05/11/2024
धनतेरस उत्सव वास्तव में सम्राट अशोक द्वारा शुरू किया हुआ बौद्ध उत्सव है|
बौद्ध धर्म में दान पारमिता को अत्यंत महत्व है| इतिहास में सबसे बड़ा दान अनाथपिंडक ने दिया था| महादानी अनाथपिंडक ने 18 हजार करोड़ सुवर्ण मुद्राएं खर्च कर तथागत बुद्ध के लिए जेतवन महाविहार बनवाया था| अनाथपिंडक के इस महादान का शिल्प भरहुत स्तुप पर देखने को मिलता है|
सम्राट अशोक भी अनाथपिंडक की तरह महादान करना चाहते थे| इसलिए उन्होंने भिक्खुसंघ को निमंत्रित किया और 96 हजार करोड़ सुवर्ण मुद्राएं भिक्खुसंघ को दान दी| भिक्खुसंघ ने वह दान सम्मानपूर्वक अपनाकर फिर से सम्राट को वापिस दिया| अशोक ने उस संपत्ति से 84000 महास्तुप बनवाए, जगह जगह रास्ते, उद्यान और अस्पताल जैसे लोक कल्याणकारी निर्माण बनवाएं थे|
सम्राट अशोक हर पांचवे साल अपनी संपुर्ण संपत्ति भिक्खुसंघ को दान देते थे, जिससे अशोक के इस दान उत्सव को "पंचवर्षिका उत्सव" कहा जाने लगा था| अपने तिसरे शिलालेख में सम्राट अशोक ने इस उत्सव को "पंचसु पंचसु वसेसु" उत्सव कहा है, मतलब हर पांच पांच साल को मनाया जानेवाला उत्सव| (Origins and development of the Buddhist Pancavarsika, Max Deeg, p. 67)
सम्राट अशोक इस उत्सव के पहले दिन करोड़ों सुवर्ण मुद्राएं दान करते थे, जिससे सुवर्ण मुद्राओं की बड़ी राशी जमा हो जाती थी| इस धन की राशी से आगे चलकर 'धन ती राशी', 'धनतेरशी', 'धनतेरस' जैसे शब्द तैयार हुए| इतना ही नहीं, बल्कि हर पांच साल मनाया जा रहा उत्सव समय के साथ हर साल पांच दिन मनाया जाने लगा और वह उत्सव अशोक के बाद "पंच वर्सानि, पंच दिवसानि" बना, मतलब पंचवर्षिका उत्सव सम्राट अशोक के बाद पंच दिवसीय उत्सव बना| (उपरोक्त, p. 75)
अभी वर्तमान में पांच दिनों का दिपावली उत्सव हर साल मनाया जाता है, जो सम्राट अशोक के पंचवर्षिका उत्सव का बदला हुआ स्वरूप है| उत्सव के पहले दिन सम्राट अशोक अपने साम्राज्य की संपुर्ण धन राशी जमा कर "धन की आरास" बना देते थे और भिक्खुसंघ को दान देते थे| आजकल धन की आरास से दिपावली का पहला दिन धनतेरस कहा जाता है|
इस तरह, लंबे अंतराल तक बौद्ध परंपरा आज भी कुछ हद तक जीवित बचीं है| सम्राट अशोक का दिपोत्सव ही आधुनिक दिपावली उत्सव है और दिपोत्सव का पहला उत्सव धन की राशी ही आधुनिक धनतेरस है|