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मुकदमें की तरह होती हैं ये नौकरी ,ना खत्म होती है.. ना बाइज्जत बरी करती है...!❤️
26/01/2025

मुकदमें की तरह होती हैं ये नौकरी ,

ना खत्म होती है.. ना बाइज्जत बरी करती है...!❤️

शहर तुम अपने हिस्से का अस्तित्व सम्भालो,गाँव ने अपने हिस्से का सौंदर्य सम्भाले रखा है..❤️🌻
25/01/2025

शहर तुम अपने हिस्से का अस्तित्व सम्भालो,
गाँव ने अपने हिस्से का सौंदर्य सम्भाले रखा है..❤️🌻

08/01/2025

Battle for Delhi on Feb 5

जब ताक़त बंधी हुई हों तोहुनर की कोई क़ीमत नहीं होती ..!!
06/01/2025

जब ताक़त बंधी हुई हों तो

हुनर की कोई क़ीमत नहीं होती ..!!

खो गईं वो चिठ्ठियाँ जिसमें “लिखने के सलीके” छुपे होते थे “कुशलता” की कामना से शुरू होते थे। बडों के “चरण स्पर्श” पर खत्म...
04/01/2025

खो गईं वो चिठ्ठियाँ जिसमें “लिखने के सलीके” छुपे होते थे “कुशलता” की कामना से शुरू होते थे। बडों के “चरण स्पर्श” पर खत्म होते थे...!!

“और बीच में लिखी होती थी “जिंदगी”

नन्हें के आने की “खबर”
“माँ” की तबियत का दर्द
और पैसे भेजने का “अनुनय”
“फसलों” के खराब होने की वजह...!!

कितना कुछ सिमट जाता था एक
“नीले से कागज में”...

जिसे नवयौवना भाग कर “सीने” से लगाती
और “अकेले” में आंखो से आंसू बहाती !

“माँ” की आस थी “पिता” का संबल थी
बच्चों का भविष्य थी और
गाँव का गौरव थी ये “चिठ्ठियां”

“डाकिया चिठ्ठी” लायेगा कोई बाँच कर सुनायेगा
देख-देख चिठ्ठी को कई-कई बार छू कर चिठ्ठी को अनपढ भी “एहसासों” को पढ़ लेते थे...!!

अब तो “स्क्रीन” पर अंगूठा दौडता हैं
और अक्सर ही दिल तोड़ता है
“मोबाइल” का स्पेस भर जाए तो
सब कुछ दो मिनट में “डिलीट” होता है...

सब कुछ “सिमट” गया है 6 इंच में
जैसे “मकान” सिमट गए फ्लैटों में
जज्बात सिमट गए “मैसेजों” में
“चूल्हे” सिमट गए गैसों में

और इंसान सिमट गए पैसों में 🙏

मुकम्मल कहाँ हुई जिन्दगी किसी की, इंसान कुछ खोता ही रहा कुछ पाने के लिए..!!
01/01/2025

मुकम्मल कहाँ हुई जिन्दगी किसी की,
इंसान कुछ खोता ही रहा कुछ पाने के लिए..!!

वाराणसी के साहित्यकार श्रीनाथ खंडेलवाल का शनिवार सुबह निधन हो गया। खंडेलवाल 80 करोड़ की प्रॉपर्टी के मालिक थे। उन्होंने 4...
29/12/2024

वाराणसी के साहित्यकार श्रीनाथ खंडेलवाल का शनिवार सुबह निधन हो गया। खंडेलवाल 80 करोड़ की प्रॉपर्टी के मालिक थे। उन्होंने 400 किताबें लिखीं थीं। आखिरी बार उन्होंने दैनिक भास्कर को इंटरव्यू दिया था, जिसमें कहा था- पुराना कुछ नहीं पूछिएगा। वो सब अतीत था, जिसे मैंने खत्म कर दिया। अब नया खंडेलवाल है, जो सिर्फ किताबें लिख रहा है। जब तक सांस है, कलम चलती रहेगी।

बाहरी लोगों ने उनका अंतिम संस्कार किया है।
पूत कपूत तो क्या धन संचय
पूत सपूत तो क्या धन संचय. ..
दौलत तो बहुत कमा कर दे गये औलाद को काश संस्कार कमा कर दे गये होते ... तो अंतिम समय मे परिवार के साथ होते ... श्री हरि से मोक्ष कामना 🙏

एक ख़ामोश रात, चाय और पसंदीदा गीत,,बेचैन दिल के सुकूं की हसरत पूरी हो जाए...!!
14/12/2024

एक ख़ामोश रात, चाय और पसंदीदा गीत,,

बेचैन दिल के सुकूं की हसरत पूरी हो जाए...!!

गौना! बियाह के छह महीने ही बीते थे कि लग्न शुरू होते ही ससुराल वाले नाउ काका को दो बार गौना मांगने के लिए भेज चुके थे।  ...
11/12/2024

गौना!
बियाह के छह महीने ही बीते थे कि लग्न शुरू होते ही ससुराल वाले नाउ काका को दो बार गौना मांगने के लिए भेज चुके थे।
बाबू जी बार बार टाल रहे थे।
बाबू जी को बार बार टालता देख ससुर जी मामा ससुर जी को संग लेकर खुद ही आ गए और गौना का दिन धरने की जिद पर अड़ गए।
बाबू जी ने हार कर अगहन माह में गौना देने का दिन धर लिया।
जबसे दिन धराया था तबसे ही घर में तैयारी होनी शुरू हो गई थी।
मां इधर उधर रिश्तेदारी इत्यादि में मिली अच्छी साड़ी बक्से में और थोड़ा कम अच्छी साड़ी बड़के बक्से में रखती जा रही थी।
तमाम वाडिया सिकौहुली, बेना बना लिया था। जब भी बिसाती दुआर पर आता मां कुछ न कुछ खरीद कर रखती जा रही थी।
कोई भी रोजगारी आ जाता उससे कुछ न कुछ जरूर खरीद कर बक्से में रख देती।
बाबू जी चीनी मिल से आने वाले गन्ने के पैसे का इंतजार कर रहे थे ताकि बड़ी बड़ी खरीदारी शुरू करें।
बाबू जी ने बगिया के सबसे पुरनके पके शीशम के पेड़ को कटवा उसकी मशहरी, कुर्सी, मेज इत्यादि बनवाने की तैयारी कर ली थी।

देखते ही देखते गौने का दिन नजदीक आने लगा। मां चावल, आटा, दाल, तेल के लिए सरसों, मसाले इत्यादि साफ करने, चुनने के लिए बगल वाले गांव में अकेली रहने वाली आईया को हर दिन बुला लेती थीं।
नाउ काका सबको न्योता और बुलावा दे आए थे। दूर रहने वाली बाबू जी की बुआ,मामी,मौसी दस दिन पहले ही आ गई थीं। मां उन सब बुजुर्गों से सब कुछ पूछकर तैयारी करने में जुटी थी।
जैसे जैसे गौने के दिन नजदीक आ रहे थे बिटिया रानी का भोजन छूटता जा रहा था। वो गुमशुम सी हो गई थी। सहेलियां आती और ससुराल के नाम पर छेड़ती तो शर्मा कर मुस्करा देती थी।
ससुराल का एक अनजाना सा डर मन में बसा था। न जाने वहां जाकर सब कुछ सही से संभाल सकेगी या नहीं।
बुआ, मौसी, भाभी, दीदी हर दिन कुछ न कुछ सीख देती रहतीं थीं जिसे सुनकर वो मुंडी तो हिला देती थी लेकिन मन ही मन कुछ गलत न हो जाए के डर से घबरा जाती थी।
एक हफ्ता पहले से ही भाभी रोज शाम को बुकवा में कच्ची हल्दी पीस कर लगाने लगीं थीं।

मां ने एक दिन पक्की सहेली को बुलाकर कुछ रुपए देकर कहा कि बिट्टो को अपने साथ बाजार ले जाओ ताकि उसे जो भी अपने मन पसंद का खरीदना होगा खरीद लेगी और जो तुम्हे समझ में आए जबरदस्ती दिलवा देना, वो मेरे कहने पर नहीं जाएगी इसलिए तुम अपने नाम से बाजार ले जाओ।

गौने के एक दिन पहले से ही हलवाई मिठाई बनाने में लगे हुए थे। मामा जी, बुआ जी इत्यादि के घर से सभी लोग आ चुके थे और सबने आते ही अपनी अपनी जिम्मेदारी संभाल लिया था।
कोई मिठाइयों के गत्ते पैक कर रहा था तो कोई फर्नीचर का निरीक्षण कर रहा था।
भाभी, दीदी मिलकर बिट्टू का बक्सा तैयार कर रही थीं। कौन सी साड़ी कब पहनेगी? क्या क्या देकर सभी महिलाओ का पैर छुएगी?
मां मौसी को भोजन की थाली देकर कहती हैं जाकर बिट्टू को थोड़ा खाना खिला दो कल रात से कुछ नहीं खाई है।
मौसी भोजन लेकर गई तो बिट्टू चादर में मुंह छिपाए रो रही थी। कल से ही रो रो कर आंखे सुजा रखी थी।
मौसी मनुहार करके भोजन करवाने की कोशिश करने लगी लेकिन उसे चुप करवाने के बजाय खुद ही रोने लगी। भाभी, बुआ, दीदी जो भी चुप करवाने आता वही रोने लगता।
जब सभी कमरे में बैठकर रोने लगी तब भाइयों ने मोर्चा संभाला और अन्दर आकर खूब मजाक मस्ती करने लगे, चिढ़ाने लगे जिससे धीरे धीरे सब रोना बन्द करके मुस्कराने लगी।
इसी का फायदा उठा कर भाइयों ने एक निवाला मेरी तरफ से कह कहकर सारा भोजन खिला दिया और मुस्कराते व सबसे अपने आंखों की नमी छिपाते हुए बाहर चले गए।
गौनाहरू आ गए थे। सबको चाय नाश्ता करवाने के बाद भोजन करवाना उसके बाद विदाई करवानी थी।
उधर सब भोजन करने उठे इधर ट्रॉली पर मिठाई, उपहार ,फर्नीचर लदवाया जाने लगा।
सखियों संग मिलकर भाभी बिट्टू को तैयार करने में लगी हुई थी।
मां सारे जेवर निकाल कर लाती हैं और कहती हैं कि मेरी लाड़ो को सब अच्छी तरह से पहना दो, रानी बना दो।
मां की आवाज सुनकर बिट्टू मां को आवाज लगाती हैं लेकिन मां उसकी आवाज अनसुनी करके मुंह में आंचल ठूस कर रुलाई रोकते हुए भंडार घर की तरफ चली जाती हैं।
बिट्टू को तैयार करके चौक पर लाते हैं जहां पर नाउन काकी उनके पैरों में महावर लगाती हैं और बिछिया पहनाया जाता है। बिट्टू की सिसकी धीरे धीरे तेज हो रही थी और सभी महिलाओं के आंखे भी भरी हुई थीं।
जब मां चावल, गुड़, दूब,हल्दी लेकर कोछा पूजने लगती हैं तब तक बिट्टू की सिसकी तेज आवाज में रोने में बदल जाती है।
मुश्किल से कोछा पूज कर मां सूप बुआ को पकड़ाती हैं और बिटिया को सीने से चिपका कर रोने लगती हैं।
सभी महिलाएं बड़ी मुश्किल से उन्हें अलग करती हैं। भाभी, दीदी, बुआ, मौसी को अंकवार देते समय उनकी रुलाई देखकर वहां पर खड़ी सभी महिलाएं अपने आंसू नहीं रोक पाती हैं।
भैया अपने आंसू पोंछ कर आकर सबसे छुड़ाकर बिट्टू को डोली की तरफ ले चलता है। भैया के गले से लगी बिट्टू रोए जा रही थी और भैया बार बार रुमाल से अपनी लाल हो चुकी आंखे पोछता जा रहा था।
भैया गाड़ी में बिट्टू को बैठा कर, गाड़ी थपथपा कर आगे बढ़ाने के लिए बोला कि तब तक बुआ, दीदी सभी बिट्टू के साथ गाड़ी में बैठ लेती हैं।
गाड़ी धीरे धीरे घर छोड़ती जा रही थी, गाड़ी के साथ साथ सभी महिलाएं गांव के गोयडे तक आती हैं और फिर गाड़ी वहां रुकती है।
दीदी बिट्टू को चुप कराने की कोशिश करती हैं, पानी के कुछ घूंट पिलाती हैं, मां गाड़ी के ऊपर से एक लोटा जल उवार कर धरकावन चढ़ाती हैं, बिटिया के नए जीवन की खुशियों, सुख शांति की ढेरों मनौती करती हैं।
सभी महिलाएं गाड़ी से उतर जाती हैं और फिर दूल्हे राजा गाड़ी में बैठते हैं। भाभी कहती हैं कि... ये पहुना! लाली को चुप करा लेना नहीं तो रोते रोते इनका सर दुखने लगेगा। हमारी लाड़ो का ध्यान रखना अब ये आपकी ही जिम्मेदारी हैं।
गाड़ी धीरे धीरे धूल उड़ाती हुई आंखों से ओझल होने लगती है और सभी लोग आंसू पोछते हुए थके कदमों से घर को लौटने लगते हैं।


"जवानी में मेहनत करो, ताकि बुढ़ापे में कांबली ना बनना पड़े !"कभी बचपन के साथी सचिन और कांबली को भारतीय क्रिकेट का भविष्य ...
05/12/2024

"जवानी में मेहनत करो, ताकि बुढ़ापे में कांबली ना बनना पड़े !"
कभी बचपन के साथी सचिन और कांबली को भारतीय क्रिकेट का भविष्य कहा गया कांबली का टैलेंट इतना गज़ब था कि उन्हें सचिन से भी बेहतर कहा जाता था। लेकिन समय ने दोनों की राहें अलग कर दीं।
हाल ही में एक समारोह में दीन-हीन से दिख रहे कांबली ने सचिन को अपने पास बैठने का आग्रह किया, उनको खुशी से देखते ही उनका हाथ पकड़ लिया। मगर सचिन ने मुस्कुराते हुए हाथ छुड़ाया और उनसे कुछ दूरी पर बैठे लोगों के साथ जा कर बैठ गए। हो सकता है वजह कुछ और रही हो। मगर ये घटना एक कड़वी सच्चाई बयान करती है—
लोग आपको नहीं आपके रुतबे और हैसियत को पूछते हैं।
सचिन ने 22 साल मेहनत करके खुद को दुनिया का सबसे बड़ा क्रिकेटिंग नाम बनाया, जबकि कांबली अपनी चकाचौंध भरी लाइफ स्टाइल, शौहरत, लड़कियों के नशे में खो गए। अब कोई उनको काम नहीं देता। वो बेहद लाचारी में जीवन बिता रहे हैं।

इसी लिए बड़े बुज़ुर्ग कहते हैं, जवानी में मेहनत करो, नाम कमाओ, पैसा कमाओ । स्किल्स पर काम करो और वक़्त की कद्र करो । ताकि तुम्हारा बुढापा सचिन की तरह गुज़रे .. कांबली की तरह नहीं ।

सारे महीनो की विदाई कर रहा है,वो दिसम्बर है जनवरी से सगाई कर रहा है....गुज़र ही गये सुख दुख छाँव तले महीने सारे,वो सबकी ...
05/12/2024

सारे महीनो की विदाई कर रहा है,
वो दिसम्बर है जनवरी से सगाई कर रहा है....

गुज़र ही गये सुख दुख छाँव तले महीने सारे,
वो सबकी अब हौंसला अफज़ाई कर रहा है....!!!

खामोशी को खामोशी सेज़िंदगी को ज़िंदगी से बात करने दो.
01/12/2024

खामोशी को खामोशी से

ज़िंदगी को ज़िंदगी से

बात करने दो.

इन तस्वीरों में, पहला बालक बिहार का सोनूऔर दूसरा अभिनव अरोड़ा हैसोनू बचपन से ही मेहनत कर रहा है उसे iAS बनना है,अभिनव अर...
23/11/2024

इन तस्वीरों में, पहला बालक बिहार का सोनू
और दूसरा अभिनव अरोड़ा है

सोनू बचपन से ही मेहनत कर रहा है उसे iAS बनना है,
अभिनव अरोड़ा पढ़ाई से दूर भागता है और मेहनत से जी चुराता है

एक दिन सोनू की मेहनत रंग लाएगी
वो सच में IAS बनेगा और अभिनव अरोड़ा की सिक्योरिटी की देखभाल करवाएगा

,...क्योंकि हमारे यहां ऐसा ही होता है 😂

डेढ़ महीना गांव में ठहर जाओ,तो गाँववाले बतियाएंगे "लगता है इसका नौकरी चला गया हैसुबह दौड़ने निकल जाओ तो फुसफुसाएंगे  “लग...
14/11/2024

डेढ़ महीना गांव में ठहर जाओ,तो गाँववाले बतियाएंगे "लगता है इसका नौकरी चला गया है
सुबह दौड़ने निकल जाओ तो फुसफुसाएंगे “लग रहा इसको शुगर हो गया है ...."
कम उम्र में ठीक ठाक कमाना शुरू कर दिये तो आधा गाँव मान लेगा कि बाहर में दू नंबरी काम करता है।
जल्दी शादी कर लिये तो “बाहर कुछ इंटरकास्ट चक्कर चल रहा होगा इसलिये बाप जल्दी कर दिये "।
शादी में देर हुईं तो_" ओकरे घरवा में बरम बा!....लइका मांगलिक है कवनो गरहदोष है, औकात से ढेर मांग रहे है "।
बिना दहेज़ का कर लिये तो “ लड़की प्रेगनेंट थी पहले से, इज़्ज़त बचाने के चक्कर में अरेंज में कन्वर्ट कर दिये लोग"।
खेत के तरफ झाँकने नही जाते तो “अबहिन बाप का पैसा है तनी"।
खेत गये तो “ देखे ना,अब चर्बी उतरने लगा है "।
मोटे होकर गांव आये तो कोई खलिहर ओपिनियन रखेगा “ बीयर पीता होगा "।
दुबले होकर आये तो “ लगता है गांजा चिलम पीता है टीबी हो गया "।
बाल बढ़ा के जाओ तो, लगता है, ई कोनो ड्रामा कंपनी में नचनिया का काम करता है....।
कुल मिलाकर गाँव में बहुत मनोरंजन है.....

इसलिये वहाँ से निकले लड़के की चमड़ी इतनी मोटी हो जाती है कि आप बाहर खडे होकर गरियाइये वो या तो कान में इयरफोन ठूंस कर सो जायेगा या फिर उठकर आपको लतिया देगा लेकिन डिप्रेशन में न जायेगा.......।
इस पर ज़ब गाँव से निकला लड़का बहुत उदास दिखे तो समझना कोई बड़ी त्रासदी है......

#सच्चाई

व्यवहार का समय गया, संबंध अब पैसों से बनते हैं !❤️💯
14/11/2024

व्यवहार का समय गया,
संबंध अब पैसों से बनते हैं !❤️💯

सब कुछ समझ कर भी हैरान क्यों हुजिंदगी तू ही बता में परेशान क्यों हु✍️✍️
13/11/2024

सब कुछ समझ कर भी हैरान क्यों हु
जिंदगी तू ही बता में परेशान क्यों हु✍️✍️

अब लगता है की अकेले भी, खुश रहा जा सकता था यार।❤️💯
13/11/2024

अब लगता है की अकेले भी,
खुश रहा जा सकता था यार।❤️💯

एक बार अर्जुन ने कृष्ण से कहा, इस दीवार पर कुछ ऐसा लिखो की,खुशी में पढूं तो दुख हो और दुख में पढूं तो खुशी हो,तब कृष्ण न...
13/11/2024

एक बार अर्जुन ने कृष्ण से कहा, इस दीवार पर कुछ ऐसा लिखो की,
खुशी में पढूं तो दुख हो और दुख में पढूं तो खुशी हो,
तब कृष्ण ने लिखा
“ये वक्त गुजर जाएगा”।

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