्कों वामपंथियों, बीचवालों, मोमबत्ती गैंग, पुरस्कार वापसी गैंग, कांग्रेसियों, आपियों, पापियों, अखिलेश, ममता, ओवैसी और योगी-मोदी के विरोध में खतना करने को तैयार लिबरल इत्यादि का खतरा अलग से है।
👉बहुत ही खतरनाक कोढ़ इस देश में फैल चुका है और देश को गलाने लगा है... इसका इलाज समाज को जातियों में तोड़ने वाले नेताओं के पास तो बिलकुल भी नहीं है, जबकि यह पिछली सरकारों के अंधेपन और अदूरदर्शिता के कारण हुआ है, एक दिन में नहीं.. ये नासूर सत्तर सालों में बना है।
लेकिन उससे भी पहले, अपनी सुरक्षा आपकी अपनी भी जिम्मेदारी है,कायर न बनिये,तैयार रहिये।
👉 इनके एक एक परिवार में आठ आठ दस दस बच्चे हैं अगर एक दो मर भी गए तो इन्हें फर्क नहीं पड़ता लेकिन आपके घर में 1या दो बच्चे हैं अगर निकल गए तो सारा जोड़ा हुआ क्या करोगे। घर, दुकान, फैक्ट्री, जमा पूंजी सब इनकी हो जायेगी।
एक बार पढ़ें और सोचे जरूर।
👉इसलिए इसे देश, धर्म-संस्कृति, समाज, घर-परिवार की सुरक्षा हेतु संगठित होना आरंभ करें। एवं लेख को अधिक से अधिक संख्या में आगे बढ़ाये।