Mewat History "मेव"

Mewat History "मेव" On this page we give information about history, Indian history tells about old history and new histor

साइंसदानों ने खोज किया है कि चीटियां अनाज और बीजों को जमा करने के बाद !उनको जमीन में ले जाने और उन्हें जमीन के अंदर अपने...
02/12/2023

साइंसदानों ने खोज किया है कि चीटियां अनाज और बीजों को जमा करने के बाद !
उनको जमीन में ले जाने और उन्हें जमीन के अंदर अपने बिलों में रखने से पहले दो हिस्सों में तोड़ देती हैं

क्योंकि अगर आनाज वा बीज दो हिस्सों में तक़सीम ना किया जाए तो वह जमीन के अंदर ही फूट जाता है, और एक पौधा बन जाता है

उन्होंने हैरत से कहा कि चीटियां धनिया के बीज को चार हिस्सों में तक़सीम करती हैं क्योंकि एक धनिया का बीज ही है जो दो हिस्सों में तक़सीम होने के बाद भी फूट सकता है

इसलिए चीटियां इस को चार हिस्सों में काटकर तक़सीम करती हैं फिर अपने बिलों के अंदर महफूज करके रखती हैं

सोचने की बात इन सब को यह किसने सिखाया यकीनन मेरे और आपके बल्कि सारी कायनात के वहदहु-ला-शरीक़-लहू रब ने.

Mewat History

पटियाला रियासत का 1911 से 13 तक दीवान रहे नवाब मुहम्मद ज़ुल्फ़िकार अली ख़ान की तस्वीर - जो मलेरकोट्रा के नवाब बहादुर ख़ा...
01/12/2023

पटियाला रियासत का 1911 से 13 तक दीवान रहे नवाब मुहम्मद ज़ुल्फ़िकार अली ख़ान की तस्वीर - जो मलेरकोट्रा के नवाब बहादुर ख़ान के वारिस थे।

25/11/2023

Haji Kasam Ki Baat | हाजी कासम की बात मेवाती | Purani Baat | Mewati Baat NewHaji Kasam Ki Baat Part 1 | हाजी कासम की बात मेवाती | Purani Baat Your Enquiries:...

25/11/2023

Doodh Se S*x Timing Kaise Badhaye | Best Benefits of Milk | 23 | New |Tricks यूट्यूब वीडियो विवरण:नमस्ते दोस्तों! आपका स्वागत है हमारे नए यूट्यूब वीडियो "दू...

यह पेंटिंग 1897 में रिचर्ड कैप्टन वुडविल द्वारा बनाई गई थी जो उस समय London illustrated में प्रकाशित हुई थी इस चित्र में...
25/11/2023

यह पेंटिंग 1897 में रिचर्ड कैप्टन वुडविल द्वारा बनाई गई थी जो उस समय London illustrated में प्रकाशित हुई थी इस चित्र में सुल्तान टीपू को अंग्रेज फौज पर हमला करते हुए बताया है इस जंग में सुल्तान टीपू अपने पिता हैदर अली की फौज एक टुकड़ी को कमांड कर रहे थे।

1797 में टीपू सुल्तान ने ज़मान शाह दुर्रानी जो की अहमद शाह अब्दाली (दुर्रानी) के पोते थे उनके पास अपना एक क़ासिद भेजा था और भारत से अंग्रेजो को बाहर निकालने के लिए गठबंधन का प्रस्ताव रखा था। जॉर्ज डेवरेक्स ओसवेल लिखते हैं।

अफगान सम्राट ज़मान शाह दुर्रानी का नाम लंबे समय से पूरे भारत में खौफ का पर्याय था, और यहां तक कि अंग्रेजों को भी अफगान सेनाओं के अपने दक्षिणी प्रांतों में घुसपैठ का डर था अंग्रेज़ जानते थे कि दक्षिण में उनका महान दुश्मन, टीपू सुल्तान, ज़मान शाह के साथ लगातार गंठबंधन बनाने की कोशिश में है की ज़मान शाह उनकी सहायता के लिए आए और वह दोनो साथ मिलकर अंग्रेज़ो समुद्र में धकेल दें और वो वहीं पहुंच जाएं जहां से वो आए थे।

पंजाब में जब रणजीत सिंह सोलह वर्ष की आयु में अपना राजपाट की शुरूआत कर रहे थे तब ज़मान शाह को अंग्रेज़ो पर आक्रमण करने के लिए टीपू से एक महत्वपूर्ण निमंत्रण प्राप्त हुआ, और 1797 में वास्तव ज़मान शाह दुर्रानी पंजाब के रास्ते भारत में प्रवेश कर रहा था जो ब्रिटिश सरकार के लिए एक खतरे का अलार्म था।

सर अल्फ्रेड लायल लिखते है कि अंग्रेजों में अफगानों की घुसपैठ की खबर से भय का माहौल बन गया था अफ़गानो के आने से पूरे उत्तर भारत में एक हड़कंप मच गया, मुसलमान उनके साथ मिलने की तैयारी कर रहे थे, अवध शासक कोई प्रभावी प्रतिरोध करने में असमर्थ थे, और यदि दुर्रानी दिल्ली की तरफ बढ़ा तो अराजकता और खतरनाक भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती। बंगाल की सीमा की सुरक्षा के लिए इस तरह के एक दुर्जेय मोड़ ने निस्संदेह हर उपलब्ध अंग्रेजी रेजिमेंट को उत्तर की ओर खींच लिया।

लेकिन अंग्रेजों की किस्मत अच्छी थी जो की 1798 में फारसियों (ईरान) ने अफ़गान के पश्चिमी प्रांतों पर हमला कर दिया फारसियों से अपने प्रांतो की रक्षा करने के लिए जल्दबाजी में ज़मान शाह दुर्रानी को वापस अफ़गानिस्तान लौटना पड़ा अगर ज़मान शाह और टीपू सुल्तान मिल जाते तो 224 साल पहले ही भारत से अंग्रेज़ो को खदेड़ दिया गया होता।

- Nasir Buchiya

पानिपत के तीसरे यूद मे भयंकर हार के बाद मराठा सेना तीतर-भीतर हो गयी थी यूद मे बचे मराठो ने कड़कड़ाती ठंड में जाटों के गा...
20/09/2023

पानिपत के तीसरे यूद मे भयंकर हार के बाद मराठा सेना तीतर-भीतर हो गयी थी यूद मे बचे मराठो ने कड़कड़ाती ठंड में जाटों के गावों में शरण ली मराठो का सरदार सदाशिवराव भाऊ रोहतक के सांघी गांव में छुप गया था जहां आज भी जाट कबीले ने समाधि बना रखी है उनकी, बाकि बचते बचाते जाट राजा सूरजमल की रियासत में मदद की गूहार लेकर पहुंचे जहां सूरजमल ने अपनी बृज जाट सेना को हुक्म दिया इनको सही सलामत छोड़ आओ, इसमे पूनिया मलिक जाट सेनिक जयादा थे जाट सेना कूछ मराठों को जो बीवी बच्चों के साथ थे उनहे लेकर महाराष्ट्र पहूंच जाते है जाटों की ये दरीयादीली देख मराठे खूस हो गये और उनहोने अपनी मराठने जाटो के बियाहदी नासिक जिले मे जहां आज रामकुमार पूनिया जी जाट महासभा महाराष्ट्र के प्रधान है और वहां जाटों के इस समय 23 गांव आबाद हो चुके हैं आज भी उनका पहनावा भाषा सब राजस्थानी हरियाणवी है । लेकीन जो मराठने यहां वहां करनाल कूरुक्षेतर पानिपत मे छूप गयी थी अपने बच्चो के साथ जाटों के गांव मे होर कूवांरे राण्डे जाटों ने ऊनपर लता गेर दिया होर ऊनके बच्चो को भी गोद ले लिया ! उस समय जाटों में विवाह नियम बहुत सख्त होते थे जेसे ही जाटो के खाप पंचायती मूखीया को ईन बातो की भनक लगी तो ऊनहोने पंचायत बूलाकर ऊन जाटों को जात से बेदखल कर दिया और उन जाटों को एक नया नाम दिया गया रोहढ जिसका अर्थ है निष्कासित होना और दुसरे जाटों को भी चेतावनी दी गयी कोई इनसे संबंध नहीं रखेगा धीरे धीरे ऊन रोहढो ने भी अपना अलग समूदाय खड़ा कर लिया होर गोतर वेसे ही बनाये रखे कूछ सालो पहले ईन रोहढो को पता चला हम तो पानिपत की लडाई में आए हूए मराठो‌ के वंशज है आज भी जाटों की ईस रोहढ शाखा मे दो तरह की शकल के लोग नजर आते है एक जाटो जेसे लंबे तगडे सूथरे नेन नक्श वाले दुसरे मंदरे कद के काली सी शकल के , ये लोग निकले तो जाटो से ही है बस फरक ईतना है ये पानिपत यूद में मराठो की बची हूई ओरतो की ओलादे है ! 1761 के यूद से पहले हरयाणा की धरती पर कहीं भी रोहढ समूदाय नहीं रहता था कूरुक्षेतर विशवविदयालय के परोफेसर KC YADAV ने अपनी किताब हरयाणा का उदय और हरयाणा का पराचिन इतिहास मे साफ लीखा है रोहढ 1761 के यूद के बाद ही बसी जाति है ! नीचे चितर मे मराठे दिखाए गये है रोहढ समूदाय देख सकता है कया तुमहारी सकले ईन लोगो से मेल खाती है !!!!!! यही वज़ह है रोहढ समूदाय का D.N.A जाटा के सबसे जयादा कलोज पाया जाता है!

14/09/2023
जब इंग्लैंड लगभग लगभग मुस्लिम हो ही गया था।कहानी की शुरुआत होती है पहली तस्वीर में दिख रहे किंग जॉन के आदरणीय अग्रज भ्रा...
13/09/2023

जब इंग्लैंड लगभग लगभग मुस्लिम हो ही गया था।

कहानी की शुरुआत होती है पहली तस्वीर में दिख रहे किंग जॉन के आदरणीय अग्रज भ्राता यानी बड़े भाई रिचर्ड प्रथम ( समय काल 1190 से 1192) से.. उसके शौक बहुत बढ़िया थे और वह अधाधुंध खर्चा करता था, तीसरे क्रुसेड में वह जेरूशल्म को फतेह करने निकला पर वह फतेह नही कर सका और उसपर लंबा चौड़ा बिल बन गया। खार खाया राजा वापसी में इटली के सिसली और आज के साइप्रस देश में आक्रमण करके वहां से पैसे जमा करने लगा ( मैने कहा था ना धार्मिक भाई एक बहुत बड़ा स्कैम है, सब एक दूसरे के अलावा अपने में भी देते रहते है जब बात पैसे की हो), वहां से कुछ पैसा जमा हुआ तो वापस आने लगा। वापसी में रोमन राजा हेनरी ने उसे पकड़ लिया कि हमारी जेब बिना भरे कैसे जा रहा है बे???। तब हेनरी ने रिचर्ड से फिरौती मंगवाई जो इंग्लैंड के 2 साल के लगान के बराबर थी। 1199 में रिचर्ड की एक इंफेक्टेड तीर से लगे जख्म के कारण मौत हो गई। अब कहानी के main किरदार किंग जॉन की बारी आई। उसके पास शासन करने और बचाने को काफी जमीन थी। तब लगभग फ्रांस भी इंग्लैड में आता था पर किंग जॉन धीरे धीरे करके फ्रांस के इलाके हारता गया। 1209 में उसकी पोप इनोसेंट तृतीय के साथ कोई भसूड़ी हो गई पोप इनोसेंट तृतीय ने उसमे बजा दिए और उसपर इंटरडिक्ट लगा दिया यानी अब वो कोई धार्मिक अनुष्ठान नही कर सकेगा न ही कोई उसकी मदद करेगा और एक तरह से उसपर अंडी मंडी संधि लगा दी गई। अब कोई राजा उससे ताल्लुक नहीं रखने लगा क्योंकि अंडि मंडी संधि से सब डरते थे जैसे हम बचपन में डरते थे।

एक तो संधि लग गई थी ऊपर से फ्रांस से उसको अपने क्षेत्र को बचाना था तब उसने अलमोहाद ( आज का नॉर्थ अफ्रीका और साउथ स्पेन का राज्य) के खलीफा मोहम्मद अल नसीर को अपना एक कनवॉय भेजा जिसमे एक यहूदी से ईसाई हुआ राजदूत रॉबर्ट ऑफ लंदन भी था। जॉन के राजदूत रॉबर्ट ने कही कि अगर आप हमारा साथ दो तो हमारा राजा इस्लाम कबूल करके आपके जेरे असर रहने को तैयार है पर उसी यहूदी से ईसाई हुए राजदूत रॉबर्ट ऑफ लंदन ने एक अलग और गुप्त मीटिंग करके नासिर को बता दिया कि हमारा राजा किसी काम का नही है, इस्लाम कबूल भी कर लेगा पर कागज़ में भी ईसाई रहेगा, जालिम आदमी है जुल्म करता है सब पर इत्यादि इत्यादि कहके नासिर को करप्ट कर दिया। नासिर ने खुश होकर उसे तोहफे देकर रवाना कर दिया और दूसरे राजदूत जो उस यहूदी से ईसाई हुए राजदूतो के साथ आए थे ,उनको खाली हाथ भेज दिया।

रॉबर्ट ऑफ लंदन ने उपहारों को राजा को दिखाकर बोला देखो मैं डील पक्की करके आया हूं बाकियों से डील नही हो सकी तो खुश होकर जॉन ने उसे और उपहार दे दिए।

अगले ही साल 1213 में नासिर की क्रूसेडर ईसाइयों के हाथो मृत्यु हो गई। तीन साल बाद 1216 में जॉन की भी मृत्यु हो गई

इस तरह इंग्लैंड को इस्लाम टक से छूकर निकल गया। अगर यह डील हो जाती, इंग्लैंड अलमोहद राज्य के अधीन हो जाता तो क्या होता? कहने को बहुत किसास लगाए जा सकते है पर हमे नही भूलना चाहिए कि इस दुनिया के हर इवेंट दुनिया के भविष्य पर असर डालते है। आज कल के शासकों को इस बात का हमेशा ख्याल रखना चाहिए क्योंकि कल की भसूड़ी का किसे भी नही पता।

- Mewat History

असली देश प्रेम इसे कहते हैं...मुदकमे के दौरान जज "शहीद उमर मुख्तार" से पूछता है,जज : क्या तुम मानते हो कि तुमने बग़ावत की...
09/09/2023

असली देश प्रेम इसे कहते हैं...
मुदकमे के दौरान जज "शहीद उमर मुख्तार" से पूछता है,
जज : क्या तुम मानते हो कि तुमने बग़ावत की है
उमर मुख्तार : हाँ
जज __ क्या तुम जानते हो इसकी सज़ा क्या होगी ????
उमर मुख्तार : हाँ
जज : तो फिर अफ़सोस के साथ तुम्हारा अंजाम मौत है
उमर मुख्तार : मूझे कोई अफ़सोस नहीं यही मेरी जिंदगी का बेहतरीन अंजाम होगा,
जज इन्तहाई मसलहत और मौत का खौफ दिलाकर लालच देकर उमर मुख्तार को कहता है, कि अगर तुम अपनी क्रांती को रोक दो और क्रांतिकारीयो को कहो की वह आजादी की जंग छोड़ दें तो तुम्हें छोड़ दिया जायेगा...
उमर मुख्तार जज को एक लम्हे के लिए देखते है, और फिर अपना तारीखी क़ौल कहेते है, हम या तो शानदार फतह हासिल करेंगे या फिर वतन के लिए अल्लाह की राह में शहीद होंगे...
और यही हमारी ज़िन्दगी का असल मक़सद है, तुम लोग नस्ल दर नस्ल हमे खत्म करने की कोशिश करते रहो।
तुम्हारी हर नस्ल को मुख्तार मिलते रहेंगे।

1568 ई. में अकबर के चित्तौड़ आक्रमण को दर्शाती ये पेंटिंग काफी बारीकी से बनाई गई है। इसमें किले में 3 अलग अलग स्थानों पर ...
05/09/2023

1568 ई. में अकबर के चित्तौड़ आक्रमण को दर्शाती ये पेंटिंग काफी बारीकी से बनाई गई है। इसमें किले में 3 अलग अलग स्थानों पर होने वाले जौहर के स्थानों से धुंआ उठता हुआ दिखाया गया है। द्वार के निकट वीर जयमल जी को कल्लाजी के कंधों पर बैठकर लड़ते हुए भी दिखाया गया है, इस दृश्य को आप पेंटिंग के बाई तरफ देख सकते हैं।

जगह जगह तोपों के हमले से ध्वस्त हुई दीवारें इस आक्रमण की भयावहता को दर्शाती हैं। इस महायुद्ध में 8000 राजपूत वीर और 1 हजार पठानों ने मेवाड़ की तरफ से लड़ते हुए बलिदान दिया। सैंकड़ों राजपूतानियों ने जौहर किया। (इन एक हजार पठानों ने इस घटना के कुछ वर्ष पहले मुगलों से पराजित होकर मेवाड़ में शरण ली थी)

मुगलों द्वारा 30 हजार नागरिकों का नरसंहार किया गया। इस युद्ध में मुगल सेना का जितना नुकसान हुआ उतना नुकसान अकबर के शासनकाल में और किसी युद्ध में नहीं हुआ। इस युद्ध में अकबर की कुल सेना 80 हजार थी, जिनमें से 30 हज़ार मुगल मारे गए।

साल 1929 था भगत सिंह के असेंबली में बम फेंकने के बाद कोई भी अंग्रेजों के डर से भगत सिंह के परिवार वालों को शरण नही दे रह...
02/09/2023

साल 1929 था भगत सिंह के असेंबली में बम फेंकने के बाद कोई भी अंग्रेजों के डर से भगत सिंह के परिवार वालों को शरण नही दे रहा था। उस मुश्किल वक़्त मे क्रांतिकारी मौलाना हबीबुर्रहमान लुधयानवी ने परिवार वालो की हिफाज़त दी अपने घर मे पनाह दी।

मौलान हबीबुर्रहमान लुधयानवी के वालिद मौलाना अब्दुल क़ादिर लुधियानवी भी बड़े क्रांतिकारियों में से थे 1857 की क्रांति में अंग्रेजों के खिलाफ जिहाद का फतवा देने वालो में इनका नाम भी शुमार था।

मौलान हबीबुर्रहमान लुधियानवी दारूल उलूम से पढ़ाई मुकम्मल करने के बाद आंदोलन में शामिल हो गए। 1 दिसम्बर 1921 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। दोबारा उन्हें 1931 दिल्ली की जामा मस्ज़िद से ब्रिटिश सेना के सामने बग़ावत करने के जुर्म में गिरफ्तार किया गया। देश आजाद होने तक कई मर्तबा जेल गए तकरीबन जिंदगी के 14 साल जेल में गुज़ार दिए लेकिन वो देश की आज़ादी के लिए लड़ते रहे!

https://www.heritagetimes.in/maulana-habib-ur-rhaman-ludhanvi/

02/09/2023

Mewati History

कुतुब शाह मस्जिद फिरोजपुर झिरका । कुतुब शाह मस्जिद फिरोजपुर झिरका में लगभग 400 वर्ष के आसपास पुरानी है जिसके अभी कुछ अवश...
01/09/2023

कुतुब शाह मस्जिद फिरोजपुर झिरका । कुतुब शाह मस्जिद फिरोजपुर झिरका में लगभग 400 वर्ष के आसपास पुरानी है जिसके अभी कुछ अवशोषण तो मौजूद भी हैं हर की इसको कुछ मॉडिफाई करके इस हालत में बनाया कितना छोटा ही जैसे पहले था लेकिन इसके कुछ अवशेषों को छेद नहीं गया था जो आज भी ऐसे के ऐसे ही मौजूद हैं फिरोजपुर झिरका में कई ऐतिहासिक स्थल है चाहे जैन मंदिर हो या फिर पांडव कालीन मंदिर या नहर खोल मस्जिद इन सभी के ऊपर हमने अलग से एक वीडियो भी बनाई है जिसको आप हमारे चैनल नासिर बुचिया या मेवात हिस्ट्री में जाकर देख सकते हैं ।

Firojpur Jhirka ki khubsurat jhir wadiJaldi hi iski puri itihas ke sath video bhi aayegi
30/08/2023

Firojpur Jhirka ki khubsurat jhir wadi
Jaldi hi iski puri itihas ke sath video bhi aayegi

मेव और मेवातदिल्ली के दक्षिण में अरावली की पहाड़ियों के सिलसिले फैले हुए हैं ये पहाड़ी सिलसिले दिल्ली के महरौली, गुड़गां...
30/08/2023

मेव और मेवात

दिल्ली के दक्षिण में अरावली की पहाड़ियों के सिलसिले फैले हुए हैं ये पहाड़ी सिलसिले दिल्ली के महरौली, गुड़गांव, नूह,फरीदाबाद,पलवल, भरतपुर और अलवर को मिला कर एक अलग जुग़राफ़िया बनाते हैं
इसी जुग़राफ़ियाई टुकड़े का नाम 'मेवात' है और यहीं वो क़ौम बसती है, जिस को 'मेव' कहते हैं इस क़ौम का ज़िक्र इतिहास की किताबों में 'मेवाती' के नाम से जगह-जगह मिलता है यहाँ की मादरी ज़बान मेवाती और मज़हब इस्लाम है।

1901 की जनगणना के मुताबिक़ इस की आबादी तक़रीबन 6 लाख थी। सन 1947 में बटवारे के दौरान यहाँ से एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान चला गया
1961 की जनगणना के मुताबिक़ मेव क़ौम की आबादी हरियाणा में तक़रीबन 2 लाख और राजस्थान में 3 लाख थी
2011 की जनगणना के मुताबिक़ मेवों की आबादी हरियाणा के नूह जिले और राजस्थान के अलवर और भरतपुर जिले को मिलाकर तक़रीबन 20 लाख के आस पास थी
इस के अलावा मेव क़ौम कोटा, बारा, झालावाड़ , टोंक, जयपुर , ग्वालियर, भोपाल, उज्जैन ,बरेली , रामपुर, औरंगाबाद , जलगांव, जालना, पीलीभीत, बुंलदशहर, अमरोहा, मेरठ, लखीमपुर खीरी, आगरा, अलीगढ, एटा, इटावा और मालवा के जिलों को मिलाकर देश के 102 जिलों और 8 राज्यों में काफी तादाद में आबाद है। हरियाणा के नूह जिले में मेव क़ौम बहुसंख्यक है ( 80%)

आज़ादी के बाद 19 December 1947 को महात्मा गांधी मेवात के गाँव घासेड़ा (नूह) आए और उन्होंने मेवों को पाकिस्तान जाने से रोका और कहा कि :-

"मेव एक लड़ाका क़ौम है बाज़ लोग कहते हैं मेव एक जराइम पैशा क़बीले से मिलते जुलते हैं अगर ये इल्ज़ाम सहीह भी हो तो फ़िर भी सरकार उन को मुल्क से नहीं निकाल सकती है इन हालात में ठीक तरीक़ा ये होगा की इन की इस्लाह की जाए और इन्हें अच्छा शहरी बनने की तरग़ीब दी जाए"

मेवाती हिंदुस्तान की रीढ़ की तरह है।।

गाँधी भी उन लोगों के साथ मेवात में मरना पंसद करेगा जहाँ के लोग अपनी मातृभूमि नहीं छोड़ना चाहते।।

में मेवों की जान-माल की सुरक्षा और समान नागरिकता की गारंटी देता हूँ।।

📓 Gandhi Ji Delhi Dairy Vol. I, II

मेव क़ौम इस इलाक़ा में तक़रीबन दो हज़ार बरस से आबाद चली आ रही है यहाँ इस्लाम की तबलीग़ का काम सद्रे अव्वल से शुरू हो गया था। चौधरी मोहम्मद अशरफ़ खाँ की तहक़ीक़ के मुताबिक़ सन 1002 में महमूद ग़जनवी के अज़ीज़ सालार सय्यद महमूद ग़ाज़ी ने इस इलाक़े की तरफ़ ख़सूसी तव्वज़ो की उन की और उन के ख़लीफ़ाओं की कोशिशों से इस क़ौम का बड़ा हिस्सा मुस्लमान हो गया।

📓 Mewat Ka Safar by Maulana Wahiduddin khan

H. Risely लिखते हैं कि मेव एक इंडो आर्यन क़ौम है ये हिंदुस्तान में उत्तर पश्चिम की सरहद पार कर के आए और शुरूआत में पंजाब में आबाद रहे
मेव क़बीले का नाम मेव था और आगे चलकर यही क़ौम का नाम मशहूर हो गया
इस क़ौम में दूसरी क़ौमों के खून की आमेज़ भी नहीं है
शादी का तरीक़ा भी वही रायज है जो मनू ने जारी किया

📓 People of India by H. Sir. Risely

F Tucker लिखते हैं मेवात का इलाक़ा ज़र-ख़ेज़ नहीं है क़ौम के अफ़राद को अपने मुल्क से बहुत ज़्यादा मोहब्बत है और वह पक्का इरादा किए हुए हैं कि अपने ही मुल्क में रहेंगे या मर जाएँगे " My Country Right Or Wrong" इन का मॉडल है

Smith ने लिखा है मेव दिलेर बहादुर मेहनती हैं

इस क़ौम की एक सब से बड़ी ख़सूसियत ये है कि 1947 की गदर के दौरान में मेवों ने दूसरी क़ौम की औरतों को नहीं छीना हालांकि इन के साथ ऐसा बर्ताव किया गया

मेव क़ौम एक आज़ाद पसंद क़ौम है दिल्ली के सुल्तानों के समय में इन लोगों ने समय समय पर प्रशासन की ज़्यादती के खिलाफ़ विद्रोह किया और दिल्ली के सुल्तानों की नींद हराम रखी

समकालीन लेखक मिन्हास के अनुसार दिल्ली के सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद के गद्दी पर बेठते ही मेवातियों ने अपने नेता मलुका के नेतृत्व में विद्रोह किया सुल्तान ने विद्रोह दबाने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहा मेवातियों का साहस इतना बढ़ गया कि उन्होंने प्रधान सेनापति के ऊँटों के कारवाँ पर हाँसी के नज़दीक आक्रमण किया और उस के ऊँट तथा अन्य सामान लूट कर ले गए

ज़ियाऊदीन बरनी लिखते हैं कि :-

''दिल्ली के पश्चिमी दरवाज़े मेवातियों के ख़ौफ़ से अस्र की नमाज़ के बाद में बंद कर दिये जाते थे और किसी की मजाल न थी कि अस्र की नमाज़ के बाद कोई उस दिशा की तरफ़ चला जाए''

📓 Tarikh-e-Firozshahi by Ziauudin burni

जनवरी 1260 में सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद ने बलबन को मेवातियों पर आक्रमण के लिए भेजा। इतिहासकार मिन्हास इस का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि बलबन ने अपने सैनिकों के बीच घोषणा की जो किसी मेवाती का सिर लाएगा उसे चाँदी का एक टका तथा ज़िंदा पकड़र लाएगा उसे दो टका दिए जाएंगे। यह आक्रमण लगभग 20 दिन चला मेवाती बड़ी बहादुरी से लड़े लेकिन बलबन की सेना अधिक होने के कारण वे हार गए मलुका और उसके 250 साथियों को गिरफ्तार किया गया। सुल्तान इस विजय से बड़ा प्रसन्न हुआ उसने दिल्ली में होज-ए-रानी के स्थान पर 9 मार्च 1260 को एक विशेष दरबार लगाया बंदियों को हाथियों के पैरों के नीचे कुचलवा दिया और उनके सरदार मलुका की चाकू से खाल उतरवाई गई उसमें घास फूस भर कर शहर पर लटका दिया गया। बरनी अपनी किताब 'तारिख-ए-फ़िरोज़शाही' में लिखते हैं कि उसने इतना भयानक दृश्य पहले कभी नहीं देखा

सुल्तान का सोचना था कि इतना कठोर दंड पाने के बाद मेवाती हमेशा के लिए शांत हो जाएगें लेकिन सुल्तान की सेनाओं के लोटते ही मेवातियों ने जुलाई 1260 में फिर विद्रोह कर दिया सुल्तान ने विद्रोह दबाने के लिए फिर बलबन को भेजा मिन्हास के अनुसार बलबन ने 12 हज़ार आदमी, औरतों और बच्चों को मोत के घाट उतार दिया
लेकिन बलबन के मेवात से वापस लोटते ही फिर विद्रोह के स्वर गूँजने लगे

1266 में महमूद की म्रत्यु के बाद बलबन सुल्तान बना सुल्तान बनते ही बलबन ने मेवात के जंगलो को आग लगवा दी ताकि मेवाती युद्ध के बाद इन में छुप न सके उस के बाद मेवात पर आक्रमण कर के एक वर्ष तक मेवातियों को मौत के घाट उतारा जाता रहा। मेवाती वीरतापूर्वक लड़े।
इस युद्ध में सुल्तान के भी एक लाख आदमी मारे गए।
भविष्य में विद्रोह को रोकने व मेवात में शांति स्थापित करने के लिए बलबन ने गोपालगीर में एक क़िला बनवाया यहां पर स्थाई सेना की टुकड़ी रख छोड़ी अनेक स्थानों पर थाने स्थापित किए गए बलबन इनका निरीक्षण ख़ुद करता था। लेकिन मेवात में शाँति अधिक समय तक क़ायम न रही। बलबन के शासन के अंतिम दिनों में मेवाती फिर विद्रोही हो गए

सर वुलजले हेग के अनुसार 'इन कठोर उपायों के बावजूद भी बलबन मेवात को पूरी तरह शाँत न कर सका'

मेवातियों ने सल्तनत काल में बलबन के अलावा फ़िरोज़ शाह तुग़लक, सय्यद सुल्तान मुबारक शाह, बहलोल लोदी आदी के शासनकाल में भी विद्रोह किया

📓 History Of Haryana (M.A)

1526 में पानीपत के पहले युद्ध में मेवात के शासक हसन खाँ मेवाती ने बाबर के खिलाफ़ इब्राहिम लोदी का साथ दिया जिस में हसन खाँ मेवाती के लड़के को बाबर की सेना ने बंदी बना लिया था

1527 में ख़ानवा के युद्ध में भी हसन खाँ मेवाती ने बाबर के ख़िलाफ़ राणा सांगा का साथ दिया और इस युद्ध में 12 हज़ार मेवाती मारे गए

📓 Tuzk-e-Babri by Zahiruddin Babar

मेवों ने औरंगजेब के ख़िलाफ़ भी बग़ावत की
जिन में सरदार साँवलिया मेव ( गाँव सहसौला) और सरदार सावंत मेव (तिजारा) प्रमुख हैं

तारीख़ी वाक़िआ'त की बिना पर ये साबित होता हो चुका है कि मेवों ने गुलाम वंश से लेकर औरंगजेब तक शाहाने देहली की हुकूमत को तस्लीम नहीं किया मेव क़ौम को इस जज़्बा-ए-आज़ादी की सज़ाएँ मिलती रही

अंग्रेज़ो के ख़िलाफ़ भी मेवों ने 1803 से ही बग़ावत शुरू कर दी थी

सन 1857 की क्रांति में भी मेवों का अहम योगदान था
इस देश को आज़ाद कराने में मेवातियों ने अपना सब कुछ निछावर कर दिया था

( तहरीक-ए-आज़ादी में मेवातियों का जो योगदान है उसे इस मुख़्तसर पोस्ट में बताना मुमकिन नहीं है)

~ Parvez Zaami Mewati


23/08/2023

Raja Hasan kha Mewati History मेव कोण है

मिंटो रोड दिल्ली 1947 की फोटो है
21/08/2023

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हुसैन सागर हैदराबाद
24/04/2023

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06/03/2023

Raghavpura Temple । आज से 12 साल बाद होगा यज्ञ पूरा ki is video me Nasir Buchiya Vlog raghavpura temple 12 saal yag vadodara ...

डोंगरे पार्क अलवर का एक बेहतरीन और खूबसूरत पार्क है रेलवे स्टेशन के निकटतम ही है रेलवे स्टेशन से आपको थोड़ी ही आगे जाना ...
19/09/2022

डोंगरे पार्क अलवर का एक बेहतरीन और खूबसूरत पार्क है रेलवे स्टेशन के निकटतम ही है रेलवे स्टेशन से आपको थोड़ी ही आगे जाना पड़ेगा अलवर में इसके अलावा और भी कई ऐसी जगह है जो ऐतिहासिक और घूमने लायक है जिनको मैं अगली वीडियो में आपको दिखाने वाला हूं तो बहुत ही अच्छी है इसके लिए आप हमारे चैनल को लाइक शेयर और सब्सक्राइब जरूर करें

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Other Videos:
चील महल कामां: https://youtu.be/meWaolbjtpI
राजा हसन खां (अलवर ) किला: https://youtu.be/RxrIIew3Qv8
रिगोड़: https://youtu.be/Vaz5IgWfv2E
झिरका : https://youtu.be/Jh-EIfBNyz8
84 खम्भा : https://youtu.be/bbf9Du--rLg
शाद की बैठक : https://youtu.be/WhC3Pv42iLg
कोटला किला : https://youtu.be/DvEPrMt4o-o
शाह चोखा : https://youtu.be/RImLQnf4Jho

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