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Sarjana Sarjana- Editorial board of the institute magazine and the student media body, B.I.T Sindri. The Student Media Body, BIT Sindri

"माँ भारती के भाल का शृंगार है हिंदी,हिंदोस्ताँ के बाग़ की बहार है हिंदी।घुट्टी के साथ घोल के माँ ने पिलाई थी,स्वर फूट प...
14/09/2025

"माँ भारती के भाल का शृंगार है हिंदी,
हिंदोस्ताँ के बाग़ की बहार है हिंदी।
घुट्टी के साथ घोल के माँ ने पिलाई थी,
स्वर फूट पड़ रहा, वही मल्हार है हिंदी।"
-केदारनाथ सिंह

मानव सभ्यता के निर्माण एवं विकास में भाषा का अहम योगदान रहा है। यह केवल संवाद का माध्यम मात्र नहीं अपितु सांस्कृतिक धरोहर है। हमारी भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता को प्राचीन काल से वर्तमान तक जोड़ने का कार्य हिंदी ने किया है। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा के द्वारा हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिलने के पश्चात यह दिन हमारे लिए गौरवपूर्ण बन गया।

संस्कृत की गोद से उत्पन्न एवं भारत के कई क्षेत्रीय भाषाओं को अपने अंदर समेटे हुए 'हिंदी' हमारी सांस्कृतिक विरासत की ध्वजवाहक रही है। इसकी मिठास गाँव की बोली में भी सुनाई देती है और महानगरों की हलचल में भी। इसकी मधुरता लोकगीतों की सहजता में झलकती है और इसकी गंभीरता साहित्यिक छंदों की गहराई में उतरती है। यह हमारे आत्मीय भावनाओं की अभिव्यक्ति का सबसे सरल एवं प्रमुख माध्यम है जो पूरे भारतवर्ष को एक सूत्र में पिरोने की शक्ति रखती है।

सर्जना परिवार की ओर से आप सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

"माँ भारती के भाल का शृंगार है हिंदी,हिंदोस्ताँ के बाग़ की बहार है हिंदी।घुट्टी के साथ घोल के माँ ने पिलाई थी,स्वर फूट प...
14/09/2025

"माँ भारती के भाल का शृंगार है हिंदी,
हिंदोस्ताँ के बाग़ की बहार है हिंदी।
घुट्टी के साथ घोल के माँ ने पिलाई थी,
स्वर फूट पड़ रहा, वही मल्हार है हिंदी।"
-केदारनाथ सिंह

मानव सभ्यता के निर्माण एवं विकास में भाषा का अहम योगदान रहा है। यह केवल संवाद का माध्यम मात्र नहीं अपितु सांस्कृतिक धरोहर है। हमारी भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता को प्राचीन काल से वर्तमान तक जोड़ने का कार्य हिंदी ने किया है। 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा के द्वारा हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिलने के पश्चात यह दिन हमारे लिए गौरवपूर्ण बन गया।

संस्कृत की गोद से उत्पन्न एवं भारत के कई क्षेत्रीय भाषाओं को अपने अंदर समेटे हुए 'हिंदी' हमारी सांस्कृतिक विरासत की ध्वजवाहक रही है। इसकी मिठास गाँव की बोली में भी सुनाई देती है और महानगरों की हलचल में भी। इसकी मधुरता लोकगीतों की सहजता में झलकती है और इसकी गंभीरता साहित्यिक छंदों की गहराई में उतरती है। यह हमारे आत्मीय भावनाओं की अभिव्यक्ति का सबसे सरल एवं प्रमुख माध्यम है जो पूरे भारतवर्ष को एक सूत्र में पिरोने की शक्ति रखती है।

सर्जना परिवार की ओर से आप सभी को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटे न हिय के सूल॥-भारतेंदु हरिश्चंद्र राष्ट्र की संस्कृति ...
09/09/2025

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल।
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटे न हिय के सूल॥
-भारतेंदु हरिश्चंद्र

राष्ट्र की संस्कृति ही उसके अस्तित्व को सुनिश्चित करती है और भाषा इस संस्कृति का अभिन्न अंग है। सन् १८५0 के काशी में जन्में श्री भारतेंदु हरिश्चंद्र ने हिंदी भाषा और भारतीय अस्मिता को एक सूत्र में बाँधने का काम किया। उन्होंने हिंदी को जनमानस से जोड़ा, उसे क्रांति का स्वर और रंगमंच की जान बनाया।

किसी राष्ट्र की एकता के लिए उसके वासियों में विचारों का आदान-प्रदान आवश्यक है।भारत में जहाँ हर कोस पर वाणी बदलती है, ऐसे में एक राष्ट्रभाषा बनाने के उद्देश्य से भारतेंदु जी ने हिंदी को प्रसारित किया। उनकी रचनाओं ने हिंदी साहित्य को नए आयाम दिए। उनकी लेखनी सरल थी, पर वही सरलता समाज और सत्ता से गहन प्रश्न भी पूछ लेती थी। उनके नाटक और कविताएँ कभी दर्पण बनकर समाज की विडंबनाएँ दिखातीं, तो कभी दीपक बनकर पथ प्रदर्शित करतीं। पत्रकारिता से लेकर रंगमंच तक, उन्होंने हिंदी को वह स्वर दिया, जिसमें जनमानस की धड़कन सुनाई देती थी। आज हिंदी की हर गूँज में कहीं न कहीं भारतेंदु हरिश्चंद्र की आत्मा भी प्रतिध्वनित होती है।

आधुनिक हिंदी साहित्य के पितामह, भारतेंदु हरिश्चंद्र को आज उनकी जन्मतिथि के अवसर पर सर्जना परिवार शत् शत् नमन करता है।

श्रृंखला में आज पढ़िए अज्ञेय कि कविता "नदी के द्वीप"-हम नदी के द्वीप हैं।हम नहीं कहते कि हम को छोड़ कर स्रोतस्विनी बह जा...
07/09/2025

श्रृंखला में आज पढ़िए अज्ञेय कि कविता "नदी के द्वीप"-

हम नदी के द्वीप हैं।
हम नहीं कहते कि हम को छोड़ कर स्रोतस्विनी बह जाए।

वह हमें आकार देती है।
हमारे कोण, गलियाँ, अंतरीप, उभार, सैकत कूल,

सब गोलाइयाँ उसकी गढ़ी हैं।
माँ है वह। है, इसी से हम बने हैं।

किंतु हम हैं द्वीप।
हम धारा नहीं हैं।

स्थिर समर्पण है हमारा। हम सदा से द्वीप हैं स्रोतस्विनी के
किंतु हम बहते नहीं हैं। क्योंकि बहना रेत होना है।

हम बहेंगे तो रहेंगे ही नहीं।
पैर उखड़ेंगे। प्लवन होगा। ढहेंगे। सहेंगे। बह जाएँगे।

और फिर हम चूर्ण होकर भी कभी या धार बन सकते?
रेत बन कर हम सलिल को तनिक गँदला ही करेंगे।

अनुपयोगी ही बनाएँगे।
द्वीप हैं हम।

यह नहीं है शाप। यह अपनी नियति है।
हम नदी के पुत्र हैं। बैठे नदी के क्रोड़ में।

वह बृहद् भूखंड से हमको मिलाती है।
और वह भूखंड अपना पितर है।

नदी, तुम बहती चलो।
भूखंड से जो दाय हमको मिला है, मिलता रहा है,

माँजती, संस्कार देती चलो :
यदि ऐसा कभी हो

तुम्हारे आह्लाद से या दूसरों के किसी स्वैराचार से—अतिचार
से—

तुम बढ़ो, प्लावन तुम्हारा घरघराता उठे,
यह स्रोतस्विनी ही कर्मनाश कीर्तिनाशा घोर

काल-प्रवाहिनी बन जाए
तो हमें स्वीकार है वह भी। उसी में रेत होकर

फिर छिनेंगे हम। जमेंगे हम। कहीं फिर पैर टेकेंगे।
कहीं फिर भी खड़ा होगा नए व्यक्तित्व का आकार।

मात:, उसे फिर संस्कार तुम देना।




The true teachers are those who help us think for ourselves.” – Dr. S. RadhakrishnanEvery year on 5th September, India p...
05/09/2025

The true teachers are those who help us think for ourselves.” – Dr. S. Radhakrishnan

Every year on 5th September, India pays tribute to Dr. Sarvepalli Radhakrishnan, the former President of India and a revered teacher, by celebrating Teacher’s Day.

A teacher is a quiet sculptor, carving confusion into confidence, fear into courage and silence into voice. They light the path with their experiences and also guide us to discover our own paths. They are the silent gardeners of society, sowing seeds of knowledge, watering them with care and nurturing them into trees that bear the fruits of wisdom. Books and technology can share facts but they guide us to learn from our mistakes and turn problems into opportunities to grow.

On this special occasion, the Sarjana family pays tribute to all respected teachers, who nurture young minds and ignite the flame of curiosity within us.

Happy Teacher’s Day!

श्रृंखला में आज पढ़िए अज्ञेय कि कविता "तुम हँसी हो"-तुम हँसी हो—जो न मेरे होंठ पर दीखे,मुझे हर मोड़ पर मिलती रही है।धूप—...
31/08/2025

श्रृंखला में आज पढ़िए अज्ञेय कि कविता "तुम हँसी हो"-

तुम हँसी हो—जो न मेरे होंठ पर दीखे,
मुझे हर मोड़ पर मिलती रही है।

धूप—मुझ पर जो न छाई हो,
किंतु जिसकी ओर

मेरे रुद्ध जीवन की कुटी की खिड़कियाँ खुलती रही हैं।
तुम दया हो जो मुझे विधि ने न दी हो,

किंतु मुझको दूसरों से बाँधती है
जो कि मेरी ही तरह इंसान हैं।

आँख जिनसे न भी मेरी मिले,
जिनको किंतु मेरी चेतना पहचानती है।

धैर्य हो तुम : जो नहीं प्रतिबिंब मेरे कर्म के धुँधले मुकुर में पा सका,
किंतु जो संघर्ष-रत मेरे प्रतिम का, मनुज का,

अनकहा पर एक धमनी में बहा संदेश मुझ तक ला सका,
व्यक्ति की इकली व्यथा के बीज को

जो लोक-मानस की सुविस्तृत भूमि में पनपा सका।
हँसी ओ उच्छल, दया ओ अनिमेष,

धैर्य ओ अच्युत, आप्त, अशेष।




श्रृंखला में आज पढ़िए कुँवर नारायण कि कविता "अंतिम ऊँचाई"-कितना स्पष्ट होता आगे बढ़ते जाने का मतलबअगर दसों दिशाएँ हमारे ...
24/08/2025

श्रृंखला में आज पढ़िए कुँवर नारायण कि कविता "अंतिम ऊँचाई"-

कितना स्पष्ट होता आगे बढ़ते जाने का मतलब
अगर दसों दिशाएँ हमारे सामने होतीं,

हमारे चारों ओर नहीं।
कितना आसान होता चलते चले जाना

यदि केवल हम चलते होते
बाक़ी सब रुका होता।

मैंने अक्सर इस ऊलजलूल दुनिया को
दस सिरों से सोचने और बीस हाथों से पाने की कोशिश में

अपने लिए बेहद मुश्किल बना लिया है।
शुरू-शुरू में सब यही चाहते हैं

कि सब कुछ शुरू से शुरू हो,
लेकिन अंत तक पहुँचते-पहुँचते हिम्मत हार जाते हैं।

हमें कोई दिलचस्पी नहीं रहती
कि वह सब कैसे समाप्त होता है

जो इतनी धूमधाम से शुरू हुआ था
हमारे चाहने पर।

दुर्गम वनों और ऊँचे पर्वतों को जीतते हुए
जब तुम अंतिम ऊँचाई को भी जीत लोगे—

जब तुम्हें लगेगा कि कोई अंतर नहीं बचा अब
तुममें और उन पत्थरों की कठोरता में

जिन्हें तुमने जीता है—
जब तुम अपने मस्तक पर बर्फ़ का पहला तूफ़ान झेलोगे

और काँपोगे नहीं—
तब तुम पाओगे कि कोई फ़र्क़ नहीं

सब कुछ जीत लेने में
और अंत तक हिम्मत न हारने में।




श्रृंखला में आज पढ़िए सर्वेश्वरदयाल सक्सेना कि कविता "तुम्हारे साथ रहकर"-तुम्हारे साथ रहकरअक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ हैकि ...
17/08/2025

श्रृंखला में आज पढ़िए सर्वेश्वरदयाल सक्सेना कि कविता "तुम्हारे साथ रहकर"-

तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे ऐसा महसूस हुआ है

कि दिशाएँ पास आ गई हैं,
हर रास्ता छोटा हो गया है,

दुनिया सिमटकर
एक आँगन-सी बन गई है

जो खचाखच भरा है,
कहीं भी एकांत नहीं

न बाहर, न भीतर।
हर चीज़ का आकार घट गया है,

पेड़ इतने छोटे हो गए हैं
कि मैं उनके शीश पर हाथ रख

आशीष दे सकता हूँ,
आकाश छाती से टकराता है,

मैं जब चाहूँ बादलों में मुँह छिपा सकता हूँ।
तुम्हारे साथ रहकर

अक्सर मुझे महसूस हुआ है
कि हर बात का एक मतलब होता है,

यहाँ तक कि घास के हिलने का भी,
हवा का खिड़की से आने का,

और धूप का दीवार पर
चढ़कर चले जाने का।

तुम्हारे साथ रहकर
अक्सर मुझे लगा है

कि हम असमर्थताओं से नहीं
संभावनाओं से घिरे हैं,

हर दीवार में द्वार बन सकता है
और हर द्वार से पूरा का पूरा

पहाड़ गुज़र सकता है।
शक्ति अगर सीमित है

तो हर चीज़ अशक्त भी है,
भुजाएँ अगर छोटी हैं,

तो सागर भी सिमटा हुआ है,
सामर्थ्य केवल इच्छा का दूसरा नाम है,

जीवन और मृत्यु के बीच जो भूमि है
वह नियति की नहीं मेरी है।




"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥"युगों-युगों से धर्म, प्रेम और चैतन्...
16/08/2025

"सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥"

युगों-युगों से धर्म, प्रेम और चैतन्य के प्रतीक श्रीकृष्ण ने भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को माता देवकी के गर्भ से कारागार में जन्म लिया। इसलिए इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में पूरे भारत सहित विश्व में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।

जब पृथ्वी पर अधर्म और पाप बढ़ गया था, तब भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण रूप में अवतार लिया। कृष्ण की बांसुरी की धुन, उनकी चंचलता और बाल लीलाओं ने सारे संसार को मोहित किया। गोकुल और वृंदावन में गोप-गोपियों के संग उनकी बाल्यकाल की अनेक कथाएँ आज भी हर किसी के मन को आनंद से भर देती हैं। संस्कृत साहित्य में भी कृष्ण की लीलाओं का विशेष स्थान है। रसखान का यह दोहा प्रसिद्ध है–
"देखि सब ब्रज बाल बंधु भए मगन, जब देखि नंद लाला लीला संग।"

श्रीकृष्ण ने जीवन के हर मोड़ पर धर्म की स्थापना और प्रेम का संदेश दिया। उन्होंने अर्जुन को श्रीमद्भगवद्गीता के माध्यम से ज्ञान, कर्म और भक्ति का मार्ग दिखाया और मानवता को जीवन जीने की सही दिशा दी। आज भी उनका संदेश पूरे संसार के लिए प्रेरणा का स्रोत बना हुआ है।

आप सभी को सर्जना परिवार की ओर से श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

कोटि-कोटि कंठों से निकली  आज यही स्वर-धारा है,  भारतवर्ष हमारा है, यह हिंदुस्तान हमारा है।  जिस दिन सबसे पहले जागे,  नव-...
15/08/2025

कोटि-कोटि कंठों से निकली
आज यही स्वर-धारा है,
भारतवर्ष हमारा है,
यह हिंदुस्तान हमारा है।

जिस दिन सबसे पहले जागे,
नव-सिरजन के स्वप्न घने,
जिस दिन देश-काल के दो-दो,
विस्तृत विमल वितान तने,
यह गिरिवर बन गया युगों से,
विजय निशान हमारा है।
-बालकृष्ण शर्मा 'नवीन’

स्वतंत्रता कोई उपहार नहीं अपितु अमूल्य धरोहर है, जिसे त्याग और बलिदान की वेदी पर सर्वस्य अर्पण कर अर्जित किया जाता है।

स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए असंख्य वीरों ने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। उनके अदम्य साहस और त्याग के फलस्वरूप ही माँ भारती ने गुलामी की बेड़ियों को तोड़कर स्वच्छंद श्वास ली। प्रतिवर्ष १५ अगस्त को हम इसी पावन अवसर को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाते हैं।

यह भारतवर्ष ज्ञान की भूमि है, सहिष्णुता एवं प्रेम की भूमि है जिसकी विचारधारा 'वसुधैव कुटुंबकम्' की रही है, जो संपूर्ण विश्व को एक परिवार मानकर एकता का संदेश देती है। इसकी आत्मा में बसी स्वतंत्रता का अर्थ केवल स्वराज की प्राप्ति भर नहीं है; यह तो वह अमूल्य शक्ति है जो प्रत्येक व्यक्ति को उसकी आत्मा का स्वामी बनाती है। यह स्वतंत्र विचार है, जो व्यक्तिगत सोच से ऊपर उठकर राष्ट्रहित को सदैव सर्वोपरि रखता है। यह हमें उस उत्तरदायित्व का बोध कराती है, जिस पथ पर चलकर हमें अपने देश के भविष्य का निर्माण करना है एवं हर क्षेत्र में अग्रणी बनाना है।


भारत की स्वाधीनता शाश्वत बनी रहे, इसी प्रार्थना के साथ सर्जना परिवार की ओर से आपको और आपके परिवार को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।

श्रृंखला में आज पढ़िए विनोद कुमार शुक्ल कि कविता "जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे"-जो मेरे घर कभी नहीं आएँगेमैं उनसे मिलनेउनके...
10/08/2025

श्रृंखला में आज पढ़िए विनोद कुमार शुक्ल कि कविता "जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे"-

जो मेरे घर कभी नहीं आएँगे
मैं उनसे मिलने

उनके पास चला जाऊँगा।
एक उफनती नदी कभी नहीं आएगी मेरे घर

नदी जैसे लोगों से मिलने
नदी किनारे जाऊँगा

कुछ तैरूँगा और डूब जाऊँगा
पहाड़, टीले, चट्टानें, तालाब

असंख्य पेड़ खेत
कभी नहीं आएँगे मेरे घर

खेत-खलिहानों जैसे लोगों से मिलने
गाँव-गाँव, जंगल-गलियाँ जाऊँगा।

जो लगातार काम में लगे हैं
मैं फ़ुरसत से नहीं

उनसे एक ज़रूरी काम की तरह
मिलता रहूँगा—

इसे मैं अकेली आख़िरी इच्छा की तरह
सबसे पहली इच्छा रखना चाहूँगा|




रक्षां बध्नामि ते भ्रातः, स्निग्धेन हृदयान्विता।चिरंजीव भव सदा, सर्वसौभाग्यसमन्वितः।।रक्षाबंधन केवल कलाई पर बंधा एक धागा...
09/08/2025

रक्षां बध्नामि ते भ्रातः, स्निग्धेन हृदयान्विता।
चिरंजीव भव सदा, सर्वसौभाग्यसमन्वितः।।

रक्षाबंधन केवल कलाई पर बंधा एक धागा नहीं, बल्कि यह भाई-बहन के बीच स्नेह, विश्वास और अटूट समर्थन का अमर बंधन है। यह पावन सूत्र मात्र शारीरिक संरक्षण का द्योतक नहीं, अपितु हृदयों के अंतराल में प्रवाहित असीम स्नेह, अटूट विश्वास तथा अविचल आत्मीयता का प्रतीक है।

यह भावनाओं के उस सूक्ष्म सेतु का निर्माण करता है, जो जीवन के उतार-चढ़ाव में भी अडिग रहकर, संबंधों को मजबूत बनाये रखता है। इस वर्ष, हम केवल परंपरा ही नहीं बल्कि रक्षाबंधन के असली सार का उत्सव मनाएँ-वो मौन वचन, सौम्य स्नेह और वह प्रशांत हँसी, जो इस रिश्ते को अनमोल बनाती है। यह पवित्र धागा सदा प्रेम, एकता और जीवनभर की संगति को प्रेरित करता रहे।

सर्जना परिवार की ओर से सभी भाई-बहनों को रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ। प्रेम और विश्वास का यह रिश्ता यूं ही सदा मजबूत बना रहे, यही हमारी कामना है।

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