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शीघ्र प्रकाश्य‘कुंडलिया छंद : एक विवेचन’ नामक इस पुस्तक को तैयार करने का उद्देश्य प्रबुद्ध समीक्षकों, पाठकों और विश्वविद...
27/01/2025

शीघ्र प्रकाश्य
‘कुंडलिया छंद : एक विवेचन’ नामक इस पुस्तक को तैयार करने का उद्देश्य प्रबुद्ध समीक्षकों, पाठकों और विश्वविद्यालयों के आचार्यों का ध्यान इस विधा की ओर आकृष्ट करना है क्योंकि इस विधा की तरफ जिस रूप में ध्यान जाना चाहिए, नहीं जा रहा है। इसका प्रमुख कारण शायद गवेषणात्मक रूप में कार्य का अभाव है। इस कृति में सम्मिलित लेख संख्या एक से चार तक को विरासत खण्ड के रूप में देखा जा सकता है और लेख संख्या पांच से अंतिम लेख को समकालीनता के अंतर्गत रखा जा सकता है। लेखों के लिए समकालीन कुंडलियाकारों के छंदों को आधार बनाया गया है।

#हिन्दीहैंहम #विश्वपुस्तकमेला2025

शीघ्र प्रकाश्यगणेश गंभीर सिर्फ़ लेखक ही नहीं लेखकीय विचारों पर तर्क और विमर्श करने वाले ग़ज़लकार हैं। उनके स्वभाव की तरह...
27/01/2025

शीघ्र प्रकाश्य
गणेश गंभीर सिर्फ़ लेखक ही नहीं लेखकीय विचारों पर तर्क और विमर्श करने वाले ग़ज़लकार हैं। उनके स्वभाव की तरह उनकी ग़ज़लें भी अलहदा हैं। वे कहते हैं- ‘हिन्दी ग़ज़ल-लेखन जो अवलोकनाधारित निष्कर्ष के स्थान पर अवलोकन-संधान की पद्धति का अनुसरण करता है, मुझे स्वीकार नहीं है। जो हमारे सामने है, से हम विमुख कैसे हो सकते है। जब हमें मालूम है कि हत्यारा कौन है तो फिर किस तफ्तीश की ज़रूरत बचती है। खेद है जिस हत्यारे को सब जानते है उसे न जानने का दिखावा किया जा रहा है, इतनी पाखण्डपूर्ण प्रतिबद्धता का निषेध होना ही चाहिए। यही मेरा काव्य- मंतव्य है और यही मेरी काव्य-आभ्यंतरिकता है। मेरे इस संग्रह की ग़ज़लें इसकी पुष्टि करेंगी ही।’

#विश्वपुस्तकमेला2025 #हिन्दीहैंहम

जनकवि सुमित्र जी के पास केवल कविता का कलेवर ही नहीं है, उनकी रचनाओं की आत्मा में अर्थ की अंतर्वस्तु भी है। वे भले ही सरल...
26/01/2025

जनकवि सुमित्र जी के पास केवल कविता का कलेवर ही नहीं है, उनकी रचनाओं की आत्मा में अर्थ की अंतर्वस्तु भी है। वे भले ही सरल साहित्य के रचयिता क्यों न हों किन्तु सरल-साहित्य का सृजन भी गहन-साहित्य के बोध से ही स्फूर्त होता है। बाबा ने अन्ना कैरेनिना और क़ज्ज़ाक़ भी पढ़ी है। बाबा ने इलियट और तुर्गनेव भी पढ़ा है।
देह से वृद्ध हैं। टाइपिंग में सुघड़ नहीं हैं। लिखते हैं तो उँगलियाँ बहक जाती हैं। संचार माध्यमों के नाम पर जीवन भर केवल अंतर्देशीय, लिफ़ाफ़े, पोस्टकार्ड और तार ही देखे हैं। टेलीफोन और मोबाइल तो आज की रंगीनियाँ हैं। हमारी-आपकी तरह वीडियो गेम से उड़कर मोबाइल पर नहीं आ गए। उनकी एडिटेड रचनाओं को देख जाइये। दाँतों तले उँगली दबाने से बच नहीं सकेंगे।
हिंदी-काव्य-उपवन को जनपद बेगूसराय का भी अमूल्य अवदान है। जनकवि बाबा दीनानाथ सुमित्र उन्हीं सुपुनीत पुष्पजीवियों में से हैं जिन्होंने अपने सुरम्य ग्रंथमाल से काव्यदेवी का यथोचित सत्कार किया है।

-मणिभूषण सिंह

शीघ्र प्रकाश्यसोनरूपा विशाल वर्तमान दौर की एक महत्वपूर्ण ग़ज़लकारा हैं। इनकी ग़ज़लों की विषय-वस्तु का संसार बहुत व्यापक ...
26/01/2025

शीघ्र प्रकाश्य
सोनरूपा विशाल वर्तमान दौर की एक महत्वपूर्ण ग़ज़लकारा हैं। इनकी ग़ज़लों की विषय-वस्तु का संसार बहुत व्यापक है, जिसमें बड़ी मार्मिकता के साथ माँ भी आती हैं, पिता भी आते हैं। प्रेम, प्रकृति, सरहद पर तैनात सैनिकों के प्रति सम्मान, स्त्री विमर्श, रिश्तों-नातों की स्थिति, व्यवस्था पर प्रश्न, इन सब पर आपने एक से बढ़कर एक शेर कहे हैं। आपकी ग़ज़लों के कथ्य का एक विशिष्ट पक्ष है सकारात्मकता, जो विषम परिस्थितियों में भी हमें हौसला प्रदान करता है, उम्मीद बँधाता है और अपने अभीष्ट तक पहुँचने के लिए मुश्किलों से लड़ने-जूझने की शक्ति देता है।
इन ग़ज़लों में सोनरूपा के जीवन और उनकी शायरी, दोनों का अनुभव स्पष्ट दिखाई देता है तभी एक सूक्ष्म प्रेक्षक की तरह वह देश-दुनिया और अपने आसपास के समाज की विसंगतियों और विडम्बनाओं की पड़ताल करती हैं और तटस्थ रहते हुए उसे हमारे समक्ष अपने मौलिक लहजे में रवानी के साथ प्रस्तुत करती हैं।

#विश्वपुस्तकमेला2025 #हिन्दीहैंहम

शीघ्र प्रकाश्य‘देवांगना’ उपन्यास आचार्य चतुरसेन द्वारा लिखित एक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक कृति है, जिसमें बारहवीं सदी के बि...
26/01/2025

शीघ्र प्रकाश्य
‘देवांगना’ उपन्यास आचार्य चतुरसेन द्वारा लिखित एक महत्त्वपूर्ण साहित्यिक कृति है, जिसमें बारहवीं सदी के बिहार की स्थिति का वर्णन है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, यह एक देवदासी या नर्तकी की कहानी है। यह उपन्यास बौद्ध धर्म के पतन और धर्म के नाम पर होने वाले दुराचारों की कहानी बताता है। इस उपन्यास में, आचार्य ने धर्म और धर्म के ढोंग को बहुत ही रोचक और भावनात्मक ढंग से चित्रित किया है। उन्होंने दिखाया है कि कैसे धर्म के नाम पर लोगों का शोषण किया जाता है और कैसे यह शोषण समाज को नुकसान पहुँचाता है।

#विश्वपुस्तकमेला2025 #हिन्दीहैंहम

शीघ्र प्रकाश्य‘छन्द नवनीत’ पूर्णरूप से भक्ति भावना से ओत-प्रोत काव्य है। भक्ति भावना से युक्त रचनाएँ शाश्वत एवं चिर स्था...
26/01/2025

शीघ्र प्रकाश्य
‘छन्द नवनीत’ पूर्णरूप से भक्ति भावना से ओत-प्रोत काव्य है। भक्ति भावना से युक्त रचनाएँ शाश्वत एवं चिर स्थाई रहती हैं। किसी भी युग का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यही कारण है कि भक्ति काल को हिन्दी साहित्य का स्वर्ण युग कहा गया है। ‘छन्द नवनीत’ में सरस्वती वन्दना के अतिरिक्त शिव, हनुमान, भगवान राम, राधा एवं भगवान कृष्ण, पर आधारित सुमधुर छन्द संग्रहीत हैं। तत्पश्चात विविधा के अन्तर्गत कुछ अन्य विषयों पर भी छन्द दिये गये हैं।
#विश्वपुस्तकमेला2025 #हिन्दीहैंहम

शीघ्र प्रकाश्यहिंदी गजल आज जिस मुकाम पर है, उसे नित्य नई ऊँचाई देने में अनगिन गजलकारों का योगदान रहा है। जैसे हमने पश्चि...
26/01/2025

शीघ्र प्रकाश्य
हिंदी गजल आज जिस मुकाम पर है, उसे नित्य नई ऊँचाई देने में अनगिन गजलकारों का योगदान रहा है। जैसे हमने पश्चिमी मुल्कों से अनेक विधाओं को स्वीकार कर उसे अपने रंग में ढालकर जनप्रिय बनाया, वैसे ही गजल को भी हिन्दी के रंग में अपना बनाकर उसे जनग्राह्य बनया है। हिन्दी क्षेत्र का मिजाज प्रतिरोध का रहा है। वर्तमान हिन्दी गजल में भी वही स्वर मुखरित होता हुआ जनप्रिय हो रहा है। सड़़क से संसद तक इसका प्रभाव अपना रंग दिखा रहा है। आम जनता तो आम जनता, बड़े-बड़े नेता भी अपने उद्बोधन में शेरों को शामिल कर अपनी अभिव्यक्ति को प्रभावशाली बना रहे हैं। महाकवि नीरज मानते रहे कि गजल न तो प्रकृति की कविता है, न अध्यात्म की, वह हमारे उसी जीवन की कविता है, जिसे हम सचमुच जीते हैं। इसी तरह दुष्यंत कुमार अक्सर कहते हैं कि गजलों की भूमिका की जरूरत नहीं होनी चाहिए। उर्दू और हिंदी अपने-अपने सिंहासन से उतरकर जब आम आदमी के पास आती है, तो उसमें फर्क कर पाना बड़ा मुश्किल हो जाता है। इस तरह भाषा, शिल्प, कथ्य, कहन कौशल हर तरह से दक्ष हो हिंदी गजल ने अपने को इतना जनप्रिय बना लिया है कि भारत में गंगा-जमुनी संस्कृति की धारा उसमें अविरल प्रवाहित होती है।
यही कारण है कि बीते कई वर्षों से हिंदी गजलें ‘नई धारा’ में ससम्मान प्रकाशित होती रहीं। पाठकों-गजलकारों ने ‘नई धारा’ का गजल-अंक प्रकाशित करने का दवाब भी बनाया। आखिरकार हमने सबका सम्मान करते हुए गजलों के गाँव में पर्यटन का मन बनाया और यह अंक आपके सामने है।

-शिवनारायण

#विश्वपुस्तकमेला2025 #हिन्दीहैंहम

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!      #गणतंत्र_दिवस  
26/01/2025

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं!

#गणतंत्र_दिवस 

शीघ्र प्रकाश्यलघुकथा का चरित्र आतुर होता है, पाठक को कुछ बताने के लिए। वह शब्दों या सधे वाक्यों के साथ कोई दृश्यबंद पाठक...
25/01/2025

शीघ्र प्रकाश्य
लघुकथा का चरित्र आतुर होता है, पाठक को कुछ बताने के लिए। वह शब्दों या सधे वाक्यों के साथ कोई दृश्यबंद पाठक के समक्ष रखता है। ताकि चित्र की भाँति वह पाठक के मानस पर चिपक जाए। लेखक का यह सृजन ही पाठक या दर्शक को सचेत करने के लिए है। किसी भी रचना को आकार देने वाले की दृष्टि बड़ी सूक्ष्म होती है। लघुकथा के चरित्र उसकी रचनात्मक सोच को बाहर लाने के लिए कटिबद्ध रहते हैं। लेखन के माध्यम से पाठक या दर्शक को समझ देने का काम उसका है। फिर पढ़ लेने या दृश्य देख लेने के बाद, पाठक या दर्शक पर निर्भर है कि सच से सामना हो जाने के बाद उसकी प्रतिक्रिया क्या रहेगी?
दर्शक रूप में जिसे सामने देखा या पाठक रूप में जिसे पढ़ा, उसे विस्मृत करना इतना आसान नहीं। एक अच्छी लघुकथा या नुक्कड़ नाटक की यही खासियत है। यथार्थ की अभिव्यक्ति से वह कथा के अंत में प्रश्न खड़े कर सकता है। उस असभ्य परिवेश को बदल डालने के लिए आवाज दे सकता है। रचनाकार अपने लेखन अनुभवों से विसंगत धारणाओं में बदलाव लाने का कार्य कर रहा है। कथ्य यदि उद्देश्य-पूर्ण है तो पाठक उसके अर्थ निकालने में दक्ष बन सकता है। कथा यदि बातचीत तक सीमित है तो पाठक उसे पढ़कर सहज ही भुला देगा। लघुकथा यही समझ देने की शक्ति रखती है। निडर होकर यथार्थ के ताने-बाने से पाठक को जागरूक बना देने का काम लघुकथा का है। संकलन की लघुकथाएँ ऐसी ही हैं।
#विश्वपुस्तकमेला2025 #हिन्दीहैंहम

शीघ्र प्रकाश्यरेखा भारती मिश्र एक सुपरिचित लेखिका हैं। बड़ों के लिए भी वह रचती हैं और बच्चों के लिए भी। उन्होंने बालमन की...
25/01/2025

शीघ्र प्रकाश्य
रेखा भारती मिश्र एक सुपरिचित लेखिका हैं। बड़ों के लिए भी वह रचती हैं और बच्चों के लिए भी। उन्होंने बालमन की बारीक पड़ताल की है। एक माँ के रूप में, एक शिक्षिका के रूप में भी। तभी तो अपनी कहानियों में वह बच्चों की आँखों से उन घटनाओं को देखती हैं। शिक्षिका की भाँति भी उन घटनाओं को देखती हैं। शिक्षिका की भाँति समस्याओं पर नज़र रखती हैं। फिर एक मनोवैज्ञानिक की तरह तर्कसंगत ढंग से समाधान भी ढूँढ निकालती हैं। समाधान ऐसा कि साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे! कहने का मतलब यह कि शिशु-बालक के भीतर पनप रही बुराई का अंत भी हो जाए और उनके सुकोमल मन पर कोई दुष्प्रभाव भी न पड़े।
पन्द्रह कहानियों के इस संग्रह में शिशुओं, बालक-बालिकाओं की अभिरुचि के कथानकों को कहानी का विषय बनाया गया है। सभी कहानियों के पात्र या तो बच्चे हैं अथवा उनकी पसन्द के चूहे, मछली, चींटी, कबूतर आदि। सरसता इनकी जान है। भाषा सरल और सुबोध है। क़िस्सागोई इनकी ख़ासियत है। प्रत्येक कहानी संदेशमूलक है। मगर इनमें जबरदस्ती कोई उपदेश नहीं थोपा गया है। बच्चों को इन्हें पढ़ते हुए मज़ा आएगा। ऐसा लगेगा जैसे उनके मन की बात कहानी में पिरोई गई हो। खेल-खेल में ही जीवनमूल्य से जुड़ा संदेश हासिल हो जाएगा।
#विश्वपुस्तकमेला2025 #हिन्दीहैंहम

शीघ्र प्रकाश्यहरिनारायण सिंह ‘हरि’ गीतों को जीवन और जीवन को गीतों में ढालने वाले रचनाकार हैं। उनके सातों गीत-नवगीत संग्र...
25/01/2025

शीघ्र प्रकाश्य
हरिनारायण सिंह ‘हरि’ गीतों को जीवन और जीवन को गीतों में ढालने वाले रचनाकार हैं। उनके सातों गीत-नवगीत संग्रहों में इतने विविध आयामी गीत, गाँव से लेकर कस्बों-शहरों के रंगों की इतनी-इतनी छटाएँ और अपनी अनूठी कहन शैली है, जो इन्हें अन्य गीति-कवियों से अलग करते हुए बार-बार पढ़ने को विवश करता है। उनके इन्हीं संग्रहों की समीक्षाओं का यह संकलन उनकी गीत-यात्रा से हमें परिचित कराता है।

#विश्वपुस्तकमेला2025 #हिन्दीहैंहम

शीघ्र प्रकाश्यरंजना की सभी कहानियाँ अपनी रचनात्मक विशेषताओं के साथ सोद्देश्यता के महत्वपूर्ण बिन्दु को आयाम देती हैं। कथ...
24/01/2025

शीघ्र प्रकाश्य
रंजना की सभी कहानियाँ अपनी रचनात्मक विशेषताओं के साथ सोद्देश्यता के महत्वपूर्ण बिन्दु को आयाम देती हैं। कथ्य से जुड़ी घटनाएँ, पात्र और उनकी संवेदनाएँ पाठकों को बाँधे रखती हैं। सरल और सहज भाषा में उकेरी गई ये कहानियाँ सामाजिक विसंगतियों को बखूबी सामने लाती हैं। अपनी सूक्ष्म दृष्टि से रचनात्मकता को शीर्ष तक पहुँचातीं ये रचनाएँ मानवीय रिश्तों की परतों को उघाड़ने में सफलता प्राप्त करती हैं।
#विश्वपुस्तकमेला2025 #हिन्दीहैंहम

शीघ्र प्रकाश्यपुष्पेन्द्र पुष्प आज के शाइर हैं। उनकी ग़ज़ल का रिश्ता आज की ज़िंदगी से है। उनकी संवेदनाओं का संसार, उनके ...
24/01/2025

शीघ्र प्रकाश्य
पुष्पेन्द्र पुष्प आज के शाइर हैं। उनकी ग़ज़ल का रिश्ता आज की ज़िंदगी से है। उनकी संवेदनाओं का संसार, उनके लफ़्ज़ों का कुनबा उनका अपना है… उसकी फ़ज़ा अपनी है। उसकी उदासियाँ… मुस्कुराहटें… उसकी रौनक़ें… वीरानियाँ… उसकी ध्वनियाँ-प्रतिध्वनियाँ सब अपनी हैं। ये फ़ज़ा लफ़्ज़ों की एक मुख़्तसर सी कायनात तख़लीक़ कर रही है जो कुछ जुदा चाँद सितारे अपने दामन में समेटे हुए है।
उनकी शायरी ज़िंदगी के मुख़्तलिफ़ रंगों से सजा एक ऐसा कोलाज है जिसमें पाठक को अपने हिस्से की धूप-छाँव और अपना अक्स दिखाई देता है। दौर-ए-हाज़िर की हक़ीक़तों को देखने की उनकी अपनी नज़र है। ऐसी नज़र जो व्यक्ति और समाज के रिश्ते को नए सिरे से पहचानने का साहस करती है।

#विश्वपुस्तकमेला2025 #हिन्दीहैंहम

शीघ्र प्रकाश्यएक ऐसी किताब जो आपको दृश्यों की यात्रा कराती है। एक दृश्य से किसी दूसरे दृश्य में पहुँचने का रास्ता भी एक ...
24/01/2025

शीघ्र प्रकाश्य
एक ऐसी किताब जो आपको दृश्यों की यात्रा कराती है। एक दृश्य से किसी दूसरे दृश्य में पहुँचने का रास्ता भी एक दृश्य ही है, यह दिखा पाती है। इसमें कोई एक कहानी या कथानक नहीं है और न ही दृश्यों को रचने की निर्मिति में कोई आशावाद या कोई तय आदर्श लगाया गया है, किसी सुख या दु:ख को बिंदु बना उसके आसपास को दृश्य की संरचना नहीं बनाया गया है। दृश्यों के सहारे सहारे दृष्टा का अवलोकन कराती इस किताब में मनुष्य का मन प्रेम, मनोविज्ञान, दर्शन, जीवन, अस्तित्व का चिंतन के बीच एक बारीक से बुनावट है, जिससे यह हमारे देखने के तरीक़े की बड़ी सरलता से एक पड़ताल करती है। हमारी सोच और समझ हमें दिख रहे पर लागू रहती है, हमारे चित्त का अपना कोई रूप नहीं बनता सिवाय इसके कि हमने क्या और किस तरह देखा। इसे पढ़ते हुए दृश्यों की एक ऐसी यात्रा का अनुभव है जिसमें कल्पना और यथार्थ दोनों के गुण हैं, जिससे हमारे अस्तित्व चेतना, मनोविज्ञान और जीवन में मन के हाशिए पर अलग-थलग पड़े हुए अनुत्तरित प्रश्नों के जवाब तलाशने की कोशिश करती है।

#विश्वपुस्तकमेला2025 #हिन्दीहैंहम

शीघ्र प्रकाश्यप्रभु त्रिवेदी दोहा छंद के सशक्त हस्ताक्षरों में से एक हैं। छंद के प्रति उनकी आस्था, उसे साधने की क्षमता औ...
24/01/2025

शीघ्र प्रकाश्य
प्रभु त्रिवेदी दोहा छंद के सशक्त हस्ताक्षरों में से एक हैं। छंद के प्रति उनकी आस्था, उसे साधने की क्षमता और उसकी कसावट दोहे के साथ-साथ हम उनके गीतों में भी महसूस कर सकते हैं। पहला संग्रह होने के बावजूद अंतर्वस्तु और संरचना के स्तर पर गीतों का शिल्प एवं विषयगत वैविध्य पाठकों को प्रभावित करने वाला है। संवेदनशीलता, विचारधारा, स्वानुभूति, सर्जनात्मक कल्पना और गहरी मानवीय चिंता के एकात्म से उपजे ये गीत कहीं से भी इकहरे, साम्प्रदायिक और कटू नहीं हैं। इनका कवि प्रकृति, मनुष्य और हरपल बदलते हुए देशकाल के प्रति सजग है और अपने ढंग से लिखना चाहता है।

#विश्वपुस्तकमेला2025 #हिन्दीहैंहम

शीघ्र प्रकाश्यराघव के गीतों की मुख्य विशेषता है कि उनके गीत प्रत्येक व्यक्ति के मन के गीत हैं। उनके गीतों में जड़ों से क...
24/01/2025

शीघ्र प्रकाश्य
राघव के गीतों की मुख्य विशेषता है कि उनके गीत प्रत्येक व्यक्ति के मन के गीत हैं। उनके गीतों में जड़ों से कटकर अलग-थलग पड़़ जाने की पीड़ा है तो किसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु यत्र तत्र भटकते मन को लक्ष्य के प्रति एकाग्रचित्त करने की प्रेरणा भी है।
इस संग्रह के गीत सामान्य मानवीय अनुभवों से जुड़ते हुए दिखाई पड़ते हैं। पाठक अपने स्वयं के जीवन को इन गीतों की यात्रा के माध्यम से देख सकते हैं। इस गीत संग्रह में राघव ने मन के कोने-कोने में दबे हुए भावों को गीत की सूरत प्रदान की है।

#विश्वपुस्तकमेला2025 #हिन्दीहैंहम

शीघ्र प्रकाश्यअपनी पहचान और नवीन पाठक वर्ग ढूँढने में प्रयत्नशील हिन्दी ग़ज़ल अपनी लोकप्रियता के बल पर आज सीधे-सीधे समसामय...
23/01/2025

शीघ्र प्रकाश्य
अपनी पहचान और नवीन पाठक वर्ग ढूँढने में प्रयत्नशील हिन्दी ग़ज़ल अपनी लोकप्रियता के बल पर आज सीधे-सीधे समसामयिक समस्याओं से टकरा रही है। हमारे हौसलों को उड़ान देकर अपने चाहनेवालों को आवाज़ दे रही है। ज़ुल्म और नाइंसाफ़ी के ख़िलाफ़ इसका बाँकपन मचलता है तो हज़ारों मील दूर बैठे लोग अपने आँसुओं की रंगत पहचानने लगते हैं। यह हमारी उदासियों का राज़दार भी है और ख़ामोशियों के सफ़र में हमारी ज़ुबान में हमारी हम-ज़ुबान भी। हाल जो भी हो यह हमारा दामन नहीं छोडती। इसकी अपनी ज़मीन है जो हमारे आस-पास जुड़ी है, जिस पर हर पल इसकी सम्वेदनाएँ विकसित हो रही हैं।
#विश्वपुस्तकमेला2025 #हिन्दीहैंहम

शीघ्र प्रकाश्यविकलांगता किसी की व्यक्तिगत समस्या नहीं है बल्कि यह समाज के एक बड़े वर्ग की बात है जिस पर निश्चित ही विमर्श...
23/01/2025

शीघ्र प्रकाश्य
विकलांगता किसी की व्यक्तिगत समस्या नहीं है बल्कि यह समाज के एक बड़े वर्ग की बात है जिस पर निश्चित ही विमर्श किया जाना चाहिए। इस विमर्श को केन्द्र में रख कर लिखी गयी कहानियाँ विकलांगता को दिव्यता साबित करने वाली कोरी कल्पनाएँ भर नहीं हो सकतीं। इसके लिए वस्तुस्थिति और सामाजिक वातावरण का चित्रण आवश्यक है। सुखद अंत की कल्पनाओं से कहीं अधिक सुखद अंत के लिए प्रेरित करती कहानियों की आवश्यकता है जो संवेदनशील मन को झकझोर सकें, समाज को विकालांगजन की वास्तविक स्थिति से परचित करा सके। ऐसी कहानियाँ जो उनके प्रति प्रेम, समानता, सद्भाव और संवेदना का वही भाव जगा सके जो हर मनुष्य का मौलिक अधिकार है।
डॉ. गीता शर्मा जी ने विकलांगता केन्द्रित साहित्य के विकास की दिशा में महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। आपने न सिर्फ़ विकलांगजन को केन्द्र में रखकर कहानियाँ लिखी हैं बल्कि अन्य लेखकों द्वारा लिखी गयी विकलांगता-विमर्श की कहानियों को एक जगह संकलित करने का महती कार्य भी किया है। इस तरह के प्रयासों से विकलांगता-विमर्श को आगे बढ़ाने की हमारी मुहिम को बल मिलता है। प्रस्तुत कहानी संकलन ‘पुनर्नवा’ इसी दिशा में एक और कदम है।

#विश्वपुस्तकमेला2025 #हिन्दीहैंहम

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