सृष्टि के हर कोने से आज संबंधों में बढ़ती हुई कड़वाहट की आवाज सुनाई दे रही है । आज किसी इंसान को यदि पूछा जाए कि आपके दूसरों के साथ संबंध कैसे हैं ? अधिकांश का तो शायद यही उत्तर मिलेगा कि जिनके लिए मैंने जीवन भर इतना किया, उनका मुझसे व्यवहार असहनीय और निंदनीय है । संबंध बाहर से तो सुंदर दिखते हैं लेकिन अंदर झांक कर देखें तो विष और पीड़ा के ही दर्शन होते हैं । आपसी संबंधों को ल
ेकर दूसरों की शिकायतें मनुष्य के मन को व्याकुल कर रही है ।
पारस्परिक संबंधों का आधार है स्नेह । हम सभी को जीवन में बहुत प्रकार के संबंधों में आना पड़ता है, विभिन्न संस्कारों के व्यक्तियों से व्यवहार करना होता है, जीवन कभी भी अकेला नहीं है । संबंधों के बिना जीवन का कोई मूल्य नहीं है । क्या हमने कभी सोचा है कि संबंध क्यों बिगड़ गए ? क्या गलती हो रही है ? आइए जाने संबंधों के टूटने के कुछ मूल कारण -
स्वार्थपूर्ति ना होने पर मनुष्य आपसी स्नेह, पूर्वकाल के उपकार आदि सब कुछ भूल जाते हैं । स्वार्थी मनुष्य कितने निर्दई बन जाते हैं, यह आज चारों ओर प्रत्यक्ष हो रहा है । वह बेटा, जिसकी मां-बाप अपने सच्चे दिल से पालना की थी, जरा सी स्वार्थपूर्ति न होने पर मां-बाप को छोड़ कर चला जाता है । दूसरी तरफ मां-बाप की अपनी संतान के प्रति अधिक चाहना रखना कि यह बड़ा होकर डॉक्टर या इंजीनियर बनेगा, इसीलिए आज इतने रुपए खर्च कर रहा हूं, आगे चलकर वह मुझे देखेगा, इसीलिए आज इतना समय उसके पीछे व्यतीत कर रहा हूं (बच्चे मां बाप की बड़े होकर सेवा करें ऐसा सोचना बुरी बात नहीं है, लेकिन यह मेरी सेवा करेगा इसलिए मैं इसके पीछे पैसा खर्चा कर रहा हूं या समय दे रहा ऐसा सोचना स्वार्थ भाव में आता है) । पति और पत्नी का संबंध कितना सुखद है परंतु दहेज की स्वार्थ पूर्ति के अभाव में उसी पत्नी को मार कर घर से निकाल दिया जाता है अथवा मौत के मुंह में धकेल दिया जाता है । दूसरी तरफ पति जब पत्नी की मांग पूरी नहीं कर पाता है तो पत्नी उसे छोड़ने की धमकी देती है, कभी-कभी छोड़कर चली भी जाती है । जहां एक दूसरे के सहयोगी बनने का था, वहां स्वार्थ के कारण असहयोगी बन पड़ते हैं । अतः संबंधों को मधुर बनाए रखने के लिए स्वार्थ का त्याग जरूरी है । स्वयं से पूछना होगा कि स्वार्थ बढ़ा या संबंध ?
संबंधों में जहर घोलने वाला दूसरा शत्रु है मनुष्य का स्वयं का जहरीला स्वभाव, अहंकारी भाव, चिड़चिड़ापन या मिलनसार होकर नहीं रहना । मनुष्य इन अवगुणों के कारण न किसी को सुख दे पाता है और न किसी से सुख ले पाता है । अत: हम सभी को स्वभाव मीठा बनाना पड़ेगा । मीठे स्वभाव से ही हम दूसरों के दिलों पर राज्य कर सकते हैं ।
आज की दुनिया में हम सभी एक दूसरे के साथ सम्मुख जितनी बातें करते हैं उससे कई गुना ज्यादा विज्ञान के साधनों के द्वारा बातें करते हैं । एक ही घर में रहते हुए एक दूसरे के साथ व्हाट्सएप, फेसबुक अथवा अन्य साधनों से बातचीत करते हैं । आज हर कोई सुबह से लेकर रात तक सोशल मीडिया पर व्यस्त है । स्टेटस अपडेट करने में लगा है । आज सोशल मीडिया ही मनुष्य को अनसोशल बनाने में अर्थात् एक दूसरे से दूर करने का मूल कारण बन चुका है । हम सोशल मीडिया के द्वारा नए दोस्तों के साथ संबंध तो जोड़ रहे हैं लेकिन जो संबंध पहले से हैं, क्या उनको निभा रहे हैं ? अब यह सोचने का समय आ गया है क्या हम सही कर रहे हैं ? इन बाहरी साधनों को आपसी संबंधों में जगह ना देकर, आपस में एक दूसरे के नजदीक रहकर बातचीत के द्वारा मतभेदों को मिटाना आवश्यक है ।
दूसरों से कामनाएं रखना भी संबंध बिगड़ना है । हम सभी को यह ख्याल रखना चाहिए कि हर एक व्यक्ति की अपनी क्षमता होती है । हर व्यक्ति से हर प्रकार के कार्य हों, यह संभव नहीं । हमारे मन की कामनाओं से दूसरों की भावनाएं बदलती हैं । कामनाएं हमें कमजोर करती है । हमारे आपसी संबंधों के बीच में दीवार बना देती है । हम एक दूसरे से कामना रखने के बजाय सदा ही एक दूसरे के सहयोगी बनकर जीयें । अगर हमें आपसी संबंधों को सही रखना है तो एक दूसरे के प्रति अटूट विश्वास रखना जरूरी है क्योंकि जहां विश्वास है वहां ही प्यार रहता है ।
कभी-कभी हम दूसरों की बीती हुई बात अथवा गलत कार्य को दिल में रखकर बार-बार उसका वर्णन करते हैं, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से । जो कि सुंदर संबंधों को तोड़ने के लिए काफी होता है । यह नियम है कि हम जितना दूसरों के अवगुण वर्णन करेंगे, वे अवगुण मेरे ही पास लौटकर आएंगे । हम मंदिर में जाकर मुक्त कंठ से गा तो लेते हैं, हे प्रभु मोरे अवगुण चित ना धरो परंतु दूसरों के अवगुण चित्त पर धरने में हम जरा सी भी देर नहीं करते । अगर संबंधों को ठीक रखना है तो हमें दूसरों के अवगुणों को नगण्य समझना होगा । साथ-साथ घर में या कार्यस्थल पर एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या-भाव, नीचा दिखाने की भावना को त्याग कर एक-दूसरे के पूरक होकर रहना है ।
इन सभी बातों को धारण करने के लिए हमें राजयोग का अभ्यास करना अत्यंत आवश्यक है राजयोग एक ऐसा माध्यम है जो हमारे संबंध परमात्मा से जोड़कर जीवन को दिव्य गुणों से भर देता है । राजयोग हमारी समझदारी को बढ़ा देता है । दूसरों की छोटी-छोटी गलतियों का पहाड़ ना बना कर हम उन्हें क्षमा करते चले । शुभभावना में बड़ा भारी बल है । शुभभावना के द्वारा बिगड़े हुए संबंधों को सुधारा जा सकता है । कोई हमारा कितना भी बुरा सोचे, हम उसका भला ही सोचे, इससे दूसरों की उन्नति के साथ-साथ हम खुद भी उन्नति कर पाएंगे । यह कला अगर हमने सीख ली तो समझ लीजिए, सुखी जीवन और संबंधों को खूबसूरत बनाने की महान कुंजी हमारे हाथ लग गई । तो आइए, हम सभी अपने परिवार समाज, देश और विश्व को सुंदर बनाने हेतु आपसी संबंधों में मिठास घोले और समरसता लाएं ।