04/12/2023
अब वो गलीयाँ,वो मक़ाँ याद नहीं
कौन रह्ता था कहाँ याद नहीं.......
पश्चिम से आयातित तकनीक वाले विकास को अपनाने ने मानवीय संवेदनशीलता का ह्रास कर दिया है।
पश्चिम ने तकनीकी विकास इस सोच के साथ किया कि बाजार मजबूत होना चाहिए, लेकिन घर, घर के अंदर पनपने वाले रिश्ते खत्म ,सिमटने चाहिए।
घर,रिश्ते आपकी जरुरत पूरी न करें,बाजार आपकी सब जरूरतें पूरा करें।
बाजार नैतिकता के बंधन पर भी विश्वास नहीं करता
छोटे शहर ,गांव पहले इन की चपेट में आने से बचे हुए थे, लेकिन जब ये विकास वहां भी पहुंचाया जाने लगा तो , अब वो आकार ,सुविधाओं के हिसाब से शहर , महानगर तो नहीं हैं, लेकिन वहां भी मानसिकता मुद्रा अर्जन और भोग के ईर्द गिर्दही सिमटती जा रही है।
अब वो गलीयाँ,वो मक़ाँ याद नहीं
कौन रह्ता था कहाँ याद नहीं.......
जब भी हम अकेले में होते हैं, गहन सोचने लगते है, तो ख्याल आने लगता है
रस्ता वही और मुसाफिर वही
एक तारा न जाने कहाँ छुप गया
दुनिया वही, दुनियावाले वही
कोई क्या जाने किसका जहां लुट गया
बाजार चाहता है कि आप व्यस्त रहें ,सोचने का मौका न मिले
मेरा सौभाग्य रहा कि मुझे इस बात का अहसास होने लगा कि कहीं एक सोच के अनुसरण के चलते , कहीं हमसे हमारा मानवीय जहां जुदा तो नहीं होता जा रहा।
नवीनता ,तकनीक को धारण करना चाहिए किंतु इसे पुराने को विस्मृति करने का अधिकार नहीं रहना चाहिए।
इस पर भी मनन किया जाना चाहिए कि कहीं ये मानव को मानव से ही विमुख तो नहीं करने लगेगा।
अभी उत्तरकाशी में भी नयी तरीकों के साथ साथ पुराने तरीकों की मदद भी लेनी पड़ी।
आज जितने भी अविष्कार होते हैं,उन सबके चलते हमें पहिए के अविष्कार को नहीं भूलना चाहिए।
कोटद्वार , दिल लिखता भी है , किसी के बचपन के दौर के साथ साथ, उपर लिखी बातों की तरफ भी इशारा करती है।
सावधान,सतर्क रहिए, इन बातों के लिए स्वंय के भीतर से शुरुआत कीजिए।
पुस्तक आपको भावुक करेगी ,और मानवता को और ज्यादा से आपके भीतर शोर शराबे का उत्साह देगी।
♥️जीना भूले थे कहां,
याद नही
तुझको पाया है जहां
आंख भर आई वहीं ♥️♥️