09/10/2023
तोमर राजवंश के राज चिह्न, एवं वंश चिह्न (तोमर राजवंश की वंशावली के अनुसार )....
तोमर राजवंश का महत्वपूर्ण स्थान महाराज अनंगपालसिंह तोमर द्वारा दिल्ली से आकर अपनी नई राजधानी ऐसाह गढ़ी की स्थापना की गई उसी स्थान पर चम्बल नदी के किनारे स्थित राजवंश का प्रसिद्ध मंदिर भवेश्वरी मंदिर - इस मंदिर का निर्माण और स्थापना महाराजा अनंग पाल सिंह तोमर द्वारा की गयी , इसमें अंदर गौमुखों से चम्बल की अनेक धारें इस प्रकार से गिरतीं हैं कि एक स्थायी भंवर इसमें हमेशा मौजूद रहता है , इसी भवेश्वरी में स्थित भंवर में तोमर राजवंश की पॉंच महत्वपूर्ण गुप्त चीजों में से एक पारसमणि और राजवंश के खजाने के गुप्त मार्ग अवस्थित हैं , यह महाराज अनंग पाल सिंह तोमर द्वारा दिल्ली छोड़कर आने के बाद वर्तमान में मुरैना जिला में ऐसाह नामक स्थान पर अपनी राजधानी बनाई गई , यह राजवंश का पूज्य एवं महत्वपूर्ण मंदिर है ।
तोमर राजवंश का मूल उद्गम महाभारत के योद्धा पाण्डव अर्जुन से है, भगवान श्रीकृष्ण के बहनोई , एवं अनन्य सखा अर्जुन एवं सुभद्रा के पुत्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ से जन्मे महाराजा परीक्षत एवं उनके पुत्र जन्मेजय । जन्मेजय द्वारा विश्व विख्यात सर्प यज्ञ कर सर्प प्रजाति को ही वंश नाश कर समाप्त करने हेतु आयोजित यज्ञ और उसमें भगवान श्री हरि विष्णु द्वारा स्वयं आकर सर्प जाति की रक्षा तथा तोमर वंश के लोगों को सर्प द्वारा न डसने तथा डसने पर असर न होने के वरदान की त्रिवाचा की कथा जगत प्रसिद्ध है । इसी राजवंश के आगे बढ़ते इन्द्रप्रस्थ दिल्ली के राजसिंहासन पर महाराजा अनंग पाल सिंह तोमर सिंहासनारूढ़ हुये, अनंगपाल सिंह तोमर ने दिल्ली से आकर चम्बल नदी के किनारे ऐसाह नामक स्थान (वर्तमान में मुरैना जिला ) पर अपनी नई राजधानी बनाई और उनके पुत्र महाराजकुमार सोनपाल सिंह तोमर और उनके वंशजों ने ऐसाह, सिंहोनियॉं, और ग्वालियर साम्राज्य पर राज्य करते हुये अपनी शक्ति काफी विस्तारित की और पुन: विशाल वैभवशाली साम्राज्य स्थापित कर दिया । इस राजवंश के वंश चिह्नों का विवरण यहॉं इस आलेख में राजवंश की वंशावली के अनुसारवर्णित किया जा रहा है ।
राजचिह्न एवं वंश चिह्न (तोमर राजवंश)
गोत्र – वैयाशुक , शाखा – माखधनी, वंश – चन्द्रवंश , कुलदेवी – योगेश्वरी, देवी – चिल्हासन (वर्तमान में कालका देवी के नाम से प्रसिद्ध हैं, इनकी चील पक्षी की सवारी है- इनका मंदिर अनंगपुरी दिल्ली में है, यह मंदिर महाराजा अनंगपाल सिंह तोमर ने बनवाया था), राजपुरोहित – पहले पाठक थे- नाठ हो जाने से वर्तमान में उपाध्याय हैं, राजचिह्न – गौ बच्छारक्षा (गाय बछड़ा की रक्षा) – यह राजचिह्न प्रयागराजमें स्थापित है, वंश वृक्ष चिह्न – अक्षय वट- यह चिह्न प्रयागराज में स्थापित है, माला – रूद्राक्ष की माला, पक्षी- गरूड़, राज नगाड़ा – रंजीत (रणजीत), तोमर राजवंश पहचान नाम- इन्द्रप्रस्थ के तोमर, राज वंश एवं वंश कुल पूजा- लक्ष्मी नारायण, आदि खेरा (खेड़ा) (मूल खेरा) – हस्तिनापुर, आदि गद्दी (आदि सिंहासन) – कर्नाटक (तुगभद्रा नदी के किनारे तुंगभद्र नामक स्थान पर महाराजा तुंगपाल) , वंश एवंराज शंख – दक्षिणावर्ती शंख, तिलक – रामानन्दी, राज निशान- चौकोर हरे झण्डे पर चन्द्रमा का निशान, पर्वत – द्रोणांचल, गुरू – व्यास, राजध्वज – पंचरंगी, नदी- गोमती, मंत्र – गोपाल मंत्र, हीरा- मदनायक ( इसे बाद में मुस्लिमों द्वारा कोहेनूर कहा गया – यह हीरा अब जा चुका है) ,मणि – पारसमणि, राजवंश का गुप्त चक्र – भूपत चक्र, यंत्र – श्रीयंत्र, महाविद्या – षोडशी महाविद्या उपरोक्त चिह्न (राजचिह्नों को छोड़कर) हर तंवर (तोमर) वंशीय क्षत्रिय राजपूत पर ध्वज, गोमती चक्र आदि प्रतीकों सहित होना अनिवार्य है । कुछ गुप्त चिह्नों और राज चिह्नों का प्रकाशन सार्वजनिक नहीं किया जा रहा, उन्हें इस आलेख में अपरिहार्य कारणों से शामिल नहीं किया गया है ।
उपरोक्त अंश ( तोमर- भारत का राजपूत राजवंश) से है|