Gyan ki dhara

Gyan ki dhara hello friends

02/02/2024

Bhagvan Shankar ka 108name dekhe. 1- शिव - कल्याण स्वरूप2- महेश्वर - माया के अधीश्वर3- शम्भू - आनंद स्वरूप वाले4- पिनाकी - पिनाक धनुष धारण करने वाले5- शशिशेखर - सिर पर चंद्रमा धारण करने वाले6- वामदेव - अत्यंत सुंदर स्वरूप वाले
7- विरूपाक्ष - ‍विचित्र आंख वाले( शिव के तीन नेत्र हैं)
8- कपर्दी - जटाजूट धारण करने वाले
9- नीललोहित - नीले और लाल रंग वाले
10- शंकर - सबका कल्याण करने वाले11- शूलपाणी - हाथ में त्रिशूल धारण करने वाले
12- खटवांगी- खटिया का एक पाया रखने वाले
13- विष्णुवल्लभ - भगवान विष्णु के अति प्रिय
14- शिपिविष्ट - सितुहा में प्रवेश करने वाले
15- अंबिकानाथ- देवी भगवती के पति
16- श्रीकण्ठ - सुंदर कण्ठ वाले
17- भक्तवत्सल - भक्तों को अत्यंत स्नेह करने वाले
18- भव - संसार के रूप में प्रकट होने वाले
19- शर्व - कष्टों को नष्ट करने वाले
20- त्रिलोकेश- तीनों लोकों के स्वामी21- शितिकण्ठ - सफेद कण्ठ वाले
22- शिवाप्रिय - पार्वती के प्रिय
23- उग्र - अत्यंत उग्र रूप वाले
24- कपाली - कपाल धारण करने वाले
25- कामारी - कामदेव के शत्रु, अंधकार को हरने वाले
26- सुरसूदन - अंधक दैत्य को मारने वाले
27- गंगाधर - गंगा जी को धारण करने वाले
28- ललाटाक्ष - ललाट में आंख वाले
29- महाकाल - कालों के भी काल
30- कृपानिधि - करूणा की खान31- भीम - भयंकर रूप वाले
32- परशुहस्त - हाथ में फरसा धारण करने वाले
33- मृगपाणी - हाथ में हिरण धारण करने वाले
34- जटाधर - जटा रखने वाले
35- कैलाशवासी - कैलाश के निवासी
36- कवची - कवच धारण करने वाले
37- कठोर - अत्यंत मजबूत देह वाले
38- त्रिपुरांतक - त्रिपुरासुर को मारने वाले
39- वृषांक - बैल के चिह्न वाली ध्वजा वाले
40- वृषभारूढ़ - बैल की सवारी वाले41- भस्मोद्धूलितविग्रह - सारे शरीर में भस्म लगाने वाले
42- सामप्रिय - सामगान से प्रेम करने वाले
43- स्वरमयी - सातों स्वरों में निवास करने वाले
44- त्रयीमूर्ति - वेदरूपी विग्रह करने वाले
45- अनीश्वर - जो स्वयं ही सबके स्वामी है
46- सर्वज्ञ - सब कुछ जानने वाले
47- परमात्मा - सब आत्माओं में सर्वोच्च
48- सोमसूर्याग्निलोचन - चंद्र, सूर्य और अग्निरूपी आंख वाले
49- हवि - आहूति रूपी द्रव्य वाले
50- यज्ञमय - यज्ञस्वरूप वाले51- सोम - उमा के सहित रूप वाले
52- पंचवक्त्र - पांच मुख वाले
53- सदाशिव - नित्य कल्याण रूप वाल
54- विश्वेश्वर- सारे विश्व के ईश्वर
55- वीरभद्र - वीर होते हुए भी शांत स्वरूप वाले
56- गणनाथ - गणों के स्वामी
57- प्रजापति - प्रजाओं का पालन करने वाले
58- हिरण्यरेता - स्वर्ण तेज वाले
59- दुर्धुर्ष - किसी से नहीं दबने वाले
60- गिरीश - पर्वतों के स्वामी
61- गिरिश्वर - कैलाश पर्वत पर सोने वाले
62- अनघ - पापरहित
63- भुजंगभूषण - सांपों के आभूषण वाले
64- भर्ग - पापों को भूंज देने वाले
65- गिरिधन्वा - मेरू पर्वत को धनुष बनाने वाले
66- गिरिप्रिय - पर्वत प्रेमी
67- कृत्तिवासा - गजचर्म पहनने वाले
68- पुराराति - पुरों का नाश करने वाले
69- भगवान् - सर्वसमर्थ ऐश्वर्य संपन्न
70- प्रमथाधिप - प्रमथगणों के अधिपति
71- मृत्युंजय - मृत्यु को जीतने वाले
72- सूक्ष्मतनु - सूक्ष्म शरीर वाले
73- जगद्व्यापी- जगत् में व्याप्त होकर रहने वाले
74- जगद्गुरू - जगत् के गुरू
75- व्योमकेश - आकाश रूपी बाल वाले
76- महासेनजनक - कार्तिकेय के पिता
77- चारुविक्रम - सुन्दर पराक्रम वाले
78- रूद्र - भयानक
79- भूतपति - भूतप्रेत या पंचभूतों के स्वामी
80- स्थाणु - स्पंदन रहित कूटस्थ रूप वाले81- अहिर्बुध्न्य - कुण्डलिनी को धारण करने वाले
82- दिगम्बर - नग्न, आकाशरूपी वस्त्र वाले
83- अष्टमूर्ति - आठ रूप वाले
84- अनेकात्मा - अनेक रूप धारण करने वाले
85- सात्त्विक- सत्व गुण वाले
86- शुद्धविग्रह - शुद्धमूर्ति वाले
87- शाश्वत - नित्य रहने वाले
88- खण्डपरशु - टूटा हुआ फरसा धारण करने वाले
89- अज - जन्म रहित90- पाशविमोचन - बंधन से छुड़ाने वाले
91- मृड - सुखस्वरूप वाले
92- पशुपति - पशुओं के स्वामी
93- देव - स्वयं प्रकाश रूप
94- महादेव - देवों के भी देव
95- अव्यय - खर्च होने पर भी न घटने वाले
96- हरि - विष्णुस्वरूप
97- पूषदन्तभित् - पूषा के दांत उखाड़ने वाले
98- अव्यग्र - कभी भी व्यथित न होने वाले
99- दक्षाध्वरहर - दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने वाले
100- हर - पापों व तापों को हरने वाले101- भगनेत्रभिद् - भग देवता की आंख फोड़ने वाले
102- अव्यक्त - इंद्रियों के सामने प्रकट न होने वाले
103- सहस्राक्ष - हजार आंखों वाले
104- सहस्रपाद - हजार पैरों वाले
105- अपवर्गप्रद - कैवल्य मोक्ष देने वाले
106- अनंत - देशकालवस्तु रूपी परिछेद से रहित
107- तारक - सबको तारने वाले
108- परमेश्वर - परम ईश्वर

02/02/2024
10/06/2023

Jai shree Ram Jai bageshwar dham
09/06/2023

Jai shree Ram Jai bageshwar dham

आज की सबसे अच्छी फोटो                                                ❤️❤️❤️❤️❤️❤️।                                      ...
07/06/2023

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07/06/2023

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Jai shree Ram 🙏🙏
07/06/2023

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05/06/2023

Jai bageshwar dham 🙏🙏 aise 8karno ke Lakshmi Ghar pr rukti nhi hai

🥹🥹
05/06/2023

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Jai shree Ram 🙏🙏
04/06/2023

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Har har Mahadev
04/06/2023

Har har Mahadev

02/06/2023

01/06/2023

jai hanuman: हनुमान जी की 10 कहानियां, कई कहानियां आप पहली बार पढेंगे।
कहा जाता है कि भगवान को पाना है तो पहले उनके भक्त को पा लीजिए। हनुमान से बड़ा भगवान का भक्त और कौन है। अगर आप हनुमान जी को पा लिए तो समझिए भगवान अपने आप आपको मिल जाएंगे। हनुमान जी की निश्छल भक्ति हमें तमाम तरह की सीख भी देती है और भगवान की तरफ मुड़ने का रास्ता भी बताती है। तो चलिए ऐसे वीर हनुमान के बारे में आपको 10 ऐसी कहानियां बताते हैं, जिनमें से पक्का है कि कई कहानियां आप पहली बार सुन रहे होंगे। हनुमान जी का ध्यान करिए और उनकी इन कहानियों को पढ़ना शुरू करिए। भगवान हनुमान हम सबका कल्याण करें।
1: जब फल समझ सूर्य को निगल गए हनुमान। bal hanuman ki kahani
तो चलिए पहली कहानी आपको सुनाते हैं यह भगवान हनुमान के बालपन की कहानी है। यह बहुत ही प्रचलित कहानी है। इस कहानी को आप जरूर सुने होंगे। एक बार और सुन लीजिए क्योंकि यह भगवान की कहानी है। तो हुआ यह कि एक दिन मां अंजना किसी काम में व्यस्त थीं। उन्होंने बाल हनुमान (bal hanuman) को वहीं कुटी में लिटा दिया था और अपना काम करती रहीं। इस बीच हनुमान जी को भूख लग गई। लेटे-लेटे ही आकाश में उन्हें भगवान सूर्य दिखाई दे दिए। बाल हनुमान को लगा कि वह कोई स्वादिष्ट फल है। फिर क्या था बाल गोपाल ने छलांग लगा दी और उड़ चले सूर्य की तरफ।
सूर्यग्रहण का दिन था, राहु जान बचाकर भागे
वहां पहुंचकर उन्होंने सूर्य को अपने मुंह में रख लिया। कहते हैं कि उस दिन सूर्यग्रहण था। राहु भी भगवान सूर्य को ग्रास बनाने के लिए उनकी तरफ जा रहा था। हनुमान जी ने समझा कि यह कोई काला फल है तो वह उसकी तरफ भी छलांग लगाए। लेकिन राहु किसी भी तरह खुद को बचाकर भगवान इंद्र की शरण में पहुंचा। राहु ने जब यह जानकारी दी कि एक बंदर भगवान सूर्य को निगल गया है तो इंद्र को आश्चर्य हुआ। वह अपने हाथी पर सवार होकर वहां पहुंचे। इस बीच हनुमान जी को लगा कि कोई सफेद फल उनकी तरफ आ रहा है। वह उस तरफ भी झपट पड़े। इससे इंद्र को गुस्सा आ गया और उन्हें वज्र से हनुमान जी पर प्रहार कर दिया। वज्र के प्रहार से हनुमान जी का मुंह खुल गया और उसमें से सूर्य जी खुद को बचाते हुए जल्दी से बाहर निकले।
वरुण देव हो गए नाराज, तब जीवित करना पड़ा हनुमान को
लेकिन भगवान हनुमान को वज्र आघात हुआ तो उनके पिता यानी वरुण देव नाराज हो गए और उन्होंने बहना बंद कर दिया। अब तक सूर्य के निगले होने के कारण चारों तरफ अंधेरा था। अब सूर्य भगवान बाहर तो आए लेकिन वायुदेव के रुष्ट होने से हवा रुक गई और सबकुछ कुम्हलाने लगा। चारों तरफ त्राहि-त्राहि मच गई। कहा जाता है कि ब्रह्मा जी को खुद वायुदेवता को मनाने के लिए आना पड़ा। उन्होंने भगवान हनुमान को स्पर्श कर जीवनदान दिया और वायुदेवता से आग्रह किया कि वे बहना शुरू करें। इस दौरान सभी देवताओं ने आशीर्वाद भी दिया कि आगे से इस बालक पर किसी भी तरह के अस्त्र शस्त्र का कोई असर नहीं होगा और यह दुनिया का सबसे बलशाली और तेजस्वी बालक होगा। देवता लोगों के इस आशीर्वाद के बाद खुश होकर वरुण देव बहना शुरू किए और अपने बेटे को मां अंजना के साथ लेकर घर पहुंचे।
2: आजीवन ब्रह्मचारी थे हनुमान जी, फिर उनका बेटा कैसे हो गया? hanuman ji ke bete ki khanai
दुनिया का हर इंसान जानता है कि हनुमान जी जैसा ब्रह्मचारी इस धरती पर ना कभी हुआ और ना कभी होगा। ब्रह्मचर्य का असली पालन भगवान हनुमान ने ही किया। यही वजह है कि जब एक बार उनके सामने एक बंदर खड़ा होकर खुद को उनका पुत्र बताने लगा तो भगवान हनुमान खुद आश्चर्य में पड़ गए। चलिए पढ़ते हैं कि आखिर यह क्या कहानी है- तो हुआ यह कि जब रावण युद्ध में भगवान राम से हार रहा था उसने छल शुरू किया। उसने किया ऐसा कि पाताल लोक के महाराजा अहिरावन को मजबूर किया कि वे राम और लक्ष्मण का अपहरण कर पाताल लोक में छिपा दें। इसकी जानकारी होने पर भगवान के भक्त हनुमान पाताल की तरफ चल पड़े। पाताल लोक के सात द्वारों पर सख्त पहरा था। हनुमान जी ने छह द्वार तो भेद दिया लेकिन अंतिम द्वार पर उन्हें अपने समान एक बलशाली बानर से युद्ध करना पड़ा।
हनुमान और मकरध्वज की कहानी
पहले तो बिल्कुल खुद जैसा बानर देखकर हनुमान जी आश्चर्य में पड़ गए। उन्हें लगा कि कोई राक्षस छल कर रहा है। उन्होंने परिचय पूछा तो उस बानर ने खुद को मकरध्वज (Makardhwaj) बताया। इस दौरान उसने अपने पिता का नाम हनुमान कहा। जैसे ही उसने अपने पिता का नाम हनुमान बताया, हनुमान जी को क्रोध आ गया। हनुमान जी ने कहा- दुष्ट मेरे साथ छल कर रहा है। मैं ही हनुमान हूं। और पूरी दुनिया जानती है कि मैं बाल ब्रह्मचारी हूं। जैसे ही हनुमान जी ने अपना परिचय दिया मकरध्वज उनके पैरों में गिर पड़ा। वह बार-बार अपने पिता को प्रणाम करने लगा। लेकिन हनुमान जी यह मानने को तैयार नहीं थे। तब मकरध्वज ने बताया कि जब लंका जलाकर आप समुद्र में कूदे थे तब उनके शरीर का तापमान इतना अधिक था कि पसीने से वह नहाए हुए थे। उसी पसीने का एक बूंद समुद्र में भी गिरा था। एक मगरमच्छ के मुंह में यह पसीना गिरा और उसी से मकरध्वज का जन्म हुआ। इस कहानी को सुनने के बाद भगवान हनुमान को विश्वास हो गया और उन्होंने मकरध्वज को गले से लगा लिया।
3- जब भगवान राम ने हनुमान जी को दिया मृत्युदंड। bhagwan ram ne hauman ji ko kyon mara
भगवान राम और हनुमान जी की यह कहानी बहुत ही कम लोग जानते होंगे। कई लोग तो इस कहानी पर विश्वास भी नहीं कर पाते। तो चलिए आपको यह कहानी बताते हैं। एक बार भगवान राम की सभा में बहुत सारे ब्राह्मण और संत महात्मा जुटे थे। इसमें नारद जी से लेकर गुरु वशिष्ट और विश्वामित्र जी भी अपना विचार रख रहे थे। कहा जाता है कि इसी सभा में एक कोने में चुपचाप हनुमान जी भी बैठे थे। इस चर्चा के दौरान ही अचानक नारद जी ने यह बात सामने रख दी कि भगवान राम का नाम उनसे भी बड़ा है और उन्होंने कहा कि वह इसे साबित भी कर देंगे।
नारद जी ने कहा था ऐसा करने के लिए
चर्चा खत्म होने के बाद नारद जी ने हनुमान जी से कहा कि वे सभी ऋषि मुनियों का सत्कार करना शुरू कर दें लेकिन उन्होंने यह भी कह दिया कि विश्वामित्र को छोड़ दीजिएगा। नारद जी ने यहां ट्विस्ट यह दे दिया कि विश्वामित्र राजा हैं, इसलिए उनके साथ ऐसा करना जरूरी नहीं है। ऐसे में नारद जी की बात मानते हुए हनुमान जी ने सभी ऋषियों का सत्कार किया लेकिन जब वहीं पर विश्वामित्र की बारी आई तो उन्होंने उन्हें नजरअंदाज कर दिया। विश्वामित्र को यह अपमान बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्होंने तुरंत अपने शिष्य राम से हनुमान को मृत्युदंड देने का वचन देने को कहा।
राम जी फंस गए दुविधा में
अब राम जी दुविधा में फंस गए। एक तरफ भक्त जिसे वह बेहद प्रेम करते हैं और दूसरी तरफ गुरु। लेकिन गुरु की बात कैसे टालें। इसलिए वह हनुमान जी को मृत्युदंड देने के लिए उनकी तरफ जाने लगे। इस बीच नारद जी ने हनुमान जी को कह दिया कि वे डरें नहीं और सिर्फ राम नाम जपते रहें। अब हुआ यह कि उन्हें मारने के लिए भगवान राम जितने भी अस्त्र आजमाते., सब के सब फेल हो जाते। इसके बाद गुरु की महिमा ना मिटे इसके लिए भगवान राम ने अंतिम विकल्प के रूप में ब्रह्मास्त्र चला दिया। लेकिन यह क्या यह भी विफल हो गया। हार मानकर राम जी को विश्वामित्र के पास जाकर सब सच बताना पड़ा। विश्वामित्र जी खुश हुए और उन्होंने राम जी को वचन से मुक्त कर दिया। इस तरह से यह भी सिद्ध को हो गया कि भगवान राम का नाम उनसे भी बड़ा है। और हनुमान जी भी बच गए और भगवान की भक्ति में रम गए।
4- …जब अपने भाई भीम का घमंड तोड़ा था हनुमान जी ने। hanuman aur bhim ki kahani
बहुत कम लोग जानते हैं कि भीम और हनुमान जी दोनों ही एक दूसरे के भाई लगते हैं। आप कहेंगे कि दोनों तो अलग–अलग युग में थे। तो आपको यह तो मालूम ही है कि हनुमान जी तो अजर अमर हैं यानी वे हर युग में हैं और रहेंगे। तो चलिए आपको यह कहानी बताते हैं। दरअसल, भीम को अपने बलवान होने पर बहुत घमंड था। भीम को भी पवनदेव का ही पुत्र माना जाता है। ऐसे में भाई भीम के इस अहंकार को दूर करने के लिए बनवास के दौरान जब भीम अपने भाइयों के साथ जंगल में घूम रहे थे। एक जगह एकांत पाकर भीम के आगे हनुमान जी खड़े हो गए।
भीम ने मान ली हार और फिर…
एक दुर्बल बंदर को अपना रास्ता रोके देख भीम को गुस्सा आ गया। उन्होंने तुरंत बंदर यानी हनुमान जी को रास्ता छोड़ने को कहा। पर, हनुमान जी तैयार नहीं हुए। जब भीम ज्यादा गुस्साने लगे तो हनुमान जी बस इतना कह दिया कि मेरी पूंछ हटाकर चले जाओ। अब भीम को लगा कि यह क्या मजाक है। उन्होंने तुरंत पूंछ पकड़ी और हटाने लगे लेकिन यह क्या पूंछ तो टस से मस नहीं हो रही है। जब काफी कोशिश के बाद भी ऐसा नहीं हुआ तो उन्होंने हार मान ली और उनसे सही परिचय पूछा। जब उन्हें ज्ञात हुआ तो तुरंत ही क्षमा मांगे और अहंकार खत्म हो गया।
5- जब शनिदेव को रावण के तहखाने से हनुमान ने कराया मुक्त। hanuman aur shanidev ki kahani
कई लोग कहते हैं कि शनिदेव और हनुमान जी में नहीं बनता है। खासकर आजकल के कुछ ढोंगी पंडित दोनों लोगों में अक्सर विवाद कराने की कोशिश करते हैं ताकि उनका बिजनेस चले। लेकिन इस कहानी से आप समझ जाएंगे कि दोनों में एक-दूसरे के प्रति कितनी श्रद्धा है। तो हुआ यह कि जब हनुमान जी लंका चला रहे थे उन्हें रावण के तहखाने में शनिदेव कैद मिले। यहां उन्होंने शनिदेव को मुक्त कराया। इसके बाद रावण को पराजित करने के लिए उन्हें शनिदेव से मदद भी मिल गई। बाद में शनिदेव जब प्रसन्न हुए तो उन्होंने पूछा कि बताइए मैं आपके लिए क्या करूं। हनुमान ने आशीर्वाद सिर्फ मांगा। शनिदेव जी ने साफ कह दिया कि जाइए आज के बाद आपका जो भी भक्त होगा उसे मैं किसी भी रूप में प्रकोप का भागी नहीं बनाऊंगा। तब से आज तक हनुमान जी के भक्तों पर शनिदेव की दृष्टि कभी टेढ़ी नहीं होती।
6- भगवान शिव और हनुमान के बीच हुआ था घनघोर युद्ध। hanuman aur shankar ji ke b**h yudhh
यह कहानी भी कम लोगों को मालूम है। भगवान शिव और हनुमान जी के बीच एक बार जबरदस्त युद्ध हुआ। यह कहानी तब कि है जब भगवान राम ने अश्वमेध यज्ञ किया। यज्ञ का यह घोड़ा जब देवपुर नगर में पहुंचा तो वहां के राजा वीरमणि के बेटे रुक्मांगद ने इस घोड़े को बंदी बना लिया। वीरमणि भगवान शिव के प्रिय भक्त थे। घोड़े की रक्षा कर रहे शत्रुघ्न ने रुक्मांगद से घोड़ा छोड़ने का विनम्र अनुरोध किया नहीं मानने पर युद्ध छिड़ गया।
शत्रुघ्न का साथ देने के लिए हनुमान जी भी पहुंच गए और वीरमणि की सेना पर टूृट पड़े। इस बीच भरत के पुत्र पुष्कल ने वीरमणि को घायल कर दिया। अपने भक्त को घायल देखकर भगवान शिव को क्रोध आ गया और वे खुद रक्षा के लिए युद्ध करने आ पहुंचे। उन्होंने वीरभद्र के नेतृत्व में नंदी समेत अपने गणों को युद्ध के लिए भेजा। इस दौरान वीरभद्र ने भरत के पुत्र पुष्कल का सिर काट दिया।
भाई के बेटे का सिर कटा देखकर शत्रुघ्न क्रोधित होकर भगवान शिव पर टूट पड़े। भगवान शिव ने उन्हें मूर्छित कर दिया। इसे देखकर खुद हनुमान जी आगे आए और भगवान शिव से युद्ध करने लगे। यह युद्ध बहुत ही भयंकर होने लगा। पर, हनुमान जी के पराक्रम के कारण भगवान शिव को भी उनकी प्रशंसा करनी पड़ी। भगवान शिव इतने खुश हुए कि उन्होंने हनुमान से वरदान मांगने को कहा। इस पर हनुमान जी ने कहा कि आपके प्रकोप के कारण भरत के पुत्र जहां मारे गए हैं, वहीं शत्रुघ्न मुर्छित हैं। मैं उन्हें बचाने के लिए संजीवनी लाना चाहता हूं तब तक आप उनकी रक्षा करें। भगवान हंस दिए और वचन दे दिए।
इस औषधि से जहां भरत के पुत्र पुष्कल जीवित हुए वहीं शत्रुघ्न भी होश में आ गए। लेकिन उसके बाद भगवान शिव और शत्रुघ्न के बीच फिर युद्ध हुआ। शत्रुघ्न फिर हारने लगे। कहा जाता है कि तब भगवान हनुमान ने ही इशारा किया कि शत्रुघ्न जी आप भगवान राम को याद करें। इस पर उन्होंने ऐसा ही किया। जिसके बाद भगवान राम खुद युद्धभूमि में प्रगट हो गए। उनके आने पर भगवान शिव उनके शरण में चले गए और घोड़ा लौटा दिया गया। इसके बाद एक महाविनाश होने से बच गया।
7- अजर अमर हनुमान जी की ऐसे हुई थी मृत्यु।
अगर कोई यह कहे कि हनुमान जी की भी मृत्यु हुई थी तो आप हंस देंगे। स्वाभाविक है कि आप ऐसा करेंगे। क्योंकि हनुमान जी तो अजर अमर हैं। उन्हें तो वरदान है कि वह कभी नहीं मरेंगे। तो फिर ऐसा कब हुआ। तो चलिए इस कहानी को पढ़ते हैं। कहा जाता है कि राक्षस सहस्शिरा को मारने के लिए एक बार भगवान राम निकले। लेकिन जब कई दिन तक नहीं लौटे तो माता सीता चिंता करते हुए हनुमान को उनकी खोज में भेज दीं।
विलंका में राक्षस ने अपने द्वार पर एक ग्रामदेवी को अपने दुश्मनों से रक्षा के लिए लगा रखा था। उस ग्रामदेवी के बगल में ही विष का एक सरोवर भी था। अगर कोई मित्रभाव से इस नगर में पहुंचता और सरोवर का पानी पीता तो वह जहर उसे नुकसान नहीं पहुंचाता लेकिन अगर कोई शत्रुभाव से पहुंचता तो सरोवर का पानी पीकर मर जाता।
कहा जाता है कि हनुमान जी जब राम जी का पता लगाते इस नगर में पहुंचे तो द्वार पर ही नगरदेवी उन्हें पहचान गईं और वे उनके गले में जाकर बैठ गईं। इससे उनका गला प्यास के मारे सूखने लगा। गला को तर करने के लिए वे सरोवर का पानी पी गए और जहर के कारण मर गए। जब राम और हनुमान दोनों बहुत दिन तक नहीं मिले तो संपूर्ण दुनिया को चिंता होने लगी। देवी-देवता दोनों की तलाश में जुट गए। जब पता चला कि विलंका में भगवान हनुमान की मृत्यु हो गई है तो उनके पति पवनदेव दुखी हो गए और बहना बंद कर दिए। इससे संपूर्ण सृष्टि में हाहाकार मच गया। सभी देवताओं ने तब पवनदेव से गुहार लगाई और वचन दिया कि वे हनुमान जी को जीवित कर देंगे। कहा जाता है कि देवताओं ने अमृतवर्षा कर छह महीने बाद हनुमान जी को जीवित कर दिया।
8- …जब दशरथ की खीर से हुआ हनुमान जी का जन्म। hanuman ke janm ki kahani
भगवान हनुमान के जन्म की कई कहानियां प्रचलित हैं। सबसे अधिक प्रचलित कहानी यह है कि जब पुत्र प्राप्ति के लिए दशरथ यज्ञ कर रहे थे, तब हवन के बाद गुरुदेव ने उन्हें खीर देते हुए कहा था कि आप अपनी तीनों पत्नियों को थोड़ा-थोड़ा सा खीर इसमें से खिला देना। कहा जाता है कि इसी खीर का कुछ हिस्सा गिर गया जिसे लेकर एक कौआ उड़ गया।
कुछ दूरी पर ही अंजनी मां तपस्या कर रही थीं। यह खीर उनके ही आंचल में गिर गया। भगवान का दिया हुआ प्रसाद मानकर उन्होंने इसे ग्रहण कर लिया और इसी प्रसाद से उनके घर हनुमान जी का जन्म हुआ। कहा जाता है कि वरुणदेव और भगवान शिव की कृपा से ऐसा हुआ। इसीलिए हनुमान को वरुणदेव और शिव का भी पुत्र कहा जाता है।
9- जब हनुमान जी को पहाड़ सहित मार गिराया था भरत ने। bharat hanuman ke milan ki kahani
यह कहानी तब की है जब मेघनाद के शक्तिबाण से लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे और उनके लिए संजीवनी बुटी लेने के लिए हनुमान द्रोणाचल पर्वत गए थे। बूटी को पहचान नहीं पाने के कारण वे पूरा पर्वत ही उखाड़कर ले उड़े। लेकिन जब वह अयोध्या के ऊपर से जा रहे थे तभी भरत जी की नजर उन पर पड़ गई। विशालकाय पर्वत के साथ एक बंदर को देखकर भरत जी को शत्रु होने का असहास हुआ और उन्होंने तुरंत तीर हनुमान जी की तरफ चला दी। इससे पर्वत सहित हनुमान जी नीचे गिर गए। फिर उन्होंने अपना परिचय दिया और पूरी कहानी बताई। इसके बाद भरत जी रोने लगे और पछताते हुए हनुमान जी से क्षमा याचना की।
10- अर्जुन के अहंकार को हनुमान जी ने तोड़ा। hanuman aur arjun ki kahani
यह कहानी तबकि है जब अर्जुन रामेश्वरम से होकर गुजर रहे थे। कहा जाता है कि वहां एक बंदर बैठा हुआ था और भगवान की भक्ति में लीन था। रामसेतु पर इस बंदर को भगवान की भक्ति में बैठे देख अर्जुन ने बिना कुछ जाने समझे उनकी तपस्या भंग करने के लिए तीर चला दिया। इसके बाद अर्जुन अट्टाहास भी करने लगे। हनुमान ने जब इसका कारण पूछा तो अर्जुन ने अहंकार में कहा, भगवान राम तो धनुर्धर थे तो उन्होंने तीर से सेतु का निर्माण क्यों नहीं किया इन पत्थरों से क्यों किया। इन पत्थरों को देखकर मुझे हंसी आ रही है।
इस पर बंदर के रूप में हनुमान जी ने कहा कि राम की सेना में एक से एक बलशाली लोग थे। उनमें हनुमान भी थे जिनका वजन शायद तीर नहीं संभाल पाते इसलिए उन्होंने पत्थर से सेतु का निर्माण किया। इस बात पर अर्जुन को अहंकार हो गया और उन्होंने वहां समुद्र पर अपने तीर से सेतु बनाकर चैलेंज दिया कि दम है तो तोड़कर दिखाओ। कहा जाता है कि हनुमान जी के सिर्फ खड़ा होते ही वह सेतु भरभराकर गिर गया। अर्जुन को गलती का अहसास हुआ और वे क्षमा मांगने लगे। कहा जाता है कि अर्जुन को इतनी आत्मग्लानि हुई कि वह खुद को अग्नि के हवाले करने जा रहे थे लेकिन हनुमान जी के स्मरण करने के कारण भगवान कृष्ण प्रकट हुए और उन्हें रोक लिए। कहा जाता है कि खुद भगवान कृष्ण ने ही अर्जुन का घमंड तोड़ने के लिए वहां हनुमान जी को भेजा था।

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