03/12/2024
"माँ, मैं अब और नहीं सह सकती! उनकी हर बात में ताने और हर समय मुझ पर शक करना... मुझे ऐसा लगता है जैसे मेरी ज़िंदगी खत्म हो गई है।"
आर्या की शादी करण से हुई, और वह अपने पति और अपनी सास, सविता देवी, के साथ ससुराल में रहने लगी। सविता देवी एक सख्त स्वभाव की, परंपरागत सोच वाली महिला थीं। वहीं, आर्या एक आज़ाद ख्यालों वाली, आधुनिक सोच रखने वाली लड़की थी। दोनों के जीवन जीने के तरीके बिल्कुल अलग थे, और यह अंतर जल्द ही उनके रिश्ते में दरार का कारण बनने लगा।
सविता को आर्या का पहनावा, बोलचाल और उसकी हर छोटी-बड़ी आदतें खटकती थीं। दूसरी ओर, आर्या को सविता का हर चीज़ में टोकना और उनकी तीखी बातें बर्दाश्त से बाहर लगतीं। घर में रोज़ तकरार होने लगी। करण अक्सर अपनी माँ का पक्ष लेता, जिससे आर्या का दिल और टूट जाता।
एक शाम, जब झगड़ा अपने चरम पर पहुंचा, तो आर्या ने आंसुओं से भरी आँखों के साथ मायके जाने का फैसला कर लिया। अपने घर पहुँचते ही उसने माँ, सरला, के कंधे पर सिर रखकर अपने दिल का सारा दर्द निकाल दिया।
"माँ, मैं अब और नहीं सह सकती! उनकी हर बात में ताने और हर समय मुझ पर शक करना... मुझे ऐसा लगता है जैसे मेरी ज़िंदगी खत्म हो गई है।"
सरला ने बेटी की बात सुनी और उसे दिलासा देते हुए कहा, "बेटा, इस तरह घर छोड़ने से हालात और बिगड़ेंगे। तुम्हें इस समस्या को हल करने का रास्ता खोजना होगा। लेकिन अगर तुम सविता को कुछ नुकसान पहुंचाने के बारे में सोच रही हो, तो इसका दोष तुम्हारे सिर आएगा।"
आर्या ने भरे गले से कहा, "तो फिर क्या करूं माँ? उनके साथ रहना मौत से बदतर लगता है।"
सरला ने कुछ देर सोचा, फिर एक छोटी सी डिबिया आर्या को दी। "इसमें एक खास चूर्ण है। इसे अपनी सास के खाने में रोज़ एक चुटकी मिला देना। इससे उनकी सेहत धीरे-धीरे बिगड़ जाएगी, लेकिन ध्यान रखना, जब तक यह असर करे, तुम्हें उनकी हर ज़रूरत का ख्याल रखना होगा। उनकी सेवा करना, उनका ध्यान रखना, ताकि किसी को शक न हो।"
आर्या ने माँ की सलाह मान ली और ससुराल लौट आई। अगले ही दिन से उसने सविता के खाने में चूर्ण मिलाना शुरू कर दिया। लेकिन जैसा सरला ने कहा था, उसने सविता के साथ अपना व्यवहार भी पूरी तरह बदल लिया। अब वह सविता की हर बात ध्यान से सुनती, उनके गुस्से का जवाब मुस्कुराकर देती, और उनके लिए उनके पसंदीदा पकवान बनाती।
धीरे-धीरे, सविता के स्वभाव में भी बदलाव आने लगा। जहाँ पहले वह आर्या पर चिल्लाती थीं, अब उसकी तारीफ करतीं। आर्या की सेवा और उसकी नर्मी ने सविता को सोचने पर मजबूर कर दिया। घर का माहौल बदलने लगा।
कुछ महीनों में सविता और आर्या के रिश्ते में इतनी मिठास आ गई कि सविता ने आर्या को अपनी बेटी मान लिया। आर्या को भी सविता में माँ जैसा अपनापन महसूस होने लगा।
लेकिन आर्या के दिल में अब डर घर कर गया था। वह सोचने लगी कि वह चूर्ण कहीं सविता की जान न ले ले। बेचैन होकर वह फिर सरला के पास पहुँची।
"माँ, मुझे उस चूर्ण का असर खत्म करने की दवा दे दो। अब मैं अपनी सास को कुछ नहीं होने देना चाहती। वह मेरी सगी माँ जैसी हैं।"
सरला मुस्कुराई और आर्या के हाथ पकड़ते हुए बोली, "बेटा, वह कोई ज़हर नहीं था। वह तो बस एक साधारण हाजमे का चूर्ण था। मैंने यह सब इसलिए किया ताकि तुम समझ सको कि प्यार और सेवा से ही रिश्ते बदले जा सकते हैं। तुम्हारा बदला हुआ व्यवहार ही सविता को बदलने का कारण बना।"
आर्या की आँखें भर आईं। उसे अपनी गलती का अहसास हुआ। वह गले लगकर माँ का शुक्रिया अदा करती हुई ससुराल लौट आई।
सविता और आर्या का रिश्ता अब इतना गहरा हो गया था कि घर में हर कोई उनकी मिसाल देता। आर्या ने जान लिया था कि रिश्तों को जीतने का सबसे बड़ा हथियार प्रेम और समझ है।